हर रोज हम जो काम करते हैं, वह निरंतर करने की इच्छा कभी कभी नहीं होती है, हम उस क्रम को किसी न किसी बहाने तोड़ना चाहते हैं। सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं। सुबह उठकर कई बार ऐसा लगता है कि आज फिर काम पर जाना है, खाना बनाना है या स्कूल जाना है। मतलब कि जो भी काम हम नियमित रूप से कर रहे हैं, उस क्रम को हम तोड़ना चाहते हैं। इसे आलस कहें या जिद कहें, पर यह होता सबको है। यकीन मानिये कि आपको अगर यह नहीं होता तो आप असाधारण मानव है।
हमें इस बहाना मनाने के क्रम को भी तोड़ना चाहिये, क्योंकि हमारे मन से शक्तिशाली कुछ और है ही नहीं, बस वो तो अपनी जिद पूरी करवाना चाहता है। इस स्थिति में हमें अपने मन को थोड़े पुचकारना चाहिये, थोड़ा सा घूम लेना चाहिये, सुबह की ठंडी हवा ले लेनी चाहिये, मन तब भी न माने तो मनपसंद गाने सुन लेना चाहिये, साथ में गुनगुना लेना चाहिये और हो सके तो नृत्य भी कर लेना चाहिये। आप अपने आलस और जिद वाले व्यवहार से अपने आपको अचानक से दूर कर लेंगे और आपका मन मयूर नाच उठेगा।
दरअसल हमारा मन हम पर बहुत हावी रहता है, और हमेशा ही अपनी बात मनवाने की कोशिश करता है, परंतु प्यार से सबको जीता जा सकता है। और अगर तब भी न माने तो ऊपर लिखी बातों को आजमा लेना चाहिये, जिससे हम अपने मन को उल्लू बना सकते हैं और वापिस से अपने काम पर जा सकते हैं। बस किसी भी तरह अपने मन को उस परिस्थिती से बाहर निकाल लीजिये, आप अपने आपको तो जीत ही जायेंगे, और आप मन से अपने काम कर पायेंगे।
अगर मन की जिद के आगे, आलस के आगे अगर हम अपने हथियार डाल देते हैं तो हम अपना खुद का दिन बर्बाद कर रहे होते हैं, हम दिनभर वाकई कुछ नहीं कर पाते हैं, क्योंकि दिनभर हमारा मन किसी काम में नहीं लगेगा, हम अखबार के पन्ने बिना पढ़े पलटते रहेंगे, किताबों को बेमतल हाथ में लेकर पढ़ने की कोशिश करेंगे, टीवी के चैनल बदलते रहेंगे, यूट्यूब के वीडियो फालतू में चलाते रहेंगे, पर सब बेमतलब होगा, हमें उन किसी भी काम में मजा नहीं आयेगा।
इतनी बातें आज इसलिये लिखी गई हैं, कि सुबह उठते ही बेटेलाल कहने लगे “मुझे स्कूल नहीं जाना है”, मैंने कहा “बेटा जाना तो पड़ेगा”, घर पर भी क्या करोगे, बोर हो जाओगे और फिर जब समय निकल जायेगा तो सोचोगे कि काश स्कूल ही चला जाता, स्कूल जाओगे तो अपने दोस्तों से मिलोगे, हँसी मजाक करोगे, तो मन बदल जायेगा, और दिन अच्छा जायेगा, फिर शाम को बात करेंगे, तो देखना तुमको मेरी सारी बातें ठीक लगेंगी।
आप भी बताईये कि ऐसा आपको साथ भी होता है क्या? अगर हाँ तो आप कैसे इस प्रकार की स्थितियों से निपटते हैं, अपने किस्से भी टिप्पणी कर सकते हैं।
बस एक मिनट का आलस्य होता है, वह जैसे ही टूटता है सारा दिन खुशनुमा बीतता है।
“पानी -कर्मयोगी ”
जल से ही जीवन कहते आये
पुरखे और पडोसी |
रिश्ते – नाते सब पीछे छूटेंगे
निर्मल जल बिनु रोगी |
पानी संचय किये बिना गर
बनकर बैठोगे भोगी ?
जब जल की माहामारी मचेगी
बचोगे कैसे कर्मयोगी ||
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राजौरी के चारों शहीदों को शत शत नमन – ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।