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ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु पर निबंध

    भारतवर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा है। विश्व में यही एक देश है, जहाँ वर्षा में छ: ऋतुओं का आगमन नियमित रूप से होता है। सभी ऋतुओं में प्रकृति की निराली छ्टा होती है और जीवन के लिये प्रत्येक ऋतु का अपना महत्व होता है।

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      काल-क्रम से बसन्त ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है। भारतीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ-आषाढ़ के महीनों में ग्रीष्म ऋतु होती है। इस ऋतु के प्रारम्भ होते ही बसन्त की कोमलता और मादकता समाप्त हो जाती है और मौसम गर्म होने लगता है। धीरे-धीरे गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि प्रात: आठ बजे के बाद ही घर से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। शरीर पसीने से नहाने लगता है, प्यास से गला सूखता रहता है, सड़कों पर कोलतार पिघल जाता है, सुबह से ही लू चलने लगती है, कभी – कभी तो रात को भी लू चलती है। गर्मी की दोपहर में सारी सृष्टि तड़प उठती है, छाया भी ढूँढ़ती है।
बैठि रही अति सहन बन, पैठि सदन तन माँह,
देखि दुपहरी जेठ की, छाअहौ चाहति छाँह ।
     एक और दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म की दोपहरी में गर्मी से व्याकुल प्राणी वैर-विरोध की भावना को भूल जाते हैं। परस्पर विरोध भाव वाले जन्तु एक साथ पड़े रहते हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मनो यह संसार कोई तपोवन में रहने वाले प्राणियों में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं होतीं । बिहारी का दोहा इस प्रकार है –
कहलाने एकत वसत, अहि मयूर मृग-बाघ।
जगत तपोवन सों कियो, दीरघ दाघ निदाघ।
     गर्मी में दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं। दोपहर का भोजन करने पर सोने व आराम करने की तबियत होती है। पक्की सड़कों का तारकोल पिघल जाता है। सड़कें तवे के समान तप जाती हैं –
बरसा रहा है, रवि अनल भूतल तवा-सा जल रहा।
है चल रहा सन-सन पवन, तन से पसीना ढ़ल रहा॥
     रेतीले प्रदेशों जैसे राजस्थान व हरियाणा में रेत उड़-उड़कर आँखों में पड़ती है। जब तेज आँधी आती है तो सर्वनाश का दृश्य उपस्थित हो जाता है। धनी लोग इस भयंकर गर्मी के प्रकोप से बचने के लिये पहाड़ों पर जाते हैं। कुछ लोग घरों में पंखे और कूलर लगाकर गर्मी को दूर भगाते हैं। भारत एक गरीब देश है। भारत की दो-तिहाई से अधिक जनसंख्या गाँवों में रहती है। बहुत से गाँवों में तो बिजली ही नहीं है। कड़कती धूप में किसानों को और शहरों में मजदूरों को काम करना पड़ता है। काम ना करेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी।
गर्मी दुखदायी है, परन्तु फ़सलें सूर्य की गर्मी  से ही पकती हैं। खरबूजे, आम, लीची, बेल, अनार, तरबूज आदि का आनन्द भी हम गर्मी में ही लेते हैं। फ़ालसे, ककड़ी और खीरे खाओ और गर्मी भगाओ। लस्सी और शरबत तो गर्मी के अमृत हैं। दोपहर को गली में कुल्फ़ी वाले को बच्चे घेर लेते हैं। मई व जून की जानलेवा गर्मी के कारण स्कूल बन्द हो जाते हैं। गर्मी में लोग आकाश को देखते हैं कि कब बादल आयें और छम-छम पानी बरसे। गर्मी के बाद जब ऋतुओं की रानी वर्षा ऋतु आती है तो वर्षा ऋतु का आगमन होता है। वर्षा के आने का कारण ग्रीष्म ऋतु ही होती है, क्योंकि गर्मी में नदियों, समुद्रों आदि का पानी सूखकर भाप के रूप में आकाश में जाता है और बादल बन जाता है। उन्हीं बादलों से वर्षा होती है।

ग्रीष्म ऋतु हमें कष्ट सहने की शक्ति देती है। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को कष्टों और कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिये, बल्कि उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिये और स्मरण रखना चाहिये कि जिस प्रकार प्रचण्ड गर्मी के बाद मधुर वर्षा का आगमन होता है, उसी प्रकार जीवन में कष्टों के बाद सुख का समय अवश्य आता है।

विज्ञान की कृपा से नगरवासी गर्मी के भयंकर कोप और रोष से बचने में अब लगभग सफ़ल हो गये हैं। बिजली के पंखे, कूलर, एयर कंडीशनर (वातानुकूलित साधन)  आदि से गर्मी के कष्ट को दूर भगाना सम्भव हो गया है। शीतल-पेय तथा आइस्क्रीम आदि का मजा ग्रीष्म में ही है।
ग्रीष्म में हमारे बहुत-से अनाज, फ़ल मेवे आदि पकते हैं। सैकड़ों प्रकार के फ़ूल खिलते हैं। बागों में आमों पर फ़ल लगते हैं। कोयलें बोलती हैं।
ग्रीष्म में दोपहर के समय सोने का बहुत मजा आता है। नहाने और तैरने का आनन्द भी ग्रीष्म में ही है।
वृक्षारोपण द्वारा गलियों, बाजारों, सड़कों और राजमार्गों पर शीतल छाया की व्यवस्था की जा सकती है। स्थान-स्थान पर शीतल जल के प्याऊ लगाकर तथा पशुओं के लिये खेल (जलकुँड) बनवाकर ग्रीष्म की प्यास बुझाने की व्यवस्था करते हैं। हमें ग्रीष्म के कोप से बचाव के लिये पहले से ही व्यवस्था कर लेनी चाहिये ।