कुल्लू मनाली और बर्फ़ के पहाड़ों की सैर
बस की १४ घंटे की लंबी यात्रा के बाद बहुत थकान थी पर चारों तरफ़ देवदार के वृक्ष और बर्फ़ के पहाड़ देखकर थकान कुछ हल्की हुई। होटल ने पिकअप के लिये टेक्सी भेजी थी हम उसमें सवार हो लिये और फ़टाफ़ट नाश्ता कर, तैयार होकर थोड़ी देर आराम करने का प्लान किया आँख खुली दोपहर एक बजे और फ़िर चल पड़े लोकल साईटसीन पर।
सबसे पहले तो हमने माल रोड पर दोपहर का खाना खाया और फ़िर चल पड़े वन्य विहार, जहाँ पर देवदार के ऊँचे पेड़ और बच्चों के झूले थे। हमारे बेटेलाल ने खूब तो झूले झूले और ठंडी हवा का आनंद लिया। वहीं पर एक छोटा सा वोटिंग क्लब भी था।
फ़िर गये मोनेस्ट्री, बुद्ध भगवान का मंदिर। जिंदगी में पहली बार मैं किसी बोद्ध मोनेस्ट्री में था और बहुत ही अलग अनुभव था। मंदिर के दरवाजे के खंबों पर ड्रेगन बने हुए थे। भगवान बुद्ध की प्रतिमा बहुत ही अच्छी लग रही थी।
वहाँ से गये वशिष्ठ मंदिर जहाँ पर ऋषि वशिष्ठ ने तपस्या की थी और अर्जुन ने यहां पर गुस्से में तीर मारकर गरम पानी का स्रोत निकाला था। कहते हैं कि इस पानी में नहाने से त्वचा संबंधी सारे रोग खत्म हो जाते हैं। रास्ते में वूलन वाले आवाज लगाते रहे चिंगू देख लो, हम भी एक दुकान पर देखने लगे चिंगू के कंबल देखे और बताया कि चिंगू एक बर्फ़ में रहने वाला प्राणी है जो कि आजकल बहुत ही दुर्लभ है अब उसके बालों को काट कर ये कंबल बुने जा रहे हैं ना कि मारकर ऐसा हमें बताया गया, ये सर्दी में गरम और गर्मी में ठंडे होते हैं और साथ में ५ आइटम फ़्री थे। पर चूंकि हमें कंबल लेना ही नहीं था इसलिये हम निकल लिये। वहां पर एक बहुत ही आश्चर्य़जन चीज देखने को मिली, छोटे छोटे ढाबों पर भारतीय व्यंजन नहीं, बाहर देशों के व्यंजनों के नाम लिखे हुए थे।
फ़िर निकल पड़े हिडिम्बा मंदिर जो कि भीम की पत्नी थीं वहां पर हिडिम्बा के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं और कहते हैं कि हिडिम्बादेवी के बिना मनाली का दशहरा पूरा नहीं हो सकता। मंदिर के बाहरी दीवार पर तरह तरह के सींग लगे हुए थे। वहीं पर घटोत्कच का एक मंदिर भी है। यहां पर हमने पहली बार याक देखे आज तक केवल फ़ोटो में ही देखे थे।
फ़िर निकल पड़े होटल आराम करने क्योंकि अगले दिन रोहतांग पास बर्फ़ के पहाड़ देखने के लिये सुबह ६ बजे निकलना था।