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कैरम से मिलती जीवन की सीख

अभी पिछले कुछ दिनों से अवकाश पर हूँ और पूर्णतया: अपने परिवार के साथ समय बिता रहा हूँ। आते समय कुछ किताबें भी लाया था, परंतु लगता है कि किताबें बिना पढ़े ही चली जायेंगी और हमारा पढ़ने का यह टार्गेट अधूरा ही रह जायेगा।

इसी बीच बेटे को कैरम खेलना बहुत पसंद आने लगा है, और हमने भी बचपन के बाद अब कैरम को हाथ लगाया है। थोड़े से ही दिनों में हमरे बेटेलाल तो कैरम में अपने से आगे निकल गये और अपन अभी भी हाथ जमाने में लगे हैं।

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कैरम के खेल को खेलते खेलते हमने पाया कि असल जिंदगी भी कैरम के खेल जैसी है, कुछ बातें इस बात पर निर्भर करती है कि आपका साथी कौन है, आपका प्रतिद्वंदी कौन है और आप किस मामले में उससे बेहतर हैं।

कैरम जुनून और प्रतिस्पर्धा का खेल है, जिसमें राजनीति और उससी उपजी लौलुपता भी खड़ी दिखती है। कैरम एकाग्रचित्त होकर खेलना पड़ता है, इससे जीवन की सीख मिलती है कि कोई भी कार्य एकाग्रचित्त होकर करना चाहिये, तभी सफ़लता मिलेगी।

रानी कब लेनी है, यह भी राजनीति का एक पाठ है और इस पाठ को अच्छे से सीखने के लिये कैरम में अच्छॆ अनुभव की जरूरत होती है, जैसे जिंदगी में बड़े निर्णय लेने के लिये सही समय का इंतजार करना चाहिये और जैसे ही समय आये वैसे ही सही निर्णय ले लेना चाहिये।

हमेशा अपने सारे मोहरों पर नजर रखो और नेटवर्किंग मजबूत रखो, अगर अपने सारी गोटियों को एकसाथ ले जाना है तो हरेक गोटी पर नजर रखो और मौका लगते ही पूरा बोर्ड एक साथ साफ़ कर दो।

ऐसी ही सतर्कता जिंदगी में भी रखना जरूरी है, इतनी ही राजनीति आपको आनी चाहिये और मोहरों पर एक साथ नजर रखना जरूरी है। हरेक जरूरी काम और जिंदगी के सारे काम बहुत ही एकाग्रचित्त तरीके से पूर्ण करना चाहिये।

बैंक ने क्रेडिट रेटिंग के कारण गृहऋण देने से मना किया (Bank rejected Home loan due to Credit rating..)

कुछ दिनों पहले अपने एक सहकर्मी से बात हो रही थी, वे अपने लिये एक फ़्लैट ढूँढ़ रहे थे, अब वे किसी क्रेडिट कार्ड कंपनी और बैंक से बात कर रहे थे। उनसे पूछा कि क्या बात है – तो पता चला कि क्रेडिट रेटिंग के कारण गृह ऋण में बहुत परेशानी आ रही है।
हमारे सहकर्मी की तन्ख्वाह भी अच्छी खासी है, जिसे देखकर शायद ही कोई बैंक उन्हें ऋण देने से मना करे। परंतु उनकी क्रेडिट रेटिंग याने कि क्रेडिट स्कोर काफ़ी कम था, क्रेडिट रेटिंग सिबिल (CIBIL) द्वारा प्रदत्त की जाती है। सिबिल आपके सभी तरह के वित्तीय लेनदेन पर नजर रखता है, और लेनदेन के स्वभाव पर भी नजर रखता है और क्रेडिट रेटिंग के लिये उनका खुद का फ़ोर्मुला है, जिससे किसी भी व्यक्ति विशेश का क्रेडिट रेटिंग पता चल जाता है। आजकल किसी भी बैंक या वित्तीय संस्थान में ऋण लेने जायें तो सबसे पहले वह क्रेडिट रेटिंग देखते हैं।
हमारे सहकर्मी को बैंक ने बताया कि आपकी क्रेडिट रेटिंग बहुत कम है और बावजूद आपकी अच्छी तन्ख्वाह होने के, आपको ऋण देना बहुत मुश्किल है, आप क्रेडिट कार्ड कंपनी से बात करें और देखें तो शायद आपकी क्रेडिट रेटिंग थोड़ी अच्छी हो जाये और हमें ऋण देने में आसानी हो।
उन्होंने पहले ५-६ क्रेडिट कार्ड ले रखे थे, परंतु कभी बकाया नहीं रखते थे, और केवल शौक के लिये ५-६ क्रेडिट कार्ड ले रखे थे, क्योंकि इन कार्डों की कोई सालाना फ़ीस नहीं थी। फ़िर बाद में उन कार्डों की बराबर से मैनेज नहीं कर पाते थे, तो उन्होंने एक क्रेडिट कार्ड छोड़कर बाकी सभी क्रेडिट कार्ड सरेंडर कर दिये। इसी में से एक सिटीबैंक का एक क्रेडिट कार्ड भी था, और उन्होंने उसका भी पूरा बकाया भर दिया था परंतु फ़िर भी उनकी क्रेडिट रेटिंग रिपोर्ट में सैटलमेंट लिखा हुआ था, उस समय हमारे सहकर्मी ने पूछताछ नहीं की थी, कि सैटलमेंट क्यों लिखा है, और न ही उन्हें इसका मतलब पता था।
अब जब बैंक वालों ने ऋण देने में नाटक किये तो इन्हें पता चला कि सैटलमेंट मतलब कि जब आप आखिरी भुगतान कर रहे हैं, तो आपने क्रेडिट कार्ड कंपनी या ऋण प्रदाता के साथ आखिरी भुगतान में कुछ मोलभाव किया तो उसे सैटलमेंट कहा जाता है। और इस सैटलमेंट शब्द के कारण क्रेडिट रेटिंग पर बुरा असर पड़ता है।
जब आप अपना खाता बंद करवा रहे होते हैं तो कई बार कई क्रेडिट कार्ड कंपनियाँ और ऋण प्रदाता कंपनी बदमाशी करती हैं, और साधारण भुगतान को सैटलमेंट कहकर दर्शाती हैं, ध्यान रखें साधारण भुगतान सैटलमेंट नहीं कहलाता है, इसके लिये जरूरी हो तो कानून का भी सहारा लिया जा सकता है।
आज हमारे सहकर्मी को इतनी परेशानी आ रही है, केवल एक छोटे से क्रेडिट कार्ड के सैटलमेंट शब्द से, ध्यान रखें सावधानी रखें जब भी क्रेडिट कार्ड या ऋण खाता बंद करें।
अगर ध्यान नहीं दिया तो आपके क्रेडिट रेटिंग की हालत खराब होगी और बैंक गृह ऋण क्या कोई भी ऋण देने से मना कर सकती है।

लड़कियों वाली कटिंग की दुकान

आज बहुत दिनों बाद हैयर सैलून याने की नाई की दुकान में गये। बाल बहुत बढ़ गये थे, तो सोचा कि चलो आज कैंची चलवा ली जाये।

बचपन से ही नाई की दुकान पर जाते थे, उस समय जो स्टाईल हमारे पिताजी कह देते थे बन जाती थी। फ़िर बाद में जब थोड़ी समझ आ गई तो अपने हिसाब से कटिंग करवाते थे। फ़िर एनसीसी में रहे तो बस सैनिक कटिंग इतनी अच्छी लगी कि उसके बाद तो वहीं स्टाईल रखने लगे।

अब यहाँ दक्षिण में आये तो यहाँ के नाईयों की कटिंग ही समझ नहीं आई, धीरे धीरे उन्हें समझाना पड़ा कि कैसी कटिंग चाहिये, अब भी उन्हें समझाना पड़ता है। हमारे बेटेलाल हमें बोले कि हमें तो नुन्गे स्टाईल करवानी है। हम बोले कि ऐसी कोई स्टाईल नहीं है तो जवाब मिला अरे आप चलो तो सही नुन्गे स्टाईल करवायेंगे। जब नाई की दुकान पर पहुँचे तो उसने झट से नुन्गे कट बना दी, जो कि सैनिक कटिंग की मिलती जुलती स्टाईल थी। यहाँ कन्नड़ में छोटे बालों को नुन्गे कहा जाता है।

बाल कटवाने की समस्या मुंबई में ज्यादा नहीं झेलना पड़ी थी, क्योंकि वहाँ अधिकतर उत्तर भारतीयों की ही नाई की दुकानें हैं, जो अपनी भाषा समझते हैं और एक से एक बाल काटने के कारीगर हैं।

बीच में जब हम गंजे रहने लगे थे, तो हर पंद्रह दिन में सिरे का शेव करवाने जाना पड़ता था, नाई पहले सिर पर शेविंग स्प्रे करता फ़िर हाथ से पूरे सिर पर फ़ैलाता और फ़िर उस्तरे से गंजी कर देता, गंजी करने का काम भी बहुत सावधानी का होता है। पर हाँ बाल कटावाने से कम समय लगता था।

पहले उस्तरे धार करने वाले होते थे, हर शेविंग के बाद धार लगाते थे। परंतु उस्तरे के अपराध जगत में बढ़ते उपयोग के मद्देनजर कानून ने उस पर लगाम कस दी और ब्लेड वाले उस्तरे चलन में आ गये।

बाल काटने के भी विशेषज्ञ कारीगर होते हैं, जब उज्जैन में थे तो एक नाई था जो कि बारीक बाल काटने में माहिर था और उसके हाथ में बहुत सफ़ाई थी, उसके हाथ से बाल कटवाने के लिये उस समय उस दुकान पर लाईन लगा करती थी।

हमारे एक मित्र हैं जो घर पर ही बाल काट लेते हैं, हमने भी कोशिश करने की सोची परंतु हिम्मत ही नहीं पड़ी और आज भी दुकान पर नाई की सेवाएँ लेते हैं।

खैर अब तो बाल काटने का धंधा भी चोखा है, इसमें भी काफ़ी नामी गिरामी ब्रांड आ गये हैं, पहले तो सड़क पर ही नाई दुकान लगाते थे फ़िर धीरे धीरे दुकानें आ गईं और अब वातानुकुलित दुकानें हैं, जहाँ लड़कियाँ नाईयों की दुकान चला रही हैं, और ये लड़कियों वाली कटिंग की दुकान कहलाती है।

प्यार का अहसास और उसकी बातें

    प्यार का अहसास एक ऐसे अहसास है जो जिंदगी में नये नये रंग भर देता है, प्यार जीवन में सच्चाई लाता है। जब प्यार जीवन में आता है तो जीवन में आईने का मतलब बदल जाता है, बार बार आईना देख कर मंद मंद मुस्कराना प्यार को जीना सिखाता है।
    प्यार में लोग पगला जाते हैं और हमारे यहाँ मालवा में कहते हैं कि बहरा जाते हैं, बहराना याने कि पगलाना। प्यार अंधा होता है और प्यार सच्चा होता है। प्यार का अहसास बहुत मीठा, तीखा और भोलापन लिये होता है। जब प्यार होता है तब कोई भी उसे समझ नहीं पाता है। बस दिल को तो यही सुनने की आस लगी रहती है कि वह भी हमें कह दे कि हाँ हम तुमसे प्यार करते हैं। नहीं तो प्यार एक तरफ़ा ही होता है।
    जीवन में प्यार बहुत जरूरी होता है, उसी के बल पर सब अपना जीवन बिताते हैं, भारत में कुछ लोग पहले प्यार करते हैं और फ़िर जीवन साथी बनाते हैं और बहुत सारे लोग पहले जीवन साथी बनाते हैं और फ़िर प्यार करते हैं। दोनों ही रूप में मायने प्यार के कभी बदलते नहीं हैं। जो प्यार दिल के उमंग को जगा दे, तरन्नुम के तार छेड़ दे, शाम का मौसम अचानक सुहाना कर दे और जीवन के प्रति राग उत्पन्न कर दे, वही सच्चा प्यार होता है। और अगर वाकई ये सब लक्षण आने लगें तो समझ लीजिये कि प्यार हो गया। वैसे प्यार का अहसास इतना गजब होता है कि प्यार क्या होता है पता ही नहीं चलता।
    प्यार का अहसास शब्दों में ढ़ालना बहुत ही मुश्किल होता है और प्यार को जो शब्दों में बयां कर दे वो अद्भुत शब्दों का कारीगर होता है। प्यार के इस अद्भुत अहसास ने हमें भी जकड़ रखा है, एक ऐसा पाश है जो कि हमें रोज धरती से बादलों तक ले जाता है और उन मेघों की एक एक फ़ुहार प्यार का अहसास करवाती है। प्यार शरारतें करवाता है और शरारत करने के बाद ऐसा लगता है “ओह! ऐसी शरारत हम भी कर सकते हैं”।
    ऐसे ही जब किसी प्यार को मिलने की इच्छा होती है तो तड़प दिल को बहुत परेशान करती है, वैसे तो दिल जीने के काम आता है परंतु प्यार के अहसास में दिल शब्द और दिल का बहुत महत्व है। प्यार के अहसास के बाद अक्सर सुनने को मिलता है “तुमने मेरा दिल ले लिया”। अब इससे जबरदस्त प्यार का इजहार करने का तरीका और क्या होगा।
प्यार के कुछ गाने जो मुझे बेहद पसंद हैं –
फ़िल्म सत्ते पर सत्ता –
संदेशा पहुँचाने के लिये –

 

इंतजार करते हुए –
अपने रंग मे ंरंगते हुए –

मेरी बाईकें फ़टफ़टी और मेरा बाईक शौक (My Bike passion..)

    बाईक मेरा बहुत बड़ा शौक रहा है, पहले इसे फ़टफ़टी कहते थे क्योंकि इसमें से फ़ट फ़ट की आवाज आती थी, पर अब बाईक कहते हैं और इसमें से फ़ट फ़ट की आवाज भी नहीं आती अब तो झूम्म्म की आवाज आती है।
crusedar bike    मुझे बचपन की याद है पापाजी के पास सबसे पहली फ़टफ़टी थी क्रूसेडर, जिसमें से बहुत आवाज आती थी और उस आवाज को सुनकर ऐसा लगता था कि बस अब बहरे हो जायेंगे। फ़िर क्रूसेडर के बाद पापाजी ने यजदि बाईक ली। जो मुझे बेहद ही पसंद थी। ऊँचाई इतनी कि मैं बैठ ही नहीं पाता था, मैंने उसका नाम ऊँट रखा था। उसमें किक और गियर एक ही था, पहले गियर वाले डंडे से किक मारके यजदि चालू करो और फ़िर उसी डंडे को नीचे गिराकर उसका गियर बना लो। ये सब तो मुझे जादू जैसा लगता था।
यजदि की एक खासियत यह अच्छी लगती थी कि उसमें पेट्रोल और ओईल एक अनुपात में मिलाना पड़ता था पर अगर आपको कहीं जल्दी जाना है तो ओईल थोड़ा ज्यादा कर लो, फ़िर तो यजदि रॉकेट बन जाती थी, उसका पिकअप जबरदस्त हो जाता था।
जब बड़े हुए तब तक बाजार में स्कूटर ने अपनी पैठ बना ली थी, औरbajaj super हमारे घर भी आया “हमारा बजाज” याने कि बजाज सुपर स्कूटर। मुझे वह स्कूटर बहुत ही पसंद था और उसी स्कूटर से मैंने दोपहिया वाहन चलाना सीखा था। कॉलेज के कुछ दिन भी उसी स्कूटर से निकले।
फ़िर बाद में मैं उज्जैन आ गया तो पहले मेरे पास एक २८ इंच की luna superएटलस साईकिल थी, डबल डंडे वाली, वह तो मेरे ऊँट से भी ऊँची थी, उस पर बैठने के लिये मुझे एक बड़े पत्थर का सहारा लेना पड़ता था या फ़िर पैर आगे से उचकाकर सीट पर बैठना पड़ता था। साथ ही मुझे मिली काईनेटिक की लूना, जो कि उस समय लगभग ६० किमी माईलेज देती थी। बजाज सुपर पुराना पड़ने लगा था और उसका इंजिन दम तोड़ने लगा था, बजाज सुपर हमारे घर में लगभग १४ वर्ष रहा।
सुपर के बाद हमारे घर में आया फ़िर “हमारा बजाज” का ही बजाज ब्रेवो, जो कि फ़ेल स्कूटर रहा परंतु मुझे ब्रेवो स्कूटर की जो बातें पसंद थीं वे थी उसकी अच्छी ऊँचाई, क्योंकि लगभग सभी स्कूटरों की ऊँचाई थोड़ी कम ही होती थी, और ब्रेवो का पिकअप, गजब का पिकअप था।
इसी बीच दोस्तों की बाईक राजदूत, यमाहा RX100 और कावासाकी बजाज मेरे मनपसंदीदा बाईक रहीं।
राजदूत थोड़ी भारी मोटरसाईकिल थी और उसमें किक पलट कर मारती थी, जिससे कई बार पैर में भी चोट खाई है, उस समय राजदूत का माईलेज लगभग ४० किमी मिलता था, और लगभग हर दूधवाले और पुलिसवाले के पास राजदूत ही होती थी। सबसी अच्छी मुझे राजदूत की चाबी लगती थी, बिल्कुल अलग तरह की, शायद आज तक किसी और बाईक की चाबी वैसी बनी ही नहीं है।
यमाहा RX100 मेरी सबसे करीब रही, इसमें सबसे अच्छी चीज जो मुझे भाती थी वह था इसका पिकअप और आवाज। हमने कई बार साईलेंसर की आधी गुल्ली काटकर लगाते थे, तभी ओरिजनल आवाज आती थी। आज  भी अगर यह बाईक मेरे पास से निकल जाती है तो बिना देखे पता चल जाता है कि RX100 आ रही है।
कावासाकी बजाज ने जब पहली बार बाईक भारत में लाई तो मेरे दोस्त के पास जापान वाला ओरिजनल मॉडल था, और झाबुआ के माछलिया घाट जो कि लगभग १० किमी का बड़ा घाट है, उतार पर हाथ छोड़कर वह घाट पार करने जाते थे। एक बार उसी बाईक से एक दुर्घटना भी हुई, हम घूमने गये थे और बाईक लगभग ८० की रफ़्तार पर चल रही थी और उसमें आईल खत्म हो गया था, जिसका हमें पता ही नहीं था, उसके पिस्टन चिपक गये और हम बहुत दूर तक घिसटते हुए गये, फ़िर एक वाहन में रखकर बाईक वापस लाये थे। खैर बाद में वह ओरिजिनल पिस्टन नहीं मिला। उस समय ओईल हम केस्ट्रोल का उपयोग में लाते थे। www.facebook.com/CastrolBiking
इसी बीच मेरे पास एक बाईक आयी टीवीएस की मैक्स 100 जो कि मेरी सबसे पसंदीदा बाईक रही, उसका पिकअप और उसकी आवाज का तो मैं दीवाना था और यह बाईक भी दूधवालों के पास बहुत प्रसिद्ध रही। यह बाईक मेरे पास लगभग २ वर्ष रही और इस बाईक से मैंने उज्जैन के आसपास के लगभग सारी जगहें घूम डाली थीं, लगभग हर गाँव भी। इस बाईक से मुझे लांग ड्राईव पर जाना बहुत अच्छा लगता था, और खासकर सुबह जब सूरज आसमान पर चढ़ रहा होता था, और मैं खेतों के बीच यह बाईक लेकर घूमा करता था।
फ़िर मेरे पास आई बजाज की सीडी १००, माईलेज और मैंन्टेनेन्स के लिहाज से बहुत अच्छी बाईक है, और इससे मैंने इंदौर बहुत आना जाना किया एक एक दिन में मैं इससे लगभग १५० किमी तक की सवारी कर लिया करता था। इसका पिकअप थोड़ा कमजोर था, परंतु बाकी मामलों में ठीक थी।
इसके बाद थोड़े दिन हमने हीरो हांडा और पल्सर के भी मजे लिये, अब बैंगलोर में आकर फ़िर बाईक की जरूरत पड़ी तो हमने फ़िर सुजुकी मैक्स 100 का पता किया तो पता चला कि वो तो कब की कंपनी ने बंद कर दी है। हमें सुजुकी का इंजिन बेहद पसंद है और इसकी मशीन के आगे हमें और किसी कंपनी की बाईक की मशीन पसंद ही नहीं है, फ़िरThunderbird सोचा कि रॉयल एनीफ़ील्ड की थंडरवर्ल्ड बुलेट ली जाये जो कि 350 सीसी की है परंतु बैंगलोर में इसका वैटिंग पीरियड लगभग १० महीने का था और हमें बाईक एकदम चाहिये थी, अब चूँकि वजन बड़ चुका है इसलिये 100 सीसी की बाईक से काम नहीं होने वाला था, इसलिये हमने 125 सीसी की बाईक लेने की सोची, जिससे पिकअप और माईलेज अच्छा मिले।
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हमने ली सुजुकी स्लिंगशॉट प्लस हाईएन्ड मॉडल जिसमें ऑटो स्टार्ट और एलॉय व्हील हैं। और इसकी बैठने के लिये सीट बहुत ही आरामदायक है, बाईक को इस तरह से डिजाईन किया गया है कि अगर दो लोग भी बैठे हैं और बाईक रफ़्तार में है तो इसका बैलेन्स नहीं बिगड़ेगा, इसकी पीछे वाली सीट ऊँची दी गई है।
ऐसी बहुत सारी बाईकें जो मैंने चलाई हैं उन सभी को मैं यहाँ शामिल नहीं कर पाया परंतु बाईक की दीवानगी आज भी सिर चढ़कर बोलती है।  आज भी बाईक को चलाते समय ऐसा लगता है कि मैं बहुत ऊर्जावान घोड़े पर बैठ सवारी कर रहा हूँ। आज भी मेरा सपना है कि मैं पूरा राजस्थान बाईक से घूम कर आऊँ। देखते हैं कि यह सपना कब पूरा हो पाता है।
यह पोस्ट केस्ट्रोल पॉवर1 ब्लोगिंग प्रतियोगिता की एक प्रविष्टी है, जो कि इंडीब्लॉगर ने आयोजित की है। अगर प्रविष्टि पसंद आये तो इंडीब्लॉगर में लॉगिन करके वोट दीजिये।

बैंगलोर में प्रोजेक्ट, पिता परिवार से दूर और छोटे बच्चे पर उसका प्रभाव

हमारे एक मित्र हैं जो कि पिछले ६ महीने से बैंगलोर में प्रोजेक्ट के कारण अपने परिवार से दूर हैं। हालांकि माह में एक बार वे अपने परिवार से मिलने जाते हैं, उनका एक छोटा बच्चा भी है जो कि ४ वर्ष का है। कल उनसे ऐसे ही बातें हो रही थीं, तो बहुत सारी बातें अपनी सी लगीं, क्योंकि यही सब मेरे साथ मेरे अतीत में गुजर चुका था। ऐसा लगा कि वे अपनी नहीं मेरी बातें कह रहे हैं, फ़िर मैंने कुछ बातें बोलीं तो उनसे वे भी सहमत थे।
मैं अपने परिवार के साथ अब लगभग पिछले तीन-चार वर्षों से रह रहा हूँ उसके पहले दो वर्ष लगभग ऐसे बीते कि मैं हमेशा क्लाईंट लोकेशन पर ही रहता था और वहाँ परिवार को ले भी नहीं जाया सकता था, क्योंकि सब प्रोजेक्ट पर निर्भर था, और प्रोजेक्ट अस्थायी होते हैं। जैसे ही प्रोजेक्ट खत्म हुआ अपनी बेस लोकेशन पर वापसी हो जाती है।
पिछले तीन-चार वर्षों में भी क्लाईंट के पास जाना हुआ परंतु वहाँ रहना लंबा नहीं होता था, अब हमारी टीम वहाँ रहती थी और हम किसी जरूरी काम से ही जाते थे।
मित्र से बात हो रही थी, कह रहे थे कि अब बेटा फ़ोन पर कहता है कि आपसे बात नहीं करनी है। बीबी भी कभी कभी नाराज हो जाती है, अब ये सब तो ऐसी परिस्थितियों में चलता ही रहता है, क्योंकि जब पति और पिता बाहर हों और सांसारिक परिस्थितियों का अकेले मुकाबला करना हो तो इस तरह की बाधाएँ आती ही हैं।
बेटे को मनोचिकित्सक के पास दिखाया तो मनोचिकित्सक ने हमारे मित्र को राय दी कि आप कैसे भी करके जल्दी से अपने परिवार के साथ रहें तो सब के लिये यह अच्छा होगा। उनका बेटा  बहुत जिद्द करने लगा है, मम्मी की सुनता नहीं है, खाना नहीं खाता है। मित्र ने बताया कि पहले बेटा मुझसे बहुत खेलता था परंतु आजकल वैसा नहीं है, हमने कहा कि अब बेटॆ को लगता है कि शायद उससे भी कोई जरूरी चीज है जो कि पापा को मुझसे दूर ले गई है, अब इस उम्र में बच्चे को समझाना नामुमकिन है। उसके कोमल मन में तो है कि पापा मम्मी हमेशा मेरे साथ रहें। जब वे पिछली बार बैंगलोर आ रहे थे तो अपने बेटॆ को बोले कि मैं बैंगलोर जा रहा हूँ, तो बेटा साधारण तौर पर बोला कि ठीक है जाओ। इतनी साधारण तरीके से बोलना देखकर हमारे मित्र को  भी बहुत बुरा लगा और दूर रहने का प्रभाव दिखने लगा।
हमारे मित्र की बातें सुनकर हमें भी अपने पुराने दिन याद आ गये। जब हम भी ऐसे ही घर जा पाते थे, जैसे ही हम अपना बैग पैक करते थे तो पहले तो हमारा बेटा बैग के पास ही रहता था कि पता नहीं डैडी कब चले जायें, और जाने के समय बहुत रोता था, बहुत प्यार करके मैं उसको चुप करवाकर जाता था। बहुत दिनों तक ऐसा चला फ़िर धीरे धीरे मेरे बेटे को इस सब की आदत पड़ गई, और वह मेरे जाने के प्रति लापरवाह हो गया। कुछ दिनों बाद पता नहीं क्या हुआ वह हमारा आने का बेसब्री से इंतजार करता और बहुत प्यार करता। उस समय मैं मुंबई में था और वह हमसे कहता कि हमें भी मुंबई देखना है, हमें मुंबई ले चलो, बस उसके कहने भर की देर थी और लगभग उसी समय हमारा प्रोजेक्ट खत्म हो गया, तो एकदम हमने परिवार को मुंबई ले गये।
जीवन का वह दौर आज भी याद है, इतनी मुश्किल इतनी कठिनाईयाँ जो कि छोटी छोटी होती हैं, परंतु अपने आप में उनका सामना करना बहुत ही कठिन होता है, और ये ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता है। ऐसा दौर हमने भी देखा है परंतु उस समय तक हम समझदार हो चुके थे, इसलिये हमें बातें समझ में आती थीं, परंतु छोटे बच्चों से उनका बचपन में अगर यह कहा जाये तो शायद बहुत ही जल्दी होगी।
हमने भी मित्र को सलाह तो दी है अच्छा है कि जल्दी अपने परिवार के पास जाओ या अपने परिवार को यहाँ ले आओ, पर आई.टी. में प्रोजेक्ट जो ना करवाये वह कम है।

दलालों का शहर मुंबई (City of Brokers, Mumbai)

मुंबई छोड़े अब १ साल से अधिक हो गया है कुछ बातों में मुंबई की बहुत याद आती है और कुछ बातों से मुंबई से कोफ़्त भी होती है, जैसे कि दलालों का शहर मुंबई है। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है और रियल इस्टेट में हर जगह ब्रोकर याने कि दलालों का बोलबाला है। आजकल क्या मैं तो बरसों से मुंबई में देख रहा हूँ मुंबई में दल्लों का धंधा चोखा है।
renthousemumbai 
आपको फ़्लेट किराये पर लेना हो या खरीदना हो हरेक जगह ब्रोकरों का राज है। मुझे अच्छे से याद है जब मैंने मुंबई आखिरी बार फ़्लेट किराये पर लिया था तब तक ब्रोकर लोग किरायेदार से एक महीने का किराया ब्रोकर के रूप में लेते थे और ११ महीने का कान्ट्रेक्ट होता है। ११ महीने बाद अगर उसी फ़्लेट को रिनिवल करवाना है तो उसके लिये भी एक महीने का किराया ब्रोकरेज के रूप में देना पड़ता था।
आज ही छोटे भाई से बात हो रही थी तो पता चला कि अब ब्रोकरेज याने कि दलाली फ़्लेट लेने के लिये दो महीने की लेने लगे हैं और रिनिवल पर एक महीने का किराया ब्रोकरेज के रूप में लिया जा रहा है। वहाँ मुंबई में आम आदमी तो कमाने के लिये गया है और ये ब्रोकर बैठे हैं लूटने के लिये। प्रशासन भी आँख मूँदे पड़ा है। बेचारा बाहर का आदमी आयेगा तो उसे तो परिवार के रहने के लिये घर चाहिये ही, और सब अपने परिवार को अच्छी जगह पर रखना चाहते हैं, तो मजबूरी में ब्रोकरेज भी देते हैं।
अगर बात अब आंकड़ों में की जाये, १ बीएचके याने कि लगभग ४६५ स्क्वेयर फ़ीट का फ़्लेट का किराया कांदिवली पूर्व में लगभग १८,००० से २१,००० रूपये है, अब किरायेदार को ब्रोकरेज के तौर पर कम से कम ३६,००० रूपया तो ब्रोकर को ही देना है और यह एग्रीमेंट मकान मालिक के साथ ११ महीने का होता है, और एग्रीमेंट रजिस्टर्ड होता है, उस रजिस्ट्रेशन का खर्च आधा आधा मकान मालिक और किरायेदार को वहन करना होता है जो कि ब्रोकर लगभग ७,००० रूपया लेते हैं। तो आधा हो गया ३,५००। ११ महीने के बाद फ़िर से बड़े किराये के साथ ब्रोकर का ब्रोकरेज भी बढ़ जाता है।
और ब्रोकर तो मुंबई में कुकुरमुत्ते की तरह हैं, हर गली हर चौराहों पर ब्रोकर मिलेंगे, ये ब्रोकर हरेक तरह का सहारा लेते हैं और गुंडई करने से भी बाज नहीं आते।
हमने अनुमान लगाया था कि अगर ब्रोकर के पास कम से कम ऐसे १०० ग्राहक भी हैं तो उसकी वर्ष भर की कमाई कम से कम १८ लाख रूपये है, और अधिक तो अब क्या बतायें ये तो आप खुद अनुमान लगा लें।
पता नहीं कब सरकार चेतेगी और आम आदमी को मुंबई से ब्रोकर से मुक्ति मिलेगी। वैसे अब बैंगलोर में भी ब्रोकरों का धंधा काफ़ी अच्छा हो चला है, धीरे धीरे मुंबई की बयार यहाँ पर भी बह रही है। इसलिये हम तो ब्रोकरों का शहर कहते हैं मुंबई को।
ऐसे बहुत ही कम मकान मालिक हैं जो कि अपने फ़्लेट बिना किसी ब्रोकर की सहायता के देते हैं, ऐसे फ़्लेट सुलेखा.कॉम, मैजिकब्रिक्स.कॉम, ९९एकर्स.कॉम और ओएलएक़्स.इन पर ढूँढे जा सकते हैं, अगर किस्मत अच्छी हुई तो जिस समय आप फ़्लेट ढूँढ़ रहे हैं उस समय आपको कोई फ़्लेट इन वेबसाईट पर मिल जाये और आप अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा बचा सकें।

भूकम्प जो सबको हिला गया Tremors Tsunami

कल दोपहर लगभग दोपहर २.०८ पर भूकम्प आया था, और कई जगहों से इस खबर की पुष्टि भी हुई, हम उस समय कैन्टीन से दोपहर का भोजन कर लौट रहे थे और रास्ते में थे तो शायद हमें पता नहीं चला।

जैसे ही अपने अपनी सीट पर पहुँचे वहाँ चारों तरफ़ अफ़रा तफ़री फ़ैली हुई थी, सभी लोग इमारत से बाहर जाने के लिये जल्दी कर रहे थे, सबके चेहरे पर घबराहट साफ़ नजर आ रही थी। पता चला कि १० वीं मंजिल पर लोगों को अपने पानी की बोतलें और कम्प्यूटर हिलते हुए महसूस हुए। हमने सुरक्षा अधिकारी को फ़ोन लगाकर स्थिती का जायजा लिया तो उन्होंने हमें कहा कि हाँ १० वीं मंजिल से ऐसी खबर आई तो है, हमारे सुरक्षा अधिकारी अभी स्थिती का जायजा ले रहे हैं, और अगर इमारत खाली करनी होगी तो सभी मंजिलों पर उद्घोषणा कर दी जायेगी।

और हमने अपने फ़ेसबुक पर अपना यह स्टेटस अपडेट कर दियाimage

इसी बीच चैन्नई से भी कई अपडेट आ रहे थे, हमारे पास ही बैठने वाली हमारी साथी जो कि चैन्नई से थीं, उनके पास लगातार फ़ोन से खबरें आ रही थीं, वहाँ उनके मकान में एक दरार भी आ गई।

कल के भूकम्प का केन्द्र इंडोनेशिया बताया गया और लगभग २८ देशों में सुनामी की चेतावनी जारी कर दी गई। प्रशांत प्रियदर्शी के फ़ेसबुक स्टेटस से पता चला कि चैन्नई में ट्राफ़िक का बुरा हाल है।

आज सुबह अभी फ़िर से मैक्सिको में ७.४ तीव्रता के भूकम्प के झटकों की खबर आ रही है। अब डरने से तो कुछ होगा नहीं और ना ही आम आदमी प्रकृति का सामना कर सकता है। तो यह आदमखोर शेर के सामने एक आदमी के खड़े होने की स्थिती है।

भारत में सिगरेट का धंधा Cigarette in my hand

क्या कोई जानता है कि भारत सरकार मौत का धंधे वाली कंपनी में एक बड़ी पार्टनर है। हम बात कर रहे हैं आई.टी.सी. कंपनी की, ITC( Indian Tobacco Company) जो कि भारत में सिगरेट की एक बड़ी निर्माता कंपनी है और शेयर बाजार में इसके शेयर के भाव पिछले कुछ वर्षों अच्छे खासे बढ़े हैं।
सरकार की इस मौत के धंधे में 35.89% हिस्सेदारी है जिसका मूल्य लगभग 40,000 करोड़ रूपये बैठता है। और शेयर बाजार में ITC को बड़ा लिक्विडिटी वाला शेयर माना जाता है।
जानकर शायद आश्चर्य हो कि इस 35.89% में सरकार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी भारत में जीवन बीमा बेचने वाली LIC का है 12.92%| एक तरफ़ लोगों को जीवन बीमा बेचती LIC और दूसरी तरफ़ मौत के धंधे में हिस्सेदार।
दूसरी बड़ी कंपनी है SUUTI जी हाँ ये वही है UTI वाली, मौत के इस धंधे में इनकी हिस्सेदारी 11.59% है। बाकी तो सरकारी कंपनियों की फ़ेहरिस्त लंबी है जैसे – न्यू इंडिया इंश्योरेन्स
कंपनी, जनरल इंश्योरेन्स ऑफ़ इंडिया, ओरियेंटल इंश्योरेन्स कंपनी, नेशनल इंश्योरेन्स कंपनी इत्यादि ।
 
जब सारी बीमा कंपनियाँ अपने मुनाफ़े के लिये मौत के धंधे में हिस्सेदार हैं तो क्या इनके व्यापारिक सिद्धातों पर ऊँगली नहीं उठनी चाहिये।
ये देखिये ITC के रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट – यह पूरी रिपोर्ट आप यहाँ पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं।

 

 

तंबाखू से होने वाले कैंसर से होने वाली मौत के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं, हर वर्ष कैंसर से मरने वाले लोगों की तादाद हमारे पड़ोसी मुल्क के द्वारा आतंकवाद में होने वाली मौतों से कहीं ज्यादा हैं। इसका मतलब ? और दूसरी तरफ़ सरकार का ही स्वास्थ्य विभाग जनजागृति के नाम पर विज्ञापन और इलाज पर करोड़ों रूपया फ़ूँक रही है।

गैरी लॉयर का एक प्रसिद्ध गाना था – Cigarette in my hand यह देखिये –

 

The very famous antismoking campaign from ‘Bombay hospital’

I remember the time, I had my first hook
Try it just once, friends gently provoked
Friends told me yes, light a ciggy for a start
you would like the fire in a pretty girls laugh

With a cigarette in my hand I felt like a man
cigarette in my hand I felt like a man

My hero look so right
with a cigarette on his lips
Could I go wrong if I follow his tips
On the job I learnt a thing or two
cigarette had a place in every work day too
cigarette started every hour of my day
couldn’t get out of the habit, no way

With a cigarette in my hand I felt like a man
cigarette in my hand I felt like a man.

In moments that were a little a lonesome,
cigarette and I were happy twosome
cigarette slowly became my crunch
energy and stamina are lost very much
until one day I couldn’t on my feet
smoke made me feel real dead meat
then I realized I have paid a price.

With a cigarette in my hand, I was a dead man.

फ़ोर्स बैचलर रहने का मौका|

वर्ष भर में एक बार कम से कम एक माह के लिये फ़ोर्स बैचलर रहने का मौका मिलता है, कुछ कमियां खलती हैं, तो कुछ रोज रोज के अड़ंगों से मुक्ति भी मिल जाती है। सबका अपना अपना अनुभव होता है। इस वर्ष भी वह एक माह हमारा आज से शुरू हुआ है, पर अब फ़ोर्स बैचलर रहने का ना मजा आता है और ना ही रोमांच रह गया है। शायद अपने परिवार की ज्यादा ही आदत पड़ गई है, कुछ लोग कहते हुए पाये गये कि भई तुम अब बुढ्ढे हो गये हो, पर क्या परिवार की आदत और उनको प्यार क्या व्यक्ति को वाकई बुढ्ढ़ा बना देती है ? एक यक्ष प्रश्न जैसे हम से हम ही आमने सामने खड़े होकर पूछ रहे हैं।
समाज परिवार से व्यक्ति की पहचान करता है और परिवार में हर व्यक्ति की अपनी पहचान और जिम्मेदारियां होती हैं। अकेले रहने का रोमांच भी व्यक्ति को शायद इसलिये उद्वेलित करता है कि वह सब कार्य जो कि परिवार की उपस्थिती में नहीं किये जा सकते वे सब बिना रोक टोक के किये जा सकते हैं। वहीं कुछ दैनिक कार्य हैं जिनके लिये व्यक्ति परिवार पर निर्भर करता है। पहले किसी जमाने में एक अकेलेपन का भी एक मजा था, दोस्तों के साथ गपबाजी और समय अपने हिसाब से काटना एक शगल होता था। लगभग सभी दोस्त ऐसे मौके का बेसब्री से इंतजार करते थे। परंतु तेजी से वक्त ने करवट बदली और अब यह शगल मजा की जगह सजा जैसा लगने लगा है।
आज तो पहला दिन है अभी तो पूरे ३४ दिन अकेले रहना है, घर सम्हालना है। और यह पूर्ण महीना पता नहीं अभी और कितने नये अनुभव दिखायेगा।