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हर इंडियन का सपना डिजिटल इंडिया (DigitalIndia)हो अपना

   सूचना क्रांति के इस आधुनिक युग में #DigitalIndia सपना नहीं होना चाहिये, सूचना क्रांति को अपना काम करने का हथियार बनाना चाहिये। हमें वैश्विक स्तर पर मुकाबले में खड़े रहना है तो हमें हर जगह सूचना क्रांति का उपयोग करना होगा और पूरा भारत डिजिटलइंडिया करना होगा।

   सरकारी तंत्र के कार्य संसाधन को मानवीय से हटाकर सबसे पहले डिजिटाईज करने की जरूरत है, सही जानकारी या फाईलें अधिकारियों के पास पहुँच ही नहीं पाती हैं और न ही उन्हें पता होता है कि कितनी फाईलें उनके अनुमोदन या स्वीकृति का इंतजार कर रही हैं। जब सारे कार्य डिजिटाईज हो जायेंगे तो उन्हें भी पता होगा कि कितनी फाईलें लंबित हैं और उनको स्वीकृति में लगने वाले समय के हिसाब से कम से कम सरकारी अधिकारी अपने भरपूर समय कार्य को दे पायेंगे।

मॉडल कुछ ऐसा बना सकते हैं DigitalIndia

  1. जनता अपने फॉर्म ऑनलाईन ही भरे और या तो अपने कागजात सत्यापित कर स्कैन करके अपलोड करे या फिर पहचान पत्र का कोई पासवर्ड हो जिससे वह अपने आई.डी. को सत्यापित कर सके।
  2. ग्राहक सेवा केन्द्र में ग्राहक सेवा ऑपरेटर हर चीज को वेरीफाय कर ले, और अगर किसी और दस्तावेज की जरूरत है तो उसकी डिमांड जनरेट कर दे, जिससे ईमेल और एस.एम.एस. से उसके पास तत्काल सूचना मिल जाये।
  3. अगर सारे दस्तावेज जाँच लिये गये हों तो वह फाईल ग्राहक सेवा ऑपरेटर अगले पढ़ाव याने कि उस डिपार्टमेंट के सक्षम अधिकारी की क्यू में लगा दे, अधिकारी के पास तत्काल ही डेशबोर्ड पर नोटिफिकेशन चला जाना चाहिये। जैसे ही सक्षम अधिकारी सारी सूचना को वैरीफाय कर दे तो परिचय पत्र तत्काल अपने आप ही जनरेट हो जाना चाहिये।
  4. परिचय पत्र जनरेट करने के बाद सिस्टम सॉफ्टवेयर खुद ही ऑटोमेटेड प्रोसेस से आवेदक के ईमेल पते पर भेज दे और मोबाईल पर एस.एम.एस. भेज दे।

   उपरोक्त मॉडल के फायदे होंगे कि सरकारी स्तर पर फिर से किसी भी सूचना को डिजिटाईज नहीं किया जायेगा, जिससे कोई भी काम पेडिंग नहीं होगा, और आवेदक को लॉग के जरिये पता भी रहेगा कि उसके कार्य की कितनी प्रगति हुई है, जिससे सरकारी कार्यॆं मे जनता के सामने सरकार की पारदर्शिता भी आयेगी। जिन लोगों के पास कंप्यूटर की पहुँच नहीं है या कंप्यूटर चलाना नहीं आता है, उन लोगों के लिये सरकार निजी कंपनियों के सहयोग से एक एक कंप्यूटर लगाकर छोटे छोटे सेन्टर शहरों एवं गाँवों में कई स्थानों पर खोल सकती है जिसके लिये आवेदक को नाममात्र की फीस चुकानी होगी।

   इसके लिये सरकार को क्लाऊड एवं एनालिटिक्स तकनीक का सहारा लेना होगा, क्लाऊड के जरिये अथेंटिकेशन के बाद सीमित या असीमित जानकारी प्राप्त कर सकता है। क्लाऊड प्राईवेट हो या पब्लिक, उसके हर यूजर का अथेंटिकेशन हो और लॉग जनरेट होते रहना चाहिये, जो कि सुरक्षा के लिये बेहद ही अहम है। सक्षम अधिकारियों को जो कि हर जानकारी को एक्सेस कर सकते हैं उनके लिये आर.एस.ए. टोकन कोड के जरिये लॉगिन करने का प्रावधान होना चाहिये, जिससे कि कोई भी उनके लॉगिन को हैक न कर पाये।

   ई-गोवर्नेंस में चार चाँद लग जायेंगे अगर हर चीज ऑनलाईन हो जायेगी, किसी चीज के खोने का डर नहीं, हम अपना परिचय पत्र या कोई भी आई.डी. अपने मोबाईल पर रखकर चल सकते हैं, जिससे पर्यावरण की रक्षा तो होगी ही और साथ ही परिचय पत्र जारी करने की गति तेज होगी, लागत कम हो जायेगी एवं सबके समय की बचत होगी। ई-गोवर्नेंस में DigitalIndia  के लिये इन्टेल कंपनी भारत सरकार की मदद कर रही है।

केलोग्स वाले गुप्ताजी का नाश्ता

दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते |
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं जायते तादृशी प्रजा ||

जैसे दीप का उजाला अँधेरे को खा जाता है, और काजल को उत्पन्न करता है, वैसे ही जिस तरह का भोजन हम ग्रहण करते हैं, वैसे ही हम उसी तरह का व्यवहार करते हैं।

 उपरोक्त श्लोक आज भी पुरातनकाल की बात को सत्य साबित करता है। अगर हम गैस्ट्रिक भोजन खायेंगे तो हमें पेट की समस्या होगी और अगर सात्विक भोजन करेंगे तो हम तन मन से प्रसन्न रहेंगे। हमें अपने दैनिक जीवन में दूध एवं दही का भरपूर उपयोग करना चाहिये, इससे हमारे शरीर की बहुत सारी जरूरतें पूरी हो जाती हैं।
केलोग्स वाले गुप्ताजी का नाश्ता बहुत ही प्रसिद्ध है, उनके घर का नाम गट्टू है, घरवाली यानी कि श्रीमती गुप्ता का नाम शालू है, बेटे का नाम रोहन जिसे प्यार से घर में रोहू बुलाते हैं और बेटी का नाम रितिका जिसे प्यार से रितु बुलाते हैं। गट्टू याने कि गुप्ताजी केलोग्स के डिस्ट्रीब्यूटर हैं और आम पति की तरह उनको भी भूलने की बीमारी है, हालांकि उनके भी दिल में पहुँचने का रास्ता एक ही है, वह है पेट जिसका रास्ता जबान के जरिये होता है और उनकी पत्नि शालू उनके ही केलोग्स से विभिन्न तरह के व्यंजन बनाकर उनको खिलाती रहती हैं, जो कि सामान्यत किसी को भी पता नहीं होते हैं। तो उनकी पत्नि शालू गट्टू याने कि अपने पति के दिल में ही रहती हैं।
बेटी रितु हरेक बात को शॉर्ट फॉर्म में ही कहती है, जिससे गट्टू याने कि रितु के पापा हमेशा ही नाराज से होते हैं और बेटा रोहू पापा और दीदी की बात की नकल करते हैं। रोहू तो मम्मी की नकल करने से भी नहीं चूकता है।  शालू याने कि मम्मी भी नकल उतारने में माहिर हैं, और किसी की भी नकल हुबहू उतारती हैं और परिवार हँसी खुशी रहता है।
केलोग्स केनाश्ते का पहले हमें तो केवल दूध में ही भिगोकर खाने का पता था, पर केलोग्स वाले गुप्ता जी के घर की तो बात ही और है, कभी चॉकलेट मिलाकर शेक बना कर परिवार का मूड ठीक रखना तो कभी जल्दी जल्दी अगर बेटे को स्कूल के लिये मिठाई बना कर देना है तो केलोग्स से कैसे लड्डू बनाने हैं या फिर दही मिलाकर भी केलोग्स के व्यंजन बनाये जा सकते हैं।
खैर मुझे तो सबसे बढ़िया बात लगी कि नाश्ते के प्रकारों की जैसे कि पार्सल वाला नाश्ता, नखरे वाला नाश्ता, फर्स्ट क्रश वाला नाश्ता, जगह बनाने वाला नाश्ता, मूवी वाला नाश्ता, होमवर्क वाला नाश्ता, बेस्ट फैमिली वाला नाश्ता, चुप कराने वाला नाश्ता, रिमोट वापिस लेने वाला नाश्ता जब इतने सारे प्रकार के नाश्ते उपलब्ध हों तो कौन केलोग्स वाले गुप्ताजी के यहाँ नाश्ता नहीं करना चाहेगा, सुबह ही अच्छा नाश्ता हो जाये तो दिनभर अच्छा जाये।
So,
Eat good, keep the body and generations healthy.
Be good, keep the mind and generations healthy.
Do good, keep the society and generations healthy.

हर चीज में प्रसन्नता खुशी पायी जा सकती है

     खुशी मतलब कि जब हम दिल से, आत्मा से, अंतरतम से प्रसन्न होते हैं, जिसके मिलने से हमारे रोयें रोयें खड़े हो जाते हैं और ऐसा लगता है कि दुनिया का सारा आनंद हमें मिल गया है। हम इस अवस्था को तभी प्राप्त होते हैं जब ऐसी कोई चीज हमें मिल जाये जिसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं हो या फिर जितनी उम्मीद हो उससे ज्यादा मिल जाये। आजकल हर चीज में प्रसन्नता ढ़ूँढ़ी जा सकती है। फिर भले ही वह चीज पैसे से खरीदी जा सकती हो या न खरीदी जा सकती हो या फिर कोई अपना जो बहुत दूर हो वह एकदम से हमारे सामने आकर हमें अकस्मात ही झटका दे दे।

    ऐसी खुशी चेहरे से ही बयां हो जाती है, और भाव चेहरे के ऐसे होते हैं कि हम उस ताज्जुब, विस्मय, आश्चर्य, अचरज, अचम्भे, घबराहट और हैरत भरे चेहरे को एकदम से पहचान सकते
हैं, जब हम किसी को भी आश्चर्यजनक परिस्थितियों में डालते हैं तो खुद हमें ही पता नहीं होता है कि इस वातावरण को कैसे बदला जाये, खुद हम भी उस आनंद के अतिरेक के क्षण में आनंदित हो पता नहीं किसी नये अनुभव की सैर करते हैं। वातावरण में इतनी ऊर्जा होती है कि उस क्षण को हम कई बार तो गई वर्षों तक याद कर करके जीते हैं, और हमेशा यह क्षण हमारे तात्कालिक वातावरण को ऊर्जावान बना देते हैं। और वह क्षण हम कई वर्षों तक जीवित रखते हैं, इस प्रकार एक लम्हे की उम्र हम कई गुना बड़ा देते हैं।
    जब मैं भारत के बाहर मासिक ट्रिप पर रहता था तो भारत आने में मुझे लगभग 12 घंटों की यात्रा करनी होती थी, और मैं हर बार अपने बेटेलाल के लिये कोई न कोई ऐसी चीज ले जाता था कि वह मेरे आने का हमेशा इंतजार करता रहता था, हालांकि मेरे आने जाने की तारीखें बिल्कुल ही निश्चित होती थीं पर मैंने कभी भी पहले नहीं बताया कि मैं आ रहा हूँ और हमेशा घरवाली को भी बोल रखा था कि मेरे आने की तारीखों का बेटेलाल से जिक्र न करे, क्योंकि अगर बेटेलाल को पता रहता था तो वह फोन कर करके दम निकाल देता था, कि डैडी अब और कितनी देर लगने वाली है, आपका प्लेन थोड़ी और तेजी से नहीं उड़ सकता क्या या फिर टैक्सी वाले भैया को बोलो कि और तेज चलाये।
    मेरे घर पहुँचने का समय हमेशा ही सुबह होता था और तब वह सोकर उठा नहीं होता था, और मैं बेटेलाल के बगल में ही लेटकर धीरे से उसको प्यार करता था, तो बेटेलाल आनंदातिरेक
हो उठते थे, उनकी ऊर्जा स्फूर्ति और ताजगी देखते ही बनती थी, बिल्कुल वैसी ही ताजगी जैसे कि कोको कोला पीने के बाद आ जाती है, मन खुशियों से झूम उठता है, हमारे बेटेलाल को भी कोको कोला बहुत पसंद है, और हम आते समय हमेशा ही उनके लिये एक कोको कोला ले आते थे, बेटेलाल की खुशी दोगुना हो जाती थी।

तनख्वाह आमदनी सैलेरी कंपनसेशन या कॉस्ट

तनख्वाह याने कि जो तन खा जाती हो और आमदनी याने कि जहाँ से आमद होती है, सैलेरी आंग्लभाषा के शब्द से हमें कुछ समझ नहीं आया, अब कंपनशेसन कहा जाता है मतलब कि मुआवजा भी समझ जा सकता है और ईनाम भी, केवल शब्द का हेरफेर है। ऐसे ही कई जगह इसे कॉस्ट कहा जाता है मतलब कि लागत, हम हमारे मालिकान को कितना कमाकर देंगे। अब लगभग सारी जगहों पर शब्दों को बैलेन्स शीट के हिसाब से उपयोग किया जाता है। आजकल इसका कुछ हिस्सा वैरियेबल हो गया है जो कि वर्षभर के किये गये कार्य-संपादन के बाद कुछ राशि इसके नाम पर भी दी जाती है, जिससे कि सेवक खुश रहे और अगले वर्ष भी काम करता रहे।

 

केवल शब्द से कुछ नहीं होता, शब्द कोई भी हो पर सबका मतलब एक ही होता है और सबकी जिंदगी में इसका एक ही महत्व होता है, आदिकाल से ही इन शब्दों का महत्व वही है जो आज है और भविष्य में रहेगा। इस संख्या का हर वर्ष बढ़ौत्तरी होते रहना भी जरूरी है, जब इस संख्या में ठहराव आने लगे या फिर संख्याएँ बहुत ही धीमे से बदल रही हों तो समझ जाना चाहिये कि कहीं कुछ समस्य़ा है और हमें उस समस्या का समाधान ढ़ूँढ़ने के लिये तत्पर होना चाहिये।

 

जब हम राशि के काँटो पर चढ़ते हैं तो पहले की संख्याएँ जो कि होती तो समान ही हैं परंतु वे पूरी राशि को भार देती हैं, राशि को बड़ा होने में मददगार होती हैं, उन संख्याओं के ऊपर कूद लो, फाँद लो परंतु असर बेअसर ही होता है, पहली संख्या तो इतनी ढ़ीठ होती है कि हिलती ही नहीं, पता नहीं कौन सी चक्की का आटा खाकर बैठी होती है, दूसरी संख्या किसी की सरकती है तो किसी की नहीं और कभी कभी केवल एक ही संख्या बढ़ती है तो कभी तो वह भी पहली संख्या जैसी ढ़ीठ हो जाती है। अब हाँ उसके आगे की संख्याओं की बात करें तो वे फलेक्सिबल होती हैं, वे सरकने में इतना नाटक नहीं करती हैं। उनको कितना भी घुमा लो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

 

हे तनख्वाह! तुम्हारा इंतजार केवल मुझे नहीं, मेरे अलावा कई लोगों को होता है, तुम एक नहीं कई सपने तोड़ती फोड़ती हो, पता नहीं कितने सपनों को सपनों में ही बदल देती हो, हे आमदनी देवी! आप आद्य देवी हो, पर ये महँगाई देवी! जो कि नई नवेली देवी हैं और बाजार में आई हैं, ये आप पर भारी पड़ रही हैं, ये नई देवी की बढ़ने की रफ्तार इतनी तेज है कि आप इसका मुकाबला ही नहीं कर पा रही हैं, तो आप अपना प्रताप बढ़ायें और आमदनी पर पलने वालों पर कृपा बरसायें।

जीवन का पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में

अपने ही बनाये हुए सपनों के महल में ऐसा घबराया सा घूम रहा हूँ, कब कौन से दरवाजे से मेरे सपनों का जनाजा निकल रहा होगा, भाग भाग कर चाँद तक सीढ़ीयों से चढ़ने की कोशिश भी की, पर मेरे सपनों की छत कांक्रीट की बनी है किसी विस्फोट से टूटती ही नहीं। दम भी घुटता है पर कहीं से निरंतर ही ठंडी बयार आने से हमेशा ही सपनों के सच होने का भरोसा दिला देते हैं। इस जंजाल से निकलने के लिये कई बार छुप्पा में, कभी अक्षरों तो कभी शब्दों के पीछे, पर इन्होंने भी मेरा साथ न दिया, जब कोई और बुलाये तो झट से ये उधर चले गये, कभी मैंने तुम पर इसीलिये ऐतबार न किया।
ढ़ूँढ़ता ही रह जाऊँगा जीवन की कुछ सीढ़ियाँ, कभी सीढ़ियाँ ही टूटी मिलीं तो कभी रास्ते टूटे मिले, कभी छत नहीं मिली और अगर मिली भी तो आसमां में चाँद तारे न मिले, जिसने जैसा आसमां दिखाया बस हमेशा वैसा ही आसमां हमने देखा, हम अपना आसमां कब बनायेंगे, कब हम अपनी छत पर अपनी ही सीढ़ियों से जायेंगे, और कब हम शब्दों को अपना बना पायेंगे, सदियों तक इंतजार करेंगे, पर यह भी सत्य है कि इंतजार से कुछ नहीं मिलता, केवल और केवल हमें यही लगता है कि अपने लिये अपनी दुनिया खुद ही गढ़नी होगी।
जब दुनिया गढ़ने भी बैठे और जिसको हमने उस दुनिया का खुदा बनाने की ठानी, उसने हमारी दुनिया का खुदा बनने के लिये पहले तो राजीनामा कर लिया पर अब वह खुद ही अनिश्चितता के दौर से निकल रहा दिखाई देता, किसी दूसरी दुनिया से आने पर भी वहीं की टीस उसे इस दुनिया को मिटाने पर मजबूर कर रही है। जब खुदा खुद ही खुदी के राह पर निकल पड़े तो जीवन के पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में खड़ा दिखाई देता है, जहाँ दूर उसे दुनिया तो दिखती है, दुनिया को वह भी दिखता है, पर नदी नहीं, दुनिया तो इधर से उधर जाने के लिये पुलिया का इस्तेमाल करती है, पेड़ के पास खड़े होकर अपनी शक्ल के साथ कई जगह वाहवाही भी लूटते हैं, पर पेड़ के संघर्ष का कोई भी कहीं भी जिक्र नहीं करता, न उसकी भावनाओं को समझता।
बस खुश हूँ तो यूँ कि कुछ पक्षियों ने मेरी शाख पर घोंसले बना रखे हैं, केवल उनके लिये मैं इस प्रकृति से संघर्षरत हूँ, उनके शाख पर खेलने से जीवन की कुछ चीजों पर पड़े जालों को कभी झाड़ने की जरूरत ही नहीं आन पड़ी, जाले तो तब ही झाड़े जाते हैं जब वस्तु को या तो उपयोग करना हो या वह उपयोगहीन हो गई हो। जीवन में आगे बढ़ने की सीढ़ियाँ अब भी ढ़ूँढ़ रहा हूँ, जब कोई मेरी सीढ़ी को सहारा दे तो शायद मैं ज्यादा जज्बे से बेपरवाह होकर मंजिल पर चढ़ाई कर पाऊँगा, नहीं तो सपनों के महल को भरभराते देर ही कितनी लगती है।

जीवन में सफलता के लिये पहली बार मुँबई परिवार के साथ जाने का कठिन निर्णय

    जीवन में सफलता के लिये घर का अहम रोल होता है। घर वह होता है जहाँ हमारे माता पिता साथ रहते हैं और प्यार होता है। घर केवल चार दीवारी नहीं होता, चार दीवारी तो मकान होता है, जहाँ न अपने होते हैं और न ही प्यार होता है। मकान में लोग केवल रहते हैं पर घर में लोग जीवन को मजे लेते हुए जीते हैं। बचपन से ही इस शहर से उस शहर घूमते रहे पर कभी मकान में नहीं रहे, हमेशा पापा मम्मी के साथ घर में रहे, जहाँ भी जाते हम शहर के उस मौहल्ले या कॉलोनी में रच बस जाते। जब दूसरे शहर जाने का समय होता तो आँखें भीग आती थीं, फिर से एक नये शहर में जिंदगी शुरू करना बहुत कठिन होता है, फिर से अपने मित्र बनाना, पड़ोसियों से तालमेल बैठाना। यही अनुभव जीवन भर काम भी आता है, हम लोग इंसान को पहचानने लगते हैं। जीवन के कटु पलों से हम अपने में बहुत सी बातें सीख जाते हैं और वक्त के पहले ही काफी बड़े हो जाते हैं।
    जब तक घर में मम्मी पापा के साथ रह सकते थे रहे, फिर हमें नौकरी के चलते मुँबई अपने परिवार के साथ आना पड़ा, कुछ दिन अकेले ही व्यतीत किये और मुँबई को जाना समझा, मुँबई सपनों का शहर है, बचपन से ही फिल्मों को देखते हुए बड़े हुए हैं, और हम मुँबई को फिल्मनगरी के नाम से जानते हैं, ऐसा लगता था कि जब मुँबई जायेंगे तो फिल्मी कलाकार हमारा स्वागत करने सड़क पर उतर आयेंगे, खैर सपने तो सपने ही होते हैं। मुँबई संघर्ष का दूसरा नाम है, जहाँ रहने के लिये ठिकाना ढ़ूँढ़ना उतना ही मुश्किल है जितना कि मुँबई लोकल में अपने आप के जगह ढ़ूँढ़ पाना। पर हाउसिंग.कॉम ने हमारा काम बेहद ही आसान कर दिया। लेपटॉप पर ही फोटो देखकर, जगह के बारे में जान लेते थे और फिर वहाँ फ्लैट देखने जाना है या नहीं यह निर्णय करते थे।
    हमने अपने जीवन में परिवार याने कि घरवाली और बेटेलाल के साथ पहली बार अपनी जड़ से अलग होने की मजबूरी में सोची थी, हमें घर चलाने का अनुभव तो बिल्कुल भी नहीं था, पर हाँ घर में रहते हुए बहुत कुछ सीखा था, और नये शहर में जाना, जहाँ पूरा शहर ही अपने लिये अनजान है, जब नौकरी ही वहाँ करनी थी तो रहना भी वहीं था, यह मेरे जीवन का सबसे
बड़ा निर्णय था, जीवन में अपने कैरियर के लिये आगे बढ़ने के लिये मैंने यह कठिन निर्णय ले लिया।
    पहली बार परिवार के साथ बाहर रहने जा रहे थे, तो घर के सारे समान की सूचि बनाई गई उसके लिये बजट भी बनाया गया, और फिर एक एक करके हम धीरे धीरे सारी चीजों को व्यवस्थित तरीकों से करते गये और हमारा घर एक सप्ताह में ही जम गया, जब रहने लगे तो जिन जिन चीजों के बारे में लगता कि नहीं है तो अपनी सूचि में जोड़ते जाते और सप्ताहांत में जाकर ले आते, इस प्रकार से हमारे पास घर में जरूरत की लगभग सारी चीजें हो गईं। और वह सूचि अब हमेशा हम अपने साथ ही रखते हैं, किसी भी नई जगह जाने पर यह सूचि बड़े काम
की होती है। और इसी एक निर्णय के कारण हम अच्छी प्रगति भी कर पाये।

बच्चों को सुलाने के लिये क्या क्या नहीं करना पड़ता है

    बच्चों को शौच निवृत्ति सीखने में समयलगता है और इसका प्रशिक्षण उन्हें घर में ही दिया जाता है, पर अगर बच्चे बहुत ही
छोटे हों तो शौच निवृत्ति का प्रशिक्षण देना मुश्किल ही नहीं असंभव है, पुराने जमाने किसी भी तरह की अन्य सुविधा उपलब्ध नहीं थी तो पोतड़ों से ही काम चलाना पड़ता था, तो बच्चों की और माँ की नींद पूरी ही नहीं हो पाती थी, और अगर सोते समय बच्चे ने शौच कर दी तो फिर माँ के लिये और भी मुश्किल होती थी क्योंकि फिर से बच्चे को सुलाना ही एक बहुत बड़ा काम होता है।
    आधुनिक तकनीक ने हमें पेम्पर डाइपर के रूप में उपहार दिया है, डाइपर बच्चों के शौच निवृत्त होने पर भी उन्हें गंदगी में अपनी नई तकनीक के कारण अहसास ही नहीं होने देता है और वे अपने खेलने में या सोने में व्यस्त रहते हैं। इस तरह से बच्चे और माँ अपना सोना, खेलना बिना किसी अनचाही बाधा के निरंतर रखते हैं।
    बच्चों को सुलाना भी एक बहुत बड़ा काम है, कुछ लोगों को बहुत मजा आता है तो कुछ को चिढ़, पर हाँ बच्चे के माता पिता कभी नहीं चिढ़ते आखिरकार वह बच्चा भी तो उनका ही है, बच्चे को सुलाने के लिये बहुत जतन करने पड़ते हैं, मैं अपने बेटे को अपने गले लगाकर कंधे पर लेकर उसे कभी लोरी सुनाता था तो कभी अपने मनपसंदीदा गाना जिससे मेरे बेटे को गाने के बारे में समझ भी आ जाये, कहा जाता है कि बचपन में या गर्भ में बच्चे जिन बातों को सुनते हैं उसके प्रति उनका विशेष लगाव होता है, इसीलिये मैं कभी कभी मंत्र भी सुनाया करता था।

बेटे को अपने हाथ से थपकी देते समय ध्यान रखता था कि मेरी हथेली थोड़ी से पिरामिड जैसी हो, जिससे बेटे का पिया हुआ दूध बाहर न आ जाये, पिरामिड जैसी हथेली से थपथपाने से पीठ पर जब थपथपाहट होती है तो थप्प करके आवाज आती है और हवा साथ होती है, जिससे बच्चे को आराम का अहसास होता है। बेटे को लोरी, गाने और मंत्र सुनकर बहुत ही सुकून की नींद आती थी। मैंने जब भी बेटे को ऐसे सुलाया तो देखा कि बेटा बिल्कुल शांत हाथ पैर सीधे करके सोता था और अपनी पूरी नींद करके ही उठता था।
    कई बार दोनों हाथों की गोदी में लेकर बारी-बारी से दायें बायें हिलाकर सुलाया, इससे बेटा झूले का आनंद प्राप्त कर सो
जात था, या फिर खुद ही आलथी पालथी में बैठ गये और बेटे को गोदी में लिटा लिया और सिर पर ओर बालों को एक हाथ से सहलाते रहे और दूसरे हाथ से धीरे धीरे सीने पर थपथपाते रहे, अगर लगता है कि पैर में दर्द है तो पैरों को हल्के हाथों से दबा दिया जिससे बेटा कभी भी आधी नींद में पैर के दर्द के कारण नहीं उठता था, बहुत ही आराम से प्रसन्न मुद्रा में सोते रहता था । मैंने जब भी बेटे को ऐसे सुलाया तो कई बार नींद में उसे किलकारी मारते तो कभी हँसते देखा।
पेम्पर डाइपर लगाकर कैसे बच्चे कैसे खुश रहते हैं, यह इस वीडियो में देख सकते हैं –
 

वेन्चरसिटी आई.टी. की प्रतिभाओं को निखार देगा (Venturesity will create history in IT Job Market)

     अब तक नौकरी पाने के लिये हम रिज्यूमे सीवी तैयार करते हैं, पर आज के इस कठिन दौर में जहाँ कंपनियाँ अच्छे लोगों को रिज्यूमें से भी तलाश पाने में असफल हैं वहीं कुछ अच्छे लोग जो कि साक्षात्कार में बहुत अच्छा नहीं कर पाते हैं परंतु काम में वे वाकई बहुत ही जबरदस्त होते हैं, इन्नोवेटिव होते हैं, तकनीकी की बारीकियों को अच्छे से जानते हैं और उन  तकनीकी से कैसे फायदे लेना है, यह उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से पता होता है। अच्छे लोगों को कई बार ज्यादा टेलेन्टेड होने का भी हर्जाना भुगतना पड़ता है, कि जो भी साक्षात्कार ले रहा होता है, उसे उस विषय पर कम जानकारी होती है, जबकि साक्षात्कार देने वाले को ज्यादा तो भी उसका पत्ता कट होने के चांसेस बहुत ही ज्यादा होते हैं, क्योंकि सभी जगह लोग ईमानदार नहीं होते, कहीं न कहीं इस प्रतियोगी दौर में गला काट प्रतियोगिता में ये सब फायदे नुक्सान होते रहते हैं।

    कुछ समय पहले की ही बात है मेरे एक मित्र जो कि एक बेहद महत्वपूर्ण तकनीक (TIBCO) पर काम करते हैं, जिसे कि आई.टी. इंडस्ट्री में नीच (niche) स्किल के रूप में जाना जाता है, मैंने अपने एक परिचित से उनका सीवी एक अच्छी एम.एन.सी. में रेफर करवाया, उनका चयन हो ही जाना चाहिये था क्योंकि हमारे मित्र उस तकनीकी पर कई वर्षों से काम कर रहे थे, पर साक्षात्कार के दौरान ही उन्हें पता चल गया कि जो उनसे बात कर रहा है उसके पास इस तकनीक की विशेषज्ञता नहीं है, और अगले ही कॉल में उसे रिजेक्ट कर दिया गया कि टेक्नीकल पैनल साक्षात्कार क्लियर नहीं कर पाये, जबकि हमारे मित्र का कहना था कि मैं उस तकनीक पर कई वर्षों से काम कर रहा हूँ और मुझे किसी भी हालत में रिजेक्ट नहीं किया जा सकता है और जो मुझसे बात कर रहे थे उन्हें उस तकनीकी का कोई अनुभव ही नहीं था, हमने बाद में पता किया तो पता चला कि वे अकेले ही उस कंपनी में उस तकनीकी विधा के महारथी हैं और किसी और को लाकर वे अपनी पहचान खोना नहीं चाहते थे।
    किसी भी जॉब के लिये पहला सौपान साक्षात्कार ही होता है और अधिकतर इंडस्ट्री में लोग एक दूसरे को जानते हैं, और केवल इसीलिये भी रैफेरल सिस्टम का जमकर उपयोग होता है, जिससे जिस भी जॉब के लिये वे रिसोर्स को ले रहे हैं वह जाँचा परखा हो, पर इस सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है। और इस क्षैत्र में भी बदलाव आने की जरूरत थी। आज एक पुराने कलीग ने फेसबुक पर चैटिंग में हमें http://www.venturesity.com वेन्चरसिटी के बारे में बताया ।
    हमें वेन्चरसिटी का कंपनियों के जॉब हायरिंग के लिये अपनाया गया तरीका बेहद ही पसंद आया, इससे एक तो बाजार में नया क्या चल रहा हैं, पता चलता है, हैंड्सऑन प्रैक्टिस भी हो जाता है, आप खुद ही अपना आंकलन कर सकते हैं, कहाँ सुधार करना है, आप किस क्षैत्र में अच्छा कर रहे हैं यह भी आपको पता चल जाता है, सबसे बड़ी बात है कि इस अनुभव से आपको बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है, जो कि दैनिक रुटीन के कार्यों में नहीं सीख पाते हैं। जो सबसे अच्छी तरह से काम कर पाता है, कंपनी उसका चयन कर लेती है, इस तरह कंपनी को अच्छा जाँचा परखा रिसोर्स मिल जाता है और रिसोर्स को भी अपने ऊपर आत्मविश्वास होता है।
    वैसे भी जिस तेजी से बाजार का परिदृश्य बदल रहा है, उससे नयी विधाओं का बाजार में आना भी जरूरी है और इससे बाजार को और प्रतिभाओं को अपने आप को परखने की क्षमता बड़ेगी।

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो (Second Chance in Life)

जिंदगी में सबकी अपनी अपनी तमन्नाएँ होती हैं पर बहुत ही कम लोग अपनी तमन्नाओं के अनुसार काम कर पाते हैं, सबको अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिये, अपने उत्तरादायित्व पूरे करने के लिये, अपने सपनों के अरमानों को कहीं अपने दिल में दफन करना पड़ते हैं, पर बीच बीच में कहीं न कहीं ये अपने सपने कहीं न कहीं झलक ही आते हैं, पूरा समय न पढ़ने में दे पाते हैं और न ही लिखने में, बहुत ही कम समय मिलता है पढ़ने और लिखने के लिये, पाँच दिन अपने ऑफिस में व्यस्त रहते हैं और बाकी के दो दिन परिवार के लिये।
अगर मुझे वो काम करने हों जो मैंने आगे के लिये छोड़ रखे हैं, क्योंकि मैं अभी वे काम नहीं कर पा रहा हूँ, वे इस प्रकार हैं –

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो –

कविताएँ  कहानियाँ लिखूँ
किसी ने सही ही कहा है कि जितना पढ़ोगे उतना ही अच्छा लिखोगे, और उतना ही गहराई से सोच पाओगे, जिंदगी को सही मायने से समझ पाओगे, अपनी समझ को सुलझा पाओगे, लिखते तो हैं पर वह स्तर नहीं आता जो स्तर आना चाहिये, जिसे हम अच्छा कह पायें।
थियेटर करूँ
किसी जमाने में बहुत शौक था स्टेज थियेटर करने का, न दिन का ध्यान रहता था, न रात का, बस कभी डॉयलाग याद करता था तो कभी अपनी अभिनय निखारने के लिये पता नहीं क्या क्या तरीके अपनाता था, खासकर जब पेट से आवाज निकालने का अभ्यास करता था तो पेट पर जोर पड़ते ही मुझे दस्त लग जाते थे, अभिनय भी वह कला है जिसे निखारने के लिये बहुत मेहनत करना पड़ती है।
पर्सनल फाईनेंस के लिये सेमिनार करूँ
मेरे पास पर्सनल फाईनेंस से संबंधित बहुत सारी चीजें हैं जो कि बहुत से लोगों को नहीं पता है, यहाँ तक कि आयकर की धाराओं के तहत कितनी और कैसे बचत की जाये यह भी नहीं पता
है, कितना बीमा लेना चाहिये, लक्ष्य कैसे निर्धारित करें, मिलने वालों को तो फायदा मिलता ही है, पर चाहता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा मिले।
This post is a part of the #SecondChance
activity at BlogAdda
in association with MaxLife Insurance
”.

अब कॉल से बेहतर है क्विकर NXT (Quikr NXT is best then taking calls)

    नो फिकर बेच क्विकर ये पंचलाईन तो सभी ने सुनी होगी, अभी कुछ ही वर्ष हुए हैं क्विकर को ऑनलाईन बाजार में आये पर जितनी तेजी से इस वेबसाईट ने अपनी जगह बनाई है, शायद ही उतनी तेजी से कोई और वेबसाईट अपनी जगह बना पाई। पहले हम अपनी पुरानी चीजों को बेचने के लिये केवल कबाड़ी वाले पर ही निर्भर रहते थे, जान पहचान वाले कम ही लोग उपयोग की हुई चीजों को लेते थे, और वह चीज हमें या तो सस्ते में ही कबाड़ी को बेचने के लिये मजबूर होना पड़ता था या फिर वह वस्तु पड़े पड़े ही कबाड़ हो जाती थी।
    जब क्विकर नहीं था तब मैंने पता नहीं कितनी ही वस्तुओं को कबाड़ होते देखा है, मेरी पुरानी साईकिल, पुराना वाटर प्यूरिफॉयर, हीटर जिन्हें हमने कबाड़ से बचाने के लिये गमला बना दिया। और वे सब हमें इसलिये हटाने पड़े क्योंकि हमें उसकी जगह कोई और अच्छी तकनीक वाली चीज उपयोग में लाना था, अगर वे सब सामान बिक जाता तो निश्चित ही किसी न किसी का कम बजट में काम हो गया होता और हमें भी कम ही सही पर कुछ मदद तो नई वस्तुएँ खरीदने में मिलती ही । पर उस समये पहुँच भी कम ही आस पास वालों तक ही होती थी।
    आज क्विकर ने इंटरनेट युग में चार चाँद लगा दिये हैं, अब किसी भी पुरानी चीज को बेचने के लिये कबाड़ी या किसी एजेन्ट की जरूरत नहीं पड़ती है, बस क्विकर पर विज्ञापन लगाया और फटाफट से फोन आने शुरू, अपनी सारी जानकारी फोटो के साथ दे दो और फिर कहीं भी घूमते रहो, और ऐसा भी नहीं कि 24 घंटे घर पर बैठे रहो कि कब खरीददार आ जाये पता नहीं, और हम घर पर न हों तो नुक्सान हो जाये, अब तो खरीददार फोन करके आता है।
    अब मैंने अपनी बाईक को बेचना है तो फिर से मैंने क्विकर की सेवायें ली हैं, अपनी बाईक का फोटो लगा दिया और जरूरी जानकारी भी साथ में दे दी है, ये है कि बाजार में मैकेनिक इसके कम दाम बता रहे थे पर क्विकर पर उससे कहीं अधिक के ऑफर मिल रहे हैं।
    जब से Quikr NXT आया है तब से थोड़ा आसानी हो गई है, मैं अधिकतर से काल लेने से बचता हूँ और चैट से ही काम लेना पसंद करता हूँ
  1. क्योंकि ऑफिस में अधिकतर मीटिंग्स में व्यस्त होते हैं, तो जैसे ही समय मिलता है तो हम चैट का जबाव दे सकते हैं, पर फोन नहीं कर सकते ।
  2. ऑफिस में आसपास वाले लोगों को उनके काम में फोन पर बात करने से बाधा पहँचती है।
  3. हँसी का पात्र नहीं बनना पड़ता है, लोग हमेशा से ही दूसरों का मजाक उड़ाते हैं कि बाईक बेचने के लिये क्या एक ही तरह के सवालों के जबाब देता रहता है और कुछ न करते हुए भी शर्मिंदगी का पात्र बनना पड़ता है।
  4. एक बार किसी को सवाल का जबाव दे दिया तो फिर से टाईप करने  की जगह केवल कॉपी पेस्ट से ही काम चल जाता है।
  5. मोबाईल पर चैट किसी को दिखती भी नहीं है और जो काम कर रहे होते हैं, उससे ध्यान नहीं भटकता है और फोन पर बात करने से ध्यान बँटता है।