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सुबह ही हाइवे पर जाम, बांके बिहारी जी और निधि वन के दर्शन.. (Darshan of Banke Bihari ji, Vrindavan)

    २९ तारीख का कार्यक्रम पहले से ही तय था, वृन्दावन, मथुरा और आगरा और आगरा से मालवा एक्सप्रेस से उज्जैन। सुबह ५ बजे ही टैक्सी को बुला लिया गया था और तय किया गया था कि भोर ठंडे ठंडे वृन्दावन पहुँच जायेंगे, क्योंकि आजकल धौलपुर का तापमान ४५ डिग्री के ऊपर ही चल रहा है और पत्थरों का क्षैत्र है इसलिये झुलसा देने वाली हवाएँ खूब चलती हैं। दोपहर को वहाँ यह हालत होती है कि जिसको जरूरत होती है वह भी बाहर नहीं निकलता है।

धौलपुर बस स्टैंडचंबल के बीहड़ चंबल बीहड़धौलपुर के जाम में

    घर से टैक्सी में बैठे और जैसे ही हाइवे पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ तो जाम लगा हुआ है, यहाँ फ़ोर लेन का काम चल रहा है मगर सरकारी गति से, वहाँ पर ड्राईवर ने किसी से पूछा जाम कब से है और कहाँ तक है, तो उत्तर मिला जाम तो पिछले २-३ घंटे से है और एक भी गाड़ी आगे नहीं जा पाई है, और जाम खुलने में कम से कम ३-४ घंटे और लग जायेंगे। ड्राईवर ने वहीं पर फ़ुर्ती से गाड़ी घुमाई और चल दिया दूसरे रास्ते की ओर, गाड़ी घुमाने के दौरान एक बाहर की गाड़ी भी वहीं जाम में फ़ँसी हुई थी, उसने पूछा कि क्या कोई और रास्ता भी है, ड्राईवर बोला कि आगरा जा रहे हैं, आना है तो पीछे हो लो, परंतु वह परिवार नहीं आया, एक कारण क्षैत्रकाल का भी हो सकता है, क्यूँकि वह चंबल क्षैत्र है जहाँ के नाम से ही बाहर के लोगों की पुँगी बजी रहती है। खैर हमारी गाड़ी कच्चे रास्तों को पार करते हुए लगभग १० मिनिट में ही हाईवे पर पहुँच गई और 80-100 की रफ़्तार से बातें करने लगी।

कच्चा रास्ता धौलपुर का ६कच्चा रास्ता धौलपुर का कच्चा रास्ता धौलपुर का १कच्चा रास्ता धौलपुर का २ कच्चा रास्ता धौलपुर का ३कच्चा रास्ता धौलपुर का ४ कच्चा रास्ता धौलपुर का ५फ़ोटो सतीश पंचम श्टाईल में

    हम सीधे वृन्दावन जा रहे थे, इसलिये न आगरा रुके और ना ही मथुरा। सुबह लगभग 8.30 बजे हम वृन्दावन पहुँच गये, सबसे पहले गये बांके बिहारी जी के मंदिर वहाँ बांके बिहारी की छटा देखते ही बनती है। वहाँ प्रसाद चढ़ाया और दर्शनों का आनंद लिया। कई महिलायें बांके बिहारी के भजन गा रही थीं, मन भावभिवोर हो उठा था, जैसे वे महिलायें नाच रही थीं और बांके बिहारी को मना रही थीं, हम भी भजन में मगन थे और सामने बांके बिहारी के दर्शन थे, बांके बिहारी इतने सुन्दर हैं कि वहाँ से जाने की कभी इच्छा ही नहीं होती। प्रसाद में छोटे कुल्लड़ में खुरचन होती है जो कि बांके बिहारी का असली प्रसाद है।

बांके बिहारी के दर्शन के बाद लस्सी के साथबांके बिहारी के दर्शन के बाद

    दर्शनों के बाद गलियों में ही चाट पकौड़ी और लस्सियों की कतार से दुकानें हैं, कहीं भी खा लीजिये स्वाद सबका एक जैसा शुद्ध खालिस देसी घी का बना हुआ। हमने एक टिक्की ली और एक फ़ुल लस्सी, ब्रजक्षैत्र के खाने का तो गजब ही आनंद है, जहाँ माखनचोर खुद रहते हों वहाँ भला स्वाद की कोई कमी होगी, और दोगुना स्वाद होगा।

    वृन्दावन में मंदिरों की कमी नहीं है, हमने २-३ मंदिरों के दर्शन और किये और फ़िर हम चल दिये निधि वन की तरफ़. जहाँ संत हरदास ने बांके बिहारी जी की प्रतिमा को प्रकट किया था । निधिवन बांके बिहारी जी का प्रगट स्थल है, जहाँ पर वृन्द (तुलसी) और कदंब      के पेड़ आज भी हैं और पूरा वन क्षैत्र है। यहाँ पर जिस स्थान पर बांके बिहारी जी प्रगट हुए थे, उस जगह पलंग और उस पर बिस्तर है, जहाँ कहा जाता है कि आज भी रासबिहारी कृष्ण राधा रानी के साथ रास करते हैं, इस बात की पुष्टि मंदिर के पुजारी ने भी की, और बताया कि रात को यहाँ कोई नहीं रुकता न पंछी ना जानवर और ना आदमी, और अगर कोई रुकता भी है तो वह अगले दिन सुबह इस स्थिती में नहीं रहता कि किसी को कुछ बता सके, वह या तो मोक्ष को प्राप्त हो जाता है या फ़िर अंधा, बहरा या गूँगा हो जाता है। आज भी उस बिस्तर पर फ़ूल बिछाये जाते हैं जो कि सुबह दबे हुए मिलते हैं, जिससे ऐसा लगता है कि कोई उस बिस्तर पर आया था। हमने जोश जोश में यहाँ का फ़ोटो खींच लिया था और वहाँ कहीं लिखा भी नहीं था कि फ़ोटो लेना मना है, तो पुजारी ने बड़े प्रेम से बोला कि भैयाजी यह फ़ोटो काट दीजिये आप ही की भलाई के लिये बोल रहा हूँ, उस पुजारी ने इतने प्रेम से बोला और बांके बिहारी से जुड़ी बात थी तो हमने फ़ट से फ़ोटो अपने मोबाईल से हटा दिया मतलब काट दिया। लगभाग सभी मंदिरों में फ़ोटोग्राफ़ी वर्जित है।

निधिवन १निधिवन २ निधिवन ३निधिवन ४ निधिवन मेंनिधिवन राजक्षैत्र   बैकुण्ड द्वार लकड़ी दरवाजा वृन्दावन के एक मंदिर में वृन्दावन की गलियों में रिक्शे पर वृन्दावन में वृन्दावन में १ वृन्दावन में २ हाईवे पर

आगे का विवरण अगली पोस्ट में, लंबी होने से बोझिल होने लगेगी..

॥ बांके बिहारी लाल की जय॥

३७ घंटे का लंबा सफ़र और अब बांके बिहारी के दर्शन

    आखिरकार ३७ घंटे का लंबा सफ़र कल सुबह खत्म हुआ और थकान तो बिल्कुल थी ही नहीं, बिल्कुल भी नहीं। शायद बहुत वर्षों बाद इतना सोये और आत्मचिंतन का समय मिला। एक तरह से इसके लिये रेल्वे की कर्नाटक एक्सप्रेस के ए.सी. २ के उस डिब्बे को भी धन्यवाद ज्ञापित होना चाहिये अगर उसके प्लग में पॉवर आती तो पूरा समय हम लेपटॉप पर ही बिता देते। अच्छा हुआ कि पॉवर नहीं थी।

    और इतने आराम के बाद भरपूर ऊर्जा का एहसास हुआ, जैसा कि आमतौर पर होता है कि हर सफ़र के बाद जिंदगी के कुछ पाठ सीखने को मिलते हैं, इस बार भी मिले। वह अब अगली किसी पोस्ट में लिखेंगे, भरपूर ऊर्जा से युक्त जब हमने अपने ट्रेन के सफ़र का अंत ग्वालियर में किया और बस स्टैंड की तरफ़ बड़े तो गर्मी के तलख मिजाज का अहसास हो गया, हालांकि उस समय सुबह के ५.३० बजे थे और गर्मी के तेवर देखते ही बन रहे थे, हम ए.सी. से निकलने के बाद पसीने में तर हो रहे थे। बस स्टैंड पहुँचते ही चंबल के लोगों की तल्खी का अंदाज दिखने लगा।

    दिल्ली जाने वाली बस में धौलपुर के लिये बैठे, बस थी एम.पी. रोडवेज की जो कि बहुत ही ज्यादा घाटॆ में चल रही है और या तो बंद होने वाली है या हो चुकी है, पूरी जानकारी नहीं है। सरकारें कोई सी भी आ जायें पर घाटे में चलने वाले उपक्रमों का हाल वही रहता है, कोई रेड इंक को बदलना ही नहीं चाहता है।

    हम भी एम.पी. रोडवेज की बस में ही चढ़ लिये पीछॆ ही राजस्थान रोडवेज की बस थी, दोनों बसों में देखते ही जमीन आसमान का अंतर पता चल रहा था, कहाँ एम.पी. की खटारा बस और कहाँ राजस्थान की ए.वन. नई दुल्हन सी चमचमाती मोटर। खैर एम.पी. का सपोर्ट करते हुए हम चढ़ लिये। और एक घंटे की जगह दो घंटे में धौलपुर पहुँच गये।

आज बांके बिहारी के दर्शन के लिये निकल रहे हैं, वृन्दावन धाम।

॥ जय बांके बिहारी लाल की ॥

दस दिन की यात्रा पर निकल रहे हैं धौलपुर (राजस्थान), वृन्दावन, मथुरा, आगरा, इंदौर और उज्जैन

    आज हम दस दिन की यात्रा पर निकल रहे हैं, और इस दौरान हम धौलपुर (राजस्थान), वृन्दावन, मथुरा, आगरा, इंदौर और उज्जैन शहर की यात्राएँ करेंगे।
    आज २६ मई को हम कर्नाटक एक्सप्रेस से ग्वालियर के लिये निकल रहे हैं और फ़िर आगे का सफ़र बस से जो कि धौलपुर का एक घंटे का है।
    वैसे तो कई बार लंबी यात्राएँ कर चुके हैं, परंतु इतनी लंबी यात्रा बहुत दिनों बाद हो रही है, देखते हैं कि क्या क्या अनुभव होते हैं, कैसे यात्री मिलते हैं।
    जिंदगी अब इस मोड़ पर है कि अब जिंदगी के कुछ अहम निर्णय भी लेना हैं।
    वृन्दावन में द्वारकाधीश (ठाकुरजी), मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के दर्शन का लाभ लेंगे और उज्जैन में तो हर मंदिर के दर्शन का लाभ लेंगे।
    इस दौरान सफ़र में पढ़ने के लिये काफ़ी समय रहेगा, वैसे तो हमने बी.एस.एन.एल. का डाटा कार्ड ब्राडबैंड लिया है, अगर सिग्नल बराबर मिलते रहे तो इस बार अधिकतम ब्लॉगों को पढ़ने की योजना है और एक किताब जो अभी हम पढ़ रहे हैं, वह भी साथ ही रहेगी।
    इस प्रकार वापसी ४ जून की सुबह भोपाल से राजधानी एक्सप्रैस से बैंगलोर के लिये होगी जो कि बैंगलोर ५ जून प्रात: पहुँचेगी।
    आशा है और उम्मीद है कि यात्रा सुखद होगी और भरपूर ताजगी छुट्टियों के दौरान मिलेगी ।
* *** जय महाकाल *** *

वन्डरला एम्य़ूजमेंट पार्क बैंगलोर याने कि मनोरंजन की फ़ुल गारंटी (Wonderla Bangalore Means Full Enjoyment)

    वन्डरला एम्यूजमेंट पार्क बैंगलोर मैसूर रोड पर बैंगलोर से लगभग ३५ किलोमीटर दूर है, और यह मैसूर हाईवे से लगभग १.७ कि.मी. अंदर है, अगर अपने वाहन से जा रहे हैं तो यहाँ पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है और बहुत ही विशाल पार्किंग है।

Wonderla Harsh  Harsh with His friend

वन्डरला एम्यूजमेंट पार्क याने कि मनोरंजन की फ़ुल गारंटी, मनोरंजन पार्क को अच्छा साफ़ सुथरा रखा गया है और लगभग ७ एकड़ क्षैत्र में बनाया गया है।

    वन्डरला का एन्ट्री टिकिट बच्चों के लिये ऊँचाई के अनुसार है, एन्ट्री टिकिट ऑनलाईन भी खरीद सकते हैं या फ़िर वहाँ जाकर लाईन में लगकर क्रेडिट कार्ड या नकद खरीद सकते हैं, दोनों की अलग अलग लाईनें हैं।

MonkeyFace WaterPlayPool

    सप्ताहांत और सार्वजनिक अवकाश वाले दिन वन्डरला का टिकिट बड़ों के लिये 680 रुपये और बच्चों के लिये 490 रुपयों का होता है। ज्यादा जानकारी वन्डरला की वेबसाईट से ली जा सकती है ।

यहाँ पर तीन प्रकार की राईड्स हैं – ड्राय राईड्स, वॉटर राईड्स और किड्स राईड्स।

    लगभग सभी ड्राय राईड्स में बैठने के लिये बहुत ही हिम्मत चाहिये होती है, क्योंकि या तो राईड्स बहुत तेजी से नीचे से ऊपर या ऊपर से नीचे आती हैं, या फ़िर थोड़ा ऊपर जाकर गोल गोल घुमाती हैं। वैसे हमने तो बहुत मजे किये सबसे अच्छा लगा मावेरिक । और रोमांच के लिये नेट वॉक है, नेट वॉक बहुत दिनों बात देखी थी इसलिये ६-७ बार वॉक कर ली, इसके पहले एन.सी.सी. में आर्मी अटैचमेन्ट केम्प में की थीं।

High Wheels Elephant ride

    वॉटर राईड्स में प्ले पूल्स, वेव पूल्स, लेजी रिवर, रेन डिस्को और बहुत सारी राईड्स हैं, कुछ फ़ैमिली राईड्स भी हैं। पानी की स्वच्छता का भरोसा वन्डरला देता है परंतु हमें उतना भरोसेमंद नहीं लगा, पानी में लोगों ने गंदगी फ़ैलायी हुई थी, अत: पानी को मुँह में न जाने दें और कोशिश करें कि अपना सिर बचा कर रखें, ज्यादा भीग न पाये।

Elephant ride in Wonderla Ride in Wonderla

    किड्स राईड्स में जम्पिंग फ़्रॉग्स, मिनि एक्सप्रेस, मेरी घोस्ट्स, मिनि पाईरेट शिप, कोन्वॉय, फ़ंकी मंकी और भी बहुत सारी राईड्स हैं। इन राईड्स में बिल्कुल बड़ों की राईड्स जैसा ही मजा है बस इसमें बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से ऊँचाई और रफ़्तार कम है।

Kids Ride Monkey face

    सबसे बाद में हमने देखा म्यूजिकल फ़ाऊँटेन और लेजर शो, जो कि थोड़ी देर का ही है, परंतु बेहतरीन है, म्यूजिकल फ़ाऊँटेन तो बहुत जगह देखने को मिलेंगे, पर जो लेजर शो वन्डरला में है वैसा तो कहीं देखा ही नहीं।

    खाने के लिये बहुत सारे रेस्टोरेंट उपलब्ध हैं, बाहर से खाने पीने की वस्तुएँ अंदर ले जाने की मनाही है, पर फ़िर भी सबके भाव बहुत ज्यादा महँगे नहीं हैं, पर हमें खाने की गुणवत्ता ज्यादा ठीक नहीं लगी, पर अगर ज्यादा थके रहते हैं और बहुत तेज भूख लगती है तो कुछ भी खाने को मिल जाये अच्छा ही लगता है।

दिल के मरीज,  रक्तचाप के मरीजों के लिये राईड्स पर मनाही है।

    कुल मिलाकर वन्डरला मनोरंजन पार्क जाना एक बहुत ही अच्छा अनुभव रहा, बस कोशिश करॆं कि सप्ताहांत की जगह सप्ताह में किसी दिन जायें तो भीड़ कम मिलेगी और सारी राईड्स के मजे ले पायेंगे।

बेनरगट्टा राष्ट्रीय उद्यान, बैंगलोर की सैर (Banerghatta National Park)

    बेनरगट्टा राष्ट्रीय उद्यान घूमने की बहुत दिनों से इच्छा थी, फ़िर एकाएक बैंगलोर मिरर में खबर आई कि कर्नाटक के सारे राष्ट्रीय उद्यानों के प्रवेश शुल्क और सफ़ारी शुल्क १ फ़रवरी से बेइंतहां बढ़ाये जा रहे हैं, तो हमने सोचा कि चलो १ फ़रवरी के पहले ही उद्यान का भ्रमण कर आया जाये।
  बेनरगट्टा नेशनल पार्क मेरे घर से लगभग ३३ किमी है, और मैं बैंगलोर में नया नया हूँ इसलिये बस रूट्स की ज्यादा जानकारी भी नहीं थी, तो बैंगलोर महानगर परिवहन विभाग के अंतर्जाल से जानकारी ली, परंतु वहाँ पर बहुत लंबा रूट दर्शाया जा रहा था। फ़िर हमने अपने भाई की मदद ली, वह भी आजकल बैंगलोर में ही है और अभी २ सप्ताह पहले ही घूम कर आये थे।
    तो पता चला कि हम जिस रूट से जाने की सोच रहे थे वह ५५ किमी लंबा था और उन्होंने हमें ३२ किमी वाला बस रूट बताया, जिसमें हमें एक जगह बस बदलनी थी।
    सुबह लगभग सवा आठ बजे हम घर से निकल लिये, क्योंकि उद्यान का समय सुबह ९ बजे से ६ बजे तक है, हमने सोचा कि जल्दी पहुँचेंगे तो भीड़ कम मिलेगी और सुबह सुबह वैसे भी ताजगी रहती है। माराथल्ली पहुँचकर पहले सुबह का नाश्ता किया, नाश्ते में था इडली, मसाला डोसा और काफ़ी। फ़िर से वोल्वो पकड़कर पहुँचे, बीटीएम लेआऊट जहाँ से हमें बेनरगट्टा नेशनल पार्क जाने वाली बस मिलनी थी, वहाँ जब हम बस स्टॉप पर पहुँच ही रहे थे कि उस रूट की बस हमारे सामने ही निकल गई, और अब अगली बस आधा घंटे के बाद का समय था। उस समय ऐसा लग रहा था कि काश अपनी गाड़ी होती तो इतना इंतजार न करना पड़ता, परंतु जो मजा इस इंतजार में था वह अपनी गाड़ी होने पर थोड़े ही न आता।
    जब तक भ्रमण में रोमांच न हो तो यात्रा का आनंद नहीं होता है, इंतजार यात्रा के आनंद को दोगुना करता है, क्योंकि बहुत सी ऐसी चीजें और लोगों से मुलाकात होती है, जो शायद अपनी गाड़ी होने पर नहीं होती है।
     बैंगलोर में एक अच्छी बात है कि वोल्वो एसी बस में दिनभर का गोल्ड पास ८५ रुपये का बनता है जिसमें वायु वज्र जो कि अंतर्राष्टीय हवाई अड्डे की सेवा है और दैनिक बैंगलोर दर्शन बस में नहीं बैठ सकते हैं, बाकी हरेक BMTC की बस में बैठ सकते हैं। बेनरगट्टा राष्टीय उद्यान पहुँचने के लिये मेजेस्टिक बस स्टैंड से एसी वोल्वो बस 365 मिलती है, और यह सेवा लगभग हर आधा घंटे में उपलब्ध है।
    बेनरगट्टा राष्ट्रीय उद्यान पहुँचकर ऐसा लगा कि बहुत दिनों बाद साँस ले रहे हैं, इतनी शुद्ध हवा, अहा मन में ताजगी भर आई।
    सबसे पहले टिकिट खिड़की पहुँचे वहाँ वयस्क का टिकिट १६० रुपये और बच्चों का टिकिट ८५ रुपये था, जिसमें ग्रांड सफ़ारी (भालू, शेर, चीता, सफ़ेड चीता,हाथी) और चिडियाघर का शुल्क था।
    जैसे ही हम चिडियाघर में दाखिल हुए वहीं लाईन लगी हुई थी, ग्रांड सफ़ारी की, उस समय लाईन लंबी नहीं थी, क्योंकि हम जल्दी पहुँचे थे (वैसे भी जंगल में जाने का मजा सुबह ६ बजे के आसपास ही होता है, पर यहाँ सुबह ६ बजे शायद कोई नहीं होता होगा।)।
    ग्रांड सफ़ारी यात्रा शुरु हुई, पहले हाथी दिखा फ़िर चीतल, बारहसिंघा, नीलगाय इत्यादि जानवर दिखने लगे। अब बस पहुँची भालू वाले जंगल में, बहुत सारे भालू बस के पास ही बैठे हुए दिखे, काफ़ी लंबे लंबे नाखून थे। बहुत फ़ोटो खींचे गये। इसी प्रकार शेर, चीता और सफ़ेद चीते के जंगल में बस गई और बिल्कुल पास से दिखाया गया, बस के एकदम बगल में या बिल्कुल सामने, बेहद करीब।

 

 

     एक जगह तो ५-६ शेर एकसाथ बैठे थे तो लगा कि इनकी ब्लॉगरी मीट चल रही है, और वहीं एक शेर पिजरे के ऊपर चढ़ लिया था तो दूसरा शेर अपने पैर से उसकी टांग खींचकर नीचे उतारने की कोशिश कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि जंगल में भी शेर दिल्ली वाली बातों को समझने लगे हैं।
    ग्रांड सफ़ारी के बाद हम पहुँचे तितलियों के उद्यान में, जहाँ का शुल्क २५ रुपये अलग था, तितलियों के बारे में बहुत ही अच्छी और उपयोगी जानकारियाँ मिलीं। इस उद्यान में इतनी शुद्ध हवा थी कि आत्मा प्रसन्न हो गई।
    उसके बाद फ़िर चिड़ियाघर के प्रवेश द्वार पर पहुँचे और वहाँ पहले भुट्टे खाये, फ़िर चिड़ियाघर के जानवर देखे, सबसे अच्छा लगा तेंदुआ, बिल्कुल पोज बनाकर बैठा हुआ था, जैसे उसे पता हो कि आज बहुत सारे लोग उसे ही देखने आनेवाले हैं।
   वहीं पास ही क्रोकोडायल पड़ा था, मुँह खुला है तो खुला ही है, बहुत ही आलसी जानवर जान पड़ता है, परंतु जब शिकार सामने आता है तो इससे फ़ुर्तीला भी कोई नहीं है। बहुत दिनों बाद उल्लू देखे।
    हाथी की सवारी भी थी, परंतु उन हाथियों की दुरदर्शा देखकर उन पर बैठकर देखने की इच्छा ही नहीं हुई। बिल्कुल मरियल से लग रहे थे, ऐसा लग रहा था कि जंगल विभाग ने हाथी को बंधुआ मजदूर बनाकर रखा है, वह केवल कमाऊ पूत है।
    वहीं राष्ट्रीय उद्यान में एक अच्छी बात लगी कि प्लास्टिक प्रतिबंधित थी, और अगर आप प्लास्टिक पोलिथीन में चिप्स खा रहे हैं, तो वहीं कर्मी कागज के पैकेट में आपके चिप्स करके आपको दे देंगे। पर फ़िर भी आखिर हैं तो हम भारतीय ही, अंदर जगह जगह प्लास्टिक बैग्स देखकर मन खिन्न भी हुआ।
    आखिरकार हम लोग २.३० बजे दोपहर को वापिस निकल पड़े घर के लिये। दिन भर आनंद रहा, पर शेरों के शासन से वापिस अपने मानव निर्मित शासित जगह जाने में बड़ा अजीब लग रहा था।
     इसके पहले भी हम कई राष्ट्रीय उद्यान घूम चुके हैं परंतु अब तक सबसे बढ़िया हमें सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान ही लगा है।

गोराई खाड़ी स्थित पैगोड़ा की यात्रा.. (Pagoda at Gorai Creek).

    बहुत दिनों से पैगोड़ा आने की तीव्रतम इच्छा थी, परंतु बहुधा कारकों से आ नहीं पा रहे थे, पर कल हमने आखिरकार पैगोड़ा यात्रा का मन बना ही लिया। पैगोड़ा बोद्ध धर्म संबंधित स्थान है, जहाँ विपश्यना यानि कि ध्यान की शिक्षा भी दी जाती है। यह पैगोड़ा एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा पैगोड़ा है।

    यह पैगोड़ा गोराई खाड़ी में स्थित है, और बोरिवली इसका नजदीकी रेल्वे स्टेशन है। बोरिवली से बेस्ट की बस (४६१, ३०९, २२६, २९४) से सीधे गोराई आगार पहुँच सकते हैं, और वहाँ से पाँच मिनिट चलने पर गोराई खाड़ी पहुँचा जा सकता है। बोरिवली रेल्वे स्टेशन से शेयरिंग ऑटो भी उपलब्ध हैं। गोराई खाड़ी पहुँचने के बाद वहाँ फ़ेरी का टिकट ३५ रुपये प्रति व्यक्ति है, जो कि आने जाने का है।

    और अगर सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो मीरा – भईन्दर होकर एस्सेल वर्ल्ड आना होगा। जो कि थोड़ा लंबा रास्ता है। अब तो सुबह बोरिवली से एस्सेल वर्ल्ड की बेस्ट ने एक नई बस सेवा भी शुरु की है ७११ नंबर बस, जो कि सुबह ९ बजे बोरिवली स्टेशन से चलती है एस्सेल वर्ल्ड के लिये और फ़िर दिनभर वह गोराई बीच से पैगोड़ा के लिये चलती है, और शाम ७ बजे वापिस एस्सेल वर्ल्ड से बोरिवली स्टेशन आती है।

    पैगोड़ा, एस्सेल वर्ल्ड और वॉटर किंगडम तीनों आसपास हैं। हम फ़ेरी का टिकट लेने के बाद खाड़ी की ओर चल पड़े और वहाँ पर फ़ेरी की नाव चक्कर लगा रही थीं। बदबू भी आ रही थी, चारों ओर गंदगी का साम्राज्य था। पर पैगोड़ा जाने की उत्कंठा में सब भूगत रहे थे। पहली बार हमने देखा कि लोग अपनी मोटर साईकिल भी नाव में लेकर सवार हैं। नाव तक जाने में बहुत मजा आया, पहली बार हम खाड़ी के इस प्रकार के पुल पर चल रहे थे।

    इस फ़ैरी से पैगोड़ा के यात्री ही ज्यादा थे क्योंकि एस्सेल वर्ल्ड सुबह १० बजे से रात ८ बजे तक खुला रहता है, और दोपहर को जाने पर कोई पूरा नहीं घूम सकता है। पैगोड़ा पहुँचते पहुँचते मन अद्भुत तरीके शांत हो चुका था। शायद यह प्रकृति का चमत्कार है।

    पैगोड़ा में एक बड़ा हॉल बना हुआ है, जहाँ साधक विपश्यना करते हैं, मतलब साधना करते हैं ध्यान करते हैं। पर्यटकों के लिये अलग से कक्ष बनाया गया है जहाँ से वे हॉल के अंदर का दृश्य देख सकते हैं, जो कि काँच से बंद किया गया है, जिससे साधकों के ध्यान में खलल न पड़े। यहीं पर स्तंभ भी है, जैसा कि सारनाथ में है। यही पर भगवान बुद्ध की जीवनी पर एक चित्र प्रदर्शनी भी है, चित्रकार ने गजब के चित्र उकेरे हैं, क्या रंग संयोजन है।

    पैगोड़ा से बाहर निकलने के बाद हम पहुँच गये एस्सेल वर्ल्ड के प्रवेश द्वार पर, जहाँ कि टिकट खिड़की भी थी। वहाँ आकर्षित करने के लिये तरह तरह के पुतले थे जहाँ फ़ोटो खींचे।

और फ़िर वापिस फ़ैरी की ओर लौटते हुए, निकल पड़े घर की ओर..

फ़ैरी की ओर फ़ैरी की ओर दीवार पर विज्ञापन फ़ैरी के सहयात्री फ़ैरी से बाहर का एक दृश्य लौटती हुई फ़ैरी से पैगोड़ा का दृश्य

    बहुत ही अच्छा अनुभव रहा, और एक बात आज हमने बहुत दिनों बाद तादाद में केकड़े भी देखे जो कि गोराई खाड़ी में थे।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण..आगे..३ (श्रंखला पद्धति से टिकट मंगवाया गया) (Mumbai experience of Best Bus)

    आज घर से निकलने में तनिक १-२ मिनिट की देर हो गई, तो ऐसा लगा कि कहीं बस न छूट जाये, चूँकि  मुंबई की बस पीछे डिपो से बनकर चलती है, इसलिये हमेशा समय पर आती है। तो हम बिल्कुल मुंबईया तेज चाल से चलने लगे, जिससे बस मिल जाये और वाकई रोज जो दूरी हम ४ मिनिट में पूरी करते थे वह हमने लगभग ३ मिनिट में पूरी कर ली।

    बस स्टॉप से निकल चुकी थी, जैसा कि हमको अंदेशा था, परंतु हमको आता देख ड्राईवर ने आँखों से ही इशारा किया कि आगे के दरवाजे से ही चढ़ जाओ, पर हमें संकोच हुआ और हम पीछे के दरवाजे की ओर देखने लगे, तो ड्राईवर को लगा कि संकोच कर रहे हैं तो हाथों से इशारा कर बोला कि इधर से ही चढ़ जाईये।

    इतनी देर में हमें आगे से किनको चढ़ना चाहिये उसकी सूचना जो कि बस में लगी रहती है, आँखों के सामने घूम रही थी, पर फ़िर भी ड्राईवर जो कि अब हमें पहचानने लगा था क्योंकि रोज ही हम उनको नमस्ते करते थे, तो उन्होंने अपनी दोस्ती आज निभाई थी।

    फ़िर ध्यान आया कि मास्टर तो पीछे है, हमने जेब से पैसे निकाले और श्रंखला पद्धति से टिकट मंगवाया गया, तो हमें याद आया कि दिल्ली में भी डीटीसी की बस में ऐसे ही टिकट मंगवाते थे। आज हम जिस सीट के आगे खड़े थे वह थी अपंगों वाली सीट, थोड़ी देर में ही वह खाली हो गई, तो हम बैठ लिये कि अगर कोई सही उत्तराधिकारी आयेगा तो खुद ही उठ जायेंगे, आगे स्टॉप पर ही एक ज्येष्ठ सज्जन आये तो हम उठने लगे तो बोले नहीं बैठिये, हम बोले नहीं आप बैठिये, हालांकि ज्येष्ठ की परिभाषा बस में ६० वर्ष से अधिक उम्र की होती है, परंतु सफ़ेद बाल को देखकर हम उठ ही गये, हालांकि थोड़े थोड़े हमारे भी बाल सफ़ेद हैं, परंतु फ़िर भी उठ ही गये।

    उन सज्जन ने बैठते ही, अपनी पाकिट में से तीन गुटके निकाले पहले पढ़ा हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा फ़िर गौरी चालीसा (नाम ठीक से याद नहीं), हमारा भी साथ में हनुमान चालीसा हो गया, हालांकि उनका गुटका गुजराती में था, पर हमें याद था इसलिये कोई परेशानी नहीं हुई।

    ड्राईवर को फ़िर हँसते हुए नमस्ते करते हुए बस से उतर कर आज फ़िर बिल्कुल अपने समय से ऑफ़िस पहुँच गये। लालबागचा राजा के मन्नत के दर्शन करने के बाद हमारे क्यूबिकल के तीन लोग आये थे पूरे १७ घंटे लाईन में लगने के बाद उनको दर्शन हुए थे और वहाँ का प्रसाद भी हमें मिल गया।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… आगे..२.. गरोदर स्त्रियाँ (Mumbai experience Best Bus)

    पिछली पोस्ट पर अरविन्द मिश्रा जी ने पूछा था कि गरोदर स्त्रियाँ कौन सी प्रजाति होती हैं, गर्भवती स्त्री को मराठी में गरोदर कहते हैं, सच कहूँ तो इसका मतलब तो मुझे भी नहीं पता था और न ही जानने की कोशिश की थी, परंतु अरविन्द जी ने पूछा तो ही पता किया।

    इसका मतलब जो स्त्रियाँ आगे के दरवाजे से बेस्ट की बसों में चढ़ती हैं, मतलब जवान स्त्रियाँ वे गरोदर होती हैं, बहुत कठिन है यह भी कहना, खैर सरकार ने जनता को सुविधा देने के लिये नियम बनाया है तो जो स्त्री गरोदर नहीं है वह भी आगे के दरवाजे से चढ़कर नियम तोड़ती हैं, बेचारा ड्राईवर भी क्या बोलेगा। नारी शक्ति से तो सभी का परिचय है। इसलिये पुरुष बेचारा अपनी शक्ति को छिपा लेता है।

    खैर छोड़िये नहीं तो अभी नारी शक्ति वाली आती होंगी काली पट्टी लिये और झाड़ू हाथ में लिये… हम क्या कहना चाह रहे हैं और वे क्या समझकर हमारी लू उतार दें।

    तो नियम केवल पुरुषों के लिये होते हैं, यह बात तो तय है, हमने बेस्ट की बस में चढ़कर जाना है। वैसे तो यह हम पहले से ही जानते हैं परंतु यह बात बेस्ट की बसों में चढ़कर कन्फ़र्म हो गई है।

    आज भी बस के लिये हम तो समय पर अपने स्टॉप पर पहुँच लिये परंतु बस थी कि आ ही नहीं रही थी, समय होता जा रहा था और बैचेनी बढ़ती जा रही थी, फ़िर १० मिनिट लेट बस आई, और हम चढ़ लिये, वैसे तो हमारे स्टॉप से चढ़ने वाले ३-४ लोग ही होते हैं, परंतु बस ठसाठस सी होती है, आखिरी में चढ़े यात्री को डंडा पकड़कर लटकना ही पड़ता है और १-२ मिनिट में ही बस के अंदर हो जाता है। आज आखिरी यात्री हम थे तो हमने जैसे ही डंडा पकड़ा देखा कि बेचारा डंडा भी जंग लगकर सड़ गया है तो उल्टे हाथ की तरफ़ वाला डंडा पकड़कर अंदर हो लिये।

    फ़िर वही राम कहानी सीट के पास खड़े होकर सफ़र करने की, मास्टर और ड्राईवर आज दोनों नये थे, ३-४ लड़के पास खड़े होकर बतिया रहे थे, और कहीं साक्षात्कार देने जा रहे थे। तो उनके डेबिट और क्रेडिट के सिद्धातों को सुन रहा था, बेचारे बोल रहे थे जो पढ़ा इतने साल सब पानी में, व्यवहारिक दुनिया में तो सब उल्टा होता है। अब बेचारा इंटर्व्यूअर भी क्या करे, जो उसे आता होगा वही तो पूछेगा ना, स्स्साले को क्या डेबिट और क्रेडिट भी नहीं पता होता है, और इतनी पढ़ाई करने के बाद हमें क्या समझा है कि हमें ये भी पता नहीं होगा। चल छोड़ न यार आज देखते हैं, कि आज के इंटर्व्यू में क्या होता है।

    तभी पीछे से एक लड़की धक्के मारते हुए आगे की ओर निकल गई और जबरदस्ती उल्टी हाथ की सीट की तरफ़ खड़ी हो गई, जबकि सीधे हाथ की ओर स्त्रियों की आरक्षित सीट होती है, और बड़ी आसानी से सीट मिल भी जाती है, कोई न कोई आरक्षित वर्ग उतरता रहता है और चढ़ता रहता है, और अगर नहीं होता है तो सीट बेचारी खाली ही जाती है, कोई नहीं बैठता, कब कौन कहाँ से आरक्षित वर्ग आ जाये कुछ बोल नहीं सकते।

    अब वह लड़की जहाँ खड़ी थी, थोड़े ही देर में वही सीट से बंदा उतर गया और आम आदमी की सीट आरक्षित वर्ग ने हथिया ली, और सीधे हाथ की एक सीट खाली पड़ी आरक्षित वर्ग के यात्री का इंतजार कर रही थी, हमें बहुत ही कोफ़्त हो रही थी, पर क्या करते चुपचाप शक्ति के आगे नतमस्तक थे, आखिर सरकार ने नियम बहुत सोच समझकर बनाया होगा।

    खैर जैसे तैसे करके अपना स्टॉप आया और बिल्कुल टाईम पर उतर गये, चले भले ही १० मिनिट लेट थे परंतु पहुँच समय पर ही गये, ड्राईवर ने क्या गाड़ी भगाई, बस मजा ही आ गया।

    ऑफ़िस पहुँचे तो सहकर्मियों से बात हुई, बताया गया कि वे लोग लालबागचा राजा के दर्शन करके आये हैं, शनिवार की रात को, और एक सहकर्मी से सिद्धिविनायक का प्रसाद भी खाने को मिला। दिन बढ़िया रहा।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… आगे …१..सीट पर कब्जा कैसे करें (Mumbai Experience of Best Bus)

पिछली पोस्ट को ही आगे बढ़ाता हूँ, एक सवाल था “कंडक्टर को मुंबईया लोग क्या कहते हैं।” तो जबाब है – “मास्टर” ।

अगर कभी टिकट लेना हो तो कहिये “मास्टर फ़लाने जगह का टिकट दीजिये”, बदले में मास्टर अपनी टिकट की पेटी में से टिकट निकालेगा, पंच करेगा और बचे हुए पैसे वापिस देगा, फ़िर बोलेगा “पुढ़े चाल” मतलब आगे बढ़ते जाओ।

जैसे हमारे देश में आरक्षण है वैसे ही बेस्ट बस में आरक्षण को बहुत अच्छॆ से देखा जा सकता है, ४९ सीट बैठने की होती है, जिसमें उल्टे हाथ की पहली दो सीटें विकलांग और अपाहिज और फ़िर उसके बाद की दो सीट ज्येष्ठांचा लोगों के लिये आरक्षित होती हैं, सीधे हाथ की तरफ़ तो महिलाओं के लिये ७ सीटें आरक्षित होती हैं। याने कि लगभग ५०% आरक्षण बस में, जैसे हमारे देश में।

अनारक्षित सीटों पर महिलाओं और ज्येष्ठ लोगों को बैठने से मनाही नहीं है, अब बेचारा आम आदमी इस आरक्षण में पिस पिस कर सफ़र करता रहता है।

अभी कुछ दिनों पहले एक ए.सी. बस में चढ़े तो अनारक्षित सीटों पर महिलाएँ काबिज थीं और महिलाओं की आरक्षित सीटें खाली थीं, सब महिलाएँ भी पढ़ी लिखी सांभ्रांत परिवार की थी जिन्हें शायद महिलाओं के लिये चिन्हित सीटों की समझ तो होगी ही, परंतु फ़िर भी न जाने क्यों, आम आदमी की सीट पर कब्जाये बैठी थीं, हमारे जैसे ३-४ आमजन और खड़े थे, मास्टर को बोला कि इन आरक्षण वर्ग को इनकी सीटों पर शिफ़्ट कर दें तो हम भी बैठ जायेंगे, बेचारा मास्टर बोला कि इनको कुछ बोलने जाऊँगा तो ईंग्रेजी में गिटीर पिटिर करके अपने को चुप करवा देंगी, और ये तो रोज की ही बात है।

अब बताईये महिला शक्ति से कोई उलझता भी नहीं, वे सीटें खाली ही रहीं जहाँ तक कि हमें उतरना था, और उन सीटों पर बैठना हमें गँवारा न था, कि कब कौन सी महिला कौन से स्टॉप पर चढ़ जाये और अपनी आरक्षित सीट की मांग करने लगे, इससे बेहतर है कि खड़े खड़े ही सफ़र करना।

जब महिलाओं को समान अधिकार दिये जा रहे हैं, तो ये आरक्षण क्यों, फ़िर भले ही वह सत्ता में हो या फ़िर बस में या फ़िर ट्रेन में…। खैर हम तो ये मामला छोड़ ही देते हैं, भला नारी शक्ति से कौन परिचित नहीं है.. और फ़िर इस मामले में सरकार तक गिर/झुक जाती हैं… तो हम क्या चीज हैं।

बेस्ट की बस में निर्देशित होता है कि आगे वाले दरवाजे से केवल गरोदर स्त्रियाँ, ज्येष्ठ नागरिक और अपंग ही चढ़ सकते हैं। वैसे कोई कुछ भी कहे बेस्ट की बसें और उसकी सर्विस बेस्ट है।

यह वीडियो देखिये जिसमें प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि बेस्ट की बसों में कैसे सीट पर कब्जा किया जाये –

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण (Mumbai experience of BEST Bus)

    कुछ दिनों से बस से ऑफ़िस जा रहे हैं, पहले पता ही नहीं था कि बस हमारे घर की तरफ़ से ऑफ़िस जाती है। बस के सफ़र भी अपने मजे हैं पहला मजा तो यह कि पैसे कम खर्च होते हैं, और ऐसे ही सफ़र करते हुए कितने ही अनजान चेहरों से जान पहचान हो जाती है जिनके नाम पता नहीं होता है परंतु रोज उसी बस में निर्धारित स्टॉप से चढ़ते हैं।

    पहले ही दिन बस में बैठने की जगह मिली थी और फ़िर तो शायद बस एक बार और मिली होगी, हमेशा से ही खड़े खड़े जा रहे हैं, और यही सोचते हैं कि चलो सुबह व्यायाम नहीं हो पाता है तो यही सही, घर से बस स्टॉप तक पैदल और फ़िर बस में खड़े खड़े सफ़र, वाह क्या व्यायाम है।

    बस में हर तरह के लोग सफ़र करते हैं जो ऑफ़िस जा रहे होते हैं, स्कूल कॉलेज और अपनी मजदूरी पर जा रहे होते हैं, जो कि केवल उनको देखने से या उनकी बातों को सुनने के बाद ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

    कुछ लोग हमेशा बैठे हुए ही मिलते हैं, रोज हुबहु एक जैसी शक्लवाले, लगता है कि जैसे सीट केवल इन्हीं लोगों के लिये ही बनी हुई है, ये रोज डिपो में जाकर सीट पर कब्जा कर लेते होंगे।

    बेस्ट की बस में सफ़र करना अपने आप में रोमांच से कम भी नहीं है, कई फ़िल्मों में बेस्ट की बसें बचपन से देखीं और अब खुद ही उनमें घूम रहे हैं।

    बेस्ट की बसों में लिखा रहता है लाईसेंस बैठक क्षमता ४९ लोगों के लिये और २० स्टैंडिंग के लिये, परंतु स्टैंडिंग में तो हमेशा ऐसा लगता है कि अगर यह वाहन निजी होता तो शायद रोज ही हर बस का चालान बनता, कम से कम ७०-८० लोग तो खड़े होकर यात्रा करते हैं, सीट पर तो ज्यादा बैठ नहीं सकते परंतु सीट के बीच की जगह में खड़े लोगों की ३ लाईनें लगती हैं।

बातें बहुत सारी हैं बेस्ट बस की, जारी रहेंगी… इनकी वेबसाईट भी चकाचक है और कहीं जाना हो तो बस नंबर ढूँढ़ने में बहुत मदद भी करती है… बेस्ट की साईट पर जाने के लिये चटका लगाईये।

एक गाना याद आ गया जो कि अमिताभ बच्चन पर फ़िल्माया गया था –

आप लोगों के लिये एक सवाल कंडक्टर को मुंबईया लोग क्या कहते हैं।