कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३६

संन्यस्ताभरणम़् – विरहिणी स्त्रियों के लिए आभूषण पहनना निषिद्ध था; अत: यक्षिणी ने भी आभूषणों का त्याग कर दिया था।


पेशलम़् – इसमें पेलवं तथा कोमल यह पाठान्तर भी मिलते हैं। तीनों का ही अर्थ कोमल है। यक्ष मेघ से कहता है कि उसकी पत्नी अत्यधिक कोमल है, विरह की ज्वाला उसे जला
रही होगी, जिस कारण वह शय्या पर भी कठिनता से लेटती होगी।


नवजलमयम़् – यक्ष मेघ से कहता है कि विरहिणी यक्षिणी की दशा देखकर वह (मेघ) स्वयं भी रो पड़ेगा। किन्तु किसी को दु:खी देखकर रोना चेतन प्राणी का धर्म है, मेघ तो अचेतन है वह कैसे रोयेगा ? इसका उत्तर आर्द्रान्तरात्मा पद से कवि ने दिया है, जो चेतन के लिये कोमल ह्र्दय वाला तथा अचेतन के लिए द्रव रुप अन्त: शरीर वाला अर्थ देता है; अत: मेघ जल की बूँदों के रुप मे आँसू बहायेगा।


रुद्धापाड़्गप्रसरम़् – विरहिणी यक्षिणी ने विरह के प्रथम दिन ही बालों को गूँथा था, तबसे न गूँथने के कारण वे ढीले पड़ गये हैं, जिससे वे बाल उसके नेत्रों पर लटक गये हैं, जिससे वह पूरी तरह से नहीं देख पाती।


विस्मृत भ्रूविलासम़् – भौंहो के मटकाने को भ्रूविलास कहते हैं। पति वियोग में यक्षिणी ने मद्य-पान छोड़ दिया था, इसलिए उसकी चञ्चलता तथा  मस्ती समाप्त हो गयी थी तथा चञ्चलता के अभाव में बह भौंहो को मटकाना भी भूल गयी थी।


उपरिस्पन्दिनयनम़् –  नयन से यहाँ बायाँ नेत्र अभीष्ट है; क्योंकि स्त्री की बायीं आँख फ़ड़कना अच्छा शकुन माना जाता है, जबकि पुरुष की दायीं आँख। और आँख का ऊपर के हिस्से में फ़ड़कना इष्ट प्राप्ति का लक्षण कहा गया है।


वामश्चास्या: उरु: – निमित्त निदान के अनुसार स्त्रियों की बायीं जंघा का फ़ड़कना रति सुख की प्राप्ति तथा दोनों जंघाओं का फ़ड़कना वस्त्र प्राप्ति का सूचक है। यक्षिणी की वाम जंघा का फ़ड़कना यह सूचित करता है कि शीघ्र ही उसे रति सुख की प्राप्ति होगी।


करुहपदै: – नायक संभोग काल में नायिका के ऊरु में नखक्षत करता है।


सम्भोगान्ते – कामशास्त्र के अनुसार रतिक्रीड़ा के अन्त में नायक का नायिका की रतिजन्य थकान को दूर करने के लिये चरण दबाना, पंखा झलने आदि का विधान है।

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