बाईक मेरा बहुत बड़ा शौक रहा है, पहले इसे फ़टफ़टी कहते थे क्योंकि इसमें से फ़ट फ़ट की आवाज आती थी, पर अब बाईक कहते हैं और इसमें से फ़ट फ़ट की आवाज भी नहीं आती अब तो झूम्म्म की आवाज आती है।
मुझे बचपन की याद है पापाजी के पास सबसे पहली फ़टफ़टी थी क्रूसेडर, जिसमें से बहुत आवाज आती थी और उस आवाज को सुनकर ऐसा लगता था कि बस अब बहरे हो जायेंगे। फ़िर क्रूसेडर के बाद पापाजी ने यजदि बाईक ली। जो मुझे बेहद ही पसंद थी। ऊँचाई इतनी कि मैं बैठ ही नहीं पाता था, मैंने उसका नाम ऊँट रखा था। उसमें किक और गियर एक ही था, पहले गियर वाले डंडे से किक मारके यजदि चालू करो और फ़िर उसी डंडे को नीचे गिराकर उसका गियर बना लो। ये सब तो मुझे जादू जैसा लगता था।
यजदि की एक खासियत यह अच्छी लगती थी कि उसमें पेट्रोल और ओईल एक अनुपात में मिलाना पड़ता था पर अगर आपको कहीं जल्दी जाना है तो ओईल थोड़ा ज्यादा कर लो, फ़िर तो यजदि रॉकेट बन जाती थी, उसका पिकअप जबरदस्त हो जाता था।
जब बड़े हुए तब तक बाजार में स्कूटर ने अपनी पैठ बना ली थी, और
हमारे घर भी आया “हमारा बजाज” याने कि बजाज सुपर स्कूटर। मुझे वह स्कूटर बहुत ही पसंद था और उसी स्कूटर से मैंने दोपहिया वाहन चलाना सीखा था। कॉलेज के कुछ दिन भी उसी स्कूटर से निकले।
फ़िर बाद में मैं उज्जैन आ गया तो पहले मेरे पास एक २८ इंच की
एटलस साईकिल थी, डबल डंडे वाली, वह तो मेरे ऊँट से भी ऊँची थी, उस पर बैठने के लिये मुझे एक बड़े पत्थर का सहारा लेना पड़ता था या फ़िर पैर आगे से उचकाकर सीट पर बैठना पड़ता था। साथ ही मुझे मिली काईनेटिक की लूना, जो कि उस समय लगभग ६० किमी माईलेज देती थी। बजाज सुपर पुराना पड़ने लगा था और उसका इंजिन दम तोड़ने लगा था, बजाज सुपर हमारे घर में लगभग १४ वर्ष रहा।
सुपर के बाद हमारे घर में आया फ़िर “हमारा बजाज” का ही बजाज ब्रेवो, जो कि फ़ेल स्कूटर रहा परंतु मुझे ब्रेवो स्कूटर की जो बातें पसंद थीं वे थी उसकी अच्छी ऊँचाई, क्योंकि लगभग सभी स्कूटरों की ऊँचाई थोड़ी कम ही होती थी, और ब्रेवो का पिकअप, गजब का पिकअप था।
इसी बीच दोस्तों की बाईक राजदूत, यमाहा RX100 और कावासाकी बजाज मेरे मनपसंदीदा बाईक रहीं।
राजदूत थोड़ी भारी मोटरसाईकिल थी और उसमें किक पलट कर मारती थी, जिससे कई बार पैर में भी चोट खाई है, उस समय राजदूत का माईलेज लगभग ४० किमी मिलता था, और लगभग हर दूधवाले और पुलिसवाले के पास राजदूत ही होती थी। सबसी अच्छी मुझे राजदूत की चाबी लगती थी, बिल्कुल अलग तरह की, शायद आज तक किसी और बाईक की चाबी वैसी बनी ही नहीं है।
यमाहा RX100 मेरी सबसे करीब रही, इसमें सबसे अच्छी चीज जो मुझे भाती थी वह था इसका पिकअप और आवाज। हमने कई बार साईलेंसर की आधी गुल्ली काटकर लगाते थे, तभी ओरिजनल आवाज आती थी। आज भी अगर यह बाईक मेरे पास से निकल जाती है तो बिना देखे पता चल जाता है कि RX100 आ रही है।
कावासाकी बजाज ने जब पहली बार बाईक भारत में लाई तो मेरे दोस्त के पास जापान वाला ओरिजनल मॉडल था, और झाबुआ के माछलिया घाट जो कि लगभग १० किमी का बड़ा घाट है, उतार पर हाथ छोड़कर वह घाट पार करने जाते थे। एक बार उसी बाईक से एक दुर्घटना भी हुई, हम घूमने गये थे और बाईक लगभग ८० की रफ़्तार पर चल रही थी और उसमें आईल खत्म हो गया था, जिसका हमें पता ही नहीं था, उसके पिस्टन चिपक गये और हम बहुत दूर तक घिसटते हुए गये, फ़िर एक वाहन में रखकर बाईक वापस लाये थे। खैर बाद में वह ओरिजिनल पिस्टन नहीं मिला। उस समय ओईल हम केस्ट्रोल का उपयोग में लाते थे।
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इसी बीच मेरे पास एक बाईक आयी टीवीएस की मैक्स 100 जो कि मेरी सबसे पसंदीदा बाईक रही, उसका पिकअप और उसकी आवाज का तो मैं दीवाना था और यह बाईक भी दूधवालों के पास बहुत प्रसिद्ध रही। यह बाईक मेरे पास लगभग २ वर्ष रही और इस बाईक से मैंने उज्जैन के आसपास के लगभग सारी जगहें घूम डाली थीं, लगभग हर गाँव भी। इस बाईक से मुझे लांग ड्राईव पर जाना बहुत अच्छा लगता था, और खासकर सुबह जब सूरज आसमान पर चढ़ रहा होता था, और मैं खेतों के बीच यह बाईक लेकर घूमा करता था।
फ़िर मेरे पास आई बजाज की सीडी १००, माईलेज और मैंन्टेनेन्स के लिहाज से बहुत अच्छी बाईक है, और इससे मैंने इंदौर बहुत आना जाना किया एक एक दिन में मैं इससे लगभग १५० किमी तक की सवारी कर लिया करता था। इसका पिकअप थोड़ा कमजोर था, परंतु बाकी मामलों में ठीक थी।
इसके बाद थोड़े दिन हमने हीरो हांडा और पल्सर के भी मजे लिये, अब बैंगलोर में आकर फ़िर बाईक की जरूरत पड़ी तो हमने फ़िर सुजुकी मैक्स 100 का पता किया तो पता चला कि वो तो कब की कंपनी ने बंद कर दी है। हमें सुजुकी का इंजिन बेहद पसंद है और इसकी मशीन के आगे हमें और किसी कंपनी की बाईक की मशीन पसंद ही नहीं है, फ़िर
सोचा कि रॉयल एनीफ़ील्ड की थंडरवर्ल्ड बुलेट ली जाये जो कि 350 सीसी की है परंतु बैंगलोर में इसका वैटिंग पीरियड लगभग १० महीने का था और हमें बाईक एकदम चाहिये थी, अब चूँकि वजन बड़ चुका है इसलिये 100 सीसी की बाईक से काम नहीं होने वाला था, इसलिये हमने 125 सीसी की बाईक लेने की सोची, जिससे पिकअप और माईलेज अच्छा मिले।
हमने ली सुजुकी स्लिंगशॉट प्लस हाईएन्ड मॉडल जिसमें ऑटो स्टार्ट और एलॉय व्हील हैं। और इसकी बैठने के लिये सीट बहुत ही आरामदायक है, बाईक को इस तरह से डिजाईन किया गया है कि अगर दो लोग भी बैठे हैं और बाईक रफ़्तार में है तो इसका बैलेन्स नहीं बिगड़ेगा, इसकी पीछे वाली सीट ऊँची दी गई है।
ऐसी बहुत सारी बाईकें जो मैंने चलाई हैं उन सभी को मैं यहाँ शामिल नहीं कर पाया परंतु बाईक की दीवानगी आज भी सिर चढ़कर बोलती है। आज भी बाईक को चलाते समय ऐसा लगता है कि मैं बहुत ऊर्जावान घोड़े पर बैठ सवारी कर रहा हूँ। आज भी मेरा सपना है कि मैं पूरा राजस्थान बाईक से घूम कर आऊँ। देखते हैं कि यह सपना कब पूरा हो पाता है।