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हमनाम ने ऋण लिया और HSBC एवं ABN AMRO RBS परेशान कर रही हैं हमें !!

    दो वर्ष पहले मैं मुंबई से बैंगलोर शिफ़्ट हुआ था, नयी कंपनी नया माहौल था, अपने सारे बैंको, क्रेडिट कार्ड और जितने भी जरूरी चीजें थीं सबके पते  भी बदलवाये, मोबाईल का नया पोस्टपैड कनेक्शन लिया। बस इसके बाद से एक परेशानी शुरू हो गई।

    बैंगलोर शिफ़्ट हुए २ महीने ही हुए थे और एक दिन हमारा मोबाईल बजने लगा, ऑफ़िस में थे, बात हुई, सामने से बताया गया कि हम कोर्ट पुलिस से बोल रहे हैं और आपके खिलाफ़ हमारे पास समन है, क्योंकि आपने बैंकों के ऋण नहीं चुकाये हैं, हमने पूछा कि कौन से बैंकों के ॠण नहीं चुकाये हैं, क्या आप बतायेंगे ? हमें बताया गया कि हमने कुछ साल पहले बहुत सारी बैंकों से बैंगलोर से ऋण लिये हैं और उसके  बाद चुकाये नहीं गये हैं। हमने कहा कि हमारा नाम आप सही बता रहे हैं परंतु हम वह नहीं हैं, जिसे आप ढूँढ़ रहे हैं, फ़िर उन्होंने अपना पता, कंपनी का नाम मुंबई का पुराना पता, जन्मदिनांक आदि पूछा और कहा कि माफ़ कीजियेगा “आप वे व्यक्ति नहीं हैं !!” ।

    फ़िर लगभग एक वर्ष निकल गया अब HSBC बैंक से कोई सज्जन हमारे घर पर आये और अभी तक वे लगभग ३ बार आ चुके हैं और कहते हैं कि कुछ ३६,००० रूपये क्रेडिट कार्ड के बाकी हैं, हमारी घरवाली ने तुरत कहा कि पहली बात तो हमारी आदत नहीं है किसी बाकी की और दूसरी बात HSBC में कभी हमने कोई एकाऊँट नहीं खोला और क्रेडिट कार्ड नहीं लिया। और वह व्यक्ति तीनों बार चुपचाप चला गया।

     अब आज ABN AMRO RBS से घर के नंबर पर फ़ोन आने लगे कि आपने बैंक से ७ लाख ७२ हजार रूपये का लोन लिया था जो कि अभी तक बकाया है,

हमने पूछा – “यह लोन हमने कब लिया है ?”

जबाब मिला – “यह लोन आपने २००८ में लिया है ?”

हमने पूछा – “क्या आप बता सकते हैं कि यह लोन किस शहर से लिया गया है ?”

जबाब मिला – “बैंगलोर से लिया गया है”

हमने पूछा – “क्या आपने वेरिफ़ाय किया है कि मैं ही वह व्यक्ति हूँ, जिसने लोन लिया है ?”

जबाब मिला – “विवेक रस्तोगी ने लोन लिया है”

हमने कहा – “इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं ही वह व्यक्ति हूँ जिसने लोन लिया है ।”

कुछ जबाब नहीं मिला ।

हमने कहा आप एक काम करें हमें बकाया का नोटिस भेंजे हम आपको कोर्ट में निपटेंगे।

तो सामने बैंक से फ़ोन रख दिया गया ।

    अब हम चाहते हैं कि यह मामला बैंकिग ओम्बडसमैन के सामने रखा जाये और इन बैंकों से पूछा जाये कि किसी भी समान नाम के वयक्ति को परेशान करने का इनके पास क्या आधार है ? क्योंकि इस प्रकार के फ़ोन आना और किसी व्यक्ति का घर पर आना कहीं ना कहीं मानसिक प्रताड़ना है।

    हम भी बैंकिंग क्षैत्र में पिछले १४ वर्षों से सेवायें दे रहे हैं, और जहाँ तक हमारी जानकारी है उसके अनुसार हमेशा बकाया ऋण वालों को हमेशा पैनकार्ड या उसके पते की जानकारी वाले प्रमाण से ट्रेस किया जाता है। क्या इन बैंकों (HSBC & ABN AMRO RBS) के पास इतनी भी अक्ल नहीं है कि पहले व्यक्ति को वेरिफ़ाय किया जाये। वैसे हमने अभी सिबिल (CIBIL) की रिपोर्ट भी निकाली थी, क्योंकि हम एक लोन लेने का सोच रहे थे, तो उसमें अच्छा स्कोर मिला। ये बैंकें सिबिल (CIBIL) से हमारा रिकार्ड भी छान सकती हैं।

    हम इन दोनों बैंकों (HSBC & ABN AMRO RBS) को चेतावनी देते हैं कि अगर अब हमारे पास या तो कोई फ़ोन आया या फ़िर कोई व्यक्ति घर पर बिना हमें वेरिफ़ाय करे आया तो हम इनकी शिकायत बैंकिंग लोकपाल से करने वाले हैं, और न्यायिक प्रक्रिया अपनाने पर बाध्य होंगे।

हम लोकतंत्र के ऊपर गर्व कब कर पायेंगे।

    जनता का गुस्सा उबल रहा है, जनता क्रोध में उफ़न रही है, पर हमारी सरकार है कि सो रही है । सरकार को जनता को गंभीरता से लेना कभी आया ही नहीं है, यह गुण इन्हें अंग्रेजों से विरासत में मिला है। शनिवार को जो भी कुछ विजय चौक और इंडिया गेट पर हुआ है उससे तो यही साबित होता है कि हम लोकतंत्र में नहीं रहते हैं, हम अब भी अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम हैं।

    नहीं चाहिये हमें ऐसी सरकार जो हमारे लोकतंत्र के हक को हमसे छीने, जिन लोगों को अपनी भाषा की मर्यादा और अपने ऊपर ही संयम नहीं हैं वो क्या जनता को इसकी सीख दे रहे हैं। जब जनता सड़क पर आती है तो क्रांतियाँ होती हैं। जनता सड़क पर अपना मौलिक अधिकार के लिये है, ना कि सरकार का विरोध करने के लिये सड़क पर उतरी है।

    फ़िर भी सरकार अपनी पूरी ताकत इस जनता के ऊपर लठ भांजने में और आंसू गैस के गोले छोड़ने में लगा रही है। क्या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के खिलाफ़ अपनी आवाज उठाना अपराध है ? क्या ये लोग वाकई कानून तोड़ रहे हैं ? क्या ये हिंसक तरीके से प्रतिरोध कर रहे हैं ?

    शरम आती है मुझे कि मैं ऐसे लोकतंत्र का नागरिक हूँ और ऐसी सरकार इस लोकतंत्र को चला रही है। केवल कहने के लिये लोकतंत्र है, बाकी सब अंग्रेज तंत्र है, अंग्रेजों की बर्बरता के सारे गुण लोकतंत्र को चलाने वालों के जीन में रचे बसे हुए हैं, जनता के बीच जाकर उनकी बात सुनकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाले कहते हैं कि हमारी भी लड़कियाँ हैं, हमें भी भय है, कितनी हास्यास्पद बात है। सारी पुलिस तो लोकतंत्र के इन कथित चालकों और परिवारों की सुरक्षा में लगी है।

    लोकतंत्र में वोट देने का अधिकार होता है जिससे आप अपने नेता का चुनाव कर सकते हैं और सरकार बना सकते हैं, परंतु ऐसे लोकतंत्र का को कोई मतलब नहीं है जहाँ जनता की आवाज को दबाया जाये और कुचला जाये।

    आज मन बहुत दुखी है, सुबह पुलिस  विजय पथ और इंडिया गेट से प्रदर्शनकारियों को अपनी तथाकथित ताकत दिखाकर कहीं अज्ञात स्थान पर ले गई है, सरकार और पुलिस इतने डरे हुए क्यों हैं, उनकी तो केवल कानून में बदलाव की माँग है, वो पुलिस या सरकार को भारत छोड़कर जाने को तो नहीं कह रहे हैं।

    पता नहीं कि हम लोकतंत्र के ऊपर गर्व कब कर पायेंगे।

बैंगलोर पासपोर्ट की ऑनलाइन सेवा याने कि भ्रष्टाचार (Bangalore Passport online seva means Corruption)

    सरकार ने लगभग २ वर्ष पहले पासपोर्ट कार्यालय और पुलिस के भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलवाते हुए, पासपोर्ट की प्रक्रिया ऑनलाइन की थी। मैंने खुद लगभग १.८ वर्ष पहले पासपोर्ट बनवाया था और इस प्रक्रिया का साक्षात अनुभव किया था। पासपोर्ट कार्यालय में केवल २ घंटे की अवधि में मेरा पूरा कार्य हो गया था, सरकार ने ऑनलाईन प्रक्रिया करते हुए प्रोसेसिंग का कार्य टीसीएस को ऑउटसोर्स कर दिया था।
    अभी मेरे ऑफ़िस के कुछ मित्रों को पासपोर्ट बनवाना था तब यह भ्रष्टाचार हमारे सामने आया । जनता समझती है कि अगर सरकार सुविधाएँ ऑनलाइन कर दे उसको सुविधाएँ मिलने लगेंगी। पहली बार जब IRCTC के द्वारा रेल्वे ने ऑनलाइन टिकट की सुविधा दी थी, तब भी हमने सोचा था कि अब टिकट आराम से मिल जाया करेगा । IRCTC की ऑनलाइन सुविधा का दुरूपयोग जिस तरह से एजेन्टों की मदद से किया गया वह तो सर्वविदित है, अब IRCTC की सुविधा फ़िर भी बहुत कुछ ठीक है।
    पासपोर्ट के आवेदन के लिये पासपोर्ट केन्द्र की वेबसाईट पर जाना होता है और आवेदक को अपना user id  बनाना होता है। फ़िर आवेदक को आवेदन भरकर ऑनलाइन ही eForm जमा करना होता है, जिससे पासपोर्ट वेबसाइट एक यूनिक आवेदन नंबर देती है। उस eForm की प्रक्रिया होने के बाद आवेदक को पासपोर्ट सेवा केन्द्र की वेबसाइट से अपांइटमेंट लेना होता है जो कि आजकल दो दिन पहले खोलते हैं और उसमें PSK kendra चुनना होता है फ़िर एक captcha भरना होता है, उसके बाद समय को चुनना होता है, यह पन्ना कभी खुलता ही नहीं है।
    यह अपांइटमेंट की प्रक्रिया शाम ६ बजे शुरू होती है और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बैंगलोर में ४ PSK kendra हैं और हर PSK kendra पर लगभग ६०० अपांइटमेंट होते हैं और लगभग शाम ६ बज कर १ मिनिट पर सारे अपांटमेंट खत्म हो चुके होते हैं। हमारे मित्र लगभग १० दिन तक यही प्रक्रिया करते रहे परंतु हरेक बार नाकाम रहे, फ़िर उन्होंने कुछ फ़ोरमों में जाकर देखा, तो पता चला कि ये काम भी आजकल एजेन्ट कर रहे हैं। उन्होंने justdial.com पर जाकर passport agent in bangalore के लिये बोला और झट से उन्हें १० से ज्यादा फ़ोन नंबर मुहैया करवा दिये गये, उन्होंने लगभग सभी को फ़ोन लगाया और सभी से एक समान जबाब मिला कि आपको ग्यारन्टीड अपांइटमेंट मिल जायेगा, आप चिंता न करें हमारी फ़ीस ८०० रूपये है।
    आऊटर रिंगरोड स्थित साँई आर्केड वाले PSK Kendra के लिये उन्हें अपांइटमेंट मिला और उन्होंने बताया कि इसी PSK Kendra के सामने (Diagonal Opposite) एक गैस सिलेंडर रखे हुए दुकान जो कि कच्ची सी है टीन की है वह नजर आयेगी, वहाँ गैस का कोई कार्य नहीं होता है, पर वहाँ ३ एजेन्ट बैठे रहते हैं और यही सब करते हैं।
    क्यों इस भ्रष्टाचार पर मीडिया भी चुप है समझ नहीं आता ? और ऊपर से यह लाईन हमें मुँह चिढ़ाती है –
Passport Seva Project Wins CSI-Nihilent e-Governance Award for Excellence

मैले मन, बेशर्मी की चादर, उच्चशिक्षितों से तो अनपढ़ अच्छॆ ?

    रोज सुबह अपने ऑफ़िस जाते समय एक जगह ट्रॉफ़िक ऐसा होता है, जहाँ कोई सिग्नल नहीं है, और मुख्य सड़क है । यह ट्रॉफ़िक जाम एक मुख्य सिग्नल से मात्र ५०-१०० मीटर दूर ही है, परंतु पुलिस के भी मात्र एक या दो जवान ही होते हैं जो शायद वह नियंत्रित नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें वह मुख्य सिग्नल संभालना भारी पड़ता है, वे भी बेचारगी की अवस्था में देखते रहते हैं।

    सब जल्दी जाने के चक्कर में ट्रॉफ़िक के सारे नियम कायदे कानून ताक पर रखकर बीच सड़क पर लोगों का रास्ता रोककर खड़े होते हैं। जितने भी लोग अपने दोपहिया और चारपहिया वाहन लेकर खड़े होते हैं वे सब तथाकथित आईटी की बड़ी बड़ी कंपनियों में काम करने वाले, पढ़े लिखे और उच्चशिक्षित लोग होते हैं। इन उच्चशिक्षित लोगों को नियम की अवहेलना करना और दुखी कर जाता है।

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ये दो फ़ोटो मैंने अपने मोबाईल से लिये हैं..

   कई बार सोचता हूँ कि इनसे पूछा जाये कि क्या आप पढ़े लिखे हैं ? क्या आपको परिवार ने संस्कार दिये हैं, अगर नियम पालन करवाने वाले बेबस हैं तो क्या आप भी संसद में बैठे नेताओं जैसी असंसदीय कार्यों में लिप्त होना चाहेंगे ? क्या आप वाकई में शिक्षित हैं ? क्या आपके विद्यालय / महाविद्यालय में यही सिखाया जाता है ? क्या आप अपने बच्चे को भी यही सब सिखाना चाहेंगे ?

    पर मन की कोफ़्त मन में ही दबी रह जाती है, आज की भागती दौड़ती जिंदगी में सबके मन मैले हो चुके हैं, और बेशर्मी की चादर ओढ़ रखी है। चेहरे पर गलत करने की कोई शर्म नजर नहीं आती । बेशर्मी से बीच सड़क पर खड़े होकर दूसरी ओर के वाहनों को नहीं निकलने देते हैं और खुद न आगे जा सकते हैं और ना पीछे जा सकते हैं।

    इन पढ़े लिखे नौजवन और नवयुवतियों को देखकर ऐसा लगता है कि अच्छा है कि लोग अनपढ़ ही रहें, पढ़ने लिखने के  बाद भी अगर नियम पालना नहीं आयें तो ऐसी पढ़ाई लिखाई किस काम की ?

    यही लोग जब दूसरे देशों में जाते हैं तो भीगी बिल्ली बन जाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यहाँ अगर नियम तोड़ा तो कोई बचाने वाला नहीं है और भारत में नियम हैं जरूर मगर तोड़ने के लिये । अगर हम जिस तरह से प्रगति कर रहे हैं उसी तरह से अपने दिमाग और दिल को भी उन्नति की राह पर ले चलें तो कमाल हो जाये। भारत में लोग किसी भी नियम की परवाह नहीं करते।

जगह – ब्रुकफ़ील्डस से महादेवपुरा जाते हुए आईटीपीएल सिग्नल के बाद ५०-१०० मीटर के बीच, बैंगलोर

आचार्य चतुरसेन कृत “सोमनाथ” और मेरा दृष्टिकोण..

    आज आचार्य चतुरसेन कृत “सोमनाथ” उपन्यास खत्म हुआ, इस उपन्यास को पढ़ने के बाद कहीं ना कहीं मन और दिल आहत है, बैचेन है.. कैसे हमारे ही लोग जो कि केवल अपने कुछ स्वार्थों के लिये गद्दारी कर बैठे.. और आखिरकार जिन लोगों के लिये गद्दारी की गई, जिस वस्तु के लिये गद्दारी की गई.. वह भी उनसे दगा कर बैठी.. और जिन लोगों से गद्दारी की गई.. उन लोगों ने उन्हें छोड़ा भी नहीं..

    किसी ने जाति के नाम पर .. किसी ने स्त्री के प्रेम में .. किसी ने गद्दी के लिये .. किसी ने अपने स्वार्थ के लिये .. किसी ने अपने अपमान के बदले के लिये .. अपने ही देव अपने ही धर्म को कलुषित किया .. और दूसरे धर्म ने कुफ़्र और काफ़िर कहकर .. अनुचित ही धर्मों को और उसकी संस्कृतियों को तबाह किया..

    छोटी छोटी रियासतों में आपस की दुश्मनी ने गजनी के महमूद को सोमनाथ पर चढ़ाई के दौरान बहुत मदद की.. छोटे और बड़े साम्राज्यों ने अपनी आन बान और शान बचाने के लिये जिस तरह से गजनी के महमूद के आगे समर्पण कर दिया.. वह भारत के लिये इतिहास का काला पन्ना है.. और जिन्होंने अपने प्राण न्यौछावार कर .. मरते दम तक अपनी मातृभूमि की रक्षा की.. उन्होंने अपना नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अमिट स्यासी से लिखवा लिया है..

    पुरातनकाल में जब राजाओं का शासन होता था.. तब की कूटनीति और राजनीतिक चालों में बहुत ही दम होता था.. जितने भी कूटनीतिज्ञ और राजनीतिक अभी तक मैंने इतिहास की किताबों में पढ़े हैं.. वे आज की दुनिया में देखने को नहीं मिलते हैं.. इसका मुख्य कारण जो इतिहास से समझ में आता है वह है ब्राह्मणों का उचित सम्मान और वैदिक अध्ययन को समुचित सहयोग ।

    सोमनाथ में चौहान, परमार, सोलंकी, गुर्जर आदि राजाओं का वर्णन जिस शूरवीरता से किया गया है, उससे क्षत्रियों के लिये हम नतमस्तक हैं.. परंतु वहीं जहाँ इन राजाओं के शौर्य और पराक्रम को देखने को मिलता है .. वहीं इनमें से ही कुछ लोगों द्वारा पीठ में छुरा घोंपने का भी काम किया..

    सोमनाथ पर आक्रमण और सोमनाथ को ध्वस्त करने के बाद जिस तरह से प्रजा को गुलाम बनाकर उनपर अत्याचार किये गये.. और शब्दचित्र रचा गया है.. बहुत ही मार्मिक है.. हरेक बात पर महमूद को कर चाहिये होता था.. क्योंकि वह भारत में शासन करने के उद्देश्य से नहीं आया था .. वह आया था केवल भारत को लूटने के लिये.. धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने के लिये और इस्लामिक साम्राज्य को स्थापित करने के लिये..

    गजनी का महमूद भले ही कितना भी शौर्यवान और पराक्रमी रहा हो.. परंतु यहाँ पर आचार्य चतुरसेन ने महमूद की कहानी को जो अंत किया है वह थोड़ा बैचेन कर देता है.. परंतु यह भी पता नहीं कि वाकई इस गजनी के महमूद का सत्य कभी सामने आ पायेगा ।

आत्मसंकल्प या बलपूर्वक

किसी भी कार्य को करने के लिये संकल्प चाहिये होता है, अगर संकल्प नहीं होगा तो कार्य का पूर्ण होना तय नहीं माना जा सकता है। जब भी किसी कार्य की शुरूआत करनी होती है तो सभी लोग आत्मसंकल्पित होते हैं, कि कार्य को पूर्ण करने तक हम इसी उत्साह के साथ जुटे रहेंगे।

परंतु असल में यह बहुत ही कम हो पाता है, आत्मसंकल्प की कमी के कारण ही दुनिया के ५०% से ज्यादा काम नहीं हो पाते, फ़िर भले ही वह निजी कार्य हो या फ़िर व्यापारिक कार्य । कार्य की प्रकृति कैसी भी हो, परंतु कार्य के परिणाम पर संकल्प का बहुत बड़ प्रभाव होता है।

कुछ कार्य संकल्प लेने के बावजूद पूरे नहीं कर पाने में असमर्थ होते हैं, तब उन्हें या तो मन द्वारा हृदय पर बलपूर्वक या हृदय द्वारा मन पर बलपूर्वक रोपित किया जाता है। बलपूर्वक कोई भी कार्य करने से कार्य जरूर पूर्ण होने की दिशा में बढ़ता है, परंतु कार्य की जो मूल आत्मा होती है, वह क्षीण हो जाती है।

उदाहरण के तौर पर देखा जाये कि अगर किसी को सुबह घूमना जरूरी है तो उसके लिये आत्मसंकल्प बहुत जरूरी है और व्यक्ति को अपने आप ही सुबह उठकर बाग-बगीचे में जाना होगा और संकल्पपूर्वक अपने इस निजी कार्य को पूर्ण करना होगा। परंतु बलपूर्वक भी इसी कार्य को किया जा सकता है, जिम जाकर, जहाँ ट्रेडमिल पर वह चढ़ जाये और केवल पैर चलाता जाये तो उसका घूमना जरूर हो जायेगा, परंतु मन द्वारा दिल पर बलपूर्वक करवाया गया कार्य है। किंतु वहीं बाग-बगीचे में घूमने के लिये आत्मसंकल्प के बिना घूमना असंभव है, क्योंकि तभी व्यक्ति के हाथ पैर चलेंगे। जब हाथ पैर चलेंगे, उत्साह और उमंग होगी तभी कार्य पूर्ण हो पायेगा।

कार्य पूर्ण होना जरूरी है, फ़िर वह संकल्प से हो या बलपूर्वक क्या फ़र्क पढ़ता है, संकल्प से कार्य करने पर आत्मा प्रसन्न रहती है, परंतु बलपूर्वक कार्य करने से आत्मा हमेशा आत्म से बाहर निकलने की कोशिश करती है।

जो स्कूल जाते हैं वे नौकरी करते हैं और जो कतराते हैं वे उन्हें नौकरी पर रखते हैं.. बेटेलाल से कुछ बातें..

    अभी बस बेटे को बस पर स्कूल के लिए छोड़ कर आ रहा हूँ, लगभग १० मिनिट बस स्टॉप पर खड़ा था, तो बेटेलाल से बात हो रही थीं।
    कहने लगा कि मम्मी बोल रही थी कि कॉलेज में यूनिफ़ॉर्म नहीं होती, वहाँ तो कैसे भी रंग बिरंगे कपड़े पहन कर जा सकते हैं, मैंने कहा हाँ पर आजकल बहुत सारे कॉलेजों में भी यूनिफ़ॉर्म पहन कर जाना पड़ता है तो मैं तो ऐसे ही कॉलेज में एडमिशन लूँगा जिसमें अपने मनमर्जी के कपड़े पहन कर जा सकते हों।
    फ़िर कॉलेज के बाद की बात हुई कि आईबीएम में भी तो आप अपने मनमर्जी के कपड़े पहन कर जा सकते हो, मैंने कहा हाँ पर केवल फ़ोर्मल्स और शुक्रवार को जीन्स और टीशर्ट पहन सकते हैं, टीशर्ट कैसी पहन सकते हैं, कॉलर वाली या गोल गले वाली, मैंने कहा “कॉलर वाली, गोल गले वाली अलाऊ नहीं है”, ऊँह्ह फ़िर मैं आईबीएम में नहीं जाऊँगा, मुझे तो ऐसी जगह जाना है जहाँ गोल गले वाली टीशर्ट में जा सकते हों, फ़िर मैं माईसिस में जाऊँगा तो मैंने कहा कि हाँ वहाँ पर तो पूरे वीक कुछ भी पहन कर जा सकते हो, बस तुम स्मार्ट लगने चाहिये।
    तो ठीक है मैं आईबीएम को मोबाईल बनाऊँगा और यहीं पर एक इतनी ऊँची बिल्डिंग बनाऊँगा जो कि चाँद को छुएगी जिससे यहाँ पास में रहने वाले लोगों को ऑफ़िस आने में आसानी होगी, और मोबाईल ऑफ़िस को उनके घर के पास खड़ा कर दूँगा, तो प्राब्लम सॉल्व हो जायेगी।
    मैंने कहा कि तुम नौकरी क्यों करोगे, तुम खुद एक कंपनी बनाओ, तो जबाब मिला कि मेरे पास इतने पैसे थोड़े ही हैं जो इतनी बड़ी कंपनी खोल लूँगा, हमने कहा कि हरेक कंपनी की शुरूआत छोटे से ही होती है बाद में बाजार में जाने के बाद अच्छा कार्य करने पर बड़ी हो जाती है। तो नौकरी का मत सोचो और कंपनी खोलने का सोचो, उसके लिये पैसे की नहीं अक्ल की जरूरत होती है, उसके लिये स्कूल भी जाने की जरूरत नहीं होती, जो स्कूल जाते हैं वे नौकरी करते हैं और जो स्कूल जाने से कतराते हैं दिमाग कहीं और लगाते हैं वे स्कूल जाने वालों को नौकरी पर रखते हैं।
    तो बेटेलाल बोलते हैं फ़िर मैं पार्टनर बन जाऊँगा और आगे चलाऊँगा, इतने में बस आ चुकी थी, हम सोच रहे थे कि काश कुछ सालों पहले इतनी समझ हम में होती तो ऐसा ही कुछ कर रहे होते।
    जिन्होंने भी अभी तक अच्छे कॉलेज से शिक्षा ली है, साधारणतया वे अभी तक बड़ी कंपनी नहीं बना पाये हैं, परंतु औसत शिक्षा वाले लोगों ने असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए बड़ी बड़ी कंपनियाँ बनाई हैं।

खोह, वीराने और सन्नाटे

    जिंदगी की खोह में चलते हुए वर्षों बीत चुके हैं, कभी इस नीरव से वातावरण में उत्सव आते हैं तो कभी दुख आते हैं और कभी नीरवता होती है जो कहीं खत्म होती नजर नहीं आती। कहीं दूर से थोड़ी सी रोशनी दिखते ही लपककर उसे रोशनी की और बढ़ता हूँ, परंतु वह रोशनी पता नहीं अपने तीव्र वेग से फ़िर पीछे कहीं चली जाती है।

खोह १

    इस खोह में साथ देने के लिये न उल्लू हैं, न चमगादड़ हैं, बस सब जगह भयानक भूत जो दीवालों से चिपके हुए कहीं उल्टॆ टंगे हुए हैं, और मैं अब इन सबका आदी हो चुका हूँ, कभी डर लगता है तो भाग लेता हूँ पर आखिरकार थककर वहीं उन्हीं भूतों के बीच सोना पड़ता है।

लटकते भूत

    शायद मैं भी इन भूतों के लिये अन्जान हूँ, और ये भूत मेरे लिये अन्जान हों, इस अंधेरी खोह में चलना मजबूरी सी जान पड़ती है, कहीं सन्नाटे में, वीराने में कोई हिटलर हुकुम बजा रहा होता है, कहीं कोई सद्दाम अपनी भरपूर ताकत का इस्तेमाल करने के बजाय किसी ऐसी ही खोह में छुप रहा होता है।

अँधेरा १

    इन वीरानों में उत्सवों की आवाजें बहुत ही भयानक लगती हैं, शरीर तो कहीं अच्छी ऊँचाईयों पर है, परंतु जो सबके मन हैं वे ही तो भूत बनकर इन खोह में लटकते रहते हैं, सबके अपने अपने जंगल हैं और अपनी अपनी खोह, वीराने और सन्नाटे सबके अपने जैसे हैं, किसी के लिये इनका भय ज्यादा होता है और किसी के लिये इनका भय कुछ कम होता है।

वीरान जंगल

    बाहर निकलने का रास्ता बहुत ही आसान है, परंतु बाहर निकलते ही कमजोर लोगों को तो दुनिया के भेड़िये और चील कव्वे नोच नोच कर खा जाते हैं, उनके मांस के लोथड़ों को देखकर ही तो और लोग बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करते।

खोह की दीवालें

    कुछ बहादुर भी होते हैं जो इस आसान रास्ते को आसानी से पार कर लेते हैं और जिंदगी के सारे सुख पाते हैं, जब मन में करूणा और आत्म की पुकार होगी, तभी यह भयमुक्त वातावरण और जीवन उनके लिये नये रास्ते बनाता है।

गंभीर चिंतन और मंथन देश को क्या नई दिशा देता है ? यह देखना है ।

कल ऑफ़िस से आने के बाद ऑनलाईन खबरें सुन रहे थे जो कि देश के औद्योगिक घरानों को लेकर था, कि भारत सरकार चला रही है या देश के औद्योगिक घराने चला रहे हैं। हमारे औद्योगिक घराने सरकार की मदद से आम आदमी को लूटने में लगा हुआ है। जिन लोगों ने इस चीज को सार्वजनिक मंच से उठाया, पहले उनकी मंशा पर शक होता था, पर कल जो भी हुआ उससे अब उनकी मंशा साफ़ होती जा रही है।

पहले ऐसा लगता था कि ये सब राजनैतिक लालच में किया जा रहा है और “मैं आम आदमी हूँ” की टोपी पहनने वाले लोग भारत की जनता को गुमराह कर रहे हैं, मासूमों को बरगला रहे हैं। पर कल यह बात साफ़ हो गई कि इस देश में ना पक्ष है मतलब कि सरकार और ना ही विपक्ष, सब मिले हुए हैं, इस बात को और बल मिला कि देश को औद्योगिक घराने ही चला रहे हैं।

कल बहस में एक बात सुनने को मिली जो कि सरकारी पक्ष वाली पार्टी और विपक्ष वाली पार्टी दोनों ही एक सुर में कह रही थीं, ये हर सप्ताह नये खुलासे करने वाली पार्टी केवल खुलासे करती है और अंजाम तक नहीं पहुँचाती है, ये केवल चिंगारी दिखाकर भाग जाते हैं। सही बात तो यह है कि नये खुलासे करने वाली पार्टी के पास भी समय बहुत कम है, २०१४ के चुनाव सर पर खड़े हैं, और उनका मकसद किसी भी चीज को अंजाम तक पहुँचाना हो भी नहीं सकता क्योंकि आजादी के बाद से सभी राजनौतिक घरानों की और से इतने घोटाले हुए, उनका बयां करना ज्यादा जरूरी है।

जनता नासमझ तो है नहीं, सारी बातें पहले ही सार्वजनिक हैं परंतु हमें तो यह बात समझ में नहीं आती कि अगर ये लोग इतने ही सही हैं और कोई घोटाले नहीं किये तो इतने तिलमिलाये हुए क्यों हैं। इन्हें जो करना है करने दो, आपको अपना वोटबैंक पता है फ़िर आपकी समस्या क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन लोगों को वाकई में डर लगने लगा है कि अब आम आदमी तक ये आदमी चिल्ला चिल्लाकर हमारी सारी गलत बातें पहुँचा रहा है और इससे हमें नुक्सान हो सकता है।

खैर यह तो क्रांति की शुरूआत भर है, जब तक राजनैतिक ताकतों को जनता की असली ताकत का अहसास होगा तब तक इन लोगों के लिये बहुत देर हो चुकी होगी, और इनका अस्तित्व मिट चुका होगा। खुशी इस बात की है कि जनता में गंभीर चिंतन पहुँच रहा है और जनता के बीच गंभीर मंथन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और राजनैतिक दलों के नेताओं के पास कुछ बोलने के लिये ज्यादा बचा नहीं है, सब नंगे हो चुके हैं। अब यह गंभीर चिंतन और मंथन देश को क्या नई दिशा देता है, और इतिहास में क्या लिखा जायेगा, भविष्य के गर्भ में क्या है यह तो जनता को तय करना है।

दूसरे देस में आने के बाद विचारों का परिवर्तन

    दूसरे देस जाने की इच्छा किसकी नहीं होती, हर कोई दूसरे देस का अनुभव लेना चाहता है, हम भी जून २०१२ से दूसरे देस को लगातार देख रहे हैं, और अपनी जिंदगी एक अनुभव को समृद्ध कर रहे हैं। कई नये प्रकार के लोगों से परिचय हुआ, कई नई संस्कृतियों को करीब से देख रहे हैं। जो चीज हमारी संस्कृति में है यहाँ इनकी संस्कृतियों से भिन्न है। परंतु फ़िर भी उनको करीब से देखना जानना एक अच्छा अनुभव है।

    दूसरे देस में कई लोग आसपास और दूरदराज के मुल्कों के भी मिले उनकी बातचीत करने की तहजीब बहुत करीब से जान रहे हैं, पड़ोसी मुल्कों के बारे में भी जान रहे हैं, उनकी समस्याएँ भी हमसे जुदा नहीं हैं, पर ऐसा लगता है कि उनकी समस्याएँ हमसे कहीं ज्यादा हैं। कम से कम हम लोग अपनी समस्याओं के केन्द्रीकरण के लिये जूझ रहे हैं पर उनकी समस्याएँ तो अभी भी विकेंद्रित हैं, कुछ मुल्कों के जन सैलाब ने अपनी समस्याएँ सुलझाने के लिये हाल ही में बड़ी बड़ी क्रांतियाँ की हैं, जिसमें अच्छे नेतृत्व के अभाव के चलते वे अब भी अपनी मूल समस्याओं से जूझ रहे हैं।

    ये नई समस्याएँ हैं, जो पुरानी परेशानियों के सबब थे उन्हें तो उस जनसैलाब ने जड़ से उखाड़ फ़ेंका है और नई राह की तलाश में घूम रहे हैं, मंथन चल रहा है। क्रांति कुछ लोग विचारों से शुरू करते हैं और वो चिंगारी आग में बदलते देर नहीं लगती। ये हमारे यहाँ के मूल समस्याओं को पैदा करने वालों को सोच लेना चाहिये। शासन व्यवस्था के लिये होता है, अगर कुव्यवस्था और अराजकता उसकी जगह ले लेती है तो ऐसे शासन को जन सैलाब का सामना करने का सामर्थ्य भी होना चाहिये, इतिहास गवाह है कि ऐसे शासन और शासक हमेशा के लिये मिट गये हैं।

    कुछ जगह समस्याओं के केन्द्रीकरण के लिये छोटे बच्चे भी आवाजें उठा रहे हैं तो कुछ जगह पूरी की पूरी शिक्षा पद्धति बदली जा रही है और शिक्षा लेने वाले छात्रों ने इतिहास में क्रांति से अपना नाम अमर कर दिया है। यह तय है कि समस्याओं को सुलझाने के लिये पहले हमें समस्याओं को पैदा करने वालों को जड़ से उखाड़ना होगा और उसके लिये केवल विशाल जन सैलाब से कुछ नहीं होगा, उस जन सैलाब के विचारों को आंदोलित करना होगा।

    शिक्षा पद्धति में सिरे से सुधार करने होंगे, हमें देश में उद्यमी चाहिये। अभी हमारी शिक्षा पद्धति से केवल और केवल विकासशील देशों को चलाने वाले बाबू ही मिल रहे हैं, वाकई अगर हम उद्यमशील हो जायें तो सोने की चिड़िया बनने से हमें कोई रोक नहीं सकता, हमारी जनता को जागना होगा और उनके विचारों को आंदोलित होना होगा। आखिर हरेक विकास वैचारिक आंदोलन है और इस वैचारिक आंदोलन को प्रखर और अक्षुण्ण बनाने के लिये अपने को होम करना ही होगा।

    दूसरे देस में आने के बाद विचारों का परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है, यहाँ पर कई लोगों से बात करने के बाद मेरे यह विचार ठोस होते जा रहे हैं।