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रैनसमवेयर क्या होता है? what is ransomware?

एक संक्रमित सॉफ्टवेयर जो इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि इस सॉफ्टवेयर के आपके कंप्यूटर पर आते ही यह आपके महत्वपूर्ण डाटा तक आपकी पहुंच रोक देता है और अगर आप डाटा तक पहुंचने की कोशिश करेंगे तो एक स्क्रीन दिखाई देगी, जिसके ऊपर यह आपसे रैनसम मांगेगा और रैनसम देने का तरीका भी उस पर लिखा होगा।

मई 2017में वानाक्राई रैनसमवेयर का जो आक्रमण हुआ था, उसमें 150 देशों के कंप्यूटर पर आक्रमण हुआ। लगभग 300000 कंप्यूटर संक्रमित हुए और 33319 डॉलर रैनसम के तौर पर दिए गए। यह आंकड़ा 14 मई 2017 तक का है।

वाइपर अटैक क्या होता है?

वाइपर आक्रमण कंप्यूटर पर किया गया एक ऐसा वायरस अटैक है जिसमें कि कंप्यूटर का डाटा पूर्णत: खत्म कर दिया जाए और रैनसमवेयर वायरस के जैसे किसी भी तरह के भुगतान की बात ना की जाए। साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि वानाक्राई रैनसमवेयर था जबकि नॉटपेटिया वाइपर है।

नोटपेटया कैसे फैलता है?

जैसा कि पता चला है वानाक्राई रैनसमवेयर फिशिंग इमेल से फैला था। जबकि साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि नॉटपेटया फैलाने के लिए यूक्रेन की सॉफ्टवेयर प्रोवाइडर कंपनियों को हैक किया गया और उसके द्वारा नोटपेटया फैैलाया गया था और आक्रमण किया गया।

कौन सी कंपनियों पर ज्यादा आक्रमण हुआ?

रशिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी, यूक्रेन का अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और ग्लोबल शिपिंग फॉर्म AP Moller-Maersk इस आक्रमण से बुरी तरह से प्रभावित हुई। इस आक्रमण से गंभीर तरीके से यूक्रेन की पावर ग्रिड, बैंक और सरकारी दफ्तर भी प्रभावित हुए।

कैसे हम हमारे कंप्यूटर को रैन्समवेयर सॉफ्टवेयर से सुरक्षित रखें?

सबसे पहला एक बुनियादी कदम है कि हमें हमारे डाटा का पूरा बैकअप अपने पास रखना चाहिये। उसके बाद में विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम के जो भी नए अपग्रेड हैं, उनको इंस्टॉल कर लें और संबंधित रैनसमवेयर के जो नए पेचेस आए हैं उन्हें भी इंस्टॉल कर लें। एक एंटी मैलवेयर प्रोग्राम हमेशा आपके स्टार्ट अप में होना चाहिए, जो कि एक बुनियादी कदम है इस तरह के मैलवेयर से बचने के लिए, जो कि आपको किसी भी अनजानी लिंक पर क्लिक करने से होने वाले गंभीर नुकसान से रोकता है।

चोकोस के साथ खुलजाये बचपन (Kelloggs Chocos)

बचपन हमेशा ही हर किसी के लिये अनूठा होता है और हमेशा ही हम अपना बचपन हम भूल जाते हैं, वही बचपन हम हमारे बच्चों में हमेशा ही ढ़ूँढ़ते हैं। चाहते हैं कि हम अपने बच्चे के बचपन को उसके साथ वापस से जियें, कुछ बातों की हमेशा ही हमें अपने पालकों से शिकायत रहती है, तो वह कमी भी हम अपने बच्चों को नहीं महसूस करवाना चाहते हैं। हम हमेशा ही बच्चों की मदद कर उनसे उनके जीवन में घुलमिलना चाहते हैं।

मेरे बेटे को हिन्दी में शब्द श्रंखला बनाना थी, जो कि 100 शब्दों की होनी चाहिये थी और उसके कुछ नियम भी थे –

शब्द श्रंखला नाम के आखिरी अक्षर से शुरू होगी

  1. एक ही शब्द एक से ज्यादा बार नहीं आना चाहिये
  2. शब्द में किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं होना चाहिये
  3. शब्द में जगह का नाम भी नहीं होना चाहिये
  4. दो अक्षर वाले शब्द नहीं होने चाहिये, कम से कम तीन शब्दों वाले अक्षर होने चाहिये

हमारे बेटेलाल का नाम हर्ष है और उनको पहले ही शब्द को बनाने में बहुत समस्या का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि अंग्रेजी में कुछ भी करवा लो, कितना भी कार्य करवा लो पर हिन्दी में तो आजकल अच्छे अच्छों को पसीने छूट जाते हैं। हमने कहा चलो पहले शब्द श्रंखला खेलते हैं और फिर बाद में तुमको शब्दों के बारे में पता चल जायेगा तो तुम लिख भी लेना।

इसमें पहला शब्द जिस अक्षर से खत्म होता है तो अगला शब्द उसी अक्षर से शुरू होगा, इतना आसान कार्य भी नहीं है, पर हाँ जब खेलने लगे तो बहुत ही आसान लगा पर कई बार कुछ शब्द वापिस लेने पड़ते क्योंकि बार बार एक ही शब्द की निरंतरता रहती, जैसे कि “र” और “र” से कितने शब्द बनायें जायें जबकि ऊपर बताये गये 5 कठिन नियमों का भी पालन करना था।

खैर हमसे खेल ही खेल में हमारे बेटेलाल बहुत ही खुल गये, तो हमारे लिये वे पल “खुशी के पल” थे और बेटेलाल ने हमें बता दिया कि अगर बच्चों के साथ समय बिताया जाये तो “खुलजाये बचपन” । और उनके खुशी के पल वे ज्यादा होते हैं जब वे चोकोस  (Chocos)खाते हैं।

दुनिया में किसी पर भी विश्वास करने से पहले बेहतर है कि परख लिया जाये। (Trust)

   दुनिया में जब तक आप किसी पर विश्वास (Trust) न करें तब तक किसी भी कार्य का संपादन होना मुश्किल ही नहीं वरन नामुमकिन है, सारे कार्य खुद नहीं कर सकते और मानवीय मन अपनी बातों को किसी को बताने के लिये हमेशा ही उद्यत रहता है। हर किसी को अपने मन और दिल की बात बताना भी बहुत भारी पड़ सकता है, पता नहीं कब कैसे कहाँ वह आपके विश्वास करने की सदाशयता पर घात लगा दे। और आपको अपने उस पल पर जिसमें आपने अपनी बातों को बताने का फैसला किया था, हमेशा जीवन भर सालता रहेगा। आपको हमेशा दूसरे व्यक्ति पर ही गुस्सा आयेगा जिसने आपके विश्वास को तोड़ा होगा, परंतु वाकई में आप खुद उसके लिये जिम्मेदार हैं। क्या कभी इस बारे में सोचा है ? नहीं न! जी हाँ हम खुद पर कभी गुस्सा करना ही नहीं चाहते हैं, हमेशा ही किसी दूसरे व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराते हैं।

   विश्वास करने की शिक्षा हमें कहीं किसी किताब से नहीं मिलती है, यह हमें हमेशा अपने खुद के अनुभवों से मिलती है। हम कभी किसी के अनुभवों से कोई भी व्यवहार नहीं सीखते हैं, जब तक कि अपना खुद का अनुभव न हो तब तक हम ऐसे किसी अनुभव को याद ही नहीं रख पाते हैं, शायद ईश्वर ने ही हमारी मानसिक स्थिती ऐसी बनाई हुई है। हमारे में अगर किसी और के अनुभवों की सीख से अपनाने का गुण आ जाये तो एक अलग बात है, पर आज के इस आत्ममुग्ध संसार में यह लगभग असंभव है और इस गुण को अपने आप में लाने के लिये आपको आत्मकेंद्रित होना पड़ता है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि इंसान हमेशा सफल आदमी से ही प्रेरित होता है और हमेशा उनके जैसा ही बनने की कोशिश करता है। कभी भी इंसान अपने दम पर अलग से खुद को स्थापित करने की सफल कोशिश नहीं करता है। आजकल के इंटरनेटयुगीन रिश्तों के युग में किसी को भी जानना बहुत आसान हो गया है पर आप केवल उसके विचार जान सकते हैं, उसके पीछे की भावनाओं को समझने के लिये आपको हमेशा ही उस व्यक्तित्व के संपर्क में आना होता है।

   संपर्क में आने पर ही आप देख पायेंगे कि व्यक्तित्व में विचारों (जिससे आप प्रभावित हुए) और उनके जीवनचर्या में अक्सर ही जमीन आसमान का अंतर होता है। यह अलग बात है कि आप कभी यह निश्चय नहीं कर पायेंगे कि उस व्यक्तित्व ने भी आपसे कुछ बातें ग्रहण की हैं, यह मानवीय स्वभाव है। हम किसी और के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं को दोहराने की चेष्टा करते हैं क्योंकि हम सोचते हैं कि अगर वही शारीरिक क्रियाएँ हम दोहरायेंगे तो शायद हम भी वैसे ही किसी विचार को पा सकते हैं।

   जब आप ऐसे किसी भी व्यक्ति के संपर्क में आते हैं जिससे आप प्रभावित हैं तो मुझे लगता है कि हमें ध्यान रखना चाहिये – जो व्यक्ति अभी भी उनसे संपर्क में हैं या निकट हैं या उनका कार्य करते हैं, उन पर हमें विश्लेषण करना चाहिये जिससे आप खुद ही अपने आप निष्कर्ष पर पहुँच जायेंगे। आपको किसी और व्यक्ति से मशविरा करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । खुद ही विश्लेषक बनना अपने जीवन को आसान बनाना होता है, किसी और पर निर्भरता हमेशा ही हमें गलत राह पर ले जाती है। अपने मनोमष्तिष्क को दूसरे पायदान पर ले जाने के लिये हमें खुद के लिये बहुत ही मेहनत करनी होगी।

स्वच्छ भारत अभियान गाँधी जी के आदर्श या खिलाफ

    गाँधीजी का सपना था कि हमारा स्वच्छ भारत हो, पर शायद ऐसे नहीं जैसे कि आज सरकारी मशीनरी ने किया है। कि पहले राजनेताओं की सफाई करने के लिये कचरा फैलाया और बाद में उनसे झाड़ू लगवाई जैसे कि वाकई सभी जगह सफाई की गई है। वैसे प्रधानमंत्री जी तो केवल सांकेतिक रूप से ही अभियान की शुरुआत कर सकते थे परंतु आज तो सभी लोगों को सांकेतिक रूप से ही सफाई करते देखा।
    गाँधी जी जहाँ एक एक लाईन लिखने के लिये छोटी से छोटी जगह का उपयोग करते थे, कागज के छोटे से छोटे टुकड़े पर लिखकर बचत करते थे, पोस्टकार्ड की पूरी जगह का उपयोग करते थे, और आज गाँधी जी की आत्मा भी उनकी याद के पूरे पेज के विज्ञापनों को देखकर रो रही होगी, वे कागज बचाने पर जोर देते थे, और सरकारी मशीनरी कागज भी बर्बाद कर रही है और गाँधी जयंती के नाम पर करोड़ों रुपये भी फूँक रही है। गाँधी जी फालतू के रुपयों को खर्च करना भी बर्बादी समझते थे, मगर हमारे ये आधुनिक अनुयायी उनकी बातों को समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं, केवल और केवल स्वच्छ भारत के लिये झाड़ूगिरी का सहारा लिया, और धरातल पर शायद हम सब जानते हैं कि कैसी स्वच्छता हुई है, वास्तविक चेहरा कुछ और ही है।
     सरकारी लोगों के लिये एक जैसी एक ही ब्रांड की इतनी सारी झाड़ुएँ खरीदी गईं, कल वे ही धूल में ही लिपटीं कहीं कोने में पड़ी सड़ रही होंगी, और अब अगली बार तब ही निकलेंगी जब फिर ऐसे ही किसी सफाई अभियान की शुरूआत होगी। थोड़े दिनों बाद स्वच्छता के नाम पर हुए खर्चों पर कोई बड़ा घोटाला निकल आये तो भी कोई बड़ी बात नहीं होगी। कल दिल्ली में केवल दिखावे के लिये जगह जगह स्वच्छता अभियान के बैनर और फूलों से भारत स्वरूपी गाँधीजी के बोर्ड लगे हुए थे, काश कि ये पैसा हमारे सफाईकर्मियों के लिये नये उपकरणों में खर्च किया जाता और भारत की जनता को एक अच्छा संदेश दिया जाता।
    काश कि साथ ही भारत की जनता को संदेश दिया जाता कि मन को भी स्वच्छ रखना जरूरी है, और उसी से सारे अपराधों की रोकथाम है। हमें सबसे पहले नजरों कि गंदगी की स्वच्छता पर जोर देना चाहिये, जिससे बालात्कार जैसे संगीन अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके। केवल झाड़ूबाजी करने से कुछ नहीं होगा, जब तक हम अपनी गंदगी फैलाने की आदतें नहीं सुधारेंगे, तब तक ऐसी किसी झाड़ूबाजी का कोई असर नहीं होगा। हम पश्चिम की नकल करने में माहिर हैं, पर केवल उन्हीं चीजों की नकल करते हैं, जो हमें अच्छी लगती हैं, हम पश्चिम के अनुशासन की पता नहीं कब नकल करेंगे, कब उनके जैसे कर्मचारियों के लिये सारी सुविधाएँ देंगे।

स्वच्छ भारत तभी होगा जब हम खुद तन मन से स्वच्छ होंगे ।

व्हाइट लेबल एटीएम जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं (White Label ATMs for Rural Area facing difficulty)

    व्हाइट लेबल एटीएम के ऑपरेटर्स बैंकों से वसूली जाने वाली इंटरचेंज फीस बढ़ाना चाहते हैं  पहले हम देखते हैं कि व्हाइट लेबल एटीएम क्या होते हैं एक एटीएम डेस्कटॉप, जिसका आकार एक कॉफी बनाने वाली मशीन के जितना होता है जो कि किसी भी किराना स्टोर पर लगाया जा सकता है।  यह एटीएम बैटरी द्वारा चलता है और इस आविष्कार को व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स लगातार परिष्कृत कर रहे हैं। गाँव में “नो फ्रिल्स” खाते खोलने के बावजूद इन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स को एटीएम की लागत निकालने में पसीने आ रहे हैं।

 

 
    ऑपरेटर्स इंटरचेंज फीस 15 रूपये से 18 रुपये हर ट्रांजेक्शन पर करना चाहते हैं। व्हाइट लेबल एटीएम मशीनें नान बैंकिंग कंपनियों द्वारा लगाई जा रही हैं। जब भी खाताधारक उनके एटीएम से ट्रांजेक्शन करता है तो नॉन बैंकिंग कंपनियाँ बैंकों से हर ट्रांजेक्शन के शुल्क लेते हैं। सन 2013 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने  7 नॉन बैंकिंग कंपनियों को व्हाइट लेबल एटीएम लगाने के लाइसेंस दिये हैं –

 

1. बीटीआई पेमेंट

2. टाटा कंयूनिकेशंस पेमेंट सोलुशंस
3. प्रिज्म पेमेंट 
4. मुथूट फाइनेंस
5. श्री इंफ्रास्ट्रक्चर 
6. रिद्धि सिद्धि बुलियन 
7. वक्रांगी लिमिटेड 

 

 
    आने वाले समय में तीन और कंपनियों को लाइसेंस दिया जा सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार इन कंपनियों को केवल छोटे शहरों एवं गाँवों में ही एटीएम लगाने की अनुमति होगी और इसके बदले व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर 15 रुपये की इंटरचेंज फीस बैंक से प्राप्त करेंगे जो कि हर ट्रांजेक्शन के ऊपर बैंक को देनी होगी।

 

 
    अब सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जनधन योजना में छोटे शहरों एवम गाँवों में खाते खोले जा रहे हैं जो कि व्हाइट लेबल एटीएम के लिये मध्यम अवधि में प्राणदायक सिद्ध होंगे। प्रधानमंत्री जनधन योजना में भविष्य में बहुत से खाते खुलेंगे लेकिन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स के लिए कम मात्रा मेँ ट्रांजेक्शन एक सर दर्द ही साबित होगा क्योंकि कुछ जगहों पर तो जनसंख्या कुछ हजारों में भी नहीं होगी पर व्हाइट लेबल एटीएम नकद निकालने के लिए उन जगहों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं जहाँ पर बैंकें उपलब्ध नहीं हैं । बिना एसी, बिना किराए, बिना सिक्योरिटी गार्ड और बिना सुरक्षा अधिकारी के कम से कम 2000 ट्रांजेक्शन एक महीने में होने पर ही ऑपरेटर्स के लिए फायदा हे अभी व्हाइट लेबल ऑपरेटर्स बिल पेमेंट ओर मोबाइल रिचार्ज सुविधाओं का लाभ नहीं दे रहे हैं हालांकि उनके स्क्रीन पर विज्ञापन देख रहे हें व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स नये एटीएम धीमी गति से लगा रहे हैं क्योंकि गाँव में नकद निकालने की निरंतरता अभी बहुत ज्यादा नहीं है व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लाइसेंस इसलिए दिया क्यूंकि बैंक उन जगहों पर अपने एटीएम नहीं लगाना चाहते हैं।

 

 
    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने नॉन बैंकिंग कंपनियों को लाइसेंस इस शर्त पर दिया है कि वे तीन वर्ष में 9000 एटीएम लगायेंगे नॉन बैंकिंग कंपनियों को एटीएम तब भी लगाने होंगे जबकि वे देख रहे हैं की उन मशीनों पर जितने ट्रांजेक्शन होना चाहिए उतने ट्रांजेक्शन नहीं हो रहे हैं यह उनके लिए घाटे का सौदा सिद्ध होगा ।

 

 
    नॉन बैंकिंग कंपनियाँ अगर थोडा बहुत फायदा अभी बना सकती हैं तो केवल दो तरीके से पहला रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यह प्रतिबंध हटा ले कि केवल स्पांसर बैंक एटीएम में कैश भरेगा दूसरा व्हाइट लेबल एटीएम को जितना भी नगद प्राप्त होगा वे उस नगद को वापस एटीएम में उपयोग कर पायेंगे। इस समय एक फुल लोडेड एटीएम पर लगभग 30 हजार रुपए महीना खर्च होता है जिसे की बीस हजार रुपए प्रति महिना तक तक लाया जा सकता है ।

दिव्य-नदी शिप्रा (Divine River Kshipra Ujjain)

    अपनी प्राचीनतम, पवित्रता एवं पापनाशकता आदि के कारण प्रसिद्ध उज्जयिनी की प्रमुख नदी शिप्रा सदा स्मरणीय है। यजुर्वेद में शिप्रे अवेः पयः पद के द्वारा इस नदी के स्मरण हुआ है। निरूक्त में शिप्रा कस्मात ? इस प्रश्न को उपस्थित करके उत्तर दिया गया है कि शिवेन पातितं यद रक्तं तत्प्रभवति, तस्मात। अर्थात शिप्रा क्यों कही जाती है इसका उत्तर था शिवजी के द्वारा जो रक्त गिराया वही यहाँ अपना प्रभाव दिखला रहा है नदी के रूप में बह रहा है, अतः यह शिप्रा है।
    शिप्रा और सिप्रा ये दोनों नाम अग्रिम ग्रन्थों में प्रयुक्त हुए हैं। इनकी व्युत्पत्तियाँ भी क्रमशः इस प्रकार प्रस्तुत हुई है – ‘शिवं प्रापयतीति शिप्रा और सिद्धिं प्राति पूरयतीत सिप्रा और कोशकारों ने सिप्रा को अर्थ करधनी भी किया। तदनुसार यह नदी उज्जयिनी के तीन ओर से बहने के कारण करधनीरूप मानकर भी सिप्रा नाम से मण्डित हुई। उन दोनों नामों को साथ इसे क्षिप्रा भी कहा जाता है। यह उसके जल प्रवाह की द्रुतगति से सम्बद्ध प्रतीत होता है। स्कन्दपुराण में शिप्रा नदी का बड़ा माहात्म्य बतलाया है। यथा
नास्ति वत्स ! महीपृष्ठे शिप्रायाः सदृशी नदी।
यस्यास्तीरे क्षणान्मुक्तिः कच्चिदासेवितेन वै।।
    हे वत्स ! इस भू-मण्डल पर शिप्रा के समान अन्य नदी नहीं है। क्योंकि जिसके तीर पर कुछ समय रहने से, तथा स्मरण, स्नानदानादि करने से ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
    वहीं शिप्रा का उत्पत्ति के सम्बन्ध में कथा भी वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि विष्णु की अँगुली को शिव के द्वारा
काटने पर उसका रक्त गिरकर बहने से यह नदी के रूप में प्रवाहित हुई। इसीलिये विष्णु-देहात समुत्पन्ने शिप्रे
! त्वं पापनाशिनी इत्यादि पदों से शिप्रा की स्तुती की गई है। वहीं अन्य प्रसड़्ग से शिप्रा को गड़्गा भी कहा गया है। पञचगङ्गाओं में एक गङ्गा शिप्रा भी मान्य हुई है। अवन्तिका को विष्णु का पद कमल भी कहना नितान्त उचित है। कालिकापुराण में शिप्रा की उत्पत्ति – मेधातिथि द्वारा अपनी कन्या अरून्धती के विवाह-संस्कार के समय महर्षि वसिष्ठ को कन्यादान का सङ्कल्पार्पण करने के लिये शिप्रासर का जो जल लिया गया था, उसी के गिरने से शिप्रा नदी बह निकली बतलाई है। शिप्रा का अतिपुण्यमय क्षेत्र भी पुराणों में दिखाया है
    वर्तमान स्थिति के अनुसार शिप्रा का उद्गम म.प्र. के महू नगर से 11 मील दूर स्थित एक पहाड़ी से हुआ है और यह मालवा में 120 मील की यात्रा करती हुई चम्बल (चर्मण्वती) में मिल जाती है। इसका सङ्गम-स्थल आज सिपावरा  के नाम से जाना जाता है, जो कि सीतामऊ (जिला मन्दसौर) और आलोट के ठीक 10-10 मील के मध्य में है। वहाँ शिप्रा अपने प्रवाह की
विपुलता से चम्बल में मिलने की आतुरता और उल्लास को सहज ही प्रकट करती है।
    उज्जयिनी शिप्रा के उत्तरवाहिनी होने पर पूर्वीतट पर बसी है। यहीं ओखलेश्वर से मंगलनाथ तक पूर्ववाहिनी है। अतः सिद्धवट और त्रिवेणी में भी स्नान-दानादि करने का माहात्म्य है।

भाग–७ वेदों में पर्यावरण चेतना (Environmental consciousness in Vedas)

    हमारे वैदिक ऋषि मनीषी पर्यावरण रक्षण के प्रति बहुत ही जागरूक सावधान रहे हैं। पर्यावरण रक्षण का अभिप्राय ही है स्वयं की रक्षा। अत: स्वकीय रक्षाहेतु यह पर्यावरण रक्षणीय है, इसी दृष्टि से उन्होंने प्रकृति की दैवतभाव से उपासना की। सहज रूप से कल्याणकारिणी वरदायिनी यह प्रकृति पूजा के योग्य है, इसको नियन्त्रित, वश में नहीं करना है, इसके सन्तुलन को बाधित नहीं करना है। उपासना से यह इच्छित फ़ल प्रदान करने वाली है।
 
एक ही परम तत्व सर्वत्र ओतप्रोत है – सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुष्श्च
    (जगत: ) जंगम-गमनशिल चेतन (च) और (तस्थुष: ) स्थावर अचेतन की (आत्मा सूर्य: ) आत्मा सूर्य है अर्थात सूर्यरूपी परमात्मा सभी चेतन और अचेतन पदार्थों में परिव्याप्त है, उससे बाहर कुछ भी नहीं है। सब कुछ परमात्मस्वरूप होने से केवल मनुष्यों की नहीं, अपितु पशु-पक्षियों, लता-वनस्पतियों सभी की रक्षा हो जाती है और एक सुखमय आह्लादमय रहने योग्य संसार बन जात्ता है। ऋषियों ने इसी दृष्टि से नदी, अश्मा, वनस्पतियों की भी दैवतभाव से प्रार्थना की है।
    भौतिक प्राकृतिक पर्यावरण रक्षण के साथ ही ऋषियों ने आन्तरिक पर्यावरण स्वच्छता पर, उदात्त जीवन मूल्यों के रक्षण पर बल दिया है और इस तरह वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण की विश्व व्यापी गम्भीर विषम समस्या का समाधान वेदों से प्राप्त हो जाता है –
‘अग्निमीळे पुरोहितम’
    (पुरोहितम अग्निम) पुरोहित अग्नि की (ईळे) में प्रार्थना करता हूँ।

वैदिक ऋषिक में यह अग्नि केवल पाचक दाहक प्रकाशक ही नहीं, अपितु यह सर्वज्ञ सर्वान्तर्यामी अग्रगामी नेतृत्व करने वाला सर्वाधिक रमणीय धनों को देने वाला है। अत:  जातवेदस वैश्वानर पुरोहित देव इत्यादि रूप में यह अग्नि प्रार्थनीय है।

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग २)

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग १)

    हम उन बैंक अधिकारी के साथ अपने मित्र के सायबर कैफ़े गये, जहाँ रोज शाम वे इन्टरनेट का उपयोग करने जाते थे, उन्होंने हमें सबसे पहले गूगल में खोजकर हिन्दी के बारे में बताया, फ़िर हिन्दी में कुछ लेख भी पढ़वाये, अब याद नहीं कि वे सब कोई समाचार पत्र थे या कुछ और, बस यह याद है कि किसी लिंक के जरिये हम पहुँचे थे, और वह शायद हिन्दी की शुरूआती अवस्था थी । हिन्दी लिखने के लिये कोई अच्छा औजार भी उपलब्ध नहीं था।

    तब तक हमारा 486 DX2 दगा दे चुका था, यह कम्प्यूटर लगभग हमारे पास ४-५ वर्ष चला, और हमने फ़िर इन्टेल छोड़ दिया, और ए एम डी का एथलॉन प्रोसेसर वाला कम्प्यूटर ले लिया, कीबोर्ड हालांकि नहीं बदला वह हमने अपने पास मैकेनिकल वाला ही रखा, क्योंकि मैमरिन कीबोर्ड बहुत जल्दी खराब होते थे और उसमें टायपिंग करते समय टका टक आवाज भी नहीं आती थी, तो लगता ही नहीं था कि हम कम्प्यूटर पर काम भी कर रहे हैं, एँटर की भी इतनी जोर से हिट करते थे कि लगे हाँ एँटर मारा है, जैसे फ़िल्म में हीरो एन्ट्री मारता है।

    उस समय लाईवजनरल, ब्लॉगर, टायपपैड, मायस्पेस, ट्रिपोड और याहू का एक और प्लेटफ़ॉर्म था, अब उसका नाम याद नहीं आ रहा Sad smile है। फ़िर उन्हीं बैंक अधिकारी के साथ ही हम सायबर कैफ़े जाने लगे और हिन्दी के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता ने हमें उनका साथ अच्छा लगने लगा, पर इसका फ़ायदा यह हुआ कि अब वे शाम रंगीन हमारे साथ हिन्दी के बारे में जानने और ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म को जानने में करने लगे। सारे लोग यही सोचते थे कि देखो ये लड़का तो गया हाथ से अब यह भी अपनी शामें सायबर कैफ़े में रंगीन करने लगा है।

    परंतु उस समय इन्टरनेट की रफ़्तार इतनी धीमी थी कि एक घंटा काफ़ी कम लगता था और उस पर हमारी जिज्ञासा की रफ़्तार और सीखने की उत्कंठा बहुत अधिक थी। हमने बहुत सारे ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म देखे परंतु ब्लॉगर का जितना अच्छा और सरल इन्टरफ़ेस था उतना सरल इन्टरफ़ेस किसी ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म का नहीं था । हमने वर्डप्रेस का नाम इस वक्त तक सुना भी नहीं था।

    काफ़ी दिनों की रिसर्च के बाद क्योंकि इन्टरनेट की रफ़्तार बहुत धीमी थी और अपनी अंग्रेजी भी बहुत माशाअल्ला थी, तो इन दोंनों धीमी रफ़्तार के कार्यों से ब्लॉगिंग की दुनिया में आने में देरी हुई, तब तक गूगल करके हम बहुत सारे हिन्दी ब्लॉगिंग कर रहे ब्लॉगरों को पढ़ने लगे थे, उस समय चिट्ठाग्राम, अक्षरविश्व जैसी महत्वपूर्ण वेबसाईस होस्ट की गई थीं, जिससे बहुत मदद मिलती थी, और उस समय कुछ गिने चुने शायद ८०-९० ब्लॉगर ही रहे होंगे। आपस में ब्लॉगिंग को बढ़ावा देते, टिप्पणियाँ करते, लोगों को कैसे ब्लॉगिंग के बारे में बताया जाये, इसके बारे में बात करते थे। उस समय हम सोचते थे कि कम से कम रोज एक वयक्ति को तो हम अपने ब्लॉग के बारे में बतायेंगे। जिससे पाठक तो मिलना शुरू होंगे।

जारी..

चिकन समोसा मटन समोसा और आलू समोसा

अभी दो तीन पहले ही अपनी वेज थाली पार्सल करवाकर चैन्नई दरबार अल शर्फ़िया से टैक्सी पकड़ने के लिये अल शर्फ़िया की मुख्य सड़क तक आये थे कि वहाँ देखा समोसे, पकोड़े, चाट और फ़्रूटचाट वाली दुकान भी है। बस फ़िर क्या था, झट से दुकान में घुस गये देखा कि मिठाईयाँ, नमकीन, टोस्ट भी दुकान में उपलब्ध थे।
पर सबसे ज्यादा इस दुकान में बिक्री पकोड़े, समोसे, कचोरी और दहीबड़े की ही थी। हमने दुकानदार से पूछा कि हाँ भई क्या क्या है, तो जनाब आवाज आई “चिकन समोसे, मटन समोसे, आलू समोसे, कचोरी, बीफ़ समोसे, दही वड़ा और फ़्रूटचाट”, हम तो समोसे के इस नॉनवेज प्रकार पर दंग थे।
हमने कहा क्या बात है, इतने सारे प्रकार के समोसे, हमने पहली बार नॉनवेज समोसे अपनी जिंदगी में सुने हैं, हमारे मित्र ने चिकन समोसा पार्सल करवाया, हमने आलू समोसा पार्सल करवाया। जब होटल पहुँचकर खाया तो स्वाद ठीक ठाक था, खाया जा सकता था।
अब दही वड़े हमारे दिमाग में हलचल मचा रहे थे, अगले दिन दही वड़े लिये जिसमें उसने आलू चाट, काबुली चने की चाट और जबरदस्त मसाला मिलाया और दही भी जबरदस्त था। साथ में बड़ी पपड़ी या यूँ कह लें कि बड़ी मठरी थी और कुछ रंग बिरंगी सेंव नमकीन।
होटल पहुँचकर खाया तो अहा ! मजा आ गया, क्या स्वाद था, अब हमारे दिमाग में पकौड़े घूम रहे थे, अगले दिन दही वड़े के साथ ही पकौड़े भी लिये गये और चटकारे मारकर खाया गया।
हमारे एक मित्र ने कल आधा किलो रसगुल्ले लिये थे और अकेले निपटा दिये, खैर हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ, परंतु हमारे आश्चर्य न करने से उसको जरूर आश्चर्य हुआ, हमें आश्चर्य इसलिये नहीं हुआ क्योंकि हम भी पहले १ – २ किलो रसगुल्ले एक बार की बैठक में ही निपटा दिया करते थे।
वैसे कल वहाँ जलेबी और इमरती भी देखी है, सोच रहे हैं कि आज इनका भी स्वाद ले लिया जाये।

मुंबई गाथा.. भाग ३ ये है बॉम्बे मेरी जान (Bombay meri jaan.. Mumbai Part 3)

मुंबई गाथा की सारी किश्तें पढ़ने के लिये यहाँ क्ल्कि करें।

टैक्सी मुंबई  जैसे ही बांद्रा में टैक्सी में बैठे तो टैक्सी ड्राईवर ने हमारा समान जितना डिक्की में आ सकता था उतना डिक्की में रखा और बाकी का ऊपर छत पर स्टैंड पर रखकर रस्सी से बांध दिया। हम लोग २ टैक्सी में थे और टैक्सी में अपनी जगहों पर विराजमान हो चुके थे। फ़िर ड्राईवर ने चलने से पहले टैक्सी का मीटर डाऊन किया, तो टन्न करके आवाज आई, ये आवाज भी जानी पहचानी लगी सब फ़िल्मों का कमाल था, कि अनजाने शहर में बहुत सी चीजें अपनी और जानी पहचानी सी लग रही थीं।

बांद्रा स्टेशन से बाहर निकले तो हमारे वरिष्ठ हमारे बिना बोले हमारी सारी जिज्ञासाओं को शांत कर रहे थे, मानो उन्होंने हमारे मन की बात पढ़ ली हो, कि हम मुंबई के बारे में जानने को उत्सुक हैं। हमारे वरिष्ठ भी इंदौर से ही थे पर वे मुंबई में लगभग २ वर्ष पहले से थे, और मुंबई के बारे में बहुत अच्छा जान चुके थे।

बांद्रा स्टेशन से बाहर निकलते ही झुग्गी झोपड़ियाँ दिख रही थीं, वे बोले कि यह स्लम एरिया है और अभी के दंगों से यह बहुत प्रभावित हुआ था, अब तो फ़िर भी ठीक लग रहा है। यहाँ स्लम में भी जिंदगी बहुत जद्दोजहद की होती है, इन लोगों को जीने के लिये बहुत संघर्ष करने पड़ते हैं। फ़िर मुंबई की सड़कें शुरु हो गईं, हमारे वरिष्ठ बता रहे थे परंतु पहली बार किसी भी शहर में जाओ, सब एकदम नया सा लगता है और एक बार में रास्ते याद भी नहीं होते। मुंबई की कोलतार से लिपटी सड़कों को देखते जा रहे थे, इतनी ऊँची ऊँची इमारतें पहली बार देख रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो कि सच में नहीं हम मुंबई का आभासी चलचित्र देख रहे हों और अनुभव कर रहे हों, क्योंकि दिल अभी भी मानने को तैयार ही नहीं था कि अब हम मुंबई में हैं।

शिवाजी पार्क दादर     टैक्सी दादर शिवाजी पार्क की ओर दौड़ी जा रही थी, वहीं हमारा होटल था, हमारे वरिष्ठ बोले कि ये वही शिवाजी पार्क है जहाँ सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली खेला करते थे और अब भी कभी कभी खेलने आते हैं। हम तो बिल्कुल सपने में ही पहुँच गये कि वाह एक तो इतने सारे फ़िल्मी सितारे यहाँ रहते हैं और इतने बड़े बड़े खिलाड़ी भी यहाँ रहते हैं, मुंबई का ह्रदय कितना बड़ा है। मन में इच्छा हो रही थी कि अभी दौड़कर जाऊँ और शिवाजी पार्क में किसी नेट में ढूँढ़कर आऊँ कि शायद कहीं हमारे ये महान खिलाड़ी अभ्यास कर रहे हों।

दादर चौपाटी     शिवाजी पार्क के दूसरी तरफ़ दादर चौपाटी है, हमें पता नहीं था कि दादर चौपाटी क्या है बस हमें इतना बताया गया कि समुंदर का एक किनारा है, क्योंकि हमें तो यह पता था कि चौपाटी दो ही हैं, एक जूहु चौपाटी और गिरगाँव चौपाटी। हमें बताया गया कि शाम के समय दादर चौपाटी थोड़ा संभलकर जाना क्योंकि लहरें तेज होती हैं, पता नहीं कितना सच था, क्योंकि हम दादर चौपाटी जा ही नहीं पाये।

मन में गाना चल रहा था “ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ, जरा बचके जरा हटके ये है बॉम्बे मेरी जान”, इस गाने को ध्यान से सुनियेगा इसमें बॉम्बे की एक एक खूबी को अच्छे से सम्मिलित किया गया है, जो लोग बम्बई में रहते हैं और जो रह चुके हैं या आ चुके हैं, वे इसे अच्छी तरह से समझेंगे।

जारी..