कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३०

रक्ताशोक: – अशोक दो प्रकार का होता है – (१) श्वेत पुष्पों वाला, (२) लाल पुष्पों वाला। रक्ताशोक का प्रयोग यहाँ साभिप्राय है; क्योंकि रक्ताशोक कामोद्दीपक होता है; अत: प्रेमी लोग अपने घरों में रक्ताशोक को लगाते हैं। कवि प्रसिद्धि के अनुसार किसी सुन्दर युवती के बायें पैर के प्रहार से अशोक वृक्ष में पुष्प निकलते हैं।

केसर: – अशोक वृक्ष की तरह केसर वृक्ष को भी कामोद्दीपक
बताया गया है। यह देखने में सुन्दर होता है तथा इसकी गन्ध भी अच्छी होती है। कवि प्रसिद्धि के अनुसार यह केसर का वृक्ष जब युवतियाँ अपने मुख में मदिरा भरकर इसके ऊपर कुल्ला करती हैं तभी विकसित होता है।

कुरबक – कुरबक वसन्त ऋतु में खिलने वाला गुलाबी रंग का पुष्प है। कवि प्रसिद्धि के अनुसार यह सुन्दर युवती के आलिंगन से विकसित होता है।

दोहद – दोहद का अर्थ गर्भिणी स्त्री की अभिलाषा या उसका इच्छित पदार्थ होता है। गौण रुप से उन वस्तुओं को भी दोहद कहा जाता है जिनसे वृक्ष आदि पर पुष्पादि आते हैं। कुछ स्थलों पर दोहद के स्थान पर दौर्ह्र्द अथवा दौह्र्द (द्वि+ह्रदय)  का प्राकृत रुप है, जो संस्कृत काव्यों में अपना लिया गया है।

वासयष्टि: – घरों में पक्षियों के बैठने के लिए एक लम्बा डण्डा तथा उसके ऊपर कुछ फ़ैली हुई छतरी सी होती है, उसे वासयष्टि कहते हैं। यक्ष के घर में यह वासयष्टि स्वर्णनिर्मित थी। उसको मजबूती प्रदान करने के लिए उसकी जड़ों में चारों ओर मरकत मणियों का चबूतरा बनाया गया था।

लिखितवपुषौ – शड़्ख और पद्य दोनों ही मांगलिक माने जाते हैं, इस कारण प्राय: लोग अपने घर के दरवाजे पर इन्हें बना लेते हैं। यक्ष के घर के द्वार के दोनों ओर शड़्ख और पद्य के पुरुषाकार चित्र बने हुए थे।

शड्खपद्यौ – आचार्य मल्लिनाथ ने शड़्ख और पद्य को कुबेर की निधियों के नाम माने हैं। ये निधियाँ नौ मानी जाती हैं – महापद्य, पद्य, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और खर्व। परन्तु यहाँ शड़्ख और पद्य का अभिप्राय शंख और कमल से भी हो सकता है। यद्यपि कमल अर्थ में पद्य शब्द का प्रयोग नपुंसकलिड़्ग में होता है, लेकिन यह पुंल्लिड़्ग में भी होता है।

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