कहीं घूमे हुए बहुत समय हो गया था, इतना अंतराल भी बोर करने लगता है, कि कब हम रूटीन जीवन से इतर हो कुछ अलग सा करें, तो बस पिछले सप्ताहाँत हमने सोच लिया कि इस सप्ताहाँत पर अच्छे से दिल्ली घूम लिया जाये तो दिमाग भी शांत हो जायेगा और ऊर्जा भी आ जायेगी। बहुत दिनों से लग रहा था कि कार में कुछ समस्या है, तो हमने सुबह सबसे पहले कार के पहिये का एलाईनमेंट और बैलैन्सिंग करवाया और उसके दो दिन पहले ही दुर्घटना बीमा के तहत हमने कार की विंड शील्ड कंपनी के सर्विस सेंटर से बदलवाई थी।
शनिवार को सारे कार्य करने के बाद खेल के कुछ सामान लेने के लिये हमारा गंतव्य था, डेकथलॉन जो कि नोएडा के जी.आई.पी. मॉल के गेट नं 11 पर है, यह फ्रांस की कंपनी है और लगभग हर खेल के उपकरण बनाती है, साथ ही हर खिलाड़ियों के लिये कपड़े भी बनाती है। यहाँ की क्वालिटी और दाम आपको शायद ही बाजार में कहीं मिल पाये, बहुत से लोगों को तो खेल के इस सुपर स्टोर का पता ही नहीं है। अगर आप को भी कुछ लेना हो तो खेल के समान के लिये इससे बेहतरीन जगह और कोई नहीं है। यहाँ किसी भी चीज के बदलने की पॉलिसी के लिये कोई समय नहीं है, आप कभी भी किसी भी डिफेक्ट के लिये अपना कोई भी समान देकर नया समान ले सकते हैं।
खरीददारी करके बेटेलाल के पेट में चूहे कूदने लगे थे तो फिर कई महींनों बाद हम मैक्डानल्डस गये और उन्होंने बर्गर खाया और अपने पेट की आग बुझाई। अगला गंतव्य हमारे भाई के घर की और था जिनसे मिले हुए कुछ ज्यादा ही समय हो गया था तो कौशाम्बी में उनसे मिले और सीधे चल दिये अक्षरधाम मंदिर की और, क्योंकि अक्षरधाम मंदिर में आखिरी प्रवेश का समय होने वाला था, और हमें खासकर वॉटर शो देखना था। कार की विशाल पार्किंग देखकर अच्छा लगा। वहाँ से फिर हमने अक्षरधाम मंदिर के प्रदर्शनियों को देखा और वॉटर शो भी देखा, वॉटर शो जबरदस्त था, लेजर किरणों से जिस सुँदरता से पानी के साथ उपयोग किया गया वह दर्शनीय है। अक्षरधाम मंदिर में चलना बहुत पड़ता है, और आखिरी पढ़ाव वहीं का रेस्तराँ था वहीं हमने खाना खाया और वापिस घर की और लौट चले।
रविवार को पहले कहीं भी जाने का कोई प्लॉन नहीं था, पर दोपहर को अचानक ही मैं बोल उठा कि चलो बेटा आज अपन नेहरू तारामंडल और राष्ट्रीय रेल संग्रहालय देखकर आयेंगे, तो हम पहले नेहरू तारामंडल गये और वहाँ हमने अंग्रेजी शो देखा साथ ही वहाँ प्रदर्शित ज्ञान बढ़ाते यंत्रों को भी देखा। तारामंडल से जब हम राष्ट्रीय रेल संग्रहालय की और जाने लगे तो चाणक्यपुरी का मनोरम रास्ते ने हमारा मन मोह लिया, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम भारत के किसी हिस्से में हैं, काश कि मेरा पूरा भारत ऐसे ही उद्यानों से भरापूरा हो। राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में अंग्रेजों के जमाने के इंजिन बोगी सैलूनों से लेकर आज तक के इंजिन रखे हुए थे, राष्ट्रीय रेल संग्रहालय की सबसे खास बात है जॉय ट्रेन, इसकी सवारी करने से मत चूकियेगा।
राष्ट्रीय रेल संग्रहालय से कनॉट प्लेस जाने का कार्यक्रम बना और वहाँ जाकर थोड़ जनपथ पर तफरी की, फिर आते हुए डंकिन डोनट्स पर स्नेक्स लिये, वेंगर पर कबाब खाये और फिर उसके पास ही फेमस दूध की दुकान कैवेन्डर्स से बेटेलाल ने दूध पिया, सारी तफरी करने के बाद वापिस घर की और शाम को लौट चले। घूमने से सारी थकान छूमंतर हो गई।
वाह बहुत खूब!! अच्छे से दिल्ली घूम लिए आप। सादर।।
नई कड़ियाँ :- भारत के राष्ट्रीय प्रतीक तथा चिन्ह
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (27-08-2015) को “धूल से गंदे नहीं होते फूल” (चर्चा अंक-2080) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
सच में रूटीन से बाहर निकलकर अच्छा लगता है
मैं भी पिछले १५-१६ को दिल्ली गयी थी अक्षरधाम और लोटस टेम्पल गए बहुत अच्छा लगा . इस बारे में जल्दी ही ब्लॉग पोस्ट करुँगी
बहुत अच्छा लगा ..