Tag Archives: रेल्वे

अब IRCTC की वेबसाईट अच्छा काम कर रही है।

कल काफ़ी दिनों बाद रेल्वे के आरक्षण के लिये IRCTC की वेबसाईट पर जाना हुआ। हालत यह थी की अपना यूजर आई डी और पासवर्ड भी याद करने में काफ़ी समय लगा। खैर IRCTC की वेबसाईट की रफ़्तार पहले जैसी तेज थी, बस जब तत्काल का समय होता है तभी या तो मंद हो जाती थी या फ़िर बंद हो जाती थी। परंतु कल आलम अलग था, हम तो पौने आठ से ही लॉगिन करके बैठे थे, पुरानी आदत जो थी 🙂 अब आदत इतनी जल्दी जाती भी नहीं है।

खैर जैसे ही आठ बजे वैसे ही IRCTC को जोर का झटका लगा और एक Error message हमारे सामने आ गया, सारे अरमान धूमिल होते नजर आये। खैर साथ में हम indianrail.gov.in साईट पर भी सीट की उपलब्ध संख्या पर नजर रखे हुए थे। पहले १८४ सीटें मात्र ३-४ मिनिट में ही खत्म हो लेती थीं परंतु जब कल देखा तो लगभग ८.१० तक मात्र १० सीट ही आरक्षित हुईं थीं। फ़िर भी वेबसाईट मंदगति से चलती रही और आखिरकार आरक्षण हो ही गया।

तत्काल में आरक्षण जब से एक दिन पहले हुआ है तब से लगता है कि सुविधाएँ अच्छी हुई हैं और Quick Book भी  8 – 10 सुबह बंद रहने लगा है, वरना तो पहले Quick Book ही सहारा था। खैर हमारे मित्र बहुत खुश हुए कि आरक्षण मिल गया क्योंकि मुंबई उज्जैन अवंतिका एक्सप्रैस में हमेशा मारा मारी रहती है। हमारे मित्र आज सुबह बाहर से प्रवास करके आज मुंबई लौटे हैं, बड़ी लंबी फ़्लाईट थी, लगभग २० घंटे की, तो कल सुबह उज्जैन पहुँच जायेंगे।

धन्यवाद रेल्वे को जो आम आदमी की उसे याद आई, और IRCTC को भी धन्यवाद कि अपना Infrastructure अच्छा किया जिससे कम से कम वेबसाईट चल रही है।

ऑनलाईन भुगतान के लिये ग्राहक का विश्वास रेल्वे ने दिया है (Railway created faith in consumers for online payment and delivery)

    ऑनलाईन भुगतान आम आदमी ने कब से करना शूरू किया ? और आम आदमी को नेटबैंकिंग और ऑनलाईन भुगतान पर विश्वास कैसे हुआ ?  आजकल जो आम आदमी आराम से विश्वास से  बेधड़क ऑनलाईन नेटबैंकिंग और क्रेडिट कार्ड से भुगतान कर रहा है, पता है इसके लिये रेल्वे विभाग का बहुत बड़ा हाथ है ।
    रेल्वे ने ऑनलाईन टिकट की सुविधा देकर उपभोक्ता सेवा के क्षैत्र में क्रांति पैदा कर दी और आम ग्राहक को विश्वास दिलवाया कि अगर ऑनलाईन भुगतान किया जाये तो उसका टिकट उसे मिल जायेगा, रेल्वे ने वादा किया कि दो दिन में टिकट अगर आपको घर पर मिल जायेगा तो रेल्वे ने अपना वादा निभाया और ग्राहक के विश्वास को जीत लिया।
    ऑनलाईन खरीदी करने पर ग्राहक को समय पर सेवा उपलब्ध होने का जो विश्वास रेल्वे ने ग्राहकों को दिया, इस विश्वास का फ़ायदा भारत के लगभग सभी वेबसाईटों को मिला और ग्राहक ऑनलाईन खरीदी करने में विश्वास करने लगे। इस ईलेक्ट्रॉनिक भूगतान का आँकड़ा अगर देखा जाये तो अविश्वसनीय है, जिस तेजी से ई-भुगतान बढ़ता जा रहा है वह लगभग सभी के लिये अच्छा है, क्योंकि इसमें होने वाला खर्चा काफ़ी कम है और चूँकि इसमें मानवीय हस्तक्षेप नहीं है तो इसमें त्रुटि होने की संभावनाएँ  भी काफ़ी कम हैं।
    रेल्वे आम उपभोक्ता के लिये एक जरूरी सुविधा है और ई-टिकट के लिये रेल्वे ने अलग से शुल्क लेना शुरू किया जो कि आम उपभोक्ता की मजबूरी है, क्योंकि अगर वह रेल्वे स्टेशन जाकर टिकट लेगा तो उसका खर्चा उस शुल्क से कहीं ज्यादा है और उसके लिये उसे रेल्वे स्टेशन जाना होगा, पर ई-टिकटिंग में उपभोक्ता अपने घर पर ही अंतर्जाल की मदद से टिकट कर सकता है।
    ऑनलाईन खरीदी के लिये रेल्वे ने जो मॉडल पेश किया वह बहुत ही सराहनीय है, परंतु ऑनलाईन खरीदी करने पर रेल्वे ने जो अतिरिक्त शुल्क लगाया वह थोड़ी ज्यादती है, रेल्वे का मानवीय हस्तक्षेप कम हो गया और जो रेल्वे खिड़की पर जो ऑनलाईन ग्राहकों का आना कम हुआ उसका फ़ायदा उन ऑनलाईन ग्राहकों को नहीं दिया गया।
    ऑनलाईन खरीदी करने वाले ग्राहकों को कुछ अतिरिक्त सुविधा देनी चाहिये जैसे कि अगर कुछ प्रतिशत की छूट देनी चाहिये जिससे वे ग्राहक वापिस से रेल्वे की खिड़की पर ना जायें और जो ग्राहक रेल्वे खिड़की पर जाते हैं वे भी ऑनलाईन ग्राहक बन जायें। रेल्वे को साथ ही टोल फ़्री सुविधा भी देनी चाहिये जैसे कि आजकल की सभी ऑनलाईन पोर्टल्स दे रहे हैं।
    रेल्वे को मेरी तरफ़ से बहुत बहुत धन्यवाद है कि ग्राहकों का विश्वास ऑनलाईन भूगतान के प्रति जमाया।

रेलयात्रा में अनजाने लोगों से यादगार मुलाकातें और उनकी ही सुनाई गई एक कहानी… (My Railway Journey..)

    रेलयात्रा करते हुए अधिकतर अनजाने लोगों से अलग ही तरह की बातें होती हैं, जिसमें सब बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं, और लगभग हर बार नयी तरह की जानकारी मिलती है।

    इस बार कर्नाटक एक्सप्रेस से जाते समय एक स्टेशन मास्टर से मुलाकात हुई जो कि अपने परिवार के साथ ७ दिन की छुट्टी के लिये अपने गाँव जा रहे थे। घर में सबसे बड़े हैं और अपने चचेरे भाईयों को उनके भविष्य के बारे में महत्वपूर्ण राय देते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उनके भाई उनके मार्गदर्शन को मानते भी हैं और उनके मार्गदर्शन पर चलते हुए दो भाई सरकारी नौकरी में भी लग गये हैं, अब उन्हें तीसरे की चिंता है।

    ऐसे ही बातें चल रहीं थीं तो उन्होंने एक बहुत ही अच्छी छोटी सी कहानी सुनाई, कि अच्छे लोगों के साथ ही हमेशा बुरा क्यों होता है और हम यह भी सोचते हैं कि फ़लाना कितने बुरे काम करता है परंतु भगवान उसको कभी सजा नहीं देते।

    एक गाँव में दो दोस्त रहते थे और शाम के समय पगडंडी पर घूम रहे थे, पहला वाला दोस्त बहुत ईमानदार और नेक था और दूसरा दोस्त बेहद बदमाश और बुरी संगत वाला व्यक्ति था। तभी एक मोटर साईकिल से एक आदमी निकला तो उसकी जेब से एक १००० रूपये का नोट गिर गया। तो पहला दोस्त दूसरे से बोला कि चलो जिसका नोट गिरा है उसे मैं जानता हूँ, उसे दे आते हैं। दूसरा दोस्त बोला कि अरे नहीं बिल्कुल भी नहीं ये हमारी किस्मत का है इसलिये यहाँ उस आदमी की जेब से गिरा है, यह नोट उस आदमी की किस्मत में नहीं था, हमारी किस्मत में था, चल दोनों आधा आधा कर लेते हैं, ५०० रूपये तुम रखो और ५०० रूपये मैं रखता हूँ।

    पहले दोस्त ने मना कर दिया कि मैं तो ऐसे पैसे नहीं रखता तो दूसरा दोस्त बोला कि चल छोड़ मेरी ही किस्मत में पूरे १००० रूपये लिखे हैं, पर फ़िर भी पहला दोस्त उसे समझाता रहा कि देखो ये रूपये हमारे नहीं हैं, हम उसे वापिस लौटा देते हैं। परंतु दूसरा दोस्त मानने को तैयार ही नहीं होता है।

    चलते चलते अचानक पहले वाले दोस्त को पैर में कांटा लग जाता है और वह दर्द से बिलबिला उठता है। और दूसरा दुष्ट दोस्त १००० रूपये का नोट हाथ में लेकर नाचता रहता है।

    पार्वती जी शिव जी के साथ यह सब देखती रहती हैं। और शिव जी से शिकायत करती हैं कि यह कैसा न्याय है प्रभु, जो सीधा साधा ईमानदार है उसको मिला कांटा और जो दुष्ट और पापी है उसे मिला १००० रूपया। शिव जी पार्वती जी को बोलते हैं, ये सब मेरे हाथ में नहीं है, इसका हिसाब किताब तो चित्रगुप्त के पास रहता है। पार्वती जी कहती है कि प्रभु मुझे इनके बारे में जानना है आप चित्रगुप्त को बुलवाईये। चित्रगुप्त को बुलाया जाता है, और प्रभु उनसे कहते हैं, बताओ चित्रगुप्त इन दोनों दोस्तों के बारे में पार्वती जी को बताओ।

    चित्रगुप्त कहते हैं पहला दोस्त जो कि इस जन्म में पुण्यात्मा ईमानदार है, पिछले जन्म में महापापी दुष्ट था, इसकी तो बचपन में ही अकालमृत्यु लिखी थी, परंतु अपने कर्मों के कारण इसके बुरे कर्मों के फ़लों का नाश हो गया और आज जो इसे कांटा चुभा है वह इसके पिछले जन्मों में किये गये बुरे कर्मों का अंत था, अब इसके पुण्य इसके साथ ही रहेंगे।

    पार्वती जी बोलीं – चित्रगुप्त जी दूसरे दोस्त के बारे में बताईये। चित्रगुप्त कहते हैं दूसरा दोस्त पिछले जन्म में बहुत पुण्यात्मा और ईमानदार था परंतु इस जन्म में महापापी दुष्टात्मा है, अगर यह इस जन्म में भी पुण्यात्मा होता तो इसे तो राजगद्दी पर बैठना था, परंतु दुष्ट है इसलिये आज इसका पिछले जन्मों का पुण्य खत्म हो गया और इसे राजगद्दी की जगह १००० रूपयों से ही संतोष करना पड़ रहा है। और अब इसके पाप इसके खाते में लिखे जायेंगे।

रेल्वे द्वारा तकनीक के इस्तेमाल और कुछ खामियाँ सेवाओं में.. (Technology used by Railway… some problems in services)

    पिछले महीने हमने अपनी पूरी यात्रा रेल से की और विभिन्न तरह के अनुभव रहे कुछ अच्छे और कुछ बुरे। कई वर्षों बाद बैंगलोर रेल्वे स्टेशन पर गये थे, हमारा आरक्षण कर्नाटक एक्सप्रेस से था और सीट नंबर भी कन्फ़र्म हो गया था। तब भी मन की तसल्ली के लिये हम आरक्षण चार्ट में देखना उचित समझते हैं, इसलिये आरक्षण चार्ट ढूँढ़ने लगे, तो कहीं भी आरक्षण चार्ट नहीं दिखा। ५-६ बड़े बड़े टीवी स्क्रीन लगे दिखे जिसपर लोग टूट पड़े थे, हमने सोचा चलो देखें कि क्या माजरा है। पता चला कि आरक्षण चार्ट टीवी स्क्रीन पर दिखाये जा रहे हैं, हमने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि रेल्वे तकनीक का इतना अच्छा इस्तेमाल भी कर सकता है। बहुत ही अच्छा लगा कि रेल्वे ने तकनीक का उपयोग बहुत अच्छे से किया जिससे कितने ही कागजों की बर्बादी बच गई।

    बैंगलोर रेल्वे स्टेशन पर तकनीक का रूप देखकर रेल्वे के बदलते चेहरे का अहसास हुआ। बस थोड़ी तकलीफ़ हुई कि ट्रेन कौन से प्लेटफ़ॉर्म पर आयेगी यह कहीं भी नहीं पता चल रहा था, हालांकि टीवी पर आने और जाने वाली गाड़ियों का समय के साथ प्लेटफ़ार्म नंबर दिखाया जा रहा था, परंतु हमारी गाड़ी के बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं थी। खैर पूछताछ करके पता चला कि ट्रेन एक नंबर प्लेटफ़ार्म पर आने वाली है। पूछताछ खिड़्की भी केवल एक ही थी, जिस पर लंबी लाईन लगी हुई थी और लोग परेशान हो रहे थे। हम चल दिये एक नंबर प्लेटफ़ार्म की और, जैसे ही घुसे ट्रेन सामने ही थी अब डब्बे का पता नहीं चल रहा था क्योंकि पूरी ट्रेन की लोकेशन बाहर नहीं लगी थी, तो वहीं प्रवेश द्वार पर बैठे टी.सी. महोदय से पूछा कि डिब्बा किधर आयेगा, और उन्होंने तत्परता से बता भी दिया ( जो कि हमारी उम्मीद के विपरीत था )।

    खैर डब्बे में पहुँचे तो तप रहा था क्योंकि ए.सी. चालू नहीं किया गया था, थोड़ी देर बाद ए.सी. चालू किया तब जाकर राहत मिली। हमने सोचा कि द्वितिय वातानुकुलित यान में पहले के जैसी अच्छी सुविधाएँ मौजूद होंगी और पॉवर बैकअप होता ही है, तो बहुत दिनों से छूटे हुए ब्लॉग पोस्ट पढ़ लिये जायेंगे । पहले तो हमने अपना जरूरी काम किया तो अपने लेपटॉप की बैटरी नमस्ते हो ली, अब चाहिये था बैटरी चार्ज करने के लिये पॉवर, बस यहीं से हमारा दुख शुरु हो गया। १० मिनिट बाद ही पॉवर गायब हो गया, तो इलेक्ट्रीशियन को पकड़ा गया उसने वापस से रिसेट किया परंतु फ़िर वही कहानी १० मिनिट मॆं फ़िर पॉवर गायब हो गया। उसके बाद जब हम फ़िर से इलेक्ट्रीशियन को ढूँढ़ते हुए पहुँचे तो हमें बताया गया कि इससे आप लेपटॉप नहीं चला पायेंगे केवल मोबाईल रिचार्ज कर पायेंगे। लोड ज्यादा होने पर डिप मार जाती है। कोच नया सा लग रहा था तो पता चला कि रेल्वे ने पुराने कोच को ही नया बनाकर लगा दिया है। खैर यह समस्या हमने मालवा एक्सप्रेस में भी देखी परंतु आते समय राजधानी एक्सप्रेस में यह समस्या नहीं थी। अब क्या समस्या है यह तो रेल्वे विभाग ही जाने। परंतु लंबी दूरी की गाड़ियों में यह सुविधा तो होनी ही चाहिये, आजकल सबके पास लेपटॉप होते हैं और सभी बेतार सुविधा का लाभ लेते हुए अपना काम करते रहते हैं।

    द्वितिय वातानुकुलन यान की खासियत हमें यह अच्छी लगती है कि केबिन में सीटें अच्छी चौड़ी होती हैं, परंतु इस बार देखा तो पता चला कि सीटें साधारण चौडाई की थीं। और यह हमने तीनों गाड़ियों में देखा।

    जब आगरा में थकेहारे रेल्वे स्टेशन पर पहुँचे तो गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी, और ट्रेन आने में लगभग १ घंटा बाकी था, हमने वहाँ उच्चश्रेणी प्रतीक्षालय ढ़ूँढ़ा तो मिल भी गया और ऊपर से सबसे बड़ी खुशी की बात कि ए.सी. भी चल रहे थे, मन प्रसन्न था कि चलो रेल्वे अपने यात्रियों को कुछ सुविधा तो देता है। बस सोफ़े नहीं थे उनकी जगह स्टील की बैंचे डाल रखी थीं जिस पर यात्री ज्यादा देर तक तो बैठकर प्रतीक्षा नहीं कर सकता। आते समय भोपाल में भी हमने रात को ४ घंटे प्रतीक्षालय में बिताये वहाँ पर भी सुविधा अच्छी थी।

    जाते समय कर्नाटक एक्सप्रेस का खाना निहायत ही खराब था, केवल खाना था इसलिये खाया, ऐसा लग रहा था जैसे कि रूपये देकर जेल में मिलने वाला खाना खरीद कर खा रहे हैं (वैसे अभी तक जेल का खाना चखा नहीं है), वैसे हमें ऐसा लग रहा था तो हम अपने साथ बहुत सारा माल मत्ता अपने साथ लेकर ही चले थे, तो सब ठीक था। आते समय राजधानी एक्स. का खाना भी कोई बहुत अच्छा नहीं था, पहले जो क्वालिटी खाने की राजधानी एक्स. में मिलती थी अब नहीं मिलती। आते समय तो दाल कम पड़ गई होगी तो उसमें ठंडा पानी मिलाकर परोस दिया गया, लगभग सभी यात्रियों ने इसकी शिकायत की, टी.सी. को बोलो तो वो कहते हैं यह अपनी जिम्मेदारी नहीं और पूछो कि किसकी जिम्मेदारी है तो बस बगलें झांकते नजर आते ।

    खैर अब सभी चीजें तो अच्छी नहीं मिल सकतीं, पर कुल मिलाकर सफ़र अच्छा रहा और अब आगे रेल्वे की सुविधा का उपयोग केवल मजबूरी में ही किया जा सकेगा क्योंकि एक तो ३६-३९ घंटे की यात्रा थकावट से भरपूर होती है और उतना समय घर पर रहने के लिय भी कम हो जाता है। अगर रेल्वे थोड़े सी इन जरूरी चीजों पर ध्यान दे तो यात्रियों को बहुत सुविधा होगी।

    अगर पाठकों को पता हो कि इन खामियों की शिकायत कहाँ की जाये, जहाँ कम से कम सुनवाई तो हो, तो बताने का कष्ट करें।

आखिर इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे कब सुधरेगा..

    गुस्सा होना स्वाभाविक है, जब आपको तत्काल कहीं जाना हो और टिकट न मिले, तो तत्काल का सहारा लेते हैं, रेल्वे ने यह सुविधा आईआरसीटीसी के द्वारा भी दे रखी है, परंतु ८ बजे सुबह जैसे ही तत्काल आरक्षण खुलता है वैसे ही इस वेबसाईट की बैंड बज जाती है, सर्विस अन- अवेलेबल का मैसेज इनकी वेबसाईट पर मुँह चिढ़ाने लगता है।

    कई बार तो बैंक से कई बार पैमेन्ट हो जाने के बाद भी टिकट नहीं मिल पाता है क्योंकि पैमेन्ट गेटवे से वापिस साईट पर आने पर ट्राफ़िक ही इतना होता है कि टिकट हो ही नहीं पाता है, वैसे अगर टिकट नहीं हुआ और बैंक से पैसे कट गये तो १-२ दिन में पैसे वापिस आ जाते हैं, परंतु समस्या यह है कि ऑनलाईन टिकट मिलना बहुत ही मुश्किल होता है।

    सुबह ८ बजे से ८.४५ – ९.०० बजे तक तो वेबसाईट पर इतना ट्राफ़िक होता है कि टिकट तभी हो सकता है जब आपकी किस्मत बुलंद हो। वैसे आज किस्मत हमारी भी बुलंद थी जो टिकट हो गया वरना तो हमेशा से खराब है, इसके लिये पहले भी जाने कितनी बार रेल्वे को कोस चुके हैं।

    करीबन २ महीने पहले से एजेन्टों के लिये व्यवस्था शुरु की गई कि वे लोग जिस दिन तत्काल खुलता है उस दिन ९ बजे से टिकट करवा सकेंगे याने कि सुबह ८ से ९ बजे तक केवल आमजनता ही करवा पायेगी, परंतु इनकी इतनी मिलीभगत है कि जब सीजन होता है तब इनके सर्वर ही डाऊन हो जाते हैं, न घर बैठे आप साईट से टिकट कर सकते हैं और न ही टिकट खिड़की से, पर जैसे ही ९ बजते हैं, स्थिती सुधर जाती है, ये सब धांधली नहीं तो और क्या है।

    टिकट खिडकी पर जाकर टिकट करवाना मतलब कि अपने ३-४ घंटे स्वाहा करना। सुबह ४ बजे से लाईन में लगो, तब भी गारंटी नहीं है कि टिकट कन्फ़र्म मिल ही जायेगा, लोग तो रात से ही अपना बिस्तर लेकर टिकट खिड़की पर नंबर के लिये लग जाते हैं, और टिकट खिड़की वाला बाबू अपने मनमर्जी से टिकट करेगा, उसका प्रिंटर बंद है तो परेशानी, उसके पास खुल्ले न हो तो और परेशानी, जब तक कि पहले वाले यात्री को रवाना नहीं करेगा, अगले यात्री की आरक्षण पर्ची नहीं लेगा, और जब तक कि ये सब नाटक होगा, बेचारा अगला यात्री उसको कोसता रहेगा क्योंकि तब तक उसे कन्फ़र्म टिकट नहीं वेटिंग का टिकट मिलेगा।

    क्या इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे अपना आई.टी. इंफ़्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं कर सकता है, या उसके जानकारों की कमी है रेल्वे के पास, तो रेल्वे आऊटसोर्स कर ले, कम से कम अच्छी सुविधा तो मिल पायेगी।

“ऐ टकल्या”, विरार भाईंदर की लोकल की खासियत और २५,००० वोल्ट

    हम चल दिये ५ दिन के लिये मुंबई से बाहर, बोरिवली स्टेशन से हमारी ट्रेन थी, हम ट्रेन के आने के ठीक १० मिनिट पहले प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँच गये, तो चार नंबर प्लेटफ़ार्म से ट्रेन जाती है, और इसी प्लेटफ़ॉर्म से विरार, भाईंदर की लोकल ट्रेनें भी जाती हैं। इन लोकल ट्रेन में पब्लिक को देखते ही बनता है, बाहर की पब्लिक तो इन लोगों को देखकर आश्चर्य करते हैं।विरार भाईंदर की लोकल ट्रेन को देखकर बाहर के लोगों को आप आँखें फ़ाड़ फ़ाड़कर देखते हुए देखे जा सकते हैं ।

    विरार भाईंदर लोकल ट्रेन की बहुत सारी खासियत हैं, मसलन ट्रेन की छत पर यात्रा करना, बाहर से खिड़की के ऊपर चढ़कर यात्रा करना, बंद दरवाजे की रेलिंग पर चढ़कर यात्रा करना, गेट पर खड़े हुए हीरो लोग प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े हुए लोगों पर फ़ब्ती कसते हैं, डब्बे में इतनी भीड़ होने के बाबजूद और लोगों का चढ़ जाना, और सबसे बड़ी खासियत गुटबाजी अगर आप पहली बार जा रहे हैं तो गेट पर खड़े लोग आपको चढ़ने ही नहीं देंगे, और अगर उतरना है तो उतरने नहीं देंगे।

    भले ही बेचारे रेल्वे वाले चिल्ला चिल्लाकर अधमरे हो जायें, कि ट्रेन की छत पर यात्रा न करें २५,००० वोल्ट का करंट बहता है, कई लोग तो निपट भी चुके हैं, पर हीरोगिरी करने से बाज आयें तब न, बस इनको नहीं सुनना है तो नहीं सुनना है, शायद कानून को मजाक समझते हैं ये लोग।

    हम अपनी हेयरश्टाईल याने कि टकले थे, (टकलापुराण और टकले होने के फ़ायदे रोज ४० मिनिट की बचत) तो एक फ़ब्ती हमें भी मिली “ऐ टकल्या”, तो हमने पहले अपने आसपास खड़े लोगों को देखा तो पाया कि “केवल अपन ही टकले हैं, और कोई टकला नहीं है”, बड़ा ही आनंद आया कि चलो कोई तो है जो हमको फ़ब्ती कस सकता है।

उज्जैन यात्रा वृत्तांत, प्लेटफ़ार्म पर हॉट पीस…

    तीन दिन की छुट्टियों में हम चले उज्जैन, और उसके बने कुछ वृत्तांत और संस्मरण।

    घर से बाहर निकले ऑटो पकड़ने के लिये, और सड़क पर खड़े होकर ऑटो को हाथ देने का उपक्रम करने लगे, दो तीन ऑटो वालों ने मीटर होल्ड पर किया था, मतलब साईड में किया हुआ था जिससे पता चलता है कि ऑटो वाला घर जा रहा है और सवारी को लेकर नहीं जायेगा। और कुछ ऑटो वाले जो कि सवारी की तलाश में थे और मीटर डाऊन नहीं था वे रुककर हमेशा पूछेंगे कहाँ जाना है, गंतव्य बताओ तो जाने को तैयार नहीं और चुपचाप अपनी गर्दन से नहीं का इशारा करके चुपके से निकल लेंगे। पर मुंबई में अगर आपके पास सामान है तो ऑटो वालों को पता रहता है कि ये सवारी या तो एयरपोर्ट जायेगी या रेल्वे स्टेशन। सामान साथ में रहने पर ऑटो मिलने में ज्यादा आसानी रहती है,  जो भी ऑटो चालक उधर जाने का इच्छुक रहता है चुपचाप आ जाता है। तो हम चल दिये बोरिवली स्टेशन अपनी ट्रेन पकड़ने के लिये, वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे से नेशनल पार्क होते हुए बोरिवली स्टेशन पहुँचे। तो देखा कि बोरिवली का प्लेटफ़ार्म नं ६ बनकर तैयार हो चुका है।

    मुंबई में रहकर अगर आप लोकल ट्रेन में सफ़र नहीं करते हैं, तो बहुत ही भाग्यशाली हैं या नहीं यह तो अपने मनोविज्ञान पर निर्भर करता है, क्योंकि लोकल ट्रेन का सफ़र भी जिंदगी का एक अहम हिस्सा होता है। बहुत दिनों बाद लोकल ट्रेन और उसमें फ़ँसे लदे फ़दे लोगों को देखकर कुछ अजीब सा लग रहा था हमारी आँखों को !!

    और हम भी जैसे ही स्टेशन की सीढ़ियों पर चढ़े हम भी मुंबई की उस खास जीवनशैली का हिस्सा हो गये केवल अंतर यह था कि हमारे पास सामान था, जिससे साफ़ जाहिर हो रहा था कि हम लोकल ट्रेन नहीं पकड़ने वाले हैं, हम कहीं लंबी दूरी की ट्रेन पकड़कर जाने वाले हैं। सीढ़ियों पर चढ़ते समय देखा कि सीढ़ियाँ जहाँ से शुरु हो रही थीं वहीं पर कुछ कारीगर टाईल्स शुद्ध सीमेन्ट से लगा रहे थे, और सीढ़ियों पर जहाँ यात्रियों के पैर नहीं पड रहे हैं वहाँ बारीक रेत इकठ्ठी हो चुकी थी और सब उस रेत को रौंदते हुए अपने गंतव्य की ओर चले जा रहे थे।

    फ़िर हम पहुँचे बोरिवली के प्लेटफ़ार्म नंबर ४ पर जहाँ कि अवन्तिका एक्सप्रेस आती है। हमारा कोच इंजिन से पाँचवे नंबर पर था जो कि सबसे आगे होता है, हम भी कोच ७ के पास रुक लिये और अपने परिवार को वहीं बेंच पर टिक जाने के लिये बोला, और हम खड़े होकर इधर उधर देखने लगे। क्योंकि उज्जैन जाने वाली ट्रेन में कोई न कोई पहचान का मिल ही जाता है, पर वहाँ भीड़ जयपुर की भी थी जो कि अवन्तिका के ५ मिनिट पहले आती है, और विरार, वसई रोड और भईन्दर की लोकल ट्रेन सरसराट मुंबईकरों से लदी फ़दी चली जा रही थीं। जो लोग पहली बार मुंबई आये थे और जो लोग विरार कभी इन लोकल ट्रेन में नहीं गये थे वो दाँतों तले ऊँगलियों को चबा रहे थे।

    हमारे बेटेलाल ने हमसे फ़रमाइश की हमें टॉफ़ी चाहिये, तो हम उसको ले चले एक स्टॉल की ओर, जहाँ बहुत सारी प्रकार की टॉफ़ियाँ थी, जहाँ बेटेलाल ने एक चुईंगम और कुछ और टॉफ़ियों को अपने कब्जे में किया और हमारी तरफ़ मुखतिब होकर बोले “डैडी पैसे दे दो”। फ़िर वापिस से प्लेटफ़ार्म पर अपने कुछ समय की जगह पर आ गये और वापिस से इंतजार की प्रक्रिया शुरु हो गई।

    इतने में जयपुर एक्सप्रेस चली गई और अवन्तिका एक्सप्रेस की लोकेशन लग गयी, यात्री अपनी अपनी लोकेशन की ओर दौड़ने लगे और एकदम पूरे प्लेटफ़ार्म पर अफ़रा तफ़री जैसा माहौल हो गया। हम भी अपनी लोकेशन पर पहुँचकर ट्रेन का आने का इंतजार करने लगे। हमारे कोच में सब नौजवान पीढ़ी के लोग ही थे, चारों ओर जवानियों से घिरे हुए थे, ऐसा लग रहा था जैसे हम कॉलेज में आ गये हैं, दरअसल इंदौर और उज्जैन जा रहे थे ये सारे नौजवान जो कि मुंबई में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्य करते थे। इतने में ही वहीं पर एक हॉट पीस आ गया मतलब कि एक लड़की जो कि मॉडल जैसी लग रही थी, छोटी सी ड्रेस पहनी हुई थी और साथ का लड़का वह भी मॉडल लग रहा था, बल्ले शल्ले अच्छे थे। तो हमारी घरवाली बोली कि जिस भी कंपार्टमेंट में यह जा रही होगी उसके तो सफ़र में चार चाँद लग जायेंगे। सबकी निगाहें वहीं लगी हुई थीं, इतने में ट्रेन आ गई और हम अपने समान के साथ ट्रेन में लद लिये। और जब ट्रेन चलने लगी तो हमारी घरवाली ने बताया कि वो हॉट पीस तो किसी को छोड़ने आयी थी, न कि यात्रा करने। हमने सोचा कि चलो अच्छा है कम से कम हमें किसी ओर कंपार्टमेंट से ईर्ष्या करने का मौका नहीं मिला।

    फ़िर खाना खाने के बाद हम भी सो लिये और सुबह ७.१० बजे ही उज्जैन पहुँच गये।

irctc.co.in रेल्वे का मिला जुला खेल या इस सरकारी तंत्र के पास संसाधनों Infrastructure की कमी

हम irctc.co.in साईट का उपयोग करते ही रहते हैं क्योंकि हम या हमारे घर में से या फ़िर हमारे किसी न किसी परिचित का टिकिट हम करवाते ही रहते हैं। इस पर भी बहुत बड़ा खेल चल रहा है कहने को तो इंटरनेट के जरिये बहुत ही अच्छी सुविधा मुहैया करवा दी है परंतु अभी भी इसमें बहुत सारे झोल हैं। जिससे irctc या रेल्वे संसाधनों की कमी बताकर तो हाथ नहीं झाड़ सकती है। और जो भी यात्री इंटरनेट से टिकिट करवाते हैं उनके लिये तो कुछ विशेष

छूट होनी चाहिये क्योंकि इससे उनका मेनपावर बच रहा है, जैसे बैंकों में एटीएम से राशी निकास में बैंक को कम खर्च उठाना पड़ता है परंतु अगर ग्राहक बैंक कैश काऊँटर से जाकर निकासी करेगा तो ज्यादा खर्चा होगा, बैंकों ने अपना खर्च कम करने के लिये एटीएम की संख्या बढाना शुरु किया था।

irctc को नियमित ग्राहकों को लुभाने के लिये कोई अच्छी स्कीम देनी चाहिये पर वह तो उन ग्राहकों से ज्यादा शुल्क लेने में लगी है, जो रेल्वे के मेनपावर को बचा रहा है, वाह री मेरी अनपढ़ रेल्वे को चलाने वाली सरकार, तानाशाह डिपार्ट्मेंट।
अगर मुझे मुंबई राजधानी से रतलाम से दिल्ली की यात्रा करनी है और अगर रतलाम से दिल्ली कोटे में सीट उपलब्ध है और अगर मैं irctc से टिकिट करवाता हूँ तो वेटिंग का टिकिट प्राप्त होगा परंतु अगर मैं रेल्वे स्टेशन जाकर रिजर्वेशन करवाता हूँ और तो मुझे कन्फ़र्म टिकिट मिलेगा। पता नहीं क्या खेल है यह या तो इनके सोफ़्टवेयर में ही कुछ प्राब्लम है या फ़िर कोई खेल है।
अब तत्काल की ही बात लें, तत्काल टिकिट रिजर्वेशन के लिये २ दिन पहले खुलता है सुबह आठ बजे, अगर मुझे मुँबई से उज्जैन जाना है तो मुझे उसके लिये अवन्तिका एक्सप्रेस का टिकिट लेना होता है, टिकिट विन्डो को देखे भी अब मुझे शायद दो साल से ज्यादा समय हो गया अब तो irctc से या फ़िर एजेन्ट से करवाते हैं। पीक टाईम पर सुबह चार पाँच बजे से तत्काल टिकिट के लिये लाईन लगना शुरु हो जाती है और फ़िर टिकिट विन्डो वाले लोगों की तानाशाही, टिकिट विन्डो खोलते ही पाँच मिनिट बाद हैं और इतने में तो खेल हो जाते हैं। जैसे अवन्तिका एक्सप्रेस में स्लीपर में १८३ और ३एसी में ४४, २एसी में १४ सीटें तत्काल के लिये आरक्षित होती हैं। इतनी सीटें होने पर भी लगभग ८.०२ बजे ही वेटिंग आ जाता है, और irctc पर server failure का एरर मैसेज मुँह चिढ़ा रहा होता है।
इस एरर मैसेज के लिये हमने कई बार ग्राहक सेवा से संपर्क कर खीज उतारने की कोशिश की पर हमेशा जबाब मिलता कि कृप्या दोबारा कोशिश करें, पर अगर आप एजेन्ट को टिकिट करने के लिये देते हैं तो हमेशा कन्फ़र्म मिलता है, पता नहीं इन एजेन्टों के साथ रेल्वे की क्या सेटिंग है। एजेन्ट पीक टाईम पर रिजर्वेशन चार्ज ६०० रुपये तक लेते हैं भले ही टिकिट ४५० रुपयों का हो।
पता नहीं रेल्वे का सोफ़्टवेयर इस सरकारी तंत्र से कब बाहर निकल पायेगा पर फ़िर भी हम ईमानदारी से टिकिट मिलने की आशा करते हैं, आशा करते हैं कि कोई रेल्वे का अधिकारी इसे पढ़ेगा और व्यवहारिक रुप से खोजबीन कर कुछ सुधार करेगा।