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वैदिक स्टाईल ऑफ़ मैनेजमेन्ट
आज सायंकालीन सैर के साथ हम सुन रहे थे गोविंद प्रभू का लेक्चर वैदिक स्टाईल ऑफ़ मैनेजमेन्ट। जिसमें उन्होंने क्षत्रिय और ब्राह्मण के गुण बताये हैं।
आज फ़िर सायंकालीन सैर के लिये हम निकल पड़े मरीना बीच की ओर, फ़िर वहाँ समुद्र के किनारे लहरों को देखते हुए घूम रहे थे और जहाँ जनता थोड़ी भी कम होती थी वहीं युगलों की जुगत जमी रहती थी और युगल समुन्दर के किनारे एक दूसरे के आगोश में, एक दूसरे की बाँहों में, और भी न जाने कैसे कैसे बैठे थे जिससे बस वह अपने साथी के ज्यादा से ज्यादा समीप आ सके। खैर यह तो सभी जगह होता है कोई नई बात नहीं है।
फ़िर जब वापिस आने को हुए तो लेक्चर खत्म हो चुका था और एफ़.एम. पर गाने सारे तमिल भाषा में आ रहे थे, जो कि अपनी समझ से बाहर थे तो अपनी एम.पी.३ लिस्ट पर नजर डाली तो गुलाल के गाने नजर आये, बस मन चहक उठा, “मन बोले चकमक ओये चकमक, चकमक चकमक”, “रानाजी मोरे गुस्से में आये ऐसे बलखाये आय हाय जैसे दूर देश के टॉवर में घुस जाये रे ऐरोप्लेन” ।
चैन्नई मरीना बीच पर सुबह की तफ़री और समुद्र के कुछ फ़ोटो..
वैसे तो आजकल सुबह शाम घूमना बहुत जरुरी हो गया है, क्योंकि अब घूमना भी मजबूरी है, पसीना बहाओ, जितना हो सके और अपना वजन कम करो, अब चैन्नई में हैं तो आज सुबह का घूमना हमने मरीना बीच जाना तय किया और कुछ फ़ोटो भी निकाले। सुबह लोग समुद्र के पानी में लहरों के साथ मस्ती कर रहे थे, तो अनायास ही मुझे अपने बेटे की याद आ गयी, उसे भी ये अठखेलियाँ करना बहुत पसंद है, किनारे पर नावों का जमावाड़ा लगा था, वे नावें अपने नाविकों का इंतजार कर रहीं थीं।
देखिये और बाकी सुबह घूमने का आनंद और सुख केवल वही जान सकते हैं जो सुबह घूमने जाते हैं, सार्वजनिक करना ठीक नहीं है 🙂
पहला दिन था अंदाजा ही नहीं लगा कि कितनी दूर आ गये हैं वहीं से पता लगाकर बस पकड़कर वापिस आ गये, तो उस बस के टिकट का भी फ़ोटो चस्पा दिये हैं, और साथ ही आजकल छावा पढ़ रहे हैं, जब भी जैसे भी समय मिल जाता है तो पढ़ते रहते हैं।
चैन्नई मरीना बीच पैदल ही नाप दिया…
अभी परसों की ही बात है शाम को जरा जल्दी होटल आ गये तो सोचा चलो मरीना बीच ही घूम आते हैं, अपने होटल पर रेसेप्शन पर पूछा कि मरीना बीच किधर है और कितनी दूर है, तो जबाब मिला यहाँ से सीधा रोड मरीना बीच को ही जाता है, पर लगभग ३ किलोमीटर है, हमने कहा फ़िर तो पैदल ही जा सकते हैं, तो रेसेप्शनिस्ट हमारा मुँह देखने लगा कि इतनी दूर पैदल ही जा रहे हैं। हमने कहा अरे भई हमें आदत है हम निकल लेंगे पैदल ही।
पैदल ही निकल लिये और पैदल जाने का एक और मकसद था कि कोई और खाने के लिये अच्छा सा रेस्त्रां मिल जाये, तो हमें फ़िर पास में ही सरवाना भवन मिल गया जो कि शायद चैन्नई का सबसे बड़ा उनका रेस्त्रां है। खैर करीबन आधे घंटे में हम मरीना बीच पहुंच गये, इतना बड़ा और लंबा मरीना बीच हम बहुत दिनों बाद देख रहे थे, मुंबई में तो जुहु बीच बहुत ही छोटा लगता है इसके सामने।
समुद्र का पानी हमारे पास हिलोरे मारता हुआ आ रहा था, और हम भी रेत में नंगे पैर अपने सेंडल हाथ में लिये घूम रहे थे, बहुत मजा आ रहा था, ठंडी हवा थी, और लहरों का शोर।
बहुत सारे स्टाल लगे हुए थे जिसमें कुछ पर मुंबई चाट और कुछ पर चैन्नई चाट लिखा था, पर हमारा वहाँ कुछ खाने का मन नहीं था तो वापिस हम चल दिये अमरावती रेस्त्रां के लिये, जहाँ फ़िर हमने वही आन्ध्रा स्टाईल चावल की थाली खाई। कुछ भी कहिये मन नहीं भरा वह थाली खाकर, अभी फ़िर खाने की तमन्ना है।
अब किसी दिन फ़ुरसत से शाम के समय मरीना बीच जायेंगे और फ़िर शाम के समय के दीदार की बातें बतायेंगे।