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आत्मसंकल्प या बलपूर्वक

किसी भी कार्य को करने के लिये संकल्प चाहिये होता है, अगर संकल्प नहीं होगा तो कार्य का पूर्ण होना तय नहीं माना जा सकता है। जब भी किसी कार्य की शुरूआत करनी होती है तो सभी लोग आत्मसंकल्पित होते हैं, कि कार्य को पूर्ण करने तक हम इसी उत्साह के साथ जुटे रहेंगे।

परंतु असल में यह बहुत ही कम हो पाता है, आत्मसंकल्प की कमी के कारण ही दुनिया के ५०% से ज्यादा काम नहीं हो पाते, फ़िर भले ही वह निजी कार्य हो या फ़िर व्यापारिक कार्य । कार्य की प्रकृति कैसी भी हो, परंतु कार्य के परिणाम पर संकल्प का बहुत बड़ प्रभाव होता है।

कुछ कार्य संकल्प लेने के बावजूद पूरे नहीं कर पाने में असमर्थ होते हैं, तब उन्हें या तो मन द्वारा हृदय पर बलपूर्वक या हृदय द्वारा मन पर बलपूर्वक रोपित किया जाता है। बलपूर्वक कोई भी कार्य करने से कार्य जरूर पूर्ण होने की दिशा में बढ़ता है, परंतु कार्य की जो मूल आत्मा होती है, वह क्षीण हो जाती है।

उदाहरण के तौर पर देखा जाये कि अगर किसी को सुबह घूमना जरूरी है तो उसके लिये आत्मसंकल्प बहुत जरूरी है और व्यक्ति को अपने आप ही सुबह उठकर बाग-बगीचे में जाना होगा और संकल्पपूर्वक अपने इस निजी कार्य को पूर्ण करना होगा। परंतु बलपूर्वक भी इसी कार्य को किया जा सकता है, जिम जाकर, जहाँ ट्रेडमिल पर वह चढ़ जाये और केवल पैर चलाता जाये तो उसका घूमना जरूर हो जायेगा, परंतु मन द्वारा दिल पर बलपूर्वक करवाया गया कार्य है। किंतु वहीं बाग-बगीचे में घूमने के लिये आत्मसंकल्प के बिना घूमना असंभव है, क्योंकि तभी व्यक्ति के हाथ पैर चलेंगे। जब हाथ पैर चलेंगे, उत्साह और उमंग होगी तभी कार्य पूर्ण हो पायेगा।

कार्य पूर्ण होना जरूरी है, फ़िर वह संकल्प से हो या बलपूर्वक क्या फ़र्क पढ़ता है, संकल्प से कार्य करने पर आत्मा प्रसन्न रहती है, परंतु बलपूर्वक कार्य करने से आत्मा हमेशा आत्म से बाहर निकलने की कोशिश करती है।

जो स्कूल जाते हैं वे नौकरी करते हैं और जो कतराते हैं वे उन्हें नौकरी पर रखते हैं.. बेटेलाल से कुछ बातें..

    अभी बस बेटे को बस पर स्कूल के लिए छोड़ कर आ रहा हूँ, लगभग १० मिनिट बस स्टॉप पर खड़ा था, तो बेटेलाल से बात हो रही थीं।
    कहने लगा कि मम्मी बोल रही थी कि कॉलेज में यूनिफ़ॉर्म नहीं होती, वहाँ तो कैसे भी रंग बिरंगे कपड़े पहन कर जा सकते हैं, मैंने कहा हाँ पर आजकल बहुत सारे कॉलेजों में भी यूनिफ़ॉर्म पहन कर जाना पड़ता है तो मैं तो ऐसे ही कॉलेज में एडमिशन लूँगा जिसमें अपने मनमर्जी के कपड़े पहन कर जा सकते हों।
    फ़िर कॉलेज के बाद की बात हुई कि आईबीएम में भी तो आप अपने मनमर्जी के कपड़े पहन कर जा सकते हो, मैंने कहा हाँ पर केवल फ़ोर्मल्स और शुक्रवार को जीन्स और टीशर्ट पहन सकते हैं, टीशर्ट कैसी पहन सकते हैं, कॉलर वाली या गोल गले वाली, मैंने कहा “कॉलर वाली, गोल गले वाली अलाऊ नहीं है”, ऊँह्ह फ़िर मैं आईबीएम में नहीं जाऊँगा, मुझे तो ऐसी जगह जाना है जहाँ गोल गले वाली टीशर्ट में जा सकते हों, फ़िर मैं माईसिस में जाऊँगा तो मैंने कहा कि हाँ वहाँ पर तो पूरे वीक कुछ भी पहन कर जा सकते हो, बस तुम स्मार्ट लगने चाहिये।
    तो ठीक है मैं आईबीएम को मोबाईल बनाऊँगा और यहीं पर एक इतनी ऊँची बिल्डिंग बनाऊँगा जो कि चाँद को छुएगी जिससे यहाँ पास में रहने वाले लोगों को ऑफ़िस आने में आसानी होगी, और मोबाईल ऑफ़िस को उनके घर के पास खड़ा कर दूँगा, तो प्राब्लम सॉल्व हो जायेगी।
    मैंने कहा कि तुम नौकरी क्यों करोगे, तुम खुद एक कंपनी बनाओ, तो जबाब मिला कि मेरे पास इतने पैसे थोड़े ही हैं जो इतनी बड़ी कंपनी खोल लूँगा, हमने कहा कि हरेक कंपनी की शुरूआत छोटे से ही होती है बाद में बाजार में जाने के बाद अच्छा कार्य करने पर बड़ी हो जाती है। तो नौकरी का मत सोचो और कंपनी खोलने का सोचो, उसके लिये पैसे की नहीं अक्ल की जरूरत होती है, उसके लिये स्कूल भी जाने की जरूरत नहीं होती, जो स्कूल जाते हैं वे नौकरी करते हैं और जो स्कूल जाने से कतराते हैं दिमाग कहीं और लगाते हैं वे स्कूल जाने वालों को नौकरी पर रखते हैं।
    तो बेटेलाल बोलते हैं फ़िर मैं पार्टनर बन जाऊँगा और आगे चलाऊँगा, इतने में बस आ चुकी थी, हम सोच रहे थे कि काश कुछ सालों पहले इतनी समझ हम में होती तो ऐसा ही कुछ कर रहे होते।
    जिन्होंने भी अभी तक अच्छे कॉलेज से शिक्षा ली है, साधारणतया वे अभी तक बड़ी कंपनी नहीं बना पाये हैं, परंतु औसत शिक्षा वाले लोगों ने असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए बड़ी बड़ी कंपनियाँ बनाई हैं।

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मैंने दोनों जगह बात भी की, कहते हैं कि दो प्लान हैं

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हमने पूछा काम क्या करना है तो बताया गया कि आपको केवल ४० ऐड क्लिक करने हैं जिसमें २ मिनिट लगेंगे।
क्या उज्जैन की जनता को कुछ समझ में नहीं आता या समझना नहीं चाहती, कि ये बिल्कुल शुद्ध पूँजी स्कीम है, लूट स्कीम, हो सकता है कि यह स्कीमें और भी शहरों में चल रही हों, परंतु यह तो तय है कि इससे कमाई तो नहीं होगी, आम जनता की जेब ही कटेगी।

अभी भी पता नहीं ऐसी कितनी ही स्कीमें उज्जैन में चल रही हैं, और जनता केवल इसी में लगी हुई है, कुछ स्कीमें तो पिछले ५-६ वर्षों से चल रही हैं।

क्या इस तरह के लुभावने और लालच वाले विज्ञापन हमारी आज की पीढ़ी को गुमराह नहीं कर रहे हैं।

पहले की चेताई गई दो पोस्टें जो सही साबित हुईं ।
 

 

गंभीर चिंतन और मंथन देश को क्या नई दिशा देता है ? यह देखना है ।

कल ऑफ़िस से आने के बाद ऑनलाईन खबरें सुन रहे थे जो कि देश के औद्योगिक घरानों को लेकर था, कि भारत सरकार चला रही है या देश के औद्योगिक घराने चला रहे हैं। हमारे औद्योगिक घराने सरकार की मदद से आम आदमी को लूटने में लगा हुआ है। जिन लोगों ने इस चीज को सार्वजनिक मंच से उठाया, पहले उनकी मंशा पर शक होता था, पर कल जो भी हुआ उससे अब उनकी मंशा साफ़ होती जा रही है।

पहले ऐसा लगता था कि ये सब राजनैतिक लालच में किया जा रहा है और “मैं आम आदमी हूँ” की टोपी पहनने वाले लोग भारत की जनता को गुमराह कर रहे हैं, मासूमों को बरगला रहे हैं। पर कल यह बात साफ़ हो गई कि इस देश में ना पक्ष है मतलब कि सरकार और ना ही विपक्ष, सब मिले हुए हैं, इस बात को और बल मिला कि देश को औद्योगिक घराने ही चला रहे हैं।

कल बहस में एक बात सुनने को मिली जो कि सरकारी पक्ष वाली पार्टी और विपक्ष वाली पार्टी दोनों ही एक सुर में कह रही थीं, ये हर सप्ताह नये खुलासे करने वाली पार्टी केवल खुलासे करती है और अंजाम तक नहीं पहुँचाती है, ये केवल चिंगारी दिखाकर भाग जाते हैं। सही बात तो यह है कि नये खुलासे करने वाली पार्टी के पास भी समय बहुत कम है, २०१४ के चुनाव सर पर खड़े हैं, और उनका मकसद किसी भी चीज को अंजाम तक पहुँचाना हो भी नहीं सकता क्योंकि आजादी के बाद से सभी राजनौतिक घरानों की और से इतने घोटाले हुए, उनका बयां करना ज्यादा जरूरी है।

जनता नासमझ तो है नहीं, सारी बातें पहले ही सार्वजनिक हैं परंतु हमें तो यह बात समझ में नहीं आती कि अगर ये लोग इतने ही सही हैं और कोई घोटाले नहीं किये तो इतने तिलमिलाये हुए क्यों हैं। इन्हें जो करना है करने दो, आपको अपना वोटबैंक पता है फ़िर आपकी समस्या क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन लोगों को वाकई में डर लगने लगा है कि अब आम आदमी तक ये आदमी चिल्ला चिल्लाकर हमारी सारी गलत बातें पहुँचा रहा है और इससे हमें नुक्सान हो सकता है।

खैर यह तो क्रांति की शुरूआत भर है, जब तक राजनैतिक ताकतों को जनता की असली ताकत का अहसास होगा तब तक इन लोगों के लिये बहुत देर हो चुकी होगी, और इनका अस्तित्व मिट चुका होगा। खुशी इस बात की है कि जनता में गंभीर चिंतन पहुँच रहा है और जनता के बीच गंभीर मंथन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और राजनैतिक दलों के नेताओं के पास कुछ बोलने के लिये ज्यादा बचा नहीं है, सब नंगे हो चुके हैं। अब यह गंभीर चिंतन और मंथन देश को क्या नई दिशा देता है, और इतिहास में क्या लिखा जायेगा, भविष्य के गर्भ में क्या है यह तो जनता को तय करना है।

एटीएम का उपयोग करते समय सतर्क रहें (Cash retraction facility withdrawn by RBI in India)

    काम में व्यस्तता के कारण यह पोस्ट लिखने में थोड़ी देर हो गई। कुछ दिनों पहले एटीएम की टेस्टिंग के दौरान ऐसे ही cash retraction facility पर चर्चा हो रही थी, तभी भारत के एटीएम की कार्यप्रणाली पर भी चर्चा हो रही थी।

    यह सुविधा भारत में हरेक एटीएम में थी परंतु रिजर्व बैंक ने सितंबर में सभी बैंकों को अपने परिपत्र में सूचित किया कि यह सुविधा तत्काल प्रभाव से सभी बैंक बंद कर दें।

Message on HDFC Bank website

HDFC Bank Cash Retraction facility

Message on Axis Bank Website

Axis Bank Cash Retraction Facility

    Cash retraction facility क्या होती है – उपभोक्ता एटीएम पर ट्रांजेक्शन (Transaction) कर रहा होता है, और किसी कारणवश उपभोक्ता अपना नकद कैश ट्रे में से नहीं ले पाता है तो एटीएम उस नकद राशि को १०-१५ सेकंड (हरेक बैंक का अपना अपना समय निर्धारित होता है) बाद वापिस अपने अंदर ले लेता है और उपभोक्ता के अकाऊँट में निकाली गई राशि उसी समय एक रिवर्स ट्रांजेक्शन (Reverse Transaction) से लौटा दी जाती है।

ATM Cash Retraction Facility

    परंतु रिजर्व बैंक को कई जगह से cash retraction facility के जरिये फ़्रॉड (Fraud) होने की सूचना मिल रही थी, आखिरकार रिजर्व बैंक की तकनीकी कमेटी ने निश्चय किया कि जब तक इन फ़्रॉड के तरीकों से निपटने का तरीका नहीं खोज लिया जाता तब तक cash retraction facility को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाये।

    फ़्रॉड कैसे होता था – उपभोक्ता अपने एटीएम कार्ड से ट्रांजेक्शन करने जाता और जब कैश ट्रे में पैसे आ जाते तो चालाकी से उसमें से आधे से ज्यादा पैसे इस तरीके से खींच लिये जाते कि २-४ नोट कैश ट्रे में फ़ँसे रहें और बाकी के बाहर आ जायें, इस तरह से ये चालाक लोग पैसा भी ले लेते और एटीएम में cash retraction facility के जरिये पैसा वापिस अंदर भी चला जाता, cash retraction facility में जब कैश वापिस एटीएम खींचता है तो एटीएम में उसे वापिस से गिनने की सुविधा नहीं होती है, इसका फ़ायदा उठाकर कई चालाक लोगों ने फ़्रॉड किये और चूँकि एटीएम cash retraction facility के जरिये पैसे वापिस ले लेता तो उपभोक्ता के अकाऊँट में Reverse Transaction हो जाता और उसके अकाऊँट में पूरे पैसे जमा हो जाते। इस तरीके से पिछले एक वर्ष में कई फ़्रॉड होने की सूचना रिजर्व बैंक को मिल रही थीं।

    अब कई बैंकों ने cash retraction facility को अपने एटीएम पर बंद कर दिया है, अब उपभोक्ता को चौकन्ना रहना होगा कि अगर वह एटीएम पर ट्रांजेक्शन करने जा रहा है तो जब तक कैश एटीएम से बाहर ना आ जाये तब तक एटीएम नहीं छोड़ें और अगर कैश बाहर नहीं आता है तो तत्काल बैंक को सूचित करें, क्योंकि कई बार तकनीकी कारणों से भी कैश बाहर नहीं आ पाता या फ़िर कैश आने में देरी हो जाती है और उपभोक्ता अपना ट्रांजेक्शन अधूरा छोड़कर चला जाता है, कैश की जिम्मेदारी अब पूरी तरह से उपभोक्ता की है, बैंक की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक ने २४ सितंबर के परिपत्र में खत्म कर दी गई है।

    तो अगली बार से एटीएम का उपयोग करते समय सतर्क रहें और चौकन्ने रहकर अपने ट्रांजेक्शन को पूरा करें।

बनाना रिपब्लिक और मैंगो पीपल ( देखें वीडियो पहली बार )

देश की सबसे बड़ी राजनैतिक दल के दामाद याने कि देश के दामाद पर इन दिनों बहुत बड़े बड़े आरोपों की बौछार हो रही है।

हम भी सोचते हैं कि काश कि अपने भी कुछ लाख रूपये के इतने ही अनुपात में मात्र ३ वर्ष में करोड़ों रुपया हो जाता, जिस तरह से इन साब का बड़ा है।

जैसे हर वर्ष राजनैतिक दलों के नेता अपनी सम्पत्ति का ऐलान करते हैं और उनकी सम्पत्ति सीधे ५० प्रतिशत से २०० प्रतिशत के अनुपात में बड़ी होती है, यह तो वह सम्पत्ति होती है जो कि कानूनन वो ऐलान कर रहे हैं, जनता को दो नंबर वाली सम्पत्ति का तो पता ही नहीं चलता ।

इन नेताओं को आम जनता के लिये वित्तीय प्रबंधन के क्षैत्र में एक व्यापारिक संस्था खोलनी चाहिये और उसमें विज्ञापित भी किया जाना  चाहिये आज से १ वर्ष पहले मेरे पास ४.५ करोड़ की संपत्ति थी और वह इस वर्ष बढ़कर १० करोड़ की हो चुकी है, आप भी अपना पैसा ऐसे ही एक वर्ष में बड़ा सकते हैं। सारे बैंकों की वाट लग जायेगी और बैंकें भी अपना पैसा इन नेताओं को निवेश करने के लिये देंगी या फ़िर इन नेताओं को अपना वित्तीय प्रबंधक रख लेंगी।

खैर बात कहाँ शुरू की थी और कहाँ आ गई, वैसे भी यह ऐसा मुद्दा है कि जितना लिखो उतना कम है। तो हम अपने असली मुद्दे पर आते हैं बनाना रिपब्लिक एवं मैंगो पीपल।

बनाना रिपब्लिक याने कि चूसा हुआ लोकतंत्र, और मैंगो पीपल याने कि उसी चूसे हुए लोकतंत्र की आम जनता । अब बनाना रिपब्लिक बनाने में दामाद जी से ही पूछा जाये कि उनके परिवार के दल की ही अहम भूमिका है, जो कि बेचारे मैंगो पीपल भी चिल्ला रहे हैं। ऐसा लगता है कि पब्लिक को पता ही नहीं है कि मैंगो पीपल क्या होता है और बनाना रिपब्लिक क्या होता है।

जब जेद्दाह में होते हैं तो वहाँ जियो टीवी का प्रसारण होता है और वहाँ BNN Network का Banana News आता है जो कि लगभग ३० मिनिट का होता है और पाकिस्तानी नेताओं पर तीखा कटाक्ष होता है। आप भी इस कार्यक्रम के प्रोमो को देखिये जिसमें बताया गया है कि नेता तो मैंगो पीपल को चूसकर बनाना रिपब्लिक बना चुके हैं, और मीडिया उनके पास आता है तो पहले कोई बहाना बनाकर टालने की कोशिश करते हैं और फ़िर बाद में बकायदा दायें बायें देखकर दौड़ लगा देते हैं, नेता भी क्या फ़िट बताया है कि मीडिया थक जाता है परंतु नेता को थकान नहीं होती।

बनाना रिपब्लिक और मैंगो पीपल

विचारों के प्रस्फ़ुटन से एक नई सृष्टि का निर्माण होता है।

    कई बार सोचा इस क्षितिज से दूर कहीं चला जाऊँ और कुछ विशेष अपने लिये सबके लिये कुछ कर जाऊँ, परंतु ये जो दिमाग है ना मंदगति से चलता है, इसे पता ही नहीं है कि कब द्रुतगति से चलना है और कब मंदगति से चलना है। दिमाग के रफ़्तार की चाबी पता नहीं कहाँ है। और ये भी नहीं पता कि मंदगति से एकदम द्रुतगति पर कैसे ले जाया जाये।

    विचारसप्ताहांत में पाँचसितारा होटल में अकेला कमरे में दिनभर दिमाग दौड़ाने की कोशिश करता हूँ, परंतु दिमाग भी वातानुकुलन से प्रभावित हो चुका है और एक अजीब तरह का अहसास दिमाग में कुलबुलाने लगता है। शायद दिमाग इस होटल के कमरे की दीवारों की मजबूती देखना चाहता हो, हजारों विचार छिटक के इधर उधर निकल पड़ते हैं, दीवारों से टकराकर नष्ट होने की कोशिश करते हैं परंतु एक विचार के टूटने से चार नये खड़े हो जाते हैं। ज्यादा हो जाता है तो खिड़की के पास जाकर बाहर को देख लेता हूँ, सोचता हूँ कि शायद कुछ विचार इस खिड़की से बाहर गिर पड़ें और यह कमरा थोड़ा भारहीन हो जाये।

    खिड़की के पास जाकर शीतलता का अहसास कम हो जाता है और तपन लगने लगती है, जब शीतलता से तपन में जाते हैं तो तपन अच्छी लगती है और ऐसे ही जब तपन से शीतलता में आते हैं तो शीतलता अच्छी लगती है। मानव को कौन समझ पाया है, पता नहीं जब मानव फ़ैसला लेता है तो वह दिमाग से लेता है या दिल से लेता है।

    मानव को अपने आप को समझने की प्रवृत्ति ही मानव को अपने अंदर के प्रकाश की और धकेलती है, उसे समझने की कोशिश में ही मानव बाहरी ज्ञान को भूल अंतरतम में झांकने की कोशिश करता है, कभी यह कोशिश नाकाम होती है तो कभी यह कोशिश सफ़ल होती है।

    रफ़्तार की भी अपनी गति होती है और स्थिरता के स्थिर में भी एक गति होती है, शून्य में कुछ भी नहीं है, जब विचार अपने पूर्ण वेगों से प्रस्फ़ुटित होते हैं, पूर्ण आवेग में आते हैं तो विचार अंगारित हो जाते हैं और विचारों के प्रस्फ़ुटन से एक नई सृष्टि का निर्माण होता है। कई बार गति आवेग और वेग सब जाने पहचाने से लगते हैं, अपने से लगते हैं। किंतु यह भी सर्वथा सार्वभौमिक सत्य है ‘गति, आवेग और वेग’ कभी किसी की साँखल से नहीं बँधा है। सब पूर्व नियत है, सब पूर्व नियोजित है।

असली ताकत तो हमारे पास ही है !

अन्ना का अनशन चल रहा है, सरकार, राजनैतिक पार्टियाँ और मीडिया अन्ना को मिल रहे समर्थन को कम कर आंक रहे हैं। और देश की जनता को चिल्ला चिल्ला कर बता रहे हैं, देखा अन्ना के आंदोलन में कोई दम नहीं है, अप्रत्यक्ष रूप से यह कह रहे हैं, “देख लो, सारे ईमानदारों, तुम सबकी हम भ्रष्टाचारियों के सामने कोई औकात नहीं है”।

मीडिया भी निष्पक्षता से खबरें नहीं बता रहा है, सब के सब मिल चुके हैं, केवल अन्ना एक तरफ़ है और दूसरी तरफ़ ये सारे बाजीगर। इन बाजीगरों को लग रहा है कि इन लोगों ने जैसे अन्ना और जनता को हरा दिया है। पर क्या इन बाजीगरों को पता नहीं है कि जनता से वे हैं, जनता उनसे नहीं।

जनता सब देख रही है, समझ रही है, वैसे समझदार लोगों के लिये अभी कुछ महीनों में जो चुनाव हुए हैं, वो ही जनता की सोच और ताकत समझने के लिये काफ़ी हैं।

देखते हैं कि ये सारे कब तक अपना पलड़ा भारी समझते हैं, क्योंकि असली ताकत तो हमारे पास ही है, ठीक है कुछ लोगों की ताकत बिकाऊ है परंतु सरकार बनाने जितनी ताकत खरीदना असंभव है।

देखो कि अगली सरकार जनता की ताकत से बनती है या सरकार की खरीदी हुई ताकत से।

वैसे सरकार यह ना समझे कि अन्ना वहाँ जंतर मंतर पर अकेले हैं, अन्ना के समर्थन में घर पर भी बहुत सारे लोग हैं जो अन्ना के साथ हैं बस जंतर मंतर पर नहीं हैं।

इस्कॉन बैंगलोर मंदिरों में अलग अनुभव जैसे धार्मिक बाजार (Different experience in Iskcon Bangalore like bazzar)

बहुत दिनों बाद बैंगलोर में ही कहीं घूमने निकले थे, आजकल तपता हुआ मौसम और झुलसाती हुई गर्मी है, बैंगलोर की तपन ऐसी है जैसे कि निमाड़ की होती है अगर धूप की तपन में निकल गये तो त्वचा जल जायेगी और अलग से पता चल जायेगा त्वचा ध्यान न देने की वजह से जली है। मालवा में दिन में तपन तो बहुत होती है परंतु मालवा में रातें ठंडी होती है, रात में पता नहीं कहाँ से ठंडक आ जाती है।

घर से लगभग ३० कि.मी. दूर बैंगलोर इस्कॉन जाना तय किया, सोचा कि एक वर्ष से ज्यादा बैंगलोर में हो गया है परंतु अब तक कृष्ण जी के दर्शन नहीं हो पाये, चलिये आज कृष्ण जी के दर्शन कर लिये जायें। इस देरी का एक मुख्य कारण था हमारा मन, जब मुंबई से बैंगलोर आये थे तब हम श्री श्री राधा गोपीनाथ मंदिर जो कि गिरगाँव चौपाटी पर स्थित है और ग्रांट रोड इसका नजदीकी रेल्वे स्टॆशन है, जाते थे और आते समय बताया गया कि इस्कॉन का कोर्ट केस चल रहा है और इस्कॉन बैंगलोर  मंदिर इस्कॉन सोसायटी ने बहिष्कृत कर रखा है। अगर आप वहाँ जायेंगे तो कृष्ण भक्ति नहीं आयेगी मन में, बल्कि आपका मन, भावना और भक्ति दूषित होगी। इस्कॉन बैंगलोर में अगर आप सदस्य हैं तो उस सदस्यता का लाभ दुनिया के किसी भी मंदिर में इसी कारण से नहीं मिलेगा, किंतु इस मंदिर को छोड़ आप किसी और मंदिर के सदस्य हैं तो आपको सदस्यता का लाभ मिलेगा।

हम तो ह्र्दय में कृष्ण भावना रखकर गये थे कि हमें तो भगवान कृष्ण के दर्शन करने है और जीवन में प्रसन्नता लानी है। मन से ऊपर लिखी हुई बात हम अपने ह्र्दय से से निकाल कर गये थे, नहीं तो ह्र्दय कृष्ण में लगाना असंभव था।

बिना किसी पूर्वाग्रह के महाकालेश्वर की असीम कृपा से हम सुरक्षित इस्कॉन मंदिर लगभग १ घंटे में पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर पहले जूते ठीक स्थान पर रखे गये और फ़िर कृष्ण जी के दर्शन करने चल दिये। जैसे ही थोड़ी दूर चले वहाँ एक लाईन लगी थी, जहाँ लगभग १०८ पत्थर लगे हुए थे और महामंत्र “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम, राम राम हरे हरे” का उच्चारण हर पत्थर पर करना था, इसका एक फ़ायदा भीड़ नियंत्रण करना था और दूसरा फ़ायदा दर्शनार्थियों को था उन्हें १०८ बार महामंत्र बोलना ही था या सुनना ही था, रोजमर्रा जीवन में इतना समय भी व्यक्ति के पास नहीं होता कि १०८ बार महामंत्र बोल ले। महामंत्र ऐसे बोलना चाहिये कि कम से कम आपके कानों तक आपकी आवाज पहुँचे तभी महामंत्र बोलने का फ़ायदा है। पत्थर सीढ़ीयों पर भी लगे हुए थे, पहला मंदिर प्रह्लाद नरसिंह अवतार का है उसके बाद दूसरा मंदिर श्रीनिवासा गोविंदा का आता है।

प्रह्लाद नरसिंहश्रीनिवास गोविंदा

अब आता है मुख्य मंदिर जहाँ महामंत्र से वातावरण अच्छा बन पड़ा था, और यहाँ पहली प्रतिमा श्रीश्री निताई गौरांग की दूसरी याने कि मध्य प्रतिमा श्री श्री कृष्ण बलराम की और तीसरी प्रतिमा श्री श्री राधा कृष्ण चंद्र की है। मंदिर का मंडप देखते ही बनता है, बहुत सुन्दर चित्रकारी से उकेरा गया है।

राधा कृष्णकृष्ण बलरामनिताई गौरांग

मंदिर में आप अपने हाथ से प्रसाद पंडित जी को नहीं दे सकते हैं, प्रसाद आपको काऊँटर पर जमा करना है और पर्ची दिखाकर दर्शन करने के पश्चात आप प्रसाद की थैली ले सकते हैं। विशेष दर्शन की व्यवस्था है जिसका लाभ कोई भी २०० रुपये में उठा सकता है, विशेष दर्शन में भगवान के थोड़ा और पास जाकर दर्शनों का लाभ लिया जा सकता है। जैसे ही दर्शन करके आप सामने देखते हैं तो मंदिर में ही किताबें और सीडी के विज्ञापन दिखते हैं, जो शायद ही किसी ओर मंदिर में आपको दिखें। जैसे ही दर्शन करने के बाद बाहर के रास्ते जाने लगते हैं तो कतारबद्ध दुकानों के दर्शन होते हैं, पहले बिस्किट, केक और मिठाई फ़िर अगरबत्ती, किताब, कैलेडर, मूर्तियाँ, सीनरी, सॉफ़्ट टॉयज, कुर्ता पजामा, टीशर्ट और वह सब,  मंदिर में जो जो बिक सकता है वह सब वहाँ कतारबद्ध दुकानों पर उपलब्ध है। उसके बाद खाने पीने के लिये एक बड़ा हाल आता है जहाँ कि कचोरी, समोसे, जलेबी, खमन, तरह तरह के चावल, भजिये, केक, कुल्फ़ी, लेमन सोडा, बिस्किट्स इत्यादि उपलब्ध है। हमें तो स्वाद अच्छा नहीं लगा। और ऐसा पहली बार हुआ है कि इस्कॉन में खाने का स्वाद अच्छा नहीं लगा।

यहाँ हर किसी को पार्किंग से लेकर जूता स्टैंड तक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जबकि किसी भी इस्कॉन मंदिर में ऐसा नहीं होता।

मंदिर गये थे परंतु ऐसा लगा ही नहीं कि मंदिर में आये हैं ऐसा लगा कि किसी धार्मिक बाजार में हम आ खड़े हुए हैं। हाँ बेटे के लिये जरूर अच्छा रहा वहाँ एक मिनि थियेटर भी बना हुआ है जिसमें कि आप एनिमेशन फ़िल्म सशुल्क देख सकते हैं, जो कि एक छोटे से कमरे में एक बड़ा टीवी लगाकर और थियेटर साऊँड सिस्टम लगाकर बनाया गया है।

जब हम मंदिर से निकले तो हमारे मन और ह्र्दय में महामंत्र नहीं चल रहा था, न ही मंदिर में स्थित भगवान के चेहरे आँखों के सामने थे, बस जो भी नजर आ रहा था वह था, वहाँ स्थित भव्य बाजार।

वैसे एक बात फ़िर भी आश्चर्यजनक लगी कि दर्शन के लिये कोई टिकट नहीं था, जबकि दक्षिण में अधिकतर सभी मंदिरों में दर्शन के लिये टिकट है और अर्चना एवं प्रसाद चढ़ाने के लिये भी टिकट की व्यवस्था होती है, इसलिये यहाँ बैंगलोर में आकर मंदिर जाने का मन बहुत ही कम होता है, मंदिर जाकर अगर मन को ऐसा लगे कि आप मंदिर में नहीं किसी व्यावसायिक स्थान पर खड़े हैं, तो अच्छा नहीं लगता।

लूट तो हरेक जगह है, हर मंदिर में है फ़िर वो क्या उत्तर और क्या दक्षिण, और लूट भी रहे हैं वो पुजारी और पंडे जो कि भगवान की सेवा में लगे हैं, और भगवान भी उन पंडों और पुजारियों पर खुश है और उन पर अपनी सेवा करने की असीम कृपा बनाये हुए है।

हे कृष्ण! हे गिरधारी! कब इस कलियुग में तुम्हारे पंडे और पुजारी की इस लूट से आम जनता बच पायेगी।

सावधान ! कहीं बैंक खाते से पैसा गायब ना हो जाये (Be Alert ! for your money in Bank..)

हमारे मित्र के साथ एक दिन बड़ा धोखा हुआ, रात को दो बजे एकाएक उनके बैंक से फ़ोन आया कि “क्या आपने कोई स्टैन्डिंग इंस्ट्रक्शनस दे रखा है”
हमारे मित्र ने कहा “नहीं, पर क्या हुआ, क्या बात है ?”
बैंक से जवाब मिला “आपके खाते से हर दो मिनिट में एक हजार रूपये ट्रांसफ़र हो रहे हैं।”
हमारे मित्र ने उसी समय नेटबैंकिंग से अपना एकाऊँट देखा तो वाकई तब तक एक हजार के लगभग २० ट्रांजेक्शन हो चुके थे, और हर दो मिनिट में एक हजार कहीं ट्रांसफ़र हो रहे थे। बैंक ने तत्काल हमारे मित्र को कहा कि बेहतर यह है कि हम इस एकाऊँट को बंद कर देते हैं, जिससे कम से कम यह ट्रांसफ़र तो रुक जायेगा।
और बैंक ने हमारे मित्र का एकाऊँट बंद कर दिया, तब तक एक हजार के ४२ ट्रांजेक्शन हो चुके थे, सुबह हमारे मित्र बैंक गये और तहकीकात की, पता चला कि कहीं से ए.टी.एम. चैनल से किसी ने हमारे मित्र के एकाऊँट को हैक कर दिया था। जो कि बैंक के निगरानी तंत्र में नहीं आता, वह ए.टी.एम. चैनल वीसा इंटरनेशनल चैनल के अंतर्गत आता है। बैंक ने हमारे मित्र से पूछा कि “क्या कहीं पर आपने अपना एकाऊँट नंबर की जानकारी दी थी ?”
उस समय तो हमारे मित्र को याद नहीं आया, बाद में हमारे मित्र सायबर पुलिस के पास एफ़.आई.आर. दर्ज करवाने गये और बैंक से पुलिस ने जरूरी जानकारी ली, तो आखिर आई.पी. एड्रेस यू.के. का निकला। पुलिस ने कहा कि पैसा तो मिल जायेगा परंतु इसमें लगने वाला समय कम से कम २-३ वर्ष होगा और इसी बीच आपको कई बार कई जगहों पर परेशान भी होना होगा। उस समय हमारे मित्र एक निजी समस्या से भी उलझ रहे थे तो मानसिक रूप से परेशान तो थे ही, सो उन्होंने निर्णय लिया कि इन ४२ ट्रांजेक्शनों का घाटा ही सहन कर लिया जाये, क्योंकि प्रोफ़ेशन में इतना समय तो होता नहीं कि कई बार कई जगहों पर चक्कर लगा लिये जायें।
परंतु हाँ सायबर पुलिस ने उन्हें यह जरूर बता दिया कि बैंक एकाऊँट की जानकारी कैसे हैकर्स को मिली, हुआ यूँ कि इस सब घटना के १-२ दिन पहले ही उनके जीमेल एकाऊँट पर कोई मेल आयी थी, जिसमें फ़्लिपकार्ट से कोई किताब खरीदने का ऑफ़र था, और हमारे मित्र को वह किताब भा गई, सो उन्होंने वहीं से लिंक पर क्लिक करके उस किताब का भुगतान कर दिया। वह ईमेल नकली था, और फ़्लिपकार्ट की मिरर साईट (डुप्लिकेट) पर जिसे कि अधिकतर हैकर्स जानकारी जुटाने के लिये उपयोग करते हैं, ले गया और वहाँ से उनके बैंक के एकाऊँट की सारी जानकारी उस हैकर्स तक पहुँच गई।
जरूरी बातें जो इस धोखे से हमें सीखनी चाहिये –
किसी भी ईमेल से सीधे क्लिक करके कभी भी भुगतान ना करें, अगर खरीदना है या भुगतान करना है तो पहले साईट पर जायें और फ़िर भुगतान करें।
इस हैक में दीगर बात यह है कि हैकर को केवल बैंक का नाम और एकाऊँट नंबर का पता होना चाहिये, जिससे वह सीधे ए.टी.एम. चैनल में अपने मैसेज भेजकर यह कारनामा कर सकते हैं, अधिकतर यह चैनल सुरक्षित होते हैं, परंतु हैकर कहीं ना कहीं से मौका ढूँढ़कर अपना काम कर ही जाते हैं।
फ़्लिपकार्ट से खरीदते वक्त ध्यान रखें कि आपका एड्रेस बार ऐसा हो –
flipkart safe address
और नीचे यह भी दिख रहा हो –
flipkart safe and security msg
अपनी सुरक्षा अपने ही हाथ है, कोशिश करें कि हमेशा सावधानी बरतें क्योंकि बैंक में रखा आपका पैसा आपकी गाढ़ी कमाई का है, और थोड़ी सी चूक से आप इसे गँवा सकते हैं। हमेशा पासवर्ड और कस्टमर नंबर लिखने के लिये वर्चुअल की बोर्ड का उपयोग करें।
virtual keyboard
मजे की बात यह रही कि हमारे मित्र को फ़्लिपकार्ट से किताब भी मिल गई।