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बच्चों के लिये प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi)

बच्चों के लिये प्रदूषण पर निबंध  (Pollution Essay in Hindi) –

    प्रदूषण (Pollution) आज की दुनिया की एक गंभीर समस्या है। प्रकृति और पर्यावरण के प्रेमियों के लिये यह भारी चिंता का विषय बन गया है। इसकी चपेट में मानव-समुदाय ही नहीं, समस्त जीव-समुदाय आ गया है। इसके दुष्प्रभाव चारों ओर दिखाई दे रहे हैं।
प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है – गंदगी। वह गंदगी जो हमारे चारों ओर फैल गई है और जिसकी गिरफ्त में पृथ्वी के सभी निवासी हैं, उसे प्रदूषण कहा जाता है। प्रदूषण को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है – वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। ये तीनों प्रकार के प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं।
    वायु और जल प्रकृति-प्रदत्त जीवनदायी वस्तुएँ हैं। जीवों की उत्पत्ति और जीवन को बनाये रखने में इन दोनों वस्तुओं का बहुत बड़ा हाथ है। वायु में जहाँ सभी जीवधारी साँस लेते हैं वहीं जल को पीने के काम में लाते हैं। लेकिन ये दोनों ही वस्तुआँ आजकल बहुत गंदी हो गई हैं। वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण इसमें अनेक प्राकर की अशुद्ध गैसों का मिल जाना है। वायु में मानवीय गतिविधियों के कारण कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसे प्रदूषित तत्व भारी मात्रा में मिलते जा रहे हैं। जल में नगरों का कूड़ा-कचरा, रासायनिक पदार्थों से युक्त गंदा पानी प्रवाहित किया जाता रहा है। इससे जल के भंडार जैसे – तालाब, नदियाँ, झीलें और समुद्र का जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है।
ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है –
बढ़ती आबादी के कारण निरंतर होनेवाला शोरगुल। घर के बरतनों की खट-पट और वाद्य-यंत्रों की झन-झन इन दिनों बड़ती ही जा रही है। वाहनों का शोर, उपकरणों की चीख और चारों दिशाओं से आनेवाली विभिन्न प्राकर की आवाजें ध्वनि प्रदूषण को जन्म दे रही हैं। महानगरों में तो ध्वनि-प्रदूषण अपनी ऊँचाई पर है।
प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में विचार करें तो ये बड़े गंभीर नजर आते हैं। प्रदूषित वायु में साँस लेने से फेफड़ों और श्वास-संबंधी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। प्रदूषित जल पीने से पेट संबंधी रोग फैलते हैं। गंदा जल, जल में निवास करने वाले जीवों के लिये भी बहुत हानिकारक होता है। ध्वनि प्रदूषण मानसिक तनाव उत्पन्न करता है। इससे बहरापन, चिंता, अशांति जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।
आधुनिक वैज्ञानिक युग में प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त करना टेढ़ी खीर हो गई है। अनेक प्रकार के सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास अब तक नाकाफी सिद्ध हुए हैं। अत: स्पष्ट है कि जब तक जन-समूह निजी स्तर पर इस कार्य में सक्रिय भागीदारी नहीं करता, तब तक इस समस्या से निबटना असंभव है। हरेक को चाहिये कि वे आस-पास कूड़े का ढ़ेर व गंदगी इकट्ठा न होने दें। जलाशयों में प्रदूषित जल का शुद्धिकरण होना चाहिये। कोयला तथा पेट्रोलियम पदार्थों का प्रयोग घटाकर सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, बायो गैस, सी.एन.जी., एल.पी.जी., जल-विद्युत जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों का अधिकाधिक दोहन करना चाहिये। इन सभी उपायों को अपनाने से वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को घटाने में काफी मदद मिलेगी।
ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिये कुछ ठोस एवं सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है। रेडियो, टीवी, ध्वनि विस्तारक यंत्रों आदि को कम आवाज में बजाना चाहिये। लाउडस्पीकरों के आम उपयोग को प्रतिबंधित कर देना चाहिये। वाहनों में हल्के आवाज करने वाले ध्वनि-संकेतकों का प्रयोग करना चाहिये। घरेलू उपकरणों को इस तरह प्रयोग में लाना चाहिये जिससे कम से कम ध्वनि उत्पन्न हो।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रदूषण को कम करने का एकमात्र उपाय सामाजिक जागरूकता है। प्रचार माध्यमों के द्वारा इस संबंध के द्वारा इस संबंध में लोगों तक संदेश पहुँचाने की आवश्यकता है। सामुहिक प्रयास से ही प्रदूषण की विश्वव्यापी समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।

मोबाईल की आत्मकथा – निबंध

मैं मोबाईल हूँ आज मैं आपको अपनी आत्मकथा सुनाता हूँ, बहुत लंबी यात्रा करके आज मैंने वर्तमान युग को आधुनिक सुविधाओं से युक्त कर दिया है। आज दुनिया में कोई भी मेरे बिना अपने दैनिक कार्यों की कल्पना नहीं कर सकता है, मैं आज की दुनिया का सबसे तेज संचार व्यवस्था का माध्यम हूँ।

मेरा अविष्कार  वर्ष १९७३ में मोटोरोला के अनुसंधानकर्ता मार्टिन कूपर ने किया था, मार्टिन कूपर को “मोबाईल का पितामह” भी कहा जाता है। मार्टिन कूपर ने ३ अप्रैल १९७३ को बेल प्रयोगशाला के प्रतिद्वन्दी डॉ. एंगेल से पहली बार मोबाईल से फ़ोन पर बात की थी। १९७९ में एन.टी.टी. ने जापान में अपना पहला वाणिज्यिक सेलुलर नेटवर्क स्थापित किया था। १९८१ में पूर्णत: स्वचलित मोबाईल प्रणाली डेनमार्क, फ़िनलैंड, नार्वे और स्वीडन में शुरू हुई थी। फ़िर तो १९८० के मध्य से कई देशों ने मेरी शुरूआत की जैसे ब्रिटेन, मेक्सिको और कनाडा।

वर्ष १९८३ में मोटोरोला ने अमेरिका में 1G नेटवर्क स्थापित किया। उस समय मेरी क्षमता केवल ३० मिनिट बात करने तक ही सीमित थी उसके बाद मुझे १० घंटे चार्ज करना पड़ता था। उस समय बाजार में मेरी बहुत जबरदस्त माँग थी जबकि बैटरी बहुत कम चलती थी, मेरा वजन ज्यादा था और बैटरी कम चलने के कारण बात भी कम हो सकती थी, परंतु फ़िर भी हजारों खरीददार मेरे इंतजार में थे।

वर्ष १९९१ में फ़िनलैंड के रेडियोलिंजा 2G नेटवर्क की शुरूआत की थी, मोबाईल पर एस.एम.एस की शुरूआत वर्ष १९९३ में फ़िनलैंड से हुई थी,  2G सेवा के दस वर्ष बाद 3G सेवा एन.टी.टी. डोकोमो ने जापान में शुरूआत की थी। अब 4G भी सेवा में आ चुका है और 5G परीक्षण के दौर में है।

मोबाईल  से बात की जा सकती है, एस.एम.एस. भेजे जा सकते हैं और अब तो मोबाईल से क्या क्या नहीं किया जा सकता है, अब स्मार्ट फ़ोन का दौर है, अब टच स्क्रीन फ़ोन से संगीत सुन सकते हैं, कैमरे का उपयोग कर सकते हैं, इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं।

अभी मोबाईल बनाने में मुख्य छ: कंपनियाँ हैं सेमसंग, नोकिया, एपल, ZTE, एल.जी., हुवाई ।

आज के इस आधुनिक दौर में मैंने सारी सुविधाएँ दे दी हैं, अब बैंक से पैसे ट्रांसफ़र करने हो तो मोबाईल से किये जा सकते हैं, किसी भी बिल का भुगतान करना हो या ट्रेन, प्लेन का टिकट बुक करना हो वह भी मोबाईल से किये जा सकते हैं। मेरी सुविधाओं में दिन प्रतिदिन उन्नति हो रही है, और नई नई सुविधाओं का उपयोग दुनिया कर पायेगी।

ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु पर निबंध

    भारतवर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा है। विश्व में यही एक देश है, जहाँ वर्षा में छ: ऋतुओं का आगमन नियमित रूप से होता है। सभी ऋतुओं में प्रकृति की निराली छ्टा होती है और जीवन के लिये प्रत्येक ऋतु का अपना महत्व होता है।

वित्तगुरु वित्तीय जानकारियाँ हिन्दी भाषा में

      काल-क्रम से बसन्त ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है। भारतीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ-आषाढ़ के महीनों में ग्रीष्म ऋतु होती है। इस ऋतु के प्रारम्भ होते ही बसन्त की कोमलता और मादकता समाप्त हो जाती है और मौसम गर्म होने लगता है। धीरे-धीरे गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि प्रात: आठ बजे के बाद ही घर से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। शरीर पसीने से नहाने लगता है, प्यास से गला सूखता रहता है, सड़कों पर कोलतार पिघल जाता है, सुबह से ही लू चलने लगती है, कभी – कभी तो रात को भी लू चलती है। गर्मी की दोपहर में सारी सृष्टि तड़प उठती है, छाया भी ढूँढ़ती है।
बैठि रही अति सहन बन, पैठि सदन तन माँह,
देखि दुपहरी जेठ की, छाअहौ चाहति छाँह ।
     एक और दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म की दोपहरी में गर्मी से व्याकुल प्राणी वैर-विरोध की भावना को भूल जाते हैं। परस्पर विरोध भाव वाले जन्तु एक साथ पड़े रहते हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मनो यह संसार कोई तपोवन में रहने वाले प्राणियों में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं होतीं । बिहारी का दोहा इस प्रकार है –
कहलाने एकत वसत, अहि मयूर मृग-बाघ।
जगत तपोवन सों कियो, दीरघ दाघ निदाघ।
     गर्मी में दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं। दोपहर का भोजन करने पर सोने व आराम करने की तबियत होती है। पक्की सड़कों का तारकोल पिघल जाता है। सड़कें तवे के समान तप जाती हैं –
बरसा रहा है, रवि अनल भूतल तवा-सा जल रहा।
है चल रहा सन-सन पवन, तन से पसीना ढ़ल रहा॥
     रेतीले प्रदेशों जैसे राजस्थान व हरियाणा में रेत उड़-उड़कर आँखों में पड़ती है। जब तेज आँधी आती है तो सर्वनाश का दृश्य उपस्थित हो जाता है। धनी लोग इस भयंकर गर्मी के प्रकोप से बचने के लिये पहाड़ों पर जाते हैं। कुछ लोग घरों में पंखे और कूलर लगाकर गर्मी को दूर भगाते हैं। भारत एक गरीब देश है। भारत की दो-तिहाई से अधिक जनसंख्या गाँवों में रहती है। बहुत से गाँवों में तो बिजली ही नहीं है। कड़कती धूप में किसानों को और शहरों में मजदूरों को काम करना पड़ता है। काम ना करेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी।
गर्मी दुखदायी है, परन्तु फ़सलें सूर्य की गर्मी  से ही पकती हैं। खरबूजे, आम, लीची, बेल, अनार, तरबूज आदि का आनन्द भी हम गर्मी में ही लेते हैं। फ़ालसे, ककड़ी और खीरे खाओ और गर्मी भगाओ। लस्सी और शरबत तो गर्मी के अमृत हैं। दोपहर को गली में कुल्फ़ी वाले को बच्चे घेर लेते हैं। मई व जून की जानलेवा गर्मी के कारण स्कूल बन्द हो जाते हैं। गर्मी में लोग आकाश को देखते हैं कि कब बादल आयें और छम-छम पानी बरसे। गर्मी के बाद जब ऋतुओं की रानी वर्षा ऋतु आती है तो वर्षा ऋतु का आगमन होता है। वर्षा के आने का कारण ग्रीष्म ऋतु ही होती है, क्योंकि गर्मी में नदियों, समुद्रों आदि का पानी सूखकर भाप के रूप में आकाश में जाता है और बादल बन जाता है। उन्हीं बादलों से वर्षा होती है।

ग्रीष्म ऋतु हमें कष्ट सहने की शक्ति देती है। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को कष्टों और कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिये, बल्कि उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिये और स्मरण रखना चाहिये कि जिस प्रकार प्रचण्ड गर्मी के बाद मधुर वर्षा का आगमन होता है, उसी प्रकार जीवन में कष्टों के बाद सुख का समय अवश्य आता है।

विज्ञान की कृपा से नगरवासी गर्मी के भयंकर कोप और रोष से बचने में अब लगभग सफ़ल हो गये हैं। बिजली के पंखे, कूलर, एयर कंडीशनर (वातानुकूलित साधन)  आदि से गर्मी के कष्ट को दूर भगाना सम्भव हो गया है। शीतल-पेय तथा आइस्क्रीम आदि का मजा ग्रीष्म में ही है।
ग्रीष्म में हमारे बहुत-से अनाज, फ़ल मेवे आदि पकते हैं। सैकड़ों प्रकार के फ़ूल खिलते हैं। बागों में आमों पर फ़ल लगते हैं। कोयलें बोलती हैं।
ग्रीष्म में दोपहर के समय सोने का बहुत मजा आता है। नहाने और तैरने का आनन्द भी ग्रीष्म में ही है।
वृक्षारोपण द्वारा गलियों, बाजारों, सड़कों और राजमार्गों पर शीतल छाया की व्यवस्था की जा सकती है। स्थान-स्थान पर शीतल जल के प्याऊ लगाकर तथा पशुओं के लिये खेल (जलकुँड) बनवाकर ग्रीष्म की प्यास बुझाने की व्यवस्था करते हैं। हमें ग्रीष्म के कोप से बचाव के लिये पहले से ही व्यवस्था कर लेनी चाहिये ।

आधुनिक संचार क्रांति एवं संचार के नए आयाम, इंटरनेट, ई-मेल, डॉट कॉम (वेबसाइट) – निबंध

    प्रगति कि पथ पर मानव बहुत दूर चला आया है। जीवन के हर क्षेत्र में कई ऐसे मुकाम प्राप्त हो गये हैं जो हमें जीवन की सभी सुविधाएँ, सभी आराम प्रदान करते हैं। आज संसार मानव की मुट्ठी में समाया हुआ है। जीवन के क्षेत्रों में सबसे अधिक क्रांतिकारी कदम संचार क्षेत्र में उठाए गये हैं। अनेक नये स्रोत, नए साधन और नई सुविधाएँ प्राप्त कर ली गई हैं जो हमें आधुनिकता के दौर में काफ़ी ऊपर ले जाकर खड़ा करता है। ऐसे ही संचार साधनों में आज एक बड़ा ही सहज नाम है इंटरनेट।
    यूँ तो इसकी शुरुआत १९६९ में एडवान्स्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसीज द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के चार विश्वविद्यालयों के कम्प्यूटरों की नेटवर्किंग करके की गई थी। इसका विकास मुख्य रूप से शिक्षा, शोध एवं सरकरी संस्थाओं के लिये किया गया था। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य था संचार माध्यमों को वैसी आपात स्थिती में भी बनाए रखना जब सारे माध्यम निष्फ़ल हो जाएँ। १९७१ तक इस कम्पनी ने लगभग दो दर्जन कम्प्यूटरों को इस नेट से जोड़ दिया था। १९७२ में शुरूआत हुई ई-मेल अर्थात इलेक्ट्रोनिक मेल की जिसने संचार जगत में क्रांति ला दी।
    इंटरनेट प्रणाली में प्रॉटोकॉल एवं एफ़. टी.पी. (फ़ाईल ट्रांस्फ़र प्रॉटोकॉल) की सहायता से इंटरनेट प्रयोगकर्ता किसी भी कम्प्यूटर से जुड़कर फ़ाइलें डाउनलोड कर सकता है। १९७३ में ट्रांसमीशन कंट्रोल प्रॉटोकॉल जिसे इंटरनेट प्रॉटोकॉल को डिजाइन किया गया। १९८३ तक यह इंटरनेट पर एवं कम्प्यूटर के बीच संचार माध्यम बन गया।
    मोन्ट्रीयल के पीटर ड्यूस ने पहली बार १९८९ में मैक-गिल यूनिवर्सिटी में इंटरनेट इंडेक्स बनाने का प्रयोग किया। इसके साथ ही थिंकिंग मशीन कॉर्पोरेशन के बिड्स्टर क्रहले ने एक दूसरा इंडेक्सिंग सिस्सड वाइड एरिया इन्फ़ोर्मेशन सर्वर विकसित किया। उसी दौरान यूरोपियन लेबोरेटरी फ़ॉर पार्टिकल फ़िजिक्स के बर्नर्स ली ने इंटरनेट पर सूचना के वितरण के लिये एक नई तकनीक विकसित की जिसे वर्ल्ड-वाइड वेब के नाम से जाना गया। यह हाइपर टैक्सट पर आधारित होता है जो किसी इंटरनेट प्रयोगकर्ता को इंटरनेट की विभिन्न साइट्स पर एक डॉक्यूमेन्ट को दूसरे को जोड़ता है। यह काम हाइपर-लिंक के माध्यम से होता है। हाइपर-लिंक विशेष रूप से प्रोग्राम किए गए शब्दों, बटन अथवा ग्राफ़िक्स को कहते हैं।
    धीरे धीरे इंटरनेट के क्षेत्र में कई विकास हुए। १९९४ में नेटस्केप कॉम्यूनिकेशन और १९९५ में माइक्रोसॉफ़्ट के ब्राउजर बाजार में उपलब्ध हो गए जिससे इंटरनेट का प्रयोग काफ़ी आसान हो गया। १९९६ तक इंटरनेट की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई। लगभग ४.५ करोड़ लोगों ने इंटरनेट का प्रयोग करना शुरू कर दिया। इनमें सार्वाधिक संख्या अमेरिका (३ करोड़) की थी, यूरोप से ९० लाख और ६० लाख एशिया एवं प्रशांत क्षेत्रों से था।
    ई-कॉम की अवधारणा काफ़ी तेजी से फ़ैलती गई। संचार माध्य के नए-नए रास्ते खुलते गए। नई-नई शब्दावलियाँ जैसे ई-मेल, वेबसाईट (डॉट कॉम), वायरस आदि इसके अध्यायों में जुड़ते रहे। समय के साथ साथ कई समस्याएँ भी आईं जैसे Y2K वर्ष २००० में आई और उससे सॉफ़्टवेयर्स में कई तरह के बदलाव करने पड़े । कई नये वायरस समय-समय पर दुनिया के लाखों कम्प्यूटरों को प्रभावित करते रहे। इन समस्याओं से जूझते हुए संचार का क्षेत्र आगे बढ़ता रहा। भारत भी अपनी भागीदारी इन उपलब्धियों में जोड़ता रहा है।

वर्षा ऋतु – बच्चों के लिये निबंध

    भारत में वर्षा ऋतु एक महत्वपूर्ण ऋतु है। यह ऋतु आषाढ़, श्रावण और भादो मास में मुख्य रूप में विराजमान रहती है। वर्षा ऋतु हमें भीषण गर्मी से राहत दिलाती है। यह मौसम भारतीय किसानों के लिये बहुत हितकारी है।    फ़सलों के लिये पानी मिलता है तथा सूख गये कुएँ तालाब नदियाँ आदि फ़िर से भर जाते हैं। इस मौसम में ग्रामवासियों को सुख भी प्राप्त होता है और दुख भी। गाँवों में बरसात का पानी भर जाता है। अधिक वर्षा से फ़सलें खराब हो जाती हैं। बाढ़ आने से शहर और गाँव दोनों में ही बहुत हानि होती है। मच्छर-मक्खियों का प्रकोप बढ़ जाता है।वर्षा ऋतु
इस मौसम में छोटे-छोटे जीव-जंतु जो गर्मी के मारे जमीन के नीचे छिप जाते हैं, बाहर निकल जाते हैं। मेंढ़क की टर्र-टर्र की आवाज सुनाई पड़ने लगती है। आकाश में प्राय: बादल छाये रहते हैं।

वित्तगुरु वित्तीय जानकारियाँ हिन्दी भाषा में

वर्षा ऋतु का आनंद लेने के लिये लोग पिकनिक मनाते हैं। गाँवों में सावन के झूलों पर युवतियाँ झूलती हैं। वर्षा ऋतु में ही रक्षा बंधन, तीज आदि त्योहार आते हैं। इस ऋतु में अनेक बीमारियाँ भी फ़ैल जाती हैं।

तीन निबंध बच्चों के लिये (बालश्रमिकों से छिनता बचपन, एक दिन जब में विकलांगों के शिविर में गया और देश में हजारों अन्नाओं की जरूरत है ।)

बालश्रमिकों से छिनता बचपन
आजकल बाल श्रम कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ती दिखाई देती हैं। जिसमें बाल श्रमिकों का बचपन छिनता जा रहा है। पेट की आग शांत करने के लिए बच्चे झूठे बर्तन धो रहे होते हैं। लेकिन बाल श्रमिक को बचाने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
सड़क के किनारे स्थित लाइन होटल, ढाबा व घरों में बाल श्रमिक काम करते देखे जा सकते हैं। ये बच्चे पढ़ लिखकर कुछ कर सके इस दिशा में प्रयास किया जाना जरूरी है। इसके लिए समाज के सभी तबकों को प्रयास करना होगा।
काम करने वाले बाल श्रमिकों की मजबूरी है कि अगर वे काम नहीं करेंगे तो वे भूखे रह जायेंगे और उनके ऊपर आश्रित  छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई भी बंद हो जायेगी। अगर किसी भी बाल श्रमिक से बात की जाये तो पता चलता है उनका भी पढ़ने का मन करता है। लेकिन गरीबी के चलते काम करना पड़ रहा है।
बाल श्रमिकों को आठ घंटे से ज्यादा काम करना पड़ता है उसके बाद भी मालिक की झिड़कियां सुननी पड़ती हैं। अधिकांश होटलों पर बाल श्रमिक ही काम करते हैं।
जबकि बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए सरकार अनेक योजनाएं चला रही है लेकिन ये योजनाएं बाल श्रमिकों के लिए निरर्थक साबित होती दिख रही हैं। सरकार ने बच्चों को शिक्षा पाने का अधिकार कानून बनाया है।
बाल श्रम अधिनियम तो बनाया गया किंतु उसका कठोरता से पालन करने की आवश्यकता है। बाल श्रमिकों की संख्या आज भी लगातार बढ़ रही है क्योंकि लोगों को भय नहीं है। कानून का प्रभावी कार्यान्वयन के साथ ही बाल श्रमिकों की आजीविका एवं शिक्षा के समुचित प्रबंध होना चाहिये।
एक दिन जब में विकलांगों के शिविर में गया
बीईएमएल ले आऊट के स्थानीय बालाजी मंदिर के पास प्रांगण में गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में मंदिर समिति और रहवासी संघ द्वारा विकलांगों के लिये शिविर का आयोजन किया गया।
सुबह दस बजे से शाम पाँच बजे तक विकलांग शिविर का समय रखा गया था। वहाँ विभिन्न प्रकार के काऊँटर लगे हुए थे, जिसमें हाथ, पैर कान और आँख के काऊँटर प्रमुख थे।
शिविर का उद्घाटन रहवासी संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता ने किया और सभी विकलांगों को चिकित्सकों का परिचय करवाया गया।
उद्घाटन के बाद सभी मरीज संबंधित काऊँटर के पास जाकर अपनी चिकित्सकीय जाँच करवाने के लिये चले गये।
जिसमें चिकित्सकों ने तकरीबन 135 चयनित मरीजों की जांच कर उन्हें विकलांग उपकरणों का वितरण किया गया। इस शिविर में कृत्रिम अंग कान की मशीन, पेट बैल्ट, हाथ, पैर, कैलीपर, बैसाखी इत्यादि वितरित किये गए।
देश में हजारों अन्नाओं की जरूरत है
किसन बापट बाबूराव हज़ारे अन्ना हजारे का पूरा नाम है। अन्ना हजारे एक भारतीय समाजसेवी हैं। अधिकांश लोग उन्हें अन्ना हज़ारे के नाम से जानते हैं। सन् १९९२ में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। सूचना के अधिकार के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे। जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिये अन्ना ने १६ अगस्त २०११ से आमरण अनशन आरम्भ किया था।
अन्ना शुरू से ही भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ते रहे और अन्ना को महाराष्ट्र में जीत भी हासिल हुई, अन्ना ने भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर दिल्ली में हुंकार भरी, पूरा देश अन्ना के साथ खड़ा हो गया। अन्ना ने माँग की संसद में जन लोकपाल विधेयक पेश किया जाये जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ना आसान हो, और भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाना आसान हो।
आज हर जगह भ्रष्टाचार हो रहा है, इस भ्रष्टाचार को हटाने के लिये एक नहीं हमें हजारों अन्ना हजारे की जरूरत है। जो कि पूरे ताकत और जोश के साथ भ्रष्टाचार को हटाने का संकल्प लें और भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फ़ेंके। हमारा प्यारा भारत भ्रष्टाचारियों के हाथ से निकलकर ईमानदार हाथों में जाये। जिससे भारत जल्दी ही विकासशील राष्ट्र से विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो जाये।

 

ओलम्पिक खेलों में भारत का स्थान एवं प्रदर्शन 2012(Performance of India in Olympics Games 2012)

    भारत ओलम्पिक खेलों की पदक तालिका में 55 वें स्थान पर रहा। 2012 के ओलम्पिक में हमें प्राप्त 6 पदक – दो रजत और चार कांस्य – अब तक के हमारे इतिहास में सर्वाधिक हैं। यदि कोई चाहे तो इस तथ्य से भी राहत महसूस कर सकता है कि 2008 में बीजिंग ओलम्पिक में प्राप्त पदकों से यह दुगुने हैं। इस उपलब्धि पर मैं भी अन्य भारतीयों की तरह प्रसन्नता महसूस कर रहा हूँ।
   अत: लंदन में इन सभी 6 पदकों – विजय कुमार को शूटिंग में रजत, फ्री स्टाइल कुश्ती में रजत जीतने वाले सुशील कुमार, शूटिंग में गगन नारंग द्वारा कांस्य, महिला बॉक्सिंग में कांस्य जीतने वाली एम सी मेरीकॉम (मणिपुरी मां जो राष्ट्र की प्रशंसा का पात्र इसलिए बनी कि उसने दिखा दिया कि वह स्वर्ण पदक जीतने की क्षमता रखती है), योगेश्वर दत्त द्वारा कुश्ती में कास्य, और महिला बैडमिंटन सिंग्लस में 22 वर्षीया हैदराबाद की साइना नेहवाल जिसने अपनी प्रतिभा, साहस और दृढ़ इरादे से करोड़ों भारतीयों का दिल जीता, द्वारा कांस्य पदक – जीतने वालों को मेरी हार्दिक बधाई। साइना ने प्रदर्शित किया कि वह बैडमिंटन में चीन के एकाधिकार को चुनौती देने की निश्चित रूप से क्षमता रखती है।
लंदन में दिए गए कुल 962 पदकों में से भारत केवल 0.06 प्रतिशत ही जीत पाया। वस्तुत: अब तक के हुए ओलम्पिक खेलों में भारत मात्र 26 पदक ही जीत पाया है।

 

प्राकृतिक संसाधनों के लिये जवाबदेही

प्राकृतिक संसाधन क्या होते हैं, जो हमें प्रकृति से मिलते हैं, प्रकृति प्रदत्त होते हैं। हमें इसका उपयोग बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिये, परंतु ऐसा होता नहीं है।

गाजर इस विषय के संबंध में कल अपने केन्टीन में एक पोस्टर देखा था जिसमें दिखाया गया था कि एक गाजर को तैयार होने में लगभग ६ माह लगते हैं और उसको जमीन से निकालकर पकाने तक मात्र कुछ ही मिनिट लगते हैं, और हम कई बार सलाद या सब्जी फ़ेंक देते हैं, जिसमें केवल कुछ सेकण्ड ही लगते हैं, यह प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग ही तो है जिसे केवल जिम्मेदारी से आम व्यक्ति ही रोक सकता है। गाजर तो केवल एक उदाहरण है ऐसी कई वस्तुएँ हैं जिनका हम धड़ल्ले से दुरुपयोग कर रहे हैं।

PTI12_14_2011_000112B इसके बाद एक ट्रेनिंग में जाना हुआ जो कि बैंकिंग की थी, उसमें भी बताया गया कि कैसे वित्तीय संस्थाएँ प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में अहम योगदान कर रही हैं, जो कि हर राष्ट्र के लिये बहुत ही अहम है, वित्तीय संस्थाएँ एवं नियामक देश की विदेशी मुद्रा को जाने से रोकते हैं, जो कि राष्ट्र के लिये संसाधन है।

OLYMPUS DIGITAL CAMERA         आज सुबह अखबार में एक कहानी पढ़ रहे थे जो कि इस प्रकार थी – एक गुरूजी अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिये प्रेरित करते थे परंतु शिष्य केवल सुनते थे उस पर अमल नहीं करते थे, एक दिन गुरू जी ने व्रत रखा और शाम को अपने एक शिष्य को कहा व्रत तोड़ने के लिये मुझे नीम की दो पत्तियों की जरूरत है जाओ ले आओ। थोड़ी देर बाद शिष्य आया और उसके हाथ में नीम की पूरी टहनी देखकर गुरूजी रुआंसे हो गये और उन्होंने कहा कि मुझे केवल दो पत्तियों की जरूरत थी पूरी टहनी की नहीं, यह आदेश मैंने तुम्हें दिया था तो इस प्राकृतिक संसाधन के दुरुपयोग का जिम्मेदार में हुआ इसलिये अब इसका प्रायश्चित स्वरूप आज मैं व्रत नहीं तोड़ूँगा। शिष्यों को बहुत दुख हुआ।

थैला काश कि सब प्राकृतिक संसाधनों के प्रति अपनी जवाबदेही समझें। जैसे सब्जी लेने जायें या बाजार कुछ भी समान लेने जायें तो अपने थैले साथ ले जायें जिससे पोलिथीन का कम से कम उपयोग करके हम प्रकृति को नुकसान से बचा सकें।