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“कालिदास और मेघदूतम के बारे में” श्रंखला खत्म, आपके विचार बतायें

                   यह कड़ी कालिदास और मेघदूतम के बारे में की आखिरी कड़ी थी। कृप्या बतायें क्या आगे भी इसी तरह की कुछ और किताबों पर कड़ियां पढ़ना पसंद करेंगे तो मैं उस की तैयारी करता हूँ। अभी पढ़ी गई किताबों में है त्रिविक्रमभट्ट रचित “नलचम्पू” और शिवाजी सामंत की “मृत्युंजय”। पढ़ना जारी है – “Rich Dad Poor Dad”, पढ़ने के इंतजार में हैं “The Alchemist”|

दीपों के त्यौहार दीपावली पर आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – १

मैंने महाकवि कालिदास का खण्डकाव्य ’मेघदूतम’ पढ़ा, और बहुत सारी ऐसी जानकारियाँ मिली जो हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई हैं, जो कि मुझे लगा कि वह पढ़ने को सबके लिये उपलब्ध

होना चाहिये।

कालिदस
एक जनश्रुति के अनुसार कालिदास पहले महामूर्ख थे। राजा शारदानन्द की विद्योत्तमा नाम की एक विदुषी एवं सुन्दर कन्या थी। उसे अपनी विद्या पर बड़ा अभिमान था। इस कारण उसने शर्त रखी कि जो किई उसे शास्त्रार्थ में पराजित करेगा उसी से ही वह विवाह करेगी। बहुत से विद्वान वहाँ आये, परंतु कोई भी उसे परास्त न कर सका; इस ईर्ष्या के कारण उन्होंने उसका विवाह किसी महामूर्ख से कराने की सोची। उसी महामूर्ख को खोजते हुए उन्होंने जिस डाल पर बैठा था, उसी को काटते कालिदास को देखा। उसे विवाह कराने को तैयार करके मौन रहने को कहा और विद्योत्तमा द्वारा पूछे गये प्रश़्नों का सन्तोषजनक उत्तर देकर विद्योत्तमा के साथ विवाह करा दिया। उसी रात ऊँट को देखकर पत़्नी द्वारा ’किमदिम ?’ पूछने पर उसने अशुद्ध उच्चारण ’उट्र’ ऐसा किया।
विद्योत्तमा पण्डितों के षड़़यन्त्र को जानकर रोने लगी और पति को बाहर निकाल दिया। वह आत्महत्या के उद्देश्य से काली मन्दिर गया, किन्तु काली ने प्रसन्न होकर उसे वर दिया और उसी से शास्त्रनिष्णात होकर वापिस पत़्नी के पास आकर बन्द दरवाजा देखकर ’अनावृत्तकपाटं द्वारं देहि’ ऐसा कहा। विद्योत्तमा को आश़्चर्य हुआ और उसने पूछा – ’अस्ति कश़्चिद वाग्विशेष:’। पत़्नी के इन तीन पदों से उसने ’अस्ति’ पद से ’अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा’ यह ’कुमारसम्भव’ महाकाव्य, ’कश़्चिद’ पद से ’कश़्चित्कान्ताविरहगरुणा’ यह ’मेघदूत’ खण्डकाव्य, ’वाग’ इस पद से ’वागर्थाविव संपृक़्तौ’ यह ’रघुवंश’ महाकाव्य रच डाला।

महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को और महाकवि कालिदास का मेघदूतम में महाकाल वर्णन..

श्रावण मास के हर सोमवार और भाद्रपद की अमावस्या तक के सोमवार को महाकाल बाबा की सवारी उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलती है, कहते हैं कि साक्षात महाकाल उज्जैन में अपनी जनता का हाल जानने के लिये निकलते हैं, क्योंकि महाकाल उज्जैन के राजा हैं। इस बार महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को निकल रही है, राजा महाकाल उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलेंगे। अभी विगत कुछ वर्षों से, पिछले सिंहस्थ के बाद से अटाटूट श्रद्धालु उज्जैन में आने लगे हैं। अब तो शाही सवारी पर उज्जैन में यह हाल होता है कि सवारी मार्ग में पैर रखने तक की जगह नहीं होती है।

महाकाल बाबा की सवारी पालकी में निकलती है, सवारी के आगे हाथी, घोड़े, पुलिस बैंण्ड, अखाड़े, गणमान्य व्यक्ति, झाँकियां होती हैं। महाकाल बाबा की सवारी लगभग शाम को चार बजे मंदिर से निकलती है, और रात को १२ बजे के पहले वापस मंदिर पहुँच जाती है। महाकाल बाबा के पालकी में दर्शन कर आँखें अनजाने सुख से भर जाती हैं।

हम इस बार ३ दिन की छुट्टियों पर उज्जैन जा रहे थे और १७ को वापिस आना था, फ़िर बाद में पता चला कि १७ अगस्त की महाकाल बाबा की शाही सवारी है तो सवारी के दौरान महाकाल बाबा के दर्शन करने का आनन्द का मोह हम त्याग नहीं पाये और २ दिन की छुट्टियाँ बड़ाकर उज्जैन जा रहे हैं।

महाकवि कालिदास ने “मेघदूतम” के खण्डकाव्य “पूर्वमेघ” में महाकाल के लिये लिखा है –

यक्ष मेघ से निवेदन करता है कि तुम वहाँ उज्जयिनी के महाकाल मन्दिर में सन्धयाकालीन पूजा में सम्मिलित होकर गर्जन करके पुण्यफ़ल प्राप्त करना

अप्यन्यस्मिञ्जलधर महाकालमासाद्य काले

स्थातव्यं ते नयनविषयं यावदत्येति भानु: ।

कुर्वन्सन्ध्याबलिपटहतां शूलिन: श्लाघनीया-

माम्न्द्राणां फ़लमविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम ॥३७॥

अर्थात –

“हे मेघ ! महाकाल मन्दिर में अन्य समय में भी पहुँचकर जब तक सूर्य नेत्रों के विषय को पार करता है (अस्त होता है) तब तक ठहरना चाहिये। शुलधारी शिव की स्न्ध्याकालीन प्रशंसनीय पूजा में नगाड़े का काम करते हुए गम्भीर गर्जनों के पूर्ण फ़ल को प्राप्त करोगे।”

महाकाल बाबा की तस्वीरें देखने के लिये यहाँ चटका लगायें।

जय महाकाल बाबा, राजा महाकाल की जय हो।

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बारिश में अपना धंधा बहुत अच्छा चलता है।

रोज ऑफ़िस आना जाना हम ऑटो से करते हैं और ऑटो में बैठते ही अपनी हिन्दी की किताब पढ़ना शुरु कर देते हैं पूरा आधा घंटा मिल जाता है। रोज आधा घंटा या कभी ज्यादा कभी थोड़ा कम समय का सदुपयोग हम हिन्दी साहित्य पढ़ने में व्यतीत करते हैं, शाम को लौटते समय अँधेरा हो जाता है तो शाम का वक्त फ़ोन पर बतियाते हुए अपने रिलेशन मैन्टेन करने मैं व्यतीत करते हैं। इस आधे घंटे में हम शिवाजी सामंत का प्रसिद्ध उपन्यास “मृत्युंजय” पढ़ चुके हैं, जिसके बारे में कभी ओर चर्चा करेंगे। आजकल महाकवि कालिदास का प्रसिद्ध खण्डकाव्य “मेघदूतम” पढ़ रहे हैं।

आज सुबह जब मैं  ऑटो से अपने ऑफ़िस जा रहा था, तो बहुत धुआंधार हवा के साथ बारिश हो रही थी। आटो में दोनों तरफ़ प्लास्टिक का पर्दा गिराने के बाद भी कुछ बूँदे हमें छू ही रही थीं। हम बारिश का मजा ले रहे थे तभी ऑटोवाला बोला कि आप किधर से जायेंगे “मलाड सबवे” से या कांदिवली के नये “फ़्लायओवर” से, हमने कहा कि हमारा रास्ता तो “फ़्लायओवर” वाला ही है क्योंकि यह रास्ता बारिश में सबसे सुरक्षित है, कहीं भी पानी नहीं भरता है। “मलाड सबवे” में तो थोड़ा बारिश होने पर ३-४ फ़ीट पानी भर जाना मामूली बात है।

 

फ़िर ऑटो वाला बोला कि साहब ये बारिश में अपना धंधा बहुत अच्छा चलता है क्योंकि हर आदमी ऑटो में आता जाता है, पैदल चलने वाला भी ऑटो में सवारी करता है। बस की सवारी भी ऑटो में यात्रा करती है  वह भी यह सोचती है कि कहां बस में भीगते हुए जायेंगे। लोकल ट्रेन में पास के स्टेशन पर जाने वाले भी ऑटो में ही यात्रा करते हैं तो कुल मिलाकर यात्री ज्यादा हो जाते हैं और ऑटो कम। अमूमन आधे ऑटो वाले ही बारिश में ऑटो बाहर निकालते हैं क्योंकि बारिश में ऑटो खराब होने का डर ज्यादा रहता है। वह ऑटोवाला शुद्ध हिन्दी भाषा में बात कर रहा था और जौनपुर टच टोन लग रही थी। वैसे यहाँ पर ज्यादातर ऑटो वाले यूपी या बिहार से ही हैं और उनसे ही शुद्ध हिन्दी सुनने को मिलती है, नहीं तो यहां हिन्दी भाषा का विकृत रुप ही बोला जाता है।