महर्षियों का वीर्य स्खलन

महाभारत पढ़ते पढ़ते बहुत से ऐसे वृत्तांत मिलते हैं, जो शायद फेसबुक पर लोग पचा न पायेंगे तो सोचा कि इसे अब ब्लॉग पर लिखा जायेगा, क्यों लोगों का जायका खराब किया जाये।

अब आदिपर्व सम्भवपर्व के 129 वें अध्याय में कृप और कृपी का जन्म बताया गया कि महर्षि गौतम ने एक वस्त्र धारण करने वाली अप्सरा को देखा जिसे इन्द्र ने महर्षि के तप में विघ्न डालने भेजा था, तो महर्षि के मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित हो गया और उन्हें इसका पता भी नहीं चला, उनका वीर्य सरकण्डे पर गिर पड़ा और उससे इनका जन्म हुआ।

वैसे ही महर्षि भारद्वाज नदी पर स्नान करने गए तो एक अप्सरा पहले ही स्नान करके वस्त्र बदल रही थी, उसका वस्त्र खिसक गया और ऋषि के मन में कामवासना जाग उठी और उनका वीर्य स्लखित हो गया। ऋषि ने उस वीर्य को द्रोण(यज्ञकलश) में रख दिया, उस कलश से जो पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम द्रोण रखा गया क्योंकि वह द्रोण से जन्मा था।

अब इन दो वृत्तांतों से यह फंतासी जरुर लगता है, पर मुझे ऐसा लगता है कि उस समय की तकनीक किसी ओर तरीके से समृद्ध थी, जिसमें यह सब आसानी से हो जाता होगा।

जैसे आज से 30-40 साल पहले किसी को कहते कि मोबाइल जैसे चीज है जिससे तुम बेतार बात कर सकते हो, और फेसबुक से पूरी दुनिया से जुड़ सकते हो, लोग अपने फोटो डालेंगे और तुम उन्हें देख सकते हो, इत्यादि इत्यादि, उस समय ही लोग कहने वाले को फंतासी समझते, तो यह तो बहुत पुराने वृत्तांत हैं। हो भी सकता है कि ये सही भी हों।

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