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विद्रोह मेरे मन का, भड़क रहा है….. मेरी कविता….विवेक रस्तोगी
विद्रोह मेरे मन का,
भड़क रहा है,
चिंगारियों से,
आग निकल रही है,
मेरे मन के,
मेरे दिल के,
कुछ जज्बात हैं,
जो दबे हुए हैं,
कहीं किसी चिंगारी में,
और जो,
हवा के रुख का,
इंतजार कर रहे हैं,
और वहीं कहीं,
रुख हवा का,
हमसे बेरुखी कर चुका है,
पर…
विद्रोह मेरे मन का,
भड़क रहा है.. !!
मैं कहाँ कौन से, चक्रव्यूह में हूँ .. हे गिरधारी… मेरी कविता … विवेक रस्तोगी
मैं एक छोटा सा अदना सा इंसान,
मुझसे कितनी उम्मीदें हैं,
इस दुनिया को,
खुद को,
अपनों को,
जिनका संबल हूँ मैं,
और जो मेरे संबल हैं,
रेत के महल खड़े करने की,
रोज कोशिश करता हूँ,
पर पूरा होने के पहले ही,
भरभरा कर गिर जाता है,
कब यह मेरा महल पूरा होगा,
और कब मैं आजाद होऊँगा,
मुझे आजादी चाहिये,
अपने विचारों की,
आहत मन को,
सँवारने की,
आहत दिल को,
दिलासे की,
आओ समय देखो,
हे गिरधारी देखो,
मैं कहाँ कौन से,
चक्रव्यूह में हूँ,
मुझे भी देखो…
होली अपने बेटे के साथ -[ कुछ मेरे बारे में ]- यायावर सी जिंदगी से थक गया हूँ – मेरी कविता …. विवेक रस्तोगी
बस अब मैं सेवानिवृत्ति चाहता हूँ, और अपना जीवन आध्यात्मिक गतिविधियों में समर्पित करना चाहता हूँ | अपने खुद के लिए कुछ करना चाहता हूँ कब तक इन सांसारिक मोह माया के पीछे भागता रहूँगा|
यायावर सी जिंदगी से थक गया हूँ
आओ देखो अभी तक कैसे
मैं जी रहा हूँ
मेरे जीने के लिये
और भी मकसद हैं
केवल भूख मारना ही नहीं
और भी बहुत कुछ जो
मैं पाना चाहता हूँ
देना चाहता हूँ |
खैर अभी तक जो सोचा वो नहीं हुआ अब देखते हैं शायद हो जाये और हर वर्ष होली अपने बेटे के साथ खेल पायें| बाबा महाकाल के साथ होली खेल पायें और मन में बड़ी इच्छा है कि बांके बिहारी जी के यहाँ खेल पायें होली |
तो ये था अभी का चिट्ठा, अब शुरू होगा धमाल “होली” का |
तुम्हारा इंतजार है …. कि तुम आओगे….मेरी कविता … विवेक रस्तोगी
तुम्हारा इंतजार है
अभी भी,
कि
कहीं से तुम आओगे,
और मुझसे मेरा सब कुछ,
चुरा कर ले जाओगे,
मेरी नींद,
मेरा चैन,
मेरा जीवन,
मुझे सुख दोगे,
मुझे ज्ञान दोगे,
मुझे प्यार दोगे,
मुझे अपने में समा लोगे,
अपने आगोश में,
ले लोगे,
हे बांके बिहारी !!,
इंतजार हे उस “क्षण” का,
जब तुम मुझे अपने यहाँ,
“फ़ाग” का मौका दोगे ।
उलझनें जिंदगी की बढ़ती जा रही हैं …. मेरी कविता … विवेक रस्तोगी
इन उलझनों से निकलना चाहता हूँ,
तुम्हारे पास आकर तुम्हें महसूस करना चाहता हूँ,
उलझनें जिंदगी की बढ़ती जा रही हैं,
उलझनों में जिंदगी फ़ँसती जा रही है,
ये तो बिल्कुल मकड़जालों सी हैं,
जितना निकलने की कोशिश करो,
उतने ही जाल कसते जा रहा हैं,
जहर की तासीर बढ़ती जा रही है,
जलन महसूस कर रहा हूँ,
पर इससे निकलने की राह,
कठिन नजर आ रही है,
ऐसे दौर जीवन में आयेंगे ही,
और आते ही रहेंगे,
इन दौरों से सब अपने अपने तरीके से,
निपटते ही रहेंगे,
पर उलझनें कभी कम न होंगी,
जहर की तासीर कम न होगी,
बड़ती हुई तपन कम न होगी,
जीवन की कठिनाई कम न होगी,
उलझनों से उलझ कर ही सुलझा जा सकता है,
जहर के तासीर को कम किया जा सकता है,
तपन को शीतलता में बदला जा सकता है,
कठिनाईयाँ जीवन की सरल हो सकती हैं,
बस अगर तुम पास हो तो,
ये सब अपने आप सुलझ सकता है।
आखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा..मेरी कविता…विवेक रस्तोगी
आखिर मैं कब तक
भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा
कभी एक पहलू को छूने की कोशिश में
दूसरा हाथ से निकल जाता है
और बस फ़िर दूसरे पहलू को
वापस अपने पास लाने की
जद्दोजहद उसके समीकरण
हमेशा चलते रहते हैं,
इसी तरह
कभी भी ये दो पहलू
मेरी पकड़ में ही न आ पायेंगे
और मेरी नियति कि मैं
भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा
पर अंत में
केवल पकड़ में आयेगा एक तीसरा पहलू
सर्वोच्च सच्चाई,
जो इस तृष्णा जैसी नहीं होगी
फ़िर मुझे कहीं भागना भी न होगा
बस उसी सच्चाई में रहना होगा
उस पल का इंतजार करते हुए
तब तक
मुझे भाग-भागकर जिंदगी को पकड़ना होगा।
तुम हो मेरे जीवन का आधार प्रिये…मेरी कविता…विवेक रस्तोगी
तुम हो तो सब कुछ है जीवन में,
तुम हो तो सब सुख है प्रिये,
तुम हो तो मैं हूँ प्रिये,
तुम हो तो हर क्षण हर्ष का है प्रिये,
तुम मेरी कविता तुम मेरी आराधना,
तुम ही मेरी प्रियतमा,
तुम ही मेरी जीवनसंगिनी प्रिये,
तुम हो मेरे जीवन का आधार प्रिये,
अर्पण प्यार तुम्हें है प्रिये..
कविता की दो लाईनें जो मेरे परम मित्र ने मुझे सुझाई …. आईये इस कविता को पूरी करने में मेरी मदद करें…
हमारे एक परम मित्र हैं जो अब हमारे सहकर्मी भी हैं, एक दिन हम ऐसे ही अंगड़ाई ले रहे थे, तो उन्होंने कुछ इस प्रकार से कह डाला –
मत लो अंगड़ाईयाँ
वरना हम पर भी असर हो जायेगा
हमने झट से ये लाईनें नोट कर लीं और कहा कि इसे पूरी कविता का रुप देते हैं परंतु हम यह कार्य न कर सके…. या सोच न सके… तो आज सोचा कि अपने हिन्दी ब्लॉग मंच पर ही कविता पूरी करने के लिये देते हैं शायद इन दो अच्छी लाईनों को कुछ अच्छे या बहुत अच्छे शब्द मिल जायें।
जीवन की राहों में, बहुत संघर्ष हमने झेला है…. मेरी कविता… विवेक
जीवन की राहों में,
बहुत संघर्ष हमने झेला है,
सूरज की गरमी में,
पांवों के छालों को हमने सहा है,
जिंदगी की धूप में,
दिल की तपिश को हमने महसूस किया है,
तारों की छांव में,
चुभन शीतलता की भी महसूस की है हमने,
जिंदगी की दौड़ में,
उम्मीद है कि अब न कोई ऐसा एहसास होगा।