Tag Archives: हर्ष

बचपन की परिपक्वता..

    परिवार गर्मी की छुट्टियों में घर गया हुआ है, यही दिन होते हैं जब हम अकेले होते हैं और बेटेलाल अपने दादा दादी और नाना नानी का भरपूर स्नेह पाते हैं। बेटेलाल सुबह से रात तक अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेलने में व्यस्त होते हैं, वहाँ उनकी भरपूर मंडली है, और यहाँ बैंगलोर में गिनेचुने एक या दो और वे भी किसी ना किसी गतिविधि मॆं व्यस्त होते हैं । अभी बेटेलाल का क्रिकेट प्रेम सर चढ़कर बोल रहा है, शाम पाँच बजे से जो गली क्रिकेट शुरू होता है तो अँधेरा होने तक चलता रहता है। बचपन में तो हम इतना खेलने के बाद खाना खाने के बाद स्ट्रीट लाईट की रोशनी में खेलते थे। पर भला हो नगर निगम का कि उसने हमारे घर के आसपास बड़ी स्ट्रीट लाईट नहीं लगाई है।

Harsh Rastogi

क्षिप्रा नदी में शाम के समय नाव के मजे लेते हुए बेटेलाल

    यही दिन होते हैं बच्चों के मजे के जब गर्मी की छुट्टियों में मौज होती है और दोस्तों में कोई भेदभाव नहीं होता कि तू किसका बेटा है, क्या करता है और भी पता नहीं क्या क्या… आजकल बड़े शहरों में हमने देखा है कि  दोस्त भी हैसियत देखकर बनाते हैं, बड़ा अजीब लगता है यह सामाजिक बदलाव, जो कि कहीं ना कहीं बच्चों के लिये खालीपन भरता है।

    बेटेलाल के साथ क्रिकेट खेलने वालों में उनका एक साथी जो कि उनके साथ रोज ही खेलता था, एक शाम एक दुर्घटना में नहीं रहा, मेरे बेटे ने मुझे फ़ोन पर बताया – “डैडी, वह हमारे साथ खेलता था, और रात नौ बजे वो जो बिल्डिंग बन रही है उसकी तीसरी मंजिल से उसका पैर फ़िसल गया और नीचे गिर गया, मेरे दोस्त ने बताया कि जब वह गिरा तो उसके सिर के पास बहुत सारा खून बह रहा था और उसके पापा मम्मी एकदम अस्पताल ले गये, पर डैडी वह नहीं बचा, उसकी डैथ हो गई” और फ़िर वह चुप हो गया ।

    फ़िर थोड़े अंतराल के बाद बोला “डैडी, अब मैं आपकी बातें माना करूँगा, मैं ध्यान से सड़क पार करूँगा, ध्यान से खेलूँगा, आप बिल्कुल चिंता मत करना” उस रात बेटेलाल मम्मी का हाथ पकड़कर सोये और थोड़ी थोड़ी देर में सहम रहे थे, बेटेलाल के मन पर दोस्त की मौत का बहुत असर हुआ था।

    इतनी छोटी उम्र में दोस्त की मौत ने हमारे बेटे को पता नहीं कहाँ से इतनी परिपक्वता दे दी, बेटा एकदम से बड़ा हो गया। बेटे को किसी को खोने का मतलब समझ में आ रहा है, जो कल तक उससे हाथ मिलाकर खेलता था, आज वह उसे कहीं दिखाई नहीं दे रहा और वह अब कभी नहीं आयेगा।

बच्चों के शार्टब्रेक मॆं खाने के लिये क्या दिया जाये, स्कूल ने नोटिस निकाला

    बेटेलाल ने जब से स्कूल जाना शुरु किया है तब से उनके शार्ट ब्रेक और लंच के नाटक फ़िर से शुरु हो गये हैं। रोज जिद की जाती है कि मैगी, पास्ता, पिज्जा या बर्गर दो। हम बेटेलाल को रोज मना करते हैं, मगर कई बार तो जिद पर अड़ लेते हैं, सब बच्चे लाते हैं, और एक आप हैं कि मुझे इन चीजों के लिये मना करते हैं। हमने कितनी ही बार समझाया कि बेटा मैगी, पास्ता, पिज्जा ठंडे हो जाने पर बुल्कुल अच्छे नहीं लगते और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भी होते हैं। इस तरह से लगभग रोज की कहानी हो चली थी। और इस बात से लगभग सभी अभिभावक परेशान रहते हैं।
    शार्ट ब्रेक में अलग अलग चीजें दिया करते हैं अलग तरह के बिस्किट तो कभी उनकी कोई मनपसंदीदा नमकीन या मिठाई और खाने में रोटी सब्जी या परांठा सब्जी। पर बेटेलाल हैं कि कहते हैं उन्हें रोटी सब्जी नहीं मैगी दिया करें, पास्ता दिया करें। पैरेंट्स टीचर मीटिंग के दौरान स्कूल में उनकी मैडम ने हमें पहले ही मना कर दिया था कि बच्चों को यह सब चीजें नहीं दिया करें। परंतु बच्चे हैं कि मानते ही नहीं, घर पर इतनी जिद करते हैं और आसमान सिर पर उठा लेते हैं।
    दो दिन पहले बेटेलाल की स्कूल की वेबसाईट पर नोटिस में शार्ट ब्रेक में मेनू आ गया, जिसमें हर दिन का मेन्यू निश्चित है। अब बेटेलाल को समझा रहे हैं कि बेटा अभी भी मान जाओ नहीं तो स्कूल वाले अब लंच का भी मेन्यू दे देंगे फ़िर क्या करोगे ?
    हमेशा लंच बॉक्स में सब्जी बची हुई आती है, अब देखते हैं कि इस सबका क्या असर होता है। अभिभावक कितना भी समझा लें परंतु बच्चों को समझ में नहीं आता, अगर शिक्षक स्कूल में बोले तो वह बच्चों के लिये पत्थर की लकीर होता है।
    पहले कक्षा में ही लंच करना होता था, अब थोड़ी बड़ी कक्षा में आ गये हैं तो उनकी क्लॉस टीचर बच्चों को स्कूल के छोटे बगीचे में लंच करने ले जाती हैं और लंच करने के बाद टिफ़िन वापिस अपनी क्लॉस में रखकर फ़िर से बच्चे बगीचे में खेलने आ जाते हैं। बेटेलाल के मुँह से यह सब बातें सुनने के बाद अपने स्कूल के दिन याद आ जाते हैं।

बच्चों के साथ कार्टून देखिये, कि आखिर कार्टून में परोसा क्या जा रहा है। (Must Watch Cartoon Channels with your Child…? Check what is there… ?)

    कल बेटेलाल के साथ बुद्धुबक्से को देख रहे थे और उनके कार्टून चैनल निक्स पर डोरीमोन आ रहा था, हालांकि हमने अपने बचपन में कभी कार्टून नहीं देखे, उस समय आते भी थे तो केवल विदेशी कार्टून स्पाईडरमैन या फ़िर रामायण देख लो।

    आजकल तो बुद्धुबक्से पर करीबन १०-१२ चैनल कार्टून के लिये ही हैं, जिस पर २४ घंटे कार्टून परोसे जाते हैं, जिसमें कुछ डिज्नी के हैं, कुछ जापानी और कुछ भारतीय। हालांकि इन चैनलों पर आजकल डिजनी के प्रसिद्ध कार्टून डोनाल्ड डक और मिकी माऊस कम ही देखने को मिलते हैं ।

    बच्चों के साथ कार्टून देखने का अपना अलग मजा है, वापिस से हम बचपन के युग में पहुँच जाते हैं, और बच्चों की सायकोलोजी भी समझने का मौका मिलता है, बहुत से वाक्य जो हमारे बेटेलाल बोलते हैं, पता चला कि कार्टून चैनल्स की देन है। कुछ कार्टूनों में तो वाकई हिन्दी में गजब अनुवाद किया गया है, परंतु कुछ कार्टूनों को तो बैन कर देना चाहिये। यहाँ तक कि कार्टून में आवाजें भी हिन्दी फ़िल्म अभिनेताओं से मिलती होती हैं, जो कि सुनने पर आसानी से पहचानी जा सकती हैं।

    वैसे आजकल भारतीय कार्टून भी बहुतायत में उपलब्ध हैं और अच्छे शिक्षाप्रद एपीसोड आते हैं, परंतु अच्छे विचार और अच्छे संस्कार केवल कार्टून से नहीं डाले जा सकते हैं, क्योंकि इस तरह के कार्टून केवल १०-१५% ही होते हैं, बाकी के तो बकवास ही होते हैं।

    जैसे हमारे बेटेलाल कल हमसे कह रहे थे “डैडी ये डोरीमोन कहाँ मिलता है, अपन भी एक डोरीमोन ले आते हैं, जो कि मुझे ढेर सारे गेजेड्ट्स लाकर देगा।”

    मूल केवल यह है कि बच्चे कार्टून जरूर देख रहे हैं, परंतु कार्टून में क्या परोसा जा रहा है उसे नजरअंदाज मत कीजिये और आप भी कार्टून देखिये और बच्चों को स्वच्छ और अच्छॆ कार्टून देखने को प्रेरित कीजिये।

बेटे की जन्मदिन की बातें.. मेरी यादें… विवेक रस्तोगी

17102010(063)     आज हमारे बेटे हर्षवर्धन रस्तोगी का जन्मदिन है, आज हमारे बेटेलाल ६ वर्ष के हो चुके हैं, समय कितनी जल्दी बीत जाता है, पता ही नहीं चलता है। आज से ठीक ६ वर्ष पूर्व सुबह १० बजे शल्य चिकित्सक ने शल्यकक्ष से बाहर आकर हमें बेटे के होने पर बधाई दी थी, और जच्चा और बच्चा स्वस्थ होने की सूचना दी थी।

    जन्म से ठीक दो दिन पूर्व हम अपने चिकित्सक के पास गये थे तो उन्होनें बताया कि बच्चे के साथ गर्भ में कुछ समस्या है और सामान्य रुप से बच्चा बाहर नहीं आ पायेगा, इसलिये जच्चा और बच्चा के लिये शल्यक्रिया ही ठीक है, और हमारे चिकित्सक ने बोला कि अगर चाहिये तो किसी और चिकित्सक के पास भी दिखा सकते हैं और दूसरा मत भी ले सकते हैं, तो हमने दूसरा मत एक और स्त्री विशेषज्ञ से लिया और सारे रिपोर्ट्स दिखाये, तो उन्होंने भी शल्य क्रिया ही ठीक बताई।

    यह तय हो चुका था कि आने वाले बच्चे का जन्म शल्यक्रिया के द्वारा ही उचित तरीका है, तो हमने अपने ज्योतिष दोस्त से सही जन्म समय पूछा, तो उन्होंने बोला कि ४ नवंबर को गुरु पुष्य नक्षत्र है, और सुबह का समय दिया। हमने एकदम अपने चिकित्सक के पास आकर ४ नवंबर को सुबह शल्यक्रिया करने के लिये आरक्षित कर लिया।

    ज्योतिष दोस्त का कहना था कि हम सारी ग्रह स्थितियों के अच्छे या अनुरुप होने तक रुक नहीं सकते हैं, तो जो भी जल्दी से जल्दी अच्छी मुहुर्त मिलता है उसी मुहुर्त पर केक कटवा लीजिये (शल्यक्रिया करवा लीजिये)।

    सुबह ६ बजे चिकित्सक ने अपने निजी चिकित्सालय में बुलवा भेजा था, और निर्देश भी दिये थे कि क्या खाना है कब खाना है, कौन सी दवाई लेनी है वगैराह वगैराह। सुबह ५ बजे  हम उठे कि जल्दी से नहा लेते हैं और तैयार होकर पूजा करने के बाद चिकित्सालय जायेंगे। तभी पास के घर से विलाप की आवाजें आने लगीं, पास के घर में आंटी जी का देहान्त हो गया था, हम लोग जल्दी से जल्दी घर से निकलकर चिकित्सालय जाने के लिये तैयार होने लगे। और मन में यह भी आया कि देखिये “प्रकृति का नियम कि एक तरफ़ एक जिंदगी पूरी हो गई और दूसरी तरफ़ एक नई जिंदगी इस दुनिया में आने वाली है।” कितना अनोखा नियम भगवान ने बनाया हुआ है, शायद इसीलिये कि अपने जीवन में सभी परोपकार की भावना से जियें पर इंसान सब भूलकर भौतिक कार्यकलापों में लिप्त रहते हैं। आप लोग भी सोच रहे होंगे कि कहाँ मैं प्रवचन देने लग गया।

    सुबह हम बिल्कुल समय पर ६ बजे चिकित्सालय पहुँच गये और वहाँ उपस्थित कर्मचारियों ने अपना कार्य शुरु कर दिया, जो भी इंजेक्शन और दवाईयाँ देनी थीं, दे दी गईं, बिल्कुल उसी समय तक शल्यकक्ष में ३ शल्यक्रिया हो चुकी थीं, और फ़िर हमारा नंबर आया तो एक चिकित्सक ने हमसे आकर बोला कि एक घंटे बाद शल्यक्रिया के लिये लेते हैं, १० बज रहे थे, हमारे मुहुर्त का समय हो रहा था, तो जिन चिकित्सक को हम दिखाते थे उन्हें कहा कि एक घंटॆ बाद का समय दिया जा रहा  है, और हमने तो समय दो दिन पहले ही आरक्षित करवा लिया था। तब वही चिकित्सक अपने साथ शल्यकक्ष में ले गयीं और उन चिकित्सक को बोलीं कि “इनका मुहुर्त समय है, और अभी ही शल्यक्रिया करनी है”।”, बस फ़िर क्या था, १० मिनिट बाद ही हमें शल्य चिकित्सक ने बताया कि बच्चा हो गया है और जच्चा बच्चा दोनों सकुशल हैं, पिता बनने की खुशी में कब हमारे आँख भर आयीं, पता ही नहीं चला, तभी पापा आ गये तो मैंने रुँधे गले से कहा “पापा मैं पापा बन गया।”

   जब जच्चा और बच्चा को बाहर लाया गया, तो मेरी घरवाली याने कि जच्चा कि आँखों में भी खुशी के आँसू थे, अपनी इतनी बड़ी शल्यक्रिया होने के बाबजूद उफ़्फ़ तक नहीं की, तब से तो मेरी नारी के लिये श्रद्धा और भी बढ़ गई।

    मेरा बच्चा मेरी गोद में था, जब अपने निजी कक्ष में पहुँचे तब पता चला कि लड़का है, उसके पहले मैंने जानने की कोशिश ही नहीं की थी, कि लड़का है या लड़की। बस बच्चे की चाहत थी, कि अच्छॆ से स्वस्थ हो।

    तो ये थी मेरे बेटे हर्ष के जन्मदिन की बातें, और फ़िर तो बधाई देने वालों का, मिलने वालों का तांता लगा हुआ था, और मैं खुद के लिये एक अजब सी अनुभूति महसूस कर रहा था।

मेरे बेटे हर्ष का ब्लॉग आज से शुरु किया है।

 

    आज से मेरे बेटे हर्ष ने ब्लॉगिंग शुरु की है, हर्ष के ब्लॉग पर आप यहाँ चटका लगाकर जा सकते हैं। वैसे तो तकनीकी रुप से अभी मैं ही उसकी सहायता कर रहा हूँ, पर पोस्ट में जो भी लिखा है, वह उसने अपने आप लिखा है और अपनी मनमर्जी से लिखा है, मैंने उसकी फ़ार्मेटिंग करने में मदद की है।
   अब उसे धीरे धीरे तकनीकी चीजें भी सिखा दूँगा, जैसे कि ब्लॉग पर लॉगिन कैसे करें फ़िर नयी पोस्ट कैसे लिखें या पुरानी पोस्ट कैसे एडिट करें इत्यादि। मेरा बेटा अभी केवल ६ वर्ष का ४ नवंबर को होगा, परंतु ब्लॉगिंग शुरु करवाने के पीछे मेरा उद्देश्य छिपा है, उसकी लेखन क्षमता को उभारने के लिये, जो गप्पें या बातें वह सोचता है करता है वह खुद ही लिखे, जिससे उसे पता चले कि क्या सही है क्या गलत है, ब्लॉगिंग से उसकी सृजन क्षमता में भी विस्तार होगा और वह अपनी उम्र के बच्चों में थोड़ा अलग भी होगा।
आज जब हर्ष ने अपनी पहली पोस्ट लिखी तो उसके बाद उसकी खुशी देखते ही बनती थी, बार बार मुझे बोल रहा था “थैंक्यू डैडी, ब्लॉग के लिये, आज मैंने अपनी पहली पोस्ट लिखी है, मैंने अपना परिचय खुद लिखा, वाऊ डैडी”।
पहली पोस्ट लिखने के बाद वह अपने कार्टून, गेम्स, फ़िल्मों ….. और भी बहुत कुछ के बारे में लिखने को लालायित है, मैंने समझाया कि रोज एक टॉपिक पर कुछ लाईन लिखो और पोस्ट करो, कभी अपने होमवर्क के बारे में भी बताओ अपनी एक्टिविटीस के बारे में भी बताओ, अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताओ, आपने क्या पढ़ा वह भी बताओ। जो भी सबको बताने की इच्छा हो वह बताओ।
ब्लॉग लेखन से हर्ष के अंदर आत्मविश्वास आयेगा, कम्यूनिकेशन अच्छे से कर पायेगा और लिखने के लिये बहुत कुछ ठीक से करेगा।
अब मैं धीरे धीरे हर्ष को ब्लॉग के बारे में तकनीकी जानकारी भी देना शुरु करूँगा, जिससे वह स्वतंत्र रुप से लेखन कर पाये, हाँ उसका मेल बॉक्स और ब्लॉग मेरी कड़ी निगरानी में रहेगा।

 

३ जी तकनीकी पर मेरी लिखी हुई पोस्टों पर भी वोट दें

 

 

http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=37482 [प्यार में बहुत उपयोगी है ३ जी तकनीक 
(Use of 3G Technology inLove..)]

 

http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=37472 [पति की मुसीबत ३ जी तकनीक से(Problems of Husband by 3 G Technology)] 

मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल के दर्शन और रक्षाबंधन पर सवा लाख लड्डुओं का भोग ४ (Travel from Mumbai to Ujjain 4, Mahakal Darshan)

    सुबह उठते ही नई उमंग थी क्योंकि आज रक्षाबंधन था, कोई बहन नहीं है परंतु खुशी इस बात की थी कि हमारे बेटेलाल की अब बहन घर में आ गई थी और उसने राखी भेजी थी, एक त्यौहार जो हमने कभी मन में तरंग नहीं जगा पाता था वह त्यौहार अब हमारे घर में सबको तरंगित करता है।

    पापा की बहनें हैं और उनकी ही राखियाँ हम भी बाँध लेते हैं, क्योंकि हमें भी भेजी जाती हैं। देखिये राखी के कुछ फ़ोटो और साथ में मिठाई –

Rakhi aur Mithai Harsh aur mere papaji

    फ़िर चल दिये महाकाल के दर्शन करने के लिये, महाकाल पहुँच कर पता चला कि बहुत लंबी लाईन है और ज्यादा समय लगेगा, हमारे पास समय कम था क्योंकि शाम को वापिस मुंबई की ट्रेन भी पकड़नी थी। हमने पहली बार विशेष दर्शन के लिये सोचा जो कि १५१ रुपये का था, और वाकई मात्र ५ मिनिट में बाबा महाकाल के सामने थे, १५१ रुपये के विशेष दर्शन के टिकट से हम तीनों ने दर्शन किये और धन्य हुए। अटाटूट भीड़ थी महाकाल में।

Mahakal bahar se darshan

    महाकाल में रक्षाबंधन पर्व पर सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया जाता है और हरेक दर्शनार्थी को एक लड्डू का प्रसाद दिया जाता है। यह परंपरा हम सालों से देखते आ रहे हैं, जब भी रक्षाबंधन पर उज्जैन होते हैं तो दर्शन करने जरुर जाते हैं और साथ ही लड्डुओं का प्रसाद लेने भी। ये वीडियो फ़ोटो देखिये सवा लाख लड्डुओं के भोग का –

Mahakal sava lakh ladduo ka bhog Mahakal sawa lakh ladduo ka bhog

जय महाकाल

ऊँ नम: शिवाय !

मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल की चौथी सवारी और श्रावण मास की आखिरी सवारी 3 (Travel from Mumbai to Ujjain 3, Mahakal Savari)

    जब हमने उज्जैन जाने का कार्यक्रम बनाया था तभी यह सोच लिया गया था कि बाबा महाकालेश्वर की चौथी सवारी और जो कि श्रावण मास की आखिरी सवारी भी होगी, के दर्शन अवश्य किये जायेंगे।
    सायं ४ बजे महाकाल की सवारी महाकाल मंदिर से निकलती है जो कि गुदरी चौराहा, पानदरीबा होते हुए रामघाट पहुँचती है, फ़िर रामानुज पीठ, कार्तिक चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार होते हुए वापिस महाकाल मंदिर शाम ७ बजे पहुँचती है।
    बाबा महाकाल अपनी प्रजा के हाल जानने के लिये नगर में निकलते हैं, और प्रजा तो उनकी भक्ति में ओतप्रोत पलकें बिछाये इंतजार करती रहती है। पूरा उज्जैन शहर बाबा महाकाल में रमा रहता है। आसपास से गाँववाले पूरी श्रद्धा के साथ उज्जैन शहर में डेरा डाले रहते हैं। उज्जैन में महाकाल की भक्ति की बयार बहती है, हवा से भी केवल महाकाल का ही उच्चारण सुनाई देता है।
    इस बार मैंने अपने मोबाईल से कुछ फ़ोटो और वीडियो लिये हैं, आप भी बाबा महाकाल की सवारी के दर्शन कीजिये और जय महाकाल बोलिये ।
फ़ोटो –
Mahakal Savari Gopal Mandir
गोपाल मंदिर पर श्रद्धालुओं का जत्था
at Mahakal Savari Ujjain Vivek Rastogi and Harsh Rastogiगोपाल मंदिर पर हम अपने बेटेलाल के साथ
वीडियो –

 

 

गोपाल मंदिर का एक दृश्य

 

 

 

 

इन वीडियो मॆं पूरी महाकाल की सवारी का आनंद लिया जा सकता है।
जय बाबा महाकाल
ऊँ नम: शिवाय !

मुंबई से उज्जैन यात्रा सीट पर पहुँचते ही १५ वर्ष पुरानी यादें ताजा हुईं 2 (Travel from Mumbai to Ujjain 2)

पिछला विवरण निम्न पोस्ट की लिंक पर चटका लगाकर पढ़ सकते हैं।

मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    बोरिवली से हमारी ट्रेन का सही समय वैसे तो ७.४२ का है परंतु हमने कभी भी इसे समय पर आते नहीं देखा है, जयपुर वाली ट्रेन का समय ठीक १५ मिनिट पहले का है, वह अवन्तिका के समय पर आती है, और फ़िर एक लोकल विरार की और फ़िर लगभग ८.०० बजे अवन्तिका आती है।

    इतनी भीड़ रहती है कि प्लेटफ़ार्म पर समझ ही नहीं आता कि कैसे थोड़ा समय बिताया जाये। अपने समान पर ध्यान रखने में और अगर बच्चा साथ में हो तो उसके साथ तो वक्त कैसे बीतता है समझ सकते हैं।

पुरानी एक पोस्ट की भी याद आ गई – “ऐ टकल्या”, विरार भाईंदर की लोकल की खासियत और २५,००० वोल्ट

    हमारे मित्र साथ में जा रहे थे, तो उन्होंने बेटेलाल को आम के रस वाली एक बोतल दिला दी, और एक कोल्डड्रिंक ले आये, बस पहले हमारे बेटेलाल ने सबके साथ पहले कोल्डड्रिंक साफ़ किया वह भी भरपूर ड्रामेबाजी के साथ, और फ़िर अपनी आम के रस वाली बोतल, बेटेलाल ने आसपास के इंतजार कर रहे यात्रियों का जमकर मनोरंजन किया।

    जयपुर वाली ट्रेन आ गई, और राखी की छुट्टी के कारण यात्रियों की भीड़ का रेला ट्रेन पर टूट पड़ा, २-३ मिनिट बाद चली ही थी कि एकदम किसी ने चैन खींच दी, तो जैसी आवाज आ रही थी उससे हमें साफ़ पता चल रहा था कि वातानुकुलित डिब्बे में से चैन खींची गई है। दो सिपाही दौड़कर देखने गये, तभी हम देखते हैं कि एक दंपत्ति अपने दो बच्चों के साथ दौड़ा हुआ आ रहा है और कुली उनका सूटकेस लेकर दौड़ा हुआ आ रहा है, इतनी देर में वे सामने ही वातानुकुलित डिब्बे में चढ़ गये, तभी ट्रेन चल पड़ी, हमें संतोष हुआ कि चलो कम से कम ट्रेन नहीं छूटी।

    फ़िर एक विरार लोकल आयी, धीमी बारिश जारी थी पर विरार वाले हैं कि मानते ही नहीं, मोटर कैबिन के बंद दरवाजे पर भी दो लोग लटके हुए जाते हैं, दो डब्बे के बीच में ऊपर चढ़ने के लिये एंगल होते हैं, उस पर भी चढ़ कर जायेंगे, और एक दो लोग तो छत पर भी चढ़ जायेंगे अपनी श्यानपत्ती दिखाने के चक्कर में, जबकि सबको पता है कि छत पर यात्रा करना मतलब सीधे २५ हजार वोल्ट के तार की चपेट में आना है।

बेटेलाल

बेटेलाल का ट्रेन में खींचा गया फ़ोटो

    अब हमारा इंतजार खत्म हुआ, अवन्तिका एक्सप्रेस हमारे सामने आ पहुँची, ऐसा लगा कि हमारे डब्बे में सब बोरिवली से ही चढ़ रहे हैं, कुछ लोग मुंबई सेंट्रल से भी आये थे पर बोरिवली से कुछ ज्यादा ही लोग थे। जैसे तैसे चढ़ लिये और अपने कूपे में पहुँचकर समान जमाने लगे।

    हमारी चार सीट थीं, और दो लोग पहले से ही मौजूद थे, एक भाईसाहब और एक लड़की, भाईसाहब हमसे ऊपर वाली सीट लेकर सोने निकल लिये, हम लोग बैठकर बात कर रहे थे, तो हमने ऐसे ही एक नजर लड़की की तरफ़ देखा तो लगा कि इसे कहीं देखा है, पर फ़िर लगा कि शायद नजरों का धोखा हो, पर वह लड़की भी हमें पहचानने की कोशिश कर रही थी, ऐसा हमें लगा।

    फ़िर अपनी भूली बिसरी स्मृतियों के अध्याय को टटोलने लगे और साथ में बात भी कर रहे थे, फ़िर थोड़ी देर बाद याद आ गया कि अरे ये तो १५ वर्ष पुरानी बात है, पर ऐसा लग रहा था कि कल की ही बात हो, वह शायद हमारे परिवार को देखकर बात करने में संकोच कर रही थी, हमने अपनी पत्नी और मित्र को बताया कि यह लड़की १५ वर्ष पहले हमारे साथ पढ़ती थी, पर हमें नाम याद नहीं आ रहा है, और इसकी बड़ी बहन बड़ौदा में रहती है, जो कि मिलने भी आयेगी। ये दोनों हमें बोले कि जाओ फ़िर बात करो हमने सोचा छोड़ो कहाँ अपने परिवार और मित्र के सामने पुरानी बातों को उजागर किया जाये, वो भी सोचेगी कि पता नहीं क्या क्या बात होगी, तो इसलिये हमने बात ही नहीं की।

    १५ वर्ष पुराने पहचान वाले आसपास बिल्कुल अंजान बनकर बैठे रहे, बड़ौदा आया और उनकी बहन मिलने भी आयीं, शायद वे भी उज्जैन आ रही थीं परंतु पूना वाली ट्रेन से, जो कि इसके १५ मिनिट पीछे चलती है। बिना बात किये हम उज्जैन में उतर गये। परंतु एकदम १५ वर्ष पुराने दिन ऐसे हमारी नजरों के सामने घूम गये थे जैसे कि कल की ही बात हो।

गपोड़ी बेटेलाल की गप्प के किस्से ३१०७२०१०

    बेटेलाल को सुबह स्कूल के लिये बस पर छोड़ने जाते हैं तो कल उनकी एक मारक गप्प वहीं सुनी, लगभग ५ मिनिट मिलते हैं रोज जब मैं और मेरा बेटा बिल्कुल पास होते हैं, तो अभी दो दिन से स्कूल बस की जगह वीडियोकोच बस आ रही है, मैंने पूछा कि स्कूल बस कहाँ गई और ये वीडियोकोच बस क्यों आ रही है।
    तो बोले कि दो दिन पहले जब हम स्कूल से घर की ओर आ रहे थे तो हमारे स्कूल के ग्राऊँड में से अचानक धुआँ आने लगा तो पता चला कि बस जल गई, हमने कहा ऐसा क्या, चलो फ़िर तो बस अभी आयेगी तो पूछ लेंगे, तो बोलते हैं
“नहीं डैडी, मत पूछना प्लीज”
मैंने कहा “नहीं उससे पूछना पड़ेगा, कि कैसी बसें चलाते हो स्कूल के लिये”
बेटेलाल बोले “डैडी स्कूलबस नहीं जली थी, मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था” “उल्लू बनाया चरखा चलाया”
पर वीडियोकोच बस में बैठे हुए सारे बच्चे बहुत खुश नजर आते हैं।
 

गपोड़ी बेटेलाल की गप्प के किस्से १८०७२०१०

शाम को पार्क में घुमाने ले गये तो बेटेलाल की गप्प सुनिये –

हमारे स्कूल में रोज कराटॆ करवाते हैं और कराटे करवाते हुए २ किमी दौड़ते हैं।

मैंने पूछा और कराटॆ मॆं फ़र्स्ट कौन आता है, तो बोले “कराटे में नहीं दौड़ में, हमेशा मैं फ़र्स्ट आता हूँ, और हमारे सर इतना तेज दौड़ते हैं, तब भी मेरे पीछे रह जाते हैं”

“फ़िर दौड़ ४० किमी की हो जाती है और ४० किमी की दौड़ खत्म होते ही ७० किमी की हो जाती है, फ़िर नदी आ जाती है, तो सर कहते हैं कि उड़ के पार कर लो”

मैंने पूछा “उड़के !”

तो बेटेलाल बोले “हाँ सर कहते हैं कि दोनों हाथों को पंख बनाकर उड़ाते हैं, और पैर से किक मारते हैं, तो उड़ने लगते हैं”

आज से गपोड़ी किस्से शुरु किये हैं। जिससे बचपन के किस्से जो हम भूल जाते हैं, वो लिखित में हमेशा मेरी पास यादें बनकर मेरे पास और आपके पास रहें।

INR Logo  ॓यह रुपये का नया रुप है क्या दिखाई देता है। हमने INR Font डाऊनलोड किया है। अगर यहाँ नहीं दिखाई दे तो चित्र लगा देते हैं।