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भ्रष्टाचार के कारण इन्फ़ोसिस बैंगलोर से पूना (Due to corruption Infy moves to pune from bangalore)

    भ्रष्टाचार के कारण इन्फ़ोसिस अपना प्रधान कार्यालय बैंगलोर से पूना ले जा रहा है, जी हाँ कर्नाटक सरकार के भ्रष्टाचार से परेशान होकर, यह पहली बार नहीं हो रहा है, कि कार्पोरेट कंपनी अपना प्रधान कार्यालय बैंगलोर से हटा रहा है, पर जिस आईटी कंपनी के कारण बैंगलोर का नाम विश्व के नक्शे पर जाना जाता है, वही अब बैंगलोर से रवाना हो रही है।
    आज बैंगलोर मिरर में मुख्य पृष्ठ पर समाचार है, टी.मोहनदास पई जो कि इन्फ़ोसिस में मानव संसाधन प्रभाग के प्रमुख हैं, सुनकर जब मुझे इतना बुरा लग रहा है जबकि मैं बैंगलोर या कर्नाटक का निवासी नहीं हूँ, परंतु मेरे भारत में अब ऐसा भी हो रहा है यह तो बस अब हद्द ही हो गई है। क्या इसी दिन के लिये हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना खून बहाया था, क्या गांधी जी ने आजाद देश का यह सपना देखा था, कि सभी लोग आजादी से भ्रष्टाचार कर सकें और मानवीय मूल्यों का हनन कर सकें।
    आज इन्फ़ोसिस जा रही है कल और भी कंपनियों के जाने के आसार हैं, कहीं भारत के भ्रष्टाचार के कारण ऐसा न हों कि ये सभी कंपनियाँ पास के किसी और देश में चली जायें जैसे कि चीन, भूटान या कहीं ओर.. क्या है भ्रष्टाचार का इलाज… कुछ है क्या…
    मेरे भारत के महान नागरिकों क्या है भ्रष्टाचार का इलाज… भ्रष्टाचार केवल बैंगलोर में है मुद्दा यह नहीं है, भ्रष्टाचार तो हर प्रदेश में है भारत देश में है, और इस कदर भारतीय तंत्र में घुलमिल गया है कि इसे अलग करना अब नामुमकिन सा लगता है, जब हमारे भारत देश के प्रधानमंत्री यह कह सकते हैं कि काले धन वाले लोगों की सूची उजागर नहीं की जा सकती तो ऐसे देश के कर्णधारों से क्या उम्मीद कर सकते हैं।
क्या ब्रिटिश शासन ही ठीक था या ये भ्रष्टाचारी स्वतंत्र भारत देश….

बैंगलोर का भारी पानी और बिना मतलब का एक्वागार्ड (Hard Water and Aquaguard Fail…)

बैंगलोर में आकर बहुत सारा सामान्य ज्ञान बढ़ा, जिसमें से एक है हार्ड वाटर याने कि भारी पानी।
    मुंबई से बैंगलोर शिफ़्ट होने के बाद अपना एक्वागार्ड लगवाने का समय नहीं मिल पाया, एक प्लंबर को बुलाकर एक्वागार्ड संस्थापित तो करवा लिया, परंतु मुंबई से परिवहन के दौरान उसमें कुछ समस्या हो गई थी इसलिये वह शुरु ही नहीं हो रहा था। एक्वागार्ड के ग्राहक सेवा केन्द्र को फ़ोन लगाकर अपनी शिकायत भी दर्ज करवाई, जब ७ दिन तक एक्वागार्ड वाला नहीं आया तो वापिस से उनको फ़ोन करके कहा कि बैंगलोर में क्या सारी कंपनियाँ ऐसी ही हैं, जो कि अपने ग्राहकों का ध्यान नहीं रखती हैं। तो हमें कहा गया कि ठीक करने वाला बंदा २ दिन में पहुँच जायेगा। खैर हम तो एक्वागार्ड की घटिया सेवा से परेशान हो चुके थे।
    इसी दौरान एक सुबह एक्वागार्ड बेचने वाले ने हमारे घर पर दस्तक दी, तो हमने पहले पूछा कि ठीक करने आये हो, उसने जबाब दिया “नहीं”, हम तो बेचने आये हैं, पहले तो हमने जबरदस्त फ़टकार लगाई कि क्या ग्राहकों को सेवाएँ देते हो, ७ दिन पूरे होने के बाबजूद अभी तक कोई ठीक करने नहीं आया, क्या बकबास कंपनी है, और भी बहुत कुछ उसे गरिया दिया।
    पर वह भी पक्का बेचनेवाला था, बोला कि अगर आप इजाजत दें तो मैं आपके यहाँ का पानी जाँच लूँ, मैंने कहा कि चलो भई देख लो, क्योंकि हमने भी सुना था कि यहाँ बैंगलोर का पानी भारी है। उसने जाँच की और हमें बताया कि देखिये ४८५ है और बिसलरी का ७२, पीने लायक पानी होता है ५०-१०० अब क्या मानदण्ड होता है, पता नहीं । उससे हमने पूछा कि भारी पानी पीने से क्या नुक्सान होता है वह हमें बता नहीं पाया पर बोला कि RO वाला मॉडल आपको खरीदना होगा तभी यह भारी पानी पीने लायक होगा, हमने कहा अभी तो हम बिसलरी पी रहे हैं, पर जल्दी ही कुछ तो लेना ही होगा अगर हमारा साधारण एक्वागार्ड काम नहीं आयेगा।
    उस समय हमारे पास इंटरनेट था नहीं, और ऑफ़िस में थोड़ा बहुत पढ़ा तो सब सिर के ऊपर से निकल गया, तो पास के एक मॉल में गये जहाँ Water purifier के सभी कंपनियों के उत्पाद थे, हमने पहले उससे कहा कि पहले हमें जानकारी दीजिये कि भारी पानी से क्या होता है, तो वह भी हमें केवल इतना ही बता पाया कि जब बहुत प्यास लगती है तभी पी पायेंगे, ज्यादा पानी पीने की इच्छा नहीं होगी। नुक्सान कुछ भी नहीं है। हमें वहाँ व्हर्लपूल कंपनी का RO वाला उत्पाद अच्छा लगा, और हम तय कर चुके हैं कि एक्वागार्ड जैसी घटिया ग्राहक सेवा देने वाली कंपनी से तो उनका उत्पाद नहीं खरीदेंगे वह भी कम से कम बैंगलोर में तो बिल्कुल नहीं।
    अगर आप में से किसी के पास इस बारे में जानकारी हो तो लिंक साझा करें या फ़िर टिप्पणी में ज्ञान प्रदान करें, तो हम नया RO Water Purifier ले पायें।
१. भारी पानी के नुक्सान क्या हैं ?
२. RO वाला कौन सा Water purifier लें ?
३. भारी पानी के उपचार के और कौन से तरीके हैं ?

इंडिब्लॉगर मीट बैंगलोर ब्लॉगरों की ताकत – 2 (IndiBlogger.in Meet Bangalore – 2)

इंडिब्लॉगर मीट बैंगलोर ब्लॉगरों की ताकत (IndiBlogger.in Meet Bangalore)

दोपहर के भोजन के बाद सभी ब्लॉगर्स इस्कॉन मंदिर के फ़ोटो लेने में लग गये, वैसे एक बात गौर करने लायक थी कि लगभग सभी ब्लॉगर्स के पास DSLR कैमरे थे, कुछ फ़ोटो ब्लॉगर्स भी थे, जो पूरी ब्लॉगर मीट के दौरान फ़ोटो खींचने में ही व्यस्त रहे।

श्री मधु दास     अक्षयपात्र फ़ाऊँडेशन के चैयरमेन श्री मधु दास हमारे सम्मुख थे, और उन्होंने ब्लॉगर्स के योगदान को सराहा और लोगों को इस बारे में बताने के लिये अपने ब्लॉग पर लिखने की अपील की। ब्लॉगर्स के प्रश्नों के उत्तर भी दिये।

    सभी ब्लॉगर्स वापिस से MVT हॉल में आ चुके थे, फ़िर शुरु हुआ एक दूसरे को टिप्पणी देने का सिलसिला, सभी को एक ड्राँईंग शीट अपनी पीठ पर लगाने को दे दी गई, और जैसे हम ब्लॉग पर टिप्पणी देते हैं, वैसे ही एक दूसरे से मिलकर, कैसा लगा और अपने ब्लॉग का पता साझा करने के लिये यह दौर बनाया गया था। बहुत सारे ब्लॉगर्स से मुलाकात हुई, जिसमॆं भारतीय भाषा के एक और ब्लॉगर से मिले जो कि कन्न्ड़ में ब्लॉग लिखते हैं। हमने ब्लॉगर्स को बताया कि हम हिन्दी में ब्लॉग लिखते हैं, तो सबने बहुत सराहा। प्रतिक्रियाएँ भी आई कि हिन्दी कम्प्यूटर पर लिखना क्या इतना आसान है ? हिन्दी में लिखने के कारण फ़िर तो आपके पाठक और पेजलोड भी ज्यादा होंगे इत्यादि बातें हुईं। कुछ ब्लॉगर्स ने बताया कि हिन्दी पढ़ना उन्हें अच्छा लगता है परंतु हिन्दी में यहाँ ज्यादा कुछ उपलब्ध नहीं है, उन्होंने वादा किया कि अब हम हिन्दी ब्लॉग पढ़ा करेंगे, उन्होंने बताया कि हम तो हिन्दी को केवल हिन्दी दिवस के कारण ही जानते हैं, क्योंकि तब विद्यालय में कार्यक्रम होते थे। उन्होंने यह भी जानना चाहा कि हिन्दी दिवस पर आप लोग तो उत्सव मनाते होंगे, कुछ विशिष्ट कार्यक्रम आयोजित होते होंगे, हमने उन्हें बताया कि हिन्दी लिखने वालों के लिये तो रोज ही हिन्दी दिवस है, पर हिन्दी दिवस पर बहुत सारे साहित्यिक आयोजन किये जाते हैं।

    बहुत सारी टिप्पणियाँ लेने और देने के बाद पूछा गया कि सबसे ज्यादा टिप्पणियाँ किसके पास हैं, और इस प्रकार ज्यादा टिप्पणी पाने वालों को अक्षयपात्र फ़ाऊँडेशन ने बच्चों की तस्वीरें उपहार स्वरूप प्रदान की।

    टिप्पणियों के दौर के बाद अब था बहस का दौर, जिसमें चार समूहों में सारे ब्लॉगर्स को बाँटा गया, पहला समूह मोबाईल ब्लॉगिंग और टिप्स, दूसरा समूह ऑनलाईन उत्पीड़न online harassment, तीसरा समूह ब्लॉग के सामाजिक दायित्व और चौथा समूह इंडिब्लॉगर के बारे में जानकारी का था।

    इसके बाद आखिरी दौर था इंडिब्लॉगर की टीशर्ट वितरण का जिसमें सभी को अपने साईज के अनुसार टीशर्टें दी गई।

    फ़िर वापिस से दिन भर की इस मधुर ब्लॉगर मीट के बाद हम लौट चले अपने घर की ओर..

इंडिब्लॉगर मीट बैंगलोर ब्लॉगरों की ताकत (IndiBlogger.in Meet Bangalore)

    इंडिबस हमारे रूट पर नहीं आई तो हम इंडिब्लॉगर मीट में शिरकत करने बैंगलोर के बस परिवहन से इस्कॉन मंदिर पहुंचे। आयोजन एमवीटी (Multi Vision Theatre) में था और अक्षयपात्र एनजीओ जो कि इस्कॉन चलाता है,के द्वारा प्रायोजित था। अक्षयपात्र अभी लगभग १२ लाख से ज्यादा बच्चों को दोपहर का भोजन स्कूल में शिक्षा के लिये देता है, जिससे शिक्षा के लिये गरीब बच्चे प्रोत्साहित हों।

    अक्षयपात्र वर्ष २००० में शुरु हुआ था, और करीब १५०० बच्चों को खाना प्रायोजित करने से शुरुआत की थी, वर्ष २०२० तक अक्षयपात्र यह संख्या ५० लाख पहुंचाना चाहता है, और यह भारत का सबसे बड़ा एनजीओ है, कुछ दिनों पहले ही अक्षयपात्र के लिये इंडिब्लॉगर पर प्रतियोगिता थी, जिसमें लगभग १८० ब्लॉगरों ने भाग लिया था, जिससे अक्षयपात्र की वेबसाईट पर बहुत ट्रॉफ़िक बड़ गया और उन्होंने ब्लॉगरों के जरिये अपनी बात जन जन तक पहुंचाने की कोशिश की है। पहले एक महीने में अक्षयपात्र की वेबसाईट पर करीबन १५०० नये लोग आते थे, पर इंडिब्लॉगर पर प्रतियोगिता के बाद अब लगभग रोज ही ४००० नये लोग उनकी वेबसाईट देखते हैं।

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    इंडिब्लॉगर मीट का समय अपराह्न १२.३० से ४.३० तय किया गया था, पर दोनों इंडिबसें अपने निर्धारित समय से करीब एक घंटा देरी से आने के कारण मीट लगभग १.३० बजे शुरु की गई, अक्षयपात्र के स्वयंसेवकों ने व्यवस्था बहुत ही अच्छे से संभाली हुई थी, अक्षयपात्र का काऊँटर सर्वप्रथम था और वहाँ पर अक्षयपात्र के बारे में जानकारी उपलब्ध करवायी जा रही थी साथ ही एक बैज भी दिया जा रहा था “I Support Akshaypatra Foundation”| ब्लॉगरों के लिये स्वागत पेय और नाश्ता (समोसे) थे, और अंदर हॉल में प्रवेश करते ही इंडिब्लॉगर का काऊँटर था जहाँ तीन लेपटॉप रखे थे, वहाँ अपना पंजीकृत ईमेल आई.डी. लिखना था जिससे पता चले कि आप इंडिब्लॉगर के सदस्य हैं, हॉल में वाईफ़ाई भी उपलब्ध था, करीब हर दूसरा ब्लॉगर अपना लेपटॉप खोलकर बैठा था, और अपने आसपास वाले ब्लॉगरों से मिल रहा था।

    इंडिब्लॉगर से अनूप माईक पर थे और मीट की शुरुआत में उन्होंने इस्कॉन के वाईस प्रेसीडेन्ट चंचलपति दास से मुखतिब करवाया, चंचलपति दास ने अक्षयपात्र के बारे में बताया और ब्लॉगरों को अक्षयपात्र के लिये लिखने के लिये प्रोत्साहित किया।

    फ़िर शुरु हुआ हॉल ऑफ़ द फ़ेम ३० सेकण्ड का चक्र जिसमें कम्प्यूटर के द्वारा चुने गये ६० ब्लॉगरों को अपना परिचय देना था, सभी ब्लॉगरों का परिचय बहुत मुश्किल था क्योंकि लगभग ३०० ब्लॉगर वहाँ पर उपस्थित थे।

    एक ब्लॉगर जो कि पहले ५ वर्षों तक सॉफ़्टवेयर में नौकरी करते थे, फ़िर दुनिया घूमने के लिये नौकरी छोड़कर अपना शौक पूरा करने निकल पड़े और एक वर्ष में लगभग ११ देश घूम आये और अंतत: धन खत्म होते ही वापिस लौट गये और अब फ़िर से नौकरी की तलाश में हैं, ब्लॉग का नाम भी अच्छा लगा – गूगीगोसग्लोबल |

    एक अन्य ब्लॉगर थे जो कि कविताएँ लिखते हैं तो उन्होंने अपने ब्लॉग पर मल्लिका सेहरावत पर कविता लिखी थी, और काफ़ी चर्चित भी हुई थी, और उन्हें मल्लिका सेहरावत का फ़ोन भी आया था, पूरा हॉल सीटियों से गूँज उठा था।

    एक ब्लॉगर थे अगड़मबगड़म उन्होंने कहा कि मेरे दोस्त मेरी बातें नहीं सुनते थे तो ब्लॉग लिखना शुरु कर दिया अब उन्हें कई लोग पढ़ते हैं।

    हॉल ऑफ़ फ़ेम के बाद हुआ भोजन का दौर, भोजन अक्षयपात्र स्कूल के बच्चों को दोपहर में उपलब्ध करवाता है, भोजन में चावल का एक नमकीन व्यंजन एक मीठा व्यंजन और चिवड़ा था, बहुत ही स्वादिष्ट भोजन था।

जारी..

वाहन जरुरी है बैंगलोर में.. सरकार पर केस लगाते हैं, बैंगलोर को महंगी गैस और मुंबई को सस्ती गैस (Vehicle is must in Bangalore)..

    बैंगलोर आये अभी चंद ही दिन हुए हैं, खैर अब तो यह भी कह सकते हैं कि एक महीना और ४ दिन पूरे हो गये हैं। यहाँ पर आकर सबसे जरूरी चीज लगी कि गाड़ी अपनी होनी चाहिये, मुंबई में लगभग ५-६ वर्ष रहे पर वहाँ गाड़ी की जरुरत कभी महसूस नहीं हुई, क्योंकि वहाँ पर सार्वजनिक परिवहन अच्छा और सस्ता है, वहाँ ऑटो और टैक्सी भी मीटर से चलते हैं, कभी कोई बिना मीटर से चलने के लिये नहीं बोलेगा। मुंबई में रहकर कभी भी ऑटो वाले से संतुष्ट नहीं थे पर अब मुंबई से बाहर आकर उन्हीं की कमी सबसे ज्यादा महसूस कर रहे हैं। कहीं भी जाना हो तो सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर लिया, उसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि आपको कभी खुद वाहन चलाना नहीं पड़ता है, याने कि सारथी फ़्री में :), पास जाना हो तो ऑटो, और दूर जाना हो तो बस या लोकल ट्रेन। बस के स्टॉप भी बराबर बने हुए हैं, और उस स्टॉप पर रुकने वाली बसों के नंबर भी लिखे रहते हैं, और कई स्टॉप पर उनके रूट भी लिखे रहते हैं।

    बैंगलोर में बसें हैं पर स्टॉप गायब हैं, अब जाहिर है कि स्टॉप गायब है तो नंबर भी नहीं होंगे और जब नंबर ही नहीं हैं तो रूट की तो बात बेमानी है। ऑटो वाले तो यहाँ लूटने के लिये बैठे हैं और यहाँ के प्रशासन ने शायद आँखें बंद कर रखी हैं। मेरे घर से बेटे का स्कूल मुश्किल से १ कि.मी. होगा, एक दिन जल्दी में जाना था तो ऑटो से पूछा ६० रुपये थोड़ा बहस करी तो ४० रुपये बोला, उससे कम में जाने को तैयार ही नहीं। कहीं भी आसपास जाना हो या दूर जाना हो तो ऑटो की लूट ही लूट है। यहाँ मीटर से चलने को तैयार ही नहीं होते जबकि ऑटो का किराया यहाँ मुंबई से महंगा है और सी.एन.जी. का भाव लगभग बराबर है।

    मुंबई में पहले १.६ किमी के ११ रुपये और फ़िर हर कि.मी. के लगभग ६.५० रुपये है। और बैंगलोर में पहले २ किमी के १७ रुपये और फ़िर ९ रुपये हर किमी के । एक बार ऐसे ही ऑटो वाले से बहस हो गई तो हमने भी कह दिया कि बैंगलोर तो लुटेरों का शहर है, मुंबई में भी गैस इतनी तो सस्ती नहीं है, तो ऑटो वाला कहता है कि मुंबई में गैस १६ रुपये मिलती है और यहाँ ४० रुपये, हम उससे भिड़ लिये बोले कि भई चलो फ़िर तो अपन “सरकार पर केस लगाते हैं, बैंगलोर को महंगी गैस और मुंबई को सस्ती गैस, इस बात में तो हम तुम्हारे साथ हैं, लाओ तुम्हारा मोबाईल नंबर कल टाईम्स ऑफ़ इंडिया को देंगे तो वो आपका साक्षात्कार लेंगे और तुम्हारा फ़ोटो भी छापेंगे”, तो वो खिसियाती हँसी के साथ चुपके से निकल लिया।

    खैर इस तरह के वाकये तो होते ही रहेंगे अब इसीलिये खुद का वाहन खरीदने के लिये गंभीरता से सोच रहे हैं, वैसे हम इसके सख्त खिलाफ़ हैं, अब हम देश के बारे में नहीं सोचेंगे तो क्या हमारा पड़ोसी सोचेगा। अगर शुरुआत खुद से न की जाये तो ओरों से उम्मीद नहीं की जानी चाहिये, परंतु अब लगता है कि बैंगलोर वाले हमारी इस सोच को बदलने में कामयाब हो गये हैं। समस्या यहाँ पर भी हर जगह पार्किंग की है, चार पहिया पार्किंग के लिये तो यह देखा कि लोग युद्ध ही लड़ते हैं, पर फ़िर भी दो पहिया आराम से कहीं भी कुन्ने काने में घुसा दो, थोड़ी जगह कर लगा दो, दो पहिया में इतनी समस्या नहीं है।

    अभी दो दिन पहले ही पढ़ा था कि सरकार यहाँ साईकिल वालों के लिये विशेष लेन बना रही है, तो हमारे मन में ख्याल आया कि फ़िर तो साईकिल भी ले सकते हैं और मजे में घूम भी सकते हैं, परंतु यह लेन शायद हमारे घर के आसपास कहीं नहीं है, इसलिये फ़िलहाल तो यह भी केवल ख्याल ही रह गया।

    दो पहिया वाहन खरीदने का ज्यादा गंभीरता से विचार कर रहे हैं। वह भी बिना गियर का, अभी तक हमने हांडा की एक्टिवा, महिन्द्रा की डुयोरो, हीरो हांडा की प्लेजर और टीवीएस की वेबो देखी, सबसे अच्छी तो एक्टिवा लग रही है, पर अभी सुजुकी की एक्सेस १२५ देखना बाकी है, और सबसे बड़ी बात उक्त वाहन एकदम उपलब्ध नहीं हैं, ९० दिन की लाईन है, प्रतीक्षा है। बताईये या तो लोग ज्यादा वाहन खरीदने लगे हैं या फ़िर इन कंपनियों की उत्पादन क्षमता कम है, या फ़िर इसमें भी बैंगलोर के लोगों का कमाल है। अभी सोच रहे हैं, देखते हैं कि अगले सप्ताह तक बुकिंग करवा दें और फ़िर वाहन तो ३ महीने बाद ही मिलने वाला है, तब तक ऐसे ही बैंगलोर को कोसते रहेंगे, शायद बैंगलोर वाले पढ़ रहे हों कि एक ब्लॉगर कितनी बुराई कर रहा है बैंगलोर की।

आज इंडिब्लॉगर मीट में जा रहे हैं, फ़िर पता नहीं ऐसे कितने किस्से निकल आयेंगे।

बैंगलोर मेरी नजर से.. मुंबई की तुलना में.. (Bangalore my views.. Comparing with Mumbai)

    मुंबई में ५ से भी ज्यादा वर्ष बिताने के बाद हम अब बैंगलोर आ पहुँचे हैं। मुंबई में इतने वर्षों से रहते हुए मुंबई की काफ़ी चीजों के आदि हो चुके थे जिसमें सबसे बड़ी चीज है “आत्म अनुशासन” (Self Discipline) और भी कई चीजें जैसे ऑटो, टैक्सी, बस और सबसे ज्यादा मुंबईकर जो लोग मुंबई में रहते हैं। मेरी नजर में मुंबईकर बहुत ही अनुशासित नागरिक हैं और शायद ही भारत में आपको उतने अनुशासित नागरिक मिलें।

    हमने पहले से ही बैंगलोर के बारे में बहुत कुछ पढ़ लिया था और जान लिया था कि ज्यादा समस्या न हो, परंतु नेट से मिला ज्ञान सीमित ही होता है, जब व्यवहारिक दुनिया में आते हैं तभी असलियत का सामना होता है।

    तड़के ४ दिसंबर को मुंबई से निकले थे बैंगलोर के लिये ७ बजे के आसपास की उड़ान थी, घर से बाहर निकले और ऑटो किया वह शायद हमारा आखिरी सफ़र था मीटर से ऑटो में बैठने का। उसके बाद बैंगलोर पहुँचे ९ बजे के आसपास, तो वहाँ से निर्धारित रूट की बीआईएएल (BIAL) की बस ली जिसे वायु वज्र भी कहते हैं, जिसका अधिकतम किराया १८० रुपये है, बैंगलोर में हवाईअड्डा हमारे रुकने की जगह से लगभग ४५ कि.मी. है और बस बहुत ही करीब में छोड़ देती है। सबसे अच्छी बैंगलोर की हमें बस सर्विस लगी, फ़िर चाहे वायु वज्र हो या वज्र (वोल्वो बस जो कि बैंगलोर शहर में चलती हैं)।

    सुबह भाई के साथ घर ढूँढने के लिये निकले, तो पता चला कि बैंगलोर में १ महीने पहले घर ढूँढ़ना पड़ता है, यहाँ पहले से ही लोग घर किराये के लिये पक्के कर लेते हैं, मुंबई में भी ऐसा होता है परंतु बहुत कम, आप जब चाहें तब किराये के घर में जा सकते हैं। मुंबई में दलाल २ महीने की दलाली लेता है और यहाँ एक महीने की, वैसे थोड़ा समय हो तो बिना दलाली के भी किराये के घर मिल जाते हैं। आखिरकार पहले ही दिन शाम को हमारा किराये का घर पक्का हो गया जो कि लगभग २० दिन बाद मिलना तय हुआ। यहाँ पर किरायानामा (Rent Agreement) पंजीकृत नहीं करवाया जाता केवल १०० रुपये के स्टाम्प पेपर पर बना लिया जाता है, जबकि मुंबई में पंजीकृत कार्यालय में पंजीकृत करवाना जरुरी है।

    सोमवार की सुबह गेस्ट हाऊस जाना तय हुआ तो ऑटो कम से कम २०० रुपये बिना मीटर के जाने को बोलेंगे, हमारे भाई ने बताया, तो हमने कहा इससे अच्छा तो यह है कि मीटर वाली टैक्सी (मेरु केब) को बुला लिया जाये और निकल लिया जाये, हमने फ़ोन किया और ५ मिनिट में टैक्सी हाजिर हो गई, गेस्ट हाऊस में चेक-इन करने के बाद उसने हमें अपने ऑफ़िस भी छोड़ दिया और कुल २२२ रुपये का मीटर बना, और अगर अलग से ऑटो करते तो गेस्ट हाऊस से ऑफ़िस जाने के ७० रुपये ले लेते।

    इसी बीच परिवार को भी मुंबई से ले आये और ऑटो वालों का गजब ही हाल था, मात्र १ किमी के कम से कम ४० रुपये माँगते हैं और ३ किमी के ७० रुपये, इससे तो अच्छे मुंबई के ऑटो थे कम से कम मीटर से तो चलते हैं। यहाँ पर एक नई चीज मिली जिसको देखो वह टिप माँगता मिलता है, जैसे कि भुखमरी फ़ैली हो, कोई भी समान रखने आये या कुछ सर्विस देने तो ऊपर से टिप जरुर मांगता है, जबकि मुंबई में ऐसा कुछ नहीं है।

    बैंगलोर के बारे में अच्छी बात लगी कि वज्र वोल्वो बस की सर्विस हर २-३ मिनिट में है, जिस रुट में हम रहते हैं, और कहीं भी हाथ दो तो रुक जाती है, वह शायद इसलिये क्योंकि बैंगलोर में बस के स्टॉप कहाँ हैं, पता ही नहीं चलता क्योंकि बहुत ही कम जगह पर चिह्नित किया हुआ है, नहीं तो नये लोगों के लिये तो बहुत परेशानी है। जबकि मुंबई में बस के रुकने के स्टॉप चिह्नित कर उसपर रुट नंबर भी लिखा रहता है, बस वहाँ केवल स्टॉप पर ही रुकती है, हाथ देने पर तो बिल्कुल नहीं रुकती।

    अभी तो बहुत कुछ बाकी है, यह अभी तक का मेरा अच्छा अनुभव रहा बैंगलोर में और उम्मीद है कि बैंगलोर के लोग मेरी यह धारणा बदलने नहीं देंगे कि बैंगलोर के लोग बहुत अच्छे हैं।