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धर्म वैज्ञानिकों की मशीनों से मधुमेह को काबू में किया गया

धर्म वैज्ञानिकों के द्वारा किये जा रहे मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप की पिछली पोस्ट के बाद मुझसे कई मित्रों और पाठकों ने द्वारका आश्रम का पता और फोन नंबर के बारे में पूछा, मैं आश्रम गया जरूर था पर पता मुझे भी पता नहीं था, आज हमारे पास पता भी आ गया है और फोन नंबर भी उपलब्ध है।

 

उसके पहले एक बात और मैं साझा करना चाहूँगा कि हमारे मित्र मधुमेह के लिये आश्रम नियमित तौर से जा रहे थे और उन्हें काफी आराम भी है, पहले उनकी शुगर 180 के आसपास रहती थी, और कई बार की कोशिश के बाद ज्यादा से ज्यादा 145-148 तक आती थी, साधारणतया शुगर की मात्रा 140 होती है, आज उनकी शुगर 132 आयी तो वे भी बहुत खुश थे, हालांकि अभी दवाई भी जारी है, जहाँ तक मुझे याद है गुरू जी ने बताया था कि धीरे धीरे दवाई की मात्रा कम करते जायेंगे। फेसबुक पर भी एक टिप्पणी थी कि अगर कोई इंसुलिन वाला मरीज ठीक हुआ हो तो उसके बारे में बतायें, तो मैं मेरे मित्र चित्तरंजन जैन से आग्रह करूँगा कि वे इस बारे में पता कर सूचित करें।

 

इसी बाबद मेरे ऑफिस में एक सहकर्मी से स्लिप डिस्क की बात हो रही थी, कि उनकी बहिन को यह समस्या लगभग 2 वर्ष से है और पहले तो वे बिल्कुल भी पलंग से उठ भी नहीं पाती थीं, पर फिर उन्हें किसी से पता चला कि सोहना (हरियाणा में, गुड़गाँव से 40 कि.मी.) में कोई व्यक्ति देशी दवा से इलाज करता है और वो पैर की कोई नस वगैराह भी दबाता है, तो उनकी बहिन को कुछ ही दिन में बहुत आराम मिल गया, वे बता रही थीं कि उनकी बहिन अब घर में अपने सारे काम खुद ही कर लेती हैं, उनके लिये भी हमने पता किया था, तो हमें मित्र द्वारा सूचना दी गई कि स्लिप डिस्क वाली समस्या में भी किसी मरीज को काफी लाभ हुआ है।

 

बात यहाँ मानने या न मानने की तो है ही, क्योंकि जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वे इसे वैज्ञानिक पद्धति का इलाज मानकर करवा सकते हैं, और जो ईश्वर को मानते हैं वे इस ईलाज के लिये बनाई गई मशीनों के लिये अपने वेद और पुराणों में वर्णित प्राचीन पद्धति को धन्यावाद दे सकते हैं।

 

द्वारका आश्रम का पता इस प्रकार से है –

 

धर्म विज्ञान शोध ट्रस्ट

द्वारिका”, नीलगंगा रोड,

लव-कुश कॉलोनी,

नानाखेड़ा,
उज्जैन (म.प्र)

Phone – धर्म वैज्ञानिक उर्मिला नाटानी 0734 42510716

 

Dharma Vigyan Shodh Trust

Dwarika”, Neelganga Road,

Lav-Kush Colony,

Nanakheda, Ujjain (M.P.)

Phone – Religious Scientist 0734 – 42510716

धर्म वैज्ञानिक जो बिना किसी दवा के मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप को ठीक कर रहे हैं

धर्म वैज्ञानिक नाम ही कुछ अजीब लगता है न, लगना भी चाहिये हमारे पूर्वज, ऋषि, महर्षियों ने जो भी नियम हमारे लिये बनाये थे, उन सबके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर होता है, बस उन कारणों को लोगों को नहीं बताया गया, केवल रीत बना दी गई और डर भी बैठा दिया गया कि अगर ऐसा नहीं करोगे तो अच्छा नहीं होगा। जो धर्म पर अध्ययन कर उसके पीछे वैज्ञानिक तथ्यों को ढ़ूँढ़ते हैं, इस बार के उज्जैन प्रवास के समय हमारे मित्र चित्तरंजन जैन ने हमें इस नई संस्था से अवगत करवाया, हम उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं, जब तक कि वे खुद किसी चीज से संतुष्ट नहीं होते जब तक वे न तो किसी को कुछ बताते हैं और न ही दिखाते हैं।
इस बार हम शाम के समय उनकी दुकान पर बैठे हुए थे, तो उन्होंने हमसे पूछा कि अगर आप एक घंटा फ्री हों तो हम आपको नई जगह ले चलते हैं, जहाँ मैंने भी पिछले 7 दिन से जाना शुरू किया है, इस जगह आश्रम का नाम है द्वारिका, हम उनके साथ चल दिये, कि चलो हमारे पास एक घंटा है, और हम भी कुछ ज्यादा जानें इस आश्रम के बारे में। जाते जाते हमें हमारे मित्र ने बताया कि आपको तो पता ही है कि हमें मधुमेह की बीमारी है और यहाँ पर मात्र 30 दिन में मधुमेह को हमेशा के लिये खत्म करने की बात कही जाती है, कि उसके बाद कभी भी आपको मधुमेह के लिये दवाई लेनी ही नहीं होगी। उनके ईलाज की पद्धति चार चीजों पर आधारित है, चुँबक, प्रकाश, आकृति और मंत्र। आश्रम में खाने के लिये कोई दवाई नहीं दी जाती है, केवल उपरोक्त चार चीजों पर ही बीमारियों का ईलाज किया जाता है।
हमारे मित्र के साथ हम आश्रम में पहुँचे, वहाँ प्रथम तल पर सामने ही गुरू जी बैठे हुए थे, उनके पास ही हमारे पुराने मित्र मुन्नू कप्तान भी बैठे हुए थे, हमने सबको राम राम की, हमारे मित्र ने हमें कहा कि हम तो ईलाज के लिये जा रहे हैं, आपको भी अगर आजमाना है तो आ जाओ, हमें आजमाना तो नहीं था, परंतु देखना जरूर था, हम उनके साथ कमरे में गये वहाँ तीन पलंग लगे हुए थे, हरेक पलंग की छत पर कुछ आकृतियाँ बनायी हुईं थीं, जैसे कि पिरामिड, त्रिकोण इत्यादि और साथ ही वहाँ विभिन्न तरह के बल्ब लगाकर प्रकाश की व्यवस्था की गई थी, हमारे मित्र ने वहीं पर दीदी जी जो कि वहाँ सेवा देती हैं, उनसे एक थाली ली, जिसमें से कुछ काला सा तिलक अपनी नाभि मे लगाया और 7 तुलसा जी की पत्ती खाईं और फिर चुँबकीय बेल्ट अपनी कमर पर नाभि के ऊपर कस कर लेट गये, उन्हें 15-20 मिनिट अब उसी अवस्था में लेटे रहना था, पूरे आश्रम में मंत्र ध्वनि गुँजायमान थी। तो हम बाहर आकर गुरू जी के पास बैठ गये और उनसे बातचीत कर अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करने लगे।
गुरूजी ने हमें पूरे आश्रम की मशीनों से अवगत करवाया, जिन्हें उन्होंने 31 वर्षों के शोध के बाद खुद ही तैयार किया था, और लगभग सभी मशीनें लकड़ी की ही बनी हुई था, जिसमें छत पर अलग अलग आकृतियाँ थीं, गुरूजी ने हमें मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप जैसी मशीनों के बारे में जानकारी दी, कि ये सब बीमारी हम केवल एक महीने में ठीक कर देते हैं, एक बार ठीक होने के बाद उन्हें कभी भी जीवनभर किसी दवाई का सेवन भी नहीं करना होगा। किसी को बुखार हो तो हम उसे केवल 15 मिनिट में ठीक कर देते हैं। किसी को तनाव है तो उसके लिये भी उनके लिये अलग मशीन है और उसके लिये भी मात्र 15 मिनिट लगते हैं। दोपहर बाद हमें भी तनाव तो था ही, परंतु वहाँ के माहौल से और मंत्रों से हमारा तनाव 5 मिनिट में ही दूर हो गया। 
हीमोग्लोबीन अगर कम है तो उसके लिये भी एक अलग यंत्र है, जिसके बारे में हमें बताया गया कि उसमें भी रोगी को रोज 15 मिनिट बैठना होता है और आश्चर्यजनक रूप से 2-4 दिन में ही लाभ दिखने लगता है, इसके पीछे गुरूजी ने बताया कि हमारी अस्थिमज्जा को ब्रह्मंडीय ऊर्जा के संपर्क से ठीक करते हैं, और उनकी सारी मशीनें व यंत्र इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं।
ईलाज के लिये कोई फीस नहीं है, बिल्कुल निशुल्क है, आश्रम की यह सुविधा मुख्य रूप से उज्जैन में ही उपलब्ध है, उज्जैन के अलावा उनके आश्रम इंदौर और इलाहाबाद में भी हैं। पिछले सप्ताह ही मित्र से बात हुई तो उन्होंने हमें बताया कि मधुमेह की जाँच में पता चला कि 15 प्रतिशत का फायदा है, और अब मानसिक शांति पहले से ज्यादा है, साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ज्यादा है।

कृपया पते के लिये इस पोस्ट को देखें ।

रामायण के सीताजी स्वयंवर के कुछ प्रसंग (Some context of Sitaji Swyvamvar from Ramayana)

    आज सुबह रामायण के कुछ प्रसंग सुन रहे थे, बहुत सी बातें अच्छी लगीं और शक भी होता कि वाकई में रामायण में ऐसा लिखा हुआ है या ये अपने मन से ही किसी चौपाई का अर्थ कुछ और बताकर जनता को आकर्षित कर रहे हैं, अगर हमें ये जानना है कि सब बातें सत्य है या नहीं तो उसके लिये रामायण पाठ करना होगा, और उसकी हर गूढ़ बात को समझना होगा, यहाँ जानने से तात्पर्य रामायण सुनाने वाले पर प्रश्न चिह्न लगाना नहीं है बल्कि श्रद्धालुओं को सहज ही सारी बातें स्वीकार करने से है, क्योंकि श्रद्धालुओं को उस ग्रंथ का ज्ञान नहीं है।
 
जो बातें अच्छी लगीं, उसके बारे में –
 
    जब रामजी अपने भाईयों के साथ सीताजी के स्वयंवर में पहुँचे, तो जैसा कि सर्वविदित है कि सीताजी के स्वयंवर में भगवान परशुराम के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी थी, जब जग के सारे राजा धनुष ही नहीं उठा पाये, तो प्रत्यंचा की तो बात दूर की रही, तब रामजी को उनके गूरूजी ने कहा- जाओ राम इस धनुष को उठाओ और तोड़ दो, इस धनुष ने कई सरों को झुका दिया है, इसलिये इस धनुष का टूटना जरूरी है, और भगवान राम ने धनुष को खिलौने की तरह तोड़ दिया।

    धनुष टूटते ही बहुत हो हल्ला हुआ, और स्वयंवर की शर्त के मुताबिक सीताजी को रामजी को वरमाला पहनानी थी, यहाँ पर एक और बात अच्छी लगी कि पहले के जमाने में केवल वरमाला हुआ करती थी और केवल स्त्री ही पुरूष को माला पहनाकर वर लिया करती थी, उस समय आज की तरह वधुमाला को प्रचलन नहीं था, कि वधु भी वर को माला पहनाये, पहले जब स्त्री माला पुरूष के गले में पहनाती थी तो उसे वरमाला या जयमाला कहा जाता था, कई चीजें कालांतर में हमारी सांस्कृतिक व्यवस्था में जुड़ती गईं।

जब सीताजी रामजी की तरफ जयमाला लेकर बढ़ रही थीं तब सीताजी ने मन ही मन प्रार्थना की – प्रभु, कोई ऐसा प्रसंग उपस्थित करें कि मैं आपको जयमाला पहना पाऊँ, तभी सीताजी ने लक्ष्मण की तरफ देखा और आँखों में ही प्रार्थना की कि रामजी लंबे हैं तो कुछ ऐसा उपक्रम करें कि मैं आसानी से रामजी को जयमाला पहना दूँ, लक्ष्मणजी ने आँखों में ही सीता माँ की आज्ञा स्वीकार कर ली और जब सीताजी रामजी के करीब आईं, तभी लक्ष्मणजी रामजी के चरणों में गिर पढ़े, जैसे ही रामजी लक्ष्मणजी को उठाने के लिये झुके, उसी समय सीताजी ने रामजी को जयमाला पहनाकर वरण कर लिया, रामजी ने लक्ष्मणजी से पूछा – लक्ष्मण चरण वंदन का यह भी कोई समय है, तो लक्ष्मणजी का जबाब था – प्रभू, बड़े भैया के चरण वंदन के लिये कोई समय तो निर्धारित नहीं है, चरण वंदना तो दिन में कभी भी और कितनी भी बार की जा सकती है, बात सही है और हमें भी अपने जीवन में यह अपनाना चाहिये।

घर बैठे वेद की शिक्षा

     “धर्मो रक्षति रक्षत:” अर्थात धर्म की रक्षा से ही सबकी रक्षा होती है, अगर हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा ।

     वेदों को बहुत करीब से जानने की बहुत ही तीक्ष्ण इच्छा थी, और वेदों को पढ़ना कहाँ से शुरू किया जाये बहुत देखा, बहुत सोचा, फ़िर कल्याण के दो माह पहले के अंक में वेदों के ऊपर बहुत ही सार रूप मेंimage एक अच्छा लेख पढ़ा। तो हमने ऋगवेद पढ़ना शुरू किया, परंतु ऋचाओं की संस्कृत इतनी कठिन है, या यूँ कह सकते हैं कि इस मूढ़ को समझ नहीं आईं, तो सोचा पहले संस्कृत व्याकरण ठीक की जाये और उसके बाद वेदों का पाठ किया जाये, क्योंकि अनुवाद में असली अर्थ समझ नहीं आता है, अनुवाद तो किसी व्यक्ति द्वारा किया गया उस ऋचा का अनुमोदन है, जो समझने में भी कठिन होता है। तो अब पाणिनी व्याकरण पढ़ने की शुरूआत की, हमारे पास एक किताब रखी थी “कारक प्रकरणम”, अभी व्याकरण ठीक करने की शुरूआत यहीं से की है, हालांकि यह ठीक नहीं है, हमारी एक पुरानी किताब शायद उज्जैन में रखी है, तो उसका अभाव खल रहा है। अब साथ में “चरक संहिता” भी पढ़नी शुरू की, “चरक-संहिता” की संस्कृत भी कठिन है परंतु फ़िर भी बहुत कुछ समझ में आ रहा है, हिन्दी अनुवाद से काफ़ी मदद मिल रही है।

image    इसी बीच वेदों के लिये उपयुक्त स्थान ढूँढ़ते रहे और अभी भी ढूँढ़ रहे हैं, क्योंकि वेदों में लिखा है कि वेद केवल गुरू की वाणी से ही समझे जा सकते हैं, पढ़कर नहीं समझे जा सकते हैं। फ़िर हमें ध्यान आया कि हम यत्र तत्र सर्वत्र ढूँढ़ मचा रहे हैं, और हमने उज्जैन को तो भुला ही दिया, क्योंकि वहाँ संस्कृत के बड़े बड़े प्रतिष्ठान उपस्थित हैं, जो भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का दुष्कर कार्य कर रहे हैं ।

    हमें इसी बीच एक अच्छा पाठ्यक्रम मिल गया, वह है “घर बैठे वेद की शिक्षा”, यह पाठ्यक्रम महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन द्वारा संचालित है। इस पाठ्यक्रम में पत्राचार से लगभग ५० पाठ भेजे जायेंगे, और हर पाठ के बाद एक प्रश्नोत्तरी संलग्न है, इस पाठ्यक्रम की अवधि २ वर्ष की है, जिसमें हर छ: माह में १२ पाठ और अंतिम छ: माह में १४ पाठ भेजे जायेंगे, शिक्षा संस्था वेदो के प्रचार के लिये यह पाठ्यक्रम चला रहा है, इसलिये इसका शुल्क भी नाममात्र २५० रूपये प्रतिवर्ष ही रखा गया है। हर छ: माह में भेजे गये पाठों की प्रश्नोत्तरी भरकर वापिस महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन को अपने खर्चे से डाक द्वारा भेजनी होगी। यह पाठ्यक्रम हिन्दी एवं अग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है।

    पाठ्यक्रम में वेदों के बारे में जानकारी, संहिता उद्धरण, ब्राह्मणा, अरण्यका और उपनिषदों को हिन्दी एवं अंग्रेजी में विस्तार से दिया जायेगा ।

    ज्यादा जानकारी के लिये आप यहाँ लिख सकते हैं –

माननीय सचिव महोदय

महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रिय वेदविद्या प्रतिष्ठान,

प्राधिकरण भवन, द्वितीय माला, भरतपुरी, उज्जैन – ४५६०१० (म.प्र.)

ईमेल – [email protected]

    हमने ईमेल किया था, और प्रतिष्ठान की तरफ़ से तत्परता से ईमेल आ गया था। तो क्या विचार है अब घर बैठे वेदों को समझ लिया जाये।

सारे वेद ऑनलाईन आप यहाँ पढ़ सकते हैं http://www.sanskritweb.net/

फ़ोटो – महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रिय वेदविद्या प्रतिष्ठान की वेबसाईट से लिये गये हैं

किसी भी कार्य को शुरु करने के पहले अपने अवयवों की ऊर्जा को एकत्रित करना होता है।

   मानव ऊर्जा हम जब भी कोई नया कार्य शुरु करते हैं, तो उसके बारे में अच्छे और बुरे दोनों विचार हमारे जहन में कौंधते रहते हैं, हम उस कार्य को किस स्तर पर करने जा रहे हैं और उस कार्य में हमारी कितनी रुचि है, इस बात पर बहुत निर्भर करता है। सोते जागते उठते बैठते कई बार केवल कार्य के बारे में ही सोचना उस कार्य के प्रति रुचि दर्शाता है।

     नया कार्य शुरु करने के पहले अपने सारे अवयवों की ऊर्जा एकत्रित करना पड़ती है, और फ़िर कार्य के प्रति ईमानदार होते हुए उस कार्य से जुड़े सारे लोगों के बारे में और उसके प्रभावों के बारे में निर्णय लेकर कार्य को शुरु करना चाहिये।

    हरेक कार्य के सामाजिक प्रभाव होते हैं, और हरेक कार्य के तकनीकी पहलू होते हैं जो कि मानव जीवन पर बहुत गहन प्रभाव डालते हैं।

    पर सबसे जरुरी चीज है अपने अवयवों की संपूर्ण ऊर्जा एकत्रित करके कार्य की शुरुआत अच्छे से की जाये और उसके अंजाम तक पहुँचाने के लिये भी अपनी संपूर्ण ऊर्जा का उपयोग करना चाहिये।

मंदिर क्यों जायें..

यदि आपमें आध्यात्म जीवित है, या आध्यात्मिक हो रहे हैं? तो आप इसे पसंद करेंगे!

यदि आपमें आध्यात्म मर गया हैं, तो आप इसे नहीं पढ़ना चाहेंगे।
यदि आप आध्यात्म में उत्सुक हैं तो वहाँ अभी भी आशा है!
कि मंदिर क्यों जायें? ?

एक ‘भक्त’ गोर ने  एक ? अखबार के संपादक को शिकायती पत्र लिखा कि मंदिर जाने का कोई मतलब नहीं।

‘मैं 30 साल से जा रहा हूँ  और आगे लिखा कि इतने समय में मैं कुछ 3000 मंत्र सुन चुका हूँ।

लेकिन अपने जीवन के लिए, मैं उनमें से एक भी याद नहीं कर  सकता हूँ।

इसलिये,  मुझे लगता है ये सब सेवाएँ देकर गुरु अपना समय बर्बाद कर रहे हैं और मैंने अपना समय बर्बाद किया?

इस पत्र को  “संपादक के नाम पत्र”  स्तम्भ में छापा गया और इससे असली विवाद शुरु हुआ, जिससे संपादक बहुत आनंदित हुआ।

ये सब ह्फ़्तों तक चलता रहा जब तक कि यह पक्की दलील नहीं दी गई –

मैं लगभग 30 साल से शादीशुदा हूँ और इस समय में मेरी पत्नी ने लगभग 32.000  बार भोजन पकाकर खिलाया होगा!

लेकिन जीवनभर खाना खाने के बाद भी मैं पूरी सूचि तो क्या ? मैं उनमें से कुछ एक भी याद नहीं कर सकता।

लेकिन मैं यह जानता हूँ … उस खाने से मुझे बल मिला और मुझे मेरा काम करने की जरूरत के लिये ताकत दी।

अगर मेरी पत्नी ने मुझे भोजन नहीं दिया होता, तो शायद आज मैं शारीरिक रूप से मर चुका होता ?

इसी तरह, अगर मैं मंदिर में पोषण के लिए नहीं गया होता तो मैं आज आध्यात्मिक रुप से मृत हो गया होता।

जब आपको कुछ भी समझ नहीं आता है …. तो भगवान ही कुछ करते हैं ! विश्वास दिखता है? अदृश्य, अविश्वसनीय को मानना ही पड़ता है और असंभव सी चीज भी प्राप्त हो जाती है!

भगवान का शुक्र है हमारे भौतिक और हमारे आध्यात्मिक पोषण के लिये!

अनुवादित – सोर्स

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