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मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… आगे …१..सीट पर कब्जा कैसे करें (Mumbai Experience of Best Bus)

पिछली पोस्ट को ही आगे बढ़ाता हूँ, एक सवाल था “कंडक्टर को मुंबईया लोग क्या कहते हैं।” तो जबाब है – “मास्टर” ।

अगर कभी टिकट लेना हो तो कहिये “मास्टर फ़लाने जगह का टिकट दीजिये”, बदले में मास्टर अपनी टिकट की पेटी में से टिकट निकालेगा, पंच करेगा और बचे हुए पैसे वापिस देगा, फ़िर बोलेगा “पुढ़े चाल” मतलब आगे बढ़ते जाओ।

जैसे हमारे देश में आरक्षण है वैसे ही बेस्ट बस में आरक्षण को बहुत अच्छॆ से देखा जा सकता है, ४९ सीट बैठने की होती है, जिसमें उल्टे हाथ की पहली दो सीटें विकलांग और अपाहिज और फ़िर उसके बाद की दो सीट ज्येष्ठांचा लोगों के लिये आरक्षित होती हैं, सीधे हाथ की तरफ़ तो महिलाओं के लिये ७ सीटें आरक्षित होती हैं। याने कि लगभग ५०% आरक्षण बस में, जैसे हमारे देश में।

अनारक्षित सीटों पर महिलाओं और ज्येष्ठ लोगों को बैठने से मनाही नहीं है, अब बेचारा आम आदमी इस आरक्षण में पिस पिस कर सफ़र करता रहता है।

अभी कुछ दिनों पहले एक ए.सी. बस में चढ़े तो अनारक्षित सीटों पर महिलाएँ काबिज थीं और महिलाओं की आरक्षित सीटें खाली थीं, सब महिलाएँ भी पढ़ी लिखी सांभ्रांत परिवार की थी जिन्हें शायद महिलाओं के लिये चिन्हित सीटों की समझ तो होगी ही, परंतु फ़िर भी न जाने क्यों, आम आदमी की सीट पर कब्जाये बैठी थीं, हमारे जैसे ३-४ आमजन और खड़े थे, मास्टर को बोला कि इन आरक्षण वर्ग को इनकी सीटों पर शिफ़्ट कर दें तो हम भी बैठ जायेंगे, बेचारा मास्टर बोला कि इनको कुछ बोलने जाऊँगा तो ईंग्रेजी में गिटीर पिटिर करके अपने को चुप करवा देंगी, और ये तो रोज की ही बात है।

अब बताईये महिला शक्ति से कोई उलझता भी नहीं, वे सीटें खाली ही रहीं जहाँ तक कि हमें उतरना था, और उन सीटों पर बैठना हमें गँवारा न था, कि कब कौन सी महिला कौन से स्टॉप पर चढ़ जाये और अपनी आरक्षित सीट की मांग करने लगे, इससे बेहतर है कि खड़े खड़े ही सफ़र करना।

जब महिलाओं को समान अधिकार दिये जा रहे हैं, तो ये आरक्षण क्यों, फ़िर भले ही वह सत्ता में हो या फ़िर बस में या फ़िर ट्रेन में…। खैर हम तो ये मामला छोड़ ही देते हैं, भला नारी शक्ति से कौन परिचित नहीं है.. और फ़िर इस मामले में सरकार तक गिर/झुक जाती हैं… तो हम क्या चीज हैं।

बेस्ट की बस में निर्देशित होता है कि आगे वाले दरवाजे से केवल गरोदर स्त्रियाँ, ज्येष्ठ नागरिक और अपंग ही चढ़ सकते हैं। वैसे कोई कुछ भी कहे बेस्ट की बसें और उसकी सर्विस बेस्ट है।

यह वीडियो देखिये जिसमें प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि बेस्ट की बसों में कैसे सीट पर कब्जा किया जाये –

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण (Mumbai experience of BEST Bus)

    कुछ दिनों से बस से ऑफ़िस जा रहे हैं, पहले पता ही नहीं था कि बस हमारे घर की तरफ़ से ऑफ़िस जाती है। बस के सफ़र भी अपने मजे हैं पहला मजा तो यह कि पैसे कम खर्च होते हैं, और ऐसे ही सफ़र करते हुए कितने ही अनजान चेहरों से जान पहचान हो जाती है जिनके नाम पता नहीं होता है परंतु रोज उसी बस में निर्धारित स्टॉप से चढ़ते हैं।

    पहले ही दिन बस में बैठने की जगह मिली थी और फ़िर तो शायद बस एक बार और मिली होगी, हमेशा से ही खड़े खड़े जा रहे हैं, और यही सोचते हैं कि चलो सुबह व्यायाम नहीं हो पाता है तो यही सही, घर से बस स्टॉप तक पैदल और फ़िर बस में खड़े खड़े सफ़र, वाह क्या व्यायाम है।

    बस में हर तरह के लोग सफ़र करते हैं जो ऑफ़िस जा रहे होते हैं, स्कूल कॉलेज और अपनी मजदूरी पर जा रहे होते हैं, जो कि केवल उनको देखने से या उनकी बातों को सुनने के बाद ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

    कुछ लोग हमेशा बैठे हुए ही मिलते हैं, रोज हुबहु एक जैसी शक्लवाले, लगता है कि जैसे सीट केवल इन्हीं लोगों के लिये ही बनी हुई है, ये रोज डिपो में जाकर सीट पर कब्जा कर लेते होंगे।

    बेस्ट की बस में सफ़र करना अपने आप में रोमांच से कम भी नहीं है, कई फ़िल्मों में बेस्ट की बसें बचपन से देखीं और अब खुद ही उनमें घूम रहे हैं।

    बेस्ट की बसों में लिखा रहता है लाईसेंस बैठक क्षमता ४९ लोगों के लिये और २० स्टैंडिंग के लिये, परंतु स्टैंडिंग में तो हमेशा ऐसा लगता है कि अगर यह वाहन निजी होता तो शायद रोज ही हर बस का चालान बनता, कम से कम ७०-८० लोग तो खड़े होकर यात्रा करते हैं, सीट पर तो ज्यादा बैठ नहीं सकते परंतु सीट के बीच की जगह में खड़े लोगों की ३ लाईनें लगती हैं।

बातें बहुत सारी हैं बेस्ट बस की, जारी रहेंगी… इनकी वेबसाईट भी चकाचक है और कहीं जाना हो तो बस नंबर ढूँढ़ने में बहुत मदद भी करती है… बेस्ट की साईट पर जाने के लिये चटका लगाईये।

एक गाना याद आ गया जो कि अमिताभ बच्चन पर फ़िल्माया गया था –

आप लोगों के लिये एक सवाल कंडक्टर को मुंबईया लोग क्या कहते हैं।

मुंबई की बारिश, जीवन अस्त व्यस्त है, बारिश बड़ी मस्त है, बारिश के बहाने जीवन की कुछ बातें.. (Rain in Mumbai)

    मुंबई में आज लगातार तीसरा दिन है बारिश का, वो भी झमाझम बारिश का। पारिवारिक मित्रों के साथ सप्ताहांत पर बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया गया था परंतु बारिश ने सब चौपट कर दिया सुबह से ही बारिश ऐसी जमी कि सब चौपट हो गया। जाना भी दूर था सोचा कि अगर अकेले होते तब तो कोई बात ही नहीं थी, परंतु साथ में बीबी और बच्चा हालत खराब कि कहीं कोई विकेट डाउन न हो जाये, क्योंकि अगले दिन बेटे को स्कूल भी जाना था।
    बारिश भी ऐसी की छतरी भी फ़ेल है, इस बारिश के सामने !! बारिश की फ़ुहारें कभी हल्की कभी तेज और हवा चारों तरफ़ से चलती हुई, छतरी होते हुए भी पूरे भीगे हुए, और जब ऑफ़िस पहुँच जायें तो एक दूसरे को देखें कि “अरे सूखे कैसे आ गये !”
    आज सुबह की ही बात थी, ऑफ़िस पहुँचे वो भी पूरे हल्के से गीले, भीगे हुए, धीमी धीमी बौछारों से, छतरी भी पूरी तरह से बारिश के पानी से तरबतर, लिफ़्ट में गये तो लिफ़्ट में भी ऐसा लगा कि आधा इंच पानी भरा हुआ है, वैसे तो हम रोज ही सीढ़ियों का उपयोग करते हैं, परंतु बारिश में जोखिम नहीं ले सकते क्योंकि सभी जगह फ़िसलन होती है, कब कहाँ रपट जायें कुछ कहा नहीं जा सकता।
    वैसे आजकल मोबाईल पर एस.एम.एस. आ जाते हैं कि फ़लाने समय पर हाईटाइड है, कभी मुंबई पोलिस से कभी हिन्दुस्तान टाईम्स से, पर मुंबई को बारिश से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, मुंबई की रफ़्तार कम नहीं होती, तभी तो कहते हैं, “ई है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ”।
    बारिश की बात की जाये और गाना न हो तो मजा ना आये, ये देखिये “आज रपट जायें तो हमें न उठइयो”।
    शाम घर के लिये निकलते समय फ़िर बारिश जोरों से आ गई वो भी चारों तरफ़ हवाओं के साथ, बारिश में मुंबई के ट्राफ़िक की हालत बिल्कुल खराब होती है, बड़ी मुश्किल से २५-३० मिनिट बाद ऑटो मिला, सड़क पर गड्डे जिनमें बारिश का शुद्ध पानी भरा हुआ था, पता ही नहीं चलता कि वाहन निकल जायेगा या फ़ँस जायेगा। रास्ते में एक जगह ऐसी पड़ती है जहाँ सड़क के बीचों बीच में सीवर का ढ़क्कन है, और दो दिनों से उसमें से पानी निकलता हुआ देख रहा हूँ, ऐसा लगता है कि जमीन में से फ़व्वारा फ़ूटा हुआ है। वाह रे दरिया से घिरे हुए मुंबई जिसके चारों ओर दरिया हो और अब बीच शहर में भी दरिया जैसा ही हो रहा है।
    घर आकर फ़िर बाजार जाना हुआ तो सड़क की दुर्दशा देखकर मन बैचेन हो गया और कुछ कविता करने को मन मचलने लगा, दो ही पंक्ति बन पाईं, और भी बनी थीं पर घर आते आते भूल गया –
“जीवन अस्त व्यस्त है
बारिश बड़ी मस्त है”
    सड़क पर बने गड़्ड़ो को लांघते हुए निकल रहे थे, तो ऐसा लग रहा था कि ऐसे ही जाने कितने गड्ड़े अपने जिंदगी में भी बने हुए हैं जिनको लांघकर हम निकल लेते हैं और जब वह गड्ड़ा बड़ा होता है तो उसमें पैर रखकर आगे बढ़ना ही होता है बस वैसे ही जिंदगी की कुछ मुश्किलें जिन्हें हम लांघ नहीं पाते, उन मुश्किलों में से निकलना ही पड़ता है। और एक बार जब जूता गीला हो जाता है फ़िर हम बारिश के पानी से भरे गड्ड़ों की परवाह न करते हुए फ़टाफ़ट अपनी मंजिल पर पहुँच जाते हैं वैसे ही जिंदगी के साथ भी होता है, मुश्किलें सहते सहते हमें उनकी आदत पड़ जाती है और हम अपनी जिंदगी में उन मुश्किलों की परवाह किये बिना आगे बड़ते रहते हैं, कभी बुझे मन से कभी प्रफ़ुल्लित होकर अच्छे मन से, केवल समय का फ़र्क होता है।
    एक मुहावरा जो कि पत्नी जी के मुँह से कई बार सुन चुके थे आज फ़िर से सुना “ऐसा लगा कि कोई आज खरहरी खाट से सोकर उठा है”।

मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल के दर्शन और रक्षाबंधन पर सवा लाख लड्डुओं का भोग ४ (Travel from Mumbai to Ujjain 4, Mahakal Darshan)

    सुबह उठते ही नई उमंग थी क्योंकि आज रक्षाबंधन था, कोई बहन नहीं है परंतु खुशी इस बात की थी कि हमारे बेटेलाल की अब बहन घर में आ गई थी और उसने राखी भेजी थी, एक त्यौहार जो हमने कभी मन में तरंग नहीं जगा पाता था वह त्यौहार अब हमारे घर में सबको तरंगित करता है।

    पापा की बहनें हैं और उनकी ही राखियाँ हम भी बाँध लेते हैं, क्योंकि हमें भी भेजी जाती हैं। देखिये राखी के कुछ फ़ोटो और साथ में मिठाई –

Rakhi aur Mithai Harsh aur mere papaji

    फ़िर चल दिये महाकाल के दर्शन करने के लिये, महाकाल पहुँच कर पता चला कि बहुत लंबी लाईन है और ज्यादा समय लगेगा, हमारे पास समय कम था क्योंकि शाम को वापिस मुंबई की ट्रेन भी पकड़नी थी। हमने पहली बार विशेष दर्शन के लिये सोचा जो कि १५१ रुपये का था, और वाकई मात्र ५ मिनिट में बाबा महाकाल के सामने थे, १५१ रुपये के विशेष दर्शन के टिकट से हम तीनों ने दर्शन किये और धन्य हुए। अटाटूट भीड़ थी महाकाल में।

Mahakal bahar se darshan

    महाकाल में रक्षाबंधन पर्व पर सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया जाता है और हरेक दर्शनार्थी को एक लड्डू का प्रसाद दिया जाता है। यह परंपरा हम सालों से देखते आ रहे हैं, जब भी रक्षाबंधन पर उज्जैन होते हैं तो दर्शन करने जरुर जाते हैं और साथ ही लड्डुओं का प्रसाद लेने भी। ये वीडियो फ़ोटो देखिये सवा लाख लड्डुओं के भोग का –

Mahakal sava lakh ladduo ka bhog Mahakal sawa lakh ladduo ka bhog

जय महाकाल

ऊँ नम: शिवाय !

मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल की चौथी सवारी और श्रावण मास की आखिरी सवारी 3 (Travel from Mumbai to Ujjain 3, Mahakal Savari)

    जब हमने उज्जैन जाने का कार्यक्रम बनाया था तभी यह सोच लिया गया था कि बाबा महाकालेश्वर की चौथी सवारी और जो कि श्रावण मास की आखिरी सवारी भी होगी, के दर्शन अवश्य किये जायेंगे।
    सायं ४ बजे महाकाल की सवारी महाकाल मंदिर से निकलती है जो कि गुदरी चौराहा, पानदरीबा होते हुए रामघाट पहुँचती है, फ़िर रामानुज पीठ, कार्तिक चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार होते हुए वापिस महाकाल मंदिर शाम ७ बजे पहुँचती है।
    बाबा महाकाल अपनी प्रजा के हाल जानने के लिये नगर में निकलते हैं, और प्रजा तो उनकी भक्ति में ओतप्रोत पलकें बिछाये इंतजार करती रहती है। पूरा उज्जैन शहर बाबा महाकाल में रमा रहता है। आसपास से गाँववाले पूरी श्रद्धा के साथ उज्जैन शहर में डेरा डाले रहते हैं। उज्जैन में महाकाल की भक्ति की बयार बहती है, हवा से भी केवल महाकाल का ही उच्चारण सुनाई देता है।
    इस बार मैंने अपने मोबाईल से कुछ फ़ोटो और वीडियो लिये हैं, आप भी बाबा महाकाल की सवारी के दर्शन कीजिये और जय महाकाल बोलिये ।
फ़ोटो –
Mahakal Savari Gopal Mandir
गोपाल मंदिर पर श्रद्धालुओं का जत्था
at Mahakal Savari Ujjain Vivek Rastogi and Harsh Rastogiगोपाल मंदिर पर हम अपने बेटेलाल के साथ
वीडियो –

 

 

गोपाल मंदिर का एक दृश्य

 

 

 

 

इन वीडियो मॆं पूरी महाकाल की सवारी का आनंद लिया जा सकता है।
जय बाबा महाकाल
ऊँ नम: शिवाय !

मुंबई से उज्जैन यात्रा सीट पर पहुँचते ही १५ वर्ष पुरानी यादें ताजा हुईं 2 (Travel from Mumbai to Ujjain 2)

पिछला विवरण निम्न पोस्ट की लिंक पर चटका लगाकर पढ़ सकते हैं।

मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    बोरिवली से हमारी ट्रेन का सही समय वैसे तो ७.४२ का है परंतु हमने कभी भी इसे समय पर आते नहीं देखा है, जयपुर वाली ट्रेन का समय ठीक १५ मिनिट पहले का है, वह अवन्तिका के समय पर आती है, और फ़िर एक लोकल विरार की और फ़िर लगभग ८.०० बजे अवन्तिका आती है।

    इतनी भीड़ रहती है कि प्लेटफ़ार्म पर समझ ही नहीं आता कि कैसे थोड़ा समय बिताया जाये। अपने समान पर ध्यान रखने में और अगर बच्चा साथ में हो तो उसके साथ तो वक्त कैसे बीतता है समझ सकते हैं।

पुरानी एक पोस्ट की भी याद आ गई – “ऐ टकल्या”, विरार भाईंदर की लोकल की खासियत और २५,००० वोल्ट

    हमारे मित्र साथ में जा रहे थे, तो उन्होंने बेटेलाल को आम के रस वाली एक बोतल दिला दी, और एक कोल्डड्रिंक ले आये, बस पहले हमारे बेटेलाल ने सबके साथ पहले कोल्डड्रिंक साफ़ किया वह भी भरपूर ड्रामेबाजी के साथ, और फ़िर अपनी आम के रस वाली बोतल, बेटेलाल ने आसपास के इंतजार कर रहे यात्रियों का जमकर मनोरंजन किया।

    जयपुर वाली ट्रेन आ गई, और राखी की छुट्टी के कारण यात्रियों की भीड़ का रेला ट्रेन पर टूट पड़ा, २-३ मिनिट बाद चली ही थी कि एकदम किसी ने चैन खींच दी, तो जैसी आवाज आ रही थी उससे हमें साफ़ पता चल रहा था कि वातानुकुलित डिब्बे में से चैन खींची गई है। दो सिपाही दौड़कर देखने गये, तभी हम देखते हैं कि एक दंपत्ति अपने दो बच्चों के साथ दौड़ा हुआ आ रहा है और कुली उनका सूटकेस लेकर दौड़ा हुआ आ रहा है, इतनी देर में वे सामने ही वातानुकुलित डिब्बे में चढ़ गये, तभी ट्रेन चल पड़ी, हमें संतोष हुआ कि चलो कम से कम ट्रेन नहीं छूटी।

    फ़िर एक विरार लोकल आयी, धीमी बारिश जारी थी पर विरार वाले हैं कि मानते ही नहीं, मोटर कैबिन के बंद दरवाजे पर भी दो लोग लटके हुए जाते हैं, दो डब्बे के बीच में ऊपर चढ़ने के लिये एंगल होते हैं, उस पर भी चढ़ कर जायेंगे, और एक दो लोग तो छत पर भी चढ़ जायेंगे अपनी श्यानपत्ती दिखाने के चक्कर में, जबकि सबको पता है कि छत पर यात्रा करना मतलब सीधे २५ हजार वोल्ट के तार की चपेट में आना है।

बेटेलाल

बेटेलाल का ट्रेन में खींचा गया फ़ोटो

    अब हमारा इंतजार खत्म हुआ, अवन्तिका एक्सप्रेस हमारे सामने आ पहुँची, ऐसा लगा कि हमारे डब्बे में सब बोरिवली से ही चढ़ रहे हैं, कुछ लोग मुंबई सेंट्रल से भी आये थे पर बोरिवली से कुछ ज्यादा ही लोग थे। जैसे तैसे चढ़ लिये और अपने कूपे में पहुँचकर समान जमाने लगे।

    हमारी चार सीट थीं, और दो लोग पहले से ही मौजूद थे, एक भाईसाहब और एक लड़की, भाईसाहब हमसे ऊपर वाली सीट लेकर सोने निकल लिये, हम लोग बैठकर बात कर रहे थे, तो हमने ऐसे ही एक नजर लड़की की तरफ़ देखा तो लगा कि इसे कहीं देखा है, पर फ़िर लगा कि शायद नजरों का धोखा हो, पर वह लड़की भी हमें पहचानने की कोशिश कर रही थी, ऐसा हमें लगा।

    फ़िर अपनी भूली बिसरी स्मृतियों के अध्याय को टटोलने लगे और साथ में बात भी कर रहे थे, फ़िर थोड़ी देर बाद याद आ गया कि अरे ये तो १५ वर्ष पुरानी बात है, पर ऐसा लग रहा था कि कल की ही बात हो, वह शायद हमारे परिवार को देखकर बात करने में संकोच कर रही थी, हमने अपनी पत्नी और मित्र को बताया कि यह लड़की १५ वर्ष पहले हमारे साथ पढ़ती थी, पर हमें नाम याद नहीं आ रहा है, और इसकी बड़ी बहन बड़ौदा में रहती है, जो कि मिलने भी आयेगी। ये दोनों हमें बोले कि जाओ फ़िर बात करो हमने सोचा छोड़ो कहाँ अपने परिवार और मित्र के सामने पुरानी बातों को उजागर किया जाये, वो भी सोचेगी कि पता नहीं क्या क्या बात होगी, तो इसलिये हमने बात ही नहीं की।

    १५ वर्ष पुराने पहचान वाले आसपास बिल्कुल अंजान बनकर बैठे रहे, बड़ौदा आया और उनकी बहन मिलने भी आयीं, शायद वे भी उज्जैन आ रही थीं परंतु पूना वाली ट्रेन से, जो कि इसके १५ मिनिट पीछे चलती है। बिना बात किये हम उज्जैन में उतर गये। परंतु एकदम १५ वर्ष पुराने दिन ऐसे हमारी नजरों के सामने घूम गये थे जैसे कि कल की ही बात हो।

मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    सुबह से मौसम कुछ ठीक था, मतलब की बारिश दिनभर रुकी हुई थी पर बादल सिर पर मँडरा ही रहे थे और बादल सामान्यत: बहुत ही नीचे थे। शाम के समय हमें उज्जैन जाने के लिये ट्रेन पकड़ना थी, और छ: बजे से ही वापिस से मुंबई श्टाईल में जोरदार बारिश शुरु हो गई। बोरिवली जाने के लिये हम ऑटो अपनी ईमारत के अंदर ही बुलवा लाये। जिससे कम से कम यहाँ तो न भीगना पड़े।

    बोरिवली स्टेशन जाते समय पश्चिम द्रुतगति मार्ग (Western Express Highway)  से होते हुए जाना होता है और हमने द्रुतगति मार्ग की जो दुर्गति देखी हमें ऐसा लगा कि हमारा हिन्दुस्तान और यहाँ के इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने वाले कभी सुधर ही नहीं सकते। इतने गड्ढ़े देखकर हमें फ़िल्म “खट्टा मीठा” याद हो आई। जिसमें भ्रष्टाचार का खुला रुप दिखाया गया है। यह संतोष है कि जहाँ पर भी कांक्रीट की सड़कें बनी हुई हैं, कम से कम वे तो ठीक हैं, क्योंकि वो देखने पर लगता है कि १२-१४ इंच की बनती हैं, पर डामर की सड़कें तो सुभानअल्लाह, जहाँ थोड़ा पानी बरसा और सड़कें गड्ढ़े से सारोबार। गाड़ी चलाते समय खुद को बचा सको तो बचा लो नहीं तो बस अपनी जान पर आफ़त ही समझो, इसको ऐसा कह सकते हैं कि जान हथेली पर लेकर चलना।

    बोरिवली पहुँचते पहुँचते ऐसे बहुत से गड्ढों से गुजरना पड़ा, और कई जगह तो सड़कों पर १-२ इंच तक पानी जमा था । हम सोच रहे थे कि अगर इतनी बरसात अपने शहर में हो जाये तो वहाँ पर तो छूट्टी का माहौल बन जाता, पर ये मुंबई है यहाँ कुछ भी हो जाये पर मुंबई रुकती नहीं है। यहाँ मुंबई में जिंदगी की रफ़्तार इतनी तेज है कि और कोई भी चीज उसके आगे मायने ही नहीं रखती।

    घर से जरा जल्दी निकल चले थे कि कहीं बारिश के कारण ट्राफ़िक में ही न फ़ँस जायें। प्लेटफ़ार्म पर पहुँचे तो पता चला कि १ घंटा जल्दी पहुँच गये, और अपने कोच के लोकेशन पर जाकर इंतजार करने लगे। भीड़ तो इतनी थी कि बस देखते ही बन रहा था, क्योंकि हमारी ट्रेन के पहले मुंबई-जयपुर एक्सप्रेस का भी समय रहता है। और रक्षाबंधन पर सब लोग अपने घर की ओर अग्रसर थे और जल्दी से जल्दी पहुँचने के चक्कर में थे।

क्रमश:-

मुंबई में यात्रियों का बदला १२ अगस्त को ऑटो और टेक्सीवालों से (Revenge of the Commuters)

    क्या आपको कभी किसी ऑटो या टेक्सीवाले ने मना किया है, हमें तो रोज ही ऑटो और टेक्सीवाले मना करते हैं, और हम मन मसोस कर रह जाते हैं, क्योंकि इनके खिलाफ़ कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है।

    पर आज जब मुंबई मिरर पढ़ा तो लगा कि हम यात्री भी कुछ कर सकते हैं, अगर हम ही इनकी ऑटो और टेक्सियों में बैठने से मना कर दें तो ……

    जी हाँ १२ अगस्त को मुंबई में सभी यात्रियों से अपील की गई है कि ऑटो और टेक्सियों का उपयोग न करें, जिससे इनको भी यात्रियों की ताकत का पता चले।

    इस अभियान के लिये मीटरजाम नाम का अंतर्जाल भी बनाया गया है। जिससे यात्रियों में जागरुकता जगायी जा सके।

    अभी तक लगभग ६०० लोगों ने अपने को पंजीकृत करवा कर अभियान को समर्थन दिया है। और फ़ेसबुक पर लगभग ८४४ लोगों ने समर्थन दिया है।

इस अभियान को जयदेव रुपानी, रचना बरार और अभिषेक कृष्णन चला रहे हैं।

पूरी खबर पढ़ने के लिये यहाँ चटका लगाईये।

अंधेरी में ज्ञान पाने के लिये मुंबई के २ २ मिनिट की कीमत बारिश के बीच जद्दोजहद …. विवेक रस्तोगी

    आज अंधेरी में जागोइन्वेसटर पाठक मिलन था, समय तय किया गया था सुबह १० बजे से दोपहर २ बजे तक । क्लास रुम का जितना भी खर्च आना था वह सबको साझा करना था। सही मायने में वित्तीय प्रबंधन शिक्षा के लिये यह मुंबई में शुरु किया गया एक प्रयास है। जागोइन्वेस्टर.कॉम ब्लॉग मनीष चौहान लिखते हैं।

   तो सुबह ९ बजे घर से निकल पड़े थे क्योंकि अंधेरी पहुँचने में पुरे ४५ मिनिट का अनुमान लगाया था। ९ बजे नहीं निकल पाये हम निकल पाये ९.०५ बजे घर से और हाईवे तक पैदल बस स्टॉप पर ९.०८ बजे पहुँच गये। वहाँ जाकर बोरिवली स्टेशन की बस पकड़ी, हमारा अनुमान था कि लगभग ९.१७ बजे तक हम बोरिवली स्टेशान पहुँच जायेंगे।

    बोरिवली से कांदिवली ३ मिनिट, कांदिवली से मालाड ४ मिनिट, मलाड से गोरेगांव ४ मिनिट, गोरेगांव से जोगेश्वरी ६ मिनिट और जोगेश्वरी से अंधेरी लगभग ३ मिनिट लगता है, याने कि बोरिवली से अंधेरी २० मिनिट लगते हैं।

  और फ़िर हमें टिकट भी लेना था क्योंकि हम रोज लोकल ट्रेन में तो जाते नहीं हैं, हमारे पास रेलकार्ड है, जिसे कि रेल्वे स्टेशन पर लगे टर्मिनल से फ़टाफ़ट टिकट लिया जा सकता है। हमने रिटर्न टिकट लिया मतलब बोरिवली से अंधेरी जाने का और वापस बोरिवली आने का।

    फ़िर वहीं लगे उद्घोषणा टीवी पर देखा कि ९.२१ की चर्चगेट स्लो तीन नंबर प्लेटफ़ॉर्म और ९.२५ की चर्चगेट फ़ास्ट दो नंबर प्लेटफ़ार्म पर थी। हम फ़टाफ़ट दौड़ते हुए २-३ प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचे और ब्रिज से ही देखा कि ९.२१ की ट्रेन तो नदारद थी लगा कि चली गई परंतु भीड़ देखकर और इंडिकेटर पर ९.२१ का समय देखकर अंदाजा लगाया  कि ट्रेन लेट है। हमें तो अंधेरी तक ही जाना था तो हम ९.२५ की लोकल में चढ़ लिये।

  सेकंड क्लॉस के डिब्बे में बहुत दिन बाद चढ़े थे, अरे लोकल में ही बहुत दिनों बाद चढ़े थे और पीक समय था पर शनिवार होने के कारण चढ़ने को मिल गया था। अंदर घुसते ही पीछे से धक्का पड़ा और आवाज आई “अंदर दबा के चलो …. ” “भाईसाहब जरा धक्का मारकर !!!”, हम हाथ में छाता और अपनी किताब कापी पकड़े भीड़ में दुबके खड़े थे, जो गेट पर खड़े थे वो हर स्टॆशन पर दरवाजे की जनता का बराबर तरीके प्रबंधन कर रहे थे, “ए कांदिवली वालों को चढ़ने दे रे, जगह दे रे…”, “ऐ मालाड चलो आओ रे, ऐ इस तरफ़ से नहीं चढ़ने का” “ चल दबाके अंदर होले…”

    फ़िर जोगेश्वरी निकला और हम भी गेट के पीछे की भीड़ में लाईन में खड़े हो लिये और आगे वाले से पूछ कर आश्वस्त हो लिये “अंधेरी….” तो उसने धीरे गर्दन “हाँ” में हिला दी, और बाहर बारिश अपने पूरे जोरों से शुरु हो चुकी थी, ऐसी बारिश मुंबई के लिये थोड़ी अच्छी नहीं होती क्योंकि मुंबई में बारिश का पानी भर जाता है।

    जैसे ही अंधेरी स्टेशन आया तो आवाज आई “ऐ चल उड़ी मार उड़ी…” और जब तक ट्रेन स्टेशन पर रुकती तब तक तो हम भी प्लेटफ़ॉर्म पर थे। बारिश पूरे जोरों पर थी, हमने एक ओर पाठक से ९.४५ पर मिलना तय किया था, अंधेरी स्टेशन के एक्सिस बैंक के ए.टी.एम. के पास, वो हैं आशुतोष तिवारी जो कि हिन्दी ब्लॉगर भी हैं उनका ब्लॉग है मेरी अनुभूतियाँ । जोरों की बारिश में हम चल दिये अपने गंतव्य की ओर।

    वहाँ जाकर ४ घंटॆ कैसे निकल गये पता ही नहीं चला, गजेन्द्र ठाकुर जो कि सी.एफ़.पी. भी हैं, उन्होंने म्यूचयल फ़ंड पर इतनी अच्छी जानकारियाँ जुटाई थीं, कि समय का पता ही नहीं चला। अब अगली मीटिंग का दिन २८ अगस्त का है जिसमें एस.आई.पी., एस.टी.पी और एस.ड्ब्ल्यू.पी. पर जानकारी साझा की जायेगी।

हमारे घर में नया मेहमान आया है… :) :D

    आज शाम को हमारे घर में एक नया मेहमान आया है, बिटिया आई है, मेरे छोटे भाई शलभ को आज बिटिया की प्राप्ति हुई, बहु दिल्ली में ही थी और भाई शाम की फ़्लाईट पकड़ कर दिल्ली पहुँचा है।

    कितना रोमांचकारी पल होता है पिता बनने का, उससे बात करने से ही पता चल रहा था, जब बिटिया इस दुनिया में आई तो हमारा भाई फ़्लाईट में था, तो हमने तुरंत एक एस.एम.एस. कर दिया … [Congrats Dad !! bitiya ghar me aayi hai, khushiya lai hai :)]

    जब भाई के प्लेन दिल्ली में उतर गया तो जैसे ही मोबाईल खोला हमारा एस.एम.एस. मिलने से उसे पता चला और तब तक तो हम लगभग सभी अपने परिचितों को एस.एम.एस. या फ़ोन कर चुके थे।

    घर पर बात हुई तो मम्मी बोली कि अब तो ताऊ बन गये हो, और घर में बिटिया आई है, अब घर में रक्षाबंधन का त्यौहार भी मना करेगा। हम खुशी के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे। बहुत ही सुन्दरतम एहसास होता है घर में नये मेहमान आने का और वो भी प्यारी बिटिया रानी के आने का।