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हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

इस बार की जेद्दाह यात्रा बहुत कुछ यादें और अपनी छापें जीवन में छोड़ गयी, एक अलग ही तरह का अनुभव था जो कि जीवन में पहली बार हुआ। इस बार २० जुलाई को बैंगलोर से दोपहर की जेट की फ़्लाईट थी और वाया मुंबई जेद्दाह जाना था, अच्छी बात यह थी कि मुंबई से सीधी फ़्लाईट थी।
बैंगलोर से मुंबई अंतर्देशीय हवाईयात्रा हुई परंतु चेकइन बैग बैंगलोर में ही जेद्दाह तक के लिये ले लिया गया। बैंगलोर में टर्मिनल पर जाने के लिये दो स्वचलित सीढ़ियाँ हैं जिसमें सीधी तरफ़ वाली सीढ़ी जो कि अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के यात्रियों द्वारा उपयोग में लायी जाती हैं, वही पास ही सऊदी एयर लाईन्स का काऊँटर है, जिनकी सीधी उड़ान जेद्दाह वाया रियाद है। वहाँ बहुत सारे मुस्लिम धर्मावलम्बी जो कि उमराह पर मक्का और मदीना जा रहे थे, लाईन में खड़े थे और सब के सब सफ़ेद कपड़ों में थे। ऊपर जहाँ से टर्मिनल के लिये रास्ता है वहाँ स्थित शौचालय में यही लोग नहा रहे थे और पूरा शौचालय इस तरह बन पड़ा था कि जैसे यह एयरपोर्ट का नहीं कोई आम शौचालय हो।
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अंतर्देशीय हवाईअड्डे से शटल में जाते हुए कुछ फ़ोटो
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बरबस ही मुंबई में ऑटो पर नजर गई तो फ़ोटो खींचने का लोभ संवरण ना कर सके।
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विरार से अलीबाग की टैक्सी और नवनिर्माणाधीन पुल (कुबरी)
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ये वही कॉफ़ी शाप है जहाँ इमिग्रेशन के बाद सबसे सस्ती कॉफ़ी मिली थी, और आराम करता हुआ एक विमान।
मुंबई समय से पहुँच गये और खराब बात यह थी कि जेट कनेक्ट की फ़्लाईट में खाना पीना फ़्री नहीं मिलता है, जबकि जेट एयरवेज की फ़्लाईट में खाना फ़्री होता है। दोपहर हो चली थी, खाना सुबह १० बजे घर से ही खाकर चले थे, साथ ही दूध में मले आटे के परांठे बँधवा लिये थे, जिससे अगर आगे भूख लगे तो उसे इन परांठे से शांत किया जा सकता है। मुंबई जाते समय फ़्लाईट में सॉफ़्टड्रिंक और सैंडविच खाया जिसके भाव आसमान के माफ़िक ही थे। परांठे इसलिये रख लिये गये थे कि अगर खाना न खाते बना तो परांठे खाने का आखिरी रास्ता होंगे।
मुंबई से अगली फ़्लाईट लगभग ५ घंटे बाद का था, अब हमें अंतर्देशीय से अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर जाना था। अंतर्देशीय हवाईअड्डे पर उतरने के बाद हम सबसे पहले शौचालय के लिये चल दिये, वहाँ देखा कि सफ़ाई का नामोनिशान नहीं था, कम से कम मुंबई के स्तर का तो नहीं था, लगता है कि हवाईअड्डे केवल शुल्क लेते हैं और बेहतर व्यवस्था के नाम पर अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं।
वहीं कन्वेयर बेल्ट पर लोगों के समान घूम रहे थे और उसी हाल के बीचों बीच में एक पिलर के पास अंतर्देशीय से अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे जाने के लिये शटल सेवा के लिये बोर्डिंग पास देखकर शटल के पास दिये जा रहे थे । जिसपर ON PRIORITY लिखा था और वहीं टीवी पर शटल का समय देखा तो पता चला कि अब अगली शटल आधे घंटे बाद है और यात्रियों की लाईन इतनी लंबी थी, कि हमने कई बार सोचा क्यों ना बाहर से टैक्सी करके चला जाया जाये। लोगों को वहीं खड़ा इंतजार करते हुए देख रहे थे, और लोग अपने पास पासपोर्ट और बोर्डिंग पास को बार बार चेक कर रहे हैं।
खैर ठीक ३० मिनिट से १० मिनिट पहले शटल आ गई, अच्छी खासी ए.सी. वोल्वो बस थी, शटल से बड़ी इज्जत के साथ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अंदर से ही ले जाया गया, जिसमें कि पास ही झुग्गी झोपड़ियों के लिये प्रसिद्ध धारावी दीवार से ही लगी थी, धारावी और अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बीच केवल फ़ेंसिंग थी, शायद उसमें करंट दौड़ रहा हो। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब से यह बिल्कुल भी मान्य नहीं होगा।

जेद्दाह में रेस्त्रां खाना और स्वाद (South Indian, Malyalai and North Indian food in Restaurant’s @ Jeddah Saudi Arabia)

जब से सऊदी आये हैं तब से भारतीय स्वाद बहुत याद करते हैं, भारतीय खाना तो जरूर मिल जाता है फ़िर भी बिल्कुल वह स्वाद मिलना बहुत मुश्किल है। यहाँ पर दक्षिण भारतीय स्वाद तो मिल जाता है, परंतु उत्तर भारतीय स्वाद मिलना मुश्किल होता है।

यहाँ पर जो थालियाँ भी उपलब्ध होती हैं, उसे दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय व्यंजनों को मिलकर बनी होती हैं। परंतु फ़िर भी दक्षिण भारतीय व्यंजन ज्यादा होते हैं। उत्तर भारतीय में केवल दाल होती है या यह भी कह सकते हैं कि दाल उत्तर भारतीय तरीके से बनी होती है। मसाला ठीक ठाक होता है।

रोटी जो है वह बिल्कुल मैदे की होती है और गेहूँ की रोटी ढूँढ़ना बहुत ही मुश्किल काम है। चावल बासमती या फ़िर दक्षिण में खाया जाने वाला मोटा केरल का चावल होता है।

यह तो दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट की बातें हैं, यहाँ पर लगभग आसपास के देशों के रेस्ट्रोरेंट भी उपलब्ध हैं, जैसे पाकिस्तानी, अफ़गानी, फ़िलिपीन्स, बांगलादेशी, इजिप्ट इत्यादि..। खाने में पाकिस्तानी स्वाद कुछ भारतीय स्वाद के करीब है, यहाँ मसाला अच्छा मिलता है, बस तेल या घी ज्यादा होता है।

यहाँ मिनी भारत अल-शर्फ़िया के इलाके में पाया जाता है, जहाँ भारत ही नहीं सभी आसपास के देशों की दुकानें हैं और ऐसे ही रेस्टोरेंट भी बहुत सारे हैं, हर ८ – १० दुकान के बाद एक रेस्टोरेंट मिल ही जाता है, कुछ रेस्टोरेंट जिसमें हम जाते हैं जो कि दक्षिण भारतीय हैं, चैन्नई दरबार, इंडिया गेट, मेट्रो, विलेज (मलयाली) कुछ पाकिस्तानी रेस्तरां हैं जैसे कि निराला, मक्काह इत्यादि.. निराला की सबसे अच्छी चीज लगी हमें रोटी, तंदूरी रोटी कम से कम १२ या १५  इंच के व्यास की रोटी होगी और बिल्कुल नरम, कम से कम दो रोटी तो खा ही जाये। यहाँ की कुल्फ़ी भी बहुत अच्छी है । बस यहाँ सब्जियों और दाल में तेल बहुत मिलता है तो पहले हम तेल निकाल देते हैं फ़िर ही खाना शुरू करते हैं, जो कुछ लोग कैलोरी कान्शियस होते हैं, वे लोग तो पहली बार को ही आखिरी बताकर निकल लेते हैं। पर यहाँ का स्वाद वाकई गजब है। साथ ही पाकिस्तानी वेटरों की मेहमनानवाजी देखते ही बनती है।

ऐसे ही शाम को फ़िलिस्तीन स्ट्रीट जहाँ कि हम मैरियट होटल में रहते हैं, वहाँ तो खाना खाते नहीं हैं कारण है कि इतना महँगा खाना जो हम अफ़ोर्ड नहीं कर सकते, तो पास ही होटल बहुत सारे हैं, पर कुछ ही होटलों पर शाकाहारी खाना भी उपलब्ध होता है। पास ही एक अफ़गानी होटल है जिससे दक्षिण भारतीय सहकर्मी चावल लेकर खाते हैं। पास ही एक इजिप्शियन रेस्तरां भी है जहाँ अलग तरह की करियों के साथ चावल मिलते हैं, हमने भी एक बार खाकर देखा था, कभी कभार खा सकते हैं, एक मलयाली रेस्त्रां है रेजेन्सी, जहाँ डोसा वगैरह के साथ आलू गोभी और मिक्स वेज सब्जी मिल जाती है साथ में रोटी या केरल परांठा खा सकते हैं। अभी एक और नया रेस्त्रां ढूँढ़ा है लाहौर गार्डन जैसा कि नाम से ही पता चलता है यह एक पाकिस्तानी रेस्त्रां है परंतु खाना अच्छा है। कलकत्ता रोल्स पर भी शाकाहारी रोल मिल जाता है साथ में ज्यूस ले सकते हैं। नाम से कलकत्ता है परंतु है बांग्लादेश का।

यहाँ अधिकतर रोटियाँ करी के साथ फ़्री होती हैं, केवल करी का बिल ही लिया जाता है, वैसे ही यहाँ सऊदी के खुबुस बहुत प्रसिद्ध हैं, तंदूर में बनाये जाते हैं। हमने भी खाकर देखा मैदे के होते हैं, रोज नहीं खा सकते।

मांसाहारी लोग ध्यान रखें पहले ही पूछ लें कि क्या आर्डर कर रहे हैं, क्योंकि यहाँ बीफ़, लेम्ब और मीट बहुतायत में खाया जाता है।

बहुत खाने की बातें हो गईं, और शायद इससे किसी को तो मदद मिल ही जायेगी, खाने के लिये सऊदी बहुत अच्छी जगह है और विशेषत: उनके लिये जो कि मांसाहारी हैं, उनके लिये कई प्रकार के व्यंजन मिल जायेंगे।

हम ठहरे शाकाहारी तो हमारे लिये सीमित संसाधन मौजूद हैं।

कठिनाईयों भरे ये दिन

जीवन में सभी प्रकार की कठिनाईयाँ आती रहती हैं, और हमें अपने जीवन में सारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। सारी मजबूरियों के मारे होते हैं और सारे हालात से समझौता करना पड़ता है।

अभी यह मेरा जेद्दाह में दूसरा  ट्रिप है, पहला ट्रिप ठीक ठाक निकल गया था, परंतु दूसरे ट्रिप में बहुत सारी कठिनाईयाँ हैं, तो यह भी समझ लें कि जीवन में यह भी एक सीख ही है।

रमजान का महीना चल रहा है और यहाँ गैरमुस्लिमों के लिये जीना बहुत मुश्किल हो जाता है, यहाँ पर सभी रोजा रखते हैं, और सारा बाजार सुबह के ४ बजे से रात ९ बजे तक बंद रहता है, खाने के लिये रेस्त्रां भी शाम ५ बजे खुलते हैं, पर रेस्त्रां में जाकर खा नहीं सकते, ५ से ७ के बीच आप केवल पार्सल करवा सकते हैं, फ़िर शाम ७ बजे के बाद रेस्त्रां में खा सकते हैं।

और ७ बजे के बाद रेस्त्रां जाने के लिये टैक्सी मिलना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि लगभग सभी लोग इफ़्तार पर गये होते हैं। यहाँ पर असली समां तो शाम ७ बजे बाद ही शुरू होता है, जीवन में गति भी शाम ७ बजे बाद आती है। ७ बजे से ट्राफ़िक बड़ना शुरु होता है और रात ९ बजे के बाद तो ट्राफ़िक अपने चरम पर होता है।

यहाँ पर सभी लोग ७ बजे के बाद इफ़्तार करते हैं और सुबह ३.३० पर सहर करते हैं, समय थोड़ा आगे पीछे होता है । ऐसे ही बाजार भी रात्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे तक खुले रहते हैं, बाजार मतलब कि सारे प्रकार के बाजार मॉल, दुकानें और पटरी बाजार भी।

खुलेआम खाना पीना और धूम्रपान मना होता है। अगर किसी गैरमुस्लिम को यह सब करना भी है तो उसे सार्वजनिक जगहों पर नहीं करना चाहिये। यहाँ कार्यालयों का समय १० से ४ हो जाता है पर केवल उनके लिये जो रोजे रखते हैं और बाकियों के लिये ८ से ५ ही होता है।

शाम को जगह जगह इफ़्तार पार्टिंयों का आयोजन होता है, बस शाम को जल्दी मतलब कि ५ बजे के बाद शाकाहारी भोजन कुछ चुनिंदा रेस्त्रां में ही उपलब्ध होता है, अधिकतर रेस्त्रां में शाकाहारी भोजन रात्रि ९ बजे बाद उपलब्ध होता है।

थोड़े दिनों की कठिनाईयाँ और हैं, फ़िर जीवन वापिस से पटरी पर आ जायेगा, एक बात और है कि यहाँ घूमने के लिये ऐसा कोई पर्यटक स्थल नहीं है, अगर कुछ है भी तो इतनी बंदिशें हैं कि जाने से पहले इच्छा ही खत्म हो जाये और मौसम इस बात की इजाजत भी नहीं देता, क्योंकि मौसम अभी बहुत गर्म है रात में भी लू के थपेड़े लगते हैं।

हमारे शौक ही हमारी सोच को बदल देते हैं

समाज को बहुत तेजी से बदलते हुए हमने देखा है, समाज की सोच को बदलते हुए देखा है, इंसान की सोच को बदलते हुए देखा है, दरअसल हमारे शौक ही हमारी सोच को बदल देते हैं। हम समय कैसे बिताते हैं यह भी हमारे शौक पर निर्भर करता है।
मुझे बचपन की याद है, जब पापाजी शासकीय वाचनालय से २-३ हिन्दी की साहित्यिक किताबें लाते थे और सप्ताह भर में पढ़ भी लिया करते थे और लगभग हर रविवार मैं उनके साथ वाचनालय किताबें बदलने जाया करता था, मेरा लालच यह होता था कि वहाँ बहुत सारे अखबार होते थे और बच्चों की किताबें भी पढ़ने को मिल जाया करती थीं, पापाजी को हमारा इंतजार करना पड़ता था।
उस समय हमें साहित्य की तो इतनी समझ नहीं थी तो हम किताबें तो नहीं पढ़ते थे परंतु हाँ घर में पढ़ने का महत्व समझ आ गया और यह समझ बचपन से आ गई कि किताबें सबसे अच्छी दोस्त होती हैं और हमेशा इन किताबों से कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता रहता है।
उस समय टीवी की इतनी ज्यादा धूम नहीं थी, और फ़ेसबुक, ट्विटर, लिंकडिन के पते भी नहीं थे क्योंकि इंटरनेट नहीं था, और फ़ोन होना उस समय विलासिता माना जाता था।
पापाजी जब शाम को कार्यस्थल से घर आते तो यदाकदा कहते आज फ़लाने अंकल के यहाँ खाने पर चलना है या फ़िर आज वो अंकल अपने परिवार के साथ मिलने आ रहे हैं या खाने पर आ रहे हैं, और इस मिलने का अंतराल आज की तुलना में बहुत ज्यादा होता था। उस समय फ़ोन न होने के कारण सारी बातें पहले से ही तय कर ली जाती थीं और सारे कार्य आसानी से हो जाते थे।
आज हम इंटरनेट, टीवी के सीरियलों में ही इतने व्यस्त हैं कि हमें बाहर की बात तो छोड़िये अपने परिवार के लिये भी समय नहीं है। परिवारों में आजकल कई बार तो कुछ दिन ऐसे निकल जाते हैं कि किसी सदस्य से बात ही नहीं होती, तो बाहर के अंकल से मिलने की बातें तो छोड़ ही दो।
समाज की सोच और धारणा तेजी से बदल रही है, आगे पता नहीं क्या होगा, परंतु जितना समय हमने देखा उतने में ही इतना सब कुछ  बदल गया, पता नहीं आगे क्या होगा ।

दोस्तों के जाने का गम..

    दोस्तों के जाने का गम हमेशा तकलीफ़देह होता है, जाना मतलब हमेशा के लिये हमें छोड़कर जाना। अपने पीछे इतने सारे रिश्ते जो कि कितने जतन से बनाये गये थे, और बस एक पल में बिछड़ जाना।
 
    मेरे साथ काम करने वाले दो मित्र अचानक ही अलविदा कहकर चल दिये, उनके जाने की उम्र भी नहीं थी, और सुनकर विश्वास करना भी नामुमकिन।
 
    एक मित्र थे जो कि २ – ३ महीने पहले ही अलविदा कह चुके थे, परंतु हमें पता नहीं चला, फ़ेसबुक पर उनके जन्मदिन पर हमने बधाई का सन्देश दे दिया, तो एक मित्र से पता चला कि अब वह मित्र इस दुनिया में ही नहीं है, जबकि उसकी शादी हुए शायद पूरा वर्ष भी नहीं हुआ था, यह मेरे लिये दिल दहला देने वाली खबर थी।
शोकसंदेश
 
    उस मित्र का जीटॉक स्टेटस होता था “भगवान सबका भला करे बस शुरूआत मुझसे करे”, पता नहीं भगवान ने ये कैसा भला किया मेरे मित्र के साथ। न रहने की खबर मिलते ही जो स्थिती मेरी थी वही स्थिती मेरे कई दोस्तों की थी। जिस चीज पर हमारा जोर नहीं हम इसके लिये कुछ नहीं कर सकते।
 
    कल फ़िर शाम के समय एक फ़ोन आया कि एक हमारे साथ काम करने वाले जो कि आजकल भारत के बाहर थे और घूमने के लिये भारत आये हुए थे और कल वो भी नहीं रहे। जल्दी जल्दी दो बुरी खबरें सुनने से दिल आहत हो गया है।
 
    बहुत पहले ऐसे ही एक मित्र के जाने पर अंतिम विदाई के समय हमारी मित्र मंडली में यही चर्चा थी, सारी दुनियादारी करते हैं, सारे जतन करते हैं, परंतु आखिरकार इस देह को पंचतत्व में ही विलीन होना है, तो लोग याद करें हमारे जाने के बाद इसके लिये अच्छे काम करें, ना कि बुरे जिससे लोग आहत हों और हमारे जाने के गम की जगह खुशियाँ मनायें।
 
    इतनी बड़ी देह आखिरकर राख हो जाती है और किसी भी “अहं” और “मैं” का नामोनिशां नहीं होता । तुम्हारे साथ की गई चैटिंग अभी तक मेरे मेल बॉक्स में है, तुम अभी भी मेरे मैसेन्जर में हो और तुम्हें हटाते हुए हाथ काँपता है और आज तक हटा नहीं पाया हूँ और ना ही फ़ेसबुक से तुम्हें अनफ़्रेंड कर पाया हूँ ।

महाकालेश्वर का बदलता स्वरूप

इस बार महाकालेश्वर महाराज के दर्शन करने गये तो पता नहीं क्यूँ हृदय तीव्र क्रंदन करने लगा और महाकालेश्वर के पुराने स्वरूप याद आ गये। आज जो भी स्वरूप महाकाल का है वह इस प्रकार का है, जिससे लगता है कि यहाँ भक्त नहीं, अपराधी आते हों, जहाँ कैदियों को रखने वाली बड़ी बड़ी सलाखें और बेरीकेड्स लगाये गये हैं।

महाकालपहले महाकाल के आँगन में ही फ़ूल वाले अपनी दुकानें लगाते थे, जहाँ अब चारों और गलियारे बना दिये गये हैं और उन्हें सलाखों से पाट दिया गया है, कुछ गलियारे भक्तों के लिये काम आते थे तो कुछ पुजारियों और प्रशासन के, परंतु जबसे महाकालेश्वर मंदिर में मुख्य द्वार से प्रवेश बंद कर दिया गया है, तब से ये गलियारे भुतहे हो गये हैं, अकेले चलने पर इन गलियारों में डर लगने लगता है।

पिछले सिंहस्थ में महाकालेश्वर के दर्शन के लिये आये भक्तों के लिये प्रशासन ने एक बड़ा हॉल रूपी पिंजड़ा बनवाया और कम से कम ५०० मीटर चलने के लिये मजबूर कर दिया, अब टनल बना रहे हैं, फ़िर ये सब भी बेमानी हो जायेगा । महाकालेश्वर मंदिर पूर्ण तरह से व्यावसायिक स्थल बन चुका है, जहाँ महाकालेश्वर की भक्ति बिकती है, यह लिखते हुए हृदय में गहन वेदना हो रही है, परंतु सच्चाई कड़वी ही होती है और कभी ना कभी किसी ना किसी को लिखनी ही पड़ती है और सोचना पड़ती है।

महाकाल के सारे पंडे (जितने हमने देखे) धनलौलुप और ब्रोकर बन चुके हैं, महाकाल में प्रवेश द्वार से दर्शन तक ये ब्रोकर जगह जगह तरह तरह की बातें करते हैं, आईये पूजा करवा देते हैं, ऐसे लाईन में लगा रहने पड़ेगा, हमारे साथ आ जाईये १५ मिनिट में ही दर्शन हो जायेंगे और पूजन भी हो जायेगा। पंडे पूजा कराते कराते एक हाथ से मोबाईल पर ही दूसरे भक्तों से पूजा की बुकिंग भी कर रहे हैं।

आकाश तारके लिंगम

पुलिस व्यवस्था में लगे कर्मियों में महाकाल का रौद्र रूप ही देखने को मिलता है, पता नहीं बाबा महाकाल अपना भोलेपन स्वरूप को कब इन्हें देंगे जिससे ये कर्मी दर्शनार्थियों से भोलेपन और सौम्य रूप से बात करेंगे।

विशेष दर्शन के लिये १५१ रूपये का प्रवेश शुल्क है, वहीं पर ये ब्रोकर मिल जाते हैं कि हम आपको सीधे गर्भगृह तक ले चलेंगे और पूजा और अभिषेक करवा देंगे, आप अपने १५१ रूपये इस ब्राह्मण को दान कर दीजियेगा। यह है महाकालेश्वर में भ्रष्टाचार, और यह सब वहाँ ड्य़ूटी कर रहे पुलिसकर्मी देखते रहते हैं।

बाहर इतने बेरीकेड्स लगा दिये गये हैं कि भक्त शिखर दर्शन से महरूम ही रह जाते हैं,  महाकाल के दर्शन के बाद शिखर दर्शन करना चाहिये ऐसा कहा जाता है  महाकाल बाबा के दर्शन से जितना पुण्य मिलता है, शिखर दर्शन से उसका आधा पुण्य मिलता है।

उज्जैन यात्रा, महाकाल बाबा की शाही सवारी के दर्शन…

वैसे इतने सारे धार्मिक स्थलों पर जाने के बाद यह तो समझ में आ गया कि भगवान सबसे बड़े भ्रष्टाचारियों और पापियों को अपने पास ही रखते हैं और ये पाखंडी अपने आप को भगवान के करीब पाकर धन्य होते हैं।

अकाल मृत्यु वो मरे

भक्त और दर्शनार्थी इन सबको नजरअंदाज करते हुए निकल जाते हैं जैसे भारत की जनता, सरकार को नजरअंदाज करते हुए निकल जाती है।

प्रशासन पता नहीं कब जागेगा और महाकालेश्वर के भक्त धन्य होंगे और मन में जिस श्रद्धा को लेकर आते हैं, उतनी ही श्रद्धा वापिस लेकर जायें, मन में असंतोष लेकर ना जायें।

कैरम से मिलती जीवन की सीख

अभी पिछले कुछ दिनों से अवकाश पर हूँ और पूर्णतया: अपने परिवार के साथ समय बिता रहा हूँ। आते समय कुछ किताबें भी लाया था, परंतु लगता है कि किताबें बिना पढ़े ही चली जायेंगी और हमारा पढ़ने का यह टार्गेट अधूरा ही रह जायेगा।

इसी बीच बेटे को कैरम खेलना बहुत पसंद आने लगा है, और हमने भी बचपन के बाद अब कैरम को हाथ लगाया है। थोड़े से ही दिनों में हमरे बेटेलाल तो कैरम में अपने से आगे निकल गये और अपन अभी भी हाथ जमाने में लगे हैं।

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कैरम के खेल को खेलते खेलते हमने पाया कि असल जिंदगी भी कैरम के खेल जैसी है, कुछ बातें इस बात पर निर्भर करती है कि आपका साथी कौन है, आपका प्रतिद्वंदी कौन है और आप किस मामले में उससे बेहतर हैं।

कैरम जुनून और प्रतिस्पर्धा का खेल है, जिसमें राजनीति और उससी उपजी लौलुपता भी खड़ी दिखती है। कैरम एकाग्रचित्त होकर खेलना पड़ता है, इससे जीवन की सीख मिलती है कि कोई भी कार्य एकाग्रचित्त होकर करना चाहिये, तभी सफ़लता मिलेगी।

रानी कब लेनी है, यह भी राजनीति का एक पाठ है और इस पाठ को अच्छे से सीखने के लिये कैरम में अच्छॆ अनुभव की जरूरत होती है, जैसे जिंदगी में बड़े निर्णय लेने के लिये सही समय का इंतजार करना चाहिये और जैसे ही समय आये वैसे ही सही निर्णय ले लेना चाहिये।

हमेशा अपने सारे मोहरों पर नजर रखो और नेटवर्किंग मजबूत रखो, अगर अपने सारी गोटियों को एकसाथ ले जाना है तो हरेक गोटी पर नजर रखो और मौका लगते ही पूरा बोर्ड एक साथ साफ़ कर दो।

ऐसी ही सतर्कता जिंदगी में भी रखना जरूरी है, इतनी ही राजनीति आपको आनी चाहिये और मोहरों पर एक साथ नजर रखना जरूरी है। हरेक जरूरी काम और जिंदगी के सारे काम बहुत ही एकाग्रचित्त तरीके से पूर्ण करना चाहिये।

बैंक ने क्रेडिट रेटिंग के कारण गृहऋण देने से मना किया (Bank rejected Home loan due to Credit rating..)

कुछ दिनों पहले अपने एक सहकर्मी से बात हो रही थी, वे अपने लिये एक फ़्लैट ढूँढ़ रहे थे, अब वे किसी क्रेडिट कार्ड कंपनी और बैंक से बात कर रहे थे। उनसे पूछा कि क्या बात है – तो पता चला कि क्रेडिट रेटिंग के कारण गृह ऋण में बहुत परेशानी आ रही है।
हमारे सहकर्मी की तन्ख्वाह भी अच्छी खासी है, जिसे देखकर शायद ही कोई बैंक उन्हें ऋण देने से मना करे। परंतु उनकी क्रेडिट रेटिंग याने कि क्रेडिट स्कोर काफ़ी कम था, क्रेडिट रेटिंग सिबिल (CIBIL) द्वारा प्रदत्त की जाती है। सिबिल आपके सभी तरह के वित्तीय लेनदेन पर नजर रखता है, और लेनदेन के स्वभाव पर भी नजर रखता है और क्रेडिट रेटिंग के लिये उनका खुद का फ़ोर्मुला है, जिससे किसी भी व्यक्ति विशेश का क्रेडिट रेटिंग पता चल जाता है। आजकल किसी भी बैंक या वित्तीय संस्थान में ऋण लेने जायें तो सबसे पहले वह क्रेडिट रेटिंग देखते हैं।
हमारे सहकर्मी को बैंक ने बताया कि आपकी क्रेडिट रेटिंग बहुत कम है और बावजूद आपकी अच्छी तन्ख्वाह होने के, आपको ऋण देना बहुत मुश्किल है, आप क्रेडिट कार्ड कंपनी से बात करें और देखें तो शायद आपकी क्रेडिट रेटिंग थोड़ी अच्छी हो जाये और हमें ऋण देने में आसानी हो।
उन्होंने पहले ५-६ क्रेडिट कार्ड ले रखे थे, परंतु कभी बकाया नहीं रखते थे, और केवल शौक के लिये ५-६ क्रेडिट कार्ड ले रखे थे, क्योंकि इन कार्डों की कोई सालाना फ़ीस नहीं थी। फ़िर बाद में उन कार्डों की बराबर से मैनेज नहीं कर पाते थे, तो उन्होंने एक क्रेडिट कार्ड छोड़कर बाकी सभी क्रेडिट कार्ड सरेंडर कर दिये। इसी में से एक सिटीबैंक का एक क्रेडिट कार्ड भी था, और उन्होंने उसका भी पूरा बकाया भर दिया था परंतु फ़िर भी उनकी क्रेडिट रेटिंग रिपोर्ट में सैटलमेंट लिखा हुआ था, उस समय हमारे सहकर्मी ने पूछताछ नहीं की थी, कि सैटलमेंट क्यों लिखा है, और न ही उन्हें इसका मतलब पता था।
अब जब बैंक वालों ने ऋण देने में नाटक किये तो इन्हें पता चला कि सैटलमेंट मतलब कि जब आप आखिरी भुगतान कर रहे हैं, तो आपने क्रेडिट कार्ड कंपनी या ऋण प्रदाता के साथ आखिरी भुगतान में कुछ मोलभाव किया तो उसे सैटलमेंट कहा जाता है। और इस सैटलमेंट शब्द के कारण क्रेडिट रेटिंग पर बुरा असर पड़ता है।
जब आप अपना खाता बंद करवा रहे होते हैं तो कई बार कई क्रेडिट कार्ड कंपनियाँ और ऋण प्रदाता कंपनी बदमाशी करती हैं, और साधारण भुगतान को सैटलमेंट कहकर दर्शाती हैं, ध्यान रखें साधारण भुगतान सैटलमेंट नहीं कहलाता है, इसके लिये जरूरी हो तो कानून का भी सहारा लिया जा सकता है।
आज हमारे सहकर्मी को इतनी परेशानी आ रही है, केवल एक छोटे से क्रेडिट कार्ड के सैटलमेंट शब्द से, ध्यान रखें सावधानी रखें जब भी क्रेडिट कार्ड या ऋण खाता बंद करें।
अगर ध्यान नहीं दिया तो आपके क्रेडिट रेटिंग की हालत खराब होगी और बैंक गृह ऋण क्या कोई भी ऋण देने से मना कर सकती है।

लड़कियों वाली कटिंग की दुकान

आज बहुत दिनों बाद हैयर सैलून याने की नाई की दुकान में गये। बाल बहुत बढ़ गये थे, तो सोचा कि चलो आज कैंची चलवा ली जाये।

बचपन से ही नाई की दुकान पर जाते थे, उस समय जो स्टाईल हमारे पिताजी कह देते थे बन जाती थी। फ़िर बाद में जब थोड़ी समझ आ गई तो अपने हिसाब से कटिंग करवाते थे। फ़िर एनसीसी में रहे तो बस सैनिक कटिंग इतनी अच्छी लगी कि उसके बाद तो वहीं स्टाईल रखने लगे।

अब यहाँ दक्षिण में आये तो यहाँ के नाईयों की कटिंग ही समझ नहीं आई, धीरे धीरे उन्हें समझाना पड़ा कि कैसी कटिंग चाहिये, अब भी उन्हें समझाना पड़ता है। हमारे बेटेलाल हमें बोले कि हमें तो नुन्गे स्टाईल करवानी है। हम बोले कि ऐसी कोई स्टाईल नहीं है तो जवाब मिला अरे आप चलो तो सही नुन्गे स्टाईल करवायेंगे। जब नाई की दुकान पर पहुँचे तो उसने झट से नुन्गे कट बना दी, जो कि सैनिक कटिंग की मिलती जुलती स्टाईल थी। यहाँ कन्नड़ में छोटे बालों को नुन्गे कहा जाता है।

बाल कटवाने की समस्या मुंबई में ज्यादा नहीं झेलना पड़ी थी, क्योंकि वहाँ अधिकतर उत्तर भारतीयों की ही नाई की दुकानें हैं, जो अपनी भाषा समझते हैं और एक से एक बाल काटने के कारीगर हैं।

बीच में जब हम गंजे रहने लगे थे, तो हर पंद्रह दिन में सिरे का शेव करवाने जाना पड़ता था, नाई पहले सिर पर शेविंग स्प्रे करता फ़िर हाथ से पूरे सिर पर फ़ैलाता और फ़िर उस्तरे से गंजी कर देता, गंजी करने का काम भी बहुत सावधानी का होता है। पर हाँ बाल कटावाने से कम समय लगता था।

पहले उस्तरे धार करने वाले होते थे, हर शेविंग के बाद धार लगाते थे। परंतु उस्तरे के अपराध जगत में बढ़ते उपयोग के मद्देनजर कानून ने उस पर लगाम कस दी और ब्लेड वाले उस्तरे चलन में आ गये।

बाल काटने के भी विशेषज्ञ कारीगर होते हैं, जब उज्जैन में थे तो एक नाई था जो कि बारीक बाल काटने में माहिर था और उसके हाथ में बहुत सफ़ाई थी, उसके हाथ से बाल कटवाने के लिये उस समय उस दुकान पर लाईन लगा करती थी।

हमारे एक मित्र हैं जो घर पर ही बाल काट लेते हैं, हमने भी कोशिश करने की सोची परंतु हिम्मत ही नहीं पड़ी और आज भी दुकान पर नाई की सेवाएँ लेते हैं।

खैर अब तो बाल काटने का धंधा भी चोखा है, इसमें भी काफ़ी नामी गिरामी ब्रांड आ गये हैं, पहले तो सड़क पर ही नाई दुकान लगाते थे फ़िर धीरे धीरे दुकानें आ गईं और अब वातानुकुलित दुकानें हैं, जहाँ लड़कियाँ नाईयों की दुकान चला रही हैं, और ये लड़कियों वाली कटिंग की दुकान कहलाती है।

प्यार का अहसास और उसकी बातें

    प्यार का अहसास एक ऐसे अहसास है जो जिंदगी में नये नये रंग भर देता है, प्यार जीवन में सच्चाई लाता है। जब प्यार जीवन में आता है तो जीवन में आईने का मतलब बदल जाता है, बार बार आईना देख कर मंद मंद मुस्कराना प्यार को जीना सिखाता है।
    प्यार में लोग पगला जाते हैं और हमारे यहाँ मालवा में कहते हैं कि बहरा जाते हैं, बहराना याने कि पगलाना। प्यार अंधा होता है और प्यार सच्चा होता है। प्यार का अहसास बहुत मीठा, तीखा और भोलापन लिये होता है। जब प्यार होता है तब कोई भी उसे समझ नहीं पाता है। बस दिल को तो यही सुनने की आस लगी रहती है कि वह भी हमें कह दे कि हाँ हम तुमसे प्यार करते हैं। नहीं तो प्यार एक तरफ़ा ही होता है।
    जीवन में प्यार बहुत जरूरी होता है, उसी के बल पर सब अपना जीवन बिताते हैं, भारत में कुछ लोग पहले प्यार करते हैं और फ़िर जीवन साथी बनाते हैं और बहुत सारे लोग पहले जीवन साथी बनाते हैं और फ़िर प्यार करते हैं। दोनों ही रूप में मायने प्यार के कभी बदलते नहीं हैं। जो प्यार दिल के उमंग को जगा दे, तरन्नुम के तार छेड़ दे, शाम का मौसम अचानक सुहाना कर दे और जीवन के प्रति राग उत्पन्न कर दे, वही सच्चा प्यार होता है। और अगर वाकई ये सब लक्षण आने लगें तो समझ लीजिये कि प्यार हो गया। वैसे प्यार का अहसास इतना गजब होता है कि प्यार क्या होता है पता ही नहीं चलता।
    प्यार का अहसास शब्दों में ढ़ालना बहुत ही मुश्किल होता है और प्यार को जो शब्दों में बयां कर दे वो अद्भुत शब्दों का कारीगर होता है। प्यार के इस अद्भुत अहसास ने हमें भी जकड़ रखा है, एक ऐसा पाश है जो कि हमें रोज धरती से बादलों तक ले जाता है और उन मेघों की एक एक फ़ुहार प्यार का अहसास करवाती है। प्यार शरारतें करवाता है और शरारत करने के बाद ऐसा लगता है “ओह! ऐसी शरारत हम भी कर सकते हैं”।
    ऐसे ही जब किसी प्यार को मिलने की इच्छा होती है तो तड़प दिल को बहुत परेशान करती है, वैसे तो दिल जीने के काम आता है परंतु प्यार के अहसास में दिल शब्द और दिल का बहुत महत्व है। प्यार के अहसास के बाद अक्सर सुनने को मिलता है “तुमने मेरा दिल ले लिया”। अब इससे जबरदस्त प्यार का इजहार करने का तरीका और क्या होगा।
प्यार के कुछ गाने जो मुझे बेहद पसंद हैं –
फ़िल्म सत्ते पर सत्ता –
संदेशा पहुँचाने के लिये –

 

इंतजार करते हुए –
अपने रंग मे ंरंगते हुए –