Category Archives: विश्लेषण

शौचालय नारी गरिमा के अनुरूप हों (Hygienic Toilets for Women and Family)

    भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, जहाँ पर हम अधिकतर हमारे वेद पुराणों में लिखी बातों का अध्ययन कर उन पर विश्वास कर बंद आँखों से अनुगमन करते हैं, पर जहाँ हमारी सामाजिक आलस्यपन की बात आती है वहाँ ये सब बातें गौण हो जाती हैं । हम वहाँ पर किसी न किसी कारण को प्रमुख बनाकर हालात से भागने की कोशिश करते हैं, जैसे कि भारतीय संस्कृति में कहा जाता है नारी सर्वत्र पूज्यते, परंतु घर और बाहर दोनों जगह हम जानते हैं कि नारी के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।
    शौच और शौचालय भारत की प्राथमिक समस्याओं में से एक हैं, घर में चूल्हा करने के लिये रसोईघर जरूर होगा, किंतु अन्न पचाने के बाद अवशिष्टों को निकालने के लिये घर में शौचालय नहीं मिलते हैं, मूलत: यह समस्या गाँवों में बहुत ज्यादा है, परंतु शहरों में भी कम नहीं है। शौच करने के लिये नारी को एक सुरक्षित और साफ स्थान चाहिये होता है, जहाँ वह गरिमा के साथ शौच जा सके । आजकल समाचार पत्रों में इस तरह की कई खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि खुले में शौच करने कई युवती से अशोभनीय हरकत की गई, और यह समस्या खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड में बहुत ज्यादा है।
    जिस तरह पुरुष घर में नारी को पर्दे में रखना चाहता है, उसी तरह से क्यों नहीं नारी की गरिमा के अनुरूप घर में शौचालय बनवाने में कतराता है, शौचालय बनवाने के फायदे ज्यादा हैं और नुक्सान तो हालांकि है ही नहीं। शौचालय घर में होने से नारी गरिमा बची रहेगी, घर की शौचालय खुद ही साफ करने से तरह तरह के संक्रामक और डायरिया जैसे भयानक रोगों से बचाव होगा। इन रोगों के होने से भारत में दो लाख से भी ज्यादा 5 वर्ष से छोटे बच्चों का मौत हर वर्ष होती है, इन संक्रामक रोगों और बीमारियों पर भी पानी की तरह पैसा बहाना पड़ता है, तो बेहतर है कि खुले में शौच से होने वाले संक्रमण से बचाव के लिये वह पैसा शौचालय बनाने में खर्च किया जाये।
    शौचालय बनाते समय ध्यान रखें कि शौचालय पानी के स्त्रोत जैसे नदी, तालाब या कुएँ से कम से कम 20 मीटर दूर हों, जिससे शौच के अवशिष्ट जल से पीने के पानी दूषित न हो, जितनी बीमारियाँ खुले में शौच जाने पर होती हैं, उससे भी खतरनाक बीमारियाँ अवशिष्ट जल के पीने के पानी के दूषित होने पर होती हैं, शौचालय के अवशिष्ट को अगर सही तरह से उपयोग किया जाये तो इन अवशिष्टों से खाद बनाई जा सकती है, शौच के अवशिष्ट को खाद बनाने की प्रक्रिया में एक वर्ष तक का समय लगता है, जिससे हम इस प्राकृतिक खाद का उपयोग कृषि कार्यों में कर सकते हैं, यह खाद आजकल बाजार में आ रही रासायनिक खादों से बहुत अच्छी है।
    शौचालय बनवाना हमारे सामाजिक उन्नति और चेतना का भी परिचायक है, इससे न केवल नारी गरिमा को ठेस लगने से रोका जा सकेगा अपितु घर में शौचालय राष्ट्र के स्वच्छता के लिये भी एक बड़ा योगदान होगा।
    डोमेक्म ने महाराष्ट्र और उड़ीसा के गाँवों को खुले में शौच के लिये कदम उठाया है, और इसमें आप भी योगदान कर सकते हैं, आपके एक क्लिक से डोमेक्स 5 रू. का योगदान देगा, डोमेक्स की साईट पर जाकर “Contribute Tab” पर क्लिक करके ज्यादा से ज्यादा योगदान करवाने में मदद करें ।
    You can bring about the change in the lives of millions of kids, thereby showing your support for the Domex Initiative. All you need to do is “click” on the “Contribute Tab” on www.domex.in and Domex will contribute Rs.5 on your behalf to eradicate open defecation, thereby helping kids like Babli live a dignified life.

स्वस्थ बच्चा ही खुशियों से भरा घर बना सकता है (A healthy child makes a happy home!)

    मुझे मेरा बचपन की बहुत सारी चीजें याद नहीं, पर मम्मी और पापा मेरा बहुत ही ख्याल रखते थे, शायद दुनिया में कोई ऐसे माता पिता होंगे जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते होंगे, टमाटर खाओगे तो खून बढ़ेगा, गाजर भी सेहत के लिये अच्छी होती है, आँवले से आँखों की रोशनी तेज होती है, आँवले की अच्छी बात यह है कि किसी भी तरह से खाओ, उसके गुण कम नहीं होते, और जीभ पर आँवले का मीठा स्वाद हमेशा ही अच्छा लगता है। रोज एक काली मिर्च खाने से कभी बीमारी नहीं घेरती, यह एक घरेलू उपाय है, जो कभी दादी माँ का नुस्खा था।
 
    खाने पीने में हम हमेशा मस्त रहे और हरेक सब्जी और फल खाते रहे, वैसे ही हमने अपने बेटेलाल को आदत डाली है, जिससे रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे और हमेशा रोगों से दूर बने रहें, हमारे बेटेलाल खाने के बहुत आलसी हैं, केवल मूड होता है तो खाते हैं नहीं तो कुछ नहीं खाते, अभी पिछले महीने ही तकरीबन 15 दिनों तक ढंग से खाना नहीं खाया तो मौसमी वाईरल ने पकड़ लिया, जिससे हम सभी लोग 13 दिन तक परेशान रहे, क्योंकि अगर घर में बच्चा बीमार है तो कुछ भी ठीक नहीं लगता है, बच्चा खेलता रहे, स्वस्थ रहे तो पूरा घर खुश रहता है।
    जैसे हमें पापाजी ने च्यवनप्राश खाने की आदत डाली थी, हमारे बेटेलाल पहले च्यवनप्राश नहीं खाते थे परंतु जब धीरे धीरे रोज मुझे और पापाजी को खाते देखते तो उत्सुकतावश रोज ही थोड़ा थोड़ा खा लेते थे, अब हमारे बेटेलाल ने च्यवनप्राश को अपनी रोज की दिनचर्यो में शुमार कर लिया है, रोज सुबह च्यवनप्राश की एक चम्मच और रात को सोने के पहले हल्दी वाले दूध के साथ एक चम्मच खाते हैं।
    हमने 1-2 आयुर्वेदिक चीजें और शुरू कर दी जो कि स्वास्थ्य के लिये बहुत ही लाभदायक है, रोज सुबह शाम तुलसी का अर्क 10 एम.एल. एक गिलास पानी में मिलाकर पी जाते हैं, और रोज सुबह उठते ही एक चम्मच शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बादाम, मिश्री और सौंफ को पीसकर बनाया गया चूर्ण चबा चबा कर खाते हैं । इस मिश्रण के खाने से दिमाग को ताकत मिलती है और दिनभर ऊर्जा बनी रहती है, तुलसी के अर्क से तुलसी की प्रतिरोधक क्षमता मिल जाती है, आजकल फ्लेट सिस्टम में तुलसी प्रचुर मात्रा में तो होती नहीं कि रोज सुबह शाम 2 4 पत्ती तोड़कर खा लीं, इसलिये हमें तो तुलसी के अर्क बहुत अच्छा लगा।
    पहले कभी ऐसे ही हमने सोचा था कि च्यवनप्राश घर पर बनाकर खायेंगे पर फिर हमने कभी भी च्यवनप्राश बनाने की मेहनत को देखकर कभी भी बनाने की चेष्टा नहीं करी। बाजार से जाकर च्यवनप्राश खा लेते थे, वही हमें आज भी ठीक लगता है, बेटेलाल को जमकर सलाद और फल  खिलाते हैं और खुद भी खाते हैं, जिससे शरीर में प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता बरकरार रहे। और घर में बेटेलाला केवल मस्तियाँ करते नजर आयें, हमेशा उनके हँसने खिलखिलाने की आवाज आये।
       यह पोस्ट इंडीब्लॉगर्स के हैप्पी अवर्स के लिये लिखी गई है, च्यवनप्राश के प्रतिरोधक क्षमता के बारे में यहाँ से ज्यादा जानकारी ले सकते हैं – https://www.liveveda.com/daburchyawanprash/.

बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है (Are you the victim of Insurance or Financial Product Misselling)

     बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है, नहीं तो कई बार बीमानियामक और बीमा लोकापाल भी आपकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं ।

    एक ईमानदार सरकारी अधिकारी के बारे में बात करते हैं, लगभग 4 वर्ष पूर्व वे सेवानिवृत्त हुए ही थे और उन्हें लगभग 40 लाख रूपये निवेश करने थे, वे बहुत ही ईमानदार थे तो उनके पास इन रूपयों के अलावा और कुछ भी नहीं था, उनके निवेश करने के लक्ष्य साफ थे पहला नियमित आय और तीन वर्ष बाद उनकी बेटी की शादी के खर्च के लिये रकम चाहिये थी। एक निजी बैंक के बहुत ही अच्छे पॉलिसी बेचने वाले अधिकारी ने उन्हें यूनिट लिंक्ड बीमा प्लॉन याने कि यूलिप जिसमें कि इक्विटी का हिस्सा ज्यादा था, खरीदने के लिये प्रेरित किया और बैंक अधिकारी ने बताया कि यह बहुत ही सुरक्षित और बेहतरीन निवेश होगा, इससे आपकी जिंदगी बिल्कुल ही बदल जायेगी ।
  
    तीन वर्ष होने पर निवेशक ने पाया कि उनका निवेश केवल 29 लाख रूपये रह गया है, जिसमें कि पहले तीन वर्षों में उनके यूलिप में से अच्छे खासे शुल्क बीमा कंपनी और बैंक ने वसूल कर लिये थे, और अगर वे उस पॉलिसी को सरेंडर करते तो केवल 14 लाख रूपये मिलते । उन सज्जन को लगा कि मेरे साथ धोखा हुआ है और बस ह्रदयाघात नहीं हुआ । और उन्होंने बैंक और बीमा कंपनियों को शिकायत करना शुरू की, परंतु बैंक और बीमा कंपनियाँ से उन्हें कोई जबाव नहीं मिला।
    आखिरकार उन्होंने बीमा लोकापाल के पास शिकायत करने के निश्चय किया और जब बीमा लोकापाल के पास उन्होंने शिकायत की तो प्रथमदृष्टया ही साबित हो गया कि यूलिप इन सज्जन को गलत तरीके से बेचा गया है और यह मिससेलिंग का केस है। पर मिससेलिंग को सिद्ध कैसे किया जाये ?  सौभाग्यवश उन सज्जन के पास यूलिप खरीदने के दौरान बताये गये सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज जो कि बैंक और बीमा कंपनियों ने उन्हें दिया थे वे मौजूद थे, जिसमें कि उन्होंने दर्शाया हुआ था कि किस प्रकार से उनके निवेश को पंख लग जायेंगे और आने वाले समय में उनका निवेश सुरक्षित तरीके से बहुत ज्यादा हो जायेगा।
    और इन कैलकुलेशन और दस्तावेज के कारण बीमा कंपनी को उन सज्जन को पूरे पैसे लौटाने पड़े, पर ऐसे भाग्यशाली लोग कितने होंगे जो ये सारे कागज जिनको मिलते होंगे और वे सँभाल कर रखते भी होंगे, वैसे तो जो भी लोग मिससेलिंग करते हैं या इस तरह की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं वे इस तरह के सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज निवेशक के हाथों आने ही नहीं देते हैं, वे कोई सबूत छोड़ते नहीं हैं ।
ध्यान रखने योग्य बातें –
    जब भी कोई बीमा या वित्तीय उत्पाद खरीदें, हमेशा कैलकुलेशन और दस्तावेज अपनी मास्टर फाईल में सँभाल कर रखें, जिससे अगर बेचा गया उत्पाद आगे अच्छा नहीं करे तो ये कैलकुलेशन और दस्तावेज आपके मददगार साबित हों ।

अश्विन सांघी एवं जेम्स पीटरसन कृत – प्राईवेट इंडिया ( Private India – Book Review)

    अश्विन सांघी की एक किताब हमने पहले पढ़ी थी, उसका नाम था चाणक्य चांट, चाणक्य चांट को अश्विन ने बड़े ही रोमांचकारी तरीके से लिखा था, तभी हमने सोचा था कि अब अश्विन सांघी का अगली किताब प्राईवेटइंडिया आने वाली थी, जरूर पढ़ेंगे। हम किताब का ऑर्डर करने ही वाले थे कि ब्लॉगअड्डा का बुक रिव्यू प्रोग्राम का एक ईमेल आ गया, जिसमें प्राईवेट इंडिया किताब ब्लॉगअड्डा की तरफ से भेजा जा रहा था और हमें प्राईवेट इंडिया का रिव्यू लिखने के लिये कहा गया था । किताब तो बहुत पहले ही मिल गई थी, अच्छी बात य़ह थी कि किताब पर लेखक अश्विन सांघी के हस्ताक्षर थे। बस हमें पढ़ने के समय नही मिल पाया, कभी निजी तो कभी व्यावसायिक कार्यों में व्यस्त ही रहे। पर आखिरकार हमने 447 पेज का यह रोमांचकारी उपन्यास कल पूरा पढ़ लिया।
    फ्रंटपेज जबरदस्त आकर्षण वाला बनाया गया है, जिसमें मुंबई की प्रसिद्ध जगहों को दर्शाया गया है, और काला कोट पहने, नीचे सफेद बनियान पहने व्यक्ति दौड़ता हुआ दर्शाया गया है, जिससे पता चलता है कि व्यक्ति बदहवास भाग रहा है और मुंबई में किसी सनसनीखेज वारदात के बारे में इंगित करता है। फ्रंटपेज का रंग संयोजन भी इस किताब को आकर्षक बनाता है और बड़े अक्षरों में किताब का नाम लिखा होना उसके विषय को ज्यादा गहराई से दर्शाता है।
 
    जिस तरह से पुलिस पर माफिया की पकड़ दिखाई गई है, जिस तरह माफिया व पुलिस के काम करने का तरीका दर्शाया गया है, वह अप्रितम है, पर इसका अंधकारमय पक्ष यह है कि इसमें कई जगह उपन्यास में कहानी की पकड़ खत्म होती दिखती है, कब कहाँ कैसे क्या घटित हो रहा है, वह पता ही नहीं चलता है, पर फिर भी कहानी के कुछ आगे बढ़ने पर घटनाओं के बारे में अंदाजा लगता है, लिखने का तरीका जबरदस्त है, कुछ जगहों पर तो जानकारियों का भंडार भी मिल जाता है।
किताब में बीच बीच में कई रहस्यों को गढ़ने की कोशिश की गई है, कई जगह रोचकता और साहस के शब्दों से उपन्यास को और भी पठनीय बनाने की कोशिश की गई है, पर बीच बीच में फ्लेशबैक वाली कहानी पाठक को उपन्यास से दूर ले जाती है, फिर भी अधिकतर उपन्यास अंतिम पंक्ति तक रोचक बना रहता है, पाठक की लेखन शैली जबरदस्त है और कभी कभी अंग्रेजी के उपन्यास पढ़ने के बावजूद मुझे पढ़ने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई, कुछ नये शब्द और जानकारी ने मेरे ज्ञान को बढ़ाया।

आगे आने वाले उपन्यासों को पढ़ने की जिज्ञासा बनी रहेगी ।
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बोझ खींचने वाला मानव ज्यादा मूल्यवान लगता है

    पहाड़गंज या पुरानी दिल्ली में पार्किंग की जगह ढ़ूंढना बेहद दुष्कर कार्य की श्रेणी में आता है, यह दिल्ली का एक ऐसा क्षैत्र है जहाँ जाकर एक एक इंच की कीमत पता चलती है, यहाँ सड़क का वह इंच सार्वजनिक हो या निजी पर जगह कोई खाली नहीं है, खैर हमें अब इन सबसे जूझते हुए लगभग 3 महीने हो चुके हैं तो अब इतनी तकलीफ नहीं होती है, पार्किंग कैसे और कहाँ करनी है यह बखूबी आ गया है।
    सदर जाना हमेशा हमारे एजेन्डे में होता है । 3 टूटी, 6 टूटी, 12 टूटी और सदर बाजार पता नहीं क्यों इतना अच्छा लगता है, वहाँ की गलियों में भटकना अच्छा लगता है, जो भाषा, चेहरे और व्यवहार वहाँ देखने को मिलता है वह मन मोह लेने वाला होता है। यह अलग बात है कि आप पहाड़गंज से सदर बाजार तक
पैदल भी जा सकते हैं पर चरमराये हुए यातायात में यह भी संभव नहीं है, मजबूरन केवल एक ही रास्ता बचता है वह है या तो रिक्शा लो या फिर बैटरी वाला रिक्शा। जाते समय हमें कभी बैटरी वाला रिक्शा नहीं मिलता क्योंकि पुलिस उन्हें परेशान करती है।
    हमें मानवचलित रिक्शे पर बैठना होता है, मानवचलित रिक्शे पर बैठकर हर बार अपराधबोध होता है, हम आज भी इस युग में ढोने की प्रथा के साक्षी हैं और सबसे खराब बात कि उसका उपयोग कर रहे हैं, पर फिर रिक्शे को चलाने वाले मानव को देखकर यह शर्म कहीं चली जाती है, क्योंकि अगर हम अगर उसके रिक्शे में नहीं बैठेंगे तो वह ढोने वाला मानव क्या खायेगा और अपने परिवार का कैसे ख्याल रखेगा, पता नहीं जीवन की किन परिस्थितियों से लड़ाई लड़ रहा है, हम कहीं न कहीं उसके जीवन की लड़ाई में सहयोगी होना चाहते हैं, और इन मानवों में खास बात यह है कि ये ज्यादा फालतू के पैसे नहीं लेंगे, क्योंकि इन्हें पता है कि कोई भी उन्हें दुत्कार सकते हैं या फिर ज्यादा पैसे माँगने की उनकी हैसियत नहीं समझते हैं। लोग इनके बँधे बँधाये पैसों में भी मोलभाव करने लगते हैं तो ठीक नहीं लगता है, उस समय मुझे बैठने वाले व्यक्ति से ज्याद वह बोझ खींचने वाला मानव ज्यादा मूल्यवान लगता है।
    हमने एक आदत अपनी रखी हुई है कि जो भी बोझा खींचता है, या कोई ऐसा कार्य करते हैं जो कि पढ़े लिखे लोगों की मानसिकता में हेय की श्रेणी में आते हैं, हम वहाँ कभी मोलभाव नहीं करते हैं, क्योंकि इन लोगों में लूट की भावना न के बराबर होती है और छल कपट आजकल कहाँ नहीं है, तो इनके बीच भी कुछ लोग ऐसे हैं परंतु उनका प्रतिशत बहुत ही कम होती है, कम प्रतिशत वालों के छल कपट के कारण बड़े अनुपात के लोगों का साथ न देने को मन नहीं मानता है, और हम हमेशा ही उनकी मदद को तत्पर होते हैं, क्योंक बोलने में कहीं कोई झूठ नहीं, जो मन की बात होती है वे कह देते हैं, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि सामने वाला कितना बड़ा आदमी है, वे तो सबको सर्वधर्म भाव से सेवा देते हैं, बस यही सोचकर मैं अपने आप में और साथवालों में कभी आपराधिक बोध नहीं आने देता हूँ।
    मन में यह भी आता है कि जैसे हम मानसिक बोझा ढ़ोते हैं वैसे ही ये लोग शारीरिक श्रम कर रहे हैं, तो जो जिस बात में सक्षम है वह वही कर पायेगा, जैसे हमें भी बोझा उठाते हुए बरसों हो गये हैं, वैसे ही उन्हें भी बरसों हो गये हैं। जैसे हमें बोझा उठाते हुए पता नहीं चलता है, थकान नहीं होती है, बस अपना काम करते जाते हैं, हाँ बस किसी दूसरे को हमें देखकर ऐसा लगता है कि यह कितना काम करता है, तो वह भी अपनी एक मानसिक अवस्था होती है। वैसे ही उन मानवचलित रिक्शों या समाज के सबसे अच्छे कार्य करने वालों को भी इसी चीज का अनुभव होता होगा।
    ब्लॉग पोस्ट में और भी बहुत कुछ लिखना चाहता था, परंतु एक मानवीय स्वभाव कहीं भीतर से उमड़कर भावों की प्रधानता में शब्दों के रूप में बह गया, बाजार के चरित्र और वहाँ के स्वभाव के बारे में जल्दी ही बात करेंगे ।

इसे आशा नहीं निराशा होना चाहिए (Wrong Treatment of Typhoid)

    हमारे बेटेलाल बहुत दिनों से बीमार थे हमने कई डॉक्टरों को दिखाया जिसमे एक डॉक्टर के क्लीनिक का नाम आशा मल्टीस्पेशिलिटी था उन्होंने सीधे ही टाइफाइड बताकर स्लाईन चढ़ा दीं और हमें कहा कि आपके बेटेलाल को टाइफाइड है जब ब्लड कल्चर और बाकी के टेस्ट करवाए तो प्राथमिक रूप से पता चला की टाईफाई नेगेटिव है फिर हमने कहा गया कि आप मलेरिया की दवाई शुरु करिए हमने उन्हें मना कर दिया हमने कहा जब रिपोर्ट में कुछ आया ही नहीं है, मलेरिया की निगेटिव है तो फिर हम क्यों मलेरिया की दवाई शुरु करें हमने यह पहला डॉक्टर देखा जो कि खुद ही फोन करके हमें रिपोर्ट के बारे में बता रहा था
 
    पर डॉक्टर हमें कहते रहे की टाइफाइड के लक्षण हैं हमने सोचा डाक्टर अपने व्यवसाय में पूर्णत: निष्पक्ष होता है और भगवान समान होता है तो हमने कोई प्रश्न नहीं किया और उनका अंधानुरण किया लेकिन एक दिन शाम को चार बजे डॉक्टर का फोन आया कि ब्लड कल्चर की फाइनल रिपोर्ट आ गई है और उसमें टाइफाइड पॉजिटिव आया है तो आप एकदम अभी से बेटेलाल को अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए क्यूंकि बहुत ही सीवियर इंफेक्शन आया है।
 
    हम घबराए हुए ऑफिस से घर आए और बीच में से रिपोर्ट कलेक्ट करते हुए आए उस रिपोर्ट को हमने आपने कुछ डॉक्टर मित्रों  को whatsapp किया और
उनसे पूछा कि क्या वाकई टाइफाइड पॉजिटिव है तो हमारे सारे मित्रोँ ने कहा ब्लड कल्चर की फाइनल रिपोर्ट में
 टाइफाइड का नामोनिशान नहीं है केवल वायरल इंफेक्शन हे तो कहीं किसी अस्पताल में भर्ती करवाने की जरुरत नहीं है बेटेलाल को जो खाने की इच्छा हो वो खिलाओ और उनका ध्यान रखो आशा मल्टीस्पेशलिटी क्लीनिक के बाद हमने एक तीसरे डॉक्टर को भी दिखाया जो कि हमें बहुत अच्छे लगे उन्होंने हमें कहा कि केवल एंटीबायोटिक्स चालू रखें बाकी सब ठीक है और इन रिपोर्ट को तो कचरे के डब्बे में डाल दें कुछ डॉक्टरों ने हमारे प्रोफेशन को बदनाम करके रखा हे उनमें से यह एक डॉक्टर है आगे से इस तरह के डॉक्टर से बच्चों को और अपने को दूर रखें
    अब हमारे बेटेलाल बिल्कुल ठीक हैं आज से फिर से  स्कूल जाना शुरु किया है अबहुत ही अच्छा महसूस कर रहे हैं उनके शरीर का तापमान भी साधारण है जो कि पिछले 12 दिन 103 रहा अब हमें भी थोड़ी राहत महसूस हुई है बस एक ही सवाल मन में है कि कोई भी प्रोफेशनल केवल पैसों के लिए क्या अपने ग्राहकों को धोखा दे सकता है और ऐसे लोगों की दुकान कितने दिन चला सकती है ।

भारत में गरीब और अमीरों के लिये कानून की सजा अलग अलग क्यों है ? (Why difference

    आज सुबह ही कहीं पढ़ रहा था कि न्यूजीलैंड के धुरंधर क्रिकेटर क्रिस कैनर्स जब से मैच फिक्सिंग के मामले में फँसे हैं तो उनकी आर्थिक हालात खराब है और उनका सामाजिक रूतबा भी अब सितारों वाला नहीं रहा, आजकल क्रिस ट्रक चलाकर और बस अड्डों को साफ करके अपनी आजीविका चला रहे हैं और वैसा ही मामला अगर भारत में देखा जाये तो दो सितारे खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे, अब उनमें से एक सांसद हैं और दूसरे क्रिकेट मैचों की कमेंट्री करते हैं, उन्हें ना आर्थिक नुक्सान हुआ और न ही उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मिट्टी में मिली, जबकि क्रिस और भारत के उन दो खिलाड़ियों का अपराध एक ही था ।
     अभी हाल ही में कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सेना से कहा है कि आपने लगभग 50 अफसरों को आर्मी कोटे की पिस्तौल को बाजार में बेचने पर केवल रू. 500 का जुर्माना लगाया है, तो हम उस गरीब आदमी को क्या जबाब दें तो केवल रू. 10 चुराने के लिये जेल की हवा खाता है, और जुर्म साबित होने के बाद सजा भी भुगतता है, क्या सेना के अफसरों का जुर्म ज्यादा संगीन नहीं है, और सजा बहुत ही मामूली नहीं है ?
    दो बड़े जुर्म मुझे यह याद दिलाते हैं कि जुर्म राजनीति के प्रश्रय में ही होता है और दोनों का आपस में भाईचारा है, दोनों एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते हैं, अगर इन दोनों में से कोई एक परेशान होता है तो वे जनता के सामने ही आपस में सहयोग करते हैं, और हमारे भारत की बेचारी जनता केवल इसलिये देखती रहती है क्योंकि उनके पास देखने के अलावा और कोई चारा नहीं है, कानून व्यवस्था को पालन कराने वाले लोग भी इन लोगों के साथ काम करते हुए देखे जा सकते हैं, चारों और कानून टूट रहे हैं, और इसमें सभी की मिलीभगत है ।
    पहला – उज्जैन के महाविद्यालय में म.प्र. पर शासन करने वाले राजनैतिक दल की छात्र इकाई के कुछ लोग एक प्रोफेसर की हत्या कर देते हैं, और बहुत हो हल्ला मचता है, वैसे तो प्रशासन कुछ करने में रूचि नहीं रख रहा था, पर जब राष्ट्रीय स्तर के मुख्य धारा के मीडिया हाऊसों ने चिल्लाना शुरू किया तो शासन ने कड़ाई बरतते हुए दिखावे का ढ़ोंग किया और सबको 2-3 वर्ष तक जेल के अंदर रखा और बाहर गवाहों ओर सबूतों को कमजोर किया जाता रहा और आखिरकार वे संदेह के लाभ में बरी हो गये, दीगर बात यह है कि इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री इन सबसे मिलने जेल गये, आज इनमें से कई सरकारी सहायता प्राप्त महकमों मे उच्च पदों पर आसीन हैं, जो कि उनकी छबि के अनुरूप तो कतई नहीं है।
     दूसरा – कुछ लड़के मिलकर एक पहलवान टाईप दादा की हत्या कर देते हैं, और सब फरार हो जाते हैं, सारे लड़के अभिजात्य वर्ग के परिवारों से हैं और उन सबके परिवार में उनके पिता एक राजनैतिक दल से सारोकार रखते हैं, पास के एक गाँव से दो बस भरकर इन लड़कों को और इनको परिवार को सबक सिखाने के लिये आते हैं और ये गाँव वाले इतने सभ्य कि पड़ौसियों को कुछ भी नहीं कहा, बस उन हत्यारे लड़कों को पीटने और मारने के उद्देश्य से आये थे, और उनके घर में घुसकर घर का सामान बाहर फेंक देते हैं, और पड़ोसियों के पूछने पर कहते हैं कि अगर हमने ये आज नहीं किया तो फिर इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा, क्योंकि शासन, पुलिस सब इनकी जेब में है, ये लड़के ही आगे चलकर हमारे नेता बन जायेंगे, तो उन सारे लड़कों मे जनता के डर के मारे खुद को पुलिस के हवाले कर दिया, और वे सब 1-2 साल में बरी हो गये, सारे लड़के आज राजनेता हैं, कोई भी प्रशासन संबंधित कार्य करवाना हो, ये लोग चुटकी में काम करवाने वाले सफेदपोश दलाल हो गये हैं।
    यहाँ बस हारा तो केवल कानून, मैं जानता हूँ कि ऐसे कई किस्से हैं और मैं लिखना भी चाहता हूँ, पर लिखने का भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि कानून अपने दायरे में रहकर काम करता है और ये लोग बिना दायरे के । कब ये कानून अमीरों और गरीबों के लिये एक होगा, इसके लिये राजनैतिक इच्छशक्ति की दरकार है, पर ये राजनेता ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि इनकी असली ताकत तो कानून तोड़ना और तोड़ने वालों से ही है।

माँ के संस्कार के एक छोटे संवाद का जब मैं साक्षी बना (Sanskar in Child by Mother)

    कल भी बेटेलाल की तबियत में कोई खास फर्कनहीं पड़ा, आज सातवां दिन है जब लगातार 103 बुखार आ रहा था, सारे टेस्ट नेगेटिव थे, पर डॉक्टर ने अपने अनुभव के आधार पर टायफाईड का ईलाज शुरू कर दिया, विडाल और ब्लड कल्चर टेस्ट कल करवाये हैं जिससे क्या बीमारी है इसकी पुष्टि हो जायेगी। हमने भी इस बारे में ज्यादा विरोध नहीं किया, क्योंकि जो जिस बात का विशेषज्ञ होता है, तो उसे उसका काम करने देना चाहिये, ये हमारा दृढ़ विश्वास कहिये या फिर बेबकूफाना हरकत, पर हम अपनी जगह कायम है, ये टेस्ट वगैरह की सुविधा तो अब उपलब्ध है, पहले के जमाने में भी तो टायफाईड से निपटा जाता था, केवल विश्वास के भरोसे ही तो मरीज डॉक्टर के पास जाते थे, और हम भी विश्वास के भरोसे ही जाते हैं, भले ही दुनिया में चीजें बदल गयी हैं पर जरूरी चीज विश्वास है, उस पर आज भी सब यकीन करते हैं, नहीं तो दुनिया में कोई भी कार्य न हों।

     जब डॉक्टर ने कहा कि अभी दो बोतल चढ़ा देते हैं और इंजेक्शन लगा देते हैं, तो हमने कहा जैसा आपको उचित लगे करिये बस हमारे बेटेलाल को ठीक कर दीजिये, हाथ से टेस्ट करने के लिये खून निकाला गया, तो बेटेलाल ने बहुत नाटक किये, कि सुईं लगेगी, दर्द होगा, पर उसे मनाया गया और बताया कि चींटी काटने जितना भी दर्द नहीं होगा, और बेटेलाल ने आराम से खून निकलवा लिया।

     डॉक्टर मैडम ने बहुत ही प्यार से बेटेलाल से बात की, तो हमारे बेटेलाल आ गये बिल्कुल लाड़ में और अच्छे से बात करने लगे, शायद यह भी डॉक्टरी शिक्षा का एक अहम हिस्सा होता होगा, जिसमें मरीज की मनोस्थिती को अपने अनुकूल बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता होगा, जिससे मरीज उनसे खुलकर बतिया सके।
     डॉक्टर अब तक कम से कम 4-5 बार हमारे बेटेलाल से चॉकलेट खाने के बारे में पूछ चुकी थीं, और हमारे बेटेलाल उन्हें बारबार मना कर रहे थे, आखिरकार डॉक्टर ने चॉकलेट बेटेलाल को दे दी तो बेटेलाल ने चॉकलेट लौटाते हुए कहा कि मुझे नहीं चाहिये, पर डॉक्टर ने कहा कि कोई बात नहीं चॉकलेट अपने पास रख लो और बाद में खा लेना, पर फिर भी बेटेलाल ने कहा कि नहीं चाहिये, शायद इस बात का डॉक्टर को बुरा जरूर लगा होगा, मैं अपने ऊपर लेकर यह बात सोचता हूँ तो शायद मुझे भी लगता या फिर अगर इस मनोस्थिती से प्रशिक्षण मिलता या अनुभव के आधार पर बुरा भी नहीं लगता।
 
जब उस प्रोसीजर रूम से डॉक्टर बाहर चली गईं तो माँ बेटे के संवाद शुरू हुआ –
 
 माँ – बेटा ऐसे डॉक्टर को चॉकलेट के लिये मना क्यों किया ?
 बेटेलाल – मुझे नहीं खानी थी, इसलिये मैंने मना कर दिया !!
 माँ – पर, सोचो कि उन्हें कितना बुरा लगा होगा ?
 बेटेलाल – (कुछ सोचते हुए) नहीं लगा होगा
माँ – नहीं बेटे, ऐसे किसी को भी सीधे मना करोगे, तो उसे बुरा नहीं लगेगा ??
 बेटेलाल – पर मुझे अभी चॉकलेट नहीं खानी, तो मैं क्यों जबरदस्ती ले लूँ
 माँ – आप डॉक्टर से चॉकलेट ले लेते, उनको थैंक्स फॉर चॉकलेट कहते, और चॉकलेट अपने पास रख लेते तो उनको कितना अच्छा लगता, आपने सीधे मना किया तो उन्हें कितना बुरा लगा होगा, कोई भी आपको ऐसे सीधे मना करता है तो आपको भी तो बुरा लगता है, तो अब आगे से हमेशा ध्यान रखना |
 बेटेलाल – ठीक है मम्मी अब मैं ध्यान रखूँगा |
    मैं पीछे खड़े होकर माँ बेटे का संवाद सुन रहा था, सोच रहा था कि यही छोटे छोटे पाठ कहीं न कहीं जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं, जिन्हें हम संस्कार कहते हैं, आज मैं भी सुईं के साथ जाते हुए संस्कार को देख रहा था।

पुराने टर्म इन्श्योरेन्स v/s नये ऑनलाईन टर्म इन्श्योरेन्स (Old Term Insurance Vs New Online Term Insurance)

    अपनी एक टर्म इन्श्योरेन्स (Term Insurance) पॉलिसी के बारे में देख रहा था, तो सोचा कि आजकल बहुत सारे ऑनलाईन प्लॉन उपलब्ध हैं, तो नई सुविधाओं वाले प्लॉन देखें जायें और पुराने टर्म प्लॉन को बंद कर नयी सुविधाओं वाला टर्म प्लॉन खरीदा जाये। जब भी हम कोई भी बीमा पॉलिसी लेते हैं, तो सारी जानकारी लेने के बाद ही लेते हैं कि यह प्लॉन सबसे अच्छा हमें लग रहा है क्योंकि सबकी जरूरतें भी अलग अलग होती हैं। हर दो तीन वर्ष में बाजार में उपलब्ध नये बीमा उत्पाद जरूर देख लेने चाहिये। और अगर नये उत्पाद पुराने से बेहतर हैं तो पुराने को बंद कर नये बीमा उत्पाद को ले सकते हैं, टर्म इन्श्योरेन्स लेने का सबसे बड़ा फायदा यही है, अगर पारम्परिक प्लॉन लेते हैं तो आप सपने में भी उन बीमा पॉलिसियों को बंद करने की नहीं सोच सकते हैं, क्योंकि वे बीमा आपने अपने परिवार की सुरक्षा के लिये नहीं लिये होते हैं, वे बीमा तो आपने केवल निवेश के उद्देश्य से लिये होते हैं।
 
    अब हमारे पास HDFC Life का Term Assurance नाम का एक प्लॉन है, जिसे हमने HDFC बैंक से लिया था, और हम खुद से ही यह प्लॉन पसंद करके गये थे क्योंकि उस समय HDFC Life के ऑनलाईन बीमा उत्पाद नहीं थे, हाँ यहाँ बैंक के एजेन्ट ने एक चतुराई कर दी कि ऑटो डेबिट फैसिलिटी के बक्से (option) पर टिक कर दिया, जिसे शायद हमने उतने गौर से नहीं देखा, क्योंकि पहली किश्त तो ऐसे भी चैक से ही जाती है, अब इस बार जब ईमेल आया तो हमने गौर किया, पिछले दो वर्षों से तो हमें इस समय साँस लेने की फुरसत भी नहीं होती थी, तो हमने तुरंत फोन लगाया कि इस ऑटो डेबिट सुविधा को बंद किया जाये, तो हमें कहा गया कि आप [email protected] पर ईमेल करिये तो आपको सुविधा मिल जायेगी, हमने ईमेल किया कि De-register of Auto Debit Facility for Policy No. XXXXXX. हमें जबाब आया कि  If kindly submit/send the De-activation request/letter 15 days prior to the Premium Due date at any nearest HDFC Life branch or you may confirm us the same in revert so that we can also process your request. साथ ही एक नोट भी आया जिस पर हमारा ध्यान ज्यादा आकर्षित हुआ Note: As per the product features if the direct debit facility is active, you will avail a discount on the base premium amount of 10%.
 
    इसका मतलब साफ साफ यह था का इस सुविधा के साथ हमें 10% का प्रीमियम में छूट भी मिल रही थी। सो सोचा अब कुछ हो नहीं सकता इस वर्ष यही बीमा योजना चलने देते हैं, अब अप्रैल में देखेंगे, क्योंकि अगर हम अभी यह वाली पॉलिसी निरस्त करवाते और नई पॉलिसी लेते हैं तो हम परिवार को जोखिम में डाल देते, कि अगर मान लो कि नई पॉलिसी किसी कारण से हमें नहीं मिली और पुरानी वाली हमने बंद करवा दी और पीछे कुछ हो गया तो अपनी सारी फाइनेंशियल प्लॉनिंग धरी का धरी रह जायेगी।
 
    हमने तीन प्लॉन पसंद किये थे जिसमें से दो प्लॉन HDFC Life के हैं
  1. HDFC Protect Plus – Monthly Income
  2. HDFC Protect Plus – 10% increasing Monthly
    Income
तीसरा प्लॉन MAX LIFE ONLINE TERM LIFE COVER + 10% INCREASING MONTHLY INCOME MAX LIFE ONLINE TERM LIFE की प्रीमियम HDFC Protect Plus से कम है, MAX LIFE क्लेम सैटलमेंट के लिये अपना एक एडवाईजर नॉमिनी को देती है, परंतु HDFC Life नहीं, यहाँ नॉमिनी को खुद से ही HDFC Life के Claim Settlement Department को फोन करके सारी कागजी कार्यवाही पूरी करनी होती है।
 
    Monthly Income में केवल यह फायदा है कि अगर बीमा धारक को कुछ हो गया तो एक मुश्त बीमित धन का भुगतान तो नामिनी को मिलेगा ही, परंतु इसमें अगले दस वर्ष तक हर माह .5 प्रतिशत मासिक भुगतान भी प्राप्त होगा, HDFC Life .5% और MAX LIFE .4% मासिक भुगतान करती हैं, Increased Monthly Income में हर वर्ष 10% रकम बड़ती जाती है ।
 
    उदाहरण के लिये अगर 1 करोड़ का बीमा लिया और अगर बीमित व्यक्ति को कुछ हो गया तो नामिनी को जल्दी से जल्दी 1 करोड़ रूपया मिल जायेगा और अगले दस वर्ष तक 50,000 रू. हर माह भुगतान भी मिलेगा।
 
    आज जब MAX LIFE का ऑनलाईन फॉर्म भरा तो उसी समय MAX LIFE से धड़धड़ाते हुए फोन आ गया कि आप अभी ऑनलाईन यह उत्पाद देख रहे हैं, अगर कोई जानकारी चाहिये तो बताईये, हमने कहा कि आपका क्लैम सैटलमेंट रेशो क्या है, जबाब मिला 95.56%, तो हमने पूछा कि बाकी के 4% क्लैम आपने क्यों नहीं दिये, तो वे कुछ मेडिकल गलत मिला जैसा कुछ बोलीं तो हमने कहा कि आप तो बीमा देने के पहले मेडिकल करवाते हो फिर मेडिकल गलत कैसे हो गया, अगर कोई समस्या थी तो आपको बीमा ही नहीं देना चाहिये था, आपने उसका प्रीमियम लौटा देना था पर क्लैम नहीं देना तो गलत है, उधर से फोन काट दिया गया।
 
    तो यह समस्या आम है, ध्यान रखें जब भी टर्म इन्श्योरेन्स लें तो 2-3 कंपनियों से लें, ये न सोचें कि LIC से लेना सुरक्षित है, वे भी क्लैम सैटलमेंट में ऐसे ही होते हैं, तो जहाँ प्लॉन अच्छा मिले उस कंपनी से प्लॉन ले लें ।


कुछ पुरानी संबंधित पोस्टें – 














झगड़ा न करना डर नहीं, समझदारी है (Don’t Fight, its understanding not fear)

    कल ऑफिस जाते समय एक लाल बत्ती पर हम रुके हुए थे, बगल में थोड़ी जगह खाली थी, और उसके बाद फिर एक कार खड़ी हुई थी, हम आराम से सुबह सुबह के उल्लासित जीवन का दर्शन कर रहे थे, कई सारे लोग आज भी सुबह पूजा करते हैं और उसके बाद तिलक लगाकर ही घर से निकलते हैं, लाल, पीला, सफेद रंग के तिलक अमूमन देखने को मिलते हैं, किसी के माथे पर गोल तो किसी के माथे पर लंबा टीका लगा हुआ दिखता है, तिलक या टीका कौन सी ऊँगली से लगाया जाये, इसके ऊपर कुछ दिनों पहले पढ़ रहा था, तो उसमें हर उँगली का अलग अलग महत्व बताया गया था, जैसे कि मध्यमा से तिलक लगाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं, और अनामिका से तिलक लगाने पर शत्रुओं का नाश होता है, शायद यह ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास रहा हो, परंतु अब लोग इन सब विषयों में रूचि नहीं लेते हैं तो इस तरह से यह ज्ञान भी लुप्त होता जायेगा।
महिला चालक
 
    सुबह ऑफिस जाते समय कुछ लोग हर्षित प्रफुल्लित रहते हैं, और कुछ लोग तनाव में, तनाव भले ही फिर कल के अधूरे काम को हो या फिर ऑफिस देरी से जाने का, पर कुछ लोग तनाव में ही जीने लगते हैं, लाल बत्ती पर भी ऐसे लोगों को हार्न बजाते हुए देखा जा सकता है, हार्न बजाने की स्टाईल भी अलग अलग होती हैं, उससे भी कई बार उनके तनाव का स्तर पता चलता है, जो हार्न को देर तक एक साथ दबाकर रखे और फिर बार बार हार्न को दबाकर छोड़े निश्चित ही उसके तनाव का स्तर बहुत ही ज्यादा है, और मैं समझता हूँ ऐसे तनावग्रस्त व्यक्ति को ऑफिस की बजाय घर वापिस चला जाना चाहिये।
    
    
    कुछ लोग हमेशा ही मोबाईल पर बात करते हुए दिखते हैं, पता नहीं कितनी बातें करते हैं इनकी बातें ही कभी खत्म नहीं होतीं हैं, कार चलाते वक्त भी एक हाथ में स्टेरिंग रहेगा और एक हाथ में मोबाईल और जब गियर बदलना होता है तो मोबाईल को कान और कंधों के बीच दबा लेते हैं, ऐसा लगता है जैसे कि उनकी गर्दन को किसी ने जोर से दबाकर कंधे से लगा दिया हो, मैंने अधिकतर ही कार चलाते हुए स्त्रियों को मोबाईल का उपयोग करते हुए देखा है, और कार की तेज रफ्तार को पाने के लिये बेचारे एक्सीलेटर को बेरहमी से कुचलते हुए भी…
लाल बत्ती पर सोचता हुआ व्यक्ति
    ओह बात जहाँ से शुरू हुई वह तो पूरी हुई ही नहीं, उस खाली जगह में एक मैडम जी अपनी बिल्कुल नई चमचमाती हुई गाड़ी घुसाने की असफल सी कोशिश में लगी हुईं थीं, उनके स्टेरिंग को सँभालने के तरीके से ही पता चल रहा था कि अभी नई नई चालक हैं और कुछ भी कर सकती हैं, हम अपने बैकमिरर से उनकी नाकाम कोशिश देख ही रहे थे, हम उन्हें चाहकर भी जगह नहीं दे सकते थे क्योंकि हमारी गाड़ी भी फँसी हुई खड़ी थी और कोई आगे करने की गुँजाईश भी नहीं थी, तभी बगल से आवाज आई तो देखा कि उन मैडम ने हमारी खड़ी कार में आगे आने के चक्कर में खरोंचे मार दी हैं, जो कि हमको साईज मिरर से दिख रहा था, और वो मैडम अब अपनी चालक सीट पर से उचक उचक कर हमारी कार पर आई खरोंच देखने की कोशिश कर रही थीं, हम अपने दिमाग को शांत करने की पूरी कोशिश कर रहे थे, गुस्सा तो बहुत जोर का आ रहा था परंतु सोचा कि गुस्सा करके हासिल क्या होगा, और हम अपनी सीट बेल्ट को हथकढ़ी मानकर जकड़कर बैठ गये।
    
    दरअसल हमारे एक पारिवारिक मित्र हैं, जो कि आगरा में रहते हैं और वे डॉक्टर दंपत्ति हैं, अभी हाल ही में जब हम आगरा गये थे तब उनसे मिलने जाना हुआ, अपने व्यस्त जीवन से कुछ समय उन्होंने हमारे लिये निकाला, और खूब बातें हुईं, तब उनकी यह नसीहत हमें बहुत अच्छी लगी कि कार में कोई टक्कर मार जाये तो भी चुपचाप बैठे रहो, क्योंकि हमें पता नहीं कि दूसरा किस मूड में हो और क्या आदमी है, पता चला कि मारपीट में अपना ही नुक्सान हो गया, चलो सामने वाले से कोई मारपीट न हो, झगडा ही हो गया तो अपने दस मिनिट भी खराब हुए और पता चला कि अपना रक्तचाप भी बढ़ गया तो वही अपना नुक्सान हो गया, यह डर नहीं समझदारी है ।