आज श्रीमदभागवत कथा सुन रहे थे, तो उसमें एक प्रसंग था जब कृष्णजी इन्द्र के प्रकोप की बारिश से बचाने के लिये गोकुलवासियों के लिये गोवर्धन पर्वत को अपनी चींटी ऊँगली याने कि सबसे छोटी ऊँगली से तीन दिनों तक उठा लेते हैं, तो गोकुलवासी भी पर्वत को उठाने में अपने सामर्थ्य अनुसार योगदान करते हैं, कोई अपने हाथों से पर्वत को थामता है तो कोई अपनी लाठी पर्वत के नीचे टिका देता है। इस तरह से तीन दिन बीत जाते हैं, तो गोकुल वासी कृष्णजी से पूछते हैं “लल्ला तुमने तीन दिन तक कैसे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया ?” अब कृष्णजी कहते कि मैं भगवान हूँ कुछ भी कर सकता हूँ तो गोकुलवासी मानते नहीं, इसलिये उन्होंने कहा कि “आप सब जब पर्वत के नीचे खड़े थे और सब मेरी तरफ़ देख रहे थे, तो मेरे शरीर को शक्ति मिल रही थी और उस शक्ति को मैंने अपनी चीटी यानी कि छोटी ऊँगली को देकर इस पर्वत को उठा रखा था” तो भोले भाले गोकुल वासी बोले “अरे ! लल्ला तबही हम सोच रहे हैं कि हम सभी को कमजोरी क्यों लग रही है ।”
अब यह तो हुआ कृष्णजी के जमाने का प्रसंग अब अगर यही आज के जमाने में हुआ होता तो सबसे पहले तो उनको अस्पताल ले जाया जाता और पता लगाया जाता कि “लल्ला” में इतनी ताकत कैसे आई और इतना बड़ा पर्वत उठाने पर भी एक फ़्रेक्चर भी नहीं आया। फ़िर विरोधी पक्ष सदन में हल्ला मचाता कि इतनी मुश्किल से इंद्र देवता ने बारिश की थी और ई लल्ला ने ऊ सब पानी बहा दिया फ़िर सबही चिल्लाते हैं कि पानी की प्रचंड कमी है।
और जो जबाब कृष्ण जी ने गोकुलवासियों को दिया था वही जबाब आज देते तो सब उनके पीछे पड़ जाते कि ई लल्ला ने किया ही क्या है, हमारी सबकी थोड़ी थोड़ी ताकत का उपयोग करके ई छॊटा सा पराक्रम कर दिया अब इस ताकत के बदले में हम सबको अनुदान दिया जाये और इस लल्ला के विरुद्ध एक जाँच कमेटी बनायी जाये कि इस लल्ला ने कौन कौन से पराक्रम किस किस की ताकत का उपयोग करके किये हैं।
वाकई भगवान श्रीकृष्ण अपना माथा ठोक लेते ….. ।