दिल्ली होती है दिलवालों की।

जब दिल्ली में कनॉट प्लेस में अपना एक क्लाइंट के यहाँ काम कर रहे थे, तो जहाँ तक याद है मिडिल सर्कल में F ब्लॉक में उनका ऑफिस था, वहीं ग्राउंड फ्लोर पर किसी कार की डीलरशिप थी।

पास ही एक खोपचे में पुरानी दुकान सा छोटा सा रेस्टोरेंट था। खाना खाने का भी टाइम नहीं रहता था। कई बार रात रात भर काम करने के बाद सुबह या फिर देर रात को पास के ही इस खोपचे में जाते थे, कुछ न कुछ चाय के साथ खाने को मिल जाता था, एक बार गये तो ब्रेड भी खत्म थी, वो बोले कि आपको भूखा नहीं जाने दूँगा, अंडा खाते हैं तो आमलेट बना देता हूँ, हमने हाँ कही। बस अंकल तैयार करने लगे।

ऐसा मैंने केवल दिल्ली में ही देखा कि आपको भूखा नहीं जाने देंगे, वरना कितने ही शहरों में तो कह देते हैं कि दुकान बंद हो गई, समान खत्म हो गया।

इसलिये वो अंकल हमेशा याद रहते हैं, उनके कारण ही लगा कि दिल्ली होती है दिलवालों की।

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