Category Archives: अध्ययन

1. बाजार की sentiment और crowd psychology

बाजार की sentiment और crowd psychology को समझना बहुत जरूरी होता है।

बाजार की sentiment निवेशकों और market participants की emotions, attitudes, और news व market data के analysis से प्रभावित होती है। यह एक powerful force है जो बाजार को positive या negative दिशा में ले जा सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि dominant sentiment optimistic है या pessimistic। Market sentiment को समझने में crowd psychology को समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह बताता है कि एक group में लोग बिना किसी pre-planned coordination के collectively बाजार के behavior को कैसे influence कर सकते हैं।

Market movements crowd psychology से प्रभावित हो सकते हैं, जैसे कि rally के दौरान लोग FOMO (fear of missing out) के कारण invest करते हैं या market crash के समय panic में selling करते हैं। जो लोग इन dynamics को deeply समझते हैं, वे खबरों पर बाजार की overreactions का advantage उठाकर contrarian positions ले सकते हैं। इसके अलावा, वे extreme market sentiment के indicators को identify करके अपने trades के timing को improve कर सकते हैं।

(Emotional) भावनात्मक discipline बनाए रखना जरूरी है।

ट्रेडिंग की दुनिया में emotional management बहुत जरूरी है। जीत का thrill बहुत exciting हो सकता है, जबकि हार का pain बहुत crushing हो सकता है। Emotional discipline बनाए रखने के लिए calm और balanced approach चाहिए, जिसमें impulsive reactions के बजाय systematic decision-making को priority दी जाए। Mindfulness meditation जैसी techniques का practice और ट्रेडिंग decisions पर regular reflection, जैसे journal या ट्रेडिंग डायरी रखना, discipline बनाए रखने में help कर सकता है। इसके अलावा, ट्रेडिंग के लिए clear guidelines बनाना, जैसे केवल pre-determined risk/reward ratio के साथ trades शुरू करना या specific technical indicators को follow करना, focus बनाए रखने और emotional influence को minimize करने में help कर सकता है।

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मल्टीबैगर स्टॉक की कहानी: ₹1 लाख से सिर्फ ₹5,340 बचे

मल्टीबैगर स्टॉक की कहानी: ₹1 लाख से सिर्फ ₹5,340 बचे! क्या आपने कभी सोचा कि एक स्टॉक जो आसमान छू रहा था, कैसे एक साल में ज़मीन पर आ गिरा?

Gensol Engineering की हैरान करने वाली यात्रा –

2019 में Gensol Engineering का स्टॉक मात्र ₹21 पर था। फिर शुरू हुआ इसका शानदार सफर! नवंबर 2019 से फरवरी 2024 तक इसने 6,457% का रिटर्न दिया और स्टॉक की कीमत ₹1,377 के ऑल-टाइम हाई पर पहुंच गई। अगर किसी ने 2019 में इसमें ₹1 लाख लगाए होते, तो 2024 तक वो ₹65.57 लाख बन चुके होते! ये था एक सच्चा मल्टीबैगर स्टॉक, जिसने निवेशकों को मालामाल कर दिया।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। फरवरी 2024 के बाद शुरू हुआ इसका पतन। हाल की कुछ खबरों और मार्केट सेंटीमेंट्स के चलते ये स्टॉक सिर्फ 4 महीनों में 94.66% गिरकर ₹73.42 पर आ गया। यानी, अगर किसी ने अपने ₹1 लाख इसके पीक पर लगाए होते, तो आज उनके पास सिर्फ ₹5,340 बचे होते! ये एक ऐसी रियलिटी है, जो हर निवेशक को स्टॉक मार्केट की रिस्की नेचर के बारे में सोचने पर मजबूर करती है।

Gensol Engineering एक रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी है, जो सोलर इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट, और कंस्ट्रक्शन (EPC) सर्विसेज में काम करती है। इसका मार्केट कैप आज ₹282 करोड़ है, और पिछले 5 सालों में इसने 250% रिटर्न दिया है, भले ही हाल की गिरावट ने निवेशकों को निराश किया हो। लेकिन सवाल ये है—क्या ये स्टॉक फिर से उठ सकता है, या ये अब और नीचे जाएगा?

सीख क्या है? स्टॉक मार्केट में हाई रिटर्न्स के साथ हाई रिस्क भी आता है। मल्टीबैगर स्टॉक्स का लालच आकर्षक होता है, लेकिन बिना रिसर्च और सही टाइमिंग के निवेश करना आपके पैसे को डुबो सकता है। हमेशा कंपनी के फंडामेंटल्स, मार्केट ट्रेंड्स, और न्यूज़ को ट्रैक करें। डायवर्सिफिकेशन और रिस्क मैनेजमेंट आपके पोर्टफोलियो को ऐसे क्रैश से बचा सकते हैं।

क्या आपने कभी ऐसा स्टॉक देखा, जो आसमान से ज़मीन पर आ गिरा? या क्या आप Gensol Engineering के फ्यूचर को लेकर ऑप्टिमिस्टिक हैं?

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डिजिटल दुनिया की सबसे रहस्यमयी और ताकतवर ताकत “एनोनिमस”

डिजिटल दुनिया की सबसे रहस्यमयी और ताकतवर ताकतों में से एक है – “एनोनिमस”। ये नाम सुनते ही एक छवि दिमाग में उभरती है – गाय फॉक्स मास्क, काला हुडी, और एक ऐसी आवाज जो सत्ता को चुनौती देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये एनोनिमस है कौन? और क्यों दुनिया की सबसे बड़ी सरकारें और कंपनियाँ इनसे डरती हैं?

“एनोनिमस” की शुरुआत 2000 के दशक में एक ऑनलाइन फोरम “4chan” से हुई थी। यहाँ लोग बिना नाम के पोस्ट करते थे, और हर पोस्ट के आगे बस “एनोनिमस” लिखा होता था। ये सिर्फ एक मंच था, लेकिन धीरे-धीरे ये एक आंदोलन बन गया। 2008 में, जब चर्च ऑफ साइंटोलॉजी ने टॉम क्रूज का एक इंटरव्यू इंटरनेट से हटवा दिया, तो एनोनिमस ने इसे सेंसरशिप के खिलाफ एक जंग की शुरुआत माना। उन्होंने चर्च को एक डरावना संदेश भेजा: “हम एनोनिमस हैं। हम माफ नहीं करते। हम भूलते नहीं हैं। हमसे उम्मीद रखें।”

इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास बन गया। एनोनिमस ने “गूगल बॉम्बिंग” की, जिससे साइंटोलॉजी की सर्च में सिर्फ उनकी बुराइयाँ सामने आने लगीं। उन्होंने चर्च की वेबसाइट क्रैश कर दी और 127 अलग-अलग जगहों पर हजारों लोग गाय फॉक्स मास्क पहनकर प्रदर्शन करने पहुँच गए। ये मास्क सिर्फ उनकी पहचान छुपाने के लिए नहीं था, बल्कि ये एक वैश्विक प्रतीक बन गया – स्वतंत्रता और विद्रोह का प्रतीक।

एनोनिमस की ताकत उनकी संरचना में है – कोई सदस्यता नहीं, कोई नेता नहीं, कोई ढांचा नहीं। कोई भी उनके बैनर तले काम कर सकता है। 2011 में, उन्होंने सोनी पर हमला किया, जिसके चलते 77 मिलियन अकाउंट्स हैक हुए और सोनी को 171 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। उसी साल, उन्होंने नाटो और कई सरकारों के गोपनीय दस्तावेज लीक किए। 2022 में, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, उन्होंने रूस की 2,500 से ज्यादा वेबसाइट्स को ठप कर दिया, राज्य टीवी को हैक किया और आंतरिक संदेश लीक कर दिए। ये डिजिटल युद्ध की एक मिसाल थी।

लेकिन एनोनिमस को इतना खतरनाक क्या बनाता है? पहला, उनका प्रतीक – गाय फॉक्स मास्क, जो हर भाषा और सीमा को पार करता है। दूसरा, उनकी आवाज – जो सीधे, डरावनी और स्वतंत्रता की बात करती है। और तीसरा, उनकी सच्चाई – वे सिर्फ बातें नहीं करते, बल्कि जो कहते हैं, वो करते हैं।

जापान की क्रांतिकारी हाइड्रोजन रणनीति

क्या आपने कभी सोचा कि हमारा भविष्य कैसा होगा, जब हम स्वच्छ और sustainable energy पर निर्भर होंगे? आज मैं आपको जापान की उस क्रांतिकारी हाइड्रोजन रणनीति के बारे में बताने जा रहा हूँ, जो ऊर्जा क्षेत्र में गेम-चेंजर है और पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है!

जापान, एक ऐसा देश जो प्राकृतिक संसाधनों की कमी से जूझता है, उन्होंने 2017 में दुनिया की पहली राष्ट्रीय हाइड्रोजन रणनीति बनाई। इसका लक्ष्य था एक ऐसी “हाइड्रोजन सोसाइटी” का निर्माण, जहाँ हाइड्रोजन का इस्तेमाल ट्रांसपोर्ट, बिजली उत्पादन, स्टील उद्योग और यहाँ तक कि घरेलू गैस में हो। लेकिन क्या ये इतना आसान था? बिल्कुल नहीं! जापान ने अपनी रणनीति को और व्यावहारिक बनाया है, जिसे ‘Safety + 3E’ framework कहा जाता है—safety, energy security, economic efficiency और environmental sustainability।

जापान की ऊर्जा असुरक्षा उसे इस दिशा में प्रेरित करती है। 2023 में, जापान ने अपनी 87% ऊर्जा आयात की, क्योंकि 2011 के फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद न्यूक्लियर पावर पर भरोसा कम हुआ। Renewable energy की सीमाएँ और भौगोलिक चुनौतियाँ भी हैं। लेकिन जापान ने हार नहीं मानी! उसने हाइड्रोजन को अपनी ऊर्जा रणनीति का आधार बनाया। टोयोटा की फ्यूल-सेल तकनीक और दुनिया का पहला लिक्विफाइड हाइड्रोजन कैरियर, सुइसो फ्रंटियर, इसके उदाहरण हैं।

2023 में जापान ने अपनी रणनीति को अपडेट किया और 15 ट्रिलियन येन (लगभग 100 बिलियन डॉलर) का सार्वजनिक-निजी निवेश योजना बनाई। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन पर जोर है, जो 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी के लक्ष्य को पहुँचने में मदद करता है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार, 2050 तक वैश्विक हाइड्रोजन माँग 430 मिलियन टन तक पहुँच सकती है, जिसमें 98% low-emission hydrogen होगा।

लेकिन चुनौतियाँ भी हैं। ग्रीन हाइड्रोजन अभी महँगा है, और इसके storage व transportation की cost भी high है। अगर जापान हाइड्रोजन आयात पर निर्भर हुआ, तो ये उसकी energy insecurity को पूरी तरह खत्म नहीं करेगा। फिर भी, जापान का दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि मुश्किल हालात में भी innovation और international partnerships के जरिए बदलाव संभव है।

हम भारत में भी इस प्रेरणा को अपना सकते हैं। हमारे पास सूरज और हवा जैसे नवीकरणीय संसाधन प्रचुर हैं। अगर हम हाइड्रोजन तकनीक पर निवेश करें, तो न केवल हमारा पर्यावरण स्वच्छ होगा, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा भी बढ़ेगी। आइए, जापान की तरह हम भी अपने भविष्य को स्वच्छ और सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाएँ।
क्या आप हाइड्रोजन ऊर्जा को भारत का भविष्य मानते हैं?

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सिंगापुर: एक छोटे से द्वीप की बड़ी सफलता की कहानी!

🌍 सिंगापुर: एक छोटे से द्वीप की बड़ी सफलता की कहानी! 🌟

1965 में जब मलेशिया ने सिंगापुर को अलग कर दिया, तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह छोटा सा देश एक दिन विश्व का आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। लेकिन आज सिंगापुर की अर्थव्यवस्था 548 अरब डॉलर की है, और यहाँ प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा millionaire लंदन और न्यूयॉर्क से भी ज्यादा हैं! 😍

9 अगस्त 1965 को सिंगापुर को मलेशिया से अलग कर दिया गया। उस समय सिंगापुर के पास ना तो प्राकृतिक संसाधन थे, ना ही अपनी सेना, और ना ही पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ। एक तिहाई आबादी झुग्गी-झोपड़ियों में रहती थी। मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री तंकु अब्दुल रहमान को लगा था कि सिंगापुर असफल हो जाएगा। लेकिन सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री हैरी ली कुआन येव ने हार नहीं मानी। उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उनके इरादे मजबूत थे। उन्होंने कहा, “यह मेरे लिए दुख का क्षण है, लेकिन हम हार नहीं मानेंगे।” 💪

सिंगापुर की सबसे बड़ी ताकत थी इसकी भौगोलिक स्थिति। यह मलक्का जलडमरूमध्य के प्रवेश द्वार पर स्थित है, जहाँ से विश्व का 30% व्यापार होता है। हैरी ली कुआन येव ने इस अवसर को पहचाना और सिंगापुर को एक वैश्विक व्यापार केंद्र बनाने की ठानी। उन्होंने कारोबार के लिए सबसे अनुकूल माहौल बनाया – कम कर, न्यूनतम नियम, भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता, और अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा बनाया। इसके साथ ही कानून का सख्त शासन लागू किया। नतीजा? विदेशी निवेश की बाढ़ आ गई! 🌟

सिंगापुर ने खुद को “विश्व का गैस स्टेशन” बनाया। बिना प्राकृतिक तेल संसाधनों के, यह आज 14 लाख बैरल तेल प्रतिदिन शुद्ध करता है और विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा पेट्रोलियम निर्यातक है। इसके बंदरगाह विश्व के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक हैं, जहाँ से हर साल 20% वैश्विक शिपिंग कंटेनर गुजरते हैं। सिंगापुर ने अपनी आय का उपयोग सही दिशा में किया और आज इसके सॉवरेन वेल्थ फंड्स 1.8 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति नियंत्रित करते हैं, जो इसके वार्षिक जीडीपी का 3 गुना है! 🚢💰

सिंगापुर ने ना सिर्फ अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, बल्कि अपने नागरिकों के लिए बेहतर जीवन भी सुनिश्चित किया। यहाँ 90% जमीन सरकार ने अधिग्रहित की और सार्वजनिक आवास बनाए। आज 88% लोग अपने घर के मालिक हैं, जो विश्व में सबसे ज्यादा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और सैन्य शक्ति में भी सिंगापुर ने कमाल कर दिखाया। 🌇

यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। सिंगापुर ने दिखा दिया कि मेहनत, अनुशासन, और सही नेतृत्व के साथ कुछ भी हासिल किया जा सकता है।

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एलन मस्क और ओपनएआई

क्या आपने सुना कि एलन मस्क ने ओपनएआई को 97 बिलियन डॉलर में खरीदने की कोशिश की? लेकिन ये सिर्फ एक ऑफर नहीं था, बल्कि एक सोची-समझी चाल थी, जिसके पीछे का मकसद ओपनएआई और इसके सीईओ सैम ऑल्टमैन को नीचे लाना था। इस दिलचस्प कहानी को थोड़ा और करीब से बताता हूँ।

एलन मस्क, जिन्हें हम टेस्ला और स्पेसएक्स के लिए जानते हैं, ने 2015 में ओपनएआई की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। उस समय उनका मिशन था कि आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) को पूरी इंसानियत के फायदे के लिए बनाया जाए, ना कि कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए। लेकिन 9 साल बाद, 2024 में चीजें बदल गईं। ओपनएआई ने अपनी नॉन-प्रॉफिट स्ट्रक्चर को छोड़कर एक “कैप्ड-प्रॉफिट” मॉडल अपनाया, जिससे निवेशकों को 100 गुना रिटर्न मिल सकता था। लेकिन मस्क को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया।

मस्क का मानना है कि ओपनएआई ने अपना वादा तोड़ा। लेकिन असली वजह कुछ और गहरी है। मस्क जानते हैं कि जो भी AGI को सबसे पहले बनाएगा, वही भविष्य पर राज करेगा। और ये रेस सिर्फ सबसे स्मार्ट AI बनाने की नहीं है, बल्कि सबसे ज्यादा कंप्यूटिंग पावर जुटाने की है। पिछले 5 सालों में AI की लागत 25 गुना बढ़ गई है। माइक्रोसॉफ्ट ने ओपनएआई में 13 बिलियन डॉलर डाले हैं, और अब ओपनएआई 40 बिलियन डॉलर और जुटाने की कोशिश में है। ये रेस अब सिर्फ उन कंपनियों के लिए है जो ट्रिलियन डॉलर की लीग में हैं।

तो मस्क ने क्या किया? उन्होंने ओपनएआई के खिलाफ एक चाल चली। 97.4 बिलियन डॉलर का एक फर्जी ऑफर दिया, जिसका मकसद था ओपनएआई की फंडिंग को रोकना और उसे वापस नॉन-प्रॉफिट बनने पर मजबूर करना। ओपनएआई ने इसे सीधे तौर पर “हैरासमेंट” करार दिया। लेकिन मस्क का असली प्लान क्या है? दरअसल, ओपनएआई को दिसंबर 2025 तक एक पब्लिक बेनिफिट कॉर्पोरेशन बनना है, वरना उनकी फंडिंग रुक जाएगी। और मस्क का मुकदमा इस डेडलाइन को खतरे में डाल रहा है। अगर ओपनएआई हार गई, तो उनकी फंडिंग खत्म हो जाएगी, और बिना फंडिंग के वो इस रेस में पीछे रह जाएगी।

लेकिन मस्क का असली मकसद अपनी AI कंपनी xAI को आगे लाना है। वो जानते हैं कि AI की रेस में जीत दिमाग से नहीं, बल्कि पैसे से मिलेगी। और इस रेस में सबसे ज्यादा फायदा उन कंपनियों को होगा जो “पिक्स एंड शोवेल्स” बेच रही हैं—यानी क्लाउड कंपनियां, चिपमेकर्स और डेटा सेंटर ऑपरेटर्स।

टेक्नोलॉजी की दुनिया में असली जीत हाइप से नहीं, बल्कि सही रणनीति से मिलती है।

Open AI वाले सैम ऑल्टमैन

सैम ऑल्टमैन की प्रोफेशनल जर्नी एक टेक entrepreneur के तौर पर 19 साल की उम्र से शुरू हुई, जब उन्होंने Stanford University से dropout करके अपनी पहली startup Loopt शुरू की, जो एक location-sharing app थी।

Loopt ने 2005 में शुरुआत की और 2012 तक चली, लेकिन इसे सिर्फ 5 मिलियन users ही मिले, और इसका बढ़ना रुक गया, जिसके बाद इसे $43.4 मिलियन में बेच दिया गया, जो एक बड़ा financial loss था।

इस failure ने ऑल्टमैन को एक बड़ा सबक सिखाया: किसी भी प्रोडक्ट को बनाने से पहले ये समझना जरूरी है कि वो एक real problem को solve करता हो, वरना वो मार्केट में टिक ही नहीं सकता।

Loopt की असफलता के बाद ऑल्टमैन ने हार नहीं मानी; उन्होंने इस अनुभव से सीख ली और अपनी सोच को बदला, जिसे उन्होंने “embrace failure” approach कहा।

2014 में ऑल्टमैन Y Combinator के president बने, जो एक startup accelerator है, और उनके leadership में YC ने 67 startups से 1,900 तक का सफर तय किया, जिनकी total value $150 बिलियन तक पहुंच गई।

Y Combinator के तहत ऑल्टमैन ने Stripe, Twitch और Airbnb जैसी successful कंपनियों को support किया, जिसने उन्हें Silicon Valley में एक बड़ा नाम बना दिया।

2015 में ऑल्टमैन ने OpenAI सहसंस्थापक के रूप में शुरू किया, जिसका मिशन था artificial general intelligence (AGI) को develop करना ताकि वो मानवता के लिए फायदेमंद हो।

OpenAI की शुरुआत में लोग इसे असंभव मानते थे, लेकिन ऑल्टमैन ने “be willing to be misunderstood” की सोच अपनाई।

OpenAI ने 2022 में ChatGPT लॉन्च किया, जो सिर्फ 9 हफ्तों में 100 मिलियन monthly users तक पहुंच गया, और 2024 में OpenAI की projected revenue $12.7 बिलियन तक पहुंच गई।

2023 में ऑल्टमैन को OpenAI के CEO पद से हटा दिया गया था, लेकिन 5 दिन बाद ही उन्हें वापस ले लिया गया, जिसने उनकी resilience को और साबित किया।

ऑल्टमैन की सोच ने OpenAI को एक नया दृष्टिकोण दिया: aggressive testing, failures से सीखना, fast adaptation और long-term thinking, जिसने AI innovation में revolution ला दिया।

ऑल्टमैन की failure से सीखने की approach ने उन्हें एक visionary leader बनाया, और उनकी कहानी ये सिखाती है कि innovation में failure को एक weapon की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
उनकी इस जर्नी ने न सिर्फ टेक इंडस्ट्री को बदला, बल्कि ethical tech innovation और responsible AI development के लिए भी एक मिसाल कायम की।

उनकी इस mindset ने entrepreneurship और AI के future को shape किया, और आज वो एक ऐसे leader हैं जिन्होंने failure को success की सीढ़ी बनाया।

मंगोलिया का हीरो चंगेज खान

मंगोलिया में चंगेज खान की मूर्ति केवल एक पर्यटक आकर्षण नहीं है, बल्कि यह उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि है जिसने इतिहास की दिशा बदल दी। और मंगोलिया में जिसे हीरो माना जाता है। जिसने अपना साम्राज्य ईरान से लेकर यूरोप तक फैला रखा था।

मंगोलिया की जनजातियों को एकजुट करके अपने जीवनकाल में चीन, मध्य एशिया और फारस के अधिकांश हिस्सों पर विजय प्राप्त की। खानों की बाद की पीढ़ियों ने हमारी दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा साम्राज्य बनाया, जिसमें पूरा चीन, दक्षिण में बर्मा और वियतनाम, तिब्बत, भारत का ऊपरी आधा हिस्सा, पूरा साइबेरिया और मध्य एशिया, फारस, काकेशस, रूस, बाल्कन का बड़ा हिस्सा, पूर्वी और मध्य यूरोप शामिल थे।

मंगोल साम्राज्य की स्थापना की 800वीं वर्षगांठ के अवसर पर, मंगोलिया ने दुनिया की सबसे बड़ी घुड़सवार मूर्ति का निर्माण किया। अपने घोड़े पर चंगेज खान की 40 मीटर (120 फीट) ऊंची, चमचमाती, स्टेनलेस स्टील का स्मारक बनवाया।

मंगोलिया की आधी आबादी उलान बटार में रहती है, जहाँ चंगेज खान का स्टेचू बनाया गया है।

चंगेजखान जब किसी नए शहर या राज्य के पास जाते थे, तो वे मंगोलों के वैश्विक विजय अभियान के बारे में बताते हुए दूत भेजते थे। यदि शहर आत्मसमर्पण कर देता था, तो उसे कर देना पड़ता था और बढ़ती मंगोल सेना में योगदान देना पड़ता था, और उसे छोड़ दिया जाता था। यदि राज्य विरोध करते थे, तो शहर को नष्ट कर दिया जाता था और धन-संपत्ति छीन ली जाती थी। अभिजात वर्ग को मार दिया जाता था, और नागरिकों को गुलाम बना लिया जाता था। कई शहरों ने दूतों को मारकर इस विकल्प का जवाब दिया। कभी-कभी मंगोलों ने धैर्यपूर्वक यह समझाने के लिए दो या तीन दल भेजे कि क्या हो सकता है, फिर लूटपाट का दौर वहशी तरीके से शुरू करते थे।

मंगोलों को यूरोप पर कब्ज़ा करने से किसने रोका? इसकी वजह एक पारिवारिक झगड़ा बना। उत्तराधिकार की लड़ाई में चंगेज के बेटे यूरोप से वापस मंगोलिया आ गए। काफ़ी विवाद हुआ। यूरोपियों ने इस शांति का फ़ायदा उठाते हुए अपने झगड़े बंद कर दिए, बेहतर महल बनाए और खुद की रक्षा के लिए तैयारी की। नतीजतन, यूक्रेन और रूस को छोड़कर, यूरोप ने मंगोल शासन को रोक दिया।

चीन का बीजिंग शहर भी चंगेज खान ने बसाया था। प्लेग ने चंगेज खान का पूरा साम्राज्य खत्म कर दिया, यह भी कहना उचित होगा कि चीन से फैली यह प्लेग की बीमारी मंगोलों के कारण पूरी दुनिया में फैल गई।

भारत वे भी चंगेज खान ने बहुत लूटपाट की थी ज़ पर लूटपाट का धन किधर गया, यह आजतक कोई जान नहीं पाया।

अमीर बाप की औलाद का किस्सा, जिसने घाटा होने के बाद घर बेचकर वापिस 800 करोड़ का बिजनेस बनाया

एक अमीर बाप की औलाद का किस्सा सुनाता हूँ, जिसने अपनी रेस्टोरेंट चैन खोली और वह बुरी तरीके से फेल हुई, रेस्टोरेंट बिजनेस में फेल होना मतलब पब्लिक फेलियर होता है। उसके बाद उसने अपना घर बेचकर वापस से एक नया बिजनेस शुरू किया और आज उसका टर्नओवर 800 करोड़ के आसपास है।

राजीव बहल जिनका ब्रांड था फन फूड, उनके बेटे हैं विराज बहल। विराज अपने पिताजी का बिजनेस जॉइन करना चाहते थे, पर पिता ने मना कर दिया और कहा कि जाओ पहले 3 लाख रुपये खुद से कमाकर लेकर आओ, तब इस बिजनेस में एंट्री मिलेगी। जो कि आज लगभग 16 लाख रुपए के बराबर होते हैं तब उसने मर्चेंट नेवी में नौकरी करके 2002 में 3 लाख कमा लिये।

उसके बाद अगले 6 साल में बाप बेटे ने मिलकर फन फूड को एक बहुत बड़ा ब्रांड बना दिया। तब राजीव ने विराज को कहा कि मैं नहीं चाहता कि जिन कठिनाइयों के दौर से मैंने जीवन निकला है, उन कठिनाइयों को मेरे बेटा देखे और मैं चाहता हूँ कि मैं अपने बेटे को अच्छा खासा पैसा दूँ जिससे उसे आगे जीवन में कोई तकलीफ ना उठानी पड़े।

तब उन्होंने अपनी 25 वर्ष पुरानी फन फ़ूड कंपनी Dr Oetkar को ₹110 करोड़ में बेच दी।

तब विराज ने अपने हिस्से में आए पैसे से एक रेस्टोरेंट चैन खोलने का फैसला किया, जिसका नाम था पॉकेट फुल। 4 साल तक वह अपने रेस्टोरेंट चैन को प्रॉफिटेबल बनाने की कोशिश करता रहा लेकिन नहीं हुआ। इससे उसे भयंकर फाइनेंशियल नुकसान हुआ पर उसकी भी जिद थी कि वह कुछ अलग करेगा।

उसने अपनी आखिरी संपत्ति जो कि उसका घर था वह भी बेच दिया और उससे उसने एक बड़ी जमीन खरीद कर फैक्ट्री बनाई। जिसमें वह सॉस बनाने लगा। फैक्ट्री बनाने के बाद पहले साल तो रेस्टोरेंट बिजनेस से भी बुरा रहा और वह बड़े कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए तरसता रहा। यह इतना भयावह हो चुका था कि उसके पास सैलरी देने के लिए पैसे भी नहीं थे।

थोड़ी हिम्मत रखने के बाद और बार-बार कंपनियों को ऑर्डर के लिये परेशान (गिड़गिड़ाने के बाद) करने के बाद आखिर कर विराज को डोमिनोस से 70 टन सॉस का आर्डर मिला। उसके बाद तो विराज के पास केएफसी, पिज़्ज़ाहट, टैको बेल व अन्य कंपनियों से ऑर्डर की लाइन लग गई।

बिजनेस ही क्यों? क्योंकि यही विराज का लक्ष्य था और B2B में कैश फ्लो अच्छा होता है, जिसके कारण बिजनेस अच्छा चल पाता है।

अपने सॉस को अच्छा बनाने के लिए विराज ने जुगाड़ लगाई, आने वाले गेस्ट को वह अलग-अलग सॉस परोसता था और जो भी सॉस गेस्ट और लेते थे, तो इसका मतलब इस सॉस का स्वाद अच्छा होता था और उनका स्वाद बढ़ाने के लिए काम करता था। बिजनेस में जिन सॉस के आर्डर बड़े होते थे और जल्दी निकलते थे उन उत्पादों पर विराज ज्यादा ध्यान देने लगा।

अगर उनके प्रारंभिक प्रोडक्ट को देखें तो वे सब इंटरनेशनल टेस्ट के थे, हाँ उसमें भारतीय टेस्ट का ट्विस्ट डाल दिया गया था। क्योंकि भारत में तो हर 100 किलोमीटर में स्वाद ही बदल जाता है। भारत में सॉस का लीडर बनने के लिए उसे इंटरनेशनल स्वाद में लीडर बनाना था, जो कि विराज का इनोवेशन था सॉस का स्वाद शुद्ध हो हेल्दी हो, इसी के दम पर वह भारत में सॉस का लीडर बन गया।

विराज की इस कंपनी का नाम है Veeba।

विकसित भारत कैसा होगा? कोई जबाब नहीं देता

इस बार स्वतंत्रता दिवस पर यह कितने ही लोगों से सुना कि जो संकल्प लिया है वह पूरा करेंगे – 2047 तक विकसित भारत।

मैंने पूछना चाहा पर ऐसा लगा कि जबाब कोई नहीं देना चाहता, बस लोग भी जुमला पसंद हो गये हैं।

विकसित भारत में क्या जनता भी आती है, या इस विकसित भारत का मतलब केवल अर्थव्यवस्था से कि हम नम्बर 1 बन जायेंगे, पर 80 क्या उस समय हम 100 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देंगे।

कैसा होगा विकसित भारत, इसकी संकल्पना में जनता कहीं है या केवल जनता से टैक्स वसूल कर विकसित भारत बनना है।

जनता के लिये, विकसित भारत के लिये क्या क्या जतन किये जा रहे हैं, उसका कहीं उदाहरण नहीं मिला।

  • नये सरकारी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं।
  • नये सरकारी चिकित्सालय खोले जा रहे हैं।
  • नये सरकारी परिवहनों को उतारा जा रहा है, उनकी देखभाल ठीक से हो रही है।
  • नये एयरपोर्ट्स तक सार्वजनिक परिवहनों की बढ़िया पहुँच है।
  • सड़कों पर ट्रैफिक नियंत्रण के लिये, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाया जा रहा है।
  • नौकरियों के लिये युवाओं को भरपूर रोजगार के मौके मिल रहे हैं।
  • व्यापार को खोलने की जरूरी प्रक्रिया में क्या पारदर्शिता लाई जा रही है, कोई टाईम लिमिट सेट की गई है।
  • स्वच्छ हवा, स्वच्छ जल के लिये क्या किया जा रहा है।
  • बिजली 24 घण्टों मिले, इसके लिये क्या किया जा रहा है।

यह तो बहुत थोड़े से बिंदु हैं, इनकी सूची बहुत लंबी है, पर ऐसा कुछ हो रहा है जिससे लगे कि हम विकसित देश बन पायेंगे, अब केवल 22 साल ही बचे हैं 2047 आने में, 2024 तो गिन ही नहीं रहे क्योंकि लगभग निकल ही चुका है।

विकसितभारत