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क्रिप्टोकरंसी

क्रिप्टोकरंसी क्या है? जानें समझें

क्रिप्टोकरेंसी क्या है? CryptoCurrency

यह एक वर्चुअल करेंसी है और हर क्रिप्टो कॉइन का एक यूनिक नंबर होता है जैसे कि नोट पर एक सीरियल नंबर होता है। ट्रांज़ेक्शन इलेक्ट्रॉनिक लेज़र से वेरिफाई होते हैं, जिसे ब्लॉकचैन (Blockchain)भी कहते हैं।

क्रिप्टोकरेंसी कैसे बनाई जाती है ओर स्टोर की जाती है

कॉइन को कठिन मैथमैटिकल पजल्स को सॉल्व करके बनाया जाता है और यह प्रोसेस कंप्यूटर पर एक कॉम्प्लेक्स प्रोग्राम द्वारा की जाती है,जिसे की माइनिंग (Mining) कहा जाता है। माईनिंग करने के लिये कंप्यूटर का हार्डवेयर बहुत उन्नत होना चाहिये व आधुनिक ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) लगते हैं। इन क्वाईन्स को वैलेट में स्टोर किया जाता है, जो कि डिजिटल डायरेक्टरी होती हैं और पासवर्ड से सुरक्षित होते हैं। क्वाईन्स को बहुत छोटी यूनिट में भी तोड़ा जा सकता है और वे सारी यूनिट अपने आप में यूनिक होती हैं। आप एक क्वाईन को बेचने या खरीदने के लिये यानि ट्रेड के लिये सौ करोड़वे हिस्से तक में उपयोग कर सकते हैं।

क्रिप्टोकरेंसी को कौन कंट्रोल करता है और कौन वैरिफाई करता है?

क्रिप्टो क्राउड कंट्रोल्ड होती हैं, मतलब कि जो लोग क्रिप्टो माईनिंग का काम करते हैं वे लोग इन ट्रांजेक्शनों को वैरिफाई करते हैं, ब्लॉकचैन किसी भी होने वाले ट्रांजेक्शन को वैरिफाई करता है। जब ब्लॉकचैन को अधिकतम लोग देखकर सहमत होते हैं कि क्वाईन संख्या xxxxको वैलेट A से वैलेट B में ट्रांसफर किया जा सकता है, तब ट्रांजेक्शन क्लियर होता है और ब्ल़ॉकचैन में एक नई एंट्री बनती है।

बाजार में कितनी क्रिप्टोकरेंसी हैं?

एसएनपी क्रिप्टो इंडेक्स जो की लॉन्च होने वाला है, वे लगभग 500  क्रिप्टोकरेंसी ही ट्रैक करेंगे, जबकि करंसी हजारों की संख्या में उपलब्ध है, मुख्य क्रिप्टो है बिटक्वाईन, जिसकी आज एक ट्रिलियन डॉलर की मार्केट वैल्यू है और इथेरियम जिसकी दस बिलियन डॉलर मार्केट वैल्यू है।

क्या क्रिप्टोकरंसी अपनी कीमत के लिये किसी से लिंक होती हैं?

जी नहीं, क्रिप्टोकरंसी किसी भी एसेट से लिंक नहीं होती हैं? कुछ स्टेबल क्वाईन हैं जो कि अमरीकी डॉलर एसेट से लिंक होती हैं या फिर कई अन्य करंसी से लिंक होती हैं। फेसबुक एक क्रिप्टोकरंसी कंसोर्टियम बना रहा है, जिसमें आने वाले एक नई करेंसी डाईम कई अन्य करंसी के साथ लिंक होगी। चीन अपनी खुद की क्रिप्टोकरंसी ला रहा है, जो की चीन सेंट्रल बैंक के कंट्रोल मे रहेगी, चीन के सेंट्रल बैंक का नाम है The People’s Bank of China.

क्या क्रिप्टोकरंसी को कानूनन तरीके से ट्रेड कर सकते हैं?

जी हाँ, क्रिप्टोकरंसी के लिये बहुत से ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं, जहाँ बहुत सी क्रिप्टोकरंसी की ट्रेडिंग होती है। 35-40 करोड़ रूपये में ट्रांजेक्शन रोज ही होते हैं।

क्या क्रिप्टोकरंसी से ट्रांजेक्शन भी कर सकते हैं?

जी हाँ ट्रांजेक्शन भी कर सकते हैं, बस अभी यह उतना कॉमन नहीं है। परंतु यह रैमिटेंस (Remittance)  के तौर पर ज्यादा उपयोग होता है क्रिप्टोकरंसी बेचने या खरीदने पर ब्रोकरेज बहुत कम होता है, वहीं बैंकों के चार्जेस USD INR पर इनसे ज्यादा होते हैं। मतलब कि अगर आप बिटक्वाईन डॉलर में खरीद रहे हैं और रुपये में बेच रहे हैं। कुछ कंपनियाँ क्रिप्टो को करंसी स्वॉप के लिये भी उपयोग करती हैं। टेस्ला से अगर कार खरीदनी है तो वहाँ आप बिटक्वाईन में भुगतान कर सकते हैं। क्रिप्टो ऑनलाईन गेमिंग व ऑनलाईन केसिनो में भी बहुत पॉपुलर है। क्योंकि इन ट्रांजेक्शनों को कोई ट्रेक नहीं कर सकता, या बहुत मुश्किल होता है, इसलिये इसका जबरदस्त तरीके से उपयोग ड्रग डील्स व साईबर क्राईम में होता है।

क्रिप्टो से ट्रांजेक्शन करना कठिन क्यों है?

क्रिप्टो बहुत ही ज्यादा वोलेटाईल है। ट्रांजेक्शन बहुत धीमे होते हैं – किसी भी ट्रांजेक्शन के होने के पहले बहुत से लोगों द्वारा ब्लॉकचैन में चैक करना जरूरी होता है।

भारतीय नियामक क्यों इन नई एसेट्स के बारे में कन्फ्यूज हैं?

नियामक को पहले क्रिप्टो की परिभाषा बनानी होगी, कि इस पर टैक्स कैसे लगायेंगे। क्या ये कलाकृति (Art) है या करंसी है या कुछ और?बहुत से देशों ने जैसे कि जापान, कोरिया, आस्ट्रेलिया आदि ने क्रिप्टोकरंसी पर टैक्सेशन पर अपनी बात साफ कर दी है, लेकिन भारत ने अभी तक नहीं साफ की है। भारतीय नियामकों की चिंता है कि हर वर्ष लगभग 80 बिलियन डॉलर का रैमिटेंस जो होता है, क्रिप्टकरंसी लीगल करने के बाद सीधा असर रैमिटेंस पर पड़ेगा। साथ ही वे नाखुश है कि क्रिप्टोकरंसी के ट्रांजेक्शन को ट्रेस नहीं किया जा सकता है।

कार्बन फुटप्रिंट के लिये क्यों चिंता है?

माईनिंग के लिये ज्यादा शक्तिशाली कंप्यूटर चाहिये होते हैं, जिसमें विशेष चिप्स और GPU होते हैं जो कि बहुत बिजली खाते हैं। विश्वभर में आज क्रिप्टो माईनिंग के लिये जितनी बिजली की खपत हो रही है, जितनी कि बेल्जियम जैसे देश की बिजली की आपूर्ति के बराबर होती है। समस्या यह है कि यह रिनिवेबल एनर्जी नहीं है, इसलिये इसका कार्बन पर ज्यादा असर होगा।

ब्लॉकचैन कैसे काम करता है?

माईनिंग से हर क्वाईन की हिस्ट्री रिकार्ड होकर उस ट्रांजेक्शन की एंट्री ब्लॉकचैन में होती है। बस यह समझ लीजिये कि ये एक काँच का लॉकर है जिसमें अलग अलग सीरियल नंबर के नोट रखे हैं, और यह लॉकर उन्हीं लोगों के द्वारा ऑपरेट किये जा सकते हैं जिनके पास पासवर्ड है, पर उन्हें हर कोई देख सकता है। अगर एक लॉकर का मालिक कुछ क्रिप्टोक्वाईन किसी ओर को देना चाहता है यानि कि किसी ओर लॉकर में ट्रांसफर करना चाहता है तो देखने वाले पहले यह देखेंगे कि जो क्रिप्टोक्वाइन देना चाहता है उस लॉकर में क्वाईन है या नहीं, और कहीं यह डबल ट्रांजेक्शन तो नहीं हो रहा कि पहले भी इसका ट्रांजेक्शन हो चुका है और फिर से एटेम्पट हो रहा है।

बहुत से लोग ब्लॉकचैन को देख सकते हैं और उसकी कॉपी डाऊनलोड कर सकते हैं। हर होने वाला ट्रांजेक्शन को देखने वाले अधिकतम लोगों द्वारा कन्फर्म करा जाता है। एक बार ट्रांजेक्शन सफल हो गया और ब्लॉकचैन में एन्ट्री हो गई तो उसे न बदला जा सकता है और न ही कैंसल किया जा सकता है और न ही देखा जा सकता है। और बहुत सारी कॉपियों में होने के कारण ब्लॉकचैन में फ्रॉड करना बहुत मुश्किल या यूँ कहें कि नामुमकिन है।

ब्लॉकचैन को और कैसे उपयोग कर सकते हैं?

बैंकों द्वारा ब्लॉकचैन को इंटर्नल ऑडिट में उपयोग किया जा रहा है। बड़े फ्रॉड जैसे कि बारिंग बैंक में निक लेसन ने किया और नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक में किया, वो असंभव होते।

ब्ल़ॉकचैन को हर उस जगह उपयोग किया जा सकता है जहाँ परस्पर विश्वास नहीं है, जैसे कि अगर सरकार ने किसी कार्य के लिये ठेकेदार को नियुक्त किया और उस पैसे को किसी एस्क्रो में डाल दिया फिर उस लोकेलिटी के १०० लोगों को ब्लॉकचैन में डाल दिया, अब जब ये १०० लोग उसके काम होने के बाद ब्लॉकचैन में अपनी सहमति देंगे तो ठेकेदार को ऑटोमैटिक पैसा मिल जायेगा। इससे न ही भुगतान में देरी होगी और न ही रिश्वत होगी। 

वीडियो लिंक

सोशल इन्फ्लूएँसर कैसे बनें How to become Social Influencer

सोशल इन्फ्लूएँसर Social Influencer के बारे में अभी एक पोस्ट लिखी थी, कि इससे भी अच्छा खासा पैसा बनाया जा सकता है, तो सभी की जिज्ञासा थी कि कैसे?

सोशल इन्फ्लूएँसर होता क्या है पहले यह समझ लें – जब एक या अधिक सोशन प्लेटफॉर्म पर आपके बहुत से फॉलोअर हों, फेसबुक पर कोई ज्यादा फायदा नहीं है, पर हाँ अगर ट्विटर, इंस्टाग्राम पर ज्यादा फॉलोअर हैं तो आपको फायदा होता है। सोशल इन्फ्लूएँसर अपनी बातों को समाज में पहुँचाते हैं, वे किसी एक मुद्दे की हो या विभिन्न मुद्दों पर, इससे लोग उनकी बातों को सपोर्ट करते हैं, समझते हैं व अपनी आवाज समझते हैं। समाज को लगता है कि वे इस व्यक्ति से कुछ सीख सकते हैं, यह अच्छा लिखता है या जरूरत के मुद्दों पर अपनी बात को सही प्रकार से कह सकता है।

बस इसी का फायदा ये सोशल इन्फ्लूएँसर उठाते हैं, जब इनके पास बहुत अधिक संख्या में फॉलोअर होते हैं, तो कई कंपनियाँ उनके पास अपने उत्पाद या अपने ब्रांड के प्रमोशन के लिये कंटेट मार्केटिंग कंपनियों के जरिये पहुँचती हैं, क्योंकि इनकी पहुँच सीधे कई फॉलोअर्स तक होती है यह अत्याधुनिक मार्केटिंग का तरीका मात्र है।

जितने ज्यादा आपके फॉलोअर्स होंगे, जितने ज्यादा उस कंटेट के व्यूज व लोगों का इन्वॉल्वमेंट होगा, उतनी ही ज्यादा आपकी क्रेडिटिबिलिटी होगी। यह सब रातोंरात हासिल नहीं किया जाता है, इसके लिये सिस्टमेटिक तरीके से आपको अपनी बातों को कई दिनों महीनों तक लगातार विभिन्न तरीकों से रखना होता है।

कमाई के अवसर बहुत ही अप्रितम हैं, निर्भर करता है कि आप किस प्रकार के कंटेट पर लिखते हैं, तो उसी प्रकार के कंटेट की मार्केटिंग के लिये आपके पास आयेंगे, हर ट्वीट या इंस्टाग्राम पोस्ट स्टोरी का अपना एक रेट होता है। जो कि आपकी सोशल इन्फ्लूएँसर की छवि पर निर्भर करता है। एक ट्वीट पर लोग 7० रूपये से लेकर 1 लाख तक चार्ज करते हैं, कई बार रकम इससे भी ज्यादा होती है, वैसे ही इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ब्लॉग का मामला है। मैंने कई सोशल इन्फ्लूएँसर्स को देखा है कि वे कई मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं तो उनके पास कई प्रकार के एन्डोर्समेंट आते हैं और लगभग हर दूसरे दिन या हर दिन ही उनके पास कमाई के अवसर होते हैं।

अगर आपको लगता है कि आप भी सोशल इन्फ्लूएँसर बन सकते हैं तो कमाई को ध्यान में मत रखिये, पहले अपने आपको पहचानिये कि आप अच्छा क्या कर सकते हैं, और उस पर लिखकर अपने आपको सोशल इन्फ्लूएँसर के रूप में अपने आपको इस सोशन बाजार में स्थापित कीजिये।

Zoom, स्काईप, वेबेक्स और टीम्स पर एक बातचीत

2011 में माइक्रोसॉफ्ट ने स्काईप को 8.5 बिलियन डॉलर में खरीदा था, उसी वर्ष zoom की शुरुआत हुई थी। सोचिये अगर 2011 में महामारी हुई होती तो, उस समय सभी लोग स्काईप का ही उपयोग कर रहे होते, पर अब सभी लोग zoom का उपयोग कर रहे हैं, इसका मुख्य कारण माइक्रोसॉफ्ट का स्काईप को ढंग से मैनेज न किया जाना रहा।

स्काईप व्यक्तिगत उपयोग के लिये उपयोग में नहीं लाया जाता, बल्कि कॉरपोरेट मेसेजिंग एप्प बनकर रह गया है। zoom ने इसी कमी का फायदा उठाया और अब वे कॉरपोरेट के लिये लाँच करने जा रहे हैं।

अभी zoom का समय है और हर किसी को zoom का उपयोग करते देखा जा सकता है, भले ही वह योगा क्लास हो या स्कूल क्लास या फिर दोस्तों के साथ बीयर की चीयर्स, zoom का इंटरफेस आम उपयोगकर्ता के लिये बहुत सरल है, जबकि लगभग हर महीने स्काईप में बदलाव होते रहते हैं।

स्काईप के पास इस बार का यह फायदा उठाने का बहुत बढ़िया मौका था, पर उन्होंने ये मौका खो दिया। zoom के ऊपर अब गूगल की नजर है, हो सकता है कि जल्दी ही यह गूगल का उत्पाद हो जाये।

माइक्रोसॉफ्ट का टीम्स Teams भी उपलब्ध है, परन्तु यह बहुत भारीभरकम एप्प है। कुल मिलाकर zoom ने बाजी मार ली है।

इस पर फ़ेसबुक पर बहुत से कमेंट भी आये जो कि पठनीय हैं –

Prakash Yadav ज़ूम आम लोगों के लिए है। जिन्हें सिर्फ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग चाहिए। टीम कॉर्पोरेट के लिए आल-इन-वन अप्प है।

Abhishek Tripathi मुझे zoom के बारे में कुछ दिनों पहले तक भी पता नहीं था, अभी आजकल सबको देख रहा हूँ Zoom का उपयोग करते हुए तो इसके बारे में जानकारी इकठ्ठा करी! इसके पहले lync use karte the फिर Skype कुछ दिन और फिर Teams. वैसे teams थोड़ा भारी है पर app सही है!

Vimal Rastogi Team and Skype captured corporate

Neeraj Rohilla Microsoft Teams will prevail for corporates. It has some good features. Better than WebEx or Zoom

Vivek Rastogi Neeraj Rohilla Yes Teams is superb.

दिनेशराय द्विवेदी गूगल का ड्यूओ बढ़िया काम कर रहा है।

Prashant Priyadarshi टीम्स का जिक्र करना जल्दबाजी होगी, उसे समय दिया जाना चाहिए। लेकिन ज़ूम को लेकर मेरा अनुभव यह है कि विश्व की कई कंपनियाँ इसका इस्तेमाल पहले ही कर रही थी। पिछले दो साल में दुनिया भर की कम से कम 200 क्लाइंटस के साथ हुई मीटिंग को इसका मानक बना रहा हूँ। स्काइप और वेबेक्स महंगा तो था ही साथ ही यूजर फ्रेंडली भी नहीं था ज़ूम के मुकाबले।

Vivek Rastogi Prashant Priyadarshi मैं तो रोज ही टीम्स, वेबेक्स, स्काईप व जूम का उपयोग करता हूँ, पर जो क्वालिटी जूम में है वह अभी कहीं और नहीं मिलती, शायद अन्य एप्प्स की ट्यूनिंग पर लोगों का इतना ध्यान नहीं रह गया है, और जूम को हल्का फुल्का ही रखा गया है।
Shrish Benjwal Sharma स्काइप सभी वीडियो कॉलिंग या कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयरों का भीष्म पितामह है। जहाँ तक मुझे याद है यह भारत में डायलअप इंटरनेट कनैक्शन के जमाने में भी था। बाद में ब्रॉडबैंड भी आ गया था पर आज की अपेक्षा स्पीड काफी कम थी।

उस समय मेरे विचार से केवल स्काइप में ही वीडियो चैट का विकल्प था। याहू मैसेंजर में केवल ऑडियो चैट का विकल्प था। नेट की ज्यादा स्पीड न होने से स्काइप में हम लोग ऑडियो चैट ही करके आनन्द लेते थे। दूसरा कारण यह भी था कि डैस्कटॉप पर वैबकेम न होता था। लैपटॉप लेने के बाद और नेट की स्पीड कुछ सुधरने के बाद पहली बार वीडियो चैट की थी तो बड़ा अद्भुत लगा था।

वैसे उस जमाने में चैट वगैरह में मेरे असल जिन्दगी के कोई परिचित, मित्र, रिश्तेदार वगैरह न मिलते थे। तब लोगों के पास नेट क्या कम्प्यूटर भी न होता था। याहू मैसेंजर, स्काइप वगैरह पर ब्लॉगर दोस्तों के साथ ही बतियाते थे। अब तो दुनिया बदल गयी है, स्मार्टफोन ने घर-घर ये सब तकनीक पहुँचा दी।

बाकी दुनिया बदलती रहती है जी। कभी याहू मैसेंजर बादशाह था, उसके बाद गूगल टॉक का जमाना आया, आज व्हॉट्सएप का है, कल किसका होगा पता नहीं।

ऐसे ही आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में जूम की धूम है। कल का पता नहीं।

Vivek Rastogi Shrish Benjwal Sharma आपने तो वाकई पुराने दिनों की याद दिला दी।
Nitish Ojha जिस जिस को माइर्कोसाफ्ट ने छुवा वो नष्ट ही कर के छोड़ा … बेकार कर देते हैं स्ट्रेटजी भी बहुत दीघकालिक नहीं है ….. मेरे पास स्काइप के इतने वर्जन है ॥ और सब मे कुछ न कुछ चेंज जो अनावश्यक था … इसका बहुत पुराना यूजर हूँ मैं ॥ शायद 2005 से चला रहा … लेकिन अब भी बहुत कमियाँ है …. पसंद तो ज़ूम भी नहीं आया लेकिन क्या कहा जाये ….स्काइप का एक फीचर था शेयर स्क्रीन ॥ उसे अनावश्यक रूप से अचानक किसी वर्जन मे देते हैं ॥ किसी मे बंद कर देते हैं … लेकिन मैंने अभी भी स्काइप छोड़ा नहीं है
Vivek Rastogi Nitish Ojha बेकार कर देने का हाल लगभग सभी बड़ी कंपनियों का रहा है, कुछ ही कम्पनियों ने उत्पाद की सार्थकता बनाये रखी।स्काईप का शेयर स्क्रीन फीचर अब भी है, हम तो रोज ही उपयोग करते हैं।
Mahfooz Ali जो चीज़ पैदा होती है तो मरती भी है
Vivek Rastogi Mahfooz Ali पर सबकी अपनी लाइफ होती है, कोई लंबे समय तक जिंदा रहता है, कोई बहुत कम समय के लिये।

pesto.tech जो 15 लाख से 60 लाख तक सैलेरी दिलवाने में मदद कर रहे हैं।

pesto.tech एक भारतीय स्टार्टअप है जो कि भारत के युवाओं को 15 लाख से 60 लाख रूपयों तक सैलेरी दिलवाने में मदद कर रहे हैं, अमेरिका को हमेशा ही सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की भारी जरूरत है, परंतु वहाँ जाकर काम करने में वीजा एक बड़ी समस्या है। इसका एक हल यह भी था कि अमेरिका की कंपनियों में भारतीय इंजीनियर भारत से ही काम करें और तकनीकी रूप से समस्या को हल करें। मेरे दिमाग में भी यही बात थी क्योंकि एक पड़ौसी हैं जो कि यहीं बैंगलोर से अमेरिका की सॉफ्टवेयर कंपनी में रिमोट एम्पलायी हैं और लगभग उनकी सैलेरी $5000 या $6000 है, जो कि भारतीय रूपयों में लगभग हर माह 3 लाख से 4.5 लाख रूपयों के बीच होती है, सालाना लगभग 36 से 51 लाख रूपये होती है।वे पहले अमेरिका में उसी कंपनी में काम करती थीं और कंपनी को उनके ऊपर भरोसा था, इसलिये उस कंपनी की वे एकमात्र रिमोट एम्पलॉयी हैं, परंतु उनको भी पता है कि उनको भारत में आधी से भी कम सैलेरी मिल रही है, पर वे खुश हैं, क्योंकि उनको घर से ही काम करना है, उनके लिये कोई भी ऑफिस बैंगलोर में नहीं है। हो सकता है कि इस तरह के और भी कर्मचारी बैंगलोर में हों जो कि रिमोटली काम करते हों।

पर यह सॉल्यूशन नहीं है, यह केवल उन लोगों के लिये ही सुविधा है जो कि पहले से ही अमेरीकी कंपनियों में काम कर चुके हैं और कंपनियों को उन कर्मचारियों पर भरोसा है। भारत में बहुत से इंजीनियर ऐसे हैं जो बहुत अच्छा काम तो कर सकते हैं, और अगर उनके पास अमेरीकी वीजा हो तो उनको एकदम अमेरिका में जॉब भी मिल जाये, परंतु वीजा ही सबसे बड़ी समस्या है, अमेरिका में अभी 50 लाख सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की कमी है और 2020 तक यह नंबर 1.4 करोड़ हो जायेगा। अमेरिका में इंजीनियर की सैलेरी लगभग $80,000 से $1,00,000 होती है।

इस समस्या का हल निकाला आयुष और एन्ड्रू ने उन्होंने देखा कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास अच्छे कोडिंग स्किल्स हों वो रिमोटली ही लगभग $150 हर घंटे के कमा सकता है, परंतु इस तरह के काम मिलना रोज संभव नहीं होता है, तो उन्होंने कंपनियों से बात की कि हम आपको भारत से स्किल्ड रिसोर्स देंगे आप उसे सीधे काम दे देना और अमेरिकी मॉडल के हिसाब से सैलेरी दे देना, कई अमेरिकी कंपनियों को यह बात जँची और उन्होंने हाँ कर दी। तो बस एक नया स्टार्टअप pesto.tech अस्तित्व में आ गया।

अब आयुष और एन्ड्रू के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि कंप्यूटर इंजीनियरिंग की डिग्री वाले बहुत से इंजीनियर तो उपलब्ध हैं, परंतु उनको कोडिंग करना ही नहीं आती थी, वे केवल डिग्रीधारी इंजीनियर थे, तो उन्होंने पेस्टो कंपनी बनाई, जहाँ 3 महीने का कोर्स डिजाईन किया, जिसमें JavaScript, ES6, HTML5, CSS3, JSON, Network, Protocols, Browsers, Node, Express, Mongo, APIs, Testing, Deployment Services, Production, Ethical Concerns of Software Production and Engineering, Tech Soft Skills की ट्रेनिंग देते हैं। इस कोर्स के दौरान इंजीनियर को दिल्ली में ही रहना होता है और 24 घंटे में कभी भी काम करना पड़ता है, क्योंकि आप अमेरीकी कंपनी के लिये काम कर रहे होते हैं तो उनके समय के हिसाब से भी आपको अपना काम करने का समय निकालना होता है। इस दौरान वे अमेरिकी कल्चर भी सिखाते हैं, जिससे आपको अपने अमेरिकी एम्पलॉयर के साथ काम करने में ज्यादा परेशानी न हो।

यह भी इतना आसान नहीं है, पहले आपको उनका Open Source Curriculam करना होता है और आपको Computer Science के बेसिक फंडामेंटल पता होने चाहिये। आपकी इंगलिश अच्छी होनी चाहिये। एक बार 3 महीने की ट्रेनिंग हो गई तो उसके बाद pesto.tech आपको अपने Hiring Partners के साथ सीधे काम करने का मौका देते हैं, सीधे कंपनी आपको रिमोट एम्पलॉयी ले लेती है।

यहाँ तक सब फ्री है, जब आप जॉब करने लगते हैं तो आपको 5 वर्ष के लिये कॉन्ट्रेक्ट साईन करना होता है और 36 महीने की सैलेरी में से हर महीने pesto.tech 17% हिस्सा फीस के रूप में लेते हैं। यह फीस भी वे तभी लेते हैं अगर कमाई 15 लाख रूपयों से ज्यादा हो और उनकी फीस की अधिकतम सीमा है 20 लाख रूपये, याने कि किसी भी इंजीनियर से वे 20 लाख रूपयों से ज्याादा फीस के रूप में नहीं लेंगे। अभी तक उनके यहाँ की औसत सैलेरी 31 लाख रूपये है और अधिकतम 60 लाख रूपये सैलेरी है।

जरूरी नहीं है कि आपके पास Computer Science में इंजीनियरिंग डिग्री ही हो, आपके पास कोई भी डिग्री हो या न हो, अगर आपके कोडिंग स्किल्स अच्छे हैं तो भी आप इस कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं। 

पेट्या या नोटपेट्या एक रहस्य (Mystery of Petya or NOTPetya)

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने पिछले मंगलवार को हुए पेट्या रैनसमवेयर के हमले को वाइपर का हमला बताया है। यह वायरस पेट्या रैनसमवेयर Petya Ransomware जैसा लगता है, परंतु दरअसल यह वाइपर है, वाइपर मतलब कि वाइप कर देने वाला नोटपेट्या NOTPetya या उड़ा देने वाला।

जब पेट्या रैनसमवेयर का हमला होना शुरू हुआ और बहुत सारे देशों में कंप्यूटर बंद होना शुरू हुए। उस समय साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने यह नहीं सोचा था कि यह नये तरीके का मेलवेयर है, जो की रेन्सम नहीं मानता बल्कि कंप्यूटर का पूरा डाटा हमेशा के लिए खत्म कर देता है, मतलब की डाटा को करप्ट कर देता है।

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि शोधकर्ताओं ने कहा है जो भी वायरस मंगलवार को आया वह रैनसमवेयर था ही नहीं, दरअसल इसका मुख्य उद्देश्य हार्डडिस्क को और जितने भी कंप्यूटर उस नेटवर्क पर हैं उन सबको संक्रमित करना था। एक बार कोई भी कंप्यूटर वाइपर मैलवेयर से संक्रमित हो गया तो उसे करप्ट होने से कोई नहीं बचा सकता था।

कास्पेरेस्की के विशेषज्ञों ने बताया है कि यह जो नया वाइरस आया है पेट्या रैनसमवेयर के अपने सारे पुराने वर्जन से बिल्कुल अलग है।

अभी तक इस वायरस को कोई नया नाम नहीं दिया गया है इसीलिए इसे नॉटपेट्या भी कहा जा रहा है। यह हमला बहुत ही सुनियोजित तरीके से किया गया था, वाइपर जिसे कि नॉटपेट्या भी कहा जा रहा है, उसका खुद का कोई इंस्टॉलेशन ID नहीं है मतलब कि जब कोई भी वायरस या सॉफ्टवेयर कहीं पर भी संस्थापित होता है तो अपनी कोई पहचान जरूर पीछे छोड़ देता है। पर यहाँ पर सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस वायरस से होने वाले एंक्रिप्शन का डिक्रिप्शन नहीं हो पा रहा है।

साफ शब्दों में अगर कहा जाए तो इसका सार यह है कि जो भी इस वायरस का शिकार हुआ है उनका डाटा रिकवर नहीं किया जा सकता है। सन 2016 के लेटेस्ट वर्जन में इंस्टालेशन ID में रिकवरी की Recovery Key के लिए जरूरी जानकारी रहती थी। परंतु मंगलवार को हुए हमले के वायरस में इस तरह की जो इंस्टालेशन key मिली है उसका कोई लिंक नहीं है।

एसोसिएटेड प्रेस का कहना है कि यह जो साइबर आक्रमण हुआ है, उसका मुख्य मकसद पूरे विश्व को आर्थिक तौर पर नुकसान पहुँचाना है। वाइपर मैलवेयर का उपयोग रशिया और उसके पड़ोसी यूक्रेन पर किया गया था और इसके पहले हुए आक्रमण में जो कि वानाक्राई था, वह रैनसमवेयर था जिसमें वह पैसे उगाहते थे।

इस नए मैलवेयर के आक्रमण से यह तो साफ हो गया कि इस बार का निशाना यूक्रेन के व्यापारी, यूक्रेन का व्यापार, और यूक्रेन की सरकार थी। किसी भी वायरस में रैनसमवेयर का मेन कंपोनेंट स्मोक स्क्रीन होता है।

इस वायरस से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है और उस नुकसान का अनुमान अभी भी लगाया जा रहा है। कुछ ATM वापस से शुरू हो चुके हैं और कुछ बैंकों ने अपना कार्य सीमित रूप में करना शुरू किया है। जो नुकसान लगाया गया है वह करोड़ों रुपए का नहीं, बल्कि अरबों रुपए का है। यह नुकसान केवल यूक्रेन का लगाया गया है। माइक्रोसॉफ्ट के अनुसार लगभग 64 देशों में इस मैलवेयर ने आक्रमण किया है जिसमें रशिया, जर्मनी और अमेरिका भी शामिल है। आने वाले दिनों में हम मैलवेयर वायरस, रैनसमवेयर वायरस और नए तरह के वायरस के द्वारा आक्रमण होने की पूरी संभावना है।

https://mykalptaru.com/petya-ransomware-attack/

https://mykalptaru.com/risk-from-cyber-crime/

अनलिमिटेड डाटा मोबाइल और ब्रॉडबैंड पर (Fair usages Policy)

आज इंटरनेट हमारे लिए जीवन की बहुत ही महत्वपूर्ण चीज हो गई है, और इंटरनेट का उपयोग करने के लिए मोबाइल डाटा या ब्रॉडबैंड महत्वपूर्ण है। इंटरनेट के इस युग में हमारे अधिकतर उपकरण इंटरनेट से जुड़ गए हैं, लेकिन केवल इंटरनेट से जुड़ना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि साथ ही इंटरनेट की रफ्तार भी अच्छी होनी चाहिये। अगर आपका डाटा प्लान एक या 2 GB, 4जी डाटा 1 दिन का देता है, तब आप दिन के आखिर में अनुभव करेंगे कि आपके इंटरनेट की रफ्तार बहुत कम हो चुकी होगी । वह इसलिए नहीं कि आपके उपकरण थक गए हैं बल्कि इसलिए क्योंकि हर डाटा यूसेज के पिछले फेयर यूजर्स पॉलिसी (Fair Usages Policy) होती है।

फेयर यूजेस पॉलिसी (Fair Usages Policy) क्या होती है?

इंटरनेट सेवा प्रदाता या अगर मोबाइल इंटरनेट का उपयोग करते हैं तो फिर टेलीकॉम कंपनी, जो भी इंटरनेट डेटा आप उपयोग में ला रहे हैं, उसकी खपत को रिकॉर्ड करते हैं कि आपने कितना डाटा अभी तक उपयोग कर लिया है। कई बार आपको यह मैसेज भी आ जाता है कि आप अपनी यूजेस लिमिट को खत्म करने वाले हैं। अधिकतर प्रीपेड मोबाइल यूजर्स जब भी अपनी लिमिट को क्रॉस करने वाले होते हैं, तो या तो इंटरनेट सर्विसेज बंद हो जाती है या फिर अतिरिक्त शुल्क देना होते हैं।

Fair usages policy
Fair usages policy

फिर भी कई कंपनियाँ अपने डाटा प्लान में अनलिमिटेड इंटरनेट उपयोग का दावा करते हैं, लेकिन आपको पता होना चाहिए अनलिमिटेड डाटा में भी एक लिमिट होती है। केवल आप उतना ही डेटा उपयोग कर सकते हैं और यह लिमिट इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी कभी भी बताती नहीं है परंतु एक बार जब आप अपनी लिमिट की बैंडविड्थ को क्रॉस कर देते हैं तो इंटरनेट की रफ्तार बहुत धीमी हो जाती है। जैसे कि हमारे पास एक 5 एमबीपीएस बैंडविड्थ का एक प्लान है आज इसका की फेयर यूजर्स लिमिट 20 जीबी 1 महीने की है आपकी डाउनलोड कि डाटा स्पीड 1 एमबीपीएस हो जाएगी जब आप 20 GB डेटा का उपयोग कर लेंगे। यह 1 एमबीपीएस की रफ्तार और भी कम हो सकती है, यह आपके डाटा प्लान पर निर्भर करती है और यह इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी के फेयर यूजेस पॉलिसी पर निर्भर करती है। इसके पीछे इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी यह कारण भी देते हैं कि अगर आपको उतनी ही बैंडविड्थ दी जाती रही तो अन्य उपयोगकर्ताओं के अनुभव अच्छे नहीं होंगे क्योंकि उन्हें कम रफ्तार मिलेगी और आप अपना डाटा लिमिट खत्म कर चुके हैं।

क्या फर्क पड़ता है?

इंटरनेट का उपयोग और अधिक डेट डाटा की जरूरत भारत में एकदम से बढ़ गई है, मोबाइल ट्रॉफिक 2016 में 2015 की अपेक्षा 29 प्रतिशत बढ़ गया है। यह Nokia की भारत मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडेक्स 2017 के आंकड़े हैं। यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि पहले डाटा पर लोड 128 पेटा बाइट था वह अब 165 पेटा बाईट हो गया है। पेटा बाइट्स मतलब एक पेटाबाइट में 1024 टेराबाइट होते हैं और एक टेराबाइट में 1024 गीगाबाइट डाटा होता है यानी कि गीगा बाईट मतलब कि GB टेराबाइट मतलब कि TB और पेटाबाईट मतलब PB।

अगर आप ऑनलाइन कोई भी लाइव टेलीकास्ट देखना चाहते हैं वह भी हाई डेफिनेशन पर जैसे की YouTube या किसी और वीडियो ऑन डिमांड प्लेटफॉर्म पर तो आपको रोज का कम से कम एक जीबी डाटा अच्छी बैंडविड्थ के साथ चाहिए तो इस तरह के उपयोगकर्ता भारत में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।

आपको क्या करना चाहिए?

अगर आपका डेटा का उपयोग बहुत ज्यादा है तो आपको सबसे पहले अपने इंटरनेट सेवा प्रदाता की फेयर यूजेस पॉलिसी जान लेना चाहिए। अगर आपका उपयोग फेयर यूजेस पॉलिसी से ज्यादा होता है, तो आप को हर महीने अपने डेटा का उपयोग जो भी आप कर रहे हैं उसके ऊपर ध्यान रखना चाहिए। अपने डेटा के उपयोग की जानकारी अपने इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी के एप्लीकेशन से कर सकते हैं आजकल सभी कंपनियां अपने ऐप देती हैं जिसके ऊपर रियल टाइम डाटा यूजेस पता चलते रहते हैं अगर आप अपनी लिमिट से ज्यादा डेटा का उपयोग करते हैं तो आप अपने इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी से बार्गेन करिए और उनसे ज्यादा डाटा की मांग करिए वह भी कम पैसे में । अगर वह नहीं देते हैं तो फिर आप किसी ओर इंटरनेट सेवा सेवा प्रदाता कंपनी को ढूँढिए, क्योंकि बहुत सारे ब्रॉडबैंड प्लान ऐसे भी हैं जहां पर कोई लिमिट नहीं है।

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अच्छी नींद का कारोबार

कौन कितना दौलतमंद है, ताकतमंद है, इसे जानने के लिए उसकी नींद पर गौर करें। आजकल नींद का कारोबार प्रगति पर है और तरह तरह के शोध और प्रयोग हो रहे हैं।

क्या कभी ऐसा भी हो सकता है कोई आवाज़ लगाता हुआ आये, नींद ले लो नींद, इतने रुपए किलो नींद ले लो। तो क्या आप कभी नींद खरीद पाएंगे। या बाजार जाएं और बाजार से अपने लिए कुछ घंटों की आरामदायक नींद खरीद कर ला पाएं। हो सकता है कि तकनीक के कारण भविष्य में यह भी संभव हो।

इस बारे में बहुत शोध हुए हैं जिसमें नींद को केंद्र में रखा गया है, और पता लगाने की कोशिश की गई कि नींद गहरी आने के लिए या कितने समय सोना चाहिए, उसके लिए किन तत्वों का ध्यान रखना चाहिए। लेकिन शोध भी तभी काम आते हैं जब हम उनके बताए गए रास्तों को बहुत ही गंभीरता से अपने जीवन में उतारें।

नींद ना आने के कारण सबसे बड़ी समस्या होती है हमारा दिन, हमारी दिनचर्या पूरी तरह से हमारी नींद पर निर्भर करती है क्योंकि नींद ना आने से हम हमेशा ही कहीं ना कहीं नींद के नशे में कुछ प्रतिशत हमेशा रहते हैं। जिससे हम हमारे दिमाग को पूर्णतया अपने किसी काम में नहीं लगा पाते हैं, और हम कई बार कुछ चाहे-अनचाहे गलतियाँ कर ही देते हैं।

vividus mattress

केवल नींद लेना ही महत्वपूर्ण नहीं है। अच्छी नींद लेना महत्वपूर्ण है।अच्छी नींद के लिए अपने दिमाग को शांत रखना जरूरी है। नींद के लिए जो वातावरण चाहिए वह जरूरी है, जिसमें बिस्तर की गर्मी, सिर के नीचे लगाने वाला तकिया, ओढ़ने के लिए चादर और आप क्या पहन कर सो रहे हैं, इन सब की भी बहुत अहम भूमिका है। हमें समय से सोने के अलावा, हमारी नींद भी गहरी हो अच्छी हो, इस पर भी ध्यान देना चाहिए। अभी स्वीडिश ब्रांड होस्टन ने विविड्स नाम का 96 लाख रुपए का गद्दा बनाया है। जिसे वह कहते हैं कि यह सही तरह से नींद पूरी करने के लिए बनाया गया है, जिसके अंदर कोई भी गर्म करने वाली रबर या प्लास्टिक मटेरियल का उपयोग नहीं किया गया है और वह गद्दा केवल ऑर्डर पर बनाते हैं। कंपनी इस गद्दे को विश्व का सबसे बेहतरीन बिस्तर बता रही है।

 

Dreem Hedset
Dreem Hedset

आजकल ऐसी बहुत सी मशीनें आ रही हैं जो आपकी नींद को रिकॉर्ड करती है, जो बैंड आप हाथ में पहन लेते हैं या फिर कई ऐप है जो स्मार्टफोन में उपलब्ध हैं, जिससे पता चलता है कि आप किस प्रकार की नींद ले रहे हैं। लेकिन यह सारे गेजेट्स नींद अच्छी बनाने में सहायक नहीं हैं। अभी सिलिकॉन वैली में एक गैजेट डिजाइन हुआ है जो कि लगभग $400 में प्री ऑर्डर पर उपलब्ध है और उनका दावा है कि ड्रीम हेडसेट लगाने से आप बहुत गहरी नींद में सो पायेंगे। वैसे कई लोगों का मानना है कि सिल्क के तकिए के कवर हैं तो उससे नींद बहुत अच्छी आती है।

यह कहना वाकई बड़ा मुश्किल है कि नींद का गणित क्या है? नींद के कारोबार में हमें किस चीज का ध्यान रखना चाहिए? क्या हमें बराबर थकान होनी चाहिए या फिर हमें हमारे विचारों के ऊपर नियंत्रण करना चाहिए या जो हम पहनकर सोते हैं, ओढ़ते हैं बिछाते हैं, उनमें बदलाव किया जाना चाहिए। यह शायद बेहद निजी और गोपनीय अनुभव होते हैं और सब के लिए अलग अलग अनुभव होते हैं।

मोर्निग सोशल नेटवर्किये

मोर्निग सोशल नेटवर्किये सुबह उठे और सोच रहे थे कि आज कुछ पुराने लेख जो क्रेडिट कार्ड और डेरिवेटिव पर लिख रहा था उन्हें पूरा लिख दूँगा, परंतु सुबह उठकर हमने मोबाईल हाथ में क्या ले लिया जुलम हो गया, फेसबुक और ट्विटर तो अपने अपडेट हमेशा ही करते रहते हैं, किस किस ने क्या क्या लिखा है और उनके मन में क्या विचार थे। दिल कह रहा था कि क्या टाईम पास लगा रखा है, अपना काम करो, परंतु मन जो था वो अपनी रफ्तार से भागता जा रहा था और कह रहा था नहीं पहले दूसरे के विचार पढ़ो और उनके स्टेटस पर अपनी टिप्पणी सटाओ। फिर दिनभर तो तुम्हें समय मिलने वाला है नहीं, रात को 9 बजे तो मुँह फटने लगता है। हम भी मन के बहकावे में आ गये और आज पूरी सुबह मोर्निग सोशल नेटवर्किये हो गये।

Morning Social Networker
Morning Social Networker

आजकल फेसबुक और ट्विटर पता नहीं कौन से वीडियो फार्मेट में दिखाते हैं कि नेट की रफ्तार कम हो या ज्यादा पर वीडियो अपने आप ही चलने लगता है। और अब वीडियो भी इस तरह के ही बनने लगे हैं कि आपको आवाज सुनने की जरूरत ही न पड़े, कुछ लोग या तो अपने एक्शन से ही समझा देते हैं या फिर वीडियो में टाइटल लगा देते हैं। अब बिना आवाज के वीडियो  भी देखा जाना मुझे वैसा ही जबरदस्त चमत्कार लगता है जैसा कि बिना आवाज के टीवी देखते थे कि किसी को पता नहीं चले हम टीवी देख रहे हैं, बस समस्या यह होती थी कि टीवी में रोशनी ज्यादा होती थी तो पूरे कमरे में अंधेरे में फिलिम जैसी दिखती थी और रोशनी कम ज्यादा होने से हमेशा ही पकड़े जाने की आशंका बनी रहती थी। पर मोबाइल में यह सुविधा आने से यह समस्या लगभग खत्म सी हो गई है।

अपना मोर्निग सोशल नेटवर्किये होने का भी एक कारण है कि अपने को सुबह ही समय मिल पाता है, बाकी दिनभर जीवन के दंद फंद चलते रहते हैं और हम उनमें ही उलझे रहते हैं। कई बार फेसबुक या ट्विटर पर कुछ अच्छे शेयर पढ़ने को मिल जाता है जो हमारी विचारधारा को बदल देता है, हमेशा ही निगाहें कुछ न कुछ ऐसा ढ़ूँढती रहती हैं कि पढ़ने पर या देखने पर कुछ ज्ञान बढ़े तो आत्मा को शांति भी मिल जाये। मोर्निग सोशल नेटवर्किये होने का एक और फायदा है कि हम विभिन्न विचारधारा के व्यक्तियों से जुड़े होते हैं और उनके विचारों में कई अच्छे तो कई बुरे होते हैं, उन विचारों के मंथन के लिये दिनभर हमें मिल जाता है।

मोर्निग सोशल नेटवर्किये होने का एक मुख्य नुकसान है कि हम हमारी तय की गई गतिविधि से भटक जाते हैं और हम कुछ और ही कर लेते हैं बाद में पछताते हैं कि हमने अपना बहुत सारा समय व्यर्थ ही गँवा दिया, काश कि हम मन पर थोड़ा संयम रख लेते तो हम अपने उस समय का अच्छा उपयोग कर लेते परंतु हम शायद ही मन से कभी जीत पायें, मन हमेशा ही दिल की बातों पर भारी होता है और हमेशा ही जीतता है।

प्रकृति के बीच Real Togetherness कैसे ढ़ूँढ़ें

हम आधुनिक युग में इतने रम गये हैं कि आपस के रिश्तों में इतनी दूरियाँ हो गई हैं जो हमें पता ही नहीं चलती हैं, Real Togetherness हम भूल चुके हैं, जब हम आपस में समय बिताते थे,प्रकृति के अनूठे वातावारण में एक दूसरे के साथ घूमने जाते थे, खेलते थे और जीवन को सही मायने में जीते थे Continue reading प्रकृति के बीच Real Togetherness कैसे ढ़ूँढ़ें

सोशल नेटवर्किंग के युग में टूटती आपसी वर्जनाएँ

आज का युग तकनीक की दृष्टि से बेहद अहम है, हम बहुत सी तरह की सामाजिक तानेबाने वाली वेबसाईट से जुड़े होते हैं और अपने सामाजिक क्षैत्र को, उसके आवरण को मजबूत करने की कोशिश में लगे होते हैं। हम सोशल नेटवर्किंग को बिल्कुल भी निजता से जोड़कर नहीं देखते हैं, अगर हम किसी से केवल एक बार ही मिले होते हैं तो हम देख सकते हैं कि थोड़े ही समय बाद उनकी फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट हमारे पास आयी होती है या फिर हम खुद से ही भेज देते हैं। जबकि हम अपनी निजी जिंदगी में किसी को भी इतनी जल्दी दाखिल नहीं होने देते हैं, किसी का अपनी निजी जिंदगी या विचार में हस्तक्षेप करना हम बहुत बुरा मानते हैं और शायद यही एक कारण है कि जब तक हम किसी को जाँच परख नहीं लेते हैं तब तक हम उससे मित्रता नहीं करते हैं। Continue reading सोशल नेटवर्किंग के युग में टूटती आपसी वर्जनाएँ