१७ अगस्त बाबा महाकाल की शाही सवारी का दिन, इस बार सवारी का अगला सिरा और पिछला सिरा लगभग ७ किलोमीटर लंबा था, पहले शासकीय पूजा होती है फ़िर राजा महाकाल अपनी यात्रा मंदिर से लगभग शाम ४ बजे शुरु करते हैं, वहाँ से सवारी रामघाट पहुँचती है क्षिप्रा नदी के किनारे, वहाँ पूजन कर फ़िर सवारी अपने निर्धारित मार्ग से गोपाल मंदिर और फ़िर वापिस महाकाल लगभग शाम १०.४५ बजे पहुँच जाती है।
राजा महाकाल की शाही सवारी में उनके सारे मुखौटे साथ में चलते हैं जो कि वे अपनी पिछली सवारी में धारण कर चुके होते हैं, शाही सवारी में सबसे आगे पुलिस बैंड, घुड़सवार पुलिस, हाथी, अखाड़े, मलखम्ब, स्थानीय लोग, स्थानीय भक्त मंडल, गणमान्य नागरिक फ़िर राजा महाकाल की पालकी होती है। सवारी मार्ग के दोनों तरफ़ स्थानीय लोगों द्वारा स्वागत मंच भी बनाये गये थे, जहाँ से माईक से उदघोषणा भी की जा रही थी और राजा महाकाल की आगवानी भी की जा रही थी।
राजा महाकाल की शाही सवारी का वीडियो देखिये –
हमारे बेटेलाल को तो बड़ा मजा आया, उन्हें सवारी मार्ग में हमने अपना हाथ पकड़कर खड़ा कर दिया, इसके पहले उन्हें हम अपनी गोद और कंधे की सवारी करवा चुके थे। किसी मंडल ने अपनी झांकी बहुत अच्छे से सजायी थी तो किसी के समूह में भगवान के भेष धारण कर लोग चल रहे थे, बिल्कुल सजीव लग रहे थे, एक मंडल ने तो भगवान कृष्ण का इतना सुंदर भेषप्रबंधन किया था कि वो तो सजीव ही लग रहे थे। पूरा सवारी मार्ग फ़ूलों से पटा पड़ा था, सब सवारी में शामिल लोगों और राजा महाकाल का स्वागत फ़ूलों से कर रहे थे।
इस बार तो रिकार्डतोड़ भीड़ थी, सवारी मार्ग में तो प्रशासन का भीड़ प्रबंधन लगभग नहीं के बराबर था जबकि उज्जैन प्रशासन को सिंहस्थ के कारण भीड़ प्रबंधन का बहुत अच्छा अनुभव है, फ़िर भी आम आदमी को धक्के खाने के लिये छोड़ दिया गया था।सवारी मार्ग में पैर रखने की जगह नहीं थी, मार्ग के दोनों ओर के भवनों के छज्जे पर भी लोग टकटकी लगाये खड़े थे, कोई जगह ऐसी नहीं थी कि जहाँ जगह खाली छूट गयी हो, हर जगह मानव ही मानव। गाँव वाले केवल राजा महाकाल की शाही सवारी के दर्शन के लिये आये थे तो उनके पास उनकी गठरी या नया प्रचलन बैग था, और वे उसे लेकर ही राजा महाकाल के दर्शन की आस लिये थे।
हमने भी अपने बेटेलाल को अपने घर का पता याद करवाया और आपात स्थिती से निपटने के लिये उनकी जेब में अपने घर का पता और फ़ोन नं रख दिया और समझा दिया कि अगर हमसे अलग हो भी जाओ तो घबराना मत किसी भी पुलिस अंकल को पकड़ लेना और अपना पता बता देना नहीं तो उनको बोल देना कि मेरी जेब में मेरा पता है, मुझे घर पहुँचवा दीजिये। हमारे बेटेलाल भी खुश कि आज उनकी इतनी चिंता हो रही है। सवारी में पहुँचने के बाद भी बेटेलाल पता याद कर रहे थे अगर कहीं कोई कन्फ़यूजन होता तो झट हमसे वापिस पता पूछ लेते।
राजा महाकाल की सवारी के दर्शन करने के बाद हम वापिस अपने घर को लौट चले तो भी अद्भुत जनसैलाब था। शाही सवारी में आज से कुछ सालों पहले मतलब सिंहस्थ के पहले इतनी भीड़ नहीं आती थी। बहुत आराम से राजा महाकाल के दर्शन होते थे और हम भी अपनी मित्र मंडली के साथ राजा महाकाल की यात्रा में शामिल हुआ करते थे, पर धीरे धीरे आस्था का सैलाब उमड़ने लगा और अब यह यहाँ उज्जैन के लिये लोकोत्सव हो गया है। जिसमें शामिल होकर हरेक जन अपने को धन्य मानता है।
“राजाधिराज महाकाल महाराज की जय”
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