ट्रेड यूनियन पर एक संवाद फ़ेसबुक से


Vivek Rastogi

Yesterday at 8:03am ·

  • ये हड़ताल अपने समझ में नहीं आती, ये सब लोग ज्यादा काम करके ज्यादा कमाई करवायें संस्थानों की फ़िर बोलें अब हमारा वेतन बढ़ाओ भत्ते बढ़ाओ

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    • Arpit Singh Pandya, Dhyanshree Shailesh Vyas and 2 others like this.

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी संस्‍थान कभी लाभ में नहीं आते… क्‍या आप कॉर्पोरेट को नहीं जानते…

      Yesterday at 8:28am · Unlike · 2

       

    • Vivek Rastogi संस्थान लाभ में आते हैं, पर इसके लिये पहले कर्मचारी को सोचना चाहिये, वैसे हमें लगता नहीं कि कार्पोरेट में ट्रेड यूनियन भी चलती हैं, और अगर चलती हैं तो वे सही तरह से काम नहीं करतीं, जो ट्रेड यूनियन के नेता लोग होते हैं वो तो होते ही अकर्मण्य हैं और दूसरों को भी वैसा ही करने की कोशिश करते हैं

      Yesterday at 8:32am · Like · 1

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी कोई लाभकारी संस्‍थान बता पाएंगे, जो अपने कर्मचारियों, श्रमिकों को पूरा लाभ देता है…

      23 hours ago · Unlike · 1

       

    • Vivek Rastogi हमने तो ऐसे बहुत सारे संस्थान देखे हैं

      23 hours ago · Like

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी चलिए कोई एक बता दीजिए, फिर शायद मेरे भी विचार बदल जाएं…

      23 hours ago · Unlike · 1

       

    • Vivek Rastogi क्योंकि हमने तो इसमें से एक में काम भी किया है, नाम बताना ठीक नहीं होगा

      23 hours ago · Like

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी निश्‍चय की आपकी कंपनी ने मुनाफा लेकर उसे सभी कार्मिकों में बराबर बांट दिया होगा और मालिक आज भी अपने कार्मिकों के स्‍तर का ही जीवन यापन कर रहा होगा। आप लकी हैं… जो आपको ऐसा संस्‍थान मिला।

      23 hours ago · Unlike · 1

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी अब यह मत कहिएगा कि जिसकी जितनी योग्‍यता थी, उसे उतना दिया गया। योग्‍यता का पैमाना बनाने का अधिकार कुछ लोग अपने पास सुरक्षित रखते हैं, ताकि उस लाठी से बड़े वर्ग को हांका जा सके…

      23 hours ago · Unlike · 1

       

    • Vivek Rastogi वेतन कभी भी बराबर नहीं बाँटा जा सकता है, वेतनवृद्धी भी कर्मचारी के काम करने के ऊपर निर्भर करती है, परंतु बाजार से अधिक वेतन और सुविधाएँ देना ही मुनाफ़ा बाँटना कहलाता है, योग्यता के अनुसार ही वेतन होता है, क्योंकि कोई व्यक्ति एक काम जो ७ दिन में कर सकता …See More

      23 hours ago · Like

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी हूंम्। एक व्‍यक्ति एक संस्‍थान में काम करता है और तीस हजार रुपए महीने तनख्‍वाह पाता है। फिर वह संस्‍थान को छोड़ देता है और उसी संस्‍थान को ठेके पर काम करके देता है और तीन लाख रुपए महीने के कमाता है। पहले कर्मचारी था फिर व्‍यवसायी हो गया। योग्‍यता में अंतर कहां आया?

      23 hours ago · Like

       

    • Vivek Rastogi यही तो योग्यता में अंतर है, कि कंपनी उसकी योग्यता नहीं समझ पायी या कंपनी समझ भी पाई मगर कंपनी के पास उसके लिये उस स्तर की जगह नहीं होगी, क्योंकि हर स्तर पर निर्धारित संख्या होती है, योग्यता के आधार पर संख्या कम या ज्यादा नहीं की जा सकती क्योंकि इससे उत्पादकता पर अंतर पड़ता है और उस व्यक्ति ने रिस्क लेकर अपना खुद का काम शुरू कर दिया तो वह अपनी योग्यता का भरपूर इस्तेमाल कर सकता है ।

      23 hours ago · Like · 1

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी जब कंपनी योग्‍यता को समझ नहीं पाती तो मुनाफा कैसे कमाती है >

      23 hours ago · Like

       

    • Vivek Rastogi मुनाफ़ा अगर नहीं होगा तो यह मानकर चलिये कि कोई भी धरम करने नहीं बैठा है, कंपनीं अगले दिन ही बंद हो जायेगी, कंपनी सब समझती है, अगर कर्मचारी को लगता है कि उसकी योग्यता की पूछ यहाँ नहीं है तो दूसरी कंपनी में अपनी योग्यता अनुसार पद के लिये देखे उस कंपनी से निकल ले और अपनी योग्यता का भरपूर दोहन करे, इसमें सबका लाभ है, नये लोगों को मौका भी अच्छा मिलता है और व्यक्ति को अपनी योग्यता को समझने का भी।

      23 hours ago · Like · 1

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी यही कैपिटलिज्‍म है.. इसी का विरोध हो रहा है। यह विरोध विचारधाराओं का है…

      23 hours ago · Like

       

    • Vivek Rastogi हमें तो इसमें कुछ गलत नहीं लगता है, बात सही है कि विरोध विचारधाराओं का है पर कम परिश्रम और अधिक परिश्रम का पारिश्रमिक अलग अलग तो होना ही चाहिये। अगर दो मजदूर एक चौराहे पर खड़े हैं और आपको कोई काम करवाना है जो १ दिन का है, परंतु पहला मजदूर १ दिन में ठीकठाक परिश्रम करके कार्य पूर्ण कर देगा और दूसरा थोड़ा ढ़ीला है और आराम से कार्य करते हुए २ दिन में पूरा करेगा, तो आप किसको कार्य करने का काम देंगे। बिल्कुल योग्यता वाले को ही देंगे, आप उसी काम का दोगुना मेहनताना क्यों देना चाहेंगे जब वही काम दूसरा व्यक्ति एक दिन में कर रहा है, तो बाजार में रहना है तो पूरी मेहनत और परिश्रम के साथ अच्छे से कार्य पूर्ण करना भी व्यक्ति की जिम्मेदारी है, और अगर इसका विरोध हो रहा है तो मैं तो कहूँगा कि बेहतर है कि सभी को बाहर का रास्ता दिखा दें और नये सिरे से कर्मियों को लेकर काम शुरू किया जाये।

      23 hours ago · Like

       

    • सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी श्रमिक और मजदूर की योग्‍यता के पैमाने अलग अलग हैं। मालिक ने कितना रिस्‍क लिया, यह उसकी योग्‍यता है, श्रमिक ने कितना काम किया, यह श्रमिक की योग्‍यता है। रिस्‍क लेने पर मालिक केवल दिवालिया तक होता है, जबकि श्रमिक की काम के दौरान दुर्घटना से मृत्‍यु तक हो सकती है…
      आप पूर्व निर्धारित पैमानों पर दोनों को कस रहे हैं। दोनों के लिए एक पैमाना बनाने के साथ ही आपकी दृष्टि बदल सकती है…

      22 hours ago · Like

       

    • Arpit Singh Pandya Nice discussion……..good to know few things….

      19 hours ago via mobile · Unlike · 1

       

    • Vivek Rastogi मालिक रिस्क लेता है तभी तो वह मालिक है, अगर श्रमिक रिस्क लेता तो वह मालिक ना होता, क्योंकि इतने सारे संसाधनों को इकट्ठा करके चलाना मालिक के बस का काम है और श्रमिक तो केवल मालिक के आदेशों का पालन करता है। सबकी रिस्क के अलग अलग मायने होते हैं, यह तो श्रमिक की पसंद है कि वह काम के दौरान ऐसे काम करना पसंद करता है या नहीं कि जिसमें दुर्घटना का अंदेशा है, तो यह उसकी मजबूरी है कि वह उस कार्य के अलावा और कोई कार्य नहीं कर सकता और अगर श्रमिक को पहले से यह सब पता है तो इसमें मालिक ने उसका उपयोग नहीं किया वरन उसे बराबर पारिश्रमिक देकर उसके परिश्रम को खरीदा है।

      18 hours ago · Like · 1

7 thoughts on “ट्रेड यूनियन पर एक संवाद फ़ेसबुक से

  1. मैंने अस्सी रुपये में दिन भर मजदूरों को खटते देखा है और मालिकों को अस्सी रुपये की चाय को मुंह लगाकर छोड़ते हुये. बड़े नामी संस्थानों को मजदूरों के लाभ मारते देखा है इसलिये रस्तोगी जी आपसे असहमत पूरी तरह. फिर यहां के मजदूर और किसी अच्छे देश के मजदूर की हालत की भी तुलना कीजिये.

  2. मैंने अस्सी रुपये में दिन भर मजदूरों को खटते देखा है और मालिकों को अस्सी रुपये की चाय को मुंह लगाकर छोड़ते हुये. बड़े नामी संस्थानों को मजदूरों के लाभ मारते देखा है इसलिये रस्तोगी जी आपसे असहमत पूरी तरह. फिर यहां के मजदूर और किसी अच्छे देश के मजदूर की हालत की भी तुलना कीजिये.

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