रामायण में एक प्रसंग आता है कि जब लक्ष्मण के द्वारा मेघनाथ का वध हो जाता है, को मेघनाथ की दक्षिण भुजा सती सुलोचना के समीप गिर जाती है और पतिव्रता का आदेश पाकर वह भुजा सारा वृतांत लिख कर बता देती है।
तब सुलोचना निश्चय करती है कि मुझे भी अब सती हो जाना चाहिए। किंतु पति का शव दो रामदल में पड़ा हुआ था फिर भी कैसे सती होती? तब उसने अपने श्वसुर रावण से कहा कि आप मेरे पति का शव मांग लो।
तब रावण ने उत्तर दिया देवी सुलोचना जिस समाज में बाल ब्रह्मचारी श्री हनुमान परम जितेंद्रिय श्री लक्ष्मण तथा एक पत्नीव्रती भगवान श्री राम वर्तमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है की इन महापुरुषों के द्वारा तुम निराश भी नहीं लौटाई जाओगी।
जब रावण सुलोचना से यह बातें कर रहा था उस समय उसके कुछ मंत्री भी उसके पास बैठे हुए थे। उन्होंने कहा जिनकी पत्नी को आप ने बंदी बनाकर अशोक वाटिका में रखा हुआ है, उसके पास आपकी बहू का जाना कहां तक उचित है, यदि वह गई तो क्या सुरक्षित वापस लौट सकेगी?
रावण ने अपने मंत्रियों को कहा लगता है तुम सब की बुद्धि नष्ट हो गई है, अरे यह तो रावण का काम है जो दूसरे की स्त्री को अपने घर में बंदी बनाकर रख सकता है राम का नहीं।
धन्य है श्री राम का चरित्र बल जिसका विश्वास शत्रु भी करता है और प्रशंसा करते थक गए नहीं हमें राम के इस उदात्त चरित्र से अवश्य प्रेरणा लेनी चाहिए।