कचरा फैलाने के मामले में हम भारतीय महान हैं । और कचरा भी हम इतनी बेशर्मी और बेहयाई से फैलाते हैं जबकि हमें पता है कि यही कचरा हम सबको परेशान कर रहा है इसलिये हम सबको बड़े से बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिये, कम से कम इसकी शुरूआत गली से करनी चाहिये या घर कहना ही बेहतर होगा, जब हमारा घर साफ सुथरा होगा, तभी गली, मोहल्ले, सड़कें और उनके किनारे साफ होंगे।
हमारे यहाँ घर में कई लोगों की आदत होती है कि रात में या सुबह कचरा घर में कहीं भी डाल दिया कि अब झाड़ू तो लगेगी ही तो साफ हो जायेगा, जबकि दो कदम पर ही कचरापेटी रखी है, वहाँ तक जाने की जहमत नहीं उठायेंगे। वैसे ही हम भारतीयों को नाक बहुत आती है और कुछ लोग तो उसका सेमड़ा भी उदरस्थ करने में माहिर होते हैं, जो उदरस्थ नहीं कर पाते वे सबसे पहले अपने बैठने के स्थान पर नीचे हाथ डालकर वह नाक का सेमड़ा चिपका देंगे या फिर उँगलियों के बीच सेमड़े को इतना घुमायेंगे कि वह कड़क हो जाये और फिर वे आसानी से उसे सम्मान के साथ बिना किसी को बोध हुए कहीं भी फेंक देंगे। इसलिये भी मैं कभी भी सार्वजनिक स्थानों जैसे कि थियेटर, फिल्म हॉल, बस, ट्रेन और हवाईजहाज में अपने हाथ सीट के नीचे ले जाने से कतराता हूँ।
हमारे घर में कचरापेटी के अलावा भी बहुत सी जगहें कचरा डालने के लिये माकूल महसूस होती हैं, जैसे कि पलंग पर बैठे हैं और टॉफी खा रहे हैं, तो उसका रैपर फेंकने कौन कचरापेटी तक जायेगा, तो टॉफी का रैपर मोड़कर गोली बनाकर वहीं गद्दे के नीचे फँसा दिया, अगर गद्दा उठ पाने की स्थिती में नहीं है तो फिर पलंग के पीछे ही रैपर को सरका दिया, अगर वह जगह भी नहीं है और पास में ही कहीं कोई अलमारी रखी है तो उसके पीछे सरका दिया, वहाँ पर भी जगह नहीं मिली तो आखिरकार सबकी आँख बचाकर कचरा जमीन पर अपनी चप्प्ल या पैर के पास फेंका और धीरे से पलंग के नीचे सरका दिया। यह व्यवहार अपने सार्वजनिक जीवन में लगभग हर जगह देख सकते हैं।
गुड़गाँव से दिल्ली धौलाकुआँ होते हुए हाईवे से जाते हैं, तो लगता है कि शायद यह सड़क विश्वस्तर की तो होगी ही, पर जब उस पर चलते हुए पुराने ट्रक और बस दिखते हैं जो कि प्रदूषण फैलाते हुए अपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से बड़े जाते हैं, इनमें से कई बस ट्रक में से तेल निकल रहा होता है, और कई सभ्य लोग अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में सफर कर रहे होते हैं, पर अधिकतर ये कार वाले लोग इतने असभ्य हो जाते हैं कि कहीं भी किधर से भी पानी की खाली बोतल फेंक देंगे या फिर कोई चिप्स का पैकेट, इच्छा होती है कि अगर इनके घर का पता मेरे पास होता तो मैं उनको यही कचरा उनके घर पर वापस से सम्मान के रूप में देने जाता, कि भाईसाहब आप अपना यह कचरा कल हाईवे पर छोड़ गये थे।
यह पोस्ट इंड़ीब्लॉगर के हैप्पी अवर के लिये लिखी गई है, जो कि टाईम्स ऑफ इंडिया के लिये है, ज्यादा कचरा कैसे फैलायें, इसके लिये आप यहाँ भी क्लिक करके देख सकते हैं http://greatindian.timesofindia.com/
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (23.01.2015) को "हम सब एक हैं" (चर्चा अंक-1867)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
आपने सही कहा है जी . जय हो . हम है ही ऐसे
मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है .
धन्यवाद.
विजय
सही कहा आपने ….सबकुछ देखते हुए भी हम कुछ नहीं देख पाते ..सुधर नहीं पाते …
सत्यवचन,कैसे सुधरेंगे हम?
सही…हम सब ऐसे ही हैं..कचरा पार्टी