Tag Archives: बादल

कारे कारे घनघोर बादल, ये कारा कारा तुम्हारा प्यार

    सुहानी शाम हो रही थी, बादल पूरे शहर पर घिर से आये थे, ऋत एकदम बदल गयी थी, घनघोर काले बादल ऐसे उमड़ पड़े थे जैसे कि तुम मुझपर अपना प्यार लेकर उमड़ पड़ती हो, और तुम्हारा प्यार भी घनघोर काले बादलों जैसा ही निश्चल और निष्कपट होता है, अपना प्यार की बारिश करती रहती हो जैसे ये कारे बादल तुम्हारे प्यार के सम्मोहन में ही बँधे हुए हैं, और तुमसे ही सीख लेकर बरसने निकल पड़ते हैं, पर देखो ना ये निगोड़े बादल अपनी काली छब में अपना प्यारा रूप लिये हवा से ही हिल जाते हैं, और हवा के साथ अठखेलियाँ खेलते हुए झमझम राग सुनाते हैं।

    उलाहना मत समझो, तुम्हारा ये कारा कारा प्यार कभी तुम्हें काला नहीं होने देता है, दिन ब दिन तुम पर निखार ही लाता रहा है, इन बादलों को तो बरसने के लिये सावन का इंतजार करना पड़ता है, और एक तुम हो कि तुम्हारा तो बारह महीने सावन चलता है, जब देखो तब तुम बादलों को कारा कर देती हो और बरस लेती हो।

    तुम्हें पता है जब बारिश की बूँदे, सड़क के गड्ढे में बने छोटे से पोखर में गिरती हैं, तो कोई आवाज नहीं होती किंतु अगर इसे ३-४ मंजिल ऊपर से देखो तो इसका सौदर्य देखते ही बनता है, यहाँ तक कि रेत पर भी बारिश की बूँदें गिरती हैं तो रेत अपनी थोड़ी सी जगह छोड़कर उन बूँदों को अपने ऊपर बरसने देती हैं, अपने अंदर ले लेती हैं, जैसे रेत को पता है कि बारिश की बूँद उसके पास आने वाली है और उसे आत्मसात करना है। यह प्रकृति का नैसर्गिक गुण है।

    सुबह उठो और अगर घनघोर बारिश का मौसम हो रहा हो, और पास के पेड़ पर कोयल अपनी मीठी बोली से कानों को राग दे रही हो तो ऐसा लगने लगता है कि ये सब प्यार के नये राग हैं जो इस प्रकृति से तुमको सीखने होंगे, वैसे भी प्यार की प्रकृति इतनी अलग अलग तरह की होती हैं, कि उसे समझना और व्यक्त करना बहुत ही कठिन है।

    जब भी प्यार करो तो कारे कारे बादल और कोयल की बोली को ध्यान रखो और अपना हदय द्रवित कर कारे होने की कोशिश करो। देखो फ़िर कारे कारे घनघोर बादल छाने लगे हैं ..

मुंबई से चैन्नई की उड़ान यात्रा और कुछ अनुभव.., बादलों के बीच में उड़ना जैसे कि देवलोक में आ गये हों

    कल सुबह हम अपने एक प्रोजेक्ट के लिये थोड़े दिनों के लिए चैन्नई आये हैं, सुबह ७.०५ की उड़ान थी हमारी मुंबई से चैन्नई के लिये। विमान था इंडियन एयरलाईन्स का हमें लगा सरकारी है खटारा ही होगा, पर जब विमान ने उड़ान उड़ी आशाओं के विपरीत विमान तो बहुत ही अच्छी श्रेणी का निकला, खैर फ़िर जब उड़े तो पहुँच गये बादलों के देश में उससे पहले खिड़की से नजारा देखा तो पूरी मुंबई एक जैसी ही नजर आ रही थी, पहचान नहीं सकते थे कि कौन सी जगह है। बादलों के देश में एक तरफ़ से सूर्य भगवान थे तो लोगों ने अपने खिड़कियों के शटर गिरा लिये। हम दूसरी तरफ़ थे तो बादलों को देख रहे थे, ऐसा लगा कि हम कहीं देवलोक में आ गये हों। या ये सब कोई रुई के पहाड़ हों।

    जैसे कि धरती पर हम लोग एक जमीन के टुकड़े की खरीद फ़रोख्त करते रहते हैं, वैसे ही ये लोग भी अपनी इस बादलों की दुनिया के लिये करते होंगे और हम मानव उनकी दुनिया में अपना विमान घुसाकर उन्हें परेशान करते होंगे। तो यहाँ के प्राणियों को भी तकलीफ़ होती होगी, तभी हमारा नाश्ता आ गया, जो शायद टिकिट पर नहीं लिखा था खैर हमें तो जबरदस्त भूख लगी थी, क्योंकि सुबह ४ बजे के उठे थे, हालांकि घर से हलका नाश्ता कर लिया था, पर फ़िर भी।

    विमान परिचारिका आयी और हमारे सीट में से एक टेबल नुमा चीज निकाली और पूछा कि वेज या नॉनवेज, तो हमने अपनी पसंद वेज बतायी और उसने वेज नाश्ता रख दिया, जिसमें इडली बड़ा सांभर, ब्रेड, कुछ कटे हुए फ़ल, निंबु पानी, चाय के लिये कप और एक पानी की छोटी बोतल। नाश्ता कर लिया पेटपूजा हो गई, फ़िर वही परिचारिका आकर नाश्ते की प्लेट ले गयी, चूँकि नाश्ते की प्रक्रिया के लिये बहुत ही सीमित समय होता है, तो विमान की सारा स्टॉफ़ बहुत ही मुस्तैदी से कार्य कर रहा था। जैसे ही उन लोगों ने नाश्ते की प्लेट्स ली सभी से वैसे ही कैप्टन का मैसेज आ गया कि आप चैन्नई कामराज विमानतल पर उतरने वाले है और फ़िर मौसम की जानकारी दी गई।

    बाहर निकले अपना बैग कन्वेयर बेल्ट से उठाया। और चल पड़े प्रीपैड टेक्सी के लिये क्योंकि हमें बताया गया था कि यहाँ पर कुछ भी मीटर से नहीं चलता है। सब जगह जबरदस्त मोलभाव करना पड़ता है। करीब १ घंटा लगा हमें अपने गंतव्य पहुंचने में क्योंकि चैन्नई में ट्राफ़िक की रफ़्तार बहुत ही सुस्त है। और तापमान लगभग मुंबई जैसा ही है।