जायेगा। इन सारी चीजों को सोचते समय हम विचलित नहीं होते, वरन् हम अपने आप को दृढ कर रहे होते हैं।
व्याकुलता – चिंतन
जायेगा। इन सारी चीजों को सोचते समय हम विचलित नहीं होते, वरन् हम अपने आप को दृढ कर रहे होते हैं।
एक अच्छी बात यह हुई है कि पास ही पुलिसचौकी खुल गई है, तो इस तरह की हरकतें पहले बगीचे में होती थीं वे अब चौकी के पीछे की गलियों में होने लगी हैं।
आखिरी बात हमेशा अपने वित्तीय निर्णय लेने के पहले अपने जीवनसाथी को अपने निर्णय के बारे में जरूर बतायें, कम से कम इस बहाने घरवाली को हमारे वित्तीय निर्णयों का आधारभूत कारण पता रहता है और उनके संज्ञान में भी रहता है, इससे शायद उनको भी अपने मित्रमंडली में मदद देने में आसानी हो। जीवन और निवेश सरल बनायें, दोनों सुखमय होंगे।
अब हालत यह है कि उसके बाद से किसी भी दरवाजे से निकलना होता है तो पहले अच्छे से पड़ताल कर लेते हैं, संतुष्ट हो लेते हैं फ़िर ही निकलते हैं, दर्द तो अब भी बहुत है, सूजन कम है। समय के साथ साथ सब ठीक हो जाता है, गहरे जख्म भी भर जाते हैं।
अभी तक विचारों को सुबह लिखने की आदत नहीं पड़ी है, क्योंकि अगर सुबह ही विचार लिखने बैठ गये तो फ़िर प्रात: भ्रमण मुश्किल हो जाता है पर सुबह के विचारों को कहीं ना कहीं इतिहास बना लेना चाहिये, मानव मन है जो विचारों को जितना लंबा याद रख सकता है और उतनी ही जल्दी याने कि अगले ही क्षण भूल भी सकता है। ऐसे पता नहीं कितने विचारों की हानि हो चुकी है। जो शायद कहीं ना कहीं जीवन का मार्ग और दशा बदलने का कार्य करते हैं।
हम उन बैंक अधिकारी के साथ अपने मित्र के सायबर कैफ़े गये, जहाँ रोज शाम वे इन्टरनेट का उपयोग करने जाते थे, उन्होंने हमें सबसे पहले गूगल में खोजकर हिन्दी के बारे में बताया, फ़िर हिन्दी में कुछ लेख भी पढ़वाये, अब याद नहीं कि वे सब कोई समाचार पत्र थे या कुछ और, बस यह याद है कि किसी लिंक के जरिये हम पहुँचे थे, और वह शायद हिन्दी की शुरूआती अवस्था थी । हिन्दी लिखने के लिये कोई अच्छा औजार भी उपलब्ध नहीं था।
तब तक हमारा 486 DX2 दगा दे चुका था, यह कम्प्यूटर लगभग हमारे पास ४-५ वर्ष चला, और हमने फ़िर इन्टेल छोड़ दिया, और ए एम डी का एथलॉन प्रोसेसर वाला कम्प्यूटर ले लिया, कीबोर्ड हालांकि नहीं बदला वह हमने अपने पास मैकेनिकल वाला ही रखा, क्योंकि मैमरिन कीबोर्ड बहुत जल्दी खराब होते थे और उसमें टायपिंग करते समय टका टक आवाज भी नहीं आती थी, तो लगता ही नहीं था कि हम कम्प्यूटर पर काम भी कर रहे हैं, एँटर की भी इतनी जोर से हिट करते थे कि लगे हाँ एँटर मारा है, जैसे फ़िल्म में हीरो एन्ट्री मारता है।
उस समय लाईवजनरल, ब्लॉगर, टायपपैड, मायस्पेस, ट्रिपोड और याहू का एक और प्लेटफ़ॉर्म था, अब उसका नाम याद नहीं आ रहा है। फ़िर उन्हीं बैंक अधिकारी के साथ ही हम सायबर कैफ़े जाने लगे और हिन्दी के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता ने हमें उनका साथ अच्छा लगने लगा, पर इसका फ़ायदा यह हुआ कि अब वे शाम रंगीन हमारे साथ हिन्दी के बारे में जानने और ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म को जानने में करने लगे। सारे लोग यही सोचते थे कि देखो ये लड़का तो गया हाथ से अब यह भी अपनी शामें सायबर कैफ़े में रंगीन करने लगा है।
परंतु उस समय इन्टरनेट की रफ़्तार इतनी धीमी थी कि एक घंटा काफ़ी कम लगता था और उस पर हमारी जिज्ञासा की रफ़्तार और सीखने की उत्कंठा बहुत अधिक थी। हमने बहुत सारे ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म देखे परंतु ब्लॉगर का जितना अच्छा और सरल इन्टरफ़ेस था उतना सरल इन्टरफ़ेस किसी ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म का नहीं था । हमने वर्डप्रेस का नाम इस वक्त तक सुना भी नहीं था।
काफ़ी दिनों की रिसर्च के बाद क्योंकि इन्टरनेट की रफ़्तार बहुत धीमी थी और अपनी अंग्रेजी भी बहुत माशाअल्ला थी, तो इन दोंनों धीमी रफ़्तार के कार्यों से ब्लॉगिंग की दुनिया में आने में देरी हुई, तब तक गूगल करके हम बहुत सारे हिन्दी ब्लॉगिंग कर रहे ब्लॉगरों को पढ़ने लगे थे, उस समय चिट्ठाग्राम, अक्षरविश्व जैसी महत्वपूर्ण वेबसाईस होस्ट की गई थीं, जिससे बहुत मदद मिलती थी, और उस समय कुछ गिने चुने शायद ८०-९० ब्लॉगर ही रहे होंगे। आपस में ब्लॉगिंग को बढ़ावा देते, टिप्पणियाँ करते, लोगों को कैसे ब्लॉगिंग के बारे में बताया जाये, इसके बारे में बात करते थे। उस समय हम सोचते थे कि कम से कम रोज एक वयक्ति को तो हम अपने ब्लॉग के बारे में बतायेंगे। जिससे पाठक तो मिलना शुरू होंगे।
जारी..