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कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३७

याममात्रम़् – एक याम (प्रहर) तीन घण्टे के बराबर होता है। यक्ष ने यहाँ मेघ को एक याम तक प्रतीक्षा करने को कहा है; क्योंकि लक्षणों से यक्षिणी “पद्मिनी” मानी गयी है और पद्मिनी के सोने का समय एक या
म भर होता है। जैसे कि कहा गया है –

पद्मिनी यामनिद्रा च द्विप्रहरा च चित्रिणी।
हस्तिनी यामत्रितया घोरनिद्रा च शड़्खिनी॥

परंतु अन्य विद्वान लिखते हैं कि संभोग की परमावधि एक याम मानी गयी है। यक्षिणी भी पूर्ण यौवना है। उसकी भी स्वप्न में रतिक्रीड़ा एक याम तक चलेगी तब तक प्रतीक्षा करना।


स्वजलकणिकाशितलेन – इससे स्पष्ट होता है कि यक्ष-पत्नी कोई सामान्य स्त्री नहीं थी, वह स्वामिनी थी; क्योंकि स्वामी या स्वामिनियों के पैर दबाकर, पंखा झलकर, गाकर जगाना चाहिये। इसलिये यक्ष मेघ से निवेदन करता है कि वह उसकी प्रिया को शीतल जल कणों से, शीतल वायु से जगाये।


विधुद़्गर्भ: – मेघ वहाँ अपनी बिजली रुपी पत्नी को साथ लेकर जाये; क्योंकि मेघ के लिये परस्त्री के साथ अकेले बात करना उचित नहीं है (परनारीसंभाषणमेकाकिनो नोचितम़्)।


अविधवे – कवि ने यह पद साभिप्राय प्रयुक्त किया है; क्योंकि मेघ यक्षिणी को अविधवे कहकर संबोधित करेगा, जिससे यक्षिणी समझ जायेगी कि उसका पति जीवित है और वह मेघ की बात उत्साहित होकर सुनेगी।


यो वृन्दानि त्वरयति पथि श्राम्यतां प्रोषितानां – संस्कृत काव्यों में वर्षा का उद्दीपक के रुप में वर्णन किया गया है; इसलिए प्राय: यह वर्णन किया जाता है कि मेघ परदेश गये पतियों को घर लौटने के लिये प्रेरित करता है। प्राचीन काल में क्योंकि आवागमन के साधन नहीं थे और पैदल ही आते जाते थे तो पुरुष दीपावली के बाद अपनी जीविका के लिये चले जाते थे और फ़िर वर्षा ऋतु से पहले लौट आते थे, पैदल चलते-चलते जब वे थक जाते थे तो विश्राम करने लगते थे, किन्तु मेघों की घटाएं देखकर वे शीघ्रातिशीघ्र घर पहुँचने के लिये उत्कण्ठित हो उठते थे।


अबलावेणिमोक्षोत्सुकानि – प्रोषितभर्तृका स्त्री प्रिये के प्रवास के समय केशों को एक चोटी में गूँथ लेती थी जिसे प्रवास से लौटकर पति ही अपने हाथ से खोलता था।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३६

संन्यस्ताभरणम़् – विरहिणी स्त्रियों के लिए आभूषण पहनना निषिद्ध था; अत: यक्षिणी ने भी आभूषणों का त्याग कर दिया था।


पेशलम़् – इसमें पेलवं तथा कोमल यह पाठान्तर भी मिलते हैं। तीनों का ही अर्थ कोमल है। यक्ष मेघ से कहता है कि उसकी पत्नी अत्यधिक कोमल है, विरह की ज्वाला उसे जला
रही होगी, जिस कारण वह शय्या पर भी कठिनता से लेटती होगी।


नवजलमयम़् – यक्ष मेघ से कहता है कि विरहिणी यक्षिणी की दशा देखकर वह (मेघ) स्वयं भी रो पड़ेगा। किन्तु किसी को दु:खी देखकर रोना चेतन प्राणी का धर्म है, मेघ तो अचेतन है वह कैसे रोयेगा ? इसका उत्तर आर्द्रान्तरात्मा पद से कवि ने दिया है, जो चेतन के लिये कोमल ह्र्दय वाला तथा अचेतन के लिए द्रव रुप अन्त: शरीर वाला अर्थ देता है; अत: मेघ जल की बूँदों के रुप मे आँसू बहायेगा।


रुद्धापाड़्गप्रसरम़् – विरहिणी यक्षिणी ने विरह के प्रथम दिन ही बालों को गूँथा था, तबसे न गूँथने के कारण वे ढीले पड़ गये हैं, जिससे वे बाल उसके नेत्रों पर लटक गये हैं, जिससे वह पूरी तरह से नहीं देख पाती।


विस्मृत भ्रूविलासम़् – भौंहो के मटकाने को भ्रूविलास कहते हैं। पति वियोग में यक्षिणी ने मद्य-पान छोड़ दिया था, इसलिए उसकी चञ्चलता तथा  मस्ती समाप्त हो गयी थी तथा चञ्चलता के अभाव में बह भौंहो को मटकाना भी भूल गयी थी।


उपरिस्पन्दिनयनम़् –  नयन से यहाँ बायाँ नेत्र अभीष्ट है; क्योंकि स्त्री की बायीं आँख फ़ड़कना अच्छा शकुन माना जाता है, जबकि पुरुष की दायीं आँख। और आँख का ऊपर के हिस्से में फ़ड़कना इष्ट प्राप्ति का लक्षण कहा गया है।


वामश्चास्या: उरु: – निमित्त निदान के अनुसार स्त्रियों की बायीं जंघा का फ़ड़कना रति सुख की प्राप्ति तथा दोनों जंघाओं का फ़ड़कना वस्त्र प्राप्ति का सूचक है। यक्षिणी की वाम जंघा का फ़ड़कना यह सूचित करता है कि शीघ्र ही उसे रति सुख की प्राप्ति होगी।


करुहपदै: – नायक संभोग काल में नायिका के ऊरु में नखक्षत करता है।


सम्भोगान्ते – कामशास्त्र के अनुसार रतिक्रीड़ा के अन्त में नायक का नायिका की रतिजन्य थकान को दूर करने के लिये चरण दबाना, पंखा झलने आदि का विधान है।

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कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३५

प्राचीमूले तनुमिव कलामात्रशेषां हिमांशो: – इस पर महिमसिंह गणी का कथन है कि – “कृष्णपक्षे चतुर्दश्यां रात्रौ शेषकलामात्रस्य चन्द्रस्य दिड़्मुखे संभव:।” अर्थात कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को चन्द्रमा पूर्व क्षितिज में एक ही कला के रुप में रह जाता है। यहाँ यक्ष-पत्नी की सेज की पूर्व दिशा के क्षितिज

से और यक्ष-पत्नी की कलामात्र शेष चन्द्रमा की मूर्ति से तुलना की गयी है।


विरहमहतीम़् – युवक और युवतियों को अपने प्रथम मिलन के दिनों में दिन और रात क्षण-क्षण के समान छोटे दिखायी पड़ते हैं, किन्तु विरह की अवस्था में उन्हें दिन-रात पहाड़ की तरह विशाल प्रतीत होने लगते हैं। यक्षिणी की भी यही स्थिति है।

पूर्वप्रीत्या – काव्यों में, संयोगवस्था में जो चन्द्रमा प्रियजनों को सुख प्रदान करता है और विरहावस्था में वही चन्द्रमा कष्टप्रद होता है, ऐसा वर्णन अनेक स्थलों पर मिलता है। यक्ष का विचार है कि उसकी प्रिया जब अपने प्रियतम के साथ लेटती थी, उसी अनुभव के आधार पर बड़े उत्साह से उसकी प्रिया चन्द्रमा की किरणों पर दृष्टि डालेगी, किन्तु विरह के कारण वह किरणें दु:ख प्रदान करने वाली होंगी; इसलिए वह उन पर से दृष्टि हटा लेगी।

शुद्धस्नानात़् – यहाँ शुद्ध स्नान से अभिप्राय तैल आदि सुगन्धित द्रव्यों से रहित, उबटन आदि से रहित स्नान से है; क्योंकि वह प्रोषितभर्तृका है, इसलिए पूज आदि करने से पूर्व साधारण स्नान ही कर सकती थी; क्योंकि उसे प्रसाधन का निषेध था।

मत्संभोग – यक्षिणी का प्रियतम उससे दूर है; अत: उससे साक्षात़् संभोग तो सम्भव नहीं है इसलिये यह सोचकर कि उससे स्वप्न में ही संभोग सम्भव हो जाये, इसी विचार से नींद लेने का प्रयास कर रही है, किन्तु आँखों में आँसू आ जाने के कारण निद्रा का अवसर नहीं मिलता।

मयोद्वेष्टनीयाम़् – प्राचीन समय में यह प्रथा थी कि वियोग के अवसर पर पति अपनी पत्नी के बालों को एक वेणी में गूँथता था और वियोग के बाद वही उसे खोलता था।

स्पर्शक्लिष्टाम़् – प्रोषितभर्तृकाएँ जिस वेणी को विरह के दिन गूँथती थीं, उसमें तेलादि न लगाने के कारण वह शुष्क हो जाती थीं जो स्पर्श करने में कष्ट देती थी।

कठिनविषमाम़् – बहुत समय से प्रसाधन न करने के कारण वेणी कठोर और उलझ जाती थी। विषम का अर्थ ऊँचा नीचा होता है, किन्तु यहाँ इसका अर्थ उलझा हुआ अधिक उपयुक्त है।

अयमुतनखेन – प्रोषितभर्तृकाएँ क्योंकि विरहावस्था में प्रसाधन नहीं करती थीं; इसलिए नाखून भी नहीं काटे थे, जिससे यक्षिणी के नाखून लम्बे-लम्बे हो गये थे।

व्यापार करने का भारतीय तरीका (The Indian way of doing Business)

व्हाईट हाऊस की फ़ेन्स वायर को जोड़ने के ठेके के लिये तीन ठेकेदार आये, जिसमें एक जापान से, दूसरा भारत से और तीसरा चीन से था।

तीनों व्हाईट हाऊस की टूटी हुई फ़ेन्स वायर को देखने गये।

whitehouse

जापानी ठेकेदार ने अपना नाप लेने वाले फ़ीता निकाला और उससे कुछ नाप लेने लगा, उसके बाद पेन्सिल लेकर कुछ गणित करने लगा। फ़िर बोला “ठीक है” मैं इस काम को $900 में कर दूँगा। ($400 लगने वाले सामान के, $400 कारीगरों के, $100 मेरा लाभ)

फ़िर चीन के ठेकेदार ने भी उसी तरह से सब नापजोख किया और बोला कि मैं यह काम $700 में कर दूँगा। ($300 लगने वाले सामान के, $300 कारीगरों के, $100 मेरा लाभ)

भारतीय ठेकेदार ने बिना नापजोख किये फ़िर व्हाईट हाऊस के अधिकारी की तरफ़ देखकर बोला “$2700”।

उस अधिकारी को बहुत आश़्चर्य हुआ और बोला कि तुमने इन लोगों की तरह कुछ नापा भी नहीं और कुछ गणित भी नहीं किया फ़िर तुमने ये हिसाब कैसे किया ?

भारतीय ठेकेदार ने चहककर बोला “$1000 मेरे, $1000 आपके, और इस चीन वाले को हम लोग फ़ेन्स वायर जोड़ने के लिये दे देंगे।”

सरकारी अधिकारी का जबाब था “ठीक है, ये ठेका आपका”।

कृपया सभी ब्लॉगर बंधु ऑनलाईन वोट करें “यथार्थ” जी लिटिल चेम्प प्रतियोगी के लिये

बनारस से यथार्थ रस्तोगी जी लिटिल चेम्प में भाग ले रहा है और जो लोग इस प्रोग्राम को देखते होंगे वे तो उसके हुनर से परिचित होंगे ही। इतनी सी उम्र में उसके गले का कमाल, उसकी सुरीली आवाज। आज और कल रात “जी लिटिल चेम्प” पर इसका प्रसारण है रात को ९.३० बजे। आप एक लोगिन से दो बार अपने वोट ऑनलाईन दे सकते हैं,  आप भी देखिये इस जूनियर मास्टर को और सहयोग करें जीतने में। टेलेन्ट तो उसमें बहुत है परंतु वोटिंग का भी उतना ही महत्व है। ज्यादा से ज्यादा वोटिंग करने की अपील करता हूँ।

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सभी ब्लॉगर बंधुओं से सहयोग अपेक्षित है।
रस्तोगी समाज का होने के नाते मैं “यथार्थ” को वोटिंग करने के लिये सबसे जोरदार अपील करता हूँ। आपके एक वोट से वह नन्ही प्रतिभा जीत सकती है बस आप सबका आशीर्वाद चाहिये। आपके आशीर्वाद के इंतजार में लगे हैं।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३४

ह्रदयनिहितारम्भम़् – यक्षिणी अकेले में बैठकर प्रिय के काल्पनिक सहवास से मन बहलाती थी। आचार्य मल्लिनाथ ने यहाँ आरम्भ का अर्थ कार्य किया है, जिसका अर्थ है कि यक्षिणी पति के साथ चुम्बन, अलि़ड़्गन आदि कार्य वाले रति सुख का आन्नद

ले रही है। काम की दश अवस्थायें मानी गयी हैं यहाँ कवि ने तीसरी अवस्था का उल्लेख किया है। यहाँ सड्कल्पावस्था  का वर्णन किया गया है।


सव्यापाराम़् – विरहिणी स्त्रियों का दिन तो किसी न किसी प्रकार काम आदि करते हुए व्यतीत हो जाता है, परन्तु रात्रि में कोई कार्य न होने के काराण उसे रात्रि व्यतीत करना कठिन हो जाता है।

सुखयितुम़् – वियोगिनियों को यदि प्रियतम का सन्देश प्राप्त हो जाये तो अत्यन्त सुख मिलता है।

अवनिशयनम़् – प्रोषितभर्तृका को सती धर्म का पालन करने के लिये पलंग पर सोने का निषेध होने से भूमि पर सोने का विधान है; अत: यक्षिणी भी पृथ्वी पर ही सोती है।
चौथी कामदशा जागरणावस्था होती है।

आधिक्षामाम़् – रोग दो प्रकार के बताये ग्ये हैं – आधि तथा व्याधि । आधि मानसिक तथा व्याधि शारीरिक रोग के लिये आता है, विरहिणी यक्षिणी आधि रोग से पीड़ित है; इसलिये यह अत्यन्त क्षीण हो गयी है।

संनिषण्णैकपार्श्वाम़् – प्राय: विरहिणी स्त्रियाँ रात्रि को करवट बदल-बदलकर व्यतीत करती हैं, किन्तु यक्षिणी एक करवट से पडी हुई रात्रि व्यतीत करती है। इसके दो कारण हो सकते हैं –

(१) यक्षिणी रात्रि में अपने प्रियतम के ध्यान में इतनी मग्न हो जाती है कि उसे अपने शारीरिक कष्ट का ध्यान नहीं रहता और वह करवट तक नहीं बदलती।

(२) वह विरह में इतनी दुर्बल हो गयी है कि करवट बदलने की सामर्थ्य ही उसमें नहीं रही हो; अत: सारी रात एक ही करवट से पड़ी रहती है।

स्वाइन फ़्लू पर एक मस्त कार्टून

आज ही ईमेल से स्वाइन फ़्लू पर एक मस्त कार्टून प्राप्त हुआ है आप भी देखिये –

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