आज हमारे बेटे हर्षवर्धन रस्तोगी का जन्मदिन है, आज हमारे बेटेलाल ६ वर्ष के हो चुके हैं, समय कितनी जल्दी बीत जाता है, पता ही नहीं चलता है। आज से ठीक ६ वर्ष पूर्व सुबह १० बजे शल्य चिकित्सक ने शल्यकक्ष से बाहर आकर हमें बेटे के होने पर बधाई दी थी, और जच्चा और बच्चा स्वस्थ होने की सूचना दी थी।
जन्म से ठीक दो दिन पूर्व हम अपने चिकित्सक के पास गये थे तो उन्होनें बताया कि बच्चे के साथ गर्भ में कुछ समस्या है और सामान्य रुप से बच्चा बाहर नहीं आ पायेगा, इसलिये जच्चा और बच्चा के लिये शल्यक्रिया ही ठीक है, और हमारे चिकित्सक ने बोला कि अगर चाहिये तो किसी और चिकित्सक के पास भी दिखा सकते हैं और दूसरा मत भी ले सकते हैं, तो हमने दूसरा मत एक और स्त्री विशेषज्ञ से लिया और सारे रिपोर्ट्स दिखाये, तो उन्होंने भी शल्य क्रिया ही ठीक बताई।
यह तय हो चुका था कि आने वाले बच्चे का जन्म शल्यक्रिया के द्वारा ही उचित तरीका है, तो हमने अपने ज्योतिष दोस्त से सही जन्म समय पूछा, तो उन्होंने बोला कि ४ नवंबर को गुरु पुष्य नक्षत्र है, और सुबह का समय दिया। हमने एकदम अपने चिकित्सक के पास आकर ४ नवंबर को सुबह शल्यक्रिया करने के लिये आरक्षित कर लिया।
ज्योतिष दोस्त का कहना था कि हम सारी ग्रह स्थितियों के अच्छे या अनुरुप होने तक रुक नहीं सकते हैं, तो जो भी जल्दी से जल्दी अच्छी मुहुर्त मिलता है उसी मुहुर्त पर केक कटवा लीजिये (शल्यक्रिया करवा लीजिये)।
सुबह ६ बजे चिकित्सक ने अपने निजी चिकित्सालय में बुलवा भेजा था, और निर्देश भी दिये थे कि क्या खाना है कब खाना है, कौन सी दवाई लेनी है वगैराह वगैराह। सुबह ५ बजे हम उठे कि जल्दी से नहा लेते हैं और तैयार होकर पूजा करने के बाद चिकित्सालय जायेंगे। तभी पास के घर से विलाप की आवाजें आने लगीं, पास के घर में आंटी जी का देहान्त हो गया था, हम लोग जल्दी से जल्दी घर से निकलकर चिकित्सालय जाने के लिये तैयार होने लगे। और मन में यह भी आया कि देखिये “प्रकृति का नियम कि एक तरफ़ एक जिंदगी पूरी हो गई और दूसरी तरफ़ एक नई जिंदगी इस दुनिया में आने वाली है।” कितना अनोखा नियम भगवान ने बनाया हुआ है, शायद इसीलिये कि अपने जीवन में सभी परोपकार की भावना से जियें पर इंसान सब भूलकर भौतिक कार्यकलापों में लिप्त रहते हैं। आप लोग भी सोच रहे होंगे कि कहाँ मैं प्रवचन देने लग गया।
सुबह हम बिल्कुल समय पर ६ बजे चिकित्सालय पहुँच गये और वहाँ उपस्थित कर्मचारियों ने अपना कार्य शुरु कर दिया, जो भी इंजेक्शन और दवाईयाँ देनी थीं, दे दी गईं, बिल्कुल उसी समय तक शल्यकक्ष में ३ शल्यक्रिया हो चुकी थीं, और फ़िर हमारा नंबर आया तो एक चिकित्सक ने हमसे आकर बोला कि एक घंटे बाद शल्यक्रिया के लिये लेते हैं, १० बज रहे थे, हमारे मुहुर्त का समय हो रहा था, तो जिन चिकित्सक को हम दिखाते थे उन्हें कहा कि एक घंटॆ बाद का समय दिया जा रहा है, और हमने तो समय दो दिन पहले ही आरक्षित करवा लिया था। तब वही चिकित्सक अपने साथ शल्यकक्ष में ले गयीं और उन चिकित्सक को बोलीं कि “इनका मुहुर्त समय है, और अभी ही शल्यक्रिया करनी है”।”, बस फ़िर क्या था, १० मिनिट बाद ही हमें शल्य चिकित्सक ने बताया कि बच्चा हो गया है और जच्चा बच्चा दोनों सकुशल हैं, पिता बनने की खुशी में कब हमारे आँख भर आयीं, पता ही नहीं चला, तभी पापा आ गये तो मैंने रुँधे गले से कहा “पापा मैं पापा बन गया।”
जब जच्चा और बच्चा को बाहर लाया गया, तो मेरी घरवाली याने कि जच्चा कि आँखों में भी खुशी के आँसू थे, अपनी इतनी बड़ी शल्यक्रिया होने के बाबजूद उफ़्फ़ तक नहीं की, तब से तो मेरी नारी के लिये श्रद्धा और भी बढ़ गई।
मेरा बच्चा मेरी गोद में था, जब अपने निजी कक्ष में पहुँचे तब पता चला कि लड़का है, उसके पहले मैंने जानने की कोशिश ही नहीं की थी, कि लड़का है या लड़की। बस बच्चे की चाहत थी, कि अच्छॆ से स्वस्थ हो।
तो ये थी मेरे बेटे हर्ष के जन्मदिन की बातें, और फ़िर तो बधाई देने वालों का, मिलने वालों का तांता लगा हुआ था, और मैं खुद के लिये एक अजब सी अनुभूति महसूस कर रहा था।