हम आधुनिक युग में इतने रम गये हैं कि आपस के रिश्तों में इतनी दूरियाँ हो गई हैं जो हमें पता ही नहीं चलती हैं, Real Togetherness हम भूल चुके हैं, जब हम आपस में समय बिताते थे,प्रकृति के अनूठे वातावारण में एक दूसरे के साथ घूमने जाते थे, खेलते थे और जीवन को सही मायने में जीते थे Continue reading प्रकृति के बीच Real Togetherness कैसे ढ़ूँढ़ें
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बच्चों के लिये प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi)
बच्चों के लिये प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi) –
बढ़ती आबादी के कारण निरंतर होनेवाला शोरगुल। घर के बरतनों की खट-पट और वाद्य-यंत्रों की झन-झन इन दिनों बड़ती ही जा रही है। वाहनों का शोर, उपकरणों की चीख और चारों दिशाओं से आनेवाली विभिन्न प्राकर की आवाजें ध्वनि प्रदूषण को जन्म दे रही हैं। महानगरों में तो ध्वनि-प्रदूषण अपनी ऊँचाई पर है।
भोरकालीन वातावरण और प्रकृति के अप्रितम रंग
सुबह जल्दी उठकर प्रकृति का आनंद लेना, मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा है, प्रकृति के इस रम्य वातावरण को देख मन आह्लादित हो उठता है। जो प्रसन्नता मन को भोरकालीन वातावरण में मिलती है, वह अवर्णनीय है। सुबह पंक्षियों का कलरव, मंद गति से बहती शीतल हवा, बयार में शांत पेड़ पौधे अपने अप्रितम सौंदर्य का दर्शन देते हैं, दैनिक जीवन की शुरूआत से पहले बिल्कुल शांत और निर्वाण रूप होता है सुबह का।
पक्षी स्वच्छन्दता से अपने पंखों से उड़ रहे होते हैं और डैने फ़ैलाकर आकाश में क्रीड़ा कर रहे होते हैं। पक्षियों की इस क्रीड़ा को देखने से मन ऊर्जास्फ़ुरित हो उठता है। कुछ पक्षी उड़ान के अपने नियम बनाते हैं और कुछ पक्षी अनुशासन में एक के पीछे एक पंक्ति में उड़ान भरते नजर आते हैं। इन पक्षियों को देखकर ही विचार मुखरित हो उठते हैं और हृदय को मिलने वाली प्रसन्नता शब्दों में कह पाना कठिन होता है।
पौधे अपने निर्विकार रूप में खडे होते हैं, पेड़ पौधों में जान होती है परंतु वे स्व से अपने पत्तियों को खड़का नहीं सकते, वे तो प्रकृति प्रदत्त वातावरण पर आश्रित होते हैं। भोर में पेड़ पौधों पर पड़ी ओस, मोती सा आभास देती है, और जलप्लवित पत्तियों से ऊर्जा संचारित होती है, वह ऊर्जा लेकर हम अपने जीवन की शुरूआत करते हैं।
कुछ समय पूर्व रंगों के त्यौहार पर इस बागीचों के शहर में पंक्तिबद्ध रंगबिरंगे फ़ूलों के बड़े बड़े पेड़ों को देखते ही बनता था, प्रकृति प्रदत्त इन रंगीन फ़ूलों को देखकर ही लगता था कि रंगों का त्यौहार आ चुका है, सड़क किनारे कच्ची पगडंडियों पर गिरे इन फ़ूलों का अप्रितम सौंदर्य देखते ही बनता है। विभिन्न रंगों के फ़ूल जीवन के विभिन्न रंगों को प्रदर्शित करते हुए, गीत गाते हुए जीवन को नया राग देते हैं।
प्रकृति की इस मौन भाषा को देखकर और अहसास से ही समझा जा सकता है, भोर के इस थोड़े से समय बाद जीवन की भागदौड़ में ये भोरकालीन मंच अपने आप पर पर्दा गिराकर फ़िर से दिनभर के लिये लुप्त हो जाता है। यह भोरकालीन मंच का आनंद लें और अपने जीवन को खुशियों में प्रकृति संग बितायें।
भोरकालीन कुछ और चित्र जिन्हें देखकर मन आनंद की सीमाओं के परे दौड़ पड़ता है।
प्राकृतिक संसाधनों के लिये जवाबदेही
प्राकृतिक संसाधन क्या होते हैं, जो हमें प्रकृति से मिलते हैं, प्रकृति प्रदत्त होते हैं। हमें इसका उपयोग बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिये, परंतु ऐसा होता नहीं है।
इस विषय के संबंध में कल अपने केन्टीन में एक पोस्टर देखा था जिसमें दिखाया गया था कि एक गाजर को तैयार होने में लगभग ६ माह लगते हैं और उसको जमीन से निकालकर पकाने तक मात्र कुछ ही मिनिट लगते हैं, और हम कई बार सलाद या सब्जी फ़ेंक देते हैं, जिसमें केवल कुछ सेकण्ड ही लगते हैं, यह प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग ही तो है जिसे केवल जिम्मेदारी से आम व्यक्ति ही रोक सकता है। गाजर तो केवल एक उदाहरण है ऐसी कई वस्तुएँ हैं जिनका हम धड़ल्ले से दुरुपयोग कर रहे हैं।
इसके बाद एक ट्रेनिंग में जाना हुआ जो कि बैंकिंग की थी, उसमें भी बताया गया कि कैसे वित्तीय संस्थाएँ प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में अहम योगदान कर रही हैं, जो कि हर राष्ट्र के लिये बहुत ही अहम है, वित्तीय संस्थाएँ एवं नियामक देश की विदेशी मुद्रा को जाने से रोकते हैं, जो कि राष्ट्र के लिये संसाधन है।
आज सुबह अखबार में एक कहानी पढ़ रहे थे जो कि इस प्रकार थी – एक गुरूजी अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिये प्रेरित करते थे परंतु शिष्य केवल सुनते थे उस पर अमल नहीं करते थे, एक दिन गुरू जी ने व्रत रखा और शाम को अपने एक शिष्य को कहा व्रत तोड़ने के लिये मुझे नीम की दो पत्तियों की जरूरत है जाओ ले आओ। थोड़ी देर बाद शिष्य आया और उसके हाथ में नीम की पूरी टहनी देखकर गुरूजी रुआंसे हो गये और उन्होंने कहा कि मुझे केवल दो पत्तियों की जरूरत थी पूरी टहनी की नहीं, यह आदेश मैंने तुम्हें दिया था तो इस प्राकृतिक संसाधन के दुरुपयोग का जिम्मेदार में हुआ इसलिये अब इसका प्रायश्चित स्वरूप आज मैं व्रत नहीं तोड़ूँगा। शिष्यों को बहुत दुख हुआ।
काश कि सब प्राकृतिक संसाधनों के प्रति अपनी जवाबदेही समझें। जैसे सब्जी लेने जायें या बाजार कुछ भी समान लेने जायें तो अपने थैले साथ ले जायें जिससे पोलिथीन का कम से कम उपयोग करके हम प्रकृति को नुकसान से बचा सकें।