गणतंत्र दिवस पर सोसायटी में कार्यक्रम हुआ, जिसमें झंडा फहराया गया, फिर भाषणबाजी हुई, और गाने गाये गये, कविताओं का वाचन हुआ।
जब पहला गाना गाया गया – जीरो दिया मेरे भारत ने, तब हम भी साथ में ऑडिएंस में खड़े होकर पूरा ही गाना साथ में गुनगुना लिये, तो हमारे पड़ौसी पास ही खड़े थे, कहने लगे बहुत ही बढ़िया गाना है पर हमने पहली बार सुना, हमने कहा यह मनोज कुमार का गाना है और फ़िल्म पूरब और पश्चिम का है। बेटेलाल का फेवरेट गाना है, कई बरसों तक यह गाना 1 या 2 बार रोज ही हमारे घर में बजता रहा है। ये पड़ौसी विशाखापत्तनम से हैं।
फिर एक मैडम हैं वे आईं, उनकी आवाज बहुत बुलंद है और कविताओं को पढ़ने के लिये वैसी ही आवाज चाहिये। वे अधिकतर रामधारी सिंह दिनकर की कविता पढ़ती हैं, बहुत सी कविताएं उन्हें याद हैं, इस बार उन्होंने हिमालय पर लिखी गई कविता -मेरे नगपति मेरे विशाल कविता का पाठ किया। ये भोपाल से हैं तो उनका हिन्दी उच्चारण बहुत शुद्ध है। यह हमें याद नहीं थी, पर सुनकर आनंद लिया।
बाद में उन्होंने एक और कविता गाई –
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती —
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला
स्वतंत्रता पुकारती —
जो कि जयशंकर प्रसाद ने लिखी थी, हमने यह कविता साथ में पूरी गुनगुनाई, यह चाणक्य में हमने सुनी थी, और फिर इतनी सुनी कि दिल में अंकित हो चुकी है। इस पर भी पड़ौसी बोले यह भी हमने पहली बार सुनी, इट्स लुक्स लाइक आई एम वेरी पूअर इन आल दिस, हम बकस मुस्कुरा दिए और कहा आप किसी और में अच्छे होगे।