घर से निकलने में ही आज 7.40 हो गये, फिर भी हमने सोचा देर से ही सही पर घूम तो आते ही हैं वरना दिन भर फिर समय ही नहीं मिलेगा। सुबह मौसम ठंडा रहता है पर फिर भी हम हाफ टीशर्ट में घूमने निकल पड़ते हैं और दुनिया अपने बच्चों को छोड़ने स्कूल जा रही होती है वे सब जरकिन पहने हुए होते हैं। घर से निकलते ही थोड़ी दूर के बाद नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर पड़ता है जोकि जैन मंदिर है। और जैन धर्मावलंबी सुबह 6:00 बजे से ही अपना शोला पहनकर दर्शन के लिए जाते हैं। आज जब तक हम पहुंचे तब तक सब दर्शन करके जा चुके थे।
फिर जैसे ही हम पिछले सिंहस्थ पर बने हैं नई सड़क पर घूमने निकले तो सामने ही सूरज भाई ने पूरे 60 डिग्री पर हमें दर्शन दिए, झट से हमने फोटो खींच लिया और फेसबुक पर डाल दिया। पहले कभी यहां पर हीरा मिल हुआ करती थी, जहां पर मजदूरों की साइकिलें लाइन से खड़ी होती थी और हीरा मिल का गेट हुआ करता था। जहां पर कपड़ा बना करता था, आज वहां रोड बनी हुई है तो कोई कितना भी घमंड कर ले, एक ना एक दिन उसका समाप्ति का दिन आ ही जाता है, इसलिए घमंड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
इसी सड़क पर आगे बढ़ते हुए जो उज्जैन की नई इनर रिंग रोड बनाई गई है, वह आ जाती है। उसके पहले सीधे हाथ पर हीरामल की चाल है, जो पहले भी थी और अभी भी है, उनकी बरसों से यही मांग है कि यह घर उनके नाम कर दिया जाए पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। वहीं पर ही सीधे हाथ पर 2-3 मंदिर बना दिए गए हैं उल्टे हाथ पर एक महावीर हनुमान जी का मंदिर है, थोड़ा सा आगे चौराहे पर जाने पर महादेव का मंदिर बना हुआ है, उसी के पास एक तालाब है, जिसमें गणपति विसर्जन होता है।
यहीं से दाई और मुड़ने पर फ्रीगंज जाने के लिए पुल आ जाता है, जो कि पिछले सिंहस्थ में बनाया गया था और पुल में ऐसा लगता है कि आधा ही पैसा लगाया गया। क्योंकि पुल बहुत ही संकरा है, पुल पर चलते रहने पर पुल की दीवाल पर स्वच्छ मध्य प्रदेश और स्वच्छ उज्जैन के नारे लिखे हुए देखे जा सकते हैं, परंतु उसी नारे के नीचे जमी धूल उन नारों का मखौल उड़ाती हुई देखी जा सकती है।
थोड़ा आगे जाने पर रेलवे लाइन का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है जिसमें आज एक मालगाड़ी आते-आते रोक दी गई इसे आउटर कहा जाता है और बहुत ही लंबी मालगाड़ी थी जिसका दूसरा चोर दिखाई नहीं दे रहा था, वहीं आसपास बस्ती में एक बड़ा सा कुआं है जिसमें से एक व्यक्ति कुए से बाल्टी से पानी निकाल रहा था और एक व्यक्ति ही खड़ा होकर मछलियों के लिए कुछ खाने की चीजें भेज रहा था। इंसान में भी कितना मतभेद होता है, परंतु फिर भी कोई लड़ाई नहीं कोई झगड़ा नहीं कोई हाइजीन नहीं, सब अपने तरीके से जी ही रहे हैं। हालांकि उसका कोई छायाचित्र नहीं लिया। पर आप लिखे हुए ऐसे दृश्य को अपनी आंखों में उकेर सकते हैं।
इस पुल के बन जाने से फ्रीगंज का रास्ता अच्छा हो गया है और दूरी कम हो गई है। जब ब्रिज खत्म होने आ जाता है, तो उल्टे हाथ पर दो-तीन बड़े बड़े अस्पताल खुले हुए हैं, और उनके पहले दारु की दुकान है और फर्स्ट फ्लोर पर बढ़िया बैठ कर पीने की जगह भी है वह ब्रिज से ही दिखाई देता है। वहीं पर एक ही होती अपने कुत्ते को लेकर घूम रही थी और स्वच्छ उज्जैन की ऐसी तैसी कर रही थी। पुल खत्म हुआ और वापस जाने के लिए फुल क्रॉस करके दूसरी तरफ आ गए। वहीं पर एक ठेले पर सुबह सुबह नाश्ते की खुशबू आ जाती है वह पोहे जलेबी पकोड़े और चाय बनाता है। थोड़ा आगे आने पर उज्जैन रेलवे स्टेशन की तरफ का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
पुल उतरते ही राजनेताओं के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे, कोई लोकल नेता कांग्रेस कमेटी का मेंबर चुन लिया गया था। तो दुनिया भर के छुटभैया नेता और बड़े नेताओं के फोटो लगे हुए थे, पर सबसे बड़ा फोटो उन्हीं का था जिनको यह सदस्यता हासिल हुई थी। और इस तरह थोड़ी देर में ही हमारी यह सैर खत्म हो गई।