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माँ सती के द्वारा अपने शरीर को भस्म करने की कथा

शिवपुराण के द्वितीय / सतीखंड के अध्याय 30 में माँ सती के द्वारा अपने शरीर को भस्म करने की कथा है।

सतीदेवी भगवान शिव का सादर स्मरण करके शांत चित्त होकर उत्तर दिशा में भूमि पर बैठ गईं। विधिपूर्वक जल का आचमन करके वस्त्र ओढ़ लिया और पवित्र भाव से आंखें मूंदकर शिवजी का चिंतन करती हुई वह योग मार्ग में स्थित हो गईं। उन्होंने आसान को स्थिर कर प्राणायाम द्वारा प्राण और अपान को एक रूप करके नाभिचक्र में स्थित किया। फिर उदान वायु को बलपूर्वक नाभि चक्र से ऊपर उठकर बुद्धि के साथ हृदय में स्थापित किया तत्पश्चात उसे हृदय स्थित वायु को कंठमार्ग से भृकुटियों के बीच ले गईं। अपने शरीर को त्यागने की इच्छा से सती ने अपने सम्पूर्ण अंगों में योगमार्ग के अनुसार वायु और अग्नि धारण की, और शिवजी का चिंतन करते हुए अन्य सब वस्तुओं को भुला दिया। उनका चित्त योगमार्ग में स्थित हो गया था। सती का निष्पाप शरीर तत्काल गिरा और उनकी इच्छा के अनुसार योगाग्नि से जलकर उसी क्षण भस्म हो गया।

कई जगह यज्ञ वेदी में भस्म होना बताते हैं, पर यह इतना विस्तारपूर्वक दृष्टांत योग विज्ञान की ओर दर्शाता है कि हमारा योग विज्ञान उस समय अपने चरम पर था और उसके अध्ययन के लिये उचित आचार्य भी मौजूद थे। पर आज का विज्ञान इन सब बातों को कपोल कल्पना मात्र ही मानता है।

राजा दक्ष का अहंकार

शिवपुराण के श्रीरूद्रसंहिता के अंतर्गत द्वितीय/सतीखंड में माँ सती का विस्तारपूर्वक वर्णन है, जिसमें एक प्रकरण है कि राजा दक्ष जो कि इस पृथ्वी के राजा है और इससे उनको अहंकार हो जाता है, एक दिन वे देवताओं की सभा में गये तो सबने राजा दक्ष का उचित आदर किया, पर भगवान शिव जो कि त्रिलोक के अधिपति हैं, वे न राजा दक्ष के सम्मान में अपने आसन से खड़े हुए और न ही उनका अभिवादन किया।

इससे राजा दक्ष अपने अहंकार में कहते हैं कि हे शिव तुमने मेरा आदर नहीं किया, तुम नरमुंड की माला पहनने वाले, भस्म को शरीर पर लपेटने वाले, और उनको श्राप दे देते हैं, इनसे नंदी बहुत गुस्सा होते हैं और राजा दक्ष को बहुत भला बुरा कहते हैं कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे देव को श्राप देने की, तब राजा दक्ष और गुस्सा हो जाते हैं और कहते हैं कि तुम और तुम्हारे गणों जे रूप से दुनिया डरेगी, वे मदिरा का सेवन करेंगे। इस पर भगवान शिव नंदी से कहते हैं कि हे नंदी आपको गुस्सा नहीं करना चाहिये क्योंकि मुझे किसी का श्राप नहीं लगता, आपको तो यह ज्ञात ही है।

फिर इसके बाद का वृत्तांत वही है कि राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन करवाया पर भगवान शिव और माँ सती को नहीं बुलाया, तब महर्षि दधीचि ने राजा दक्ष को कहा कि भगवान शिव ही यज्ञ हैं, वे ही यज्ञ करवाने वाले हैं, आपने उनको न बुलाकर पहले ही अपना यज्ञ भंग कर लिया है। और दधीचि व भगवान शिव के पक्ष के देव, ऋषि भी चले जाते हैं, और फिर आगे माँ सती को भगवान शिव कहते हैं कि बिन बुलाये कहीं भी जाने पर अनादर होता है, इसलिये आपको भी नहीं जाना चाहिये।

अब आगे तो सबको पता ही है, आगे फिर कभी

How to spot a bull trap?

How to spot a bull trap. A bull trap is a false signal of a market reversal. Learn how to avoid falling for this trap and protect your investments.

A bull trap is a situation where traders are misled into buying an asset that is breaking out above a resistance level, only to see the price reverse and fall below the resistance level again. This can result in losses for the buyers who entered the market too early or did not exit in time. To spot a bull trap, you can use some of the following methods:

  • Look for signs of weakening momentum in the bullish trend, such as shorter candlesticks, lower volume, or lower highs.
  • Use technical indicators such as the relative strength index (RSI) or the moving average convergence divergence (MACD) to identify overbought conditions or divergence between the price and the indicator.
  • Wait for confirmation of the breakout, such as a close above the resistance level on a higher time frame, or a retest of the resistance level as support.
  • Use stop-loss orders to protect your position in case of a reversal, and consider using trailing stops to lock in profits as the price moves in your favor.

Bull traps can be tricky to avoid, but by using these methods, you can increase your chances of identifying them and trading them successfully.

सुपर शूज़ की लड़ाई में Nike आगे बढ़ी

सुपर शूज़ की लड़ाई में Nike आगे बढ़ी, और किप्टम ने Nike के डेव 163 प्रोटोटाइप पहनकर दौड़ते हुए मैराथन विश्व रिकॉर्ड तोड़ा।

अभी दो सप्ताह पहले, दौड़ की दुनिया में तब हड़कंप मच गया जब टाइगस्ट असेफा ने बर्लिन मैराथन में 2:11:53 के समय में महिला मैराथन विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया। असेफा ने हाल ही में जारी एडिडास सुपर शू, एडिज़ेरो एडिओस इवो प्रो 1 पहनकर यह मैराथन दौड़ी थी। और उसके बाद असेफ़ा को गर्व से जूते को अपने सिर के ऊपर उठाते हुए और फिनिश लाइन पर चूमते हुए भी देखा गया था।

रेस से पहले उन्होंने कहा, ‘यह अब तक का सबसे हल्का रेसिंग जूता है जो मैंने पहना है।’ ‘उसे पहनकर दौड़ना एक अद्भुत अनुभव है – जैसा मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया।’

लेकिन अब, ठीक दो हफ्ते बाद, नाइकी ने पलटवार किया है। इस वीकेंड शिकागो मैराथन में, केल्विन किप्टम ने 2:00:35 टाइमिंग में पुरुषों के मैराथन रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

इन सुपर शूज में कार्बन की एक परत लगा दी गई है, जिससे ये शूज बेहद हल्के हो गये हैं और इसकी शुरुआत nike ने की थी, जिसे बाद में सभी कम्पनियों ने अपना लिया।

भारत में नोट छापने की प्रक्रिया

भारत सरकार जब नये नोट छापती है तो इसकी क्या प्रक्रिया होती है, इस बारे में ज्यादा जानकारी पब्लिक डोमेन में नहीं है, तो सोचा इस पर जानकारी दी जाये।

ज्यादा नए नोट छापने से भारत की अर्थव्यवस्था हिल सकती है, क्योंकि इससे मुद्रास्फीति (इन्फ्लेशन) बढ़ सकती है, जिससे चीजों के दाम बढ़ जाते हैं और लोगों की खरीदारी शक्ति कम हो जाती है। इससे आर्थिक विकास धीमा हो सकता है और देश की मुद्रा का मूल्य भी गिर सकता है।

Rs 200 Currency Printing

इसलिए, भारत की अर्थव्यवस्था को संतुलित करने के लिए, नए नोट छापने की प्रक्रिया को बहुत ही सावधानीपूर्वक और विज्ञानी तरीके से किया जाता है। नए नोट छापने का निर्णय रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) द्वारा किया जाता है, जो सरकार की सलाह भी लेता है। आरबीआई नए नोट छापने के लिए देश की आर्थिक नीतियों और लक्ष्यों के अनुसार काम करता है, जैसे कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना, विदेशी मुद्रा आरक्षण को बढ़ाना, बैंकों को पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराना और नोटों की सुरक्षा और गुणवत्ता को बनाए रखना।

आरबीआई नए नोट छापने के लिए देश की जीडीपी (ग्रोस डोमेस्टिक प्रोडक्ट), राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट), विकास दर (ग्रोथ रेट) और बाजार की मांग (मार्केट डिमांड) को भी ध्यान में रखता है। आरबीआई नए नोट छापने के लिए अपनी आर्थिक विश्लेषण और आंकड़ों के आधार पर एक वार्षिक योजना बनाता है, जिसे नोट छापने की आवश्यकता (इंडेंट) कहते हैं। इस योजना को सरकार के साथ समन्वय करके निर्धारित किया जाता है।

  • – नये नोट छापने के लिए जरूरी प्रिंटिंग पेपर का उत्पादन दो मिलों में होता है- होशंगाबाद (मध्यप्रदेश) और मैसूर (कर्नाटक) में। इन मिलों से प्रिंटिंग पेपर पाने के लिए 6 महीने का अतिरिक्त समय चाहिये।
  • – नये नोट छापने के लिए जरूरी स्याही के लिए 1 साल पहले आर्डर देना होता है। स्याही का उत्पादन देवलाली (महाराष्ट्र) और सालबोनी (पश्चिम बंगाल) में होता है।
  • – नये नोट छापने की पूरी प्रक्रिया के लिए 3 साल तक की एडवांस प्लानिंग की जरूरत होती है।
  • – नये नोट छापने का काम चार प्रिंटिंग प्रेसों में होता है- नाशिक (महाराष्ट्र), देवास (मध्यप्रदेश), मैसूर (कर्नाटक) और सलबोनी (पश्चिम बंगाल) में। इन प्रेसों में से दो आरबीआई के अधीन हैं और दो भारतीय सिक्का और नोट मुद्रण निगम (बीएनपीएम) के अधीन हैं।
  • – नये नोट छापने के बाद, वे आरबीआई के भंडारों में भेजे जाते हैं, जहां से वे विभिन्न बैंकों को वितरित किए जाते हैं।

यह एक बहुत ही जटिल और सुरक्षित प्रक्रिया है, जिसमें कई चरण और अधिकारियों का सहयोग होता है।

भारत में नोट की सुरक्षा प्रक्रिया बहुत ही जटिल और सटीक होती है। इस प्रक्रिया में नोटों के कागज, स्याही, डिजाइन, प्रिंटिंग और वितरण के लिए कई चरण और उपकरणों का इस्तेमाल होता है। नोटों की सुरक्षा प्रक्रिया कुछ प्रकार होती है –

  • – नोटों के कागज का निर्माण रजिस्ट्री कागज़ से होता है, जिसे अंग्रेज़ी में “Rag Paper” कहा जाता है। यह कागज़ एक खास प्रक्रिया के माध्यम से बनाया जाता है ताकि यह नकल करना मुश्किल हो।
  • – नोटों में सुरक्षा थ्रेड्स और वॉटरमार्क का इस्तेमाल होता है जो नकल करने से रोकते हैं। वॉटरमार्क नोट के कागज के अंदर विशेष प्रकार की नमी को दर्शाता है जो नकल करने से नहीं दिखती है।
  • – नोटों में विभिन्न सिक्योरिटी फीचर्स भी होते हैं, जैसे कि होलोग्राम, मैग्नेटिक इंक, और माइक्रोप्रिंटिंग, जो नकल करने को रोकते हैं।
  • – नोट के कागज को केमिकल ट्रीटमेंट के माध्यम से भी विशेष बनाया जाता है ताकि यह नकल करने से बचा जा सके।
  • – नोटों का डिजाइन भारतीय सिक्का और नोट मुद्रण निगम (बीएनपीएम) द्वारा किया जाता है, जो एक सरकारी संस्था है। नोटों का डिजाइन राष्ट्रीय गौरव, सांस्कृतिक विरासत, विकास और प्रौद्योगिकी को दर्शाता है।

उम्मीद है आपको जानकारी पसंद आई होगी।

#financialbakwas

#RBI

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#निबंध

The Taj Mahal: A Monument of Love

Shah Jahan was the fifth Mughal emperor of India, who ruled from 1628 to 1658. He was a great patron of art and architecture, and he built many beautiful buildings and gardens in his empire. But his most famous and beloved creation was the Taj Mahal, a white marble mausoleum that he built in memory of his wife Mumtaz Mahal.

Mumtaz Mahal was Shah Jahan’s second wife, whom he married in 1612. She was his constant companion and confidante, and he called her “the chosen one of the palace”. She bore him 14 children, but died in 1631 while giving birth to their last child, Gauhara Begum. Shah Jahan was heartbroken by her death, and decided to build a magnificent tomb for her as a symbol of his eternal love.

He commissioned the best architects, craftsmen, and artists from India, Persia, the Ottoman Empire, and Europe to design and construct the Taj Mahal. The project started in 1632 and took about 22 years to complete. The mausoleum is located on the right bank of the Yamuna river in Agra, Uttar Pradesh. It is surrounded by a complex of buildings and gardens, which include a mosque, a guest house, a main gateway, and a crenellated wall.

The Taj Mahal is considered to be the finest example of Mughal architecture, which is a blend of Indian, Persian, and Islamic styles. The mausoleum is made of white marble that reflects different colours depending on the time of the day and the season. It is decorated with intricate carvings, calligraphy, floral patterns, precious stones, and geometric designs. The dome of the mausoleum is 73 meters high, and is flanked by four minarets that are 40 meters high each. The interior of the mausoleum contains the cenotaphs of Mumtaz Mahal and Shah Jahan, which are enclosed by an octagonal marble screen. The actual graves are located in a lower chamber.

The Taj Mahal is not only a masterpiece of art and engineering, but also a testament of love and devotion. It is one of the most iconic monuments in the world, and attracts millions of visitors every year. It was declared a UNESCO World Heritage Site in 1983, and was voted as one of the New Seven Wonders of the World in 2007. The Taj Mahal is also known as “the jewel of Muslim art in India” and “the illumined or illustrious tomb

कलसी,जगतग्राम, सुमनक्यारी, नैनबन्ध

विकासनगर किसी कारण से 2 दिन रुकना पड़ा, कारण बाद में बताएंगे। तो आज दोपहर तक हमारे पास विकासनगर में समय था, Vikas Porwal जी ने मार्गदर्शन किया और कहा कि आप कलसी में सम्राट अशोक का शिलालेख देख लें, जो कि उत्तराखंड में एकमात्र शिलालेख पाया गया है। और दूसरी जगह जगतग्राम जहाँ अश्वमेध यज्ञ के होने के प्रमाण पाये गये हैं।

हमने विकासनगर से कलसी और जगतग्राम का इरिक्शा ₹300 में कर लिया, रिक्शेवाले को कलसी के सम्राट अशोक के शिलालेख के बारे में पता था, पर जगतग्राम के बारे में पता नहीं था। हम सम्राट अशोक के शिलालेख देखने के लिये गये, तो देखा कि चट्टान पर प्राकृत व लिपी ब्राह्मी में लिखा हुआ है, जो कि शांति का संदेश बताया गया है। जिस प्रकार की मूर्तियां साँची के स्तूपों में हैं, लगभग वैसी ही यहाँ भी पाई गई हैं, और यह पुरातत्व विभाग संरक्षित साइट है।

जगतग्राम में अश्वमेध यज्ञ के होने के प्रमाण पाए गए हैं यह भी भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण की साइट है यहां पर राजा शीलबर्मन ने तीसरी शताब्दी में अश्वमेध यज्ञ करवाए थे, इसके प्रमाण मिले हैं, हालांकि जाने का रास्ता बिल्कुल ठीक नहीं है लगभग 300 मीटर आम के बगीचे में से निकलना पड़ता है जो कि बिल्कुल कच्चा है वहाँ रिक्शा नहीं जा सकता, वहां केवल suv गाड़ियां या फिर ट्रैक्टर ही जा सकते हैं। मैं ज्यादा देर रुक भी नहीं पाया क्योंकि आ जाना ही मौसम बहुत खराब हो गया और तेज हवा चलने लगी थीं। पर फिर भी वहाँ बने प्लेटफार्म पर खड़े होकर यज्ञ की साइट को देखा।

लगभग 4 बजे हम विकासनगर से यमनोत्री धाम की यात्रा पर निकले और 6 बजे के लगभग हम सुमनक्यारी, नैनबन्ध में रुक गये हैं, यहाँ हमने गुरुकृपा होमस्टे देखा और कमरा ठीक लगा, हम 3 लोगों के ₹600 चार्ज किये हैं, बाथरूम लगा हुआ है, अभी यह होमस्टे नया बना है, तो गीजर अभी तक नहीं लगा हुआ है, तो होमस्टे वाली मैम हमें सुबह गर्म पानी नहाने के लिये दे जायेंगी। पास ही 2-3 रेस्टोरेंट हैं, खाना ठीक लगा।

#tripfrombangalore

#yamnotridham

भीमबेटका

भोजपुर मंदिर से निकलते हुए सोचा चलो एक एक नींबू सोडा पी लें, परंतु एक भी दुकान पर न मिला, तो सोचा एक एक चाय हो जाये, वहीं गूगल मैप पर भीमबेटका की दूरी लगाकर देखी जो कि लगभग 49 मिनिट्स की ड्राइव दिखा रहा था और रास्ता 26 किमी का था। चायवाले भैया से पूछा कि यह रोड कैसी है, तो उसने बताया ये रोड अभी बन ही रही है, काफी हिस्सा बन रहा है, 10 किमी बाद तो वैसे भी आपको हाइवे मिल जायेगा। बस हम वापिस भोपाल लौटने की जगह भीमबेटका चल दिये। दीदी को फोन लगाकर कहा कि अभी हम भीमबेटका जा रहे हैं और आने में थोड़ा और समय लगेगा।

भीमबेटका का सड़क वाकई बहुत बढ़िया बनाई गई है, जहाँ सड़क मिली रफ्तार 80 से कम नहीं की, कुछ जगह बीच बीच में जहाँ काम चल रहा था, ऑफ़रोडिंग का अनुभव लिया। भीमबेटका के लिये हाइवे से ही सीधे हाथ का टर्न है, खतरनाक होते हैं ऐसे टर्न जहाँ हाइवे पर 80 से 140 की रफ्तार में वाहन जा रहे होते हैं। भीमबेटका के लिये मुड़ने के साथ ही वहॉं मध्यप्रदेश टूरिज्म का रीट्रीट होटल है, जहाँ खा भी सकते हैं और रुक भी सकते हैं। वहीं मुड़ने के बाद रेलवे क्रॉसिंग बंद थी, तो याद आया कि पुरातत्व संस्थान में हमारे एक मित्र जबलपुर हैं, उनसे कहा कि हम भीमबेटका आये हैं, तत्काल ही उन्होंने हमारा गाड़ी नम्बर मंगवा लिया, और 2 मिनिट बाद ही भोपाल सर्कल से फोन आ गया, एक दम हम अतिसाधारण से विशिष्ट की श्रेणी में आ गये।

फारेस्ट गेट का टिकट 75 रु है, और फिर आगे की ड्राइव अति मनमोहन है, हम भीमबेटका पहुँचे, और अंदर घूमने निकल गये, वहाँ की भित्तिचित्रों को देखकर लगा कि आदिमानव भी रचनात्मक था और जो सामने देखता था, उसने वह चटटानों पर उकेर दिया। घोड़ों को बनाने के लिये उन्होंने पहले डमरू आकृति बनाई और उसे घोड़े का आकार दे दिया। ऐसे ही जानवरों के चित्रण किये गये हैं। देखकर ही लगता है कि आदिमानव की ऊँचाई भी कम से कम 8 या 9 फिट तो रही ही होगी, डॉक्टर वाकणकर ने खुदाई में एक कंकाल पाया जिसकी ऊँचाई 7.5 फिट थी। कंकाल भी इसलिये मिला क्योंकि वे लोग उस समय नमक का सेवन नहीं करते थे, नमक इतना खतरनाक है कि हड्डियों को भी गला देता है, यह अहसास हुआ। बताया गया कि यहाँ लगभग 10000 मानव रहा करते थे, वहीं एक और गुफा पाई गई है जो बंद है, और उसका हॉल इतना बड़ा है कि इसमें 10000 से ज्यादा लोग खड़े हो सकते हैं।

हमारी मानवीय सभ्यता को देखने के लिये काम ही लोग उत्साहित होते हैं और वहीं बाहर देशों के लोग आकर इनको देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। हमारी इस ऐतिहासिक धरोहर को देखने भारतवासियों को जरूर जाना चाहिये।

कालू कुत्ते, लंगूर और महिलायें

आज सुबह घूमने निकले तो सबसे पहले अपना ब्लूटूथ कनकव्वा लगाया और ऑडिबल्स पर किताब Do epic shit सुनना शुरू की। अच्छी किताब है, दिमाग के जाले मिटाने के लिये इस तरह की मैनेजमेंट व पर्सनल स्किल वाली किताबें पढ़ना चाहिये, वैसे हमने जिस दिन यह किताब पढ़ना शुरू की थी, उसी दिन बेटेलाल को इन किताबें की हार्डकॉपी ऑर्डर कर दी थी।

सूरज भाई निकल ही रहे थे, गली के 2 कुत्ते दोनों ही कालू हैं, एक के दोनों कान खड़े रहते हैं, दूसरे वाले के एक कान में समस्या है, तो 45 डिग्री पर उसका एक कान मुड़ा रहता है। वो अक्सर किसी ने किसी कार की छत पर बैठा दिखता है। जब हम यहाँ आये थे, तब इन दोनों कालुओं ने हम पर खूब भौंका, पर अब शायद पहचान गये हैं कि ये लोग भी अपने ही भाई बंद लोग हैं। पर अब भी मूड होने पर भौंकते जरूर हैं।

हमारे घूमने वाले रास्ते में कम से कम 15-20 गली के कुत्ते हैं ही और सबके सब जबरस्त भौंकते हैं, पर अभी रोज ही हम घूमने जा रहे हैं तो वे सब भी पहचान गये हैं, तो अब कोई दौड़ाने वाला जैसा कोई दिखता नहीं।

इस रूट पर घूमते हुए काफी दिन हो गये, पर आज जीरो प्वाइंट ब्रिज शुरू होने पर ही सीधे हाथ पर ही एक मजार दिखी, जिस पर एक भाई सुबह सुबह सजदा कर रहे थे, वहीं पास की एक गुमटी में चाय गुटखा बेचने वाले शख्श ने सड़क पर सामने भैरू के मंदिर को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और आँखें बंदकर कुछ बुदबुदाया और फिर दोनों कानों को हल्के से पकड़ा और फिर ईसा मसीह के सजदा वाली स्टाइल में माथे को छुआ और फिर दिल की जगह छुआ। इतनी सी देर में इतना सब कुछ देखकर इतना तो विश्वास हो गया कि कोई हमें कितना भी तोड़ने की कोशिश करे, पर आम आदमी अपनी आदतें नहीं छोड़ेगा।

तीन महिलाओं ने हमारे आगे चलने की ठानी थी और ब्रिज पर वे आगे चल रही थीं जब पास पहुंचे तो हमने कहा जरा जगह मिलेगी, पर वे तीनों अपनी बातें में इतनी मशगूल थीं कि शायद हमें सुना नहीं, पर जब एक महिला ने हमें देखा तो आगे जगह घेरकर चल रही महिला को कहा ‘अरे दरी जरा जगो दे दे’, तो उस महिला ने ‘हो’ कहा और साइड हो गईं, हम आगे निकल गये। आगे निकलते ही रेल की पटरी दिखने लगे गईं। जहाँ ब्रिज के नीचे रेल्वे लाईन शुरू होती हैं, तो दोनों और 6 फिट की जाली ब्रिज पर लगा दी गई हैं, बस उसी समय हमने देखा काले मुँह के बंदर जिन्हें लंगूर कहते हैं, अपने पूरे कुनबे के साथ लंगूर घूम रहे थे, थोड़ा डर भी लगा पर वे शायद जंगल के लंगूर थे, उनको हमसे कोई मतलब नहीं था, और वो हम शहरवालों को बिना छेड़े अपने रास्ते पर निकल गये।

ब्रिज के खत्म होते ही ठेलेवाले भिया खड़े थे, जहाँ पोहे जलेबी का कालजयी मालवी नाश्ता मिल रहा था, आज कचोरी, समोसे और आलूबड़ा मिसिंग थे। 5-6 लोग नाश्ता कर रहे थे, सब अपनी मस्ती में मस्त थे। ब्रिज पर आते हुए देखा था कि साबरमती एक्सप्रेस उज्जैन आ रही है, लौटते समय देखा कि साबरमती एक्सप्रेस वापिस चल दी है, पहले भी हमने देखा था कई बार आते जाते दोनों समय साबरमती एक्सप्रेस आउटर पर ही खड़ी दिखी थी। आते आते देखा कई लोग जो रोज ही उस समय आते जाते हैं वे अपनी सोमवार की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं।

हम लौटते हुए देख रहे थे कि सूरज भाई अब आसमान में 40 डिग्री पर आ चुके थे और स्कूल की बसें भी आकर किसी न किसी बच्चे का इंतजार कर रही थीं।

पापाजी मम्मीजी के साथ महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन

जब से उज्जैन आये हैं हम तो कई बार महाकालेश्वर के दर्शन कर चुके हैं, और लगभग रोज ही शिखर दर्शन कर रहे हैं। पापाजी मम्मीजी की भी इच्छा थी कि वे भी महाकालेश्वर के दर्शन करें, परंतु ज्यादा चलना उनके बस का नहीं था। तब हमने महाकालेश्वर में पूछा तो पता चला कि व्हील चेयर मिल जाती है। यह भी देखा कि कार कैसे महाकालेश्वर मंदिर के पास तक जा पाये, जिससे उनको ज्यादा न चलना पड़े।

कार का रास्ता – गोपाल मंदिर से महाकाल घाटी की और जाते हुए, दायीं तरफ चौबिसखम्बा माता का मंदिर के रास्ते में मुड़ें, और फिर बायीं तरफ वाला रास्ता जो कि घाटी जैसा है, उस पर जायें, बस उसके बाद रास्ते पर चलते रहें, आप महाराजबाड़ा स्कूल पहुँच जायेंगे, जगह देखकर कर पार्किंग में लगा दें। अपना मोबाईल और चप्पल जूते कार में ही छोड़ दें।

महाकालेश्वर मंदिर में ₹250 का टिकट वाली विंडो पर जब हम पहुँचे तो उनसे कहा कि 3 टिकट चाहिये और 2 व्हील चेयर चाहिये, तो उन्होंने कहा कि आप गेट नम्बर 5 पर चले जाइये, अटेंडेंट साथ में जा सकते हैं। व्हील चेयर व उनके अटेंडेंट के लिये दर्शन फ्री हैं, कोई टिकट लेने की आवश्यकता नहीं है। हम गेट नम्बर 5 पर गये और हमें अंदर बैठने के लिये कह दिया गया। इस समय सुबह के 6.10 हो रहे थे। 5 मिनिट बाद ही 2 लोग आये और उन्होंने पापाजी मम्मीजी को व्हील चेयर पर बैठाया व दर्शन हेतु महाकालेश्वर मंदिर में चल दिये।

सुबह ₹1500 वाली लाइन भी लंबी थी, जिसमें महिलाओं को साड़ी व पुरुषों को धोती व बनियान पहनना होता है। हमें सीधे नंदी हाल के पीछे लगी रेलिंग के पास ले गये, वहाँ से पैदल जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किये, और वापिस उसी रास्ते मंदिर के बाहर आ गए। दर्शन करने में लगा समय लगभग 15 से 20 मिनिट रहा। हम घर से सुबह 6 बजे निकले थे व वापिस 6.45 पर घर पर आ गये थे।

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