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विद्यालयों में बच्चों को सजा देना कितना उचित ? मुझे भी अपने बेटे की चिंता हो रही है… क्या आपको है..? (Molestation in School)

आज बुद्धु बक्से पर एक शो देख रहा था, जिसमें एक बच्चे के अभिभावक बैठे हुए थे, उनकी लड़की जो कि मात्र १२ वर्ष की थी, ने विद्यालय में मिली सजा से आत्महत्या कर ली। अभिभावकों ने बताया की उनकी बेटी को किसी कारण से शिक्षक ने मारा पीटा और बेईज्जती की जिससे उनकी बेटी विद्यालय जाने को भी तैयार नहीं थी। परंतु उन्होंने समझा बुझाकर विद्यालय भेजा और उसने आकर दोपहर में घर पर आत्महत्या कर ली।

जब अभिभावकों ने विद्यालय में जाकर विरोध दर्ज करवाया तो प्रबंधन का रवैया भी रुखा ही रहा और आरोपी शिक्षक पर कोई कार्यवाही नहीं करने की बात की, और उल्टा उनकी बेटी और उनको भला बुरा कहा।

विद्यालयों को बच्चों के प्रति संवेदनशील होना चाहिये, किसी भी सजा का उनके मन पर क्या असर होता है, यह भी विद्यालय को सोचना चाहिये। पढ़ाने वाले शिक्षक पुरानी पीढ़ी के और पढ़ाने का तरीका भी पारंपरिक होता है, जब कि बच्चे आधुनिक परिवेश में रहकर उन चीजों से नफ़रत करते हैं। आज की बाल पीढ़ी बहुत जागरुक है, और पहले से बहुत ज्यादा संवेदनशील भी। आज के बच्चों को बहुत ही व्यवहारिक तरीके से समझाना चाहिये।

क्या विद्यालय पर प्रशासन कोई जाँच करता है, निजी विद्यालय अपने बच्चों को कैसे पढ़ा रहे हैं, उनके साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं, कैसे उनको व्यवहारिक शिक्षा दे रहे हैं। निजी विद्यालय आर.टी.आई. (Right for Information) के अंतर्गत आते हैं, पर फ़िर भी पारदर्शितापूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं होती है।

विद्यालयों के इस असंवेदनशील रवैये से आजकल के अभिभावक कैसे निपटें ? अगर किसी को जानकारी हो तो कृप्या बतायें, जिससे सभी अभिभावक जागरुक हों।

[मेरा बेटा भी पिछले दो दिनों से विद्यालय न जाने की जिद कर रहा है, कुछ भी पूछो तो बोलता है कि “क्या बेईज्जती करवाने जाऊँ”, कल मैंने बहुत प्यार से पूछा तो कोई भी कारण स्पष्ट नहीं हुआ, और विद्यालय में पूछने पर भी कुछ पता नहीं चला, अब विद्यालय का वह वक्त जो मेरे बेटे और विद्यालय के शिक्षकों के मध्य गुजरता है, और उस वक्त में वाकई क्या हो रहा है, मुझे पता ही नहीं है, और इसलिये मेरी भी चिंता बड़ती जा रही है, पर अब कुछ तो तरीका ईजाद करना ही होगा।]

मैंने आजतक कितनी रिश्वत दी उसका हिसाब (जितना याद आया)

    आज डी.एन.ए. में एक आलेख आया है कि आम आदमी जन्म से मृत्यु तक भारत में लगभग १ लाख ६९ हजार रुपये की रिश्वत देता है जो कि भारत के हर हिस्से में अलग हो सकती है। तो मैंने भी अभी तक अपने हाथों से दी गई रिश्वत जो कि अपने खुद के कार्य करने के लिये दी, उसका हिसाब लगाना जरुरी समझा कि कम से कम पता तो चले कि हमने अभी तक कितनी रिश्वत दी है।
१. दो घर के लोगों के मनपसंद जगह ट्रांसफ़र करवाये – २५,००० रुपये
२. पहली बार पासपोर्ट बनवाने पर पुलिस को ५० रुपये दिये चाय पानी के
३. एक और स्थानांतरण में १०,००० रुपये की रिश्वत दी।
४. एक और जगह ४०,००० रुपये की रिश्वत दी (नाम नहीं बता सकता और न ही जगह)
५. मुंबई में गैस का कनेक्शन लेने के लिये १५०० रुपये का चूल्हा ६५०० में खरीदा।
६.रेल्वे में टीसी को कई बार सीट लेने के लिये रिश्वत दी है शायद १०,००० या उससे भी ज्यादा दे चुके होंगे।
७. एक और बार पुलिस को ५०० रुपये की रिश्वत दी।
८. एक और जगह २५,००० की रिश्वत दी (नाम नहीं बता सकता और न ही जगह)
९. यातायात पुलिस को २०० रुपये की रिश्वत
अभी तो इतना ही याद है, और याद आता है तो ९ नंबर के आगे बड़ाता जाऊँगा, या फ़िर कभी वापिस से रिश्वत देनी पड़ी तो यहाँ जरुर लिखूँगा।
आजतक की रिश्वत में दी गई रकम होती है लगभग १,१५,७०० रुपये की रिश्वत दे चुका हूँ। क्या आपने कभी हिसाब लगाया है ?
मेरे पास अतिरिक्त ५०० रुपये हैं, जिस रिश्वतखोर को चाहिये वह संपर्क करे ।


रिश्वत की रकम १,१६,४०० रुपये

१०.  ठाणे से मुंबई घर का सामान लाते समय ३५०० रुपये की रिश्वत मांगी गयी थी परंतु केवल २०० रु. की रिश्वत में काम बन गया। 


११. म.प्र.गृह निर्माण मंडल में ५०० रुपये दिये थे।

पासपोर्ट बनवाने के चक्कर में घनचक्कर… सरकारी दफ़्तर… वेबसाईट पर कानून कुछ ओर और दफ़्तरों में कुछ और ?

    हमें यकायक सूझी कि चलो अपना खत्म हो चुका पासपोर्ट का नवीनीकरण करवा लिया जाये। पहले हमने पासपोर्ट की आधिकारिक वेबसाईट पर जाकर जानकारी ली और फ़िर कुछ चीजों में संशय था तो एक एजेन्ट घर के पास ही है, उसके पास चले गये कि आपसे पासपोर्ट बनवायेंगे बताईये क्या क्या लगेगा, तो सबसे पहले उसने अपनी फ़ीस बताई जो कि लगभग २००० रुपये थी और पासपोर्ट की अलग १००० रुपये, और तमाम तरह के कागजात भी बोले गये। हम तो हक्के बक्के रह गये कि वेबसाईट पर तो इतना सब कुछ नहीं दे रखा है फ़िर यह नये कागजात कहाँ से आ गये।

नवीनीकरण की प्रक्रिया में लगने वाले कागज वेबसाईट के अनुसार

१. पुराना पासपोर्ट

२. एड्रेस प्रूफ़ (कोई भी एक और राशन कार्ड के साथ एक और पते का सबूत)

यह पासपोर्ट की आधिकारिक साईट पर दे रखा है –

a) Proof of address (attach one of the following):

Applicant’s ration card, certificate from Employer of reputed companies on letter head, water /telephone /electricity bill/statement of running bank account/Income Tax Assessment Order /Election Commission ID card, Gas connection Bill, Spouse’s passport copy, parent’s passport copy in case of minors. (NOTE: If any applicant submits only ration card as proof of address, it should be accompanied by one more proof of address out of the above categories).

३. शादी का प्रमाणपत्र

    हम तीनों चीजें साथ में लेकर गये फ़िर भी दो दिन धक्के खाने के बाद भी पासपोर्ट अधिकारी कहते हैं कि एड्रेस प्रूफ़ एक ओर चाहिये हमने कहा कि वेबसाईट पर तो एक ही प्रूफ़ की आवश्यकता बताई गई है, जो कि हम साथ में लाये हैं, तो बोलते हैं कि वहीं बनवा लो, यहाँ तो यह कागज भी चाहिये। हम बेरंग वापिस आ गये।

वहाँ लाईन में खड़े लोगों से बतियाया तो पता चला कि कागजात के ऊपर जितनी बहस इनसे करो ये लोग केस उतना ही खराब कर देते हैं, यहाँ तो पूरी तरह से इनकी दादागिरी चलती है। वह भी सभ्य भाषा में…

    अगर एड्रेस प्रूफ़ दो चाहिये तो वेबसाईट पर भी लिखना चाहिये कि उसके बिना काम नहीं होगा। हाँ मानते हैं कि पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया बहुत संवेदनशील है, पर इसके लिये ही तो पोलिस वेरिफ़िकेशन भी होता ही है।

    वहाँ पर बहुत सारे लोगों से बातें हुई जो कि हमारी तरह ही पासपोर्ट की लाईन में लगे हुये थे, तो पता चला कि अगर सीधे आओ तो कम से कम ये लोग ३-४ चक्कर तो लगवाते ही हैं, फ़िर ऑनलाईन पासपोर्ट का आवेदन क्यों पासपोर्ट की आधिकारिक वेबसाईट पर रखा गया है, यह समझ में नहीं आया, सीधे सीधे लिख देना चाहिये कि एजेन्ट के द्वारा आओ तो काम जल्दी हो जायेगा।

    अगर पासपोर्ट के कागजात की प्रक्रिया पूर्ण हो भी जाये तो उसके बाद पोलिस वेरिफ़िकेशन में भी पोलिस की जेब गरम किये बिना आपका काम नहीं होता है, वे लोग फ़ाईल ही दबा देते हैं।

    पासपोर्ट कार्यालय में भीड़ देखकर और काम करने वालों को देखकर बेहद गुस्सा आ रहा था, या तो ऑनलाईन सेवा से कम लोगों को बुलाना चाहिये या फ़िर और भी लोगों को कागजात को जाँचने के लिये लगाना चाहिये, और जो भी कागजात की कमी है वह एक बार में ही बता देना चाहिये, असल में होता यह है कि जब काऊँटर पर अधिकारी कागजात जाँचते हैं तो जहाँ भी पहला कागजात अपूर्ण पाया जाता है, वे अधिकारी वहीं रुक जाते हैं आगे के कागजात की जाँच ही नहीं करते हैं।

    सरकारी दफ़्तर की मनमानी का शिकार आखिर हम हो ही गये हैं। पासपोर्ट नवीनीकरण की प्रक्रिया इतनी जटिल बनाई हुई है जिसे कि सरल बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि पहले ही पासपोर्ट है। अब इच्छा है कि विदेश मंत्रालय से संपर्क करके इसके बारे में ज्यादा जानकारी ली जाये। और भी कोई तरीका हो तो बतायें। क्या आर.टी.आई. दायर की जा सकती है ?

दीवाली आते ही ए.टी.एम. खाली… क्या आर.बी.आई. को ए.टी.एम. के लिये नियम निर्देशिका नहीं बनानी चाहिये।

    out of service atm दीवाली का त्यौहार शुरु हो चुका है, और खरीदारी का दौर शुरु हो चुका है, वैसे तो प्लास्टिक करंसी का ज्यादा उपयोग हो रहा है पर बहुत सारे लोग क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से भुगतान नहीं लेते और बहुत सारे उपभोक्ता कार्ड का उपयोग करने से डरते हैं, इसलिये वे लोग नकद व्यवहार ही करते हैं।

    नकद व्यवहार के लिये उपभोक्ता ए.टी.एम. पर ज्यादा निर्भर है, क्योंकि आजकल अगर बैंक में जाकर पैसे निकालना हो तो ज्यादा समय लगता है, और ए.टी.एम. से बहुत ही कम। बैंक में जाकर नकद निकालने का समय १०-१५ मिनिट हो सकता है, और फ़िर चेकबुक साथ में ले जाना होती है, पर ए.टी.एम में अपना कार्ड स्वाईप किया और अपना कूटशब्द डालते ही नकद आपके हाथ में होता है।

    मंदी के बाद की यह पहली दीवाली है लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं, बाजार सजे हुए हैं और लोगों के चेहरे पर खुशी है। अक्सर देखा जा रहा है कि त्यौहार के समय ए.टी.एम. नकदी की समस्या से झूझ रहे होते हैं। ए.टी.एम. के बाहर एक बोर्ड लगा दिया जाता है “ए.टी.एम. अस्थायी तौर पर बंद है”, पर इसका कोई कारण नहीं लिखा होता है।

    जैसे बैंकों के लिये नकद संबंधी नियम हैं, या बैंके नकद कम न पड़े इसका ध्यान रखती हैं, तो उन्हें ए.टी.एम. का भी नकद प्रबंधन अच्छे से करना चाहिये। इसके लिये आर.बी.आई. को नियम निर्देशिका बनाना चाहिये कि नकद के अभाव में ए.टी.एम. बंद ना हों, नकद प्रवाह के लिये किसी को जिम्मेदार बनाना ही चाहिये, जिससे आम जनता को तकलीफ़ नहीं हो।

आधुनिक शिक्षा की दौड़ में कहाँ हैं हमारे सांस्कृतिक मूल्य (Can we save our indian culture by this Education ?)

    क्या शिक्षा में सांस्कृतिक मूल्य नहीं होने चाहिये, शिक्षा केवल आधुनिक विषयों पर ही होना चाहिये जिससे रोजगार के अवसर पैदा हो सकें या फ़िर शिक्षा मानव में नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक मूल्य की भी वाहक है।

कैथलिक विद्यालय में जाकर हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं –

यीशु मसीह देता खुशी

यीशु मसीह देता खुशी
करें महिमा उसकी
पैदा हुआ, बना इंसान
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान

नारे लगाओ, जय गीत गाओ
शैतान हुआ परेशान
ताली बजाओ, नाचो गाओ
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा…

गिरने वालों, चलो उठो
यीशु बुलाता तुम्हें
छोड़ दो डरना
अब काहे मरना
हुआ है ज़िन्दा यीशु मसीह
यीशु मसीह…

झुक जायेगा, आसमां एक दिन
यीशु राजा होगा बादलों पर
देखेगी दुनिया
शोहरत मसीह की
जुबां पे होगा ये गीत सभी के
यीशु मसीह..

कल के चिट्ठे पर कुछ टिप्पणियों में कहा गया था कि धार्मिक संस्कार विद्यालय में देना गलत है, तो ये कॉन्वेन्ट विद्यालय क्या कर रहे हैं, केवल मेरा कहना इतना है कि क्या इन कैथलिक विद्यालयों के मुकाबले के विद्यालय हम अपने धर्म अपनी सांस्कृतिक भावनाओं के अनुरुप नहीं बना सकते हैं ? क्या हमारे बच्चों को यीशु का गुणगान करना और बाईबल के पद्यों को पढ़ना जरुरी है। पर क्या करें हम हिन्दूवादिता की बातें करते हैं तो हमारे कुछ लोग ही उन पर प्रश्न उठाते हैं, जबकि इसके विपरीत कैथलिक मिशन में देखें तो वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाई देगा।

यहाँ मैं कैथलिक विद्यालयों की बुराई नहीं कर रहा हूँ, मेरा मुद्दा केवल यह है कि जितने संगठित होकर कैथलिक विद्यालय चला रहे हैं, और समाज की गीली मिट्टी याने बच्चों में जिस तेजी से घुसपैठ कर रहे हैं, क्या हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ इन कैथलिक विद्यालयों के साथ स्वस्थ्य प्रतियोगिता नहीं कर सकते।

“हिन्दुत्व” पढ़ाने वाले भारतीय संस्कृति के विद्यालयों की कमी क्यों है, हमारे भारत् में..?

    एक् बात मन में हमेशा से टीसती रही है कि हम लोग उन परिवारों के बच्चों को देखकर ईर्ष्या करते हैं जो कॉन्वेन्ट विद्यालयों में पढ़े होते हैं, वहाँ पर आंग्लभाषा अनिवार्य है, उन विद्यालयों में अगर हिन्दी बोली जाती है तो वहाँ दंड का प्रावधान है। वे लोग अपनी संस्कृति की बातें बचपन से बच्चों के मन में बैठा देते हैं।

    पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत ये विद्यालय हमें हमारी भारतीय संस्कृति से दूर ले जा रहे हैं, हमारे भारतीय संस्कृति के विद्यालयों में जहाँ तक मैं जानता हूँ वह हैं केवल “सरस्वती शिशु मंदिर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित”, “गोपाल गार्डन, इस्कॉन द्वारा संचालित” ।

    और किसी हिन्दू संस्कृति विद्यालय के बारे में मैंने नहीं सुना है जो कि व्यापक स्तर पर हर जिले में हर जगह उपलब्ध हों। मेरी बहुत इच्छा थी कि बच्चे को कम से कम हमारी संस्कृति का ज्ञान होना चाहिये, आंग्लभाषा पर अधिकार हिन्दुत्व विद्यालयों में भी हो सकता है, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है गोपाल गार्डन विद्यालय, वहाँ के बच्चों का हिन्दी, संस्कृत और आंग्लभाषा पर समान अधिकार होता है और उनके सामने कॉन्वेन्ट के बच्चे टिक भी नहीं पाते हैं।

    हमारे धर्म में लोग मंदिर में इतना धन खर्च करते हैं, उतना धन अगर शिक्षण संस्थानों में लगाया जाये और पास में एक छोटा सा मंदिर बनाया जाये तो बात ही कुछ ओर हो। राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षैत्र में उग्र आंदोलन की जरुरत है। नहीं तो आने वाले समय में हम और हमारे बच्चे हमारी भारतीय संस्कृति भूलकर पश्चिम संस्कृति में घुलमिल जायेंगे।

    याद आती है मुझे माँ सरस्वती की प्रार्थना जो हम विद्यालय में गाते थे, पर आज के बच्चों को तो शायद ही इसके बारे में पता हो –

माँ सरस्वती या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||

शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ||

अगर हमारे मास्साब को ७,८,१३ के पहाड़े और विज्ञान की मूल बातें न पता हों तो हमारे देश के बच्चों का भविष्य क्या होगा ..!

    खबर है थाणे महाराष्ट्र प्रदेश की (Thane civic teachers flunk surprise test) कि शिक्षा विभाग के सरकारी विद्यालयों में महकमे ने कुछ अध्यापकों से उनके विषय से संबंधित मूल प्रश्न पूछे, जैसे कि ७,८,१३ के पहाड़े और रसायन विज्ञान के मूल सूत्र जो कि वे लगभग पिछले १५-२० वर्षों से बच्चों को पढ़ाते रहे हैं।

    सरकारी महकमा भी सोच रहा होगा कि कैसे नकारा मास्टर लोग हैं हमारे यहाँ के जो नाम डुबाने में लगे हैं। बताईये उन बच्चों का क्या भविष्य होगा जो इन विद्यालयों में इन मास्साब लोगों से पिछले १५-२० वर्षों से पढ़ रहे हैं। चैन की दो वक्त की रोटी मिलने लगे तो क्या मानव को अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर लेना चाहिये।

    इससे अच्छा तो सरकार को विद्यालयों में शिक्षकों को निकालकर नये पढ़े लिखे बेरोजगार नौजवानों को भर्ती कर लेना चाहिये, कम से कम बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न तो नहीं लगेगा। अगर ऐसे मास्साब लोग हमारे विद्यालय में होंगे तो हमें हमारी तरक्की से वर्षों पीछे ढकेलने से कोई नहीं रोक सकता। इसके लिये केवल वे मास्साब ही जिम्मेदार नहीं हैं, जिम्मेदार हैं प्रशासन से जुड़ा हर वह व्यक्ति जो कि बच्चों की शिक्षा के लिये सरकारी महकमे से जुड़े हैं।

   यह स्थिती केवल इसी जिले की नहीं होगी यह स्थिती देश के हर जिले की होगी, इसकी पूरी पड़ताल करनी चाहिये ।

आखिर क्या करना चाहिये ऐसे मास्साबों का ? और क्या होगा हमारे बच्चों का भविष्य ?

(ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करके पूरा समाचार पढ़ा जा सकता है।)

पत्नी ने रिश्वतखोर पति का भंडाफ़ोड़ किया..काश हर घर में हो..कितना सही..चिंतन..? [Fiesty wife exposes bribe – taking hubby]

    जी हाँ यह सच है, कल के मुंबई मिरर में “Fiesty wife exposes bribe – taking hubby” इस घटना का ब्यौरा दिया गया है। पूरी  खबर लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

    वाकई अगर पत्नी पति की रिश्वतखोरी को रोके, भारत देश से भ्रष्टाचार खत्म करने का यह सबसे आसान तरीका लगता है। इस मुद्दे पर नारीवादी संगठनों को आगे आना चाहिये और नारियों को जागरुक करना चाहिये।

    जिस घटना को पढ़कर यह मैं लिख रहा हूँ उस घटना में पत्नी रिश्वत के पैसे से घर नहीं चलाना चाहती थी, और उसने पति को समझाया कि सीमित वेतन में अच्छे से जी सकते हैं, तो यह गलत काम क्यों करना। पत्नी ने पति को समझाया कि उसके पापा भी सरकारी नौकरी में थे और कभी भी रिश्वत के लालच में नहीं आये। पर पति की समझ में न आया, और उसकी रिश्वत की भूख बड़ती ही जा रही थी, एक दिन पति दो लाख रुपये लेकर आया तो पत्नी ने हंगामा कर दिया कि वह इस रिश्वत की रकम को घर में नहीं रहने देगी, और पति के न मानने पर रिश्वत एवं भ्रष्टाचार संबंधी कागज लेकर पुलिस को दे दिये।

    प्रश्न अब यह है कि क्या पत्नी ने ठीक किया ? भ्रष्टाचारी पति का भंडाफ़ोड़ करके या उसे यह सब चुपचाप सहन कर लेना चाहिये था और भ्रष्ट धन से भौतिक सुख सुविधाओं का मजा लूटना चाहिये था ?

भ्रष्टाचारी रुपी रावण कब हमारे भारत देश से विदा होगा, कब हम इस रावण को जलायेंगे …

पिछली पोस्ट आज भ्रष्टाचार की नदी में नहाकर आये हैं.. आप ने कभी डुबकी लगाई .. से आगे…

    रोज के ६० पंजीयन करवाये जाते हैं इस भूपंजीयन कार्यालय द्वारा और बताया गया कि हर पंजीयन पर लगभग १५०० रुपयों की रिश्वत होती है। और जो दलाल होता है उसकी कमाई रोज की १० हजार से १५ हजार तक होती है, भूपंजीयन (सहदुय्यम अधिकारी) की कुर्सी ५०-६० लाख रुपये में बिकती है क्योंकि हर माह यहाँ लाखों की कमाई होती है, यह १५०० रुपये की रिश्वत तो केवल मकान मालिक और किरायेदार के करारनामे पर है, अगर कोई नये फ़्लेट या पुराने फ़्लेट के लिये जा रहा है तो उसकी रिश्वत की राशि बहुत ज्यादा होती है।

    उस कार्यालय में जाकर इतनी घिन आ रही थी कि कहाँ हम इस भ्रष्टाचार की नदी में आकर सन गये हैं, और नहाकर तरबतर हो चुके हैं। अपने आप पर गुस्सा भी था कि इस भ्रष्टाचार को हम धता भी नहीं बता पा रहे थे, मजबूरी में भ्रष्टाचार का साथ दे रहे थे, पर इस भ्रष्टाचार के बिना हमारा काम बिल्कुल नहीं होता यह तो हमें हमारे दलाल ने पहले ही बता दिया था, “खुद जियो और दूसरे को भी जीने दो” याने कि “खुद खाओ और दूसरे को भी खाने दो”

    क्या सरकार हमारी अंधी है या जो भ्रष्टाचार निरोधक अमले बना रखे हैं वो केवल औपचारिकताएँ पूरी करने के लिये बनाये गये हैं। हमारी कोर्ट भी संज्ञान नहीं लेती हैं, क्या इतनी मिलीभगत है, क्या हमारा पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार में लिप्त है, कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक भ्रष्टाचार के मामले को संज्ञान में लेते हुए कहा था कि सरकार को भ्रष्टाचार को कानूनन लागू कर देना चाहिये और किस काम का कितना पैसा खर्च होगा उसका भाव तय कर देना चाहिये। पर हमारे सरकारी कुंभकर्ण और रावण कभी नहीं जाग सकते।

    अब बताईये जिन लोगों को यहाँ जनता की सेवा के लिये बैठाया गया है वही लोग अपना काम करने की जनता से रिश्वत लेते हैं, और जनता भी दे देती है, क्या करे जनता भी, सब मिलीभगत है।

    भ्रष्टाचारी रुपी रावण कब हमारे भारत देश से विदा होगा, कब हम इस रावण को जलायेंगे, कब रावण को हर वर्ष जलाना छोड़ देंगे, इस रावण को जड़ से ही मिटा देंगे। कब….. बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है… पता नहीं हमारे भारतवासी कब हराम की कमाई छोड़ेंगे… जिस दिन यह संकल्प हर भारतवासी ने ले लिया उस दिन भारत में रामराज्य स्थापित हो जायेगा। दशहरे पर असत्य पर सत्य की विजय के साथ सभी को विजयादशमी की शुभकामनाएँ।

आज भ्रष्टाचार की नदी में नहाकर आये हैं.. आप ने कभी डुबकी लगाई ..

आज हम सुबह अपने मकान के दलाल के साथ पंजीयक कार्यालय गये थे, जहाँ हमारे मकान मालिक भी थे, यहाँ मुंबई में ११ महीने का किराये का करारनामा होता है जो कि पंजीयन कार्यालय से पंजीकृत भी होना चाहिये। यह पूर्णतया: कानूनी कार्यवाही होती है।

जब हम पंजीयक कार्यालय पहुँचे तो वहाँ लिखा था तहसिलदार भूमापन बोरिवली कार्यालय, और भी ४-५ कुछ और नाम लिखे थे, जो कि हमें याद नहीं है, वहीं पास में झंडे को फ़हराने के लिये लोहे का पाईप भी लगा था, वह देखकर मन में आया कि मुंबई महानगरी में सरकारी कार्यालय में इतने सारे भ्रष्टाचारी लोगों के बीच में अपने तिरंगे को फ़हराने का क्या काम, इसलिये इस लोहे के डंडे को यहाँ होना ही नहीं चाहिये। मन में यह बात लिये हम पहले माले पर चल दिये।

जहाँ हमारे मकान के दलाल ने पहले से ही सब “सैटिंग” की हुई थी, हमारा १२ बजे का नंबर लिया हुआ था, हम पहुँचे १२.४५ बजे पर अगले ने फ़िर “सैटिंग” की फ़टाफ़ट और हमारी फ़ाईल नीचे से ऊपर करवाई और बस हम पंजीयन अधिकारी के कार्यालय में पहुँच गये। मुख्य कुर्सी पर एक महिला काबिज थी जो कि बहुत ही महंगी सी साड़ी पहनी हुई बैठी थीं, और चेहरा बिल्कुल रुखा कि कहीं कोई फ़ोकट में काम न करवा ले।

जहाँ बैठने के लिये दो कुर्सियाँ और एक स्टूल था, स्टूल पर पहले मकान मालिक को बैठाया गया और उनके कुछ हस्ताक्षर वगैरह लिये गये फ़िर “वैब कैम” से फ़ोटो खींचे गये और उल्टे हाथ का अंगूठे का स्कैनिंग किया गया। इसके बाद हमारा नंबर आया और यही सब हमारे साथ किया गया, इसी बीच पंजीयन कार्यालय के दलाल द्वारा एक हस्ताक्षर लिया गया। हमने अपने दलाल पर भरोसा करके उसपर हस्ताक्षर कर दिये (इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था)

फ़िर हम उस कक्ष के बाहर आये और वहाँ फ़िर वही दलाल कुछ कागज लाया और हमसे और मकान मालिक से हस्ताक्षर करवाये। हमने अपने अगले ११ महीने के चैक मकान मालिक को सुपुर्द किये और बस अगले ११ महीने के लिये हमारा पंजीयन हो गया, हम केवल १० मिनिट में स्वतंत्र हो गये।

कार्यालय में हमने दो चीजें पढ़ी थीं कि पंजीकरण के लिये नंबर ऑनलाईन किये जा सकते हैं, और ईस्टाम्प। हम हमारे मकान मालिक के साथ बात कर रहे थे कि अगर सभी चीज ऑनलाईन कर दी जाये तभी भ्रष्टाचार का खात्मा संभव है, नहीं तो हम और आप तो कुछ भी नहीं कर सकते इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ़।

कार्यालय से बाहर निकलते ही हमने अपने दलाल से प्रश्न किया कि अगर बिना भ्रष्टाचार के पंजीयन करवाना हो तो कितना समय लग जाता है। हमारे दलाल का जबाब था कि “हो ही नहीं सकता।” वहीं पर एक अस्थायी पटिये पर बैठे हुए बंदे ने कहा कि अंकल जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। वह भी शायद दलाल ही था। हमने कहा कि वहाँ तो लिखा है कि ऑनलाईन नंबर और ईस्टाम्प सरकार ने शुरु किया है। तो दोनों ठहाके मारकर हँसने लगे और बोले नंबर तो अगले एक महीने का शुरु के दो दिन में ही दर्ज हो जाते हैं, तो हम बोले फ़िर आपको कैसे ऐसे नंबर मिल जाता है, वे बोले पैसे में बहुत ताकत है, और वही ताकत यह सब करवाती है।

जारी…