क्या आप घर में किताबें पढ़कर सुनाते हैं

यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है कि क्या आप घर में किताबें पढ़कर सुनाते हैं, हालाँकि मैं यह भी जानता हूँ कि कई घरों में तो किताबों का नामोनिशान नहीं मिलता है क्योंकि धीरे धीरे किताब पढ़ने की आदत ख़त्म होती जा रही है। किताब पढ़ने की आदत किसी को परिवार से मिलती है तो किसी को दोस्तों से तो किसी को किसी ओर को देखकर मिलती है। कोई बोर होता है तो किताब पढ़ना शुरू करता है, तो कोई किसी एक किताब को पढ़ना शुरू करता है तो फिर वहाँ उद्घृत किसी ओर किताब को भी उत्सुकतावश पढ़ने लगता है, किताब पढ़ने के दौर कई प्रकार से शुरू होते हैं।

मेरी किताब पढ़ने का दौर सरकारी वाचनालय से लाई गई किताबों से शुरू हुआ था, कई किताबें अपने कोर्स में पढ़ीं, कई दोस्तों ने बताईं, कई नाटक, एकांकी, कविताओं को सीखने के चक्कर में पढ़ीं, बस इस तरह कब यह पढ़ने के शौक़ लग गया पता ही नहीं चला। फिर धीरे धीरे जब कविताओं को पढ़ना शुरू किया तो पहले किताब ख़रीदने के लिेये पैसे नहीं होते थे, तो अपने पास एक रजिस्टर रखता था, उस पर जो कवितायें पसंद आती थीं, उन्हें लिख लेता था, अब खैर वह रजिस्टर मेरे पास नहीं है, शायद उज्जैन में घर पर हो या फिर रद्दी में बेच दिया गया हो।

जब बेचा थोड़ा बड़ा हुआ तब मैं बहुत सी किताबें पढ़ता रहता था, फिर एक बार किताब पढ़ रहा था तो बेटेलाल ने कहा कि जरा हमें भी पढ़कर सुनाओ कि ऐसा क्या इस किताब में लिखा है, जो इतना मगन होकर पढ़ रहे हो। फिर हमने ऐसी कई किताबें पढ़ीं और सुनाईं। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय‘ कृत शेखर एक जीवनी के दोनों किताबें जब हमने पढ़कर सुनाईं जो कि तक़रीबन १९४१ व १९४४ याने कि ७० -७५ वर्ष पहले लिखी गई थीं, परंतु आज भी उनकी बातें मानस पर वैसी ही अंकित होती हैं जैसी उस समय होती होंगी, मानवीय प्रतिक्रिया, बालपन की प्रतिक्रिया में आज भी कोई अंतर नहीं हुआ।

किताबें पढ़कर सुनाने का एक फ़ायदा यह हुआ कि हमें पढ़कर सुनाने को मिलता था तो हमारा उच्चारण अच्छा हुआ, बोलना धाराप्रवाह हुआ, परिवार को सुनने का यह फ़ायदा हुआ कि जब वे सुनते थे तो कई बार हमें बीच में रोककर पूछते थे कि इस शब्द का या वाक्य का क्या अर्थ हुआ, या फिर वे भी उस बात पर अपने क़िस्से सुनाने लगते थे, या फिर कभी हमसे ही पूछा जाता था, कि डैडी कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है क्या। इस प्रकार हम लोग जाने अनजाने अपने कई अनुभव एक दूसरे के साथ शेयर करते रहते थे, जो कि हमेशा ही हमारी यादों में अंकित रहेगा। वे पल जो हमने साथ में बिताये, कभी हम एक दूसरे के हाथों में हाथ लिये, कभी किसी के पैर को तकिया बनाये, कभी किसी रोमांचक मोड़ पर कोई बिस्तर पर ही ज़ोर से उचक लेता, इस प्रकार के कई पल हमने साथ में बिताये। यहाँ तक कि कई बार तो कोई पैराग्राफ़ इतना अच्छा लगा कि उसे दोबारा पढ़ने की फरमाईश होती। इस सबसे जो हमें मिला वह मिला अपने परिवार के साथ अमूल्य वक़्त जो हमने कई वर्ष ऐसे ही साथ में बिताया।

क्या आपने भी कभी अपने परिवार के साथ ऐसे वक़्त बिताया है, या फिर अब बिताना चाहेंगे, ज़रूर बताइयेगा।

 

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