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व्यक्तिगत वित्त प्रबंधन में “पापा कहते हैं” की समस्या (“Papa Kehte Hain” problem in Personal Finance)

    तो मैं एक पाठक से बात कर रहा था और मुझे पता चला कि उसके पति की कमाई का निवेश उनके पापा द्वारा किया जाता है। इसका कारण जानने के लिये मैं बहुत उत्सुक था और जो सबसे बड़ा कारण मुझे पता चला वह यह कि उसके पति को निवेश और और व्यक्तिगत वित्त प्रबंधन में कोई रुचि नहीं है, और इसके लिये उसने अपने पापा को निवेश का निर्णय करने के लिये दे दिया है। तो इनके लिये इनके पापा म्यूचुअल फ़ंड, एलाआईसी, पीपीएफ़ और अन्य आयकर के लिये बचत वाले उत्पाद, साथ ही वह बचत भी जो आयकर बचत का हिस्सा नहीं है, ध्यान रखते हैं। उन्होंने कोई चाईल्ड यूलिप योजना भी ली है अपने पोते के भविष्य की “सुरक्षा” के लिये। हम देखते हैं ये बात कितनी गंभीर है और हमारे देश में कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है।

“पापा कहते हैं” के कारण उत्पन्न होने वाली समस्यायें

  • अनुपयुक्त मनोविज्ञान: जैसे कि हमने पहले चर्चा की, आज की दुनिया में निवेश के निर्णय बेहतर तरीके से लें और उसके लिये बेहतर सोच बनानी होगी। पापा के तरीकों के दिनों की तुलना में, आप को ज्यादा बेहतर तरीके से नये वित्तीय उत्पादों के बारे में जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिये। तो आजकल पापा साधारणतया: अच्छे से पैसे का प्रबंधन सही तरीके से नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें आजकल के बेहतर वित्तीय उत्पादों का पता नहीं होता है, और उनका निवेश का दृष्टिकोण वही पुराना होगा।

 

  • निवेश और दस्तावेजों के बारे में जानकारी न होना: शायद यह आपको भी पता नहीं होता होगा कि आपके माता पिता आपके लिये कहाँ निवेश कर रहे हैं, और वे आपको इस बारे में बता नहीं रहे हों, या आपको बताना भूल गये हों कि निवेश के दस्तावेज कहाँ रखे हैं, जब किसी वित्तीय उत्पाद की परिपक्वता होती है, और ये सब होता है, दिखने में तो छोटी सी समस्या लगती है लेकिन यही बहुत बड़ी समस्या हो सकती है जब कुछ बुरा होता है।

 

  • स्वनिर्भरता न होना और इसलिए निवेश की जानकारी का अभाव होना: यह शब्द बहुत अच्छे नहीं लगेंगे परंतु मेरा विश्वास कीजिये, आपके माता पिता एक दिन चले जायेंगे और एक दिन सब कुछ आपको ही देखना पड़ेगा और उस समय आपके पास कोई जानकारी नहीं होगी, आपके लिये वह बहुत ही भयानक स्थिती होगी। आपको पता ही नहीं होगा कि निवेश कैसे करना है, आपको केवल यह पता है कि निवेश किया है पर यह नहीं कि बीमा कहाँ से खरीदा है, और वह कब परिपक्व हो रहा है इत्यादि। आपके लिये एक तरह से नयी शुरुआत होगी। तब आपको बहुत दुख होगा कि आप क्यों हमेशा अपने मातापिता के ऊपर निर्भर रहे। यह अच्छी बात नहीं है।

एक महत्वपूर्ण सवाल जो आपको पूछना है

    आज की दुनिया में ज्यादातर पापाओं या बुजुर्गों को निवेश कैसे किया जाये कहाँ किया जाये, इसका निर्णय करना ही नहीं आता है। उनके दौर की तुलना में अब ये बिल्कुल नई वित्तीय उत्पादों की दुनिया है। उन्हें बहुत ज्यादा कुछ पता नहीं होता है कि कौन सा वित्तीय उत्पाद का उपयोग करना चाहिये। हमारे पापा, दादा और बुजुर्ग के समय वित्तीय बाजार बिल्कुल अलग था, उस समय उन लोगों के पास एलआईसी पोलिसी और सावधि जमा (FD) के अलावा ओर कोई विकल्प ही नहीं था। शिक्षा बहुत ही सस्ती थी, और हमारी इच्छाएँ भी सीमित थीं, और लोग अपनी सीमित दुनिया में खुश रहते थे। अब सब बदल गया है और हम आज बिल्कुल ही अलग दुनिया में हैं जिससे हम पर दबाब बड़ता जा रहा है, जिंदगी से अधिक उम्मीदें हैं, शिक्षा के लिये लाखों चाहिये, सबसे महँगा है बच्चे की शिक्षा, बड़ों को तो भूल ही जाइये। लोग अब बाहर होटल में ज्यादा खा रहे हैं, लोग ज्यादा खर्च कर रहे हैं, और ज्यादा चीजें चाहिये और यह सब प्राप्त करने के लिये हमें बहुत ही बुद्धिमानी से काम लेने की जरुरत है। सावधि जमा और एन्डोमेन्ट पोलिसी एक दिन आपको वित्तीय रुप से धोखा देंगी और आपको पता भी नहीं चलेगा।

    ज्यादातर अभिभावकों को आजकल समझ में ही नहीं आता है कि इस नई वित्तीय दुनिया में कहाँ निवेश करें, उनके लिये यह निर्णय लेना बहुत ही दुश्कर हो गया है। उनके निर्णय के ऊपर निवेश करना आज की वित्तीय दुनिया में बहुत महँगा पड़ सकता है। स्पष्टत: वे जो भी निवेश कर रहे हैं, उनसे पूछ लेना चाहिये और उसका मूल्यांकन कर लेना चाहिये।

    वैसे आप अपने निवेश का निर्णय लेने का अधिकार पापा को क्यों दे रहे हैं ? इसका क्या कारण है ? केवल इसलिये कि आप उनका सम्मान करते हैं और क्योंकि वह आपके परिवार में वे सबसे बड़े हैं और उन्होंने आप से ज्यादा दुनिया देखी है ? तो आप क्या सोचते हैं कि इससे वे आपसे या किसी ओर से ज्यादा अच्छे से निवेश के निर्णय ले सकते हैं ? यह सही है न !! हो सकता है कि यह पूरी तरह से उचित नहीं हो, सम्मान और अनुभव अपनी जगह है, लेकिन केवल इन दो मानदंडों के कारण उनको अपने निवेशों का निर्णय करने का अधिकार देना बिल्कुल ठीक नहीं है । यह खतरनाक भी हो सकता है।

आखिरी परिदृश्य

   दूसरी ओर, हम में से कई के पापा और बुजुर्ग रिश्तेदार वास्तव में बहुत ही अच्छे हैं, जो कि सीधे शेयर निवेश के क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं, वित्तीय योजनाओं को आज के परिवेश के मुताबिक समझते हैं, जानते हैं और आज के परिवेश के मुताबिक काफ़ी अच्छा अनुभव भी है, हमेशा उचित यही है कि निवेश के पहले उनकी मदद लें या कम से कम उनका मार्गदर्शन तो ले ही लें। अंत में आपको निर्णय लेना है कि आपके अभिभावक आपके निवेश के लिये सही निर्णय ले रहे हैं या नहीं ? इसक व्यक्तिगत तौर से मूल्यांकन करना ही चाहिये।

क्या आपके साथ ऐसा हुआ है ? क्या आपके पास ऐसा कोई है जो इस तरह की समस्याओं से गुजर रहा हो, कृपया अपने व्यक्तिगत अनुभव और विचारों को बतायें।

यह आलेख मूलत: http://www.jagoinvestor.com पर मनीष चौहान द्वारा लिखा गया है, और यह इस आलेख का हिन्दी में अनुवाद है।

वित्तीय उत्पादों (ऋण) के साथ जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को बेचा जाना (Force Selling combined with other financial products)

वित्तीय उत्पादों (ऋण) के साथ जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को बेचा जाना (Force Selling combined with other financial products)

    ऋण या गृह ऋण के साथ क्या कभी आपको किसी ने यूलिप खरीदने पर मजबूर किया है ? आजकल भारत के वित्तीय बाजार में यह अनैतिक बिक्री जोरों पर है। आजकल बहुत सारे लोग ये शिकायत करते हैं कि कई कंपनियाँ बड़े ऋण के साथ या कुछ और बड़ा ऋण लेने पर उनके कबाड़ा उत्पाद जैसे कि एन्डोमेन्ट योजना या यूलिप (जिसमें ज्यादा कमीशन मिलता है) बेचती हैं, जहाँ यूलिप की छोटी सी रकम के लिये कहा जाता है “ठीक है, इतनी बड़ा ऋण लिया है फ़िर छोटी सी चीज के लिये क्यों सोच रहे हैं”। पर यह सही नहीं है, इससे आम आदमी का विश्वास टूट रहा है, और यह सब नियमों के खिलाफ़ हो रहा है। चलो कुछ वास्तविक जीवन के मामले देखते हैं –

जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को ऋण स्वीकृति के साथ बेचना
    मुझे एक योजना लेनी थी, वो भी बिना जानकारी के, कि उस योजना में क्या है और वह क्या योजना है, जैसा कि बार्कलेज फ़ायनेंस कंपनी ने कहा कि कर्ज के अनुमोदन के लिये यह योजना लेना अनिवार्य है, पता नहीं कि यह सब कितना सही है। लेकिन मेरे पास समय नहीं था, मैं पहले ही काफ़ी देरी कर चुका था, इसलिये मैंने चुपचाप ले लिया।

जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को गृह ऋण के साथ बेचना
    मैंने सोचा कि भारतीय स्टेट बैंक जैसे बैंक अपने नियमों पर सीधे अमल करेंगे। पर यहाँ से ऋण लेने पर मुझे बहुत ही मुश्किलात का अनुभव हुआ।

ऋण अनुमोदन करने के पहले के सपने –
    लोन दिलाने वाला एजेंट (हिन्दी में दलाल, शायद सुनने में अच्छा न लगता हो) जो मेरे कार्यालय में ही कार्य करता है, उसे ऋण के नियम और शर्तों के बारे में कुछ पता ही नहीं है। वह एसबीआई का सेवानिवृत्त अधिकारी है और अपनी पहचान का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए ऋण दिलवा देता है। एक दिन वह मुझसे बोला कि मैंने जो ऋण दिलाने के लिये सेवाएँ दी मुझे उसका भुगतान(Service Charges) तो कीजिये (मैं तो स्तब्ध रह गया)| शायद उसके द्वारा मेरे ऋण लेने पर बैंक ने कुछ न कुछ फ़ीस का भुगतान किया ही होगा। मैंने उसे कुछ जरुरी जमानती (Gurantor) संबंधी कागजात दिये थे, जो कि फ़ाईल में नहीं थे। शायद उसने खो दिये थे, जितनी राशि के लिये मैंने ऋण का आवेदन किया था, ऋण अनुमोदन के दौरान ही मैंने अपनी ऋण राशि कम कर दी। जब मेरा ऋण अनुमोदित हुआ तो मैंने पाया कि १.९ लाख का अतिरिक्त ऋण मुझे मंजूर किया गया है और ऋण राशि बड़ा दी गई है। मैंने उनके द्वारा प्रस्तावित बीमा सुरक्षा ऋण के लिये लेने से मना कर दिया क्योंकि मैंने प्रतिवर्ष के आधार पर कवर करने की योजना बनाई थी। मैंने इसके लिये प्रबंधक से चर्चा की और वह इसको हटाने पर राजी भी हो गये।
    जरुरी बात, जब आप ऋण के कागज पर हस्ताक्षर कर रहे हों तो जमानती को हमेशा वहाँ होना चाहिये। मैंने अपने जमानती को सुबह के समय में अपने साथ लेकर यह कार्य सफ़लतापूर्वक किया।

जबरन भारतीय स्टेट बैंक का ऋण के साथ बीमा बेचना
    मैंने देखा कि बीमा सुरक्षा को हटाया नहीं गया है और एसबीआई अधिकारी उसे हटाने को सहमत भी नहीं थे जबकि मैंने उनसे यह भी कहा कि मैं एसबीआई का बीमा खरीद लूँगा। मुझे बताया गया कि फ़िर मुझे वापस से उसी शाखा में जाना पड़ेगा जहाँ ऋण का अनुमोदन किया गया था और फ़िर बैंक प्रबंधक से स्वीकृत करवाना पड़ेगा और फ़िर स्वीकृति के लिये वापिस से बैंक के ऋण प्रोसेसिंग केन्द्र पर जाना होगा। और मैंने स्वीकृत करने वाले अधिकारी और मुख्य प्रबंधक को बहुत मनाया, और केवल एक साल का बीमा सुरक्षा तभी उसी समय खरीदने को तैयार हो जाने पर मैं उनको मनाने में कामयाब हो गया।
    इसके अलावा, मुझे बताया गया था कि इस वर्ष मेरे ऋण का ब्याज ८ प्रतिशत रहेगा (मैं खुश था कि मैंने भारतीय स्टेट बैंक से ऋण लिया था), लेकिन बाद में मुझे बताया गया कि मेरा ऋण अगले ४ वर्षों के लिये ९.७५ प्रतिशत की दर से स्वीकृत हुआ है। किसी ने मुझे इस नियम के बारे में बताया तक नहीं था कि ८ प्रतिशत वाली योजना के लिये मुझे अलग से अनुमोदन करना होगा। मैंने इस बारे में क्लर्क से लेकर प्रबंधक तक सबसे पूछा पर किसी को इस नियम के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं थी कि इसके लिये अलग से अनुमोदन कर स्वीकृति लेनी थी, पर अब मेरे पास हस्ताक्षर करने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं था। इन विषम परिस्थितियों में, मैंने सोचा कि ब्याजदर कुछ ज्यादा है पर फ़िर भी मैं अगले ४ वर्ष के लिये ९.७५ प्रतिशत ब्याज दर पर फ़ँस चुका था।
    खैर, मुझे बैंक अधिकारियों की कार्य करने की गति और अपने पेशे के प्रति जानकारी से संतुष्टि तो थी, पर फ़िर भी मुझे महसूस हो रहा था कि ऋण के नियम और शर्तों में और पारदर्शिता लानी चाहिये।
    क्या शिक्षा मिलती है इस घटनाक्रम से – ऋण के कागजात पर हस्ताक्षर करने के पहले सभी नियमों और शर्तों को ध्यान से पढ़ लो और अगर किसी भी नियम या शर्त समझ में नहीं आ रहा तो वहीं अधिकारी से उसके बारे में पूछ लें और अगर जब तक जबाब नहीं मिलता तब तक संतुष्ट भी नहीं होना चाहिये। निजी एवं सरकारी बैंकें सभी के अपने अपने नियम और शर्तें होती हैं, और वहाँ उनको बताने वाला कोई नहीं होता है।

एक और मामला जबरन अपने वित्तीय उत्पाद बेचने का, ऋण हस्तांतरण के साथ
    मैंने एक और मामला देखा है जिसमें एक आदमी अपना गृहऋण (आईसीआईसी बैंक) पूना से दिल्ली स्थानान्तरित करवाना चाहता था, और केवल इसके लिये उसे जबरदस्ती बैंक के अधिकारियों द्वारा यूलिप योजना लेने को मजबूर किया जा रहा था, जिससे उसके कागजी कार्यवाही में मदद मिलती मतलब जल्दी कर दिया जाता, नहीं तो उसका काम अटक जाता। आखिरकार, उसने दिल्ली ब्रांच में आग्रह किया, तो उसका काम आसानी से हो गया। तो इस मामले में बैंक अधिकारी ऋणी पर अनुपयुक्त वित्तीय उत्पाद लेने के लिये दबाब डाल रहे थे।

निष्कर्ष
    इन दिनों वित्तीय संस्थाओं में यह कृत्य हो रहे हैं, ये सब भ्रष्टाचार का ही एक रुप है। ॠण देने वाले सोच रहे हैं कि ऋण एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संकट की बात होती है आम आदमी के लिये, इसको आसानी से देने के लिये वे लोग अपने घटिया वित्तीय उत्पाद जबरन लेने को मजबूर करते हैं, वैसे भी बैंक वाले ये सोचते हैं कि भारत में लोग अन्य बातों से पहले ही बहुत दुखी और परेशान हैं, उसमें वे कुछ नहीं कर सकते हैं। आमजन पहले थोड़ा बहुत पूछेगा फ़िर आखिरी में अपना सब्र खोकर उनका घटिया वित्तीय उत्पाद जो कि जबरन ॠण के साथ बेचा जा रहा है ले लेगा, और यही होता भी है। लेकिन अपने साथ ऐसा मत होने दीजिये । अपनी आवाज उठाईये, सफ़ाई मांगिये, नियम में ऐसा कहाँ लिखा है देखिये, उन्हें शिकायत करने की धमकी देकर डराईये और अपनी आवाज को बैंकिग ओम्बड्समैन एवं उपभोक्ता अदालत तक ले जाईये, और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि थोड़े समय के पश्चात जो जतन आपने किये हैं उससे सुधर जायेंगे ।
    यहाँ तक कि भारतीय स्टेट बैंक में या किसी और बैंक में पीपीएफ़ खाता खोलने के लिये अगर आप जायेंगे तो पायेंगे कि वो जबरन में आपका बचत खाता खोलने की कोशिश करेंगे । यह भी अपने वित्तीय उत्पाद जबरदस्ती बेचने की श्रेणी में आता है।

टिप्पणी – ऐसे ही कुछ उदाहरण जो आप जानते हों, आपके साथ हुए हों या किसी ओर के साथ और इन मामलों को कैसे हल किया जा सकता है। आईये एकजुट होकर आप अपने विचार साझा कीजिये। हम ये सब बदल सकते हैं !! 
यह आलेख मूलत: http://www.jagoinvestor.com पर मनीष चौहान द्वारा लिखा गया है, और
यह इस आलेख का हिन्दी में अनुवाद है।