आखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा..मेरी कविता…विवेक रस्तोगी

आखिर मैं कब तक

भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा

कभी एक पहलू को छूने की कोशिश में

दूसरा हाथ से निकल जाता है

और बस फ़िर दूसरे पहलू को

वापस अपने पास लाने की

जद्दोजहद उसके समीकरण

हमेशा चलते रहते हैं,

इसी तरह

कभी भी ये दो पहलू

मेरी पकड़ में ही न आ पायेंगे

और मेरी नियति कि मैं

भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा

पर अंत में

केवल पकड़ में आयेगा एक तीसरा पहलू

सर्वोच्च सच्चाई,

जो इस तृष्णा जैसी नहीं होगी

फ़िर मुझे कहीं भागना भी न होगा

बस उसी सच्चाई में रहना होगा

उस पल का इंतजार करते हुए

तब तक

मुझे भाग-भागकर जिंदगी को पकड़ना होगा।

22 thoughts on “आखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा..मेरी कविता…विवेक रस्तोगी

  1. पर अंत में

    केवल पकड़ में आयेगा एक तीसरा पहलू

    सर्वोच्च सच्चाई,

    जो इस तृष्णा जैसी नहीं होगी

    फ़िर मुझे कहीं भागना भी न होगा

    बस उसी सच्चाई में रहना होगा
    सही है !!

  2. आज तो आपने मेरे मन की बात कह दी भागम दौड इतनी कि पूछो मत । इसी मे हम बहुत कुछ पीछे छोडते जा रहे हैं। कविता बहुत अच्छी लगी बधाई

  3. विवेक भाई,

    हर इनसान यही तो कर रहा है…हां मुंबई जैसे शहर में ये मारामारी और रफ्तार पकड़ लेती है…

    जय हिंद…

  4. विवेक भाई,

    हर इनसान यही तो कर रहा है…हां मुंबई जैसे शहर में ये मारामारी और रफ्तार पकड़ लेती है…

    जय हिंद…

  5. विवेक भाई,

    हर इनसान यही तो कर रहा है…हां मुंबई जैसे शहर में ये मारामारी और रफ्तार पकड़ लेती है…

    जय हिंद…

  6. जिंदगी को पकड़ने कि कोशिश मात्र कोशिश ही बन कर रह जाती है….गहरी अभिव्यक्ति….

  7. गहरी अभिव्यक्ति..जीवन की भागदौड़ और उसे पकड़ने की कोशिश …इसी में जिन्दगी की शाम हो जाती है

  8. यही तो जिन्दगी है, ओर इस के बिना मजा भी नही जिन्दगी का, बहुत सुंदर ढंग से जिन्द्गी के उतार चढाव पर लिखा. धन्यवाद

  9. जिन्दगी को बहुत सुन्दर शब्दो मे याद किया है बधाई

    मै और मेरी जिन्दगी भी
    अकसर खेल खेल्ते है
    कभी मै जिन्दगी के पीचे
    कभी जिन्दगी मेरे पीछे
    कभी लगता है
    बस अब मिल गयी
    लेकिन फिर होती है
    आन्खो से ओझल जिन्दगी

    कभी रूठ जाती है जिन्दगी
    कभी मान करती है जिन्दगी
    कभी आन्खो मे
    कभी दिल मे
    और कभी आत्मा मे
    प्रवेश करती है जिन्दगी
    कभी मुझसे मिलने
    मेरे घर आती है जिन्दगी

    और जब मिलती है जिन्दगी
    तभी खतम हो जाती जिन्दगी

  10. ज़िन्दगी की भागमभाग में जो तीसरा पहलू अक्सर हम छोड़ दिया करते है, अंततः वाही हाथ लगता है …..सुन्दर रचना
    आभार

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