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“हिन्दुत्व” पढ़ाने वाले भारतीय संस्कृति के विद्यालयों की कमी क्यों है, हमारे भारत् में..?

    एक् बात मन में हमेशा से टीसती रही है कि हम लोग उन परिवारों के बच्चों को देखकर ईर्ष्या करते हैं जो कॉन्वेन्ट विद्यालयों में पढ़े होते हैं, वहाँ पर आंग्लभाषा अनिवार्य है, उन विद्यालयों में अगर हिन्दी बोली जाती है तो वहाँ दंड का प्रावधान है। वे लोग अपनी संस्कृति की बातें बचपन से बच्चों के मन में बैठा देते हैं।

    पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत ये विद्यालय हमें हमारी भारतीय संस्कृति से दूर ले जा रहे हैं, हमारे भारतीय संस्कृति के विद्यालयों में जहाँ तक मैं जानता हूँ वह हैं केवल “सरस्वती शिशु मंदिर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित”, “गोपाल गार्डन, इस्कॉन द्वारा संचालित” ।

    और किसी हिन्दू संस्कृति विद्यालय के बारे में मैंने नहीं सुना है जो कि व्यापक स्तर पर हर जिले में हर जगह उपलब्ध हों। मेरी बहुत इच्छा थी कि बच्चे को कम से कम हमारी संस्कृति का ज्ञान होना चाहिये, आंग्लभाषा पर अधिकार हिन्दुत्व विद्यालयों में भी हो सकता है, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है गोपाल गार्डन विद्यालय, वहाँ के बच्चों का हिन्दी, संस्कृत और आंग्लभाषा पर समान अधिकार होता है और उनके सामने कॉन्वेन्ट के बच्चे टिक भी नहीं पाते हैं।

    हमारे धर्म में लोग मंदिर में इतना धन खर्च करते हैं, उतना धन अगर शिक्षण संस्थानों में लगाया जाये और पास में एक छोटा सा मंदिर बनाया जाये तो बात ही कुछ ओर हो। राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षैत्र में उग्र आंदोलन की जरुरत है। नहीं तो आने वाले समय में हम और हमारे बच्चे हमारी भारतीय संस्कृति भूलकर पश्चिम संस्कृति में घुलमिल जायेंगे।

    याद आती है मुझे माँ सरस्वती की प्रार्थना जो हम विद्यालय में गाते थे, पर आज के बच्चों को तो शायद ही इसके बारे में पता हो –

माँ सरस्वती या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||

शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ||

अगर हमारे मास्साब को ७,८,१३ के पहाड़े और विज्ञान की मूल बातें न पता हों तो हमारे देश के बच्चों का भविष्य क्या होगा ..!

    खबर है थाणे महाराष्ट्र प्रदेश की (Thane civic teachers flunk surprise test) कि शिक्षा विभाग के सरकारी विद्यालयों में महकमे ने कुछ अध्यापकों से उनके विषय से संबंधित मूल प्रश्न पूछे, जैसे कि ७,८,१३ के पहाड़े और रसायन विज्ञान के मूल सूत्र जो कि वे लगभग पिछले १५-२० वर्षों से बच्चों को पढ़ाते रहे हैं।

    सरकारी महकमा भी सोच रहा होगा कि कैसे नकारा मास्टर लोग हैं हमारे यहाँ के जो नाम डुबाने में लगे हैं। बताईये उन बच्चों का क्या भविष्य होगा जो इन विद्यालयों में इन मास्साब लोगों से पिछले १५-२० वर्षों से पढ़ रहे हैं। चैन की दो वक्त की रोटी मिलने लगे तो क्या मानव को अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर लेना चाहिये।

    इससे अच्छा तो सरकार को विद्यालयों में शिक्षकों को निकालकर नये पढ़े लिखे बेरोजगार नौजवानों को भर्ती कर लेना चाहिये, कम से कम बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न तो नहीं लगेगा। अगर ऐसे मास्साब लोग हमारे विद्यालय में होंगे तो हमें हमारी तरक्की से वर्षों पीछे ढकेलने से कोई नहीं रोक सकता। इसके लिये केवल वे मास्साब ही जिम्मेदार नहीं हैं, जिम्मेदार हैं प्रशासन से जुड़ा हर वह व्यक्ति जो कि बच्चों की शिक्षा के लिये सरकारी महकमे से जुड़े हैं।

   यह स्थिती केवल इसी जिले की नहीं होगी यह स्थिती देश के हर जिले की होगी, इसकी पूरी पड़ताल करनी चाहिये ।

आखिर क्या करना चाहिये ऐसे मास्साबों का ? और क्या होगा हमारे बच्चों का भविष्य ?

(ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करके पूरा समाचार पढ़ा जा सकता है।)

पत्नी ने रिश्वतखोर पति का भंडाफ़ोड़ किया..काश हर घर में हो..कितना सही..चिंतन..? [Fiesty wife exposes bribe – taking hubby]

    जी हाँ यह सच है, कल के मुंबई मिरर में “Fiesty wife exposes bribe – taking hubby” इस घटना का ब्यौरा दिया गया है। पूरी  खबर लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

    वाकई अगर पत्नी पति की रिश्वतखोरी को रोके, भारत देश से भ्रष्टाचार खत्म करने का यह सबसे आसान तरीका लगता है। इस मुद्दे पर नारीवादी संगठनों को आगे आना चाहिये और नारियों को जागरुक करना चाहिये।

    जिस घटना को पढ़कर यह मैं लिख रहा हूँ उस घटना में पत्नी रिश्वत के पैसे से घर नहीं चलाना चाहती थी, और उसने पति को समझाया कि सीमित वेतन में अच्छे से जी सकते हैं, तो यह गलत काम क्यों करना। पत्नी ने पति को समझाया कि उसके पापा भी सरकारी नौकरी में थे और कभी भी रिश्वत के लालच में नहीं आये। पर पति की समझ में न आया, और उसकी रिश्वत की भूख बड़ती ही जा रही थी, एक दिन पति दो लाख रुपये लेकर आया तो पत्नी ने हंगामा कर दिया कि वह इस रिश्वत की रकम को घर में नहीं रहने देगी, और पति के न मानने पर रिश्वत एवं भ्रष्टाचार संबंधी कागज लेकर पुलिस को दे दिये।

    प्रश्न अब यह है कि क्या पत्नी ने ठीक किया ? भ्रष्टाचारी पति का भंडाफ़ोड़ करके या उसे यह सब चुपचाप सहन कर लेना चाहिये था और भ्रष्ट धन से भौतिक सुख सुविधाओं का मजा लूटना चाहिये था ?

भ्रष्टाचारी रुपी रावण कब हमारे भारत देश से विदा होगा, कब हम इस रावण को जलायेंगे …

पिछली पोस्ट आज भ्रष्टाचार की नदी में नहाकर आये हैं.. आप ने कभी डुबकी लगाई .. से आगे…

    रोज के ६० पंजीयन करवाये जाते हैं इस भूपंजीयन कार्यालय द्वारा और बताया गया कि हर पंजीयन पर लगभग १५०० रुपयों की रिश्वत होती है। और जो दलाल होता है उसकी कमाई रोज की १० हजार से १५ हजार तक होती है, भूपंजीयन (सहदुय्यम अधिकारी) की कुर्सी ५०-६० लाख रुपये में बिकती है क्योंकि हर माह यहाँ लाखों की कमाई होती है, यह १५०० रुपये की रिश्वत तो केवल मकान मालिक और किरायेदार के करारनामे पर है, अगर कोई नये फ़्लेट या पुराने फ़्लेट के लिये जा रहा है तो उसकी रिश्वत की राशि बहुत ज्यादा होती है।

    उस कार्यालय में जाकर इतनी घिन आ रही थी कि कहाँ हम इस भ्रष्टाचार की नदी में आकर सन गये हैं, और नहाकर तरबतर हो चुके हैं। अपने आप पर गुस्सा भी था कि इस भ्रष्टाचार को हम धता भी नहीं बता पा रहे थे, मजबूरी में भ्रष्टाचार का साथ दे रहे थे, पर इस भ्रष्टाचार के बिना हमारा काम बिल्कुल नहीं होता यह तो हमें हमारे दलाल ने पहले ही बता दिया था, “खुद जियो और दूसरे को भी जीने दो” याने कि “खुद खाओ और दूसरे को भी खाने दो”

    क्या सरकार हमारी अंधी है या जो भ्रष्टाचार निरोधक अमले बना रखे हैं वो केवल औपचारिकताएँ पूरी करने के लिये बनाये गये हैं। हमारी कोर्ट भी संज्ञान नहीं लेती हैं, क्या इतनी मिलीभगत है, क्या हमारा पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार में लिप्त है, कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक भ्रष्टाचार के मामले को संज्ञान में लेते हुए कहा था कि सरकार को भ्रष्टाचार को कानूनन लागू कर देना चाहिये और किस काम का कितना पैसा खर्च होगा उसका भाव तय कर देना चाहिये। पर हमारे सरकारी कुंभकर्ण और रावण कभी नहीं जाग सकते।

    अब बताईये जिन लोगों को यहाँ जनता की सेवा के लिये बैठाया गया है वही लोग अपना काम करने की जनता से रिश्वत लेते हैं, और जनता भी दे देती है, क्या करे जनता भी, सब मिलीभगत है।

    भ्रष्टाचारी रुपी रावण कब हमारे भारत देश से विदा होगा, कब हम इस रावण को जलायेंगे, कब रावण को हर वर्ष जलाना छोड़ देंगे, इस रावण को जड़ से ही मिटा देंगे। कब….. बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है… पता नहीं हमारे भारतवासी कब हराम की कमाई छोड़ेंगे… जिस दिन यह संकल्प हर भारतवासी ने ले लिया उस दिन भारत में रामराज्य स्थापित हो जायेगा। दशहरे पर असत्य पर सत्य की विजय के साथ सभी को विजयादशमी की शुभकामनाएँ।

आज भ्रष्टाचार की नदी में नहाकर आये हैं.. आप ने कभी डुबकी लगाई ..

आज हम सुबह अपने मकान के दलाल के साथ पंजीयक कार्यालय गये थे, जहाँ हमारे मकान मालिक भी थे, यहाँ मुंबई में ११ महीने का किराये का करारनामा होता है जो कि पंजीयन कार्यालय से पंजीकृत भी होना चाहिये। यह पूर्णतया: कानूनी कार्यवाही होती है।

जब हम पंजीयक कार्यालय पहुँचे तो वहाँ लिखा था तहसिलदार भूमापन बोरिवली कार्यालय, और भी ४-५ कुछ और नाम लिखे थे, जो कि हमें याद नहीं है, वहीं पास में झंडे को फ़हराने के लिये लोहे का पाईप भी लगा था, वह देखकर मन में आया कि मुंबई महानगरी में सरकारी कार्यालय में इतने सारे भ्रष्टाचारी लोगों के बीच में अपने तिरंगे को फ़हराने का क्या काम, इसलिये इस लोहे के डंडे को यहाँ होना ही नहीं चाहिये। मन में यह बात लिये हम पहले माले पर चल दिये।

जहाँ हमारे मकान के दलाल ने पहले से ही सब “सैटिंग” की हुई थी, हमारा १२ बजे का नंबर लिया हुआ था, हम पहुँचे १२.४५ बजे पर अगले ने फ़िर “सैटिंग” की फ़टाफ़ट और हमारी फ़ाईल नीचे से ऊपर करवाई और बस हम पंजीयन अधिकारी के कार्यालय में पहुँच गये। मुख्य कुर्सी पर एक महिला काबिज थी जो कि बहुत ही महंगी सी साड़ी पहनी हुई बैठी थीं, और चेहरा बिल्कुल रुखा कि कहीं कोई फ़ोकट में काम न करवा ले।

जहाँ बैठने के लिये दो कुर्सियाँ और एक स्टूल था, स्टूल पर पहले मकान मालिक को बैठाया गया और उनके कुछ हस्ताक्षर वगैरह लिये गये फ़िर “वैब कैम” से फ़ोटो खींचे गये और उल्टे हाथ का अंगूठे का स्कैनिंग किया गया। इसके बाद हमारा नंबर आया और यही सब हमारे साथ किया गया, इसी बीच पंजीयन कार्यालय के दलाल द्वारा एक हस्ताक्षर लिया गया। हमने अपने दलाल पर भरोसा करके उसपर हस्ताक्षर कर दिये (इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था)

फ़िर हम उस कक्ष के बाहर आये और वहाँ फ़िर वही दलाल कुछ कागज लाया और हमसे और मकान मालिक से हस्ताक्षर करवाये। हमने अपने अगले ११ महीने के चैक मकान मालिक को सुपुर्द किये और बस अगले ११ महीने के लिये हमारा पंजीयन हो गया, हम केवल १० मिनिट में स्वतंत्र हो गये।

कार्यालय में हमने दो चीजें पढ़ी थीं कि पंजीकरण के लिये नंबर ऑनलाईन किये जा सकते हैं, और ईस्टाम्प। हम हमारे मकान मालिक के साथ बात कर रहे थे कि अगर सभी चीज ऑनलाईन कर दी जाये तभी भ्रष्टाचार का खात्मा संभव है, नहीं तो हम और आप तो कुछ भी नहीं कर सकते इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ़।

कार्यालय से बाहर निकलते ही हमने अपने दलाल से प्रश्न किया कि अगर बिना भ्रष्टाचार के पंजीयन करवाना हो तो कितना समय लग जाता है। हमारे दलाल का जबाब था कि “हो ही नहीं सकता।” वहीं पर एक अस्थायी पटिये पर बैठे हुए बंदे ने कहा कि अंकल जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। वह भी शायद दलाल ही था। हमने कहा कि वहाँ तो लिखा है कि ऑनलाईन नंबर और ईस्टाम्प सरकार ने शुरु किया है। तो दोनों ठहाके मारकर हँसने लगे और बोले नंबर तो अगले एक महीने का शुरु के दो दिन में ही दर्ज हो जाते हैं, तो हम बोले फ़िर आपको कैसे ऐसे नंबर मिल जाता है, वे बोले पैसे में बहुत ताकत है, और वही ताकत यह सब करवाती है।

जारी…

नवभारत टाईम्स में हिन्दी की हिंग्लिश… आज तो हद्द ही कर दी..

नवभारत टाईम्स ही क्या बहुत सारे हिन्दी समाचार पत्र अपने व्यवसाय और पाठकों के कंधे पर बंदूक रखते हुए जबरदस्त हिंग्लिश का उपयोग कर रहे हैं। पहले भी कई बार इस बारे में लिख चुका हूँ, हिंग्लिश और वर्तनियों की गल्तियाँ क्या हिन्दी अखबार में क्षम्य हैं।

मैं क्या कोई भी हिन्दी भाषी कभी क्षमा नहीं कर सकता। सभी को दुख ही होगा।

आज तो इस अखबार ने बिल्कुल ही हद्द कर दी, आज के अखबार के एक पन्ने पर “Money Management” में एक लेख छपा है, देखिये –

एनपीएस में निवेश के लिये दो विकल्प हैं। पहला एक्टिव व दूसरा ऑटो अप्रोच, जिसमें कि PFRDA द्वारा अप्रूव पेंशन फ़ंड में इन्वेस्ट किया जा सकता है। इस समय साथ पेंशन फ़ंद मैनेजमेंट कंपनियां जैसे LIC,SBI,ICICI,KOTAK,RELIANCE,UTI  व IDFC हैं। एक्टिव अप्रोच में निचेशक इक्विटी (E), डेट (G) या बैलेन्स फ़ंड (C ) में प्रपोशन करने का निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है। इन्वेस्टर अपनी पूरी पेंशन वैल्थ G असैट क्लास में भी इन्वेस्ट कर सकता है। हां, अधिकतम 50% ही E में इन्वेस्ट किया जा सकता है। जिनकी मीडियम रिस्क और रिटर्न वाली अप्रोच है वे इन तीनों का कॉम्बिनेशन चुन सकते हैं। वे, जिन्हें पेंशन फ़ंड चुनने में परेशानी महसूस होती है वे ऑटो च्वॉइस इन्वेस्टमेंट ऑप्शन चुन सकते हैं।…

अब मुझे तो लिखते भी नहीं बन रहा है, इतनी हिंग्लिश है, अब बताईये क्या यह लेख किसी हिन्दी लेखक ने लिखा है या फ़िर किसी सामान्य आदमी ने, क्या इस तरह के लेखक ही समाचार पत्र समूह को चला रहे हैं।

द्वारा अप्रूव पेंशन फ़ंड में इन्वेस्ट किया जा सकता है। इस समय साथ पेंशन फ़ंद

क्या हिन्दी अखबार पढ़ना बंद कर देना चाहिये.. समझ ही नहीं आता है कि हिन्दी है या हिंग्लिश.. असल हिन्दी क्या खत्म हो जायेगी.. ?

अभी कुछ दिनों पहले एक चिट्ठे पर किसी अखबार के बारे में पढ़ा था कि पूरी खबर ही लगभग हिंग्लिश में थी, शायद कविता वाचक्नवी जी ने लिखा था, अच्छॆ से याद नहीं है। अभी  लगातार नवभारत टाईम्स में भी यही हो रहा है।
मसलन कुछ मुख्य समाचार देखिये –
१. इंडिया का गोल्डन रेकॉर्ड
२. विमान की इमरजेंसी लैंडिंग
३. पानी सप्लाई दुरुस्त करने में जुटे रिटायर्ड इंजिनियर
४. गेम्स क्लोजिंग सेरेमनी में म्यूजिक, मस्ती और नया एंथम
 
अब कुछ अंदर के पन्नों की खबरें –
१. सलमान पर इनकम टैक्स चोरी का आरोप (अपीलेट आदेश को हाईकोर्ट की चुनौती)
२. साइलेंस जिन के नियमों पर पुलिस लेगी फ़ैसला
३. कॉर्पोरेट्स को मिलेगी इंजिनियरिंग कॉलेज खोलने की इजाजत (’सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंस’ के जरिए स्किल्ड वर्कफ़ोर्स की उम्मीद)
४. बच्चों को अपना कल्चर बताना है।
अब अगर यही हाल रहा तो पता नहीं हमारी नई पीढ़ी हिन्दी समझ भी पायेगी या नहीं, क्या हिन्दी के अच्छे पत्रकारों का टोटा पड़ गया है, अगर ऐसा ही है तो हिन्दी चिट्ठाकारों को खबरें बनाने के लिये ले लेना चाहिये। कम से कम अच्छी हिन्दी तो पढ़ने को मिलेगी और चिट्ठाकारों के लिये नया आमदनी का जरिया भी, जो भी चिट्ठाकार समाचार पत्र समूह में पैठ रखते हैं, उन्हें यह जानकारी अपने प्रबंधन को देनी चाहिये। महत्वपूर्ण है हिन्दी को आमजन तक असल हिन्दी के रुप में पहुँचाना।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… बेस्ट के ड्राईवर का गुस्सा.. बाबा..

     घर से आज ९.२५ पर निकल पाया तो लगा कि शायद अपनी बस आज छूट जायेगी, सोचा कि अब तो अगली बस ९.५० की ही मिलेगी, परंतु हाईवे पर पहुँचते ही अपनी तो बाँछें खिल गई, क्योंकि जबरदस्त ट्रॉफ़िक था, कोई गाड़ी अच्छे से किसी से टकरा गई थी। और तीन तीन बस ट्रॉफ़िक में फ़ँसी हुई थीं जिसमें सबसे पीछे वाली बस अपनी थी, फ़िर से ड्राईवर से मुस्कराहट का आदान प्रदान हुआ और उन्होंने आगे से ही चढ़ने का इशारा किया परंतु सभ्यता से हम बस के पीछे वाले दरवाजे से चढ़ लिये।

    बस में आज भीड़ कुछ कम थी, और ठीक ठाक तरीके से खड़े होने की जगह मिल गयी थी, पर थोड़ी देर में ही भीड़ का दबाब बड़ने लगा और जाने पहचाने चेहरे नजर आने लगे, अपना मोबाईल निकाला और निम्बज्ज में लॉगिन किया कि ट्विटर पर नया क्या है, गूगल चैट, याहू चैट और स्कायपी पर कितने और कौन कौन ऑनलाईन हैं, कुछ चैटिंग पर काम की बातें भी कर ली गईं, कुछ देर बाद ही हमें एक सीट मिल गई और हम इत्मिनान से मोबाईल पर ही इकोनोमिक्स टाईम्स पढ़ने लगे।

    बस में भीड़ का दबाब बड़ता ही जा रहा था, दो लाईन से तीन लाईन और एक चौथी लाईन आने जाने वालों की लगी थी, बिल्कुल पैक हो चुकी थी बस.. थोड़ी ही देर में स्टॉप आते जाते और बस यात्रियों को उतारकर और लेकर आगे बढ़ती रहती।

    बस एक स्टॉप पर से निकली और सिग्नल पर खड़ी हो गई, तो कुछ दो लोग पीछे से दौड़ते हुए आये और आगे वाले दरवाजे से चढ़ लिये, तो ड्राईवर बहुत नाराज हुआ, और इन दोनों पर चिल्लाने लगा बोला कि पीछे दरवाजे से चढ़ो, तो दो लोगों में से एक तो उतर गया पर एक आदमी उतरने को तैयार ही नहीं था, और वह गाली गलौच पर उतर आया, तब तक बस थोड़ा आगे निकल चुकी थी, तो बस ड्राईवर ने बस उधर ही रोकी और बस का इंजिन बंद कर दिया और बोला कि जब तक ये आदमी नहीं उतरेगा तब तक बस आगे नहीं जायेगी, ऊफ़्फ़ ये तो उस आदमी ने हद्द ही कर दी बोला कि नहीं उतरुँगा, तब बस में से सभी लोग उस आदमी के लिये चिल्लाने लगे और कुछ टपोरियों वाली भाषा में ही शुरु हो गये। कुछ लोग कहने लगे “लेट हो रहा है”, “गर्मी बहुत हो रही है”, तो इतने में एक लड़की का कमेंट आया कि मुंबई में सारी बसें ए.सी. होनी चाहिये, यहाँ इतनी सड़ी गर्मी होती है। आखिरकार वह आदमी उतरा और बस ड्राईवर ने बस इंजिन चालू किया तब जाकर राहत महसूस हुई।

    रोज ही ऐसा कोई न कोई वाकया हो जाता है। कि बस.. लिखना तो बहुत कुछ है पर बस अब ओर नहीं…

बस स्टॉप पर तीन लड़कियों की बातें

बस स्टॉप पर तीन लड़कियाँ बस के इंतजार में बैठी हुई थीं, सप्ताहांत की खुशी तो थी ही तीनों के चेहरे पर, साथ ही चुहलबाजी भी कर रही थीं।

तभी एक मोटर साईकिल स्टॉप के आगे आकर रुकी और वह लड़का किनारे जाकर रुक गया, हेलमेट उतारा और किसी का इंतजार करने लगा, बाईक भी कोई अच्छी सी ही लग रही थी, पर तभी उन तीनों लड़कियों की आवाज चहकने लगी, एक बोली “देख क्या बाईक है”, दूसरी बोली, “अरे नहीं मोडिफ़ाईड बाईक है, आजकल येइच्च फ़ैशन है, ओरिजिनल का जमाना नहीं है, जो पसंद आये लगा डालो”

सोचने लगा कि लड़कियाँ क्या क्या सोचती हैं, जिस बाईक की ओर लड़कों का ध्यान नहीं जाता वह बाईक लड़कियों की बातों का केन्द्र है।

तभी एक लड़की के मोबाईल पर फ़ोन आ गया, अब इधर की तरफ़ जो बातें सुनाई दे रही थीं, वे इस प्रकार थीं –

“किधर है तू”

“क्या बोलता है”

“अच्छा तू आरेला है मेरे कू लेने को”

तब समझ में आया कि लड़के का फ़ोन है।

“किधर मिलूँ, जिधर तू सिगरेट लेता है, पानी पुरी वाले खड़ेले हैं, अरे मैं उधरीच हूँ रे”

“तू आ न”

तभी एक लड़की की बस आ गई, वह तुरंत दौड़कर सड़क पर गई और बस स्टॉप तक आने का इंतजार करने लगी, जेब से कान कौवे (हैंड़्स फ़्री) निकाले और कान में ठूँस लिये, मुंबई की रफ़्तार में इन कानकौवों का बहुत महत्व है, आधी से ज्यादा मुंबई कानकौवे कान में ठूँसे हुए नजर आते हैं, केवल अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त”

फ़िर वो लड़की जिसका फ़ोन आया था, वह भी बॉय करके चल दी सड़क क्रॉस कर सिगरेट के ठिये पर, जहाँ उसका बॉय फ़्रेंड आने वाला है।

तीसरी लड़की वो भी शायद बस का ही इंतजार कर रही थी, परंतु जैसे ही ये दोनों लड़कियाँ गईं, वो वहाँ से उठकर पैदल ही चल दी, दूसरी तरफ़, समझ नहीं आया कि जब बस पकड़ने आये थे तो दो लड़कियाँ पैदल ही क्यों चली गईं।

वहीं ठिठोली करता हुआ एक समूह खड़ा था जिसमें दो लड़के और दो लड़कियाँ थे, लड़कियों के हाथ में सिगरेट थी और बिल्कुल नशा करने के अंदाज में मस्ती से सिगरेट के कश उड़ा रही थी.. हमारी आधुनिक संस्कृति..

आज घर आते आते बहुत सारी बसों पर एगॉन रेलिगेयर के जीवन बीमा वाले उत्पादों के विज्ञापन देखकर खुशी हुई कि चलो ये तो अच्छा काम हो रहा है।

आखिर इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे कब सुधरेगा..

    गुस्सा होना स्वाभाविक है, जब आपको तत्काल कहीं जाना हो और टिकट न मिले, तो तत्काल का सहारा लेते हैं, रेल्वे ने यह सुविधा आईआरसीटीसी के द्वारा भी दे रखी है, परंतु ८ बजे सुबह जैसे ही तत्काल आरक्षण खुलता है वैसे ही इस वेबसाईट की बैंड बज जाती है, सर्विस अन- अवेलेबल का मैसेज इनकी वेबसाईट पर मुँह चिढ़ाने लगता है।

    कई बार तो बैंक से कई बार पैमेन्ट हो जाने के बाद भी टिकट नहीं मिल पाता है क्योंकि पैमेन्ट गेटवे से वापिस साईट पर आने पर ट्राफ़िक ही इतना होता है कि टिकट हो ही नहीं पाता है, वैसे अगर टिकट नहीं हुआ और बैंक से पैसे कट गये तो १-२ दिन में पैसे वापिस आ जाते हैं, परंतु समस्या यह है कि ऑनलाईन टिकट मिलना बहुत ही मुश्किल होता है।

    सुबह ८ बजे से ८.४५ – ९.०० बजे तक तो वेबसाईट पर इतना ट्राफ़िक होता है कि टिकट तभी हो सकता है जब आपकी किस्मत बुलंद हो। वैसे आज किस्मत हमारी भी बुलंद थी जो टिकट हो गया वरना तो हमेशा से खराब है, इसके लिये पहले भी जाने कितनी बार रेल्वे को कोस चुके हैं।

    करीबन २ महीने पहले से एजेन्टों के लिये व्यवस्था शुरु की गई कि वे लोग जिस दिन तत्काल खुलता है उस दिन ९ बजे से टिकट करवा सकेंगे याने कि सुबह ८ से ९ बजे तक केवल आमजनता ही करवा पायेगी, परंतु इनकी इतनी मिलीभगत है कि जब सीजन होता है तब इनके सर्वर ही डाऊन हो जाते हैं, न घर बैठे आप साईट से टिकट कर सकते हैं और न ही टिकट खिड़की से, पर जैसे ही ९ बजते हैं, स्थिती सुधर जाती है, ये सब धांधली नहीं तो और क्या है।

    टिकट खिडकी पर जाकर टिकट करवाना मतलब कि अपने ३-४ घंटे स्वाहा करना। सुबह ४ बजे से लाईन में लगो, तब भी गारंटी नहीं है कि टिकट कन्फ़र्म मिल ही जायेगा, लोग तो रात से ही अपना बिस्तर लेकर टिकट खिड़की पर नंबर के लिये लग जाते हैं, और टिकट खिड़की वाला बाबू अपने मनमर्जी से टिकट करेगा, उसका प्रिंटर बंद है तो परेशानी, उसके पास खुल्ले न हो तो और परेशानी, जब तक कि पहले वाले यात्री को रवाना नहीं करेगा, अगले यात्री की आरक्षण पर्ची नहीं लेगा, और जब तक कि ये सब नाटक होगा, बेचारा अगला यात्री उसको कोसता रहेगा क्योंकि तब तक उसे कन्फ़र्म टिकट नहीं वेटिंग का टिकट मिलेगा।

    क्या इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे अपना आई.टी. इंफ़्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं कर सकता है, या उसके जानकारों की कमी है रेल्वे के पास, तो रेल्वे आऊटसोर्स कर ले, कम से कम अच्छी सुविधा तो मिल पायेगी।