जब भी हम किसी परेशानी में होते हैं तो हमारा दिमाग अलग अलग स्थितियों में चला जाता है, जैसे या तो सुन्न हो जाता है हम किसी भी प्रकार से सोच ही नहीं पाते हैं, दिमाग सुस्त हो जाता है हमारे सोचने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है हम परिस्थितियों से हाथ दो चार करना चाहते हैं परंतु सोचना मुश्किल हो जाता है, हमारे सोचने की प्रक्रिया तेज हो जाती है जब हमें थोड़ी भी प्रेरणा या कोई आगे बढ़ने की थोड़ी सी भी राह मिल जाती है कोई रोशनी की किरण दिख जाती है हम Continue reading परेशानी में दिमाग की स्थितियाँ
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आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते
आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते जो मैं सुबह की चाय के साथ लिख रहा हूँ गलत नहीं लिखूँगा, आजकल ट्विटर और फेसबुक पर हम अगर किसी एक दल के लिये कुछ लिख देते हैं तो हमें अपने वाले ही विकास विरोधी बताकर लतियाना शुरू कर देते हैं। पर हम भी अपना संतुलन ना खोते हुए संयमता बरतते हैं, दिक्कत यह है कि विकास की लहर वाले लोग जबाव देने की जगह हड़काने लगते हैं। क्या वाकई उन्हें लगता है कि इससे सारी दिक्कतें दूर हो जायेंगी, या वाकई उन्हें यह लगता है कि सब ठीक चल रहा है, खैर अब हम क्या बतायें ये तो मानव मन की गहराईयाँ हैं, जो अच्छा लगता है वही पढ़ना चाहता है, वही लिखना चाहता है, वही बोलना चाहता है और वही दूसरों से सुनना चाहता है।
बाकी सब तो व्यंग्य हैं, पर आज सुबह उठकर हमने सोचा कि वाकई हमें उनका पक्ष भी जानना चाहिये, कि हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, क्या मुझे रोजमर्रो के कामों में कोई आसानी हुई या वही सब पुरानी परेशानियाँ अभी भी झेलनी पड़ रही हैं।
महँगाई – यह तो सुरसा की मुँह है, बड़ती ही जा रही है, दूध आज से 4 वर्ष पहले बैंगलोर में 21 रू. किलो मिलता था, आज वही दूध 42 रू. हो गया है, अब तो बैंगलोर छोड़े मुझे समय हो
गया, हो सकता है और भी ज्यादा हो गया हो। यहाँ गुड़गाँव में खुला दूध 42 से 46 रू. ली. मिलता है और पैक वाला 44 से 50 रू ली. मिलता है। यहाँ तो मेरी जेब कट ही रही है। न सब्जी के दामों में कमी है न दालों के।
गया, हो सकता है और भी ज्यादा हो गया हो। यहाँ गुड़गाँव में खुला दूध 42 से 46 रू. ली. मिलता है और पैक वाला 44 से 50 रू ली. मिलता है। यहाँ तो मेरी जेब कट ही रही है। न सब्जी के दामों में कमी है न दालों के।
चिकित्सा – थोड़े दिनों पहले बेटेलाल बहुत ज्यादा बीमार थे, पता नहीं कितने डॉक्टरों के चक्कर काटे और जाने कितने टेस्ट करवाये, लूट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डॉक्टरों की फीस कम से कम 500 रू. हो गई है और साधारण से टेस्ट के भी 100 – 500 रू. तक वसूले जा रहे हैं, और उनमें भी शुद्धता नहीं है दो अलग अलग लैबों की रिपोर्ट भी अलग आती है, किसी स्थापित मानक का उपयोग नहीं किया जाता है। जबकि हम सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों कर देते हैं, पर हमें सीधे कोई फायदा नहीं है, यहाँ एक बात का उल्लेख करना चाहूँगा मेरे प्रोजेक्ट से अभी एक बंदा ब्रिटेन से वापस आया तो बोलो कि वहाँ अगर कर लेते हैं तो वैसी सुविधाएँ भी हैं, लिये गये पूरे पैसे का पाई पाई का उपयोग होता है, केवल फोन कर दो तो दो तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, पहला तो कि आपको कुछ समस्या हो गई है तो तत्काल एम्बूलेन्स आयेगी और वहीं तात्कालिक सहायता उपलब्ध करवाकर अगर जरूरत है तो अस्पताल भी ले जायेगी, दूसरी आप फोन करके डॉक्टर से मिलने का समय सुनिश्चित कर सकते हैं, जो कि स्वास्थय बीमे में ही कवर होता है।
सरकारी कार्य – कुछ दिनों पहले अपनी बाईक के कागजों से संबंधित कार्य था, सोचा कि शायद हम सीधे ही करवा पायें, एक छुट्टी भी बर्बाद की और कोई काम भी नहीं हुआ, अगले दिन सुबह एक एजेन्ट को ही पकड़ना पड़ा जैसा कि स्वागत कक्ष पर बैठे बाबू ने कहा, क्योंकि वहाँ पुलिस का कोई सर्टिफिकेट बनवाना पड़ता है, और वहाँ बिना पहचान के काम नहीं होता है, हमें पता नहीं क्या क्या कागजात लाने को बोले गये थे, हमने सब दिखाये पर काम न हुआ, एजेन्ट ने हमसे 300 रू इसी बात के लिये और सर्टिफिकेट बनवा लाया, हमारे जाने की जरूरत भी नहीं पड़ी। क्यों नहीं यह सारा कार्य ऑनलाईन करके जनता को सरकारी मशीनरी की कठिनाईयों से मुक्ती दे दी जाती है। किसी भी सरकारी कार्यालय में जाओ तो पता चलता है कि बिना पैसे के कोई काम नहीं होता है।
ऑटो पुलिस – न ऑटो वाले मीटर से चलते हैं और न ही पुलिस वाले उन्हें कुछ बोलते हैं, हर जगह जाम की स्थिती है।
ट्रॉफिक जाम – पता नहीं कितने हजारों घंटों को नुक्सान ट्रॉफिक जाम में हो जाता है, क्यों नहीं ऐसा बुनियादी ढाँचा बनाया जाता है कि ट्रॉफिक की समस्या से निजात मिले, क्यों नहीं सड़कों को अगले 10 वर्ष बाद की दूरदर्शिता के साथ बनाया जाता है। और पेट्रोल का नुक्सान तो होता ही है।
पेट्रोल – की बात आई तो यह बात करना भी उचित होगा कि जब क्रूड ऑइल जब महँगा था तो पेट्रोल का भाव 86 रू. ली. तक था, पर आज आधे से भी कम है तो भी पेट्रोल का भाव 62 रू. क्यों है, जब पेट्रोल डीजल के भाव बड़ रहे थे, तब तो सभी ने अपने किराये बढ़ा दिये, अब जब कम हो रहे हैं, तो उसका फायदा हमें क्यों नहीं मिल रहा है।
बिजली – इस पर तो अनर्गल वार्तालाप किये जा रहे हैं, कि कई बिजली की कई कंपनियाँ होने से सस्ती हो जायेंगी, अगर ऐसा है तो रेल्वे को भी कई कंपनियों के हाथों में दे दीजिये, बसों में कई कंपनियों की बसें विभिन्न रूट पर चलती हैं पर कहीं कोई सस्ती सेवा उपलब्ध नहीं है, वैसे भी यह सब सरकार के हाथ नहीं है, यह बिजली नियामक तय करते हैं, पता नहीं सरकार जनता को उल्लू क्यों समझती है।
रेल्वे – जब भी मैं घर जाने का प्रोग्राम बनाता हूँ तो टिकट ही उपलब्ध नहीं होते, क्यों न सफर करने वाली आबादी के अनुसार रेल्वे को डिजायन किया जाये, हम यह नहीं कहते कि बुलेट ट्रेन न चलाई जाये वह तो भविष्य की जरूरत है परंतु उससे पहले हमें कम से कम आजकल के टिकट तो मयस्सर होने चाहिये, अगर बुलेट ट्रेन भी आ गई और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है तो फिर कैसे उसका भी भरपूर उपयोग भारतवासी कर पायेंगे और अगर संयोग से टिकट मिल भी जाता है तो सुविधाओं में कमी महसूस होती है।
शिक्षा – हम सरकारी स्कूल में पढ़े, तब भी निजी स्कूल थे, परंतु यह कह सकते हैं कि कम से कम सरकारी स्कूलों का स्तर आज से बहुत अच्छा था, मैंने तो आज भी कई सरकारी स्कूल देखें हैं जो निजी स्कूलों से काफी अच्छे हैं, परंतु वे सरकारी प्रयास नहीं है, वह तो किसी प्रधानाध्यापक की मेहनत और कड़ाई के कारण है। सरकारी स्कूल और निजी स्कूल की फीस में जमीन आसमान का अंतर है, ज्यादी फीस देने का यह मतलब नहीं है कि अच्छी शिक्षा मिल रही है, या अच्छा माहौल मिल रहा है, केवल हम अपने बच्चे को अच्छे सहयोगी दे पा रहे हैं, जिनके माता पिता इतनी फीस दे पाने में समर्थ हैं, उनके साथ पढ़ पा रहा है हमारा बच्चा, पर निजी स्कूलों में पढ़ाने वालों का शैक्षिक स्तर सरकारी स्कूल से बदतर है, सरकारी स्कूलों के अच्छे शैक्षिक स्तर वाले गुरूओं को सब जगह घसीट लिया जाता है, उनका सही तरीके से उपयोग नहीं हो जाता और न ही उनके ऊपर दबाव होता है।
हैं तो और भी बहुत सारी चीजें जिनकी चर्चा में करना चाहता हूँ पर जिनकी बातें मैंने यहाँ की हैं और अगर आपको लगता है कि यह केवल मेरे साथ भेदभाव हो रहा है तो आप ही बतायें कि आपकी जिंदगी पर कोई असर पड़ा हो तो मैं भी आपकी तरह ही सोचने की कोशिश करूँ।
सहकारी बैंको का उद्धार हमारे पैसों से, लुटाओ खजाना हमारी आँखों के सामने ही (Bailing Out Cooperative Banks)
5 नवंबर 2014 को केन्द्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने लगभग 2,375 करोड़ रूपयों की सहायता 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों को देने की टीवी पर घोषणा की। केन्द्रीय सहकारी बैंकों का जाल पूरा भारत में विस्तारित है। इन 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों में से 16 बैंकें उत्तर प्रदेश, 3 जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में, 1 पश्चिम बंगाल में हैं । मंत्री जी का कहना है कि यह कदम छोटे निवेशकों के हितों के लिये उठाया गया है । एक कैबिनेट मीटिंग में इतनी बड़ी राशि जो कि भारत की जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई से टैक्स के रूप में सरकार के पास आती है, से देना निश्चित किया गया । इसमें कुछ हास्यासपद नियम बैंकों के लिये बनाये गये हैं, जैसे कि 15 प्रतिशत की विकास दर होना चाहिये, खराब ऋणों को 2 वर्ष में आधा वसूल कर लेंगे। इन दोनों का होना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि केन्द्रीय सहकारी बैंकें राजनैतिक हितों को भी साधती हैं।
एक बड़े अखबार के मुताबिक तो 45 सहकारी बैंकों के ऊपर भारतीय रिजर्व बैंक अर्थदंड भी लगा सकता है, जिसमें से 23 सहकारी बैंकों के पास तो बैंकिंग का लाइसेंस भी नहीं है और 4 प्रतिशत पूँजी-पर्याप्तता का अनुपात जो कि लगभग 2100 करोड़ रूपये होता है, वह भी नहीं है। ये 23 सहकारी बैंके वही लगती हैं, जिनका उद्धार हमारे द्वारा दिये गये टैक्स के पैसे से होना है।
सरकार का यह निर्णय बहुत ही असंवेदनशील और उनके काम करने के तरीके का खौफनाक नमूना है, सरकार द्वारा ऋणों के वापस न आने के कारणों को अनदेखा करना निश्चित ही चिंता का विषय है। केन्द्रीय सहकारी बैंकों में राजनैतिक घुसपैठ और उनके द्वारा प्रबंधन में मनमानी करना किसी से छुपा नहीं है और यही कारण है कि अशोध्य ऋणों (Irrecoverable loans) की ज्यादा संख्या का कारण राजनैतिक व्यक्ति का ऋण से जुड़ा होना है, जो कि जानबूझकर बकायादार (Wilful Defaulters) रहते हैं।
इसके परिणाम स्वरूप, सहकारी बैंकों पर नियंत्रण ठीक न होना और दीवालिया होना व्यवस्था के लिये चेतावनी है। बदकिस्मती से अधिकतर लोगों को इन बैंकों के खराब नियंत्रण के बारे में पता ही नहीं होता है, जो कि अक्सर ही छोटे निवेशकों को अधिक ब्याज दरों से लुभाते हैं। मजे की बात यह है कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों में बैंकिंग से संबंधित निर्णयों में राजनैतिक हित हावी रहते हैं, और सरकार के नियमों के मुताबिक सभी बैंकों में एक लाख रूपयों तक के निवेश को DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। जिसमें ये केन्द्रीय सहकारी बैंकें भी शामिल हैं।
यहाँ पर यह उद्घृत करना जरूरी है कि केतन पारिख के द्वारा 2000-2001 में माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक में की गई धोखाधड़ी के बाद पहले की भाजपा सरकार एन.डी.ए. के शासनकाल (1999-2004) में भारतीय रिजर्व बैंक को लचीला रुख अपनाने के कहा और DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) को अपने नियमों को शिथिल करने के लिये कहा गया। माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक के प्रबंधन ने घोटालेबाज केतन पारिख को 1000 करोड़ रूपयों को ऋण सारे नियम ताक पर रख कर बैंक को बर्बाद कर दिया। जबकि DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) के नियमों के मुताबिक निवेश पर किये गये बीमा का भुगतान केवल बैंक के दीवालिया होने की स्थिती में ही किया जा सकता है। उस समय भाजपा के बड़े शक्तिशाली नेता को शांत करने के लिये माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक की स्थिती को अपवादस्वरूप बताकर हजारों करोड़ों रूपयों को भुगतान कर दिया गया। और उस समय की लगभग समाप्त सी हो चुकी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी कोई विरोध नहीं किया। वाकई भारत के वित्तीय निवेशकों के लिये वह दिन बहुत ही बुरा होगा अगर वापिस से इस तरह का कोई बड़ा सहकारी बैंक घोटाला सामने आता है और भाजपा सरकार ने पहले ही इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को आश्रय देने का निर्णय ले लिया है बनिस्बत कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंकों के सीधे सरल और स्पष्ट नियंत्रण और निरीक्षण में दिया जाता।
हमारे पैसों से इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को मदद देना सरकार के अच्छे शासन प्रणाली और साफ सुथरे प्रबंधन के संकेत नहीं हैं और उस सुधार बदलाव के भी जिसका वादा हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी किया था।
मैं भी आम आदमी हूँ
जी हाँ मैं भी आम आदमी हूँ, जो आम आदमी कहता है वह मुझे सीधे दिल पर लगता है, क्योंकि वे वाकई वही बातें करते हैं जो मुझ जैसे आम आदमी की जरूरत हैं। आजकल हल्ला काट रहे हैं कि केजरीवाल बिजनेस क्लाम में सफर कर दुबई गये, मैं ज्यादा गहराई में न जाते हुए केवल इतना कहना चाहूँगा कि अगर मुझे भी कोई अन्य बिजनेस क्लास का टिकट देगा तो मैं मना नहीं करूँगा, और खुशी खुशी बिजनेस क्लास का सफर तय करूँगा। हालांकि एक बार मैं भी एक बार एयर लाईंस की गलती के कारण बिजनेस क्लास में दुबई से मुँबई तक सफर कर चुका हूँ। पर अगर इकोनोमी में भी मुझे टिकट खरीद कर सफर करना हो तो कम से कम सौ बार सोचना पड़ता है। अगर केजरीवाल के किसी सम्मान के लिय बुलाया गया है तो या तो टिकट उन्होंने दिया है या फिर उनके किसी दोस्त ने स्पांसर किया है, तो इस बात पर हल्ला क्यों ?
क्या हमारे विपक्षी दलों के नेता जो आरोप प्रत्यारोप भी बिजनेस क्लास में सफर नहीं करते हैं ? या वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि आम आदमी कैसे विलास कर सकता है, भले ही वह स्पांसर हो ?
विपक्षी दल आम आदमी पर पता नहीं कैसे कैसे आरोप लगाते रहते हैं, अभी सुबह ही एक केन्द्रीय सरकार के दल के एक नेता जी को बोलते सुना कि अगर बाहर से चुनाव लड़ने के लिये पैसा आयेगा तो फिर ये लोग बाहर के लोगों के लिये ही कार्य करेंगे ना कि भारत के लोगों के लिये, तो बहुत
ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, अभी जब लोकसभा के लिये चुनाव हुए थे तब भी भारत की बड़े दलों को बहुत सारा चंदा मिला था, तो वे अपने सोर्स बताने में क्यों कोताही बरत रहे हैं, अगर वे आम आदमी के जैसे वाकई ईमानदार हैं तो वे भी ऐसा करके बताये, जनता ने तो केवल एक अच्छी मछली के नाम पर वोट डाला है, पर अब देश को भुगतना तो पूरे तालाब की गंदी मछलियों को पड़ रहा है। अगर हमारे प्रधानमंत्री जी भारत के बाहर से निवेश ला रहे हैं तो भारतीय सरकार भी तो विदेशी निवेशकों के हितों को ध्यान रखते हुए कार्य करेगी, तो अपनी बातों को छुपाते हुए क्यों दूसरे पर आरोप जड़ा जा रहा है।
ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, अभी जब लोकसभा के लिये चुनाव हुए थे तब भी भारत की बड़े दलों को बहुत सारा चंदा मिला था, तो वे अपने सोर्स बताने में क्यों कोताही बरत रहे हैं, अगर वे आम आदमी के जैसे वाकई ईमानदार हैं तो वे भी ऐसा करके बताये, जनता ने तो केवल एक अच्छी मछली के नाम पर वोट डाला है, पर अब देश को भुगतना तो पूरे तालाब की गंदी मछलियों को पड़ रहा है। अगर हमारे प्रधानमंत्री जी भारत के बाहर से निवेश ला रहे हैं तो भारतीय सरकार भी तो विदेशी निवेशकों के हितों को ध्यान रखते हुए कार्य करेगी, तो अपनी बातों को छुपाते हुए क्यों दूसरे पर आरोप जड़ा जा रहा है।
स्वस्थ बच्चा ही खुशियों से भरा घर बना सकता है (A healthy child makes a happy home!)
मुझे मेरा बचपन की बहुत सारी चीजें याद नहीं, पर मम्मी और पापा मेरा बहुत ही ख्याल रखते थे, शायद दुनिया में कोई ऐसे माता पिता होंगे जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते होंगे, टमाटर खाओगे तो खून बढ़ेगा, गाजर भी सेहत के लिये अच्छी होती है, आँवले से आँखों की रोशनी तेज होती है, आँवले की अच्छी बात यह है कि किसी भी तरह से खाओ, उसके गुण कम नहीं होते, और जीभ पर आँवले का मीठा स्वाद हमेशा ही अच्छा लगता है। रोज एक काली मिर्च खाने से कभी बीमारी नहीं घेरती, यह एक घरेलू उपाय है, जो कभी दादी माँ का नुस्खा था।
खाने पीने में हम हमेशा मस्त रहे और हरेक सब्जी और फल खाते रहे, वैसे ही हमने अपने बेटेलाल को आदत डाली है, जिससे रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे और हमेशा रोगों से दूर बने रहें, हमारे बेटेलाल खाने के बहुत आलसी हैं, केवल मूड होता है तो खाते हैं नहीं तो कुछ नहीं खाते, अभी पिछले महीने ही तकरीबन 15 दिनों तक ढंग से खाना नहीं खाया तो मौसमी वाईरल ने पकड़ लिया, जिससे हम सभी लोग 13 दिन तक परेशान रहे, क्योंकि अगर घर में बच्चा बीमार है तो कुछ भी ठीक नहीं लगता है, बच्चा खेलता रहे, स्वस्थ रहे तो पूरा घर खुश रहता है।
जैसे हमें पापाजी ने च्यवनप्राश खाने की आदत डाली थी, हमारे बेटेलाल पहले च्यवनप्राश नहीं खाते थे परंतु जब धीरे धीरे रोज मुझे और पापाजी को खाते देखते तो उत्सुकतावश रोज ही थोड़ा थोड़ा खा लेते थे, अब हमारे बेटेलाल ने च्यवनप्राश को अपनी रोज की दिनचर्यो में शुमार कर लिया है, रोज सुबह च्यवनप्राश की एक चम्मच और रात को सोने के पहले हल्दी वाले दूध के साथ एक चम्मच खाते हैं।
हमने 1-2 आयुर्वेदिक चीजें और शुरू कर दी जो कि स्वास्थ्य के लिये बहुत ही लाभदायक है, रोज सुबह शाम तुलसी का अर्क 10 एम.एल. एक गिलास पानी में मिलाकर पी जाते हैं, और रोज सुबह उठते ही एक चम्मच शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बादाम, मिश्री और सौंफ को पीसकर बनाया गया चूर्ण चबा चबा कर खाते हैं । इस मिश्रण के खाने से दिमाग को ताकत मिलती है और दिनभर ऊर्जा बनी रहती है, तुलसी के अर्क से तुलसी की प्रतिरोधक क्षमता मिल जाती है, आजकल फ्लेट सिस्टम में तुलसी प्रचुर मात्रा में तो होती नहीं कि रोज सुबह शाम 2 4 पत्ती तोड़कर खा लीं, इसलिये हमें तो तुलसी के अर्क बहुत अच्छा लगा।
पहले कभी ऐसे ही हमने सोचा था कि च्यवनप्राश घर पर बनाकर खायेंगे पर फिर हमने कभी भी च्यवनप्राश बनाने की मेहनत को देखकर कभी भी बनाने की चेष्टा नहीं करी। बाजार से जाकर च्यवनप्राश खा लेते थे, वही हमें आज भी ठीक लगता है, बेटेलाल को जमकर सलाद और फल खिलाते हैं और खुद भी खाते हैं, जिससे शरीर में प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता बरकरार रहे। और घर में बेटेलाला केवल मस्तियाँ करते नजर आयें, हमेशा उनके हँसने खिलखिलाने की आवाज आये।
यह पोस्ट इंडीब्लॉगर्स के हैप्पी अवर्स के लिये लिखी गई है, च्यवनप्राश के प्रतिरोधक क्षमता के बारे में यहाँ से ज्यादा जानकारी ले सकते हैं – https://www.liveveda.com/daburchyawanprash/.
बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है (Are you the victim of Insurance or Financial Product Misselling)
बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है, नहीं तो कई बार बीमानियामक और बीमा लोकापाल भी आपकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं ।
एक ईमानदार सरकारी अधिकारी के बारे में बात करते हैं, लगभग 4 वर्ष पूर्व वे सेवानिवृत्त हुए ही थे और उन्हें लगभग 40 लाख रूपये निवेश करने थे, वे बहुत ही ईमानदार थे तो उनके पास इन रूपयों के अलावा और कुछ भी नहीं था, उनके निवेश करने के लक्ष्य साफ थे पहला नियमित आय और तीन वर्ष बाद उनकी बेटी की शादी के खर्च के लिये रकम चाहिये थी। एक निजी बैंक के बहुत ही अच्छे पॉलिसी बेचने वाले अधिकारी ने उन्हें यूनिट लिंक्ड बीमा प्लॉन याने कि यूलिप जिसमें कि इक्विटी का हिस्सा ज्यादा था, खरीदने के लिये प्रेरित किया और बैंक अधिकारी ने बताया कि यह बहुत ही सुरक्षित और बेहतरीन निवेश होगा, इससे आपकी जिंदगी बिल्कुल ही बदल जायेगी ।
तीन वर्ष होने पर निवेशक ने पाया कि उनका निवेश केवल 29 लाख रूपये रह गया है, जिसमें कि पहले तीन वर्षों में उनके यूलिप में से अच्छे खासे शुल्क बीमा कंपनी और बैंक ने वसूल कर लिये थे, और अगर वे उस पॉलिसी को सरेंडर करते तो केवल 14 लाख रूपये मिलते । उन सज्जन को लगा कि मेरे साथ धोखा हुआ है और बस ह्रदयाघात नहीं हुआ । और उन्होंने बैंक और बीमा कंपनियों को शिकायत करना शुरू की, परंतु बैंक और बीमा कंपनियाँ से उन्हें कोई जबाव नहीं मिला।
आखिरकार उन्होंने बीमा लोकापाल के पास शिकायत करने के निश्चय किया और जब बीमा लोकापाल के पास उन्होंने शिकायत की तो प्रथमदृष्टया ही साबित हो गया कि यूलिप इन सज्जन को गलत तरीके से बेचा गया है और यह मिससेलिंग का केस है। पर मिससेलिंग को सिद्ध कैसे किया जाये ? सौभाग्यवश उन सज्जन के पास यूलिप खरीदने के दौरान बताये गये सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज जो कि बैंक और बीमा कंपनियों ने उन्हें दिया थे वे मौजूद थे, जिसमें कि उन्होंने दर्शाया हुआ था कि किस प्रकार से उनके निवेश को पंख लग जायेंगे और आने वाले समय में उनका निवेश सुरक्षित तरीके से बहुत ज्यादा हो जायेगा।
और इन कैलकुलेशन और दस्तावेज के कारण बीमा कंपनी को उन सज्जन को पूरे पैसे लौटाने पड़े, पर ऐसे भाग्यशाली लोग कितने होंगे जो ये सारे कागज जिनको मिलते होंगे और वे सँभाल कर रखते भी होंगे, वैसे तो जो भी लोग मिससेलिंग करते हैं या इस तरह की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं वे इस तरह के सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज निवेशक के हाथों आने ही नहीं देते हैं, वे कोई सबूत छोड़ते नहीं हैं ।
ध्यान रखने योग्य बातें –
जब भी कोई बीमा या वित्तीय उत्पाद खरीदें, हमेशा कैलकुलेशन और दस्तावेज अपनी मास्टर फाईल में सँभाल कर रखें, जिससे अगर बेचा गया उत्पाद आगे अच्छा नहीं करे तो ये कैलकुलेशन और दस्तावेज आपके मददगार साबित हों ।
बोझ खींचने वाला मानव ज्यादा मूल्यवान लगता है
पहाड़गंज या पुरानी दिल्ली में पार्किंग की जगह ढ़ूंढना बेहद दुष्कर कार्य की श्रेणी में आता है, यह दिल्ली का एक ऐसा क्षैत्र है जहाँ जाकर एक एक इंच की कीमत पता चलती है, यहाँ सड़क का वह इंच सार्वजनिक हो या निजी पर जगह कोई खाली नहीं है, खैर हमें अब इन सबसे जूझते हुए लगभग 3 महीने हो चुके हैं तो अब इतनी तकलीफ नहीं होती है, पार्किंग कैसे और कहाँ करनी है यह बखूबी आ गया है।
सदर जाना हमेशा हमारे एजेन्डे में होता है । 3 टूटी, 6 टूटी, 12 टूटी और सदर बाजार पता नहीं क्यों इतना अच्छा लगता है, वहाँ की गलियों में भटकना अच्छा लगता है, जो भाषा, चेहरे और व्यवहार वहाँ देखने को मिलता है वह मन मोह लेने वाला होता है। यह अलग बात है कि आप पहाड़गंज से सदर बाजार तक
पैदल भी जा सकते हैं पर चरमराये हुए यातायात में यह भी संभव नहीं है, मजबूरन केवल एक ही रास्ता बचता है वह है या तो रिक्शा लो या फिर बैटरी वाला रिक्शा। जाते समय हमें कभी बैटरी वाला रिक्शा नहीं मिलता क्योंकि पुलिस उन्हें परेशान करती है।
पैदल भी जा सकते हैं पर चरमराये हुए यातायात में यह भी संभव नहीं है, मजबूरन केवल एक ही रास्ता बचता है वह है या तो रिक्शा लो या फिर बैटरी वाला रिक्शा। जाते समय हमें कभी बैटरी वाला रिक्शा नहीं मिलता क्योंकि पुलिस उन्हें परेशान करती है।
हमें मानवचलित रिक्शे पर बैठना होता है, मानवचलित रिक्शे पर बैठकर हर बार अपराधबोध होता है, हम आज भी इस युग में ढोने की प्रथा के साक्षी हैं और सबसे खराब बात कि उसका उपयोग कर रहे हैं, पर फिर रिक्शे को चलाने वाले मानव को देखकर यह शर्म कहीं चली जाती है, क्योंकि अगर हम अगर उसके रिक्शे में नहीं बैठेंगे तो वह ढोने वाला मानव क्या खायेगा और अपने परिवार का कैसे ख्याल रखेगा, पता नहीं जीवन की किन परिस्थितियों से लड़ाई लड़ रहा है, हम कहीं न कहीं उसके जीवन की लड़ाई में सहयोगी होना चाहते हैं, और इन मानवों में खास बात यह है कि ये ज्यादा फालतू के पैसे नहीं लेंगे, क्योंकि इन्हें पता है कि कोई भी उन्हें दुत्कार सकते हैं या फिर ज्यादा पैसे माँगने की उनकी हैसियत नहीं समझते हैं। लोग इनके बँधे बँधाये पैसों में भी मोलभाव करने लगते हैं तो ठीक नहीं लगता है, उस समय मुझे बैठने वाले व्यक्ति से ज्याद वह बोझ खींचने वाला मानव ज्यादा मूल्यवान लगता है।
हमने एक आदत अपनी रखी हुई है कि जो भी बोझा खींचता है, या कोई ऐसा कार्य करते हैं जो कि पढ़े लिखे लोगों की मानसिकता में हेय की श्रेणी में आते हैं, हम वहाँ कभी मोलभाव नहीं करते हैं, क्योंकि इन लोगों में लूट की भावना न के बराबर होती है और छल कपट आजकल कहाँ नहीं है, तो इनके बीच भी कुछ लोग ऐसे हैं परंतु उनका प्रतिशत बहुत ही कम होती है, कम प्रतिशत वालों के छल कपट के कारण बड़े अनुपात के लोगों का साथ न देने को मन नहीं मानता है, और हम हमेशा ही उनकी मदद को तत्पर होते हैं, क्योंक बोलने में कहीं कोई झूठ नहीं, जो मन की बात होती है वे कह देते हैं, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि सामने वाला कितना बड़ा आदमी है, वे तो सबको सर्वधर्म भाव से सेवा देते हैं, बस यही सोचकर मैं अपने आप में और साथवालों में कभी आपराधिक बोध नहीं आने देता हूँ।
मन में यह भी आता है कि जैसे हम मानसिक बोझा ढ़ोते हैं वैसे ही ये लोग शारीरिक श्रम कर रहे हैं, तो जो जिस बात में सक्षम है वह वही कर पायेगा, जैसे हमें भी बोझा उठाते हुए बरसों हो गये हैं, वैसे ही उन्हें भी बरसों हो गये हैं। जैसे हमें बोझा उठाते हुए पता नहीं चलता है, थकान नहीं होती है, बस अपना काम करते जाते हैं, हाँ बस किसी दूसरे को हमें देखकर ऐसा लगता है कि यह कितना काम करता है, तो वह भी अपनी एक मानसिक अवस्था होती है। वैसे ही उन मानवचलित रिक्शों या समाज के सबसे अच्छे कार्य करने वालों को भी इसी चीज का अनुभव होता होगा।
ब्लॉग पोस्ट में और भी बहुत कुछ लिखना चाहता था, परंतु एक मानवीय स्वभाव कहीं भीतर से उमड़कर भावों की प्रधानता में शब्दों के रूप में बह गया, बाजार के चरित्र और वहाँ के स्वभाव के बारे में जल्दी ही बात करेंगे ।
स्वच्छ भारत अभियान गाँधी जी के आदर्श या खिलाफ
गाँधीजी का सपना था कि हमारा स्वच्छ भारत हो, पर शायद ऐसे नहीं जैसे कि आज सरकारी मशीनरी ने किया है। कि पहले राजनेताओं की सफाई करने के लिये कचरा फैलाया और बाद में उनसे झाड़ू लगवाई जैसे कि वाकई सभी जगह सफाई की गई है। वैसे प्रधानमंत्री जी तो केवल सांकेतिक रूप से ही अभियान की शुरुआत कर सकते थे परंतु आज तो सभी लोगों को सांकेतिक रूप से ही सफाई करते देखा।
गाँधी जी जहाँ एक एक लाईन लिखने के लिये छोटी से छोटी जगह का उपयोग करते थे, कागज के छोटे से छोटे टुकड़े पर लिखकर बचत करते थे, पोस्टकार्ड की पूरी जगह का उपयोग करते थे, और आज गाँधी जी की आत्मा भी उनकी याद के पूरे पेज के विज्ञापनों को देखकर रो रही होगी, वे कागज बचाने पर जोर देते थे, और सरकारी मशीनरी कागज भी बर्बाद कर रही है और गाँधी जयंती के नाम पर करोड़ों रुपये भी फूँक रही है। गाँधी जी फालतू के रुपयों को खर्च करना भी बर्बादी समझते थे, मगर हमारे ये आधुनिक अनुयायी उनकी बातों को समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं, केवल और केवल स्वच्छ भारत के लिये झाड़ूगिरी का सहारा लिया, और धरातल पर शायद हम सब जानते हैं कि कैसी स्वच्छता हुई है, वास्तविक चेहरा कुछ और ही है।
सरकारी लोगों के लिये एक जैसी एक ही ब्रांड की इतनी सारी झाड़ुएँ खरीदी गईं, कल वे ही धूल में ही लिपटीं कहीं कोने में पड़ी सड़ रही होंगी, और अब अगली बार तब ही निकलेंगी जब फिर ऐसे ही किसी सफाई अभियान की शुरूआत होगी। थोड़े दिनों बाद स्वच्छता के नाम पर हुए खर्चों पर कोई बड़ा घोटाला निकल आये तो भी कोई बड़ी बात नहीं होगी। कल दिल्ली में केवल दिखावे के लिये जगह जगह स्वच्छता अभियान के बैनर और फूलों से भारत स्वरूपी गाँधीजी के बोर्ड लगे हुए थे, काश कि ये पैसा हमारे सफाईकर्मियों के लिये नये उपकरणों में खर्च किया जाता और भारत की जनता को एक अच्छा संदेश दिया जाता।
काश कि साथ ही भारत की जनता को संदेश दिया जाता कि मन को भी स्वच्छ रखना जरूरी है, और उसी से सारे अपराधों की रोकथाम है। हमें सबसे पहले नजरों कि गंदगी की स्वच्छता पर जोर देना चाहिये, जिससे बालात्कार जैसे संगीन अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके। केवल झाड़ूबाजी करने से कुछ नहीं होगा, जब तक हम अपनी गंदगी फैलाने की आदतें नहीं सुधारेंगे, तब तक ऐसी किसी झाड़ूबाजी का कोई असर नहीं होगा। हम पश्चिम की नकल करने में माहिर हैं, पर केवल उन्हीं चीजों की नकल करते हैं, जो हमें अच्छी लगती हैं, हम पश्चिम के अनुशासन की पता नहीं कब नकल करेंगे, कब उनके जैसे कर्मचारियों के लिये सारी सुविधाएँ देंगे।
स्वच्छ भारत तभी होगा जब हम खुद तन मन से स्वच्छ होंगे ।
व्हाइट लेबल एटीएम जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं (White Label ATMs for Rural Area facing difficulty)
व्हाइट लेबल एटीएम के ऑपरेटर्स बैंकों से वसूली जाने वाली इंटरचेंज फीस बढ़ाना चाहते हैं पहले हम देखते हैं कि व्हाइट लेबल एटीएम क्या होते हैं एक एटीएम डेस्कटॉप, जिसका आकार एक कॉफी बनाने वाली मशीन के जितना होता है जो कि किसी भी किराना स्टोर पर लगाया जा सकता है। यह एटीएम बैटरी द्वारा चलता है और इस आविष्कार को व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स लगातार परिष्कृत कर रहे हैं। गाँव में “नो फ्रिल्स” खाते खोलने के बावजूद इन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स को एटीएम की लागत निकालने में पसीने आ रहे हैं।
ऑपरेटर्स इंटरचेंज फीस 15 रूपये से 18 रुपये हर ट्रांजेक्शन पर करना चाहते हैं। व्हाइट लेबल एटीएम मशीनें नान बैंकिंग कंपनियों द्वारा लगाई जा रही हैं। जब भी खाताधारक उनके एटीएम से ट्रांजेक्शन करता है तो नॉन बैंकिंग कंपनियाँ बैंकों से हर ट्रांजेक्शन के शुल्क लेते हैं। सन 2013 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 7 नॉन बैंकिंग कंपनियों को व्हाइट लेबल एटीएम लगाने के लाइसेंस दिये हैं –
2. टाटा कंयूनिकेशंस पेमेंट सोलुशंस
3. प्रिज्म पेमेंट
4. मुथूट फाइनेंस
5. श्री इंफ्रास्ट्रक्चर
6. रिद्धि सिद्धि बुलियन
7. वक्रांगी लिमिटेड
आने वाले समय में तीन और कंपनियों को लाइसेंस दिया जा सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार इन कंपनियों को केवल छोटे शहरों एवं गाँवों में ही एटीएम लगाने की अनुमति होगी और इसके बदले व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर 15 रुपये की इंटरचेंज फीस बैंक से प्राप्त करेंगे जो कि हर ट्रांजेक्शन के ऊपर बैंक को देनी होगी।
अब सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जनधन योजना में छोटे शहरों एवम गाँवों में खाते खोले जा रहे हैं जो कि व्हाइट लेबल एटीएम के लिये मध्यम अवधि में प्राणदायक सिद्ध होंगे। प्रधानमंत्री जनधन योजना में भविष्य में बहुत से खाते खुलेंगे लेकिन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स के लिए कम मात्रा मेँ ट्रांजेक्शन एक सर दर्द ही साबित होगा क्योंकि कुछ जगहों पर तो जनसंख्या कुछ हजारों में भी नहीं होगी पर व्हाइट लेबल एटीएम नकद निकालने के लिए उन जगहों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं जहाँ पर बैंकें उपलब्ध नहीं हैं । बिना एसी, बिना किराए, बिना सिक्योरिटी गार्ड और बिना सुरक्षा अधिकारी के कम से कम 2000 ट्रांजेक्शन एक महीने में होने पर ही ऑपरेटर्स के लिए फायदा हे अभी व्हाइट लेबल ऑपरेटर्स बिल पेमेंट ओर मोबाइल रिचार्ज सुविधाओं का लाभ नहीं दे रहे हैं हालांकि उनके स्क्रीन पर विज्ञापन देख रहे हें व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स नये एटीएम धीमी गति से लगा रहे हैं क्योंकि गाँव में नकद निकालने की निरंतरता अभी बहुत ज्यादा नहीं है व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लाइसेंस इसलिए दिया क्यूंकि बैंक उन जगहों पर अपने एटीएम नहीं लगाना चाहते हैं।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने नॉन बैंकिंग कंपनियों को लाइसेंस इस शर्त पर दिया है कि वे तीन वर्ष में 9000 एटीएम लगायेंगे नॉन बैंकिंग कंपनियों को एटीएम तब भी लगाने होंगे जबकि वे देख रहे हैं की उन मशीनों पर जितने ट्रांजेक्शन होना चाहिए उतने ट्रांजेक्शन नहीं हो रहे हैं यह उनके लिए घाटे का सौदा सिद्ध होगा ।
नॉन बैंकिंग कंपनियाँ अगर थोडा बहुत फायदा अभी बना सकती हैं तो केवल दो तरीके से पहला रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यह प्रतिबंध हटा ले कि केवल स्पांसर बैंक एटीएम में कैश भरेगा दूसरा व्हाइट लेबल एटीएम को जितना भी नगद प्राप्त होगा वे उस नगद को वापस एटीएम में उपयोग कर पायेंगे। इस समय एक फुल लोडेड एटीएम पर लगभग 30 हजार रुपए महीना खर्च होता है जिसे की बीस हजार रुपए प्रति महिना तक तक लाया जा सकता है ।
इसे आशा नहीं निराशा होना चाहिए (Wrong Treatment of Typhoid)
हमारे बेटेलाल बहुत दिनों से बीमार थे हमने कई डॉक्टरों को दिखाया जिसमे एक डॉक्टर के क्लीनिक का नाम आशा मल्टीस्पेशिलिटी था उन्होंने सीधे ही टाइफाइड बताकर स्लाईन चढ़ा दीं और हमें कहा कि आपके बेटेलाल को टाइफाइड है जब ब्लड कल्चर और बाकी के टेस्ट करवाए तो प्राथमिक रूप से पता चला की टाईफाईड नेगेटिव है फिर हमने कहा गया कि आप मलेरिया की दवाई शुरु करिए हमने उन्हें मना कर दिया हमने कहा जब रिपोर्ट में कुछ आया ही नहीं है, मलेरिया की निगेटिव है तो फिर हम क्यों मलेरिया की दवाई शुरु करें हमने यह पहला डॉक्टर देखा जो कि खुद ही फोन करके हमें रिपोर्ट के बारे में बता रहा था ।
पर डॉक्टर हमें कहते रहे की टाइफाइड के लक्षण हैं हमने सोचा डाक्टर अपने व्यवसाय में पूर्णत: निष्पक्ष होता है और भगवान समान होता है तो हमने कोई प्रश्न नहीं किया और उनका अंधा अनुसरण किया लेकिन एक दिन शाम को चार बजे डॉक्टर का फोन आया कि ब्लड कल्चर की फाइनल रिपोर्ट आ गई है और उसमें टाइफाइड पॉजिटिव आया है तो आप एकदम अभी से बेटेलाल को अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए क्यूंकि बहुत ही सीवियर इंफेक्शन आया है।
हम घबराए हुए ऑफिस से घर आए और बीच में से रिपोर्ट कलेक्ट करते हुए आए उस रिपोर्ट को हमने आपने कुछ डॉक्टर मित्रों को whatsapp किया और
उनसे पूछा कि क्या वाकई टाइफाइड पॉजिटिव है तो हमारे सारे मित्रोँ ने कहा ब्लड कल्चर की फाइनल रिपोर्ट में टाइफाइड का नामोनिशान नहीं है केवल वायरल इंफेक्शन हे तो कहीं किसी अस्पताल में भर्ती करवाने की जरुरत नहीं है बेटेलाल को जो खाने की इच्छा हो वो खिलाओ और उनका ध्यान रखो आशा मल्टीस्पेशलिटी क्लीनिक के बाद हमने एक तीसरे डॉक्टर को भी दिखाया जो कि हमें बहुत अच्छे लगे उन्होंने हमें कहा कि केवल एंटीबायोटिक्स चालू रखें बाकी सब ठीक है और इन रिपोर्ट को तो कचरे के डब्बे में डाल दें कुछ डॉक्टरों ने हमारे प्रोफेशन को बदनाम करके रखा हे उनमें से यह एक डॉक्टर है आगे से इस तरह के डॉक्टर से बच्चों को और अपने को दूर रखें ।
उनसे पूछा कि क्या वाकई टाइफाइड पॉजिटिव है तो हमारे सारे मित्रोँ ने कहा ब्लड कल्चर की फाइनल रिपोर्ट में टाइफाइड का नामोनिशान नहीं है केवल वायरल इंफेक्शन हे तो कहीं किसी अस्पताल में भर्ती करवाने की जरुरत नहीं है बेटेलाल को जो खाने की इच्छा हो वो खिलाओ और उनका ध्यान रखो आशा मल्टीस्पेशलिटी क्लीनिक के बाद हमने एक तीसरे डॉक्टर को भी दिखाया जो कि हमें बहुत अच्छे लगे उन्होंने हमें कहा कि केवल एंटीबायोटिक्स चालू रखें बाकी सब ठीक है और इन रिपोर्ट को तो कचरे के डब्बे में डाल दें कुछ डॉक्टरों ने हमारे प्रोफेशन को बदनाम करके रखा हे उनमें से यह एक डॉक्टर है आगे से इस तरह के डॉक्टर से बच्चों को और अपने को दूर रखें ।
अब हमारे बेटेलाल बिल्कुल ठीक हैं आज से फिर से स्कूल जाना शुरु किया है अब बहुत ही अच्छा महसूस कर रहे हैं उनके शरीर का तापमान भी साधारण है जो कि पिछले 12 दिन 103 रहा अब हमें भी थोड़ी राहत महसूस हुई है बस एक ही सवाल मन में है कि कोई भी प्रोफेशनल केवल पैसों के लिए क्या अपने ग्राहकों को धोखा दे सकता है और ऐसे लोगों की दुकान कितने दिन चला सकती है ।