शब्द-शक्ति के भेद (३) व्यंजना – 1 – रस अलंकार पिंगल

(३) व्यंजना – कवि महत्व की दृष्टि से व्यंजना का महत्व सर्वाधिक माना गया है। वही काव्य श्रेष्ठ माना जाता है जिसमें व्यंजना शक्ति या व्यंग्य मुख्य हो। जब वाच्यार्थ या लक्ष्यार्थ के अभाव में अन्य अर्थ ग्रहण किया जाता है, तब वहाँ व्यंजना शक्ति मानी जाती है। उदाहरणार्थ –
सूर की निम्न पंक्तियों में व्यंजना शक्ति का चमत्कार है-
‘हम सौ कहि लई सो सुनि कै जिय गुन लेहु अपाने।
कहँ अबला कहँ दसा दिगम्बर समुख करौ पहिचानै॥’
कहाँ तो अबला ( युवती स्त्रियाँ और कहाँ योगियों की भाँति नग्न रहना, भला इन दोनों में कोई समानता है ? हे उद्धव ! इस बात को तुम हृदय में अच्छी प्रकार जमा लो कि तुमने जो कुछ (हे युवतियों ! नग्न रहो, यह बहुत अच्छा कार्य है) हमसे (अपने घनिष्ठतम मित्र कृष्ण प्रेमिकाओं से कहा है जबकि तुम्हें ऐसी बात नहीं करनी चाहिए थी) कहा उसको हमने (कृष्ण के सखा समझकर क्षमा करते हुए) शान्ति से मौन होकर सुन लिया (किन्तु यदि तुमने किसी अन्य स्थान पर युवती स्त्रियों को नग्न रहने का उपदेश दिया तो वह तुमको पाखण्डी समझेंगी और आश्चर्य नहीं कि वे तुमको मक्कार समझकर पीट भी दें।)
उक्त अर्थ में जो कुछ कोष्ठक में लिखा है वह व्यंग्यार्थ है। यह अर्थ शब्दों का वाच्यार्थ नहीं है, अपितु पके हुए अंगूरों के गुच्छे में भरे हुए रस की तरह स्पष्ट झलकता है जिसे सहृदय व्यक्ति ही ग्रहण कर सकते हैं।
 
व्यंजना के भेद – व्यंजना के दो प्रमुख भेद – (१) शाब्दी और (२) आर्थी किये गये हैं। शाब्दी के पुन: दो भेद – (१) अभिधा मूला और (२) लक्षणा मूला किये गए हैं। अभिधा मूला शाब्दी व्यंजना के वक्ता, वाक्य आदि की विशेषता के आधार पर १० भेद किये गए हैं। व्यंजना के इन सभी भेदों को अग्रलिखित सारणी के द्वारा समझाया गया है –
Vyanjana Chart
व्यंजन के भेद
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पहले के भाग यहाँ पढ़ सकते हैं –

“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”

काव्य में शब्द शक्ति का महत्व – रस अलंकार पिंगल

शब्द शक्ति क्या है ? रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – रस अलंकार पिंगल

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शब्द-शक्ति के भेद (३) व्यंजना – 1 – रस अलंकार पिंगल

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