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बोझ खींचने वाला मानव ज्यादा मूल्यवान लगता है

    पहाड़गंज या पुरानी दिल्ली में पार्किंग की जगह ढ़ूंढना बेहद दुष्कर कार्य की श्रेणी में आता है, यह दिल्ली का एक ऐसा क्षैत्र है जहाँ जाकर एक एक इंच की कीमत पता चलती है, यहाँ सड़क का वह इंच सार्वजनिक हो या निजी पर जगह कोई खाली नहीं है, खैर हमें अब इन सबसे जूझते हुए लगभग 3 महीने हो चुके हैं तो अब इतनी तकलीफ नहीं होती है, पार्किंग कैसे और कहाँ करनी है यह बखूबी आ गया है।
    सदर जाना हमेशा हमारे एजेन्डे में होता है । 3 टूटी, 6 टूटी, 12 टूटी और सदर बाजार पता नहीं क्यों इतना अच्छा लगता है, वहाँ की गलियों में भटकना अच्छा लगता है, जो भाषा, चेहरे और व्यवहार वहाँ देखने को मिलता है वह मन मोह लेने वाला होता है। यह अलग बात है कि आप पहाड़गंज से सदर बाजार तक
पैदल भी जा सकते हैं पर चरमराये हुए यातायात में यह भी संभव नहीं है, मजबूरन केवल एक ही रास्ता बचता है वह है या तो रिक्शा लो या फिर बैटरी वाला रिक्शा। जाते समय हमें कभी बैटरी वाला रिक्शा नहीं मिलता क्योंकि पुलिस उन्हें परेशान करती है।
    हमें मानवचलित रिक्शे पर बैठना होता है, मानवचलित रिक्शे पर बैठकर हर बार अपराधबोध होता है, हम आज भी इस युग में ढोने की प्रथा के साक्षी हैं और सबसे खराब बात कि उसका उपयोग कर रहे हैं, पर फिर रिक्शे को चलाने वाले मानव को देखकर यह शर्म कहीं चली जाती है, क्योंकि अगर हम अगर उसके रिक्शे में नहीं बैठेंगे तो वह ढोने वाला मानव क्या खायेगा और अपने परिवार का कैसे ख्याल रखेगा, पता नहीं जीवन की किन परिस्थितियों से लड़ाई लड़ रहा है, हम कहीं न कहीं उसके जीवन की लड़ाई में सहयोगी होना चाहते हैं, और इन मानवों में खास बात यह है कि ये ज्यादा फालतू के पैसे नहीं लेंगे, क्योंकि इन्हें पता है कि कोई भी उन्हें दुत्कार सकते हैं या फिर ज्यादा पैसे माँगने की उनकी हैसियत नहीं समझते हैं। लोग इनके बँधे बँधाये पैसों में भी मोलभाव करने लगते हैं तो ठीक नहीं लगता है, उस समय मुझे बैठने वाले व्यक्ति से ज्याद वह बोझ खींचने वाला मानव ज्यादा मूल्यवान लगता है।
    हमने एक आदत अपनी रखी हुई है कि जो भी बोझा खींचता है, या कोई ऐसा कार्य करते हैं जो कि पढ़े लिखे लोगों की मानसिकता में हेय की श्रेणी में आते हैं, हम वहाँ कभी मोलभाव नहीं करते हैं, क्योंकि इन लोगों में लूट की भावना न के बराबर होती है और छल कपट आजकल कहाँ नहीं है, तो इनके बीच भी कुछ लोग ऐसे हैं परंतु उनका प्रतिशत बहुत ही कम होती है, कम प्रतिशत वालों के छल कपट के कारण बड़े अनुपात के लोगों का साथ न देने को मन नहीं मानता है, और हम हमेशा ही उनकी मदद को तत्पर होते हैं, क्योंक बोलने में कहीं कोई झूठ नहीं, जो मन की बात होती है वे कह देते हैं, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि सामने वाला कितना बड़ा आदमी है, वे तो सबको सर्वधर्म भाव से सेवा देते हैं, बस यही सोचकर मैं अपने आप में और साथवालों में कभी आपराधिक बोध नहीं आने देता हूँ।
    मन में यह भी आता है कि जैसे हम मानसिक बोझा ढ़ोते हैं वैसे ही ये लोग शारीरिक श्रम कर रहे हैं, तो जो जिस बात में सक्षम है वह वही कर पायेगा, जैसे हमें भी बोझा उठाते हुए बरसों हो गये हैं, वैसे ही उन्हें भी बरसों हो गये हैं। जैसे हमें बोझा उठाते हुए पता नहीं चलता है, थकान नहीं होती है, बस अपना काम करते जाते हैं, हाँ बस किसी दूसरे को हमें देखकर ऐसा लगता है कि यह कितना काम करता है, तो वह भी अपनी एक मानसिक अवस्था होती है। वैसे ही उन मानवचलित रिक्शों या समाज के सबसे अच्छे कार्य करने वालों को भी इसी चीज का अनुभव होता होगा।
    ब्लॉग पोस्ट में और भी बहुत कुछ लिखना चाहता था, परंतु एक मानवीय स्वभाव कहीं भीतर से उमड़कर भावों की प्रधानता में शब्दों के रूप में बह गया, बाजार के चरित्र और वहाँ के स्वभाव के बारे में जल्दी ही बात करेंगे ।

व्हाइट लेबल एटीएम जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं (White Label ATMs for Rural Area facing difficulty)

    व्हाइट लेबल एटीएम के ऑपरेटर्स बैंकों से वसूली जाने वाली इंटरचेंज फीस बढ़ाना चाहते हैं  पहले हम देखते हैं कि व्हाइट लेबल एटीएम क्या होते हैं एक एटीएम डेस्कटॉप, जिसका आकार एक कॉफी बनाने वाली मशीन के जितना होता है जो कि किसी भी किराना स्टोर पर लगाया जा सकता है।  यह एटीएम बैटरी द्वारा चलता है और इस आविष्कार को व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स लगातार परिष्कृत कर रहे हैं। गाँव में “नो फ्रिल्स” खाते खोलने के बावजूद इन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स को एटीएम की लागत निकालने में पसीने आ रहे हैं।

 

 
    ऑपरेटर्स इंटरचेंज फीस 15 रूपये से 18 रुपये हर ट्रांजेक्शन पर करना चाहते हैं। व्हाइट लेबल एटीएम मशीनें नान बैंकिंग कंपनियों द्वारा लगाई जा रही हैं। जब भी खाताधारक उनके एटीएम से ट्रांजेक्शन करता है तो नॉन बैंकिंग कंपनियाँ बैंकों से हर ट्रांजेक्शन के शुल्क लेते हैं। सन 2013 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने  7 नॉन बैंकिंग कंपनियों को व्हाइट लेबल एटीएम लगाने के लाइसेंस दिये हैं –

 

1. बीटीआई पेमेंट

2. टाटा कंयूनिकेशंस पेमेंट सोलुशंस
3. प्रिज्म पेमेंट 
4. मुथूट फाइनेंस
5. श्री इंफ्रास्ट्रक्चर 
6. रिद्धि सिद्धि बुलियन 
7. वक्रांगी लिमिटेड 

 

 
    आने वाले समय में तीन और कंपनियों को लाइसेंस दिया जा सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार इन कंपनियों को केवल छोटे शहरों एवं गाँवों में ही एटीएम लगाने की अनुमति होगी और इसके बदले व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर 15 रुपये की इंटरचेंज फीस बैंक से प्राप्त करेंगे जो कि हर ट्रांजेक्शन के ऊपर बैंक को देनी होगी।

 

 
    अब सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जनधन योजना में छोटे शहरों एवम गाँवों में खाते खोले जा रहे हैं जो कि व्हाइट लेबल एटीएम के लिये मध्यम अवधि में प्राणदायक सिद्ध होंगे। प्रधानमंत्री जनधन योजना में भविष्य में बहुत से खाते खुलेंगे लेकिन व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स के लिए कम मात्रा मेँ ट्रांजेक्शन एक सर दर्द ही साबित होगा क्योंकि कुछ जगहों पर तो जनसंख्या कुछ हजारों में भी नहीं होगी पर व्हाइट लेबल एटीएम नकद निकालने के लिए उन जगहों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं जहाँ पर बैंकें उपलब्ध नहीं हैं । बिना एसी, बिना किराए, बिना सिक्योरिटी गार्ड और बिना सुरक्षा अधिकारी के कम से कम 2000 ट्रांजेक्शन एक महीने में होने पर ही ऑपरेटर्स के लिए फायदा हे अभी व्हाइट लेबल ऑपरेटर्स बिल पेमेंट ओर मोबाइल रिचार्ज सुविधाओं का लाभ नहीं दे रहे हैं हालांकि उनके स्क्रीन पर विज्ञापन देख रहे हें व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर्स नये एटीएम धीमी गति से लगा रहे हैं क्योंकि गाँव में नकद निकालने की निरंतरता अभी बहुत ज्यादा नहीं है व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लाइसेंस इसलिए दिया क्यूंकि बैंक उन जगहों पर अपने एटीएम नहीं लगाना चाहते हैं।

 

 
    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने नॉन बैंकिंग कंपनियों को लाइसेंस इस शर्त पर दिया है कि वे तीन वर्ष में 9000 एटीएम लगायेंगे नॉन बैंकिंग कंपनियों को एटीएम तब भी लगाने होंगे जबकि वे देख रहे हैं की उन मशीनों पर जितने ट्रांजेक्शन होना चाहिए उतने ट्रांजेक्शन नहीं हो रहे हैं यह उनके लिए घाटे का सौदा सिद्ध होगा ।

 

 
    नॉन बैंकिंग कंपनियाँ अगर थोडा बहुत फायदा अभी बना सकती हैं तो केवल दो तरीके से पहला रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यह प्रतिबंध हटा ले कि केवल स्पांसर बैंक एटीएम में कैश भरेगा दूसरा व्हाइट लेबल एटीएम को जितना भी नगद प्राप्त होगा वे उस नगद को वापस एटीएम में उपयोग कर पायेंगे। इस समय एक फुल लोडेड एटीएम पर लगभग 30 हजार रुपए महीना खर्च होता है जिसे की बीस हजार रुपए प्रति महिना तक तक लाया जा सकता है ।

भारत में गरीब और अमीरों के लिये कानून की सजा अलग अलग क्यों है ? (Why difference

    आज सुबह ही कहीं पढ़ रहा था कि न्यूजीलैंड के धुरंधर क्रिकेटर क्रिस कैनर्स जब से मैच फिक्सिंग के मामले में फँसे हैं तो उनकी आर्थिक हालात खराब है और उनका सामाजिक रूतबा भी अब सितारों वाला नहीं रहा, आजकल क्रिस ट्रक चलाकर और बस अड्डों को साफ करके अपनी आजीविका चला रहे हैं और वैसा ही मामला अगर भारत में देखा जाये तो दो सितारे खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे, अब उनमें से एक सांसद हैं और दूसरे क्रिकेट मैचों की कमेंट्री करते हैं, उन्हें ना आर्थिक नुक्सान हुआ और न ही उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मिट्टी में मिली, जबकि क्रिस और भारत के उन दो खिलाड़ियों का अपराध एक ही था ।
     अभी हाल ही में कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सेना से कहा है कि आपने लगभग 50 अफसरों को आर्मी कोटे की पिस्तौल को बाजार में बेचने पर केवल रू. 500 का जुर्माना लगाया है, तो हम उस गरीब आदमी को क्या जबाब दें तो केवल रू. 10 चुराने के लिये जेल की हवा खाता है, और जुर्म साबित होने के बाद सजा भी भुगतता है, क्या सेना के अफसरों का जुर्म ज्यादा संगीन नहीं है, और सजा बहुत ही मामूली नहीं है ?
    दो बड़े जुर्म मुझे यह याद दिलाते हैं कि जुर्म राजनीति के प्रश्रय में ही होता है और दोनों का आपस में भाईचारा है, दोनों एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते हैं, अगर इन दोनों में से कोई एक परेशान होता है तो वे जनता के सामने ही आपस में सहयोग करते हैं, और हमारे भारत की बेचारी जनता केवल इसलिये देखती रहती है क्योंकि उनके पास देखने के अलावा और कोई चारा नहीं है, कानून व्यवस्था को पालन कराने वाले लोग भी इन लोगों के साथ काम करते हुए देखे जा सकते हैं, चारों और कानून टूट रहे हैं, और इसमें सभी की मिलीभगत है ।
    पहला – उज्जैन के महाविद्यालय में म.प्र. पर शासन करने वाले राजनैतिक दल की छात्र इकाई के कुछ लोग एक प्रोफेसर की हत्या कर देते हैं, और बहुत हो हल्ला मचता है, वैसे तो प्रशासन कुछ करने में रूचि नहीं रख रहा था, पर जब राष्ट्रीय स्तर के मुख्य धारा के मीडिया हाऊसों ने चिल्लाना शुरू किया तो शासन ने कड़ाई बरतते हुए दिखावे का ढ़ोंग किया और सबको 2-3 वर्ष तक जेल के अंदर रखा और बाहर गवाहों ओर सबूतों को कमजोर किया जाता रहा और आखिरकार वे संदेह के लाभ में बरी हो गये, दीगर बात यह है कि इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री इन सबसे मिलने जेल गये, आज इनमें से कई सरकारी सहायता प्राप्त महकमों मे उच्च पदों पर आसीन हैं, जो कि उनकी छबि के अनुरूप तो कतई नहीं है।
     दूसरा – कुछ लड़के मिलकर एक पहलवान टाईप दादा की हत्या कर देते हैं, और सब फरार हो जाते हैं, सारे लड़के अभिजात्य वर्ग के परिवारों से हैं और उन सबके परिवार में उनके पिता एक राजनैतिक दल से सारोकार रखते हैं, पास के एक गाँव से दो बस भरकर इन लड़कों को और इनको परिवार को सबक सिखाने के लिये आते हैं और ये गाँव वाले इतने सभ्य कि पड़ौसियों को कुछ भी नहीं कहा, बस उन हत्यारे लड़कों को पीटने और मारने के उद्देश्य से आये थे, और उनके घर में घुसकर घर का सामान बाहर फेंक देते हैं, और पड़ोसियों के पूछने पर कहते हैं कि अगर हमने ये आज नहीं किया तो फिर इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा, क्योंकि शासन, पुलिस सब इनकी जेब में है, ये लड़के ही आगे चलकर हमारे नेता बन जायेंगे, तो उन सारे लड़कों मे जनता के डर के मारे खुद को पुलिस के हवाले कर दिया, और वे सब 1-2 साल में बरी हो गये, सारे लड़के आज राजनेता हैं, कोई भी प्रशासन संबंधित कार्य करवाना हो, ये लोग चुटकी में काम करवाने वाले सफेदपोश दलाल हो गये हैं।
    यहाँ बस हारा तो केवल कानून, मैं जानता हूँ कि ऐसे कई किस्से हैं और मैं लिखना भी चाहता हूँ, पर लिखने का भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि कानून अपने दायरे में रहकर काम करता है और ये लोग बिना दायरे के । कब ये कानून अमीरों और गरीबों के लिये एक होगा, इसके लिये राजनैतिक इच्छशक्ति की दरकार है, पर ये राजनेता ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि इनकी असली ताकत तो कानून तोड़ना और तोड़ने वालों से ही है।

पुराने टर्म इन्श्योरेन्स v/s नये ऑनलाईन टर्म इन्श्योरेन्स (Old Term Insurance Vs New Online Term Insurance)

    अपनी एक टर्म इन्श्योरेन्स (Term Insurance) पॉलिसी के बारे में देख रहा था, तो सोचा कि आजकल बहुत सारे ऑनलाईन प्लॉन उपलब्ध हैं, तो नई सुविधाओं वाले प्लॉन देखें जायें और पुराने टर्म प्लॉन को बंद कर नयी सुविधाओं वाला टर्म प्लॉन खरीदा जाये। जब भी हम कोई भी बीमा पॉलिसी लेते हैं, तो सारी जानकारी लेने के बाद ही लेते हैं कि यह प्लॉन सबसे अच्छा हमें लग रहा है क्योंकि सबकी जरूरतें भी अलग अलग होती हैं। हर दो तीन वर्ष में बाजार में उपलब्ध नये बीमा उत्पाद जरूर देख लेने चाहिये। और अगर नये उत्पाद पुराने से बेहतर हैं तो पुराने को बंद कर नये बीमा उत्पाद को ले सकते हैं, टर्म इन्श्योरेन्स लेने का सबसे बड़ा फायदा यही है, अगर पारम्परिक प्लॉन लेते हैं तो आप सपने में भी उन बीमा पॉलिसियों को बंद करने की नहीं सोच सकते हैं, क्योंकि वे बीमा आपने अपने परिवार की सुरक्षा के लिये नहीं लिये होते हैं, वे बीमा तो आपने केवल निवेश के उद्देश्य से लिये होते हैं।
 
    अब हमारे पास HDFC Life का Term Assurance नाम का एक प्लॉन है, जिसे हमने HDFC बैंक से लिया था, और हम खुद से ही यह प्लॉन पसंद करके गये थे क्योंकि उस समय HDFC Life के ऑनलाईन बीमा उत्पाद नहीं थे, हाँ यहाँ बैंक के एजेन्ट ने एक चतुराई कर दी कि ऑटो डेबिट फैसिलिटी के बक्से (option) पर टिक कर दिया, जिसे शायद हमने उतने गौर से नहीं देखा, क्योंकि पहली किश्त तो ऐसे भी चैक से ही जाती है, अब इस बार जब ईमेल आया तो हमने गौर किया, पिछले दो वर्षों से तो हमें इस समय साँस लेने की फुरसत भी नहीं होती थी, तो हमने तुरंत फोन लगाया कि इस ऑटो डेबिट सुविधा को बंद किया जाये, तो हमें कहा गया कि आप [email protected] पर ईमेल करिये तो आपको सुविधा मिल जायेगी, हमने ईमेल किया कि De-register of Auto Debit Facility for Policy No. XXXXXX. हमें जबाब आया कि  If kindly submit/send the De-activation request/letter 15 days prior to the Premium Due date at any nearest HDFC Life branch or you may confirm us the same in revert so that we can also process your request. साथ ही एक नोट भी आया जिस पर हमारा ध्यान ज्यादा आकर्षित हुआ Note: As per the product features if the direct debit facility is active, you will avail a discount on the base premium amount of 10%.
 
    इसका मतलब साफ साफ यह था का इस सुविधा के साथ हमें 10% का प्रीमियम में छूट भी मिल रही थी। सो सोचा अब कुछ हो नहीं सकता इस वर्ष यही बीमा योजना चलने देते हैं, अब अप्रैल में देखेंगे, क्योंकि अगर हम अभी यह वाली पॉलिसी निरस्त करवाते और नई पॉलिसी लेते हैं तो हम परिवार को जोखिम में डाल देते, कि अगर मान लो कि नई पॉलिसी किसी कारण से हमें नहीं मिली और पुरानी वाली हमने बंद करवा दी और पीछे कुछ हो गया तो अपनी सारी फाइनेंशियल प्लॉनिंग धरी का धरी रह जायेगी।
 
    हमने तीन प्लॉन पसंद किये थे जिसमें से दो प्लॉन HDFC Life के हैं
  1. HDFC Protect Plus – Monthly Income
  2. HDFC Protect Plus – 10% increasing Monthly
    Income
तीसरा प्लॉन MAX LIFE ONLINE TERM LIFE COVER + 10% INCREASING MONTHLY INCOME MAX LIFE ONLINE TERM LIFE की प्रीमियम HDFC Protect Plus से कम है, MAX LIFE क्लेम सैटलमेंट के लिये अपना एक एडवाईजर नॉमिनी को देती है, परंतु HDFC Life नहीं, यहाँ नॉमिनी को खुद से ही HDFC Life के Claim Settlement Department को फोन करके सारी कागजी कार्यवाही पूरी करनी होती है।
 
    Monthly Income में केवल यह फायदा है कि अगर बीमा धारक को कुछ हो गया तो एक मुश्त बीमित धन का भुगतान तो नामिनी को मिलेगा ही, परंतु इसमें अगले दस वर्ष तक हर माह .5 प्रतिशत मासिक भुगतान भी प्राप्त होगा, HDFC Life .5% और MAX LIFE .4% मासिक भुगतान करती हैं, Increased Monthly Income में हर वर्ष 10% रकम बड़ती जाती है ।
 
    उदाहरण के लिये अगर 1 करोड़ का बीमा लिया और अगर बीमित व्यक्ति को कुछ हो गया तो नामिनी को जल्दी से जल्दी 1 करोड़ रूपया मिल जायेगा और अगले दस वर्ष तक 50,000 रू. हर माह भुगतान भी मिलेगा।
 
    आज जब MAX LIFE का ऑनलाईन फॉर्म भरा तो उसी समय MAX LIFE से धड़धड़ाते हुए फोन आ गया कि आप अभी ऑनलाईन यह उत्पाद देख रहे हैं, अगर कोई जानकारी चाहिये तो बताईये, हमने कहा कि आपका क्लैम सैटलमेंट रेशो क्या है, जबाब मिला 95.56%, तो हमने पूछा कि बाकी के 4% क्लैम आपने क्यों नहीं दिये, तो वे कुछ मेडिकल गलत मिला जैसा कुछ बोलीं तो हमने कहा कि आप तो बीमा देने के पहले मेडिकल करवाते हो फिर मेडिकल गलत कैसे हो गया, अगर कोई समस्या थी तो आपको बीमा ही नहीं देना चाहिये था, आपने उसका प्रीमियम लौटा देना था पर क्लैम नहीं देना तो गलत है, उधर से फोन काट दिया गया।
 
    तो यह समस्या आम है, ध्यान रखें जब भी टर्म इन्श्योरेन्स लें तो 2-3 कंपनियों से लें, ये न सोचें कि LIC से लेना सुरक्षित है, वे भी क्लैम सैटलमेंट में ऐसे ही होते हैं, तो जहाँ प्लॉन अच्छा मिले उस कंपनी से प्लॉन ले लें ।


कुछ पुरानी संबंधित पोस्टें – 














भारत में पहली बार सोशल बैंकिंग जिफि बैंक खाता

    भारत में बैंकों के इतिहास में पहली बार कोटक महिन्द्रा बैंक ने इंडीब्लॉगरों के मध्य सोशल बैंकिंग पर आधारित अपना पहला उत्पाद 23 मार्च को बाजार में उतारा । जिसका नाम जिफि #JIFI दिया गया है । ट्विटर पर इसे #JifiIsHere के टैग से देखा जा सकता है । जिफि खाता खुलवाने के लिए फेसबुक एकाऊँट का होना जरूरी आवश्यकता है। जिफि एकाऊँट का निमंत्रण पाने के लिए ईमेल या फेसबुक लॉगिन का उपयोग करना होता है।
    सोशल बैंकिंग में  बैंक की सारी नई जानकारियाँ जिफि बैंक खाताधारक अपने ट्विटर हैंडल पर सीधे पा सकता हैं, बैंक जिफि ग्राहकों को डाइरेक्ट मैसेज से जानकारी भेजेगी, जिससे जिफि ग्राहक की जानकारी पूर्णरूप से गोपनीय रहेगी । जिफि ग्राहक बैंक को सीधे ट्विट करके अपने खाते की जानकारी ले सकते हैं । तो जिफि ग्राहकों के लिए अपना बैलेंस जानना भी केवल एक ट्विट करने भर की दूरी पर है।
    जिफि ग्राहक अपना एकाऊँट एक्टिवेट करने के बाद अपने ट्विटर हैंडल को जिफि डेशबोर्ड से जोङना है, इस सुविधा का लाभ वे सभी जिफि ग्राहक उठा सकते हैं जिनके पास ट्विटर एकाउँट है।

ट्विटर पर ट्विट करके जिफि ग्राहक  निम्न जानकारियाँ पा सकते हैं

–    बैलेंस जानना, आखिरी तीन ट्रांजेक्शन, पिछले तीन महीने के स्टेटमेंट ईमेल पर मँगाना, किसी चेक के स्टेटस की जानकारी, नई चेकबुक का लिए आवेदन, पास के एटीएम एवं शाखा के बारे में जानकारी, नेट बैंकिंग एवं फोन बैंकिंग का पिन बदलना, ऐसे ही क्रेडिट कार्ड के बारे में जानकारी पा सकते हैं। यहीं पर जिफि ग्राहक अपने रैफेरल और रिवार्ड पॉइंट्स के बारे में भी जान सकते हैं।
    अगर आपका ट्विटर एकाउँट हैक भी हो जाये तो kotakjifi.com पर लॉगिन करके ट्विटर एकाउँट हैंडल हटा दें।
    500 रू. के ऊपर के हर ऑनलाइन ट्रांजेक्शन पर 25 पॉइंट्स मिलेंगे और हर रैफेरल पर 250 सोशल पॉइंट्स मिलेंगे। जिफि ग्राहक मोबाईल एप्प से भी बैंकिंग कर सकते हैं। जिफि बैंक एकाऊँट में सबसे अच्छी बात है कि 25 हजार के ऊपर का बैलेन्स अपने आप फिक्सड डिपोजिट बन जायेगी।
    तो इंतजार किस बात का, kotakjifi.com पर लॉगिन कीजिये और जिफि ग्राहक बनिये ।
    Indiblogger.in को इस बेहतरीन अनुभव का साक्षी बनाने के लिए  धन्यवाद ।

आटा, सब्जी, प्रेमकपल और पुलिसचौकी

कल शाम की बात है, बेटेलाल स्कूल से आ चुके थे तो अचानक गुस्से से आवाज आई “आटा आज भी आ गया ?” “सब्जी आ गई”, हम सन्न !! बेचारे क्या करते, अपने काम में मगन आटे का ध्यान एक सप्ताह से ना था, इधर पास के पंसेरी से १ किलो आटे का पैकेट लाकर थमा देते थे। हम चुपचाप घर से निकले, लिफ़्ट से उतरे, तो घर के सामने का मौसम अचानक से हसीन हो चला था।
सामने ही करीबन ५ लड़के और १ लड़की स्कूल ड्रेस में थे, जिनमें से एक लड़का और एक लड़की साथ साथ थे और लड़की के हाथ में गिफ़्ट भी था, बाकी लड़के उस लड़के से मस्ती कर रहे थे, शायद उसने आज ही प्रपोज किया हो और स्वीकार हो गया हो, फ़िर उन सब लड़कों ने प्रेमकपल वाले लड़के से कुछ पैसे लिये और घर के सामने वाली चाट की दुकान पर पानी बताशे खाने लगे, प्रेमकपल के चेहरे पर अजीब सी खुशी थी, जैसे उनके जन्म जन्म का साथी मिल गया हो, लड़के के बाल कुछ अजीब से आगे से ऊपर की तरफ़ थे, वो भी कोई स्टाईल ही रही होगी, हाँ हमारे बेटेलाल जरूर उस बालों की स्टाईल का नाम बता देते।
हम अपनी बिल्डिंग की पार्किंग में खड़े होकर सभ्यता से यह सब देख रहे थे, पर उन लड़कों को यह अच्छा नहीं लग रहा था, खैर जब हम गाड़ी से चाट वाले के सामने से निकले तो भी वे सब हमें घूर ही रहे थे, यह सब वैसे हमें पहले से ही पसंद नहीं है, जब हम  उज्जैन में थे तब हमारी कालोनी में भी यही राग रट्टा चलता था, फ़िर हमने अपना प्रशासन का डंडा दिखाया तो बस इन लोगों के लिये कर्फ़्यू ही लग गया था।
आटा लेने गये, तो पता चला कि उस पूरी कॉलोनी की बिजली ही सुबह से गायब है, हम पूछे “भैया बिजली आज ही गई है ना ?, कल तो आयेगी”, वो क्या और जो दुकान के अंदर थे वे भी निकलकर हमें देखने लगे, ये कौन एलियन आया है जो अजीब और अहमक सा सवाल पूछ रहा है। खैर वापसी पर याद आया कि सब्जी लेनी है, अब हम सोचे बेहतर है कि घर पर फ़ोन करके पूछ लें “कौन सी सब्जी लायें”, जबाब मिला “कौन कौन सी सब्जी है?”, हम कहे “करेला, शिमला मिर्च, बीन्स, भिंडी, फ़ूलगोभी, पत्तागोभी,बैंगन” हमें कहा गया केवल देल्ही गाजर और टमाटर लाने के लिये, टमाटर का भाव हम बहुत दिनों बाद सुने थे, मतलब कि बहुत दिनों बाद सब्जी लेने गये थे, केवल दस रूपया किलो, हमने सोचा बताओ टमाटर के दाम पर कितनी सियासत हुई, टमाटर महँगी सब्जियों का राजा बन गया था और आज देखो इसकी दशा कोई पूछने वाला नहीं, हेत्तेरेकी केवल दस रूपया !
शाम को घूमने निकले, चार लड़के दो लड़कियाँ एक ही समूह में घूम रहे थे, जिनमें से साफ़ दिख रहा था कि दो प्रेमकपल हैं और बाकी के दो इस समूह के अस्थायी सदस्य हैं, वे दोनों प्रेमकपल सड़क पर ही बाँहों में आपस में ऐसे गुँथे हुए थे, कि अच्छे से अच्छे को शर्म आ जाये, परंतु वो तो अपने घरों से दूर यही कहीं पीजी में रहते हैं, तो उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है, फ़िर अगली गली के नुक्कड़ पर ही वे दोनों प्रेमकपल आपस में एक दूसरे की आँखों में झांकते हुए नजर आये, और हँसी ठिठोली कर रहे थे, पर अचानक हमें देखते ही वे सब बोले कि चलो गली के थोड़ा अंदर चलो। हमने सोचा कि आज यही सब इनको अच्छा लग रहा है, कल जब ये जिम्मेदारी लेंगे परिवार की बच्चों की, तब शायद यही सब इनको बुरा लगेगा।

एक अच्छी बात यह हुई है कि पास ही पुलिसचौकी खुल गई है, तो इस तरह की हरकतें पहले बगीचे में होती थीं वे अब चौकी के पीछे की गलियों में होने लगी हैं।

 वैसे ही जब घूमते हुए वापिस घर की और आ रहे थे तब एक दिखने से ही साम्भ्रान्त प्रेमकपल खड़ा था, लड़के की पीठ पर लेपटॉप बैग था और लड़की भी ऑफ़िस वाली ड्रेस में ही थी, शायद लड़की कहीं पास रहती हो और कुछ जरूरी बात करनी हो, बहुत धीमे धीमे से बात कर रहे थे, कितना भी कान लगा लो बातें सुनाई दे ही नहीं सकती थी, पर उनका बात करने का तरीका और कॉलोनी में जिस तरह से वे खड़े थे और बातें कर रहे थे वह शालीन था ।

शादी के १२ वर्ष और जीवन के अनुभव

आज शादी को १२ वर्ष बीत गये, कैसे ये १२ वर्ष पल में निकल गये पता ही नहीं चला, आज से हम फ़िर एक नई यात्रा की और अग्रसर हैं, जैसे हमने १२ वर्ष पूर्व एक नई यात्रा शुरू की थी, जब पहली यात्रा शुरू की थी तब पास कुछ नहीं था, बस कुछ ख्वाब थे और काम करने का हौंसला और अगर बैटर हॉफ़ याने कि जीवन संगिनी आपको समझने वाली मिल जाये, हर चीज में आपका साथ दे तो मंजिलें बहुत मुश्किल नहीं होती हैं।
शादी की १२ सालगिरह में से मुश्किल से आधी हमने साथ बिताई होंगी, हमेशा काम में व्यस्त होने के कारण बहुत कुछ जीवन में छूट सा गया, परंतु हमारी जीवन संगिनी ने कभी इसकी शिकायत नहीं की, हमने जब खुशियों का कारवाँ शुरू किया था, तब हम ये समझ लीजिये खाली हाथ थे और फ़िर जब हमारे आँगन में प्यारी सी किलकारी गूँजी, जिससे जीवन के यथार्थ का रूप समझ में आया।
जीवन यथार्थ रूप में बहुत ही कड़ुवा होता है और मेरे अनुभव से मैंने तो यही पाया है कि यह कड़ुवा दौर सभी की जिंदगी में आता है, बस इस दौर में हम कितनी शिद्दत से इससे लड़ाई करते हैं, यह हमारी सोच, संस्कार और जिद्द पर निर्भर करता है। जीवन के इस रास्ते पर चलते चलते हमने इतने थपेड़े खाये कि अब थपेड़े  अजीब नहीं लगते, यात्रा जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है।
बस जीवन से यही सीखा है कि कितनी भी मुश्किल हो अपने लक्ष्य पर अड़िग रहो, सीधे चलते रहो, मन में प्रसन्नता रखो, धीरज रखो । जीवन इतना भी कठिन नहीं है कि इससे पार ना पा सकें, और खासकर तब और आसान होता है जब हमारी अर्धांगनी उसमें पूर्ण सहयोग करे। जीवन के चार दिन में अगर साथी का सही सहयोग मिलता रहे तो और क्या चाहिये।

आखिरी बात हमेशा अपने वित्तीय निर्णय लेने के पहले अपने जीवनसाथी को अपने निर्णय के बारे में जरूर बतायें, कम से कम इस बहाने घरवाली को हमारे वित्तीय निर्णयों का आधारभूत कारण पता रहता है और उनके संज्ञान में भी रहता है, इससे शायद उनको भी अपने मित्रमंडली में मदद देने में आसानी हो। जीवन और निवेश सरल बनायें, दोनों सुखमय होंगे।

वो काँच का दरवाजा

    दोपहर का समय था, घर से ५०% डिस्काऊँट और एक खरीदो एक मुफ़्त  का लाभ लेने के लिये निकले, बैंगलोर सेंट्रल मॉल में ३ घंटे में एथिनिक और वेस्टर्न की बहुत सी खरीदारी कर घर की और लौट रहे थे, कि बीच में ही एक दुकान पड़ी जहाँ पर ना चाहते हुए भी गाड़ी रोकना पड़ी, वो दुकान थी लगेज कंपनी का शोरूम, क्योंकि मुझे दो लगेज और लेना थे, तो सोचा कि अभी मॉडल देख लें और कुछ उपहार के वाऊचर भी रखे हैं, उसके लिये भी पूछ लेंगे कि अगर वे इस शोरूम पर ले लेंगे।
    बात की गई, लगेज फ़ाईनल किये गये, उपहार वाऊचर भी चलने के लिये हाँ हो गई, परंतु खरीदारी में और समय लगता, और ठीक ५ मिनिट घर पहुँचने में लगते और १० मिनिट बाद बेटेलाल की स्कूल बस आने को थी, अगर बीच में यातायात मिला तो ५ मिनिट की जगह १० मिनिट भी लग सकते हैं।
    शोरूम से निकलते हुए जल्दी में काँच के दरवाजे का अहसास ही नहीं हुआ, और तेजी से निकलते हुए गये थे, रफ़्तार तीव्र थी, वो काँच का दरवाजा खुलता भी केवल अंदर की तरफ़ था और बाहर काँच के दरवाजे के ऊपर एक छोटा सा स्टॉपर लगा हुआ था कि बाहर ना खुले, हम उससे धम्म से भिड़ गये, दिन में तारे नजर आने लगे, ऐसा लगा मानो माथे पर किसी ने बहुत जोर से हथौड़ा मार दिया हो, परंतु कुछ कर नहीं सकते थे, आँख के ऊपर बहुत जोर की लगी थी, केवल अच्छा यह रहा कि खून नहीं निकला या चमड़ी नहीं हटी और ना ही कटी।
    वो काँच का दरवाजा बहुत मोटा था, इसलिये काँच के दरवाजे को तो कुछ नहीं हुआ, फ़िर हमने गाड़ी के मिरर में जाकर अपने माथे का जायजा लिया और हाथ से दबाकर बैठ गये, करीब २ मिनिट दबाने के बाद लगा कि यह दर्द ऐसे नहीं जाने वाला क्योंकि सीधे हड्डी में लगा है तो बेहतर है कि घर पहुँचा जाये और आयोडेक्स लगा लिया जाये। घर पहुँचे आयोडेक्स लगा लिया, परंतु दर्द कम होने का नामोनिशान नहीं था, खैर यह भी एक अच्छा अनुभव रहा।

अब हालत यह है कि उसके बाद से किसी भी दरवाजे से निकलना होता है तो पहले अच्छे से पड़ताल कर लेते हैं, संतुष्ट हो लेते हैं फ़िर ही निकलते हैं, दर्द तो अब भी बहुत है, सूजन कम है। समय के साथ साथ सब ठीक हो जाता है, गहरे जख्म भी भर जाते हैं।

विचारों पर विचार

    सुबह उठते समय बहुत सारे विचार अपनी पूर्ण ऊर्जा में रहते हैं, और शनै: शनै: उन विचारों के अपने प्रारूप बनने लगते हैं, उन विचारों में कई प्रकट हो जाते हैं, मतलब कि किसी ना किसी से वे विचार वाद-विवाद या किसी अन्य रूप में कह दिये जाते हैं। कुछ विचार जो प्रवाहमान रहते हैं, वे अपने संपूर्ण वेग से हर समय अपनी पूर्ण ऊर्जा से रक्त वाहिनियों में रक्त के कणों में बहते रहते हैं, उनकी रफ़्तार इतनी तेज होती है जो शायद ही नापी जा सकती होगी।
    विचारों की गति के समान शायद ही कोई गति वाला यंत्र विज्ञान बना पाया होगा, जो एक ही पल में कई वर्ष पहले और दूसरे ही पल में कहीं और किसी ओर समयकाल में ले जाता है। विचारों की इस तीव्र गति के कारण ही हम हमेशा विचलित रहते हैं, कुछ विचारों को हम व्यवहारिकता के धरातल पर ले आते हैं, और कुछ विचार शायद ही कभी दुनिया में प्रकट होते हैं, यह शायद हरेक व्यक्ति का अपना एक बहुत ही निजी घेरा होता है, जिसको वह किसी भी अपने, बेहद अपने से भी प्रकट  नहीं करता।
    विचारों की ऊर्जा से मन प्रसन्न भी हो जाता है और इस कारण से जो ऊर्जा शरीर को मिलती है, उसे कई बार अनुभव भी किया जा सकता है, कई बार ऐसे ही बैठे ठाले ही कोई विचार अचानक ही मन में आता है और अचानक ही रक्त संचार धमनियों मॆं रफ़्तार से होने लगता है, जिससे लगता है कि अचानक ही कोई नई ताकत हमारे अंदर आ गई है, शायद इस प्रक्रिया से कुछ हार्मोन्स का अवतरण होता होगा, जिससे मन का अवसाद, मन का फ़ीकापन दूर हो जाता है।
    नकारात्मक ऊर्जा वाले विचार शरीर के अंदर अत्यंत शिथिलता भर देते हैं, जो  भीरूपन जैसा होता है, जिससे हमें छोटी से छोटी बातों से डर लगने लगता है और हरेक घटना के पीछे वही ऊर्जा कार्य करती दिखती है, सही कार्य  भी करने वाले होंगे तो भी उस नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से हमारा मानस कहीं ना कहीं बिगड़ने लगता है और गलतियाँ करने लगते हैं।
    वहीं सकारात्मक ऊर्जा वाले विचार शरीर के अंदर बेहद उत्साह का संचार करते हैं, अत्यंत शक्तिशाली महसूस करने लगते हैं, कोई बड़ा कार्य भी बौना लगने लगता है। असहजता का अवसान हो जाता है, अगर तबियत खराब होती है तब भी उसका अनुमान नहीं हो पाता है, सकारात्मक ऊर्जा के दौरान अधिकतर हम दुश्कर कार्य अच्छे से कर पाते हैं।
    ऊर्जा कैसी भी हो, अपना मानस पटल हमें बहुत ही पारदर्शी रखना होगा, ध्यान रखना होगा कि नकारात्मक ऊर्जा का जब भी दौर हो, उस समय कैसे सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं, सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिये जो अच्छा लगता हो, वह करें, मुझे लगता है सफ़लता जरूर मिलेगी।
    ऐसे ही कुछ विचार प्रस्फ़ुटित होने के लिये इंतजार करते रहते हैं जिन्हें हम मन ही मन परिपक्व बनाते हैं, जिससे जब भी वह विचार हमारे मन की परिधि से निकल कर बाहर आये तो उस विचार से मान सम्मान और ऐश्वर्य की प्राप्ति हो।

अभी तक विचारों को सुबह लिखने की आदत नहीं पड़ी है, क्योंकि अगर सुबह ही विचार लिखने बैठ गये तो फ़िर प्रात: भ्रमण मुश्किल हो जाता है पर सुबह के विचारों को कहीं ना कहीं इतिहास बना लेना चाहिये, मानव मन है जो विचारों को जितना लंबा याद रख सकता है और उतनी ही जल्दी याने कि अगले ही क्षण भूल भी सकता है। ऐसे पता नहीं कितने विचारों की हानि हो चुकी है। जो शायद कहीं ना कहीं जीवन का मार्ग और दशा बदलने का कार्य करते हैं।

“शाहिद” शहादत और सुसाईड (“Shahid” Martyrdom or Suicide)

    आज फ़िल्म “शाहिद” देख रहा था, फ़िल्म बहुत ही अलग विषय पर बनी है, जिसे हम अनछुआ पहलू कह सकते हैं, इन अनछुए पहलुओं में केवल आतंकवाद से ग्रस्त लोग ही नहीं है, और भी बहुत सारे सामाजिक पहलू हैं जो अनछुए हैं, जिनके बारे में हमें आपको और बाहरी विश्व को कुछ पता नहीं है। क्योंकि इन पहलुओं को इतना लुका छिपाकर रखा जाता है कि हम तक कभी कोई खबर इस बारे में पहुँच ही नहीं पाती है।
    “शाहिद” में साफ़ साफ़ बताया गया है जो लोग आपका उपयोग करना चाहते हैं, उनसे दूर रहें, वे लोग केवल और केवल अपने स्वार्थ के लिये आपकी जिंदगी में आते हैं, बेहतर है कि उनसे बहुत दूरी बना ली जाये और मजबूरी हो तो कभी कभार मिलना जुलना रखना चाहिये। जो इंसान दुसरे के अनुभव से सीख लेता है वह शायद बहुत कुछ खोने से बच जाता है।
    फ़िल्म की कहानी बहुत ही सीधी सादी है, जिसमें केवल एक व्यक्ति के इर्दगिर्द यह फ़िल्म घूमती है और उसके परिवार को भी बताया गया है, फ़िल्म की कहानी में किसी भी तरह का कोई ड्रामा नहीं रखा गया है जो कि इसका बहुत ही अच्छा पक्ष है, जैसे कि अपने क्लाईंट से ही प्यार होने पर सीधे उसे शादी के लिये बात कह देना, अपने घर पर कुछ भी ना बताना और जब पता भी चले तो साफ़ साफ़ कह देना, यह साफ़गोई बहुत ही पसंद आई। जिसमें हीरोईन याने कि शाहिद की बीबी का यह संवाद कि “मुझे मेरी लाईफ़ कॉम्लीकेटेड नहीं चाहिये, कोई हर्डल कोई घुमाव फ़िराव नहीं चाहिये, बस स्टेट फ़ार्वर्ड लाईफ़ चलनी चाहिये” जमा।
    बहुत सारे संवाद दिल को छूने वाले हैं और प्रेरक हैं, जैसे शाहिद को उसकी बीबी ने कहा “लोग तो तुमको अतीत में धकेलकर तुम्हें अपने रास्ते से हटाने की कोशिश करेंगे, तुम केवल आगे की और देखो, नई किरण, नई रोशनी तुम्हारा इंतजार कर रही है”।
    जब शाहिद जेल में था तो उनका एक कैदी मित्र उनको पढ़ने में सहायता करता है और कहता है “लहरों के विरूद्ध चलना बहुत आसान नहीं होता परंतु अगर जो लहरों के विरूद्ध चलकर आगे बड़ता है, वह अपनी बुलंदियों को छूता है”, और उसने कहा कि जितना चाहो उतना पढ़ो तुम्हें अपनी मंजिल जरूर मिलेगी।
    किस प्रकार से झूठे केसों में लोगों को फ़ँसाया जाता है, और इतने कमजोर सबूत होने पर भी न्यायपालिका मूक दर्शक बनी देखती रहती है, हमारी न्यायपालिका पर भी बहुत बड़ा प्रहार है। किस प्रकार से धर्म के नाम पर नौजवानों को बरगलाया जाता है उसके लिये फ़िल्म खत्म होने के बाद फ़िल्म को एक्स्टेंडेड पार्ट में दिखाया गया है, वहाँ हमें शहादत और सुसाईड का अंतर पता चलता है।
    फ़िल्म बहुत ही शानदार है, अभिनय दिल छूने वाला है, शायद बहुत दिनों बाद ऐसी कोई फ़िल्म देखी कि लगा इसके लिये वाकई कुछ लिखना चाहिये। फ़िल्म की पूरी टीम को बधाई।