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बनाना रिपब्लिक और मैंगो पीपल ( देखें वीडियो पहली बार )

देश की सबसे बड़ी राजनैतिक दल के दामाद याने कि देश के दामाद पर इन दिनों बहुत बड़े बड़े आरोपों की बौछार हो रही है।

हम भी सोचते हैं कि काश कि अपने भी कुछ लाख रूपये के इतने ही अनुपात में मात्र ३ वर्ष में करोड़ों रुपया हो जाता, जिस तरह से इन साब का बड़ा है।

जैसे हर वर्ष राजनैतिक दलों के नेता अपनी सम्पत्ति का ऐलान करते हैं और उनकी सम्पत्ति सीधे ५० प्रतिशत से २०० प्रतिशत के अनुपात में बड़ी होती है, यह तो वह सम्पत्ति होती है जो कि कानूनन वो ऐलान कर रहे हैं, जनता को दो नंबर वाली सम्पत्ति का तो पता ही नहीं चलता ।

इन नेताओं को आम जनता के लिये वित्तीय प्रबंधन के क्षैत्र में एक व्यापारिक संस्था खोलनी चाहिये और उसमें विज्ञापित भी किया जाना  चाहिये आज से १ वर्ष पहले मेरे पास ४.५ करोड़ की संपत्ति थी और वह इस वर्ष बढ़कर १० करोड़ की हो चुकी है, आप भी अपना पैसा ऐसे ही एक वर्ष में बड़ा सकते हैं। सारे बैंकों की वाट लग जायेगी और बैंकें भी अपना पैसा इन नेताओं को निवेश करने के लिये देंगी या फ़िर इन नेताओं को अपना वित्तीय प्रबंधक रख लेंगी।

खैर बात कहाँ शुरू की थी और कहाँ आ गई, वैसे भी यह ऐसा मुद्दा है कि जितना लिखो उतना कम है। तो हम अपने असली मुद्दे पर आते हैं बनाना रिपब्लिक एवं मैंगो पीपल।

बनाना रिपब्लिक याने कि चूसा हुआ लोकतंत्र, और मैंगो पीपल याने कि उसी चूसे हुए लोकतंत्र की आम जनता । अब बनाना रिपब्लिक बनाने में दामाद जी से ही पूछा जाये कि उनके परिवार के दल की ही अहम भूमिका है, जो कि बेचारे मैंगो पीपल भी चिल्ला रहे हैं। ऐसा लगता है कि पब्लिक को पता ही नहीं है कि मैंगो पीपल क्या होता है और बनाना रिपब्लिक क्या होता है।

जब जेद्दाह में होते हैं तो वहाँ जियो टीवी का प्रसारण होता है और वहाँ BNN Network का Banana News आता है जो कि लगभग ३० मिनिट का होता है और पाकिस्तानी नेताओं पर तीखा कटाक्ष होता है। आप भी इस कार्यक्रम के प्रोमो को देखिये जिसमें बताया गया है कि नेता तो मैंगो पीपल को चूसकर बनाना रिपब्लिक बना चुके हैं, और मीडिया उनके पास आता है तो पहले कोई बहाना बनाकर टालने की कोशिश करते हैं और फ़िर बाद में बकायदा दायें बायें देखकर दौड़ लगा देते हैं, नेता भी क्या फ़िट बताया है कि मीडिया थक जाता है परंतु नेता को थकान नहीं होती।

बनाना रिपब्लिक और मैंगो पीपल

विचारों के प्रस्फ़ुटन से एक नई सृष्टि का निर्माण होता है।

    कई बार सोचा इस क्षितिज से दूर कहीं चला जाऊँ और कुछ विशेष अपने लिये सबके लिये कुछ कर जाऊँ, परंतु ये जो दिमाग है ना मंदगति से चलता है, इसे पता ही नहीं है कि कब द्रुतगति से चलना है और कब मंदगति से चलना है। दिमाग के रफ़्तार की चाबी पता नहीं कहाँ है। और ये भी नहीं पता कि मंदगति से एकदम द्रुतगति पर कैसे ले जाया जाये।

    विचारसप्ताहांत में पाँचसितारा होटल में अकेला कमरे में दिनभर दिमाग दौड़ाने की कोशिश करता हूँ, परंतु दिमाग भी वातानुकुलन से प्रभावित हो चुका है और एक अजीब तरह का अहसास दिमाग में कुलबुलाने लगता है। शायद दिमाग इस होटल के कमरे की दीवारों की मजबूती देखना चाहता हो, हजारों विचार छिटक के इधर उधर निकल पड़ते हैं, दीवारों से टकराकर नष्ट होने की कोशिश करते हैं परंतु एक विचार के टूटने से चार नये खड़े हो जाते हैं। ज्यादा हो जाता है तो खिड़की के पास जाकर बाहर को देख लेता हूँ, सोचता हूँ कि शायद कुछ विचार इस खिड़की से बाहर गिर पड़ें और यह कमरा थोड़ा भारहीन हो जाये।

    खिड़की के पास जाकर शीतलता का अहसास कम हो जाता है और तपन लगने लगती है, जब शीतलता से तपन में जाते हैं तो तपन अच्छी लगती है और ऐसे ही जब तपन से शीतलता में आते हैं तो शीतलता अच्छी लगती है। मानव को कौन समझ पाया है, पता नहीं जब मानव फ़ैसला लेता है तो वह दिमाग से लेता है या दिल से लेता है।

    मानव को अपने आप को समझने की प्रवृत्ति ही मानव को अपने अंदर के प्रकाश की और धकेलती है, उसे समझने की कोशिश में ही मानव बाहरी ज्ञान को भूल अंतरतम में झांकने की कोशिश करता है, कभी यह कोशिश नाकाम होती है तो कभी यह कोशिश सफ़ल होती है।

    रफ़्तार की भी अपनी गति होती है और स्थिरता के स्थिर में भी एक गति होती है, शून्य में कुछ भी नहीं है, जब विचार अपने पूर्ण वेगों से प्रस्फ़ुटित होते हैं, पूर्ण आवेग में आते हैं तो विचार अंगारित हो जाते हैं और विचारों के प्रस्फ़ुटन से एक नई सृष्टि का निर्माण होता है। कई बार गति आवेग और वेग सब जाने पहचाने से लगते हैं, अपने से लगते हैं। किंतु यह भी सर्वथा सार्वभौमिक सत्य है ‘गति, आवेग और वेग’ कभी किसी की साँखल से नहीं बँधा है। सब पूर्व नियत है, सब पूर्व नियोजित है।

असली ताकत तो हमारे पास ही है !

अन्ना का अनशन चल रहा है, सरकार, राजनैतिक पार्टियाँ और मीडिया अन्ना को मिल रहे समर्थन को कम कर आंक रहे हैं। और देश की जनता को चिल्ला चिल्ला कर बता रहे हैं, देखा अन्ना के आंदोलन में कोई दम नहीं है, अप्रत्यक्ष रूप से यह कह रहे हैं, “देख लो, सारे ईमानदारों, तुम सबकी हम भ्रष्टाचारियों के सामने कोई औकात नहीं है”।

मीडिया भी निष्पक्षता से खबरें नहीं बता रहा है, सब के सब मिल चुके हैं, केवल अन्ना एक तरफ़ है और दूसरी तरफ़ ये सारे बाजीगर। इन बाजीगरों को लग रहा है कि इन लोगों ने जैसे अन्ना और जनता को हरा दिया है। पर क्या इन बाजीगरों को पता नहीं है कि जनता से वे हैं, जनता उनसे नहीं।

जनता सब देख रही है, समझ रही है, वैसे समझदार लोगों के लिये अभी कुछ महीनों में जो चुनाव हुए हैं, वो ही जनता की सोच और ताकत समझने के लिये काफ़ी हैं।

देखते हैं कि ये सारे कब तक अपना पलड़ा भारी समझते हैं, क्योंकि असली ताकत तो हमारे पास ही है, ठीक है कुछ लोगों की ताकत बिकाऊ है परंतु सरकार बनाने जितनी ताकत खरीदना असंभव है।

देखो कि अगली सरकार जनता की ताकत से बनती है या सरकार की खरीदी हुई ताकत से।

वैसे सरकार यह ना समझे कि अन्ना वहाँ जंतर मंतर पर अकेले हैं, अन्ना के समर्थन में घर पर भी बहुत सारे लोग हैं जो अन्ना के साथ हैं बस जंतर मंतर पर नहीं हैं।

इस्कॉन बैंगलोर मंदिरों में अलग अनुभव जैसे धार्मिक बाजार (Different experience in Iskcon Bangalore like bazzar)

बहुत दिनों बाद बैंगलोर में ही कहीं घूमने निकले थे, आजकल तपता हुआ मौसम और झुलसाती हुई गर्मी है, बैंगलोर की तपन ऐसी है जैसे कि निमाड़ की होती है अगर धूप की तपन में निकल गये तो त्वचा जल जायेगी और अलग से पता चल जायेगा त्वचा ध्यान न देने की वजह से जली है। मालवा में दिन में तपन तो बहुत होती है परंतु मालवा में रातें ठंडी होती है, रात में पता नहीं कहाँ से ठंडक आ जाती है।

घर से लगभग ३० कि.मी. दूर बैंगलोर इस्कॉन जाना तय किया, सोचा कि एक वर्ष से ज्यादा बैंगलोर में हो गया है परंतु अब तक कृष्ण जी के दर्शन नहीं हो पाये, चलिये आज कृष्ण जी के दर्शन कर लिये जायें। इस देरी का एक मुख्य कारण था हमारा मन, जब मुंबई से बैंगलोर आये थे तब हम श्री श्री राधा गोपीनाथ मंदिर जो कि गिरगाँव चौपाटी पर स्थित है और ग्रांट रोड इसका नजदीकी रेल्वे स्टॆशन है, जाते थे और आते समय बताया गया कि इस्कॉन का कोर्ट केस चल रहा है और इस्कॉन बैंगलोर  मंदिर इस्कॉन सोसायटी ने बहिष्कृत कर रखा है। अगर आप वहाँ जायेंगे तो कृष्ण भक्ति नहीं आयेगी मन में, बल्कि आपका मन, भावना और भक्ति दूषित होगी। इस्कॉन बैंगलोर में अगर आप सदस्य हैं तो उस सदस्यता का लाभ दुनिया के किसी भी मंदिर में इसी कारण से नहीं मिलेगा, किंतु इस मंदिर को छोड़ आप किसी और मंदिर के सदस्य हैं तो आपको सदस्यता का लाभ मिलेगा।

हम तो ह्र्दय में कृष्ण भावना रखकर गये थे कि हमें तो भगवान कृष्ण के दर्शन करने है और जीवन में प्रसन्नता लानी है। मन से ऊपर लिखी हुई बात हम अपने ह्र्दय से से निकाल कर गये थे, नहीं तो ह्र्दय कृष्ण में लगाना असंभव था।

बिना किसी पूर्वाग्रह के महाकालेश्वर की असीम कृपा से हम सुरक्षित इस्कॉन मंदिर लगभग १ घंटे में पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर पहले जूते ठीक स्थान पर रखे गये और फ़िर कृष्ण जी के दर्शन करने चल दिये। जैसे ही थोड़ी दूर चले वहाँ एक लाईन लगी थी, जहाँ लगभग १०८ पत्थर लगे हुए थे और महामंत्र “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम, राम राम हरे हरे” का उच्चारण हर पत्थर पर करना था, इसका एक फ़ायदा भीड़ नियंत्रण करना था और दूसरा फ़ायदा दर्शनार्थियों को था उन्हें १०८ बार महामंत्र बोलना ही था या सुनना ही था, रोजमर्रा जीवन में इतना समय भी व्यक्ति के पास नहीं होता कि १०८ बार महामंत्र बोल ले। महामंत्र ऐसे बोलना चाहिये कि कम से कम आपके कानों तक आपकी आवाज पहुँचे तभी महामंत्र बोलने का फ़ायदा है। पत्थर सीढ़ीयों पर भी लगे हुए थे, पहला मंदिर प्रह्लाद नरसिंह अवतार का है उसके बाद दूसरा मंदिर श्रीनिवासा गोविंदा का आता है।

प्रह्लाद नरसिंहश्रीनिवास गोविंदा

अब आता है मुख्य मंदिर जहाँ महामंत्र से वातावरण अच्छा बन पड़ा था, और यहाँ पहली प्रतिमा श्रीश्री निताई गौरांग की दूसरी याने कि मध्य प्रतिमा श्री श्री कृष्ण बलराम की और तीसरी प्रतिमा श्री श्री राधा कृष्ण चंद्र की है। मंदिर का मंडप देखते ही बनता है, बहुत सुन्दर चित्रकारी से उकेरा गया है।

राधा कृष्णकृष्ण बलरामनिताई गौरांग

मंदिर में आप अपने हाथ से प्रसाद पंडित जी को नहीं दे सकते हैं, प्रसाद आपको काऊँटर पर जमा करना है और पर्ची दिखाकर दर्शन करने के पश्चात आप प्रसाद की थैली ले सकते हैं। विशेष दर्शन की व्यवस्था है जिसका लाभ कोई भी २०० रुपये में उठा सकता है, विशेष दर्शन में भगवान के थोड़ा और पास जाकर दर्शनों का लाभ लिया जा सकता है। जैसे ही दर्शन करके आप सामने देखते हैं तो मंदिर में ही किताबें और सीडी के विज्ञापन दिखते हैं, जो शायद ही किसी ओर मंदिर में आपको दिखें। जैसे ही दर्शन करने के बाद बाहर के रास्ते जाने लगते हैं तो कतारबद्ध दुकानों के दर्शन होते हैं, पहले बिस्किट, केक और मिठाई फ़िर अगरबत्ती, किताब, कैलेडर, मूर्तियाँ, सीनरी, सॉफ़्ट टॉयज, कुर्ता पजामा, टीशर्ट और वह सब,  मंदिर में जो जो बिक सकता है वह सब वहाँ कतारबद्ध दुकानों पर उपलब्ध है। उसके बाद खाने पीने के लिये एक बड़ा हाल आता है जहाँ कि कचोरी, समोसे, जलेबी, खमन, तरह तरह के चावल, भजिये, केक, कुल्फ़ी, लेमन सोडा, बिस्किट्स इत्यादि उपलब्ध है। हमें तो स्वाद अच्छा नहीं लगा। और ऐसा पहली बार हुआ है कि इस्कॉन में खाने का स्वाद अच्छा नहीं लगा।

यहाँ हर किसी को पार्किंग से लेकर जूता स्टैंड तक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जबकि किसी भी इस्कॉन मंदिर में ऐसा नहीं होता।

मंदिर गये थे परंतु ऐसा लगा ही नहीं कि मंदिर में आये हैं ऐसा लगा कि किसी धार्मिक बाजार में हम आ खड़े हुए हैं। हाँ बेटे के लिये जरूर अच्छा रहा वहाँ एक मिनि थियेटर भी बना हुआ है जिसमें कि आप एनिमेशन फ़िल्म सशुल्क देख सकते हैं, जो कि एक छोटे से कमरे में एक बड़ा टीवी लगाकर और थियेटर साऊँड सिस्टम लगाकर बनाया गया है।

जब हम मंदिर से निकले तो हमारे मन और ह्र्दय में महामंत्र नहीं चल रहा था, न ही मंदिर में स्थित भगवान के चेहरे आँखों के सामने थे, बस जो भी नजर आ रहा था वह था, वहाँ स्थित भव्य बाजार।

वैसे एक बात फ़िर भी आश्चर्यजनक लगी कि दर्शन के लिये कोई टिकट नहीं था, जबकि दक्षिण में अधिकतर सभी मंदिरों में दर्शन के लिये टिकट है और अर्चना एवं प्रसाद चढ़ाने के लिये भी टिकट की व्यवस्था होती है, इसलिये यहाँ बैंगलोर में आकर मंदिर जाने का मन बहुत ही कम होता है, मंदिर जाकर अगर मन को ऐसा लगे कि आप मंदिर में नहीं किसी व्यावसायिक स्थान पर खड़े हैं, तो अच्छा नहीं लगता।

लूट तो हरेक जगह है, हर मंदिर में है फ़िर वो क्या उत्तर और क्या दक्षिण, और लूट भी रहे हैं वो पुजारी और पंडे जो कि भगवान की सेवा में लगे हैं, और भगवान भी उन पंडों और पुजारियों पर खुश है और उन पर अपनी सेवा करने की असीम कृपा बनाये हुए है।

हे कृष्ण! हे गिरधारी! कब इस कलियुग में तुम्हारे पंडे और पुजारी की इस लूट से आम जनता बच पायेगी।

सावधान ! कहीं बैंक खाते से पैसा गायब ना हो जाये (Be Alert ! for your money in Bank..)

हमारे मित्र के साथ एक दिन बड़ा धोखा हुआ, रात को दो बजे एकाएक उनके बैंक से फ़ोन आया कि “क्या आपने कोई स्टैन्डिंग इंस्ट्रक्शनस दे रखा है”
हमारे मित्र ने कहा “नहीं, पर क्या हुआ, क्या बात है ?”
बैंक से जवाब मिला “आपके खाते से हर दो मिनिट में एक हजार रूपये ट्रांसफ़र हो रहे हैं।”
हमारे मित्र ने उसी समय नेटबैंकिंग से अपना एकाऊँट देखा तो वाकई तब तक एक हजार के लगभग २० ट्रांजेक्शन हो चुके थे, और हर दो मिनिट में एक हजार कहीं ट्रांसफ़र हो रहे थे। बैंक ने तत्काल हमारे मित्र को कहा कि बेहतर यह है कि हम इस एकाऊँट को बंद कर देते हैं, जिससे कम से कम यह ट्रांसफ़र तो रुक जायेगा।
और बैंक ने हमारे मित्र का एकाऊँट बंद कर दिया, तब तक एक हजार के ४२ ट्रांजेक्शन हो चुके थे, सुबह हमारे मित्र बैंक गये और तहकीकात की, पता चला कि कहीं से ए.टी.एम. चैनल से किसी ने हमारे मित्र के एकाऊँट को हैक कर दिया था। जो कि बैंक के निगरानी तंत्र में नहीं आता, वह ए.टी.एम. चैनल वीसा इंटरनेशनल चैनल के अंतर्गत आता है। बैंक ने हमारे मित्र से पूछा कि “क्या कहीं पर आपने अपना एकाऊँट नंबर की जानकारी दी थी ?”
उस समय तो हमारे मित्र को याद नहीं आया, बाद में हमारे मित्र सायबर पुलिस के पास एफ़.आई.आर. दर्ज करवाने गये और बैंक से पुलिस ने जरूरी जानकारी ली, तो आखिर आई.पी. एड्रेस यू.के. का निकला। पुलिस ने कहा कि पैसा तो मिल जायेगा परंतु इसमें लगने वाला समय कम से कम २-३ वर्ष होगा और इसी बीच आपको कई बार कई जगहों पर परेशान भी होना होगा। उस समय हमारे मित्र एक निजी समस्या से भी उलझ रहे थे तो मानसिक रूप से परेशान तो थे ही, सो उन्होंने निर्णय लिया कि इन ४२ ट्रांजेक्शनों का घाटा ही सहन कर लिया जाये, क्योंकि प्रोफ़ेशन में इतना समय तो होता नहीं कि कई बार कई जगहों पर चक्कर लगा लिये जायें।
परंतु हाँ सायबर पुलिस ने उन्हें यह जरूर बता दिया कि बैंक एकाऊँट की जानकारी कैसे हैकर्स को मिली, हुआ यूँ कि इस सब घटना के १-२ दिन पहले ही उनके जीमेल एकाऊँट पर कोई मेल आयी थी, जिसमें फ़्लिपकार्ट से कोई किताब खरीदने का ऑफ़र था, और हमारे मित्र को वह किताब भा गई, सो उन्होंने वहीं से लिंक पर क्लिक करके उस किताब का भुगतान कर दिया। वह ईमेल नकली था, और फ़्लिपकार्ट की मिरर साईट (डुप्लिकेट) पर जिसे कि अधिकतर हैकर्स जानकारी जुटाने के लिये उपयोग करते हैं, ले गया और वहाँ से उनके बैंक के एकाऊँट की सारी जानकारी उस हैकर्स तक पहुँच गई।
जरूरी बातें जो इस धोखे से हमें सीखनी चाहिये –
किसी भी ईमेल से सीधे क्लिक करके कभी भी भुगतान ना करें, अगर खरीदना है या भुगतान करना है तो पहले साईट पर जायें और फ़िर भुगतान करें।
इस हैक में दीगर बात यह है कि हैकर को केवल बैंक का नाम और एकाऊँट नंबर का पता होना चाहिये, जिससे वह सीधे ए.टी.एम. चैनल में अपने मैसेज भेजकर यह कारनामा कर सकते हैं, अधिकतर यह चैनल सुरक्षित होते हैं, परंतु हैकर कहीं ना कहीं से मौका ढूँढ़कर अपना काम कर ही जाते हैं।
फ़्लिपकार्ट से खरीदते वक्त ध्यान रखें कि आपका एड्रेस बार ऐसा हो –
flipkart safe address
और नीचे यह भी दिख रहा हो –
flipkart safe and security msg
अपनी सुरक्षा अपने ही हाथ है, कोशिश करें कि हमेशा सावधानी बरतें क्योंकि बैंक में रखा आपका पैसा आपकी गाढ़ी कमाई का है, और थोड़ी सी चूक से आप इसे गँवा सकते हैं। हमेशा पासवर्ड और कस्टमर नंबर लिखने के लिये वर्चुअल की बोर्ड का उपयोग करें।
virtual keyboard
मजे की बात यह रही कि हमारे मित्र को फ़्लिपकार्ट से किताब भी मिल गई।

वोदाफ़ोन का गड़बड़ बिल (Wrong Mobile Bill of Vodafone, Data Usage Charges)

क्या आपने कभी अपने मोबाईल का बिल बारीकी से देखा है अगर नहीं तो देखिये क्योंकि भले ही सारी कंपनियाँ दावे कर रही हों, परंतु सभी कहीं न कहीं गड़बड़ी करके कमाई कर रहे हैं।
जब से बैंगलोर आया हूँ, तब से तो मोबाईल कंपनियों से परेशान हो चुका हूँ, पहले टाटा डोकोमो लिया फ़िर एयरटेल और अब वोदाफ़ोन, सभी वादे करते हैं, कि बिल में कोई त्रुटी नहीं होगी, और मैं सभी के बिल में त्रुटियाँ पकड़ चुका हूँ। ये लोग सीधे मानते भी नहीं, पहले तो आपको गड़बड़ाने की कोशिश करेंगे फ़िर अगर आप नहीं मानते हैं तो फ़िर अपनी गलतियों को मानते हैं।
कल ऐसे ही मैं अपने वोदाफ़ोन का बिल देख रहा था कि तो डाटा चार्जेस में 18.30 रूपये थे, अब हमने अपने डाटा के उपयोग देखे और हिसाब किया तो पता चला कि बिल गलत है। आप भी देखें –
मेरा डाटा प्लान 99 रूपये में 2 जीबी डाटा फ़्री
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ये हैं मेरे द्वारा उपयोग किया गया डाटा
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अब हमने अपने सीखे हुए ज्ञान को परखा जो के इस प्रकार है,
1 byte = 8 bit
1 kb = 1024 byte
1 mb = 1024 kb
1 gb = 1024 mb
1 tb = 1024 gb
यहाँ हमने पाया कि हमने तो 150 mb डाटा का भी उपयोग नहीं किया है, फ़िर भी शुल्क लगा दिया गया है। सोचा चलो अपनी गणित में कुछ गड़बड़ी है, वोदाफ़ोन से पूछते हैं कि उनकी गणित कैसे होती है। कस्टमर (कष्टमर) केयर को फ़ोन लगाया, और उनसे हमने कहा कि क्या आप हमें समझायेंगे कि ये डाटा प्लॉन कैसे कैलकुलेट किया गया है, और ये शुल्क क्यों लगाये गये हैं। कस्टमर केयर पर ऐसे लोगों को बैठाया जाता है जिन्हें कुछ आता नहीं है और उन्हें अपने उत्पाद और प्लॉन पर पूरा भरोसा होता है, पहले तो वे माने नहीं कि बिल गलत है, जब हम डाटा कैलकुलशन उनको समझाने लगे तो फ़ौरन गलती मान ली और कहा हम आपका यह शुल्क वापस कर रहे हैं। आपको इसकी शिकायत का नंबर एस.एम.एस. से मिल जायेगा, कल दोपहर को फ़ोन किया था अभी तक उनके शिकायत नंबर का इंतजार कर रहे हैं, लगता है कि उन्होंने हमारी शिकायत दर्ज ही नहीं की है और दीगर यह है कि कस्टमर केयर पर बात करना फ़्री नहीं है उसके भी शुल्क लेती है वोदाफ़ोन
आप भी देखिये कहीं बिल में गड़बड़ी तो नहीं है, ये मोबाईल कंपनियों का कोई भरोसा नहीं है, आजकल लगभग सभी लोग इंटरनेट का उपयोग मोबाईल से करते हैं परंतु कितने लोग उसके शुल्क की गणना कर पाते हैं, शायद १ या २ प्रतिशत।

नियम का पालन और पहरेदार

नियम एक ऐसी चीज है जो हर व्यक्ति को पसंद होती है, बस उसकी परिभाषा सबकी अपनी अलग होती है। सब अपनी पसंद से नियम को अपने अनुकूल बना लेते हैं और दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं। सरकार इन्हीं नियम को कानून का रूप देती है और नियम पालने के लिये पहरेदार भी बैठा देती है।

सरकार की देखा देखी हरेक जगह नियम बनाये गये और उन पर पहरेदार भी लगा दिये गये परंतु कभी आम आदमी से उन नियम के बारे में पूछने की जहमत नहीं उठाई गई, क्या वाकई आम आदमी उन नियमों का पालन करना चाहता है या नहीं ।

नियम तोड़कर भागने की प्रवृत्ति ज्यादा देखने में आती है, कोई भी आदमी नियम तोड़कर खुद पहरेदार के पास नहीं जायेगा, बल्कि पहरेदार को उस नियम तोड़कर  भागने वाले व्यक्ति को ढूँढ़ना होगा, अगर सभी नियम का पालन करने लगे तो पहरेदार की आवश्यकता ही खत्म हो जायेगी।

हो सकता है जो आपका या मेरा मन नियम मानता हो परंतु कानून उस नियम को बुरा मानता हो तो अधिकतर कानून के नियम मानना चाहिये और जो नियम बुरे लगते हों, कोशिश करना चाहिये उन नियमों को मानने की नहीं तो उन कानूनों को तोड़कर पहरेदारों से बचना चाहिये।

बचना भी एक कला है, कुछ लोग इतने माहिर होते हैं कि नियम भी तोड़ते हैं और ऊपर से दादागिरी भी करते हैं, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, परंतु जब तक अनुभव ना हो, इन चीजों को आजमाना नहीं चाहिये।

खैर यह बात और है कि कुछ लोग नियम तोड़ने में ही अपनी हेकड़ी समझते हैं, और नियम तोड़ना अपनी शान याने कि कानून को अपने हाथ में लेना। तो ऐसे लोग मानसिक रूप से विकृत होते हैं, और कुछ लोग होते हैं जो समय और परिस्थितियों के अनुसार नियम का पालन करते हैं, अगर अन्य लोग हैं तो नियम का पालन किया जायेगा नहीं तो नियम उनके लिये कोई मायने नहीं रखता। तो ऐसे लोग अवसरवादी कहलाते हैं और कभी खुदा न खास्ता किसी पहरेदार ने पकड़ भी लिया तो इनकी घिग्गी बँध जाती है, मिल गई इज्जत मिट्टी में।

नियम बनते ही लोग नियम को तोड़ने के रास्ते ढूँढ़ लेते हैं और नियम को कानूनन तरीके से तोड़ते हैं। हमारे यहाँ कुछ लोग हैं जो कि खुद को नियम के ऊपर समझते हैं और पहरेदार उनके लिये नियम को शिथिल कर देते हैं, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। नियम सबके लिये एक होना चाहिये और पहरेदारों को इसके प्रति सतर्क रहना चाहिये।

पहरेदार चाहे कितनी कोशिश कर लें, नियम तो तब तक टूटते रहेंगे जब तक कि नियम का पालन करने वाले नियम को ना मानें, तो पहरेदार और नियम पालने वालों को संस्कारित होना होगा। किसी एक के सुधरने से बात नहीं बनेगी।

नियम तोड़ने पर सजा का कड़ा प्रावधान होता है और नियम लागू करने वालों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे बिना किसी दबाब के नियम को सख्ती से लागू करें, फ़िर वह राजा हो या रंक।

हड़ताल क्यों है ? (Strike..!)

कल कार्यालय में सुना कि “कल भारत बंद है” जिज्ञासा हुई कि भारत क्यों बंद है और कौन कर रहा है, कुछ ट्रेड यूनियनों का यह शौक रहा है, सो कही शौक के चलते तो यह हड़ताल नहीं कर दी, सो कल शाम को पान की दुकान पर भी पूछा “भई कल ये हड़ताल क्यों है ?” तो पानवाले ने भी मना कर दिया और कहा “हमें तो आपसे पता चल रहा है कि कल हड़ताल है”, पहले तो पानवाले से हमें पता चल जाता था कि हड़ताल क्यों है और कौन कौन भाग ले रहा है, यहाँ तक कि कब, कहाँ कितने बजे प्रदर्शन है सब कुछ। इसका मतलब कि पानवाले भी आजकल ज्यादा खबर नहीं रखते।
हमें तो आज तक यह समझ में नहीं आया कि हड़ताल से मिलता क्या है, शायद ज्यादातर लोगों को पता नहीं होगा कि सरकारी कर्मचारी अगर हड़ताल पर रहता है तो उसे उस दिन की तन्ख्वाह नहीं मिलती है, हड़ताली कर्मचारियों को एक दिन की तन्ख्वाह का घाटा उठाना पड़ता है। सबसे मजे की बात तो यह है कि कई हड़तालियों को पता ही नहीं होता कि वे हड़ताल किसलिये कर रहे हैं, और हड़ताल का मुद्दा क्या है।
आज सुबह अखबार में पढ़ा तो केवल एक लाईन पढ़ने को मिली कि सरकार की कथित श्रमिक विरोधी नीतियों के विरूद्ध हड़ताल है, अब पिछले कुछ वर्षों से तो सरकार की नीतियों में कोई बदलाव नहीं है, हमें तो नहीं दिखा अगर किसी को दिखा तो बताये कि सरकार ने कौन सी श्रमिक विरोधी नीतियों को बढ़ावा दिया है या नई नीति बनाई है। हमने तो यही देखा है कि श्रमिक काम से ज्यादा पैसा चाहते हैं और न मिलने पर सरकार के विरूद्ध हड़ताल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, हड़ताल का मुद्दा तो हवा हो जाता है।
कुछ कर्मचारी जो कि वाकई बेहद दुखी होते हैं, जिन्हें वाकई सरकार की नीतियों से परेशानी हो रही होती है, हड़ताल केवल उनका हथियार होना चाहिये, उन थोड़े से कर्मचारियों की आड़ में सारी ट्रेड यूनियनों का हड़ताल में उतरना किसी भी राष्ट्र के हित में नहीं है।
आज कार्यालय आते समय एक रैली से सामना हुआ, जो कि कम्यूनिस्ट पार्टी के झंडे लेकर चल रहे थे, वहीं लाल बत्ती हुई थी, हमने एक व्यक्ति जो कि रैली में शामिल था, से पूछ लिया कि
“रैली क्यों निकाल रहे हो”
जवाब मिला “हड़ताल है, और हड़ताल के समर्थन में रैली निकाल रहे हैं।”
हमने पूछा “हड़ताल !, बैंगलोर में है क्या ?”
जवाब मिला “नहीं आज भारत बंद है !”
हमने पूछा “हड़ताल क्यों है?”
फ़िर कोई जवाब नहीं मिला, हमारे प्रश्न पूछते ही वह झट से सरक लिया और वापिस रैली में शामिल हो चला।
तो इससे यह तो पता चल गया कि हर हड़ताली को यह पता नहीं होता कि हड़ताल क्यों है और न ही आम जनता को पता है कि हड़ताल क्यों है, अगर हड़ताल अच्छे मुद्दों के साथ है तो मुद्दे जनता में क्यों नहीं प्रचारित किये जाते, ताकि जनता भी साथ आये। जनता को मुद्दे ना बताने का मतलब और अखबारों में विस्तार से हड़ताल का कारण न बताना हमारी समझ से परे है।

आम आदमी बेबस और उसका लक्ष्य !

कल ऑफ़िस से वही देर से आये, रात्रिभोजन और टहलन के पश्चात १० मिनिट टीवी के लिये होते हैं और फ़िर शुभरात्रि का समय हो जाता है। कल जब टीवी देखना शुरू किया तो फ़िल्म “शूल” आ रही थी, और यह मेरी मनपसंदीदा फ़िल्मों में से एक है।

मनपसंदीदा फ़िल्म इसलिये है कि आदमी की बेबसी और उसके द्वारा तय किया गया लक्ष्य कैसे प्राप्त किया गया, इसका बेहतरीन चित्रण है।

आम आदमी बेबस और कमजोर नहीं होता, केवल परिवार के कारण भयभीत होता है, अगर आम आदमी भयभीत होना छोड़ दे तो सारा तंत्र एक दिन में सही हो जाये, परंतु आम आदमी बेबस ठहरा। कहीं भी हो किसी भी तरह की संस्था में हो, गलत का साथ देना या आँख मूँदकर गलत होने देना केवल बेबसी के कारण करता है, अगर गलत का विरोध करेगा तो जितना भय और गलत लोगों से उसे खतरा होगा वह आम आदमी टालना चाहता है।

इसके उदाहरण बहुत सारे हैं, जिन्होंने अपनी जान गँवाई है फ़िर वो किसी एनजीओ के कार्यकर्ता हों या फ़िर पत्रकार या फ़िर और कोई इंजीनियर, ये सब भी बेबस थे परंतु निर्भीक थे और तंत्र से लड़ना चाहते थे, सो तंत्र ने उन्हें गहरी नींद सुला दिया।

लक्ष्य अधिकतर फ़िल्मों में ही मिलता है, क्योंकि आम जीवन में तंत्र इतना प्रभावशील होता है कि उसमें रीटेक की कोई गुंजाईश ही नहीं होती।

रिलायंस डिजिटल – विज्ञापन में लुभावने ऑफ़र और दुकान में ऑफ़र में फ़ेरबदल, जनता के साथ धोखाधड़ी Reliance Digital – Differ offer then Ad in Newspaper in Store

शूक्रवार के टाइम्स ऑफ़ इंडिया का विज्ञापन में लुभावने ऑफ़र को रविवार को देखा, तो रविवार को ही तत्काल टीवी लेने का मन बनाया। ऑफ़र में लिखा था किसी भी सीटीवी के बदले इतनी छूट दी जायेगी, जिसमें कोई स्टार वगैरह नहीं था, और टीवी का ब्रांड भी नहीं लिखा था, तो हमने सोचा कि चलो पास वाले रिलायंस डिजिटल स्टोर पर जाकर पता लगा लिया जाये, पर उससे पहले हमने सोचा कि चलो पहले फ़ोन पर पता कर लेते हैं, तो शायद ज्यादा पता चल जाये और हमने पास वाले स्टोर पर फ़ोन लगाया तो पता लगा कि स्टोर तो १० बजे खुलता है परंतु सेक्शन के स्टॉफ़ ११ बजे तक आते हैं (तो ऐसा लगा कि रिलायंस भी अपने लोगों का कितना ध्यान रखती है, या फ़िर लोग रिलायंस की सुनते नहीं हैं, खैर जो भी है!)।

हमने कमनहल्ली के स्टोर पर फ़ोन लगाया तो किसी ने फ़ोन ही नहीं उठाया तब तो पक्का यकीन हो गया कि रिलायंस अपने लोगों का बहुत ध्यान रखती है, यह फ़ोन लगभग हमने सुबह १०.२५ पर लगाया था, फ़िर हमने ठान ली कि बैंगलोर के हर स्टोर पर फ़ोन लगाकर पता करते हैं, जिससे प्राथमिक जानकारी जुटाई जा सके और  तीसरे स्टोर कोरमंगला पर फ़ोन लगाया, यहाँ फ़ोन लगाकर खुशी हुई, जिस गर्मजोशी से यहाँ बात की गई और उत्पाद के बारे में भी प्राथमिक जानकारी प्रदान की गई, लगा कि रिलायंस में अच्छे कर्मचारी भी हैं। (वैसे यह सत्य है कि हरेक कंपनी में कुछ बहुत अच्छे कर्मचारी होते हैं, जो कंपनी का नाम बड़ाते हैं।)

reliance digital offer on LED TV हम वही पास वाले फ़िनिक्स माल के रिलायंस स्टोर गये और LED TV उत्पाद का पूरा निरिक्षण किया, वह LED TV 32 इंच का था और रिलायंस डिजिटल का खुद का ब्रांड था, (रिलायंस के खुद के LED TV Reconnect and ORZ कंपनियों के होते हैं), जिस पर क्रमश: २ एवं १ वर्ष की पूर्ण गारण्टी दी जा रही थी, हमने टीवी पसंद कर लिया और फ़िर खरीदने की बात आई तो जब हमने बताया कि हम इस ऑफ़र के तहत यह LED TV खरीदना चाहते हैं, तो हमें कहा गया कि आप ५ मिनिट का समय दें आपको सारी जानकारी जुटा देते हैं, उन १० मिनिटों में हमने iPhone 4S का निरिक्षण किया।

वह कर्मचारी फ़िर हमारे पास आया और बोला कि ’सर’ यह कंपनी की दूसरी टीम जो कि पुराने टीवी खरीदती है, वह आपके घर पर आकर टीवी देखेगी, हमने कहा कि ठीक है आज दोपहर तक यह भी करवा दो तो शाम को हम टीवी ले लेते हैं, घर पहुँचे दूसरी टीम का फ़ोन आया कि आपका टीवी २१ इंच का है और यह ऑफ़र केवल २९ इंच सीटीवी के लिये है, हमने कहा कि विज्ञापन में तो रिलायंस डिजिटल ने ऐसा कुछ लिखा नहीं है और अगर कभी भी इस तरह की शर्त होती है तो स्टॉर(*) लगाकर जरूर छोटे अक्षरों में लिख दिया जाता है, अगर कुछ लिखा नहीं है इसका मतलब कि आपको कोई भी सीटीवी स्वीकार्य है। परंतु वह कर्मचारी बोला कि ’सर’ यही ऑफ़र है, हमने कर्मचारी की मजबूरी समझते हुए कहा कि हमें अब LED TV लेने में अब कोई रूचि नही है, धन्यवाद।

हमें टीवी अगले दो वर्ष के लिये लेना था तो सोचा कि १९,९०० में 32 इंच LED TV under exchange offer with working CTV में बुरा नहीं है। परंतु रिलायंस डिजिटल विज्ञापने में कुछ और लिखती है और स्टोर पर कुछ और होता है जो कि जनता के साथ खुली धोखाधड़ी है। हम तो अपने पैसे की पूरी कीमत वसूलना जानते हैं, इसलिये अब तय किया गया कि अभी यही टीवी थोड़े दिन और देखी जाये।