भाग–९ अपनी पहचान के लिये वेदाध्ययन (Study Veda for your own identity)

    भारतीय परम्परा में ज्ञान का मुख्यत: अभिप्राय है स्वयं को ही जानना-पहचानना और आत्मज्ञान ही है सर्वोच्च ज्ञान। ऋषि याज्ञवल्क्य अपने उपदेश पर आत्मज्ञान पर बल देते हैं।
आत्मा वा अरे द्रष्टव्य:
    अपनी आत्मा ही देखने योग्य है जो परमात्मा से भिन्न नहीं है और इस एक तत्व को जान लेने से सब कुछ स्वत: जाना गया हो जाता है।
तस्मिन विज्ञाते सर्वं विज्ञातं भवति
    (तस्मिन) उस एक परमतत्व के (विज्ञाते) जान लेने पर (सर्वं) सब कुछ (विज्ञातं) जाना गया (भवति) हो जाता है। कुछ भी जानने के लिये शेष नहीं रह जाता । इस तरह वेद अमरत्व का बोध कराते हैं। यही एकत्व का ज्ञान सभी को विद्वेषभावरहित बना कर स्नेहसूत्र में जोड़ने वाला है। सभी में सम्प्रीति सहयोग का भाव होगा और अपने-अपने कार्यों को करते हुए सभी सुखी रहेंगे।
    वैदिक ऋषियों का यह अध्यात्म-ज्ञान विश्व मानवता के कल्याण हेतु अनुपम महनीय योगदान है। इसीलिए समष्टिगत कल्याण हेतु सम्पूर्ण मानव समाज की रक्षा हेतु सभी के लिए वेदों का अध्ययन परमावश्यक है। इस दृष्टि से वेद आज और भी अधिक उपयोगी एवं प्रासंगिक हैं।

One thought on “भाग–९ अपनी पहचान के लिये वेदाध्ययन (Study Veda for your own identity)

Leave a Reply to प्रवीण पाण्डेय Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *