Category Archives: गुड़गाँव

जब हाईवे पर एक सफेद वर्दी वाले ने हमें हाथ दिया

कल बैंगलोर में यातायात के सफेद वर्दीधारी कुछ ज्यादा ही मुस्तैद नजर आ रहे थे, पहले लगा कि कोई बड़ा अफसर या मंत्री आ रहा होगा। परंतु हर जगह दोपहिया वाहनों और टैक्सी वालों को रोककर उगाही करते देख समझ आ गया कि इनको दिसंबर का टार्गेट पूरा करना होगा, नोटबंदी के चलते इनको नवंबर में भारी नुक्सान हुआ है। भले ही चालान क्रेडिट कार्ड या ऑनलाईन भरने की सुविधा हो, परंतु हर चालान तो एक नंबर में न ये काटेंगे और न ही पकड़ाये जाने वाला कटवायेगा। जब 500 या 1000 की जगह 100 या 200 में ही काम चल जायेगा तो कौन इतनी माथापच्ची करेगा। आजकल तो हालत यह है कि इनके पास भी जो क्रेडिट कार्ड मशीन होती है, उसकी भी टांय टांय फिस्स हुई होती है, या तो नेटवर्क फैलियर का मैसेज आता है या फिर सर्वर लोड का मैसेज या टाईम आऊट। Continue reading जब हाईवे पर एक सफेद वर्दी वाले ने हमें हाथ दिया

गुड़गाँव सायबरसिटी में मात्र 2 घंटों की बरसात में विकास की नदी बहने लगी

   कल गुड़गाँव में केवल दो घंटे की बरसात हुई जिसका असर यह हुआ कि गुड़गाँव जो कि सायबरसिटी के नाम से उत्तर में जाना जाता है, जाम में फँस गया। सायबर सिटी के नाम से केवल मशहूर है – गुड़गाँव, पर सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है, अच्छा पब्लिक ट्रांसपोर्ट पहली प्राथमिकता होनी चाहिये, पर इसका कहीं से कहीं कोई नामोनिशान नहीं है। खैर बैंगलोर इसका एक अच्छा उदाहरण है।

   तो इस सायबरसिटी में कल हमने 25 मिनिट का रास्ता ढ़ाई घंटे में तय किया, और हर जगह जाम लगा हुआ था, हालांकि प्रशासनिक अमला बहुत देर से जागा और फिर प्रशासनिक अमला भी सड़क पर व्यवस्था ठीक करता नजर आया, हमने गुड़गाँव में पहली बार प्रशासनिक अमले को व्यवस्था ठीक करते देखा। हालांकि बाद में देखा कि दूसरी तरफ की लेन जहाँ का ट्रॉफिक सामान्य है, उधर से किसी मंत्री संत्री की गाड़ी को रांग साईड से निकाल कर ले गये, अगर यही हरकत हम लोग करते तो यही प्रशासनिक अमला गाड़ी खड़ी करवा
लेता, हालांकि बहुत से लोग रांग साईड से जा रहे थे।

    गुड़गाँव में लोग लाल बत्ती को भी हरी बत्ती समझ कर निकल लेते हैं, ऐसा लगता है कि लोगों को रतोंधी हो गयी है, हमें कई बार लगता है कि हमें रंगों की पहचान होनी बंद हो गई है, अगर अपन यातायात के नियमों का पालन करें तो पीछे वाला हॉर्न मारमार कर परेशान कर देता है।

    यहाँ की पुलिस को मैंने कभी भी (एकाध बार छोड़कर) बिगड़ी हुई यातायात व्यवस्था सँभालते नहीं देखा, यातायात पुलिस यहाँ केवल एक किताब लेकर घूमती है, जिसे चालान बुक भी कहते हैं, और लोगों को रोककर उन्हें परेशान कर या तो चालान काटते हैं या फिर कुछ ले देकर छोड़ दिया जाता है।

    कल के जबरदस्त जाम का मूल कारण हमें लगा कि हर तरफ पानी भरा हुआ है, गुड़गाँव में पानी निकलने की कहीं जगह नहीं है, मेट्रो के नाम पर पूरा गुड़गाँव खुदा पड़ा है, पिछले एक वर्ष से देख रहे हैं, स्थिती जस की तस है, एक महीने पहले अंग्रेजी अखबार ने सड़कों पर गढ्ढों की खबर प्रमुखता से छापी थी, और तभी एकाएक प्रशासन ने सुध ली और सारे गढ्ढों को भी दिया गया, फिर से अखबार में खबर छपी तो सड़क बनवा दी गई, और वो कागजी लाखों रूपयों की सड़क कल के दो घंटों की बारिश में बह गई। पता नहीं कि अब लोग कहने लगेंगे कि ये तो गुड़गाँव में विकास का पानी बह रहा है, जो कि आप की आँखों को कुछ और ही दिख रहा है।

 हम भी सायबरसिटी में विकास की बयार देखना चाहते हैं, जहाँ लोग महँगा किराया देने को मजबूर हैं, महँगी सब्जियाँ और फल भी खरीदने को मजबूर हैं और ऑफिस जाने के लिये पब्लिक ट्रांसपोर्ट के उपलब्ध नहीं होने से रोज ऑटो की लूट मची हुई है। सरकार को राज्य में सबसे
ज्यादा आय देने वाले शहर का यह हाल है तो पता नहीं विकास की बयार कहाँ से चलेगी।

 ट्विटर से गुड़गाँव के कुछ फोटो –

Gurgaon Iffco Chowk and NH8
Gurgaon Iffco Chowk and NH8
Gurgaon-Millinium-city
Gurgaon-Millinium-city
Gurgaon Road
Gurgaon Road
Gurgaon-Udyog-Vihar
Gurgaon-Udyog-Vihar
Gurgaon-Water-logging
Gurgaon-Water-logging
Gurgaon-CyberCity
Gurgaon-CyberCity

आइसक्रीम वाले ने बताया कि उसके पापा नहीं हैं

घर से फरमाइश थी कि ऑफिस से आते समय आइसक्रीम लेते आना, तो कल हम थोड़ी से देर हो गई, वैसे शाम को साढ़े छ: तक घर पहुँच जाते हैं पर कल साढ़े नौ बज गये। हम हमेशा जिस साईकिल रेहड़ी वाले से आइसक्रीम लेते हैं, उसके पास पहुँचे और बात करने लगे, कहा कि दो आइसक्रीम घर के लिये दे दो।

 

हमारे पहले बाईक पर एक बंदा हेलमेट लगाये हुए बैठा हुआ था जिसके पीछे एक प्यारा से बच्चा बैठा हुआ था, जो कि लगभग 6-7 वर्ष का लग रहा था। वह आइसक्रीम वाले से दो आइसक्रीम लेकर पूछ रहा था जिसमें एक जिगली जैली और दूसरी कोला ब्लॉस्ट थी तो वह बच्चा आइसक्रीम वाले को बोल रहा था कि भैया यह कितने की है, आइसक्रीम वाले ने बताया कि यह 10 रू. की है, तो वह बोला ठीक है हमें एक आइसक्रीम दिखाते हुए बोला कि हमें यह वाली दो आइसक्रीम दे दीजिये। आइसक्रीम वाले ने बच्चे के हाथ से आइसक्रीम लिये बिना ही अपने आइस बॉक्स में हाथ डालकर वही वाली दो आइसक्रीम निकाली, तो बच्चा बोलने लगा कि अंकल हमें तीन नहीं चाहिये हमें दो ही चाहिये, आइसक्रीम वाले ने बोला कि हाँ हम दो ही दे रहे हैं, और यह कहते हुए बच्चे के हाथ से वो एक आइसक्रीम ले ली। तो बच्चा भोलेपन से बोला कि भैया एक पोलीथीन में रख दीजियेगा नहीं तो हम घर कैसे ले जायेंगे। तो आइसक्रीम वाले ने बोला कि हाँ हम पोलीथीन में ही रखकर दे रहे हैं। और उसने वो पोलीथीन बच्चे को पकड़ा दी। बाईक वाला इतनी देर मौन बना रहा, उसने चुपचाप 20 रू. दिये, बाईक को ऑटोस्टार्ट बटन से स्टार्ट किया और चल दिया।

 

बच्चों की बातें सुनकर मन पुलकित हो जाता है, और दिनभर की थकान भी उतर जाती है। तभी आइसक्रीम वाले ने हमें बोला कि ये जो बच्चा था, उसके पापा नहीं हैं, हम थोड़े दिन पहले ऐसे ही पूछ लिये थे कि आज पापा कहाँ है, तो बच्चे ने बताया था कि हमारे पापा नहीं है, वो तो दुर्घटना के कारण भगवान के पास पहुँच गये।

 

हम अब तक वो बाईक वाले को ही बच्चे का पापा समझ रहे थे, और शायद हर कोई यही समझता। पर बच्चा जो कि समय से पहले ही बड़ा हो गया था, जिसे पता था कि पापा नहीं हैं और उम्र से पहले ही समझदार हो गया होगा। उसने अपने बचपन को खोकर इतना भयावह सत्य देख लिया। मेरे मन में पता नहीं बहुत सी बातें घुमड़ने लगीं, बच्चे का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम रहा था। साथ ही सोच भी रहा था कि मैंने पहले वित्तीय  योजना और बीमा पर इतनी ब्लॉग पोस्टें लिखी हैं, उसका शायद यहीं महत्व है, पता नहीं उनका परिवार किन परिस्थितियों से गुजर रहा होगा। बस मन में यही आया कि भगवान उनके परिवार को यह दुख सहने का सामर्थ्य दे और उनके परिवार को अच्छे से चलाने लायक अच्छी आमदनी भी दे जिससे बच्चा कभी अपने पापा को बहुत ज्यादा याद न करे कि पापा जल्दी चले गये और आर्थिक तंगी के कारण उसकी पढ़ाई अच्छे से नहीं हो पाई।

 

मैं यही सोचता हुआ अपनी दो आइसक्रीम पोलीथीन में लेकर अपने घर की और बढ़ चला।

 

That is how I can say about the importance of Term insurance of individual life. Everyone should take Term insurance and Personal Accidental Policy, it will help family to get survive behind them.

 

हम कचरा फैलाने में एक नंबर हैं (We indians are great and known for litter)

    कचरा फैलाने के मामले में हम भारतीय महान हैं । और कचरा भी हम इतनी बेशर्मी और बेहयाई से फैलाते हैं जबकि हमें पता है कि यही कचरा हम सबको परेशान कर रहा है इसलिये हम सबको बड़े से बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिये, कम से कम इसकी शुरूआत गली से करनी चाहिये या घर कहना ही बेहतर होगा, जब हमारा घर साफ सुथरा होगा, तभी गली, मोहल्ले, सड़कें और उनके किनारे साफ होंगे।
    हमारे यहाँ घर में कई लोगों की आदत होती है कि रात में या सुबह कचरा घर में कहीं भी डाल दिया कि अब झाड़ू तो लगेगी ही तो साफ हो जायेगा, जबकि दो कदम पर ही कचरापेटी रखी है, वहाँ तक जाने की जहमत नहीं उठायेंगे। वैसे ही हम भारतीयों को नाक बहुत आती है और कुछ लोग तो उसका सेमड़ा भी उदरस्थ करने में माहिर होते हैं, जो उदरस्थ नहीं कर पाते वे सबसे पहले अपने बैठने के स्थान पर नीचे हाथ डालकर वह नाक का सेमड़ा चिपका देंगे या फिर उँगलियों के बीच सेमड़े को इतना घुमायेंगे कि वह कड़क हो जाये और फिर वे आसानी से उसे सम्मान के साथ बिना किसी को बोध हुए कहीं भी फेंक देंगे। इसलिये भी मैं कभी भी सार्वजनिक स्थानों जैसे कि थियेटर, फिल्म हॉल, बस, ट्रेन और हवाईजहाज में अपने हाथ सीट के नीचे ले जाने से कतराता हूँ।
    हमारे घर में कचरापेटी के अलावा भी बहुत सी जगहें कचरा डालने के लिये माकूल महसूस होती हैं, जैसे कि पलंग पर बैठे हैं और टॉफी खा रहे हैं, तो उसका रैपर फेंकने कौन कचरापेटी तक जायेगा, तो टॉफी का रैपर मोड़कर गोली बनाकर वहीं गद्दे के नीचे फँसा दिया, अगर गद्दा उठ पाने की स्थिती में नहीं है तो फिर पलंग के पीछे ही रैपर को सरका दिया, अगर वह जगह भी नहीं है और पास में ही कहीं कोई अलमारी रखी है तो उसके पीछे सरका दिया, वहाँ पर भी जगह नहीं मिली तो आखिरकार सबकी आँख बचाकर कचरा जमीन पर अपनी चप्प्ल या पैर के पास फेंका और धीरे से पलंग के नीचे सरका दिया। यह व्यवहार अपने सार्वजनिक जीवन में लगभग हर जगह देख सकते हैं।
    गुड़गाँव से दिल्ली धौलाकुआँ होते हुए हाईवे से जाते हैं, तो लगता है कि शायद यह सड़क विश्वस्तर की तो होगी ही, पर जब उस पर चलते हुए पुराने ट्रक और बस दिखते हैं जो कि प्रदूषण फैलाते हुए अपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से बड़े जाते हैं, इनमें से कई बस ट्रक में से तेल निकल रहा होता है, और कई सभ्य लोग अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में सफर कर रहे होते हैं, पर अधिकतर ये कार वाले लोग इतने असभ्य हो जाते हैं कि कहीं भी किधर से भी पानी की खाली बोतल फेंक देंगे या फिर कोई चिप्स का पैकेट, इच्छा होती है कि अगर इनके घर का पता मेरे पास होता तो मैं उनको यही कचरा उनके घर पर वापस से सम्मान के रूप में देने जाता, कि भाईसाहब आप अपना यह कचरा कल हाईवे पर छोड़ गये थे।
    यह पोस्ट इंड़ीब्लॉगर के हैप्पी अवर के लिये लिखी गई है, जो कि टाईम्स ऑफ इंडिया के लिये है, ज्यादा कचरा कैसे फैलायें, इसके लिये आप यहाँ भी क्लिक करके देख सकते हैं http://greatindian.timesofindia.com/

पेट्रोल पंप पर हो रही लूट से कैसे बचे हम

  कल ऑफिस से आते समय सोचा कि गाड़ी में पेट्रोल भरवा लिया जाये, पर कोहरा इतना जबरदस्त था कि जाने की इच्छा होते हुए भी सोचा कि कल सुबह पेट्रोल भरवा लिया जायेगा। और फिर नाईट्रोजन भी टायरों में चैक करवानी थी, और नाईट्रोजन के हवा वाला पंप केवल सुबह 9 से शाम 8 बजे तक खुलता है। इसलिये भी यह निर्णय लिया गया कि कल सुबह ही भरवा लिया जाये क्योंकि उस समय रात के 10 बज रहे थे।

     सुबह तैयार होकर कुछ कागजों की स्पाइरल बाईंडिंग करवानी थी, तो उनको बाईंडिंग के लिये देकर पेट्रोल भरवाने के लिये चल पड़े, हाईवे की और पास में ही पेट्रोल पंप हैं, पर इस जयपुर हाईवे पर कब कितना समय लग जाये कह नहीं सकते इसलिये शहर के अंदर ही लगभग 3 किमी दूर पेट्रोल पंप पर ही हमेशा से पेट्रोल भरवाते हैं।
    एच.पी. का पेट्रोल पंप हमें हमेशा से ही अच्छा लगता है, कारण पता नहीं परंतु हम शुरू से ही एच.पी. से पेट्रोल लेते आये हैं। हमने पेट्रोल पंप पर कहा कि पेट्रोल भरना, ये पेट्रोल गाड़ी है, कह देना ठीक होता है, उन्हें थोड़े ही ध्यान रहता है कि पेट्रोल गाड़ी है या डीजल, और हमने फ्यूल के ढक्कन पर लिखवा भी नहीं रखा है, फिर पेट्रोल भरने के पहले हमें 0 रीडिंग पढ़वा दी गई, और हम अपने बेटे के साथ बात में मस्त हो गये। थोड़ा समय ही बीता था कि देखा इतनी देर में तो 25 लीटर पेट्रोल भर सकता है, और अभी तक केवल 4.5 लीटर ही हुआ था, सो हमें कहा गया कि 300 रू. का करके फिर से शुरू करते हैं, कभी कभी मशीन धीरे चलती है, हमने कहा ठीक है, हम फिर से बेटेलाल से बात करने लग गये, फिर ध्यान आया कि कितना पेट्रोल भर गया है देख तो लें। देखा कि 900 रू. का भर चुका है, फिर लगभग 25.5 लीटर पेट्रोल भर गया फुल टैंक। हमने पूछा कि कितना बिल हुआ, हमें कहा गया कि 1900 रूपया हुआ, 300रू पहले का और 1600 रू. बाद का, हमने अपना HDFC Bank Credit Card स्वाईप करने को दे दिया।
    इधर हम मन ही मन गणित कर रहे थे कि गाड़ी में लगभग 33-35 लीटर की टंकी है और पहले से ही पेट्रोल के कांटे के हिसाब से लगभग 7 लीटर पेट्रोल होगा तो इन्होंने 30 लीटर पेट्रोल कैसे भर दिया, पीछे लाईन लंबी थी, सो हमें कहा गया कि जब तक स्वाईप होकर आपका क्रेडिट कार्ड आता है, तब तक आप थोड़ा आगे हो जायें, हम गाड़ी लेकर वहीं पर नाईट्रोजन टायरों में चैक करवाने लगे, हमें पहले हाथ से बनाया हुआ बिल दिया, तो हमें शक हुआ, कि हमेशा तो ये लोग मशीन का बिल देते हैं, और हमारा मन ही मन गणित भी ठीक नहीं हो रहा था, सो हमने उनसे कहा कि मुझे तो मशीन का बिल ही चाहिये, जब मुझे मशीन का बिल दिया तो एक 300 रू. का और दूसरा 1605 रू. का था, हमने ध्यान से दोनों बिलों को देखा तो पेट्रोल पंप की लूट या कर्मचारियों की लूट समझ आ गई।
    300 रू. के बिल पर समय अंकित था 10.26 और 1605 रू. के बिल पर 10.24, दोनों बिलों के अटेंडरों के नाम भी अलग थे, दोनों बिलों पर भरने वाली मशीन का आई.डी. भी होता है, वह भी अलग अलग था, इस विश्लेषण तक नाईट्रोजन भर चुकी थी, हमने गाड़ी रिवर्स करी, पार्किंग करके बेटेलाल को साथ लिया और मैनेजर के केबिन की और चल दिये, तो पता चला कि मैनेजर अभी तक आये नहीं हैं, वहाँ खड़े एक व्यक्ति ने कहा कि मैं सुपरवाईजर हूँ बताईये क्या समस्या है, उसे हमारी बात में तर्क लगा, उसने दोनों बिल ले लिये और पीछे हमारी गाड़ी का नंबर लिखा, हमने अपना मोबाईल नंबर भी लिखवाया और कहा कि मैनेजर से हमारी बात करवाईयेगा, उसने चुपचाप हमें 300 रू. नगद वापस कर दिये।
    चाहते तो हम पेट्रोल पंप वाले को लंबा नाप सकते थे, परंतु हमने अपनी सतर्कता से अपनी मेहनत की कमाई को लुटने से बचा लिया। आप भी आगे से ध्यान रखियेगा कि कहीं आप भी तो ऐसी लूट का शिकार नहीं हो रहे हैं।