रोज सुबह भागते हुए
दिन शुरु होता है,
पर सुबह तटस्थ रहती है,
सुबह अपनी ठंडी हवा,
पंछियों की चहचहाट,
मंदिर की घंटियाँ,
मेरे खिड़्की के जंगले से आती भीनी भीनी
फ़ूलों की खुश्बु,
सब कुछ तो ताजा होता है
फ़िर भी मेरी सुबह और दिन
भागते हुए शुरु होते हैं।
बहुत खूब..आजकल कविता में रमें हैं.
सुन्दर रचना. आखिर मुंबई में रह रहें हैं.
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
bah………re… bha……
सुबह तो हर चीज़ वैसी ही होती है सर….
बस अपनी रूटीन भागने दौड़ने वाली रहती है,…. 🙂
बहुत खुब जी
कहां ले जाएगी यह भागमभाग।
…………….
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
लगता है कि केवल हम ही भाग रहे हैं, शेष सब तटस्थ हैं।
ये है मुम्बई ,भागना पड़ता है ।
लगता है हम मझधार में बहे जा रहे हैं बाकी किनारे पर धीमी गति से हैं …